अमेरिका में सक्रिय संगठन अम्बेडकर एसोसिएशन ऑफ नार्थ अमेरिका यानी AANA ने साल 2020 के लिए अपने अवार्ड की घोषणा कर दी है. इस साल चार अवार्ड की घोषणा की है. इसमें आईपीएस अधिकारी और तेलंगाना सोशल वेलफेयर एंड रेजिडेंशियल स्कूल के सेक्रेट्री डॉ. आर.एस. प्रवीण को इस साल का डॉ. आंबेडकर इंटरनेशनल अवार्ड दिया गया है. मानवाधिकार कार्यकर्ता और पेशे से वकील मंजुला प्रदीप को सावित्रीबाई फुले इंटरनेशनल अवार्ड के लिए चुना गया है. जबकि डॉ. अंबेडकर इंटरनेशनल लाइफ टाइम एचीवमेंट अवार्ड वरिष्ठ पत्रकार और भीम पत्रिका के संपादक एल.आर. बाली को दिया गया है. AANA ने मूकनायक के शताब्दी वर्ष पर “Mooknayak” Excellency in Journalism Award शुरु किया है. इस कैटेगरी का पहला अवार्ड “दलित दस्तक” को दिया गया है.
डॉ. आर.एस. प्रवीण का चुनाव तेलंगाना सोशल वेलफेयर एजुकेशनल सोसाइटी के जरिए वंचित समाज के बच्चों की शिक्षा के लिए किए गए महत्वपूर्ण काम के लिए किया गया है. डॉ. प्रवीण स्वैरो नेटवर्क के फाउंडर भी हैं. जहां तक मंजुला प्रदीप की बात है तो वो एक मानवाधिकार कार्यककर्ता हैं और उन्होंने कास्ट एंड जेंडर डिसक्रिमिनेशन यानी जाति और लिंग के आधार पर होने वाले अत्याचार के खिलाफ न सिर्फ अपनी आवाज बुलंद की है, बल्कि लड़ाई भी लड़ी है. वह नवसृजन ट्रस्ट की पूर्व एक्जीक्यूटीव डायरेक्टर रह चुकी हैं. यह ट्रस्ट दलित अधिकारों के लिए काम करने वाली एक महत्वपूर्ण संस्था है. तो वहीं एल.आर. बाली द्वारा जीवन भर बाबासाहेब के सिद्धांत पर चलते हुए सामाजिक बदलाव की दिशा में काम करने के कारण लाइफ टाइम अचिवमेंट अवार्ड के लिए चुना गया है.
जबकि पत्रकारिता के क्षेत्र में मूकनायक एक्सिलेंसी इन जर्नलिस्म अवार्ड दलित दस्तक को मिला. AANA के मुताबिक “दलित दस्तक” को यह अवार्ड प्रिंट और डिजिटल मीडिया के जरिए बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर के विजन पर चलते हुए समाज के आखिरी छोड़ पर खड़े लोगों को जागरूक करने और उनकी आवाज को उठाने के लिए दिया गया है. दलित दस्तक एक मासिक पत्रिका, यू-ट्यूब चैनल और वेबसाइट है. दलित दस्तक के संपादक अशोक दास ने इस सम्मान के लिए AANA को धन्यवाद दिया है. उन्होंने कहा कि यह दलित दस्तक के सभी पाठकों और दर्शकों का सम्मान है. उन्होंने अपनी टीम को भी धन्यवाद दिया. खास बात यह है कि इस अवार्ड के लिए सभी का चयन वोटिंग के जरिए हुआ है.
जहां तक ‘दलित दस्तक’ को यह सम्मान मिलने की बात है तो यह अम्बेडकरवादी सिद्धांतों पर चलने वाली मीडिया संस्था के लिए एक बड़ा सम्मान है. क्योंकि खौस तौर से हिन्दी जानने-समझने वाले अम्बेडकरवादियों के बीच दलित दस्तक ने अपना एक मुकाम बनाया है. खबरों की बाढ़ में और सनसनी के वक्त में दलित दस्तक ने अपनी सधी हुई पत्रकारिता के जरिए अपने पाठकों का भरोसा जीता है. अपने पाठकों का यही भरोसा दलित दस्तक की सबसे बड़ी पूंजी है. यह सम्मान मैं दलित दस्तक के सभी पाठकों, दर्शकों और अपनी पूरी टीम को समर्पित करता हूं.

दलित दस्तक (Dalit Dastak) एक मासिक पत्रिका, YouTube चैनल, वेबसाइट, न्यूज ऐप और प्रकाशन संस्थान (Das Publication) है। दलित दस्तक साल 2012 से लगातार संचार के तमाम माध्यमों के जरिए हाशिये पर खड़े लोगों की आवाज उठा रहा है। इसके संपादक और प्रकाशक अशोक दास (Editor & Publisher Ashok Das) हैं, जो अमरीका के हार्वर्ड युनिवर्सिटी में वक्ता के तौर पर शामिल हो चुके हैं। दलित दस्तक पत्रिका इस लिंक से सब्सक्राइब कर सकते हैं। Bahujanbooks.com नाम की इस संस्था की अपनी वेबसाइट भी है, जहां से बहुजन साहित्य को ऑनलाइन बुकिंग कर घर मंगवाया जा सकता है। दलित-बहुजन समाज की खबरों के लिए दलित दस्तक को ट्विटर पर फॉलो करिए फेसबुक पेज को लाइक करिए। आपके पास भी समाज की कोई खबर है तो हमें ईमेल (dalitdastak@gmail.com) करिए।