टूंडला उपचुनाव में बसपा का चेहरा बनेंगे सुनील चित्‍तौड़

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आगरा। टूंडला से विधायक रहे प्रोफेसर एसपी सिंह बघेल के आगरा से सांसद चुने जाने के बाद खाली हुई सीट पर बसपा पूर्व एमएलसी सुनील चित्तौड़ को चुनाव लड़ाएगी. शनिवार को बसपा प्रमुख ने सुनील को तैयार करने का आदेश दिया.

बीते लोकसभा चुनाव में आगरा और अलीगढ़ मंडल का सुनील चित्तौड़ को जोन कोऑर्डिनेटर बनाया गया था. हालांकि इन सीटों पर बसपा को जीत नहीं मिल सकी. संगठनात्मक फेरबदल में सुनील चित्तौड़ को आगरा-अलीगढ़ के बजाए फैजाबाद, बस्ती और देवीपाटन मंडल का कोऑर्डिनेटर बना दिया था. शनिवार को सुनील चित्तौड़ को टूंडला आरक्षित सीट से बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ने का आदेश दिया. खबर फैलते ही सुनील चित्तौड़ के मधुनगर स्थित आवास पर बधाई देने के लिए पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं की भीड़ लग गई. सुनील चित्तौड़ ने बताया कि बसपा प्रमुख ने आज चुनाव लड़ने का आदेश दिया है. मैंने तैयारियां शुरू कर दी हैं. जल्द ही कार्यकर्ताओं के बीच इसका विधिवत ऐलान किया जाएगा. बता दें कि प्रोफेसर एसपी सिंह बघेल टूंडला से विधायक रहे और फिर वह प्रदेश सरकार में मंत्री भी बने. बाद में आगरा से भाजपा की टिकट पर सांसद बनने के बाद उन्होंने टूंडला सीट से इस्तीफा दे दिया था. इस सीट पर अब उपचुनाव होना है.

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मायावती की मांग, आरक्षण कोटे के खाली पद जल्द भरे जाएं

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बसपा सुप्रीमो मायावती ने कहा है कि एससी-एसटी, पिछड़ों के साथ आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग के लोगों की स्थिति काफी खराब होती जा रही है. इसलिए सरकार को आरक्षित कोटे के पदों को भरने के लिए अभियान चलाना चाहिए.

मायावती ने रविवार को ट्विट कर कहा है कि एससी-एसटी, पिछड़ों के साथ सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए योजनाएं बनानी चाहिए. इस संबंध में केंद्र व राज्य सरकारों से मांग है कि वे इन पीड़ित व उपेक्षित वर्गों पर विशेष ध्यान दें और गरीबी उन्मूलन आदि योजनाओं का सही लाभ उन्हें उपलब्ध कराया जाए.

उन्होंने कहा है कि इसके अलावा केंद्र और सभी राज्य सरकारों से भी यह मांग है कि इन वर्गों के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण कोटे के रिक्त पड़े लाखों पदों को विशेष अभियान चलाकर भरा जाए. इससे इनकी आर्थिक स्थिति में थोड़ा सुधार आएगा. देशहित में भी ऐसे कदम उठाने बहुत जरूरी हैं.

Article 370 हटाए जाने के बाद J&K के 5 जिलों में 2G इंटरनेट सेवा शुरू, व 50 हजार लैंडलाइन कनेक्शन भी शुरू किए गए

जम्मू-कश्मीर में लगाए गए प्रतिबंध को चरणबद्ध तरीके से हटाना शुरू कर दिया है. शनिवार से कई इलाकों में 2जी इंटरनेट सेवा शुरू कर दी गई है. वहीं एक अधिकारी ने बताया कि कश्मीर घाटी के 17 एक्सचेंज में लैंडलाइन सेवाएं बहाल कर दी गई हैं. आपको बता दें कि केन्द्र सरकार के जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के कुछ प्रावधान हटाने के बाद पांच अगस्त से ही यहां मोबाइल फोन और लैंडलाइन सेवाओं सहित टेलीफोन सेवाएं स्थगित कर दी गई थीं

अधिकारियों ने बताया कि 100 से अधिक टेलीफोन एक्सचेंज में से 17 को बहाल कर दिया गया. ये एक्सचेंज अधिकतर सिविल लाइन्स क्षेत्र, छावनी क्षेत्र, श्रीनगर जिले के हवाई अड्डे के पास है. मध्य कश्मीर में बडगाम, सोनमर्ग और मनिगम में लैंडलाइन सेवाएं बहाल की गई हैं. उत्तर कश्मीर में गुरेज, तंगमार्ग, उरी केरन करनाह और तंगधार इलाकों में सेवाएं बहाल हुई हैं. वहीं दक्षिण कश्मीर में काजीगुंड और पहलगाम इलाकों में सेवाएं बहाल की गई हैं.

एएनआई की रिपोर्ट के अनुसार, जम्मू, रियासी जिले, सांबा, कठुआ और उधमपुर में टूजी इंटरनेट सेवा शुरू कर दी है. राज्य के मुख्य सचिव बी.वी.आर.सुब्रमण्यम ने शुक्रवार को यह घोषणा की थी कि सप्ताहांत के बाद कश्मीर घाटी के सभी स्कूलों फिर से खुलेंगे, जबकि सरकारी कायार्लयों में शुक्रवार से कामकाज हो गया. अधिकारी ने कहा था कि दूरसंचार लिंक धीरे-धीरे बहाल होंगे. उन्होंने कहा कि सीमा पार से आने वाले आक्रामक बयानों के मद्देनजर 14 व 15 अगस्त को कुछ प्रतिबंध जरूरी थे.

जम्मू-कश्मीर के मुख्य सचिव बी.वी.आर. सुब्रमण्यम ने शुक्रवार को कहा कि बीते 12 दिनों से लॉकडाउन के दौरान कश्मीर घाटी में किसी व्यक्ति की जान नहीं गई है. उन्होंने घोषणा की कि प्रतिबंध हटाए जाएंगे और अगले कुछ दिनों में हालात में सुधार होने के साथ ‘जीवन पूरी तरह से सामान्य हो जाएगा.’ विदेशी मीडिया रिपोर्ट का जवाब देते हुए सुब्रमण्यम ने कहा कि प्रतिबंधों में ढील देने के लिए धीरे-धीरे कदम उठाए जा रहे हैं, ऐसा बन रहे हालात के साथ-साथ लोगों से शांति के लिए मिल रहे सहयोग के मद्देनजर किया जा रहा है.

सुब्रमण्यम ने जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा निष्प्रभावी किए जाने के बाद घाटी में प्रदर्शनों के दौरान मौत व गंभीर रूप से घायल होने की बात का खंडन किया. पाकिस्तान कश्मीर मुद्दे पर भारत के खिलाफ अंतरार्ष्ट्रीय राय तैयार करने के लिए विदेशी मीडिया रिपोर्ट का इस्तेमाल कर रहा है. मुख्य सचिव ने कहा कि शुक्रवार की नमाज के बाद वहां अलगे कुछ दिनों में प्रतिबंधों में ढील दी जाएगी, यह क्रमबद्ध तरीके से किया जाएगा.

सुब्रमण्यम ने घोषणा की कि सोमवार से ‘क्षेत्रवार’ स्कूल खुलेंगे, जिससे बच्चों की पढ़ाई का नुकसान नहीं हो. उन्होंने कहा, “आवाजाही पर प्रतिबंंध क्षेत्र वार हटाए गए हैं, इन इलाकों में सार्वजनिक परिवहन शुरू होंगे.” उन्होंने घोषणा की कि सरकारी कायार्लय शुक्रवार से पूरी तरह से कामकाज करना शुरू कर दिया है.

मोबाइल कनेक्टिविटी बहाल करने पर उन्होंने कहा कि यह चरणबद्ध तरीके से धीरे-धीरे की जाएगी. ऐसा आतंकी संगठनों द्वारा मोबाइल कनेक्टिविटी का इस्तेमाल संगठित रूप से आतंकी कार्रवाई करने के लगातार खतरे को ध्यान में रखते हुए किया जाएगा. घाटी में मोबाइल कनेक्टिविटी 4 अगस्त से बंद है.

सुब्रमण्यम ने कहा कि 22 जिलों में से 12 में कामकाज सामान्य है. उन्होंने कहा, “ऐसे उपाय किए गए जिससे सुनिश्चित किया गया कि एक भी जान का नुकसान नहीं हो या कोई भी गंभीर रूप से घायल नहीं हो. यह इंतजाम शांति व व्यवस्था बनाए रखने के लिए किया गया. आतंकवादी संगठनों व कट्टरवादी समूहों के पुख्ता प्रयास के बावजूद हमने जनहानि को रोका. पाकिस्तान द्वारा हालात को अस्थिर करने का लगातार प्रयास किया गया.”

उन्होंने कहा कि यह जम्मू-कश्मीर के लोगों का सहयोग है, जिससे शांति व सार्वजनिक व्यवस्था को बनाए रखने में खासा मदद मिली. सुब्रमण्यम ने कहा कि प्रशासन का फोकस जल्द से जल्द सामान्य हालात बहाल करने पर है, जबकि यह भी सुनिश्चित करना है कि आतंकवादी ताकतों को कोई अवसर नहीं दिया जाए.

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पहलू खान मामले में गहलोत सरकार को मायावती ने घेरा

चर्चित पहलू खान मॉब लिंचिंग केस में निचली अदाल के फैसले के बाद राजस्थान की गहलोत सरकार ने बैठक बुलाई और गहलोत ने हाईकोर्ट में अपील के साथ जांच का आदेश दिया. वहीं, गहलोत के आदेश के बाद इस बात की जांच की जाएगी कि कहीं जानबूझकर जांच को प्रभावित तो नहीं किया गया.

उधर, राजस्थान में हुए पहलू खान हत्याकांड मामले में आरोपियों को बरी किए जाने पर बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती ने प्रदेश की कांग्रेस सरकार को घेरते हुये इसे घोर लापरवाही बताया है .

मायावती ने शुक्रवार को किये गये ट्वीट में कहा ”राजस्थान की कांग्रेस सरकार की घोर लापरवाही और निष्क्रियता के कारण बहुचर्चित पहलू खान हत्याकांड मामले में सभी छह आरोपी वहां की निचली अदालत की तरफ से बरी कर दिए गए. यह अति-दुर्भाग्यपूर्ण है. पीड़ित परिवार को न्याय दिलाने के लिए वहां की सरकार अगर सतर्क रहती तो क्या यह संभव था ? शायद कभी नहीं .”

उधर, पहलू खान मामले में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने ट्वीट करते हुए प्रतिक्रिया जाहिर की है और कहा कि इस केस में राजस्थान सरकार की तरफ से अच्छा उदाहरण पेश किया जाएगा.

प्रियंका ने ट्वीट करते हुए लिखा- ”राजस्थान सरकार द्वारा भीड़ द्वारा हत्या के खिलाफ कानून बनाने की पहल सराहनीय है. आशा है कि पहलू खान मामले में न्याय दिलाकर इसका अच्छा उदाहरण पेश किया जाएगा.”

उन्होंने एक अन्य ट्वीट में लिखा- “पहलू खान मामले में लोअर कोर्ट का फैसला चौंका देने वाला है. हमारे देश में अमानवीयता की कोई जगह नहीं होनी चाहिए और भीड़ द्वारा हत्या एक जघन्य अपराध है.”

