ओडिशा में नरबलि और अंधविश्वास का धंधा

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विश्व महामारी कोरोना संक्रमण को ठीक करने के लिए पूरी दुनिया के वैज्ञानिक दवा की खोज में लगे हुए हैं। लेकिन भारत में दैवीय चमत्कार की उम्मीद भी की जाने लगी है। कोई कह रहा है कि कोरोना गो-मूत्र से ठीक हो जाएगा तो कोई कोरोना भगाने के लिए यज्ञ कर रहा है। लेकिन हद तब हो गई, जब कोरोना भगाने के लिए नरबली दे दी गई। जी हां, ठीक सुना आपने, नरबलि, यानी कि कोरोना भगाने के लिए एक पुजारी ने एक इंसान की गला काट कर बलि दे दी।

यह घटना घटी है ओडिशा के प्रमुख शहर कटक में। कटक के बाहुड़ा गांव में एक मंदिर है। मंदिर का नाम है ब्राह्मणी देवी मंदिर। यहीं पर यह हैरान कर देने वाली घटना घटी है। बलि देने के आरोप में 70 साल के पुजारी को गिरफ्तार किया गया है। पुलिस को दिये अपने बयान में पुजारी ने कहा है कि चार दिन पहले हमें मां मंगला देवी का सपना आया था कि नरबलि देने से यह इलाका कोरोना महामारी से मुक्त हो जाएगा। इसके बाद बुधवार 27 मई की रात को जब गांव के ही 55 वर्षीय सरोज प्रधान मंदिर में पहुंचे तब पुजारी ने धोखे से धारदार कटारी से उसका सिर धड़ से अलग कर दिया। हालांकि घटना के बाद पुलिस ने पुजारी को गिरफ्तार कर लिया है।

लेकिन ऐसी घटनाएं एक दिन में नहीं घटती। अखिल विश्व गायत्री परिवार की ओर से 31 मई को कोरोना सहित अन्य विषाणुओं, हानिकारक जीवाणुओं और रोगाणुओं के नाश तथा पर्यावरण के परिशोधन के लिए एक साथ गायत्री मंत्र, सूर्य गायत्री मंत्र एवं महामृत्युंजय मंत्र से हवन यज्ञ किया जाएगा। इसे विश्व के 100 से भी ज्यादा देशों के करोड़ों लोग अपने-अपने घरों में करेंगे। कहा जा रहा है कि हर शहर से 551 लोगों की भागेदारी रहेगी। सवाल है कि क्या मलेरिया, टीबी, एड्स, कोरोना, कैंसर आदि के विषाणु इस यज्ञ से खत्म हो जाएंगे।

मार्च के दूसरे हफ्ते में तो अखिल भारत हिन्दू महासभा द्वारा जंतर मंतर पर गो-मूत्र पार्टी की गई। और इस महासभा के स्वघोषित संत ने तो यहां तक मांग कर दी कि जो भी भारत में कदम रखे, उसको गो-मूत्र पिलाया जाए, गोबर से स्नान कराया जाए, फिर आने दिया जाए।

चिंता की बात यह है कि इस तरह के आयोजनों को भारतीय मीडिया भी बढ़-चढ़ कर प्रचारित करता है। मीडिया द्वारा इसकी आलोचना नहीं की जाती, बल्कि इस तरह के अंधविश्वासों पर घंटे भर के कार्यक्रम बनाए जाते हैं और चर्चाएं आयोजित की जाती है। जिससे इस तरह के काम करने वालों को बल मिलता है।

दरअसल भारत में अंधविश्वास फैलने से कुछ लोगों का फायदा होता है। देश में अंधविश्वास धंधा बन चुका है। इसके खिलाफ काम करने वाले नरेन्द्र दाभोलकर की हत्या इस बात का पुख्ता सबूत है कि अगर दाभोलकर सफल हो जाते तो कईयों का धंधा बंद हो जाता। वरना एक नेक काम करने वाले इंसान की हत्या समझ से परे है। दाभोलकर एक लेखक  और तर्कवादी व्यक्ति थे। वह महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के संस्थापक थे। 20 अगस्त 2013 को उनकी हत्या कर दी गई। लेकिन दिक्कत यह है कि भारत में इस तरह की हत्याओं पर कोई जन आक्रोश नहीं होता।

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