
23 मई की बंगलुरू की तस्वीरें अब भी कई लोगों के जहन से नहीं उतर रही होगी. एक कतार में खड़े देश के दिग्गज नेताओं की तस्वीरें जाहिर है मोदी और अमित शाह की जोड़ी के माथे पर शिकन ले आई होगी. हालांकि यह भाजपा के साथ पीएम मोदी और अमित शाह की जोड़ी की जीत है, लेकिन इन दोनों ने ये नहीं सोचा होगा कि उनके खिलाफ इतनी जल्दी विपक्षी दलों का इतना बड़ा जमावड़ा लग जाएगा. इस कतार में राहुल और सोनिया गांधी से लेकर मायावती तक, ममता बनर्जी से लेकर चंद्रबाबू नायडू तक, अखिलेश यादव से लेकर तेजस्वी यादव और हेमंत सोरेन तक, शरद पवार से लेकर अजीत सिंह तक और केजरीवाल से लेकर लेफ्ट के सीताराम येचुरी तक एक-दूसरे का हाथ थामे दिखें.
विपक्ष के इस गठबंधन से भाजपा डरी हुई है. वह इसलिए ज्यादा डरी है क्योंकि पिछले दो मौके पर विपक्ष जब भी एकजुट हुआ है भाजपा को मुंह की खानी पड़ी है और मोदी और शाह की सारी रणनीति धरी की धरी रह गई है. अगर मोदी और शाह कर सकते तो वह हर हाल में गोरखपुर और फूलपुर का चुनाव जीतना चाहते, अगर ये दोनों कर सकते तो हर हाल में कर्नाटक में भाजपा की सरकार बनाकर विपक्षी दलों की एकजुटता को हताश करने की कोशिश करते. लेकिन भाजपा की ये करिश्माई जोड़ी ऐसा नहीं कर सकी.
23 मई की शपथ ग्रहण की दर्जनों तस्वीरों में जो तस्वीर सबसे खास रही और अखबारों और चैनलों में छाई रही वो मायावती और सोनिया गांधी की हाथ थामें तस्वीर रही. तो मायावती और अखिलेश यादव की बातचीत की तस्वीर भी चर्चा के केंद्र में है. यह तस्वीर कर्नाटक में सरकार के गठन में मायावती की महत्वपूर्ण भूमिका की ओर साफ इशारा कर रहा है. क्योंकि कर्नाटक चुनाव में बसपा से गठबंधन का फायदा कुमारस्वामी की पार्टी जेडीएस को मिला.
इसे संभवतः बसपा का साथ ही कहा जाएगा कि भाजपा के अच्छे प्रदर्शन के बावजूद जद (एस) ने अपना पिछला प्रदर्शन बरकरार रखा. तो बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती की राजनीतिक दूरदर्शिता ने कर्नाटक में कांग्रेस को हार के बाद भी बचाए रखा. अगर मायावती ने सोनिया गांधी और फिर देवगौड़ा को फोन नहीं किया होता तो भाजपा आराम से कर्नाटक में अपनी सरकार बना चुकी होती. लेकिन मायावती के एक फोन ने भाजपा के लिए मुश्किल खड़ी कर दी. इसने जहां कांग्रेस-जेडीएस की सरकार बना दी तो वहीं विपक्षी एकता की नींव भी रख दी है.
तो क्या यह समझा जाए कि तीसरा मोर्चा बनने की स्थिति में मायावती में उसका नेतृत्व करने की संभावना है? यह सवाल इसलिए आ रहा है कि हरियाणा में बसपा से गठबंधन के बाद इनेलो नेता अभय चौटाला लगातार मायावती के नेतृत्व में तीसरे मोर्चे की घोषणा कर रहे हैं. तो दूसरी ओर ममता बनर्जी भी मायावती पर मेहरबान हैं. पिछले दिनों में ऐसा कई बार हुआ, जब ममता बनर्जी ने मायावती के बयान का समर्थन किया. अखिलेश यादव भी यूपी में बसपा के साथ खड़े हैं. बिहार से राजद भी मायावती के नाम पर लगभग राजी है.
तो क्या यह माना जाए कि तमाम दल मायावती में तीसरे मोर्चा का नेतृत्व करने की संभावना देख रहे हैं, और उन्हें लगता है कि ‘जय श्रीराम’ के नारे को ‘जय भीम’ का नारा ही चुनौती दे सकता है? जैसा कि पिछले दिनों बिहार के नेता विपक्ष तेजस्वी यादव कह चुके हैं. दलित समुदाय भले ही अलग-अलग राज्यों में तमाम अलग-अलग पार्टियों को वोट करते हों, उनकी सर्वमान्य नेता मायावती ही हैं. इस बात को इसलिए भी जोर देकर कहा जा सकता है क्योंकि मायावती के अलावा अम्बेडकरवाद का झंडाबरदार कोई दूसरा नहीं दिखता. तो 23 मई की तस्वीरों ने भी काफी कुछ कह दिया है.
ऐसे में इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि विपक्ष मायावती के नाम पर एकमत हो जाए और इसी बहाने देश भर में फैले 16 फीसदी दलित वोटों को अपने खेमें में एकजुट कर ले. यह इसलिए भी संभव है क्योंकि फिलहाल राहुल गांधी वो करिश्मा कर पाने में सफल नहीं दिख रहे हैं जिसकी कांग्रेस पार्टी को आस है. और भाजपा और कांग्रेस के बाद बसपा देश की तीसरी बड़ी और इकलौती ऐसी पार्टी भी है जिसका वोट बैंक देश भर में है.