गौरतलब है कि पहलू खान हत्याकांड मामले में अलवर की जिला अदालत ने बुधवार को फैसला सुनाते हुए सभी छह आरोपियों को बरी कर दिया. राजस्थान के अलवर में अप्रैल 2017 में भीड़ ने गो तस्करी के शक में पहलू खान की पिटाई की और इसके दो दिनों बाद उसकी मौत हो गई थी.

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बाटला हाउस ने पहले दिन की कमाई से ही निकाल ली लागत, और जानिये मिशन मंगल के बारे में

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स्वतंत्रता दिवस पर इस साल रिलीज हुई दोनों फिल्मों को पहले दिन दर्शकों का अच्छा रेस्पॉन्स मिला है. फिल्म मिशन मंगल जहां अक्षय कुमार के करियर की बेस्ट ओपनिंग लेने वाली फिल्म बन गई है. वहीं जॉन अब्राहम की फिल्म बाटला हाउस ने अपने निर्माण की लागत पहले दिन ही वसूल कर ली. फिल्म बाटला हाउस ने रिलीज के पहले दिन 15 करोड़ 55 लाख रुपये की कमाई की. फिल्म की मेकिंग का बजट 14 करोड़ रुपये है.

बॉक्स ऑफिस पर पहले दिन की कमाई के आंकड़ों के लिहाज से भले जॉन अब्राहम की फिल्म बाटला हाउस अक्षय कुमार की फिल्म मिशन मंगल से पीछे रह गई हो लेकिन कारोबारी लिहाज से ये फिल्म मिशन मंगल से आगे दिख रही है. अक्षय कुमार की फिल्म की पहले दिन की 29 करोड़ रुपये की कमाई में फिल्म रिलीज करने वाले तीन हजार थिएटर्स का खर्चा भी बंटने वाला है. वहीं बाटला हाउस ने उससे कहीं कम थिएटर्स में जगह मिलने के बावजूद करीब 15 करोड़ रुपये कमा लिए.

फिल्म मिशन मंगल का मेकिंग बजट करीब 32 करोड़ और प्रिंट व एडवर्टाइजिंग (पी एंड ए) का खर्च करीब 10 करोड़ रुपये बताया जा रहा है. वहीं बाटला हाउस का मेकिंग बजट 14 करोड़ रुपये और पी एंड ए खर्चर 5 करोड़ रुपये है. अक्षय कुमार और जॉन अब्राहम के बीच पिछले साल भी 15 अगस्त पर सीधा मुकाबला हुआ था. तब अक्षय कुमार की फिल्म गोल्ड ने बॉक्स ऑफिस पर पहले दिन 25 करोड़ 25 लाख रुपये और जॉन अब्राहम की फिल्म सत्यमेव जयते ने 20 करोड़ 52 लाख रुपये की कमाई की थी.

बाटला हाउस के स्क्रीन्स शुक्रवार से और बढ़ने की उम्मीद है क्योंकि रिलीज से ठीक पहले अदालत में चली लंबी सुनवाई के चलते तमाम फिल्म प्रदर्शकों ने फिल्म को अपने सिनेमाघरों से हटा लिया था. फिल्म को रिलीज के लिए ग्रीन सिगनल रिलीज से एक दिन पहले ही मिल सका.

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कवि मलखान सिंह दलित साहित्य के शेखस्पियर थे

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11 अगस्त 2019 जनमोर्चा सभागार, फैज़ाबाद, अयोध्या. प्रलेस, अयोध्या ने वरिष्ठ दलित कवि दिवंगत मलखान सिंह पर एक श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया. सभा की अध्यक्षता शहर के वरिष्ठ कवि व गीतकार प्रलेस के अध्यक्ष श्री दयानंद सिंह मृदुल ने किया तथा संचालन प्रलेस के अध्यक्ष मंडल के वरिष्ठतम साथी श्री अयोध्या प्रसाद तिवारी ने किया.

सर्वप्रथम, प्रलेष के जिला सचिव कॉ. आर डी आनन्द ने दलित कवि मलखान सिंह के बारे में विस्तार से बताया कि श्री मलखान सिंह दलित साहित्य के आधुनिक शेखस्पियर थे. क्रांतिकारी और विद्रोही दलित कवि मलखान सिंह का जन्म 30 सितम्बर 1948 को पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गाँव वसई काजी, जिला- हाथरस (अब अलीगढ़) के दलित परिवार में हुआ था. मलखान सिंह ने उच्च शिक्षा अलीगढ़ और आगरा से प्राप्त किया. मलखान सिंह के पिता का नाम श्री भोजराज सिंह और माता का नाम श्रीमती कलावती था. जब वे आठवीं के छात्र थे तभी उनकी मां का देहांत हो गया था. उनकी पत्नी श्रीमती चंद्रावती सिंह का देहांत 19 मार्चब2003 को हो गया था. है. इनके भाइयों में श्री पृथ्वी सिंह, श्री कुमर सिंह, श्री शेर सिंह,श्री नाहर सिंह, श्री अशोक सिंह, श्री विजय सिंह हैं. पुत्र श्री मानवेन्द्र सिंह और पुत्रबधू श्रीमती लता सिंह हैं. पुत्रियों और दामादों में श्रीमती प्रतिभा सिंह पत्नी डॉ. रामेश्वर दयाल, श्रीमती मीता सिंह पत्नी श्री विमल वर्मा, श्रीमती कृष्णा सिंह पत्नी श्री संदीप वर्मा और श्वेता सिंह हैं. पौत्र तपेन्द्र और पौत्री कृति हैं. इनका वर्तमान पता-कालिंदी विहार आगरा, निकट बुद्धा पार्क, सौ फुटा रोड, आगरा है. पहले ये ताजगंज, ताजमहल के निकट ही रहते थे. वह भी इनका निजी आवास था. बाद में उसको बेंचकर वे सौ फुटा रोड पर कालिंदी विहार में आवास निर्माण करवा लिया था. मलखान सिंह को मजदूर आंदोलनों में सक्रीय भागीदारी की वजह से दो बार तिहाड़ जेल जाना पड़ा था. वे 1979 से 2008 के मध्यावधि में आगरा के पूर्व बेसिक शिक्षा अधिकारी तथा एटा के पूर्व जिला विद्यालय निरीक्षक रहे. सन 2012 के साहित्य सर्वेक्षण में ”आउटलुक” ने उन्हें सबसे अधिक लोकप्रिय दलित कवि करार दिया था. मलखान सिंह अपने पहले कविता संग्रह “सुनो ब्राह्मण” के साथ 1996 में चर्चा में आए और साहित्य जगत में सूर्य की तरह स्थापित हो गए. देहरादून में जिस मंच पर ओमप्रकाश वाल्मीकि जी को परिवेश (1996) सम्मान दिया गया था, उसी मंच पर डी. प्रेमपति ने मलखान सिंह के कविता-संग्रह “सुनो ब्राह्मण’’ का विमोचन भी किया था. लोकार्पण कार्यक्रम में काशीनाथ सिंह, अनिल चमड़िया और डॉ. रघुवंशमणि त्रिपाठी भी मौजूद थे. ओमप्रकाश वाल्मीकि ने मलखान सिंह की कविताओं को जनवादी कविताएँ कहकर दलित कविताओं की पंगत से खारिज कर दिया था. ऐसा माना जाता है कि दलित कविता में जनवादी चेतना की बहस वहीं से प्रारम्भ हुई. कँवल भारती और बजरंग बिहारी तिवारी ने मलखान सिंह की कविता में ब्राह्मण और सामंतवाद के गठजोड़ की सार्थक अभिव्यक्ति को सर्वप्रथम स्थापित करने का काम किया था. बजरंग तिवारी ने कथादेश में मलखान सिंह पर विशेष सामग्री छापी थी.

तदन्तर, अपनी बात को जारी रखते हुए कॉ. आर डी आनंद ने बताया, मलखान सिंह दलित साहित्य के एक सशक्त हस्ताक्षर हैं. “सुनो ब्राह्मण” इनका बहुचर्चित दलित कविता संग्रह है. सर्वप्रथम यह 1996 में ‘परिवेश’ पत्रिका के संपादक मूलचंद गौतम द्वारा चंदौसी, मुरादाबाद से प्रकाशित किया गया. दूसरा संस्करण 1997 में मलखान सिंह ने स्वयं प्रकाशित किया. वर्तमान संस्करण 2018 में ‘रश्मि प्रकाशन’ लखनऊ से हरे प्रकाश उपाध्याय जी द्वारा प्रकाशित किया गया है. शुरू में इस संग्रह में 16 कविताएँ थीं और बहुत रद्दी पेपर पर प्रकाशित हुआ था. उस संग्रह को सुरक्षित रखना बहुत कठिन था, हलाकि, वह प्रथम संस्करण आज भी मेरे पास सुरक्षित है. दूसरे संस्करण में भी वही चित्र और वही 16 कविताएँ थीं. इस वर्तमान संग्रह में भी वही 16 कविताएँ हैं. इस संग्रह की एक नई विशेषता यह है कि इसमें मलखान सिंह की लेखकीय टिप्पणी के साथ ओम प्रकाश वाल्मीकि की “मलखान सिंह की कविताएँ”, कमला प्रसाद की “अधिकार संघर्ष की कविता”, कँवल भारती का “मलखान सिंह का कविता-संघर्ष”, अजय तिवारी की “अच्छी कविता की जमीन”, सूरज बडात्या का “महास्वप्न की महाभिव्यक्ति”, बजरंग बिहारी तिवारी की “दलित संवेदना और मलखान सिंह की कविताएँ”, और नमस्या का “फटी बंडी का बोध: जातिबोध का महाख्यान” जैसी सात समीक्षाएं, मूल्याङ्कन और अध्ययन सामिल किया गया है. इनका दूसरा काव्य-संकलन “ज्वालामुखी के मुहाने” को रश्मि प्रकाशन, लखनऊ ने 2019 में प्रकाशित किया, जिसे भी पाठकों ने खूब सराहा. मैंने भी उनकी कविताओं की समीक्षा में तकरीबन 75 पेज लिखा है जो मलखान सिंह को बहुत अच्छा लगा. उन्होंने लेख की बहुत सराहना की है.

भारतीय जीवन बीमा निगम, मंडल कार्यालय फैज़ाबाद में सहायक प्रशासनिक अधिकारी के पद पर कार्य करने वाले राम सुरेश शास्त्री ने बताया कि महान कवि मलखान सिंह हमारे बीच नहीं रहे. यह बहुत दुखद है. 2006 में जब मैं ZTC आगरा में ट्रेनिंग हेतु गया था तो मेरे परम मित्र आर डी आनन्द जी के कहने पर डॉ राजाराम और मलखान सिंह जी के घर गया था. उस समय मलखान सिंह जी ताजगंज आगरा में अपने निजी मकान में रहते थे. लगभग 07 बजे सायं को उनके आवास पर पहुँचा और उनकी भारीभरकम शरीर और बुलंद मूँछ और कड़क आवाज़ से मैं सहमते हुए अन्दर प्रवेश किया . बातचीत के दौरान उनकी सहृदयता देखकर मैं दंग रह गया था . उनके साथ साहित्यिक चर्चा तीन घण्टे हुई और डिनर करने के उपरान्त रात्रि 10 बजे मैं ट्रेनिंग सेंटर सिकंदरा के लिए प्रस्थान किया . पुनः 27 मई 2019 को जब मैं उनसे मिला तो उनकी दुबली और मूँछ रहित शरीर को देखकर हैरान हो गया . मैंने पूँछा सर आप को क्या हो गया है ? जैसा मैंने आप को देखा था उसमें बदलाव है. उनके साथ बिताए गये एक एक पल मुझे उम्र भर प्रेरणा देते रहेंगे. मलखान सिंह साहब अपने व्यक्तित्व और अपनी कृति सुनो ब्राह्मण के कारण हमेशा याद किये जाएंगे . मेरी तरफ से उनको विनम्र अश्रुपूरित श्रद्धान्जलि .

