सहारनपुर के दलितों से भेदभाव कर रही है यूपी सरकार

1355

saharanpur

सहारनपुर के दलित दोहरे अत्याचार का शिकार हो रहे हैं. सभी भलीभांति अवगत हैं कि 5 मई 2017 को सहारनपुर के शब्बीरपुर गांव के दलितों के घरों पर उस क्षेत्र के सामंतों ने हमला किया था. इसमें लगभग दो दर्जन दलित बुरी तरह से घायल हुए थे और 50 से अधिक घर बुरी तरह से जला दिए गए थे. उक्त हमले में रविदास मंदिर की मूर्ती तोड़ी गई थी और मंदिर को बुरी तरह से जलाया तथा क्षतिग्रस्त किया गया था. उस हमले में एक लड़के की मौत हो गई थी, जिसने रविदास मंदिर के अंदर कोई ज्वलनशील पदार्थ छिड़क कर मंदिर को जलाया था तथा मूर्ती तोड़ी थी. दम घुटने के कारण मंदिर से बाहर निकलते ही वो बेहोश हो गया था. इसके बाद हजारों की संख्या में लोगों ने दलित बस्ती पर हमला किया था. हमले में दो दर्जन के करीब दलित बुरी तरह से घायल हुए थे. कुछ महिलाओं के साथ बदसलूकी भी हुई और ज्वलनशील पदार्थ छिड़क कर घरों को जलाया गया. पालतू पशुओं को भी नुकसान पहुंचा था.

जिस समय दलित बस्ती पर हमला किया गया, उस समय पुलिस मौके पर मौजूद थी लेकिन उसने भी रोकने के बजाय हमलावरों को तांडव करने का खुला मौका दिया. जन मंच और स्वराज अभियान समिति की साझा जांच में यह बात सामने आई थी कि पुलिस ने दंगाइयों को मौका दिया था. पुलिस की भूमिका दलितों के प्रति दुर्भावनापूर्ण रवैये का सबूत है. इतना ही नहीं पुलिस ने दलितों के विरुद्ध पांच मुकदमे भी दर्ज कर दिए, जिनमें 9 दलितों को नामज़द किया गया. लेकिन दलितों की तरफ से केवल एक मुकदमा दर्ज किया गया, जिसमे 9 लोगों को नामज़द तथा काफी अन्य को आरोपी बनाया गया था. इसके बाद पुलिस के द्वारा आठ दलितों और हमलावर पक्ष के 9 लोगों को गिरफ्तार किया गया. इसके बाद एक अन्य दलित को भी गिरफ्तार किया गया परन्तु दूसरे पक्ष से किसी अन्य की गिरफ्तारी नहीं की गई. जबकि तत्कालीन पुलिस अधीक्षक ने जांच टीम को बताया था कि उन्होंने लगभग 40 हमलावरों को चिन्हित कर लिया है और उनकी गिरफ्तारी जल्द ही की जाएगी. लेकिन उसके बाद आज तक कोई भी गिरफ्तारी नहीं हुई. इसके लगभग तीन हफ्ते बाद जब मायावती शब्बीरपुर गईं, तो उस दिन जिला प्रशासन की लापरवाही के कारण शब्बीरपुर से लौट रहे एक दलित लड़के की हत्या कर दी गई. इस मामले में केवल दो लड़कों की गिरफ्तारी हुई.

पुलिस के पक्षपाती रवैये का इससे बड़ा क्या सुबूत हो सकता है कि पुलिस ने पिटने वाले दलित और पीटने वाले सामंती दबंगों के साथ एक जैसा बर्ताव किया. बराबर की गिरफ्तारियां की गईं. दो दलितों तथा दो हमलावरों पर एनएसए लगा दिया गया. सभी जेल में हैं. परिस्थितियों से पूरी तरह स्पष्ट है कि दलितों ने अपने बचाव में जो भी पथराव किया, वह आत्मरक्षा में किया था. परन्तु दलितों द्वारा आत्मरक्षा में की गई कार्रवाई को भी हमले के ही रूप में लिया गया और उनकी गिरफ्तारियां की गईं, जबकि आईपीसी की धारा 100 में प्रत्येक नागरिक को आत्मरक्षा में कार्रवाई करने का अधिकार है. इस प्रकार एक तो दलितों पर अत्याचार किया गया और दूसरे पुलिस ने उन्हें आत्मरक्षा के अधिकार का लाभ न देकर गिरफ्तार किया. इस प्रकार दलित दोहरे अत्याचार का शिकार हुए हैं.

