किसानों के लिए प्रेरणा बनी कर्नाटक की ये आदिवासी महिला, खेती से कमाएं लाखों

बीबीसी हिंदी से साभार

शहरों में कुछ महिलाएं अपने घरों में बागवानी करके उसे सोशल मीडिया पोस्ट कर लोगों के बीच पॉपुलर हो रही हैं. उनके पास छोटी-छोटी क्यारियां और गमले हैं जिसमें वो कई तरह के छोटे छोटे पौधें लगा कर तारीफे बटोर लेती हैं. लेकिन उन महिलाओं का क्या जो अपने खेतों में अपनी सूझ बुझ से फसल उगा कर उससे न सिर्फ अपना परिवार पाल रही हैं बल्कि कई गांवों के लिए प्रेरणा भी बन रही हैं.

सशक्तिकरण के गुर सिखाती प्रेमा
ऐसी ही एक शख्सियत से आज हम आपको मिलवाने जा रहे हैं. इनका नाम है प्रेमा दासप्पा. 50 वर्षीय प्रेमा तेरह साल पहले जंगल में रहते हुए कम मजदूरी पर जटिल जीवन जी रही थीं. लेकिन अब वो अपनी जैसी कई आदिवासी महिलाओं को आर्थिक सशक्तिकरण के गुर सीखा रही हैं.

बीबीसी की रिपोर्ट में अपने बारे में बताते हुए दासप्पा कहती हैं कि उन्होंने शुरुआत में एक एकड़ जमीन में चिया के बीज बोए थे जिसकी खेती से उन्हें 90 हजार की कमाई हुई. उन्होंने इन बीजों को 18 हजार क्विंटल बेचा और अपनी इस कमाई से प्रेमा ने बेटे को बाइक ख़रीद कर दी थी.

ऐसे मिली थी जमीन
प्रेमा को ये जमीन जेनू कुरुबा आदिवासी समुदाय के उन 60 आदिवासी परिवारों में शामिल होने की वजह से मिली थी जिन्हें साल 2007-08 में नागरहोल टाइगर रिज़र्व के जंगल से बाहर होने के बदले में मुआवजे के तौर पर जमीन दी गई थी.

बीबीसी हिंदी से साभार

कुछ परिवार इस जमीन पर रहते हैं, कुछ वन विभाग में मजदूरी करते है लेकिन एक प्रेमा ही थीं जिन्होंने इस जमीं पर कुछ अलग करने का सोचा था. उन्होंने पहले खेती करना सीखा और फिर उन्होंने इस पर चावल, ज्वार, मक्का जैसे अनाज के साथ सब्ज़ियां भी उगाईं.

पानी की समस्या का निकाला हल
लेकिन यहाँ पानी की समस्या थी और इसलिए प्रेमा ने पहला इसका तोड़ निकाला. प्रेमा ने अपनी जमीन केरल के एक व्यक्ति को दी जो अदरक की खेती करना चाहता था. प्रेमा ने बदले में पैसा नहीं बल्कि कुआँ खोदने को कहा और इस तरह प्रेमा ने अपने खेतों के लिए पानी की भी व्यवस्था कर ली.

ऐसे बनी पहचान
प्रेमा के इस जज्बे और सीखने-सिखाने की क्षमताओं को कर्नाटक सरकार के वन विभाग के साथ लोगों के पुनर्वास के लिए काम करने वाली संस्था द वाइल्डलाइफ़ कंज़रवेशन सोसायटी ने पहचाना. इसी का परिणाम है कि प्रेमा अब कई दूसरी जगहों पर किसानों को सलाह देती हैं. इतना ही नहीं, वन विभाग ने राज्य में मुख्यमंत्री बासवराज बोम्मई के न होने पर, प्रेमा से कृषि मेले का उद्घाटन करने की अपील भी की थी. प्रेमा अब खुश हैं और गर्व से अपना काम सभी को बताती और सिखाती हैं.

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