वरिष्ठ दलित कवि श्री आशाराम जागरथ जी ने बताया कि वे एक महान दलित कवि थे. मुझे दुख हो रहा है कि मैं इतने बड़े कवि से नहीं मिल पाया. उन्होंने अपनी एक कविता “सुन बभना” पढ़कर श्रद्धांजलि अर्पित किया.

प्रलेस के संरक्षक व वरिष्ठ कवि स्वप्निल श्रीवास्तव ने बताया कि मलखान सिंह से मेरा परिचय बहुत पुराना था. उन्होंने कहा, मुरादाबाद चंदौसी में हमारे एक साथी आलोचक हैं मूलचन्द गौतम, उन्होंने परिवेश पत्रिका निकालना शुरू किया. उस प्लेटफार्म से उन्होंने मलखान सिंह का कविता संग्रह “सुनो ब्राह्मण” प्रकाशित किया था, उसमें कुछ सोलह कविताएँ थीं. पुस्तक का पेपर बहुत ही साधारण था लेकिन पुस्तक असाधारण हो गई. उनकी लिखी कविताएँ जन-सामान्य कविताओं से भिन्न हैं. दरअसल, वह समय दलित अस्मिताओं का समय था, दलित साहित्य के उभार का समय था तथा उनके समकालीन कई दलित कवि विभिन्न स्तर की कविताएँ लिख रहे थे लेकिन मलखान सिंह को कविताओं का वह तेवर व शिल्प पसंद नहीं था, इसलिए उन्होंने कुछ नए तेवर व शिल्प की कविताएं लिखीं जो कालांतर में लोकप्रिय हुईं और आज जेएनयू और लखनऊ जैसे विश्विद्यालय में उनकी कविताएँ पढ़ाई जा रही हैं. यह एक बड़ी उपलब्धि है. इससे उनके महत्व का पता चलता है.

श्रद्धेय मलखान सिंह को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए वरिष्ठ आलोचक डॉ. रघुवंशमणि त्रिपाठी ने बताया कि उनकी कविताएँ परंपरावाद को नकारती हैं और स्थापित दर्शन से प्रश्न करती हैं. उनकी कविता में लालित्य की जादूगरी नहीं है बल्कि समाज का यथार्थ उभरता है. मलखान सिंह मजदूर आंदोलनों में भाग लेने के कारण दो बार जेल भी गए हैं. प्रारंभिक दौर में वे मार्क्सवादी थे. ओमप्रकाश वाल्मीकि ने उन्हें दलित कवि नहीं जनवादी कहा था और कविताओं को जनवादी कविताएँ कहकर दलित खेमे से हटा दिया था किंतु वरिष्ठ आलोचक और चिंतक कँवल भारती ने मलखान सिंह को दलित कवि और उनकी कविताओं को दलित कविताओं के रूप में स्थापित करने की कोशिश की. उन्होंने बताया कि देहरादून की सभा में मैं भी था. वहाँ दलित साहित्य के मूल सवालों पर जोरदार बहस हुआ कि दलित साहित्य क्या है? क्या इसका कोई भविष्य है? इसका सौंदर्यबोध क्या होगा? इत्यादि. सभा के दौरान काशीनाथ सिंह को अपनी एक टिप्पणी पर श्योराज सिंफह बेचैन से माँफी मांगनी पड़ी. सौंदर्य का कोई एक पैमाना नहीं है. उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया, किसी स्त्री के सौंदर्य के बारे में भी कोई एक पैमाना नहीं है. अफ्रीकियों को अपनी स्त्रियों के मोटे होंठ अच्छे लगते हैं तो भारतीयों को अपनी स्त्रियों के पतले होंठ अच्छे लगते हैं. इसी तरह दलित साहित्यकारों ने अपने सत्य की अभिव्यक्ति के लिए अलग मापदंड तैयार किए. “सुनो ब्राह्मण” जातीय अस्मिता की अभिव्यक्ति है. मलखान सिंह के कविता संग्रह ने लोगों के ध्यान को आकृष्ट किया. उनकी कविताएँ मनुष्य को छूती हैं. उनकी कविताएँ जमीनी हक़ीक़त की समकालीन कविताएँ हैं.

डॉ. विशाल श्रीवास्तव जी ने बताया कि मलखान सिंह परंपरागत दायरे से बाहर थे. सौंदर्यबोध स्थिर चीज नहीं है, वह निरन्तर बदलता है. मलखान सिंह समकालीन सौंदर्यबोध के दायरे में रचते हैं. दलित जीवन मे परिवर्तन नहीं दिखता है. अँधेरा बहुत गहरा है. अपना हाथ अपने ही हाथ को खोजने में गच्चा खा जाता है. उनकी कविताएं आत्मकथात्मक कविताएँ है. वे नए प्रतीक और नए बिम्ब गढ़ते हैं.

अनीश चौधरी ने उनकी कविताओं को पढ़कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित किया.

अंत में, अध्यक्ष श्री दयानंद सिंह मृदुल ने कहा कि मलखान सिंह की कविताएं प्रगतिशील दलित कविताएँ हैं और दलित परिवेश की कविताएँ हैं. मलखान सिंह की कविता का मजदूर दलित है और दलित होने के नाते वह सर्वहारा भी है. मलखान सिंह का श्रमिक आम्बेडकर का श्रमिक है, वह मार्क्स का मजदूर नहीं है और न खाली-पीली सर्वहारा ही है. मलखान सिंह ने जनवादी दृष्टिकोण से सताए हुए मनुष्य का पड़ताल नहीं किया है बल्कि दलित जीवन के भोगे यथार्थ को चित्रित किया है. स्वानुभूति को चित्रित किया है परानुभूति को नहीं. मलखान सिंह ने मुहाबरों, छंदों, अलंकारों, रूपकों, बिम्बों, प्रतीकों का समुचित प्रयोग किया है. दलित साहित्य में दलित साहित्य का सौंदर्य दलित जीवन का सच है. मलखान सिंह ने अपनी कविताओं में दलित जीवन के यथार्थ को पाठकों के मानस पटल पर अंकित कर दिया है. उनकी भाषा सरल किन्तु मारक है. कविताओं के भाव इतिहास के मंजर उपस्थिति करने में समर्थ हैं. मलखान सिंह की कविता “मैं आदमी नहीं हूँ” दलित जीवन का दस्तावेज है. इस कविता में वह दलितों के शारीरिक दशा, संसाधन, रोटी, कपड़ा, मकान, जल, विस्तर, भय, परतन्त्रता को अणुओं के रूप में बम में संलयित करते हैं. मैं उनकी अमानिवियता के विरुद्ध समता और बन्दुत्व के लिए आवाज उठाने वाली कविताओं को याद करते हुए भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ.

सभा में सर्वश्री दयानंद सिंह मृदुल, कॉ. अयोध्या प्रसाद तिवारी, श्री स्वप्निल श्रीवास्तव, कॉ. राम तीर्थ पाथक, डॉ. रघुवंशमणि, आर डी आनंद, संदीपा दीक्षित, सूर्यकांत पांडेय, रामानंद सागर, विशाल श्रीवास्तव, आशाराम जागरथ, सत्यभान सिंह जनवादी, धीरज द्विवेदी, राम सुरेश शास्त्री, शशिकांत पांडेय, खलीक अहमद खान, अनीश चौधरी, अतीक अहमद, आशीष अंशुमाली, निरंकार भारती, देवेश ध्यानी, रविन्द्र कुमार कबीर आदि ने अपना वक्तव्य रखा.

तत्पश्चात, सभी साथियों ने खड़े होकर दो मिनट का मौन रखकर श्री मलखान सिंह को श्रद्धांजलि अर्पित किया और अध्यक्ष ने सभा को विसर्जित किया.

आर डी आनंद सचिव प्रलेस, अयोध्या 11.08.2019

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बात अब आगे बढ़ चुकी है! अब वे CBSE में ही पढ़ेंगे।

CBSE ने एससी एसटी छात्रों का परीक्षा शुल्क 24 गुणा बढ़ा दिया है, पहले 50 रूपये था अब 1200 कर दिया है.

मुझे आश्चर्य इस फ़ीस की बढ़ोतरी से नहीं है, बल्कि इस बात से है कि मुझे अभी पता लगा कि एससी एसटी की फ़ीस 50 रुपये थी, जबकि मेरे परिवार के जितने भी बच्चे सी.बी.एस.सी. में पढ़ते हैं, उनसे स्कूल वालों ने 2500 रुपये परीक्षा शुल्क मांगा है.

मेरी भतीजी व भतीजे की 12 वीं व 10 वीं की इस वर्ष परीक्षा है, उनसे 3000 व 2500 परीक्षा शुल्क मांगे गए हैं. हम दे भी देते, लेकिन यह अभी पता लगा कि पहले मात्र 50 रुपये था और बढ़कर भी 1200 हुआ, लेकिन स्कूल वाले लूट रहे हैं.

इसलिए सी.बी.एस.सी. को शिकायत वाला पत्र तैयार कर रहा हूँ. वैसे कितनों को यह पता था कि सी.बी.एस.ई. में एससी एसटी को परीक्षा शुल्क की छूट मिलती है?

बहन Vidya Gautam जी ने एक बार ऐसी ऐसी कई सरकारी योजनाओं के बारे में बताया, जिन्हें सुनकर में दंग रह गया कि यह सुविधा एससी एसटी को मिलती है, लेकिन हमें पता नहीं है.

अब बात करते हैं कि सी.बी.एस.ई ने ऐसा क्यों किया.

वास्तव में;

1.पिछले कुछ वर्षो में यह देखा गया है कि शहरी एरिया में दलित परिवारों में और विशेष तौर से अम्बेडकरवादी परिवारों में यह रुझान आया है कि वो अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में पढ़ने के लिए भेज रहे हैं.

उन्हें आभास हो गया है कि सरकारी सेक्टर को प्राइवेट करने का जो कार्य कांग्रेस ने शुरू किया था, उसे पूर्ण भाजपा कर देगी. इसलिए अब अपने बच्चो को प्राइवेट के अनुसार तैयार कर रहे हैं.

2.मेरे परिवार में, खानदान में, रिश्तेदारों का एक भी बच्चा अब हिंदी मीडियम में नहीं जा रहा है, सभी इंग्लिश मीडियम में पढ़ रहे हैं!

