राजस्थान के पहले दलित मुख्यमंत्री जगन्नाथ पहाड़िया का निधन

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 राजस्थान के पहले दलित मुख्यमंत्री और कद्दावर कांग्रेस नेता जगन्नाथ पहाड़िया का 19 मई को निधन हो गया। वे 89 साल के थे। उनके निधन पर प्रधानमंत्री मोदी, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सहित तमाम नेताओं ने शोक प्रकट किया है। राजस्थान सरकार द्वारा उनके निधन पर एक दिन का राजकीय शोक घोषित किया गया है। इस दौरान प्रदेश के सरकारी इमारतों पर राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका रहेगा।

उनका जन्म 15 जनवरी 1932 को राजस्थान के भरतपुर में एक दलित परिवार में हुआ था। वे 6 जून 1980 से 14 जुलाई 1981 तक 13 महीने राजस्थान के मुख्यमंत्री रहें। वो सन् 1957 में सबसे कम उम्र के सांसद बने थे। जब वे सांसद चुने गए तब उनकी उम्र सिर्फ 25 साल और तीन महीने थी। पंडित नेहरू ने दिल्ली में उनसे हुई पहली मुलाकात के बाद उनसे प्रभावित होकर उन्हें कांग्रेस का टिकट दिया था। इसके अलावा इंदिरा गांधी की सरकार में बतौर मंत्री उनके पास वित्त, उद्योग, श्रम एवं कृषि जैसे विभाग रहें। वे 1989 से 1990 तक एक साल के लिए बिहार और 2009 से 2014 तक हरियाणा के राज्यपाल रहें। जगन्नाथ पहाड़िया एक कद्दावर जननेता थे। वे 1957, 1967, 1971 और 1980 में सांसद रहे। जबकि बाद के दिनों में कई बार विधायक भी बनें। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने उनके निधन पर ट्विट कर उन्हें श्रद्धांजलि दी। पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ पहाड़िया कोरोना से पीड़ित थे और दिल्ली के एक अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था। गौरतलब है कि उनकी पत्नी भी इलाज के लिए दिल्ली के अस्पताल में भर्ती हैं।

पीएम केयर फंड से खरीदा गया वेंटिलेटर पड़ा बेदम

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 जब देश में लोगों को स्वास्थ्य सुविधाओं की सबसे ज्यादा जरूरत है, अस्पतालों और स्वास्थ्य सुविधाओं की खस्ता हालत ने हमारे कथित महान भारत देश की कलई खोल कर रख दी है। विदेशों में अगर भारत के स्वास्थ्य सुविधाओं का माखौल उड़ रहा है तो इसकी वजह खुद हमारे देश का सिस्टम है जो बेईमानी के गर्त में डूबा हुआ है। पीएम केयर फंड से खरीदे गए वेंटिलेटर में भी सिस्टम की लापरवाही खुल कर सामने आई है। दैनिक भास्कर में प्रकाशित खबर के मुताबिक कहीं ऑक्सीजन प्रेशर, तो कहीं एक फ्यूज के चलते पीएम केयर वेंटिलेटर बेदम परे हैं।

 जब पीएम केयर फंड को लेकर हंगामा मचा तो पिछले साल सरकार ने इस फंड से हजारों वेंटिलेटर खरीदे। 12 मार्च को लोकसभा में दिये गए एक सवाल के जवाब में सरकार ने बताया था कि 1850 करोड़ रुपये से 38,867 वेंटिलेटर्स राज्यों को भेजे गए। इसमें से 35,269 वेंटिलेटर्स के इंस्टाल होने की बात कही गई थी। सबसे ज्यादा वेंटिलेटर सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी भारत इलेक्ट्रानिक्स से खरीदा गया था जबकि इसके अलावा AMTZ, नोएडा की अग्वा हेल्थकेयर, गुजरात की ज्योति CNC और एलाइड मेडिकल से भी वेंटिलेटर खरीदे गए थे।

 लेकिन कोरोना महामारी के बीच लोगों को जिंदगी देने के लिए राज्यों को पीएम केयर फंड से दिये गए ज्यादातर वेंटिलेटर किसी काम के नहीं हैं। भास्कर की खबर के मुताबिक कहीं वेंटिलेटर में पर्याप्त ऑक्सीजन न पहुंचने तो कहीं चलते-चलते बंद होने की शिकायतें आ रही हैं। कंपनियों ने वेंटिलेटर तो सप्लाई किए लेकिन कई जगह इन्हें इस्टॉल करने की जगह सिर्फ असेम्बल करके रख दिया गया।

