अब हार्वर्ड युनिवर्सिटी में जातिवाद बैन, अंबेडकरवादियों की बड़ी जीत

अमेरिका के सिएटल शहर में जाति आधारित भेदभाव बैन होने के बाद अब दूसरी खबर हार्वर्ड युनिवर्सिटी से आई है। अमेरिका के बोस्टन में स्थित दुनिया की शानदार युनिवर्सिटी में से एक हार्वर्ड युनिवर्सिटी ने भी अपने नॉन डिस्क्रीमिनेशन पॉलिसी में जाति को भी शामिल कर लिया है। यह एक सितंबर 2023 से लागू होगा। जब दुनिया भर में फैले अंबेडकरवादी बाबासाहेब अंबडेकर की जयंती की तैयारियों में जुटे हैं, उसके ठीक पहले आई इस खबर से अंबेडकरवादियों में खासा उत्साह है।

इसकी घोषणा करते हुए हार्वर्ड युनिवर्सिटी ने कहा है कि हार्वर्ड युनिवर्सिटी शिक्षा और रोजगार में सभी को समान मौका देने के लिए कमिटेड है। इसके साथ ही पहले से ही 14 तरह के भेदभाव को अपनी नॉन डिस्क्रीमिनेशन पॉलिसी में शामिल करने वाली हार्वर्ड युनिवर्सिटी ने इसमें कॉस्ट यानी जाति को भी जोड़ लिया है। इस लड़ाई को लड़ने वाले तमाम संस्थाओं में से एक अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर ने इस जानकारी को साझा किया। इस घोषणा के बाद दुनिया भर के अंबेडकरवादियों में खुशी की लहर है। जिस तरह से जाति आधारित भेदभाव को अब दुनिया भर में समझा जाने लगा है, वह सालों से इसके लिए लड़ रहे अंबेडकरवादियों की जीत है।

खासकर अमेरिका में 23 युनिवर्सिटी में जाति को लेकर कानून बन चुका है। आज ही के दिन अमेरिका के कैलिफोर्निया राज्य में डेमोक्रेटिक पार्टी की सांसद आयशा वहाब ने सीनेट में कास्ट डिसक्रिमिनेशन को अवैध घोषित करने का विधेयक पेश किया है। यदि यह कानून पारित हो जाता है तो कैलिफोर्निया कॉस्ट डिस्क्रिमिनेशन के खिलाफ कानून बनाने वाला पहला राज्य बन जाएगा।

दरअसल भारत से बाहर पहले सवर्ण समाज के लोग पहुंचे। लेकिन दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में पहुंचने के बाद भी उन्होंने न तो अपना जातीय दंभ छोड़ा और न ही अपनी स्वघोषित श्रेष्ठता को किनारे रखा। हालांकि विदेशी धरती पर उनकी स्वघोषित श्रेष्ठता को किसी ने भी भाव नहीं दिया। लेकिन सालों बाद जब वंचित तबके के लोग विदेशों का रुख करने लगें, भारत के जातिवादियों को विदेशी धरती पर भी खुद को श्रेष्ठ समझने की सोई हुई चाह दुबारा जाग उठी।

जाहिर है, वो पहले से वहां मौजूद थे, और शोषित-वंचित तबके के लोग अपनी जमीन तलाशने को संघर्ष कर रहे थे। ऐसे में विदेशी धरती पर पहुंचे शोषित समाज के लोगों को विदेशी धरती पर अपने भारतीय भाई नहीं बल्कि श्रेष्ठता बोध में सने ज्यादातर वही लोग मिले, जो ब्राह्मण, बनिया और ठाकुर होने के दंभ से भरे थे और जिन्होंने भारत में शोषित तबको के शोषण का कोई मौका नहीं छोड़ा था। दलितों को लग गया कि विदेशी धरती पर जब भी वो भारतीय जातिवादियों से टकराएंगे, उन्हें समान मौका नहीं मिलेगा।

सालों तक इसके खिलाफ संघर्ष करने और वंचित समाज के स्कॉलर्स द्वारा लगातार तमाम विदेशी मंचों पर इसका जिक्र करने के बाद आखिर दुनिया भी भारत की जाति संरचना को समझने लगी। उन्हें समझ में आ गया कि भारत में किस तरह जाति के आधार पर शोषितों के साथ भेदभाव होता है। आखिरकार अंबेडकरवादियों का संघर्ष रंग लाया और अमेरिकी शहर सिएटल के बाद हार्वर्ड युनिवर्सिटी ने भी जातिवाद की सच्चाई को समझते हुए जाति को नॉन डिस्क्रीमिनेशन पॉलिसी में शामिल कर लिया है। हालांकि जातिवाद के खिलाफ यह लड़ाई यहीं खत्म नहीं होती। लड़ाई जारी रहेगी, जब तक दुनिया भर में जातिवाद को अपराध नहीं मान लिया जाता। या दुनिया भर से जातिवाद खत्म नहीं हो जाता।

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