ऐसा भी नहीं है कि मेरे परिवार, खानदान, रिश्तेदारों की फाइनेंशियल स्थिति अच्छी है. सिर्फ खर्चा चलाने लायक कमाई कर पाते हैं.

3.मेरी भांजी व भांजे ने 10 वीं परीक्षा में जिले के टॉपर में अपना नाम दर्ज करवाया, अखबारों में उनकी फोटो भी आई. जबकि मेरे जीजा फाईनेंसली इतने मजबूत नहीं हैं, खर्चा चला पाते हैं फिर भी बच्चो को सी.बी.एस.ई. में पढ़ाया और बच्चे भी अपने आप को सिद्ध कर रहे हैं.

इसलिए;

“मुख्य मुद्दा यह है कि सरकारी सेक्टर के खत्म होने का आभास होने के कारण शोषित समाज अपने बच्चो को सी बी एस सी में पढ़वा रहा है, वहाँ वो टॉपर बन रहे है, बस यह उन लोगो के लिए ज्यादा खतरनाक है जो यह सोचकर खुश हो रहे थे कि सरकारी सेक्टर की नौकरियां खत्म हो जाएँगीं और एससी-एसटी फिर से पुरानी स्थिति में आ जाएगा.

उन्हें समझ लेना चाहिए कि अम्बेडकरवादी विचारधारा स्थिति के अनुसार परिवर्तन करने की सीख देती है. इसलिए अब वे प्राइवेट के लिए तैयार हो रहे हैं. इसी से चिढ़कर ही अब;

“फीस बढ़ा दी गयी है, अब प्राइवेट सेक्टर के लिए तैयार होते हुए एससी व एसटी कैसे बर्दास्त होंगे”

लेकिन यह भूल गये कि;

“अम्बेडकरवादी विचारधारा वाला मजदूर थोड़ा और मेहनत करके मजदूरी कर लेगा लेकिन आप 24 गुणा की जगह 48 गुणा फीस बढ़ा दीजिये, फिर भी वो CBSE में ही बच्चों को पढ़ायेगा. इंग्लिश मीडियम में ही पढ़ाएगा.”

दूसरी फ़ोटो में हम सबके प्रेरणा स्रोत Abhiyan Humane सम्यक बुद्ध विहार, नालंदा, वर्धा में बच्चों को पढ़ाते हुए. वे अब नहीं रहे.

लेखक :- विकास कुमार जाटव  (Vikas Kumar Jatav)

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मुस्लिम पक्षकार राजीव धवन ने किया अयोध्या मामले का विरोध

नई दिल्ली। अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने पूरे पांच दिन सुनवाई का फैसला किया है. शुक्रवार को सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने इसका विरोध किया है. सुनवाई के दौरान धवन ने कहा कि ऐसी खबरें हैं कि कोर्ट सप्ताह के सभी पांच दिन इस केस की सुनवाई करेगा. धवन ने इसे लेकर कोर्ट में अपना विरोध दर्ज कराया.

मुस्लिम पक्ष के वकील रजीव धवन ने कहा, ‘ऐसी अफवाह हैं कि कोर्ट इस केस की सुनवाई के लिए सभी पांच दिन बैठेगी. यदि सप्ताह के पांच दिन केस की सुनवाई चलती है तो यह अमानवीय होगा और इससे कोर्ट को कोई मदद नहीं मिलेगी. मुझे केस छोड़ने पर मजबूर होना पड़ेगा.’ धवन के इस विरोध पर चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने कहा, ‘हमने आपकी चिंताओं को दर्ज कर लिया है, हम आपको जल्द जानकारी देंगे.’

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या मामले में रोजाना सुनवाई का फैसला लिया था. इसके मुताबिक हफ्ते के मंगलवार, बुधवार और गुरुवार को सुनवाई के लिए तय किया गया था. सुप्रीम कोर्ट में सोमवार और शुक्रवार को नए मामलों की सुनवाई होती है. लेकिन गुरुवार को हुई सुनवाई के दौरान कोर्ट ने तय किया कि इस केस की सुनवाई हफ्ते के पांचों दिन होगी.

ऐसा पहली बार हो रहा है, जब संवैधानिक बेंच किसी केस की सप्ताह में 5 दिन सुनवाई करेगी. परंपरा के मुताबिक संवैधानिक बेंच सप्ताह में तीन दिन मंगलवार, बुधवार एवं गुरुवार को सुनवाई करती है. हालांकि अब सुप्रीम कोर्ट ने इस केस की हर वर्किंग डे पर सुनवाई की बात कही है.

कोर्ट का मानना है कि इससे दोनों पक्षों के वकीलों को अपनी दलीलें पेश करने का वक्त मिलेगा और जल्द ही इस पर फैसला आ सकेगा. गुरुवार को केस की सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एसए बोबडे, डीवाई चंद्रचूड़, अशोक भूषण और एस. अब्दुल नजीर की बेंच ने वकीलों को हैरान कर दिया, जब उन्होंने कहा कि वे इस केस की रोजाना सुनवाई करेंगे. संवैधानिक बेंच इस मामले को प्राथमिकता में रख रही है. जजों ने फैसला लिया है कि उन्हें केस पर फोकस बनाए रखना चाहिए, जिसका रिकॉर्ड 20,000 पेजों में दर्ज है.

सुप्रीम कोर्ट के एक सूत्र ने हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया, ‘सोमवार से शुक्रवार तक संवैधानिक बेंच के जजों को अलग-अलग मामले में बिठाने से उनका फोकस नहीं रहेगा, जो अयोध्या जैसे मामले में अहम है. जजों को मामले के दस्तावेजों को पढ़ना होगा, जिसमें वक्त लगेगा. ऐसे में हर सोमवार और शुक्रवार को 60 से 70 याचिकाओं की सुनवाई करने से जजों का फोकस डाइवर्ट होगा. अयोध्या केस से जुड़े दस्तावेजों को पढ़ने और उन पर फैसले लिखने के लिए वक्त चाहिए.’

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श्रीनगर एयरपोर्ट में हिरासत में लिए गए सीताराम येचुरी

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श्रीनगर। सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी और सीपीआई महासचिव डी राजा को शुक्रवार को श्रीनगर हवाईअड्डे पर हिरासत में ले लिया गया. दोनों को शहर में प्रवेश करने की इजाजत नहीं दी गई. वाम दलों के नेता अपने पार्टी सहयोगियों से मिलने श्रीनगर गए थे. बता दें कि इससे पहले कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद को गुरुवार को हिरासत में लिया गया था और श्रीनगर एयरपोर्ट से ही दिल्ली वापस भेज दिया गया था.

येचुरी ने बताया,‘उन्होंने हमें एक कानूनी आदेश दिखाया जिसमें श्रीनगर में किसी को प्रवेश की अनुमति नहीं देने की बात कही गई थी. इसमें कहा गया था कि सुरक्षा कारणों से पुलिस संरक्षण में भी शहर में जाने की अनुमति नहीं है. हम अब भी उनसे बातचीत की कोशिश कर रहे हैं.’

येचुरी और राजा ने राज्यपाल सत्यपाल मलिक को गुरुवार को पत्र लिखकर अपनी यात्रा की सूचना दी थी और उनसे अनुरोध किया था कि उन्हें प्रवेश की अनुमति दी जाए. सीपीआई महासचिव येचुरी ने कहा, ‘हम दोनों ने जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल को पत्र लिखकर अनुरोध किया था कि हमारी यात्रा में कोई बाधा नहीं आनी चाहिए… इसके बावजूद हमें हिरासत में ले लिया गया. मैं अपने बीमार सहकर्मी और यहां मौजूद हमारे सहयोगियों से मिलना चाहता था.’

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विश्व आदिवासी दिवस 2019: मिलिए इन चेहरों से जिन्‍होंने पाया खास मुकाम !

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बुधमनी मिंज : आज विश्व आदिवासी दिवस है. इस दौरान आदिवासियों की मौजूदा हालात, समस्‍याएं और उनकी उपलब्धियों पर चर्चा हो रही है. प्रकृति के सबसे करीब रहनेवाले आदिवासी समुदाय ने कई क्षेत्रों में अग्रणी भूमिका निभाई है. संसाधनों के आभाव में भी इस समुदाय के लोगों ने अपनी एक खास पहचान बनाई है. गीत-संगीत-नृत्‍य से हमेशा ही आदिवासी समुदाय का एक गहरा लगाव होता है. उनके गीतो-नृत्‍यों में प्रकृति से लगाव का पुट दिखता है. लेकिन मौजूदा समय में आदिवासी समुदाय अपनी भाषा-संस्‍कृति से विमुख हो रही है.

अंतरराष्ट्रीय आदिवासी दिवस के मौके पर हमने आदिवासी समुदाय के कुछ युवा वर्ग से बात की, जिन्‍होंने कला के क्षेत्र में नाम कमाया है. वे अपने गीतों और फिल्‍मों के माध्‍यम से अपनी संस्‍कृति को पुरी दुनिया के सामने पेश कर रहे हैं. सोशल मीडिया पर भी इनके वीडियोज खूब पसंद किये जाते हैं.

अनिरूद्ध पूर्ति : खूंटी (चाडिद) के रहनेवाले अनिरुद्ध पूर्ति (27 वर्षीय) अपने दो छोटे भाई-बहन के साथ रांची में रहते हैं. वे सत्यभारती स्कूल ऑफ म्यूजिक आर्ट एंड ट्रेनिंग इंस्‍ट्यूट में डांस डिपार्टमेंट के एचओडी हैं. वे फिजिक्स ऑनर्स में ग्रेजुएशन करना चाहते थे, उन्‍होंने एडमिशन में भी ले लिया था लेकिन घर की आर्थिक स्थिति खराब होने की कारण वे ग्रेजुएशन पूरी नहीं कर पाये. उन्‍हें बचपन से डांस का शौक था और एनिमेशन में रूचि थी. उन्‍होंने इसी को अपना करियर चुनने का फैसला किया. शुरुआती दिनों में उन्‍हें घर से कोई सपोर्ट नहीं मिला. अनिरुद्ध बताते हैं कि रिश्‍तेदार कहते थे कि डांस में कोई स्कोप नहीं है, सरकारी जॉब की तैयारी करो. मैंने परिवारवालों से 2 साल का वक्त मांगा. वे बताते है कि, पैसे कमाने के लिए उन्‍होंने शादियो में बजने वाले डीजे में काम किया क्‍योंकि घर से पैसे लेना बंद कर दिया था. डांस की प्रैक्टिस जारी रखी. साल 2013 में डीआइडी के ऑडिशन में मेरा सेलेक्‍शन हो गया. हालांकि मुंबई में दो रांउड के बाद मैं बाहर हो गया. इसके बाद परिवारवालों का सपोर्ट मिलने लगा. अनिरुद्ध आदिवासी टच के साथ हीपहॉप डांस करते हैं. उन्होंने कई आदिवासी फैशन शो को कोरियोग्राफ किया है. उन्‍होंने एक नया ग्रुप बनाया है जिसका नाम ‘आदिवासी गैंग’ है. उन्‍होंने नागपुरी में रैप शुरू किया है. उनके कुछ वीडियोज यूटूयूब पर मौजूद है जिसे बेहद पसंद किया जा रहा है. उनका कहना है कि हमारी संस्‍कृति ही हमारी पहचान है.