कई राज्यों में वेंटिलेटर लगाने के लिए लोकेशन तैयार नहीं थी। तो कई जगहों पर ऑक्सीजन पाइप से जोड़ने वाले कनेक्टर नहीं थे। डॉक्टरों और तकनीकी स्टॉफ का कहना है कि कई जगहों पर न तो समय से ऑक्सीजन सेंसर और फ्यूज कनेक्टर जैसे स्पेयर पार्ट्स् मिल रहे हैं और न सर्विस हो पा रही है। जिस कारण ये बेकार परे हैं, लेकिन इस लापरवाही के जिम्मेदार व्यवस्था में लगे अन्य लोग भी हैं। जब अस्पतालों तक वेंटिलेटर पहुंचा तो संक्रमण कम था, इस वजह से डॉक्टरों ने रुचि नहीं ली। तो कई जगहों पर महज पांच रुपये का फ्यूज उड़ जाने के कारण वेंटिलेटर को कबाड़ में रख दिया गया।

 लगातार शिकायतें आने के बाद सरकार ने इस बारे में जांच के आदेश दे दिये हैं। लेकिन जमीन पर जिस तरह देश की जनता वेंटिलेटर की कमी से दम तोड़ रही है, उसमें सरकार से लेकर वेंटिलेटर मुहैया करवाने वाली कंपनियां और अस्पताल प्रशासन सभी सवालों के घेरे में हैं। सवाल है कि हमारे देश की व्यवस्था समय पर दुरुस्त क्यों नहीं मिल पाती। ये करना यह देश कब सिखेगा??

रेलवे में अप्रेंटिस के निकली हजारों पद पर भर्ती

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 रेलवे रिक्रूटमेंट सेल मुंबई ने वर्ष 2021-22 के लिए अप्रैंटिस के लिए 3591 पदों पर भर्ती निकालते हुए आवेदन मांगा है। नौकरी की चाहत रखने वाले अभ्यर्थी रेलवे रिक्रूटमेंट सेल की ऑफिशियल वेबसाइट rrc-wr.com पर जाकर ऑनलाइन आवेदन पत्र भरकर जमा कर सकते हैं। इस भर्ती प्रकिया के तहत विभिन्न विभागों में इलेक्ट्रीशियन, कारपेंटर, इलेक्ट्रॉनिक मैकेनिक, पेंटर, पाइप फिटर, प्लंबर, ड्राफ्ट्समैन, पासा, वेल्डर, डीजल मैकेनिक समेत कई पदों पर भर्ती होनी है। इसकी आवेदन प्रक्रिया 25 मई 2021 से शुरू होगी। आवेदन करने की अंतिम तारीख 24 जून 2021 है।

अगर वैकेंसी डिटेल्स की बात करें तो मुंबई डिवीजन में- 738 पोस्ट, वडोदरा डिविजन में– 489 पोस्ट, अहमदाबाद डिविजन में– 611 पोस्ट, रतलाम डिविजन में– 434 पोस्ट, राजकोट डिविजन में– 176 पोस्ट, भावनगर डिविजन में- 210 पोस्ट, लोअर परेल डब्लयू/शॉप में– 396 पोस्ट, महालक्ष्मी डब्लयू/शॉप में– 64 पोस्ट के अलावा भावनगर डब्लयू/शॉप में– 73 पोस्ट, दाहोद डब्लयू/ शॉप में-187 पोस्ट, प्रताप नगर डब्लयू/ शॉप वडोदरा में– 45 पोस्ट, साबरमती इंजीनियरिंग डब्लयू/ शॉप, अहमदाबाद में– 60 पोस्ट, साबरमती इंजीनियरिंग सिग्नल डब्लयू/शॉप, अहमदाबाद में– 25 पोस्ट और हेडक्वार्ट्स कार्यालय में– 83 पदों पर भर्ती निकली है।

उम्र सीमा और योग्यता जहां तक उम्र सीमा और योग्यता की बात है तो उम्मीदवारों की आयु 15 वर्ष से कम और 24 वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए। और उम्मीदवारों को मान्यता प्राप्त बोर्ड से न्यूनतम 50% अंकों के साथ मैट्रिक या दसवीं कक्षा उत्तीर्ण होना जरूरी है।