जिस तरह सोनिया गांधी और मायावती की करीबी देखी गई, उसमें एक संभावना यह भी बनती है कि कांग्रेस पार्टी फिलहाल राहुल गांधी को आगे न करे और यूपीए के बैनर तले मायावती के नाम पर राजी होते हुए महागठबंधन तैयार करे. ऐसे में 2019 का मुकाबला दो ध्रुवों के बीच हो जाएगा, क्योंकि तब मोदी और अमित शाह सियासी अनुभव के आधार पर मायावती को नहीं घेर पाएंगे, न तो सीधे मायावती पर कठोर टिप्पणी कर पाएंगे. क्योंकि भाजपा मायावती को लेकर जितनी ज्यादा कठोर बयानी करेगी, दलित-आदिवासी समाज के 22 फीसदी मतदाताओं के मायावती के पीछे मजबूती से खड़ा होने की संभावना बढ़ती जाएगी.
लेकिन इन तमाम सवालों के बीच सबसे बड़ी चुनौती मायावती के सामने है. क्योंकि विपक्ष अगर मायावती के नाम पर भरोसा जताने को राजी होता है तो मायावती को भी विपक्ष को भरोसा दिलाना होगा कि वह तीसरे मोर्चे की नेता की जिम्मेदारी उठाने को तैयार हैं. हालांकि देश में तीसरा मोर्चा बनेगा या फिर सोनिया गांधी के नेतृत्व और मायावती के चेहरे को आगे करते हुए यूपीए फिर से मजबूती से खड़ा होगा यह इस साल के आखिर में मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के चुनाव के बाद साफ हो सकेगा.
इन तीनों राज्यों में सीधा मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच है तो बसपा भी यहां महत्वपूर्ण धुरी है. इन राज्यों में कांग्रेस और बसपा के बीच गठबंधन की खबरें भी आ रही हैं. अगर ऐसा होता है तो यहां से भाजपा की विदाई तय है. तब मायावती और मजबूत होकर उभरेंगी और जाहिर है ऐसे में गठबंधन की राजनीति में उनका कद और ज्यादा बढ़ेगा. और अगर दोनों अलग-अलग लड़ते हैं और बसपा बेहतर प्रदर्शन करती है तो उसका प्रदर्शन कांग्रेस को आईना दिखाने के लिए काफी होगा. अगर लोकसभा में एक भी सदस्य नहीं होने और यूपी में 19 सीटों पर सिमट जाने के बावजूद मायावती गठबंधन के केंद्र में दिख रही हैं तो इसकी वजह उनका वह वोटर है जो देश के हर गांव में मौजूद है.
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अशोक दास ‘दलित दस्तक’ के फाउंडर हैं। वह पिछले 15 सालों से पत्रकारिता में हैं। लोकमत, अमर उजाला, भड़ास4मीडिया और देशोन्नति (नागपुर) जैसे प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों से जुड़े रहे हैं। पांच साल (2010-2015) तक राजनीतिक संवाददाता रहने के दौरान उन्होंने विभिन्न मंत्रालयों और भारतीय संसद को कवर किया।
अशोक दास ने बहुजन बुद्धिजीवियों के सहयोग से साल 2012 में ‘दलित दस्तक’ की शुरूआत की। ‘दलित दस्तक’ मासिक पत्रिका, वेबसाइट और यु-ट्यूब चैनल है। इसके अलावा अशोक दास दास पब्लिकेशन के संस्थापक एवं प्रकाशक भी हैं। अमेरिका स्थित विश्वविख्यात हार्वर्ड युनिवर्सिटी में आयोजित हार्वर्ड इंडिया कांफ्रेंस में Caste and Media (15 फरवरी, 2020) विषय पर वक्ता के रूप में शामिल हो चुके हैं। भारत की प्रतिष्ठित आउटलुक मैगजीन ने अशोक दास को अंबेडकर जयंती पर प्रकाशित 50 Dalit, Remaking India की सूची में शामिल किया था। अशोक दास 50 बहुजन नायक, करिश्माई कांशीराम, बहुजन कैलेंडर पुस्तकों के लेखक हैं।
देश के सर्वोच्च मीडिया संस्थान ‘भारतीय जनसंचार संस्थान,, (IIMC) जेएनयू कैंपस दिल्ली’ से पत्रकारिता (2005-06 सत्र) में डिप्लोमा। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में एम.ए हैं।
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Ashok Das is the founder of ‘Dalit Dastak’. He is in journalism for last 15 years. He has been associated with reputed media organizations like Lokmat, Amar Ujala, Bhadas4media and Deshonnati As a political correspondent for five years (2010-2015). He covered various ministries and the Indian Parliament.
Ashok Das started ‘Dalit Dastak’ with a group of bahujan intellectual in the year 2012. ‘Dalit Dastak’ is a monthly magazine, website and YouTube channel. Apart from this, Ashok Das is also the founder and publisher of ‘Das Publication’. He has attended the Harvard India Conference held at the world-renowned Harvard University in America as a speaker on the topic of ‘Caste and Media’ (February 15, 2020). India’s prestigious Outlook magazine included Ashok Das in the list of ‘50 Dalit, Remaking India’ published on Ambedkar Jayanti. Ashok Das is the author of 50 Bahujan Nayak, Karishmai Kanshi Ram, Ek mulakat diggajon ke sath and Bahujan Calendar Books.