अंशु शिखा लकड़ा : नामकोम की रहनेवाली अंशु शिखा लकड़ा (29 वर्षीया) पेशे से एक मॉडल और न्यूज रीडर हैं. उन्हें साल 2018 में अमृत नीर हर्बल प्रोडक्ट का ब्रांड एंबेसेडर बनाया गया है. वे एविएशन फील्‍ड को अपना करियर चुनना चाहती थीं और दमदम एयरपोर्ट (कोलकाता) पर एयर एशिया में उन्हें नौकरी भी मिल गई थी. लेकिन पढ़ाई पूरी करने के लिए उन्हें वापस लौटना पड़ा. अंशु बताती है कि छोटे भाई के इस दुनिया से चले जाने के बाद माता-पिता उन्‍हें कभी खुद से दूर भेजने के लिए राजी नहीं थे. इसलिए यहीं अपने लोगों के बीच कुछ अलग करने का निर्णय लिया. ग्रेजुएशन के दौरान उन्‍हें एक एनजीओ से जुड़ने का मौका मिला. इसके साथ मिलकर आदिवासी संस्कृति पर काम किया. अंशु बताती है कि उनकी संस्‍कृति कहीं खोती जा रही हैं और इसे बचाने के लिए हमें आगे आना होगा. इसी एनजीओं के माध्यम से दिल्ली जाने का मौका मिला. वहां ट्रेड फेयर में झारखंड को रीप्रेजेंट किया. इसके बाद दूरदर्शन में न्यूज रीडर की नौकरी मिली. खेती-किसानी से जुड़े कई विज्ञापन भी किये. अंशु बताती है उन्‍हें हमेशा से माता-पिता का सपोर्ट मिला. अंशु पेटिंग करने का भी शौक रखती हैं.

निरंजन कुजूर : लोहरदगा जिले के रहनेवाले निरंजन कुजूर (32 वर्षीय) डायरेक्टर और पटकथा लेखक हैं. अब तक कुड़ुख, हिंदी, चीनी और संताली भाषाओं में काम कर चुके है़ं. उन्हें डॉक्टर बनने का शौक था और दो साल तैयारी भी की लेकिन किस्‍मत को कुछ और ही मंजूर था. इसके बाद उन्‍होंने मास कम्युनेशन किया. इस दौरान फिल्म मेकिंग में मन रमने लगा. उस समय जानकारी नहीं थी कि हॉलीवुड (अंग्रेजी) और बॉलीवुड (हिंदी) के अलावा भी दूसरी भाषाओं में फिल्में बनती है. इसके बाद कई क्षेत्रीय भाषा की फिल्म देखी. उन्‍हें अपनी मातृभाषा कुडूख में फिल्म बनाने का ख्याल आया. उनकी कुडूख शॉर्ट फिल्म ‘एड़पा काना’ को राष्‍ट्रीय पुरस्‍कार मिल चुका है. इस फिल्म ने कई दूसरे अवार्ड भी जीते हैं. उनकी फिल्‍में ‘पहाड़ा’ और ‘मदर’ (चाइनिज) फिल्म बनाई. संथाली में म्यूजिक वीडियो बनाये हैं. ‘दिबि दुर्गा’ उनकी चौथी फिल्म है. ‘दिबि दुर्गा’ संथाली दसई गीत पर आधारित एक गीतचित्र है. निरंजन कहते हैं,’ शहरों में रहनेवाले कुडूख समुदाय ने लगभग कुडूख बोलना छोड़ दिया है. गांवो में भी अब लोग अपनी मातृभाषा को भूलने लगे है. सिनेमा के माध्यम से मैं कोशिश कर रहा हूं कि अपनी मातृभाषा को संजो कर रख सकूं और लोगों को प्रेरित कर संकू क्‍योंकि यह हमारी पहचान है.

जोया एक्का : जोया अख्तर (28 वर्षीया) अंबिकापुर (छत्तीसगढ़) की रहनेवाली हैं. वे उरांव जनजाति से हैं. बचपन से ही वे झारखंड के गायक पवन, पंकज और मोनिका मुण्डू से प्रेरित रही हैं. उन्हें अभिनेत्री बनने का शौक था और उनकी किस्मत को कुछ और ही मंजूर था. वे आज एक सफल प्रोडयूसर है. वे कर्मा, सरहुल और आदिवासी पर्व-त्योहारों से संबंधित गीतों और वीडियो एल्बमों को बढ़ावा देती है और साथ ही नये कलाकारों को मौका देती हैं. जोया बताती हैं,’ शुरूआत दिनों में काफी दिक्कतों का सामना करना पडा. यहां (अंबिकापुर) कुडूख और सादरी के सिंगर्स कम मिलते हैं. झारखंड के कलाकारों का खूब सहयोग मिला.’ वे आदिवासी समुदाय की संस्कृति को बढ़ावा देना चाहती हैं और इसके बारे में लोगों को बताना चाहती हैं. उनका यूट्यूब पर एक चैनल भी है जिसका नाम ‘जोया सीरीज’ है.

डी विपुल लोमगा : यूट्यूब (YOUTUBE) पर नागपुरी वीडियो देखनेवाले दर्शकों के लिए ‘आशिक ब्‍वॉज़’ कोई नया नाम नहीं है. 5-6 लड़कों का यह ग्रुप ओडिशा के सुंदरगढ़ जिले के राउरकेला शहर से है, जिसमें एक लड़की भी शामिल है. यह ग्रुप साल 2015 से ही नागपुरी डांस वीडियो बनाने में जुटा है. इन युवाओं की कोरियोग्राफी आज के युवाओं के लिए प्रेरणा है. ग्रुप के सभी सदस्‍य आदिवासी हैं और सभी लोअर मिडिल क्‍लास से ताल्‍लुक रखते हैं. इस ग्रुप के लीडर डी विपुल लोमगा (25 वर्षीय) बताते हैं कि हम पढ़ाई के साथ-साथ डांस वीडियोज भी बनाते हैं और इससे जितना भी हम कमा पाते हैं उसे कॉस्‍ट्यूम और वीडियो के मेकिंग में खर्च करते हैं. इनके ग्रुप में पीके दीप, स्‍वीकर मुंडारी, एमडी मनु, दिनेश मुरमू , क्रिकेट टोप्‍पो, आयुष लेज़र, सुदीप, प्रिंस जस्टिन और एक लड़की जेसिका जेनी है. इन्‍हीं के ग्रुप के एक सदस्‍य स्‍वीकर मुंडा हैं जो फिलहाल अपनी आनेवाली नागपुरी फिल्‍म ‘साथिया’ की शूटिंग कर रहे हैं.

रोहित माइकल तिग्गा : रोहित (35 वर्षीय) ने बैंगलोर से बीबीएम में ग्रेजुएशन किया है. लेकिन इस क्षेत्र को छोड़कर उन्‍होंने म्‍यूजिक को अपना करियर चुना. उनके घर में संगीत का माहौल था. पिता सुधीर तिग्गा गाते थे तो इसी परंपरा को रोहित ने आगे बढ़ाने का फैसला किया. बैंगलोर में भी उनके सभी दोस्त मयूजिक और डांस से जुड़े थे. कुछ समय दिल्‍ली में रहने के बाद वे वापस रांची आये. उनका एक बैंड है और वे कई स्टेज परफॉरमेंस भी करते हैं. उनके वीडियोज को बेहद पसंद किया जाता है. उन्‍हें इंग्लिश गानों में ज्‍यादा रूचि है, लेकिन अपनी संस्कृति से पूरी तरह जुड़े हुए हैं.

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नहीं रहें ‘ब्राह्मणों’ को चुनौती देने वाले दलित कवि मलखान सिंह

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मलखान सिंह जी

कमलेश वर्मा ने फारवर्ड प्रेस में लिखा है कि मलखान सिंह की कविताएं आत्मकथा है। वे आत्मकथा हैं, इसलिए सच्ची हैं। इनकी शैली आत्मकथात्मक है, इसलिए कथन में विश्वसनीयता है। मलखान जी पर भरोसा हो जाता है कि इनकी कविताओं के चित्र सच्चे हैं। सच्ची कविता कहने वाले मलखान सिंह आज सो गए। हमेशा के लिए। न टूटने वाली नींद में। आज 9 अगस्त 2019 को सुबह 4 बजे उनका निर्वाण हो गया। वह आगरा में रहते थे।

मलखान सिंह के गुजर जाने के बाद तमाम दलित लेखकों और साहित्यकारों ने उनको याद करते हुए सोशल मीडिया पर श्रद्धांजलि दी है। तमाम दिग्गज दलित साहित्यकारों ने मलखान सिंह के निधन को दलित साहित्य के लिए एक बड़ी क्षति कहा है।

हमारे बीच से जब कोई ओमप्रकाश वाल्मीकि, तुलसी राम या फिर मलखान सिंह चला जाता है तो अचानक से समझ में नहीं आता कि उनके बारे में क्या कहा जाए। इसलिए बेहतर है कि उन्हीं की कही बातों को दोहरा दिया जाए। अपनी रचनाओं से वो समाज को जो देना चाहते थे, वही बात एक बार फिर कह दी जाए। वही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

मलखान सिंह की ‘सुनो ब्राह्मण’ कविता ने दलित साहित्य में जो प्रतिष्ठा अर्जित की है वह अपने आप में एक उपलब्धि मानी जाएगी. ये कविता वर्ण-व्यवस्था, ब्राह्मणवादी, सामंती–व्यवस्था पर तीखेपन के साथ हमला करती है. साथ ही उन तमाम मिथकों, बिम्बों और प्रतीकों को भी चेतावनी देती है जो साहित्य में जड़ जमाए बैठे हैं.

सुनो ब्राह्मण / मलखान सिंह सुनो ब्राह्मण, हमारे पसीने से बू आती है, तुम्हें। तुम, हमारे साथ आओ चमड़ा पकाएंगे दोनों मिल-बैठकर। शाम को थककर पसर जाओ धरती पर सूँघो खुद को बेटों को, बेटियों को तभी जान पाओगे तुम जीवन की गंध को बलवती होती है जो देह की गंध से।

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ज्वालामुखी के मुहाने तुमने कहा — ‘मैं ईश्वर हूँ’ हमारे सिर झुका दिए गए।

तुमने कहा — ‘ब्रह्म सत्यम, जगत मिथ्या’ हमसे आकाश पुजाया गया।

तुमने कहा — ‘मैंने जो कुछ भी कहा — केवल वही सच है’

हमें अन्धा हमें बहरा हमें गूँगा बना गटर में धकेल दिया ताकि चुनौती न दे सकें तुम्हारी पाखण्डी सत्ता को।

मदान्ध ब्राह्मण धरती को नरक बनाने से पहले यह तो सोच ही लिया होता कि ज्वालामुखी के मुहाने कोई पाट सका है जो तुम पाट पाते !