आवेदन शुल्क की बात करें तो सामान्य जाति के उम्मीदवारों को 100 रुपये आवेदन शुल्क जमा करना होगा। जबकि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/ पीडब्ल्यूडी और महिला आवेदकों को आवेदन शुल्क के भुगतान से छूट दी गई है।

योग्य उम्मीदवार का चयन मेरिट सूची के आधार पर किया जाएगा जो कि प्राप्त अंकों के प्रतिशत के औसत पर आधारित होगा। उम्मीदवार के 10वीं क्लास और आईटीआई में प्राप्त अंकों के आधार पर मेरिट लिस्ट तैयार की जाएगी।

अपने ही सरकार पर भड़के भाजपा एमएलए

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 उत्तर प्रदेश से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के विधायक राकेश राठौर ने अपनी ही पार्टी की सरकार की एक बार फिर से आलोचना की है। हालांकि योगी सरकार पर चुटकी लेते हुए उन्होंने यह भी कहा है कि वह बहुत अधिक कहने से डरते हैं क्योंकि इससे उनके खिलाफ देशद्रोह का आरोप लग सकता है। राठौर ने यह भी आरोप लगाया कि यूपी सरकार के कामकाज में विधायकों की कोई भूमिका नहीं है और उनके सुझावों पर ध्यान नहीं दिया जाता है। राठौर सीतापुर से विधायक हैं।

 उन्होंने कहा, ‘मैंने कई कदम उठाए हैं, लेकिन विधायकों की हैसियत क्या है? अगर मैं ज्यादा बोलता हूं तो मुझ पर देशद्रोह का आरोप लग सकता है।’ राठौर सीतापुर में एक सरकारी ट्रॉमा सेंटर के बारे में पूछे गए एक सवाल का जवाब दे रहे थे, जिसका निर्माण तो हुआ लेकिन अभी तक चालू नहीं हुआ है।

यह पूछे जाने पर कि क्या वह कह रहे हैं कि विधायकों का सरकार में कोई अधिकार नहीं है, राठौर ने कहा, ‘क्या आपको लगता है कि विधायक अपने मन की बात कह सकते हैं? आप जानते हैं कि मैंने पहले भी सवाल उठाए हैं।’ यह पहली बार नहीं है जब राठौर ने उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ प्रशासन या केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार से खुले तौर पर असहमत और आलोचना की है। पिछले साल अप्रैल में कथित तौर पर उनकी विशेषता वाली एक ऑडियो क्लिप वायरल होने के बाद उन्हें भाजपा द्वारा नोटिस दिया गया था। इस ऑडियो में उन्होंने कहा था कि ‘क्या आप ताली बजाकर कोरोना वायरस भगा दोगे?

डॉ. शाहिद जमील ने छोड़ी राष्ट्रीय टॉस्क फोर्स, कोरोना रोकथाम पर घेरे में सरकार

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 जीनोम सीक्वेसिंग को लेकर राष्ट्रीय टास्क फोर्स के अध्यक्ष डॉ. शाहिद जमील ने अपनी जिम्मेदारियों से इस्तीफा दे दिया है। हालांकि इसके पीछे के कारण अब तक सामने नहीं आए हैं, लेकिन सोशल मीडिया से लेकर स्वास्थ्य और राजनीति के क्षेत्र में काफी विवाद शुरू हो चुका है। स्वास्थ्य मंत्रालय से जुड़े सूत्रों का कहना है कि कोरोना वायरस की जीनोम सीक्वेसिंग को लेकर डॉ. जमील संतुष्ट नहीं थे। उन्होंने इस बारे में कई बार सलाह भी दी लेकिन किसी ने सुनवाई नहीं की। इसके अलावा उन्होंने जीनोम सीक्वेसिंग को लेकर सरकार की नीतियों पर भी नाराजगी व्यक्त की थी।

