‘मैंने सारी कुंडली निकाल ली है, इन्हें बताऊंगा कि पुलिस होती क्या है’ ये घमंड से भरे शब्द हैं दिल्ली से बीजेपी सांसद मनोज तिवारी के. तिवारी जी कुछ समर्थकों के साथ सिग्नेचर ब्रिज के उद्घाटन पर पहुंचे थे. उनके तेवर ऐसे थे कि उन्हीं की सरकार द्वारा संचालित दिल्ली पुलिस ने रास्ता रोक दिया. तमतमाए बिलबिलाए मनोज तिवारी ने इस दौरान पुलिसवाले को थप्पड़ भी मार दिया.
इससे पहले जब वो मंच पर चढ़े थे तो उन्हें सीएम केजरीवाल के बिगड़ैल लाड़ले अमानतुल्लाह ने धक्का मार दिया. पुलिसवाले ना होते तो तिवारी साहब एकाध हड्डी तुड़वा कर घर लौटते. हैरत इस बात पर है कि बीजेपी के मुकाबले विनम्र दिखने वाली पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल भी इस तमाशे को देखते रहे.
पार्टी और रुझान से ऊपर उठकर देखने पर अहसास होता है कि भारतीय राजनीति का चेहरा कितना बदल गया है. अब एक-दूसरे का विरोध शाब्दिक नहीं होता, पहलवानी से हो रहा है. पारस्परिक प्रतिद्वंद्विता निजी खुन्नस में बदल गई हैं. ये हमारे वोटों से चुने हुए नेता हैं जिनका सार्वजनिक व्यवहार हमारे घर के शैतान बच्चों से भी ज़्यादा बचपने भरा है. इनमें से एक वो मनोज तिवारी हैं जो कला के क्षेत्र में देश ही नहीं विदेश तक में जाने जाते हैं, सांसद के तौर पर देश की राजधानी से चुने गए हैं और जिस शहर से देश चल रहा है वहां से अपनी पार्टी के मुखिया हैं, दूसरी तरफ वो अमानतुल्लाह हैं जो देश की राजधानी का प्रशासन देखने वाली पार्टी की तरफ से विधायक हैं. इससे पहले वो रामविलास पासवान की पार्टी से भी चुनाव लड़े थे.
दिल्ली के लोग इन ‘सियासी पहलवानों’ की वो फुटेज बार-बार देखें जिसमें ये अपने शारीरिक बल का शानदार प्रदर्शन कर रहे हैं. कम से कम एक नागरिक होने के नाते मैं चाहूंगा कि आगामी चुनाव में इन दोनों हिंसक और जामे से बाहर नेताओं को हराकर किसी और को मौका देना चाहिए. किसी ऐसे को जिताया जाए जो कम से कम सार्वजनिक तौर पर बात करना और व्यवहार करना जानता हो. उसे लोकतंत्र में विरोध करने का सलीका सिखाना ना पड़े. जैसा बर्ताव आप अपने बच्चों से अपेक्षित नहीं रखते वैसा व्यवहार करनेवाले लोगों को भविष्य सौंप देना सिर्फ आपकी अपरिपक्वता दिखाएगा. ऐसे सारे नेताओं को झाड़ू से बुहारकर संसदों और विधानसभाओं से बाहर निकाल फेंकना चाहिए.
नितिन ठाकुर
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