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आजादी वहाँ वे तीनों मिले धर्मराज ने कहा पहले से दूर हटो — तुम्हारी देह से बू आती है सड़े मैले की उसने उठाया झाड़ू मुँह पर दे मारा ।

वहाँ वे तीनों मिले धर्मराज ने कहा दूसरे से दूर बैठो — तुम्हारे हाथों से बू आती है कच्चे चमड़े की उसने निकाला चमरौधा सिर पर दे मारा

वहाँ वे तीनों मिले धर्मराज ने कहा तीसरे से नीचे बैठो — तुम्हारे बाप-दादे हमारे पुस्तैनी बेगार थे उसने उठाई लाठी पीठ को नाप दिया

अरे पाखण्डी तो मर गया ! तीनों ने पकड़ी टाँग धरती पर पटक दिया खिलखिलाकर हँसे तीनों कौली भर मिले अब वे आज़ाद थे।

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पूस का एक दिन सामने अलाव पर मेरे लोग देह सेक रहे हैं।

पास ही घुटनों तक कोट हाथ में छड़ी, मुँह में चुरट लगाए खड़ीं मूँछें बतिया रही हैं।

मूँछें गुर्रा रही हैं मूँछें मुस्किया रही हैं मूँछें मार रही हैं डींग हमारी टूटी हुई किवाड़ों से लुच्चई कर रही हैं।

शीत ढह रहा है मेरी कनपटियाँ आग–सी तप रही हैं।

मलखान जी ने अपनी जाति और अपने टोले-मुहल्लेवाले गाँव को ‘सफ़ेद हाथी’ शीर्षक कविता तथा अन्य कविताओं में याद किया है। उनकी माँ मैला कमाती थीं और यह भी लिखा है कि मेरी जोरू मैला कमाने गयी है। गाँव के अपने टोले के बारे में लिखा है कि ‘यह डोम पाड़ा है’। आप खुद सुनिए।

सफेद हाथी गाँव के दक्खिन में पोखर की पार से सटा, यह डोम पाड़ा है – जो दूर से देखने में ठेठ मेंढ़क लगता है और अन्दर घुसते ही सूअर की खुडारों में बदल जाता है।

यहाँ की कीच भरी गलियों में पसरी पीली अलसाई धूप देख मुझे हर बार लगा है कि- सूरज बीमार है या यहाँ का प्रत्येक बाशिन्दा पीलिया से ग्रस्त है। इसलिए उनके जवान चेहरों पर मौत से पहले का पीलापन और आँखों में ऊसर धरती का बौनापन हर पल पसरा रहता है। इस बदबूदार छत के नीचे जागते हुए मुझे कई बार लगा है कि मेरी बस्ती के सभी लोग अजगर के जबड़े में फंसे जि़न्दा रहने को छटपटा रहे है और मै नगर की सड़कों पर कनकौए उड़ा रहा हूँ । कभी – कभी ऐसा भी लगा है कि गाँव के चन्द चालाक लोगों ने लठैतों के बल पर बस्ती के स्त्री पुरुष और बच्चों के पैरों के साथ मेरे पैर भी सफेद हाथी की पूँछ से कस कर बाँध दिए है। मदान्ध हाथी लदमद भाग रहा है हमारे बदन गाँव की कंकरीली गलियों में घिसटते हुए लहूलूहान हो रहे हैं। हम रो रहे हैं / गिड़गिड़ा रहे है जिन्दा रहने की भीख माँग रहे हैं गाँव तमाशा देख रहा है और हाथी अपने खम्भे जैसे पैरों से हमारी पसलियाँ कुचल रहा है मवेशियों को रौद रहा है, झोपडि़याँ जला रहा है गर्भवती स्त्रियों की नाभि पर बन्दूक दाग रहा है और हमारे दूध-मुँहे बच्चों को लाल-लपलपाती लपटों में उछाल रहा है। इससे पूर्व कि यह उत्सव कोई नया मोड़ ले शाम थक चुकी है, हाथी देवालय के अहाते में आ पहुँचा है साधक शंख फूंक रहा है / साधक मजीरा बजा रहा है पुजारी मानस गा रहा है और बेदी की रज हाथी के मस्तक पर लगा रहा है। देवगण प्रसन्न हो रहे हैं कलियर भैंसे की पीठ चढ़ यमराज लाशों का निरीक्षण कर रहे हैं। शब्बीरा नमाज पढ़ रहा है देवताओं का प्रिय राजा मौत से बचे हम स्त्री-पुरूष और बच्चों को रियायतें बाँट रहा है मरे हुओं को मुआवजा दे रहा है लोकराज अमर रहे का निनाद दिशाओं में गूंज रहा है… अधेरा बढ़ता जा रहा है और हम अपनी लाशें अपने कन्धों पर टांगे संकरी बदबूदार गलियों में भागे जा रहे हैं / हाँफे जा रहे हैं अँधेरा इतना गाढ़ा है कि अपना हाथ अपने ही हाथ को पहचानने में बार-बार गच्चा खा रहा है।

मलखान सिंह का जाना दलित साहित्य के एक महत्वपूर्ण हस्ताक्षर का चले जाना है। उनको विनम्र श्रद्धांजलि। साहित्य जगत आपके निशान ढूंढ़ेगा।

कविता संदर्भ-  रश्मि प्रकाशन से प्रकाशित कविता संग्रह से

बसपा में बड़ा फेरबदल

मायावती (फाइल फोटो)

नई दिल्ली। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने संगठन में भारी फेरबदल करते हुये पूर्व राज्यसभा सांसद मुनकाद अली को पार्टी की उत्तर प्रदेश इकाई का अध्यक्ष नियुक्त किया है. वहीं अब बसपा की ओर से लोकसभा में पार्टी के नेता अब श्याम सिंह यादव होंगे, इस जिम्मेदारी को अब तक दानिश अली निभा रहे थे. बसपा द्वारा बुधवार को जारी एक बयान में कहा गया कि बहुजन समाज पार्टी, देश व ‘सर्वजन हिताय व सर्वजन सुखाय’ की पार्टी है और राज्य की प्रदेश स्तरीय बसपा संगठन की कमेटी में कुछ जरूरी तब्दीली की गई है

बयान में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश राज्य का बसपा संगठन का प्रदेश अध्यक्ष पूर्व सांसद मुनकाद अली को नियुक्त किया गया है. साथ ही यह भी कहा गया है कि इसके साथ-साथ उत्तर प्रदेश के प्रदेश अध्यक्ष रहे आर.एस. कुशवाहा को अब बसपा केंद्रीय इकाई का महासचिवबना दिया गया है. बयान के मुताबिक बसपा के जौनपुर के सांसद श्याम सिंह यादव को लोकसभा में नेता बनाया है जबकि रितेश पाण्डेय को लोकसभा में उप नेता नियुक्त किए गए हैं. गिरीश चन्द्र जाटव लोकसभा सांसद पार्टी के लोकसभा में मुख्य सचेतक बने रहेंगे.

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यूपीः तो क्या समाजवादी पार्टी के कोर वोट बैंक पर मायावती की नजर!

लखनऊ। समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ने के बाद बीएसपी प्रमुख मायावती ने भले ही एसपी से नाता तोड़ लिया हो, लेकिन अब उनकी नजर एसपी के ही कोर वोटरों पर है. लोकसभा में दानिश अली की जगह, जिस तरह से मायावती ने जौनपुर के श्याम सिंह यादव को नेता बनाया है, उससे उन्होंने यादव वोटरों में यह संदेश देने की कोशिश की है, बीएसपी का जुड़ाव यादव वोटरों के प्रति भी है.

मायावती ने लोकसभा चुनाव के बाद एसपी से नाता तोड़ते समय यह कहा भी था कि यादव वोटरों पर एसपी का होल्ड नहीं रह गया है. लिहाजा, अब वह इन वोटरों को साधने की जुगत में हैं.

लोकसभा में पास हुए अनुच्छेद 370 खत्म करने के बिल पर मायावती ने जिस तरह से भाजपा का समर्थन किया, उससे उनके बदले अंदाज का इशारा मिल ही गया था. बुधवार को जिस तरह से उन्होंने लीडरशिप में बदलाव किए हैं, उससे अब उनकी नीति साफ हो गई है. राजनीतिक जानकार मानते हैं कि बीएसपी यह समझ रही है कि फिलहाल किसी भी राजनीतिक पार्टी के पास अपने कोर वोटबैंक इतने मजबूत नहीं रह गए हैं.

ऐसे में जो भी पार्टी आगे बढ़ना चाहती है, उसे सभी जातियों और वर्गों के वोटों की जरूरत होगी. ऐसे में मायावती की पहली नजर एसपी से छिटक रहे यादव वोटरों पर है. 2014 के बाद प्रदेश में हुए हर चुनाव में यादव अपना वोट एसपी के अलावा दूसरे दलों को ट्रांसफर करते रहे हैं. भाजपा इसमें फेवरेट रही, बावजूद एसपी के पास ही बड़ा शेयर रहा है. हालांकि 2019 के चुनाव में यादव वोटरों में भाजपा ने बड़े पैमाने पर सेंधमारी की.

वहीं, एसपी, जिसका यह कोर वोटबैंक था, वह 2019 के बाद भी ज्यादा सक्रिय नहीं दिख रही है. जमीन पर संघर्ष फिलहाल थम सा गया है. ऐसे में इस बात के कयास ज्यादा पुख्ता हैं कि यादव वोटरों में बिखराव अभी और होगा. लिहाजा मायावती ने चाल चल दी है. उन्होंने यादवों में संदेश साफ कर दिया है कि बीएसपी में भी उनकी सुनी जाएगी. अहम पद भी दिए जाएंगे.

जानकार मानते हैं कि अनुच्छेद 370 पर मायावती ने जिस तरह से भाजपा का साथ दिया, उससे कहीं न कहीं मायावती को डर सता रहा है कि कहीं मुसलमान उनसे न छिटके. लिहाजा जहां अनुच्छेद 370 समाप्त करने को जहां मायाने लद्दाख में बौद्ध अनुयायियों के हक की जीत बताया था, वहीं अब उन्होंने मुस्लिम प्रदेश अध्यक्ष देकर इस समीकरण को बैलेंस करने की कोशिश की है.

दानिश अली की जगह मुनकाद वेस्ट यूपी में ज्यादा प्रभावी नाम हैं. माना यह भी जा रहा है कि मायावती अपना दखल वेस्ट यूपी के मुसलमानों में ज्यादा मजबूत करना चाहती हैं. साथ ही पार्टी ने जिस तरह से लोकसभा में नेता पूर्वांचल से बनाया है, उससे यह भी मायने निकाले जा रहे हैं कि पश्चिम और पूरब के समीकरणों को भी काफी बेहतर सोच के साथ साधने की कोशिश की गई है.

मायावती यूपी की राजनीति में ब्राह्मणों को लुभाने में भी कसर नहीं रखना चाहती हैं. राज्यसभा में जहां ब्राह्मण चेहरे के तौर पर सतीश चंद्र मिश्र हैं, वहीं लोकसभा में रितेश पांडेय को डिप्टी लीडर बनाकर मायावती ने साफ कर दिया है कि उनके अजेंडे से ब्राह्मण बाहर नहीं हैं. वह अपनी सोशल इंजिनियरिंग में ब्राह्मणों को अहम मान रही हैं.