 केंद्र सरकार ने पिछले वर्ष जीनोमिक्स कंसोर्टिया के वैज्ञानिक सलाहकार समूह (इनसाकाँग) का गठन करके उसे 10 प्रयोगशालाएं सौंप दी ताकि कोरोना के वेरियेंट्स पर विस्तृत और सटीक अध्ययन किया जा सके। इसे लेकर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने ट्वीट किया, देश के सर्वोत्तम विषाणु वैज्ञानिक डॉ. शाहिद जमील का इस्तीफा वाकई दुखद है। मोदी सरकार में वैसे प्रोफेशनल्स की कोई जगह नहीं है जो बिना डर या पक्षपात के बेबाक राय रखते हैं। हालांकि एक सच यह भी है कि कोरोना को लेकर प्रधानमंत्री मोदी की सरकार अब तक 15 राष्ट्रीय स्तर की टीम गठित कर चुकी है, जिनमें सबसे पहले अप्रैल 2020 में डॉ. गगनदीप कंग का इस्तीफा हुआ था। इससे पहले मणिपाल इस्टीट्यूट ऑफ वॉयरोलॉजी के प्रो. अरुण कुमार ने भी इस्तीफा दिया है। और अब राष्ट्रीय टॉस्क फोर्स के अध्यक्ष ड. शाहिद जमील ने अपना इस्तीफा दे दिया है।

नारदा स्कैमः क्या भाजपा में होना हर घोटाले से बचने का प्रमाण पत्र है?

 लगता है भाजपा और उसके शीर्ष नेता देश की हर संस्था को अपने हिसाब से नचाने में रिकार्ड बनाकर ही दम लेंगे। पश्चिम बंगाल में नारदा स्टिंग मामले में ममता बनर्जी सरकार के दो मंत्रियों समेत चार नेताओं को जिस तरह कोलकाता की प्रेसिडेंसी जेल भेज दिया गया है, उससे तो यही लगता है। जेल जाने वालों में ममता बनर्जी की सरकार में मंत्री सुब्रत मुखर्जी और फ़िरहाद हकीम के अलावा टीएमसी विधायक मदन मित्रा और पार्टी के पूर्व नेता शोभन चटर्जी शामिल हैं। सोमवार 17 मई को सीबीआई इन नेताओं को उनके घरों से पूछताछ के लिए अपने दफ़्तर लेकर आई, जहाँ उनको गिरफ़्तार कर लिया गया, और उन्हें रात को जेल भेज दिया गया। इस बीच में खेल यह हुआ कि सीबीआई की विशेष अदालत ने चारों नेताओं को अंतरिम ज़मानत दे दी थी मगर रात को कलकत्ता हाई कोर्ट ने इस फ़ैसले पर रोक लगा दिया और अभियुक्तों को अगले आदेश तक न्यायिक हिरासत में भेजे जाने का निर्देश दिया। इस बीच मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी सीबीआई के दफ़्तर गईं और वहाँ कई घंटे रहीं और राजनीतिक साजिश बताते हुए विरोध दर्ज कराया था।इस पूरे मामले में बड़ा सवाल मुकुल रॉय और शुभेंदु अधिकारी की गिरफ्तारी नहीं होने को लेकर उठ रहे हैं, क्योंकि ये दोनों भी नारदा स्टिंग ऑपरेशन में अभियुक्त हैं लेकिन सीबीआई द्वारा उन्हें गिरफ़्तार नहीं किया गया है। ये दोनों नेता इस स्टिंग ऑपरेशन के दौरान तृणमूल कांग्रेस के सदस्य थे लेकिन बाद में वो बीजेपी में शामिल हो गए। फिलहाल शुभेन्दु अधिकारी विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं जबकि मुकुल रॉय विधायक। यह साफ देखा जा सकता है कि इन दोनों नेताओं को सिर्फ भाजपा का दामन थामने का लाभ मिल रहा है। भाजपा में गए इन दोनों नेताओं के ऊपर मुकदमा चलाने की अनुमति अभी तक सीबीआई को नहीं मिली है। जहां शुभेन्दु अधिकारी का मामला राज्यपाल के पास अटका है, वहीं भाजपा के वरिष्ठ नेता मुकुल रॉय के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति के लिए सीबीआई की ओर से आवेदन ही नहीं किया गया है। जबकि सीबीआई द्वारा 6 अप्रैल 2019 को लोकसभा अध्यक्ष को भेजे गए रिपोर्ट के अनुसार अधिकारी सहित 11 अन्य लोग इस मामले के आरोपी हैं।

यहां तक कि साल 2014 में नारदा स्टिंग करने वाले नारदा न्यूज पोर्टल के पत्रकार मैथ्यू सैमुएल ने भी इन दोनों की गिरफ्तारी नहीं होने पर सवाल उठाया है। इस स्टिंग में तृणमूल कांग्