लखनऊ। लखनऊ स्थित बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर केन्द्रीय विश्वविद्यालय(बीबीएयू) की प्रवेश परीक्षा में एमफिल इतिहास के टॉपर बसंत कन्नौजिया विश्वविद्यालय प्रशासन ने दाखिला नहीं दिया. बसंत कन्नौजिया के अलावा जयवीर सिंह और अश्वनी रंजन को भी दाखिला देने से प्रशासन ने मना कर दिया था.
प्रवेश परीक्षा में टॉपर होने और अच्छे नंबर लाने के बावजूद भी बीबीएयू प्रशासन ने इन दलित छात्रों को दाखिला नहीं दिया. प्रशासन की इस मनमानी का दलित छात्रों ने विरोध किया और इसके बाद बसंत कन्नौजिया ने राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग, राष्ट्रपति, मानव संसाधन विकास मंत्री और विश्वविद्यालय के बोर्ड ऑफ़ मैनजमेंट के सदस्य, सांसद अंजू बाला और धर्मेन्द्र यादव को भी प्रवेश दिलाने के लिए प्रार्थना पत्र दिया. लेकिन किसी ने भी इन छात्रों की गुहार का संज्ञान नहीं लिया.
अंतिम में बहुजन छात्रों ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. जहां उच्च न्यायालय के जज राजन राय ने छात्रों के शैक्षिक अधिकार को देखते हुए फैसला छात्रों के पक्ष में सुनाया. विश्वविद्यालय प्रशासन को उक्त छात्रों के तत्काल दाखिला देने का आदेश दिया.
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हाईकोर्ट में बहुजन छात्रों की जीत यह दर्शाती है कि विश्वविद्यालय प्रशासन सिर्फ बहुजन छात्रों का भविष्य बर्बाद करने के लिए सारे हथकंडे अपना रहा है. बसंत कनौजिया ने कहा कि अपने अधिकारों के लिए संवैधानिक दायरे में रहकर अपनी आवाज उठाते रहेंगे. हम भारतीय संविधान को अपना धर्म समझते हैं, इसिलए मैं मरते दम तक संविधानो के नियमों का पालन करता रहूंगा.
इस जीत के बाद बसंत कन्नौजिया ने बहुजन विरोधी प्रशासन को कहा कि सत्य को परेशान कर सकते हो, लेकिन सत्य को पराजित नहीं कर सकते. बसंत कन्नौजिया अम्बेडकर यूनिवर्सिटी दलित स्टूडेंट्स यूनियन (AUDSU) के सक्रिय सदस्य भी है. AUDSU ने जीत पर बसंत कन्नौजिया को बधाई दी और इसे बहुजन छात्रों की जीत बताया. AUDSU ने बीबीएयू प्रशासन पर तंज कसा और कहा कि बीबीएयू प्रशासन आपकी जय हो जो अराजक तत्वों को पनाह दे रहे हैं और पढ़ने वाले छात्रों को अराजक बताकर उनका भविष्य बर्बाद कर रहे हो.
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