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राजनीति में हैं तो दाग अच्छे हैं

हिंदू शास्त्रों के अनुसार भागीरथ ने कठोर तपस्या कर गंगा को पृथ्वी पर उतारा था ताकि उनके साठ हजार पूर्वजों का तारण हो सके. गंगा जीवनदायिनी के साथ साथ मोक्ष दायिनी, मुक्ति दायिनी भी है. आज भी गंगा के प्रति लोगों की आस्था उतनी ही बनी है जितनी भागीरथ की थी. अस्थियों की राख विसर्जन आज भी आस्था की रीढ़ बनी है. गंगा में नहाने से पाप धुले या नहीं, मुक्ति मिले, या नहीं यह रहस्य है मगर भारतीय लोकतंत्र के सबसे बड़े महापर्व  चुनाव में कई दागियों, अपराधियों और गुनाहगारों  के सारे गुनाह धुल जाते हैं. कल तक जिनके ऊपर अपराधों के गंभीर मामले होते हैं जेल की सलाखों में होते हैं राजनीतिक पार्टियां उनको हाथों-हाथ पार्टी से टिकट  देकर उनके सारे गुनाहों पर पर्दा डाल देते हैं. ऐसा लगता है कि देश में योग्य और सभ्य,बुद्धिजीवी, ईमानदार, निरपराधी लोगों का अकाल पड़ गया है. बयान कड़वा और आपत्तिजनक देकर नेता बड़ी सफाई से पार्टी का बचाव करती हैं. निंदा होने पर निजी बयान कहा जाता है और पार्टी से कोई संबंध नहीं है ऐसा कहा जाता है.

 मगर जब ऐसे आरोपित और गुनाहगार और गुनाहगार नेताओं के बयान तो निजी होते हैं पर वह पार्टियों के मोहरे होते हैं. चुनाव आयोग भी इस इस पर कठोर कदम उठाने चाहिए जब पार्टी अपराधी को अपना टिकट देती है तब वह पार्टी का होता है मगर जुबान फिसलने, मर्यादा तोड़ने पर व्यक्तिगत कैसे हो जाता है?व्यक्तिगत गलती के लिए उसे पार्टी से बाहर कर देना चाहिए. राजनीति विज्ञान में लोकतंत्र की परिभाषा इस प्रकार व्यक्त की गई है “जनता का शासन जनता द्वारा जनता के लिए ” लेकिन आज के वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इस प्रकार की परिभाषा का विलोम होता हुआ नजर आ रहा है यूं कहा जाए कि- “जनता द्वारा पार्टी का शासन पार्टी के लिए” ही काम करता दिखाई दे रहा है जनता द्वारा सरकारें चुनी तो जा रही हैं मगर जनता का शासन जनता के लिए नहीं हो रहा है .ऐसा लोकतंत्र किस काम का? जहां व्यक्तियों की आवाजों को अनसुना कर दिया जाता है. जितनी तीव्र गति से भारतीय राजनीति में परिवर्तन हुआ है उसका स्वरूप बदल गया है उतनी तीव्र गति से राजनीति के तीव्र गति से राजनीति के लिए खाद का काम करने वाले वोटरों की जिंदगी में या उनकी हालातों में, स्थिति में परिवर्तन देखने में शायद ही आया हो. आजादी के चंद दशकों बाद ही भारतीय राजनीति प्रदूषित होने लगी थी और उस प्रदूषण का मुख्य कारण था राजनीति में अपराधियों का बढ़ता हुआ ग्राफ.

इस चिंता को  देखते हुए तथा लोकतंत्र के पवित्र मंदिर संसद में सदाचारी और ईमानदार लोगों की पहुंच हो तथा दागी प्रत्याशी हो तथा दागी प्रत्याशी संसद और राज्य विधानसभाओं में नहीं पहुंच सके नहीं पहुंच सके 25सितंबर 2018 को माननीय सुप्रीम कोर्ट ने राजनीति के अपराधीकरण पर फैसला देते हुए कहा कि संसद कानून बनाने की जिम्मेदारी ले. मगर खुद कानून बनाने वाले कानून की अवहेलना करें, उसको कुचल डाले तो फिर लोकतंत्र की जड़ें मजबूत कहां होंगी? यथा धीरे-धीरे खोखली होती जाएंगे होती जाएंगे 2004 में अपराधिक पृष्ठभूमि वाले सांसदों की संख्या 128 थी जो वर्ष 2009 में 162 और 2014 में यह संख्या 184 हो गई.

 चुनाव विश्लेषण संस्था एडीआर की रिपोर्ट के अनुसार 2019 के आम चुनाव में सत्रहवीं लोकसभा के लिए चुने गए 542 सांसदों में से 233 अर्थात 43 प्रतिशत सांसद दागी छवि के हैं. एडीआर रिपोर्ट के अनुसार 159 यानी29% सांसदों के विरुद्ध हत्या, बलात्कार और अपहरण जैसे गंभीर आरोप लंबित हैं सत्रहवीं  लोकसभा में सभी प्रमुख राजनीतिक दलों ने आपराधिक मुकदमों में फंसे गुनाहगारों को पार्टी से टिकट देने में कोई कमी नहीं की है. रिपोर्ट के मुताबिक भाजपा के 303 सांसदों में 116 सांसद दागी हैं जिनके नामों के विश्लेषण में पाया गया कि शाध्वी प्रज्ञा सहित 116 सांसदों के विरुद्ध आपराधिक केस चल रहे हैं. इसी कड़ी में कांग्रेस के सांसद कुरियाकोस  पर 204 मुकदमे दर्ज हैं. 52 सांसदों में से 29 कांग्रेसी सांसद आपराधिक मामलों में घिरे हैं, बसपा के10 में से 5, जेडीयू के 16 में से 13, तृणमूल कांग्रेस के 22 में से नौ, और माकपा के तीन में से दो सांसदों के विरुद्ध विभिन्न आपराधिक गतिविधियों में केस चल रहे हैं.

इतना ही नहीं बाहुबली के साथ-साथ 88% सांसद धन बलि भी हैं. जन प्रतिनिधित्व अधिनियम  1951 की  धारा8 दोषी राजनेताओं को चुनाव लड़ने से रोकती है. इस नियम की धारा 8 (1)और (2) के अंतर्गत प्रावधान है कि यदि कोई संसद या विधानसभा सदस्य हत्या’ बलात्कार, अस्पृश्यता, विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम के उल्लंघन, धर्म भाषा या क्षेत्र के आधार पर शत्रुता पैदा पैदा करना, भारतीय संविधान का अपमान करना,प्रतिबंधित वस्तुओं का आयात या निर्यात करना, आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होना जैसे अपराधों में लिप्त हो तो उसे इस धारा के अंतर्गत अयोग्य माना जाएगा एवं 6 वर्ष की अवधि के लिए अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा. संविधान के अनुच्छेद 102 (1) के अनुसार संसद इस मामले पर कानून बनाने के लिए बाध्य है. लेकिन कोई भी सरकारें अभी तक इस पर कानून लाने के लिए साहस नहीं कर पाई हैं आखिर क्यों? तीन तलाक के लिए सरकार ने ताबड़तोड़ कोशिशें की लगातार दो कार्यकाल में इसके लिए कानूनी लड़ाई भी लड़ी मगर राजनीति में दागी और फसादी लोगों के लिए अभी तक किसी भी प्रकार का न कोई कानून बनाने की ओर पहल की और  नहीं उनको पार्टी में आने से रोका गया है.

देश को दहलाने वाली घटना जो उन्नाव में घटित हुई है उसके पीछे भी इसी प्रवृति के लोगों की छया दृष्टिगोचर होती है. कुलदीप सेंगर जो सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी का यूपी से विधायक है  लगभग 2 साल के बाद उसको पार्टी से तब निकाला गया जब देश की मीडिया और जन समुदाय का बहुत ज्यादा दबाव बन गया था आखिर ऐसा लगता है की राजनीति वह गंगा के समान हो गयी है  जहां कितना भी बागी ,दागी,पापी और दुष्कर्मी इंसान क्यों न हो वह संसद और विधानसभा में पहुंच जाता है तो उसके सारे दाग मिट जाते हैं इसलिए यह कहना अनुचित नहीं होगा कि “राजनीति में है तो दाग अच्छे हैं” लेकिन इन दागों को धोने के लिए न तो कोई ऐसा डिटर्जेंट ही सरकार खोज पाई है और ना ही कोई ऐसा गंगा का पवित्र जल इन पर डालने की कोशिश की है जो संविधान की धाराओं से निकलता हुआ सीधे ऐसे अपराधियों को जेल की सलाखों तक पहुंचाए.

आई. पी.  ह्यूमन

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विश्व की महान लेखिका टोनी मॉरीसन का निधन

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 ”नेल्सन मंडेला की तरह सारी उम्र अश्वेतों के लिए लड़ने वालीं 88 वर्षीय नोबल पुरस्कार विजेता महान लेखिका टोनी मॉरीसन का निधन हो गया है.अमेरिकी लेखक टोनी मॉरिसन का 88 साल की उम्र में 5 अगस्त 2019 को निधन हो गया. मॉरिसन ऐसी इकलौती अमेरिकी अफ्रीकी महिला हैं जिनको साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला. मॉरिसन ने अपने छह दशक लम्बे करियर में 11 उपन्यास, पाँच बाल-उपन्यास और दो नाटक लिखे. उनका पहला नॉवेल The Bluest Eye 1970 में प्रकाशित हुआ था, जिसने साहित्य की दुनिया में तहलका मचा दिया. उस समय वह 40 साल की थीं. इस उपन्यास में मॉरिसन ने एक अफ्रीकी-अमेरिकी महिला की कहानी कही थी.

मॉरिसन का जन्म 18 फरवरी 1931 को अमेरिका को ओहायो में हुआ था. उनके परिवार को भारी नस्लभेद का सामना करना पड़ा था. इन सब घटनाओं का उनकी जिंदगी में सीधा प्रभाव पड़ा और उनके उपन्यास अश्वेतों पर गोरों की जुल्म की दास्तान थीं. वह ताउम्र अमेरिका में काले लोगों के साथ होने वाले भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाती रहीं.

60 साल की उम्र तक उनके छह उपन्यास प्रकाशित हो चुके थे. इस बीच वर्ष 1993 में उन्हें साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला. साहित्य का नोबेल पाने वाली पर पहली अश्वेत महिला बन गईं. अपने उपन्यास “बिलव्ड” (Beloved) के लिए उन्हें वर्ष 1988 में पुलित्जर पुरस्कार से सम्मानित किया गया. तो साल 2012 में उन्हें अमेरिका के प्रेंसिडेंशियल मेडल ऑफ फ्रीडम से सम्मानित किया गया. Beloved के अलावा Song of Solomon और The Bluest Eye उनके सर्वाधिक चर्चित उपन्यास हैं. मॉरिसन पेशे से प्रोफेसर थीं.

उनका कहना था कि ‘मौन मुझे लिखने के लिए प्रेरित करता है.’ स्वीडिश एकेडमी ने उनके “विजनरी फोर्स” और खासकर उसकी भाषा की बड़ी प्रशंसा की थी. वह ताउम्र अश्वेतों की मजबूत आवाज बनकर जिंदा रही. जब संपादक बनीं तो ब्लैक राइटर को खूब बढ़ाया. जब भी बोलने का मौका मिलता अमेरिकी ब्लैक के साथ होने वाले भेदभाव के बारे में खुलकर बोलतीं. चाहे भारतीय दलित हों या फिर अमेरिकी अफ्रीकी ब्लैक, दोनों से उन्हें समान सहानुभूति थी. वह अपनी तमाम रचनाओं में नस्लभेद के दर्द की दास्तां सुनाती रहीं.