औरतों ने यह भी बताया था कि हमलावरों के पास गुब्बारे थे, जिसे फेंक कर आग लगाई गई थी. इससे स्पष्ट है कि दलितों पर हमला पूर्व नियोजित था. जांच समिति ने इसका उल्लेख जांच रिपोर्ट में भी किया, परन्तु पुलिस ने इस तथ्य को पूरी तरह से नज़रअंदाज़ कर दिया. प्रशासन द्वारा दलितों के घरों तथा सामान के नुकसान का आकलन कराया गया था, लेकिन अब तक जो मुआवजा दिया गया है, वह ऊंट के मुंह में जीरे के समान ही है. जो दलित नामज़द हैं और जेल में हैं उन्हें न तो सरकार की तरफ से नुकसान की भरपाई हेतु कोई मुआवजा मिला और न ही एससीएसटी एक्ट के अंतर्गत मिलने वाली अनुग्रह-राशि ही मिली. इसके इलावा गिरफ्तार हुए दलितों को निजी वकील रखने पर भी खर्च करना पड़ रहा है.

यह भी उल्लेखनीय है कि दलितों पर हुए हमले की घटना से एक दिन पहले ही आभास हो गया था कि महाराणा प्रताप जयंती पर दलितों पर हमला हो सकता है. ग्राम प्रधान ने इसकी सूचना पुलिस अधिकारियों तथा एसडीएम को दे दी थी, परन्तु दलितों की सुरक्षा के लिए पुलिस का कोई उचित प्रबंध नहीं किया गया. इसके साथ ही जब 9 मई को भीम आर्मी ने प्रशासन द्वारा शब्बीरपुर में हुए हमले के सम्बन्ध में वांछित कार्रवाई न करने पर विरोध जताने की कोशिश की, तो पुलिस द्वारा बलप्रयोग किया गया. इस पर भीम आर्मी के सदस्यों तथा पुलिस के बीच मुठभेड़ होने पर भीम आर्मी के संयोजक चन्द्रशेखर तथा उसके साथियों के विरुद्ध 21 मुक़दमे दर्ज कर लिए गए. इसके बाद चन्द्रशेखर सहित 40 लोगों को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया. जिनमें से 2 लोग अभी तक जेल में हैं. चन्द्रशेखर और वालिया को छोड़ कर भीम आर्मी के अन्य गिरफ्तार सदस्यों की जमानत हो चुकी है. इन दोनों की जमानत जिला स्तर से रद्द हो चुकी है और अब यह इलाहाबाद हाईकोर्ट में लंबित है. जेल में चन्द्रशेखर की सेहत बराबर गिर रही है और 28 अक्टूबर को उसे जिला अस्पताल के आईसीयू में भर्ती करवाना पड़ा था.

भीम आर्मी के दमन का ताज़ा उदहारण यह है कि कुछ दिन पहले जब भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर को इलाहाबाद हाईकोर्ट से जमानत मिली, तो उसके जेल से छूटने के पहले ही उस पर रासुका लगा दिया गया. दरअसल योगी सरकार नहीं चाहती कि चंद्रशेखर किसी भी हालत में जेल से बाहर आए, क्योंकि उसके बाहर आने पर दलितों के लामबंद होने का खतरा है. सरकार की यह कार्रवाई रासुका जैसे काले कानून का खुला दुरुपयोग है. इस कानून के अंतर्गत आरोपी को बिना किसी कारण के एक साल तक जेल में रखा जा सकता है. यह नागरिकों के लोकतांत्रिक अधिकारों का खुला उल्लंघन है.

साफ है कि सहारनपुर में शब्बीरपुर के दलित आत्मरक्षा में कार्रवाई करने पर भी गिरफ्तार किए गए और उनकी गिरफ्तारियां हमला करने वाले लोगों के समतुल्य ही की गईं. रासुका के मामले में भी उन्हें हमलावरों के समतुल्य रखा गया है. पीड़ित दलितों को बहुत कम मुआवजा दिया गया और जो दलित मुकदमों में नामज़द हैं, उन्हें कोई भी मुआवजा नहीं मिला. इस प्रकार शब्बीरपुर के दलित एक तरफ सामंतों के हमले का शिकार हुए हैं तो दूसरी ओर वे प्रशासन के पक्षपाती रवैये का भी शिकार हो रहे हैं. इसके अलावा भीम आर्मी के दो सदस्य अभी भी जेल में हैं और तीन दर्जन से अधिक नवयुवक पुलिस से भिड़ंत के मुकदमे झेल रहे हैं. पुलिस ने भीम आर्मी के एक पदाधिकारी की गिरफ्तारी के लिए 12000 का इनाम घोषित कर रखा है. सरकार द्वारा हमलावरों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई न करने के कारण उनके हौसले बुलंद हैं और वे अभी भी दलितों को धमका रहे हैं.

-लेखक जन मंच के संयोजक और स्वराज अभियान समिति के सदस्य हैं. चौथी दुनिया से साभार

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.