मॉरीसन पुरस्कार की राशि व प्रोफेसर के रूप में मिलने वाली पूरी तनख्वाह विश्व के अलग अलग हिस्सों के अश्वेत बच्चों की शिक्षा पर खर्च करती थीं.इसी वर्ष उनके बेटे की कैंसर से मौत हो गई थीं.मॉरीसन अपना उपन्यास होम लिख रहीं थीं. लेकिन बेटे की मौत के गम के चलते वो उसे कभी पूरा नहीं कर सकीं.”

  • सुनील कुमार ‘सुमन’

T20: भारत ने 3-0 से किया इंडीज का सफाया

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दीपक चाहर की घातक गेंदबाजी के बाद कप्तान विराट कोहली (59) और ऋषभ पंत (नाबाद 65) की शानदार पारियों के दम पर भारत ने मंगलवार देर रात खेले गए तीसरे और आखिरी टी20 मैच में वेस्टइंडीज को सात विकेट से हरा दिया. इसी के साथ भारत ने तीन मैचों की टी20 सीरीज 3-0 से अपने नाम कर ली. टॉस जीतकर कोहली ने गेंदबाजी चुनी थी और चाहर ने शुरुआती तीन विकेट ले विंडीज को दबाव में ला दिया.

केरन पोलार्ड ने 58 और रोवमैन पावेल ने नाबाद 32 रनों की पारी खेल विंडीज को 20 ओवरों में छह विकेट के नुकसान पर 146 रनों का सम्मानजनक स्कोर प्रदान किया. इस लक्ष्य को भारत ने 19.1 ओवरों में तीन विकेट खोकर हासिल कर लिया. ओशाने थॉमस ने शिखर धवन (3) का विकेट ले भारत का स्कोर 10 रनों पर एक विकेट कर दिया.

फाबियान ऐलान, लोकेश राहुल (20) को 27 के कुल स्कोर पर पवेलियन भेजने में सफल रहे. अभी तक अपनी गैरजिम्मेदाराना बल्लेबाजी के लिए आलोचनाओं का शिकार हो रहे पंत ने कप्तान कोहली के साथ भारतीय पारी को आगे बढ़ाया और तीसरे विकेट के लिए 106 रनों की साझेदारी कर टीम को जीत की दहलीज पर पुहंचा दिया. कोहली ने अपनी पारी में 59 गेंदों का सामना करते हुए छह चौके लगाए.

भारत को जब जीत के लिए 15 गेंदों पर 14 रनों की जरूरत थी तब कोहली थॉमसी गेंद पर इविन लुइस के हाथों लपके गए. कोहली ने अपनी पारी में 59 गेंदों का सामना करते हुए छह चौके लगाए. पंत ने फिर मनीष पांडे (नाबाद 2) के साथ मिलकर टीम को जीत दिलाई. पंत ने ही भारत के लिए विजयी छक्का मारा. पंत ने अपनी नाबाद पारी में 42 गेंदों का सामना किया और चार छक्कों के साथ चार चौके भी लगाए.

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अब अंपायर की इस गलती से नहीं होगा कोई बल्लेबाज आउट

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क्रिकेट के मैदान पर अक्सर अंपायरों से गलती होती रहती है, जिसका खामियाजा कभी बल्लेबाजी या कभी गेंदबाजी करने वाली टीम को भुगतना पड़ता है. कई बार ऐसा होता है कि अंपायर (Umpire) गेंदबाजों के पांव की नो बॉल तक नहीं पकड़ पाते और इस एक गलती की वजह से पूरे मैच का नतीजा बदल जाता है. हालांकि अब आईसीसी (ICC) ने इस गलती पर लगाम लगाने के लिए पूरी तैयारी कर ली है. दरअसल आईसीसी ने टीवी अंपायरों को पांव की नो बॉल पर फैसला लेने का अधिकार देने का निर्णय लिया है. हालांकि इसे अभी वनडे और टी20 क्रिकेट में ट्रायल के तौर पर लागू किया जाएगा.

आईसीसी के जनरल मैनेजर जोफ एलरडाइस ने बताया, ‘तीसरे अंपायर को आगे का पांव पड़ने के कुछ सेकेंड के बाद फुटेज दी जाएगी. वह मैदानी अंपायर को बताएगा कि नो बॉल की गई है. इसलिए गेंद को तब तक मान्य माना जाएगा जब तक अंपायर कोई अन्य फैसला नहीं लेता.’

2016 में हुआ था इसका ट्रायल आपको बता दें इंग्लैंड और पाकिस्तान के बीच 2016 में हुई वनडे सीरीज में इसका ट्रायल किया गया था. इस ट्रायल के दौरान थर्ड अंपायर को फुटेज देने के लिए एक हॉकआई ऑपरेटर का उपयोग किया गया था. इस तकनीक को नो बॉल टेक्नोलॉजी भी कहा जाता है.

क्या है नो बॉल टेक्नोलॉजी? नो बॉल टेक्नोलॉजी एक ऐसी तकनीक है जिसके जरिए गेंदबाज के पांव पर नजर रखी जा सकेगी. गेंदबाज जब क्रीज पर अपना पांव लैंड करेगा तो उस पर थर्ड अंपायर कैमरे से नजर रखेगा. अगर वो पांव क्रीज से आगे होगा तो थर्ड अंपायर तुरंत मैदान में खड़े अंपायर को इसकी जानकारी देगा. आमतौर पर थर्ड अंपायर डीआरएस के दौरान ही गेंदबाज के पांव पर निगाह डालता है, लेकिन नो बॉल टेक्नोलॉजी के तहत ऐसा नहीं होगा.

वैसे नो बॉल टेक्नोलॉजी काफी महंगी है. एक मैच में इसके इस्तेमाल पर हजारों डॉलर का खर्च आ सकता है, इसीलिए आईसीसी इसे लागू करने में हिचकिचा रही थी. हालांकि बीसीसीआई की मांग पर अब आईसीसी इसके ट्रायल के लिए तैयार हो गई है. जल्द ही इसे इंडिया में होने वाले मैचों में इस्तेमाल किया जाएगा.

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घाटी में तनाव के बीच जम्मू-कश्मीर में 100 से अधिक राजनेता और कार्यकर्ता गिरफ्तार

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श्रीनगर। जम्मू-कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों (जम्मू-कश्मीर और लद्दाख) में बांटने और आर्टिकल 370 के प्रावधानों को हटाने के फैसले के बाद से ही घाटी में तनावपूर्ण शांति बरकरार है. कश्मीर घाटी में संचार-व्यवस्था ठप होने और तमाम प्रतिबंधों के बीच सुरक्षा एजेंसियों ने राजनेताओं, कार्यकर्ताओं सहित 100 से अधिक लोगों को शांति के लिए खतरा होने का हवाला देते हुए गिरफ्तार किया है. इन सभी को सरकार के फैसले के बाद घाटी में शांति व्यवस्था बरकरार रखने के लिहाज से गिरफ्तार किया गया है.

बुधवार को राज्य सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने इस बात की पुष्टि करते हुए कहा कि राज्य में 100 से अधिक राजनेताओं और कार्यकर्ताओं को अभी तक घाटी में गिरफ्तार किया गया है. हालांकि उन्होंने इस संबंध में विस्तृत जानकारी देने से इनकार नहीं दी. उन्होंने बताया कि ‘जम्मू-कश्मीर पीपल्स कॉन्फ्रेंस’ के नेता सज्जाद लोन और इमरान अंसारी को भी गिरफ्तार किया गया है. अधिकारियों ने बताया कि नेताओं को उनके गुप्कर निवास से कुछ मीटर की दूरी पर हरि निवास में रखा गया है. उन्होंने बताया कि कश्मीर घाटी में उनकी गतिविधियों से शांति एवं सौहार्द में खलल पैदा होने के डर के चलते मैजिस्ट्रेट ने उनकी गिरफ्तारी के आदेश दिए थे.

इंटरनेट और रेल सेवाएं अब भी बंद बता दें कि मंगलवार को राष्ट्रति द्वारा आर्टिकल 370 के कानून को हटाने की मंजूरी दिए जाने के बाद से ही कश्मीर घाटी में तनाव का वातावरण बना हुआ है. एक ओर जहां दक्षिण कश्मीर के तमाम जिलों में सख्त सुरक्षा इंतजाम किए गए हैं, वहीं इंटरनेट और रेल सेवाएं अब भी बंद ही हैं. राज्य में कानून व्यवस्था के लिहाज से सुरक्षा एजेंसियों के अधिकारी लगातार हालातों पर नजर बनाए हुए हैं.

बुधवार को जम्मू स्थित राज्य सचिवालय की एक विडियो क्लिप में इमारत पर दो झंडे लगे नजर आए. इमारत पर जम्मू-कश्मीर का झंडा और तिरंगा साथ लहराते नजर आए, जिसके बाद इसकी एक क्लिप भी सोशल साइट्स पर शेयर की गई. माना जा रहा है कि जल्द ही राज्य की सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर के झंडे को इमारत से हटा दिया जाएगा और अब से यहां पर तिरंगा लहराने की ही व्यवस्था की जाएगी.

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सुषमा ने मंगलवार को ही हरीश साल्वे से की थी बातचीत और कहा…

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नई दिल्ली। सुषमा स्वराज ने मंगलवार को अपने निधन से महज चंद मिनट पहले ही इंटरनैशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में कुलभूषण जाधव का केस जीतने वाले वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे से बातचीत की थी. उनसे आखिरी बातचीत को याद कर साल्वे काफी भावुक हो गए. उन्होंने कहा कि सुषमा जी ने उन्हें कल यानी बुधवार को मिलने के लिए बुलाया था और कहा था कि अपनी 1 रुपये की फीस आकर ले लो.

बता दें कि पूर्व सॉलिसिटर जनरल साल्वे ने जासूसी के आरोप में पाकिस्तान में मौत की सजा का सामना कर रहे कुलभूषण जाधव केस को ICJ में लड़ने के लिए महज रुपये की प्रतीकात्मक फी ली थी, जबकि पाकिस्तान ने 20 करोड़ रुपये खर्च किए थे. ICJ में साल्वे की दलीलों से भारत के पक्ष में फैसला आया तो पाकिस्तान को जाधव तक कंसुलर ऐक्सेस देने का आदेश पारित हुआ.

हरीश साल्वे ने हमारे सहयोगी न्यूज चैनल टाइम्स नाउ के साथ बातचीत में कहा कि उनकी मंगलवार को ही रात 8 बजकर 50 मिनट पर सुषमा स्वराज से बातचीत हुई थी. उन्होंने याद किया, ‘आज (सोमवार) 8:50 पर मैंने उन्हें फोन किया था. अब जब यह खबर सुना तो मैं सन्न रह गया. बहुत ही भावुक बातचीत हुई. उन्होंने मुझे कहा कि तुम कल 6 बजे आओ अपना एक रुपये का फीस लेने के लिए.’ चैनल से बातचीत में साल्वे काफी भावुक हो गए. उन्होंने कहा, ‘मुझे नहीं सूझ रहा कि मैं क्या बोलूं. वह कद्दावर और ताकतवर मंत्री थीं. मेरे लिए उनका निधन एक बड़ी बहन के खो जाने जैसा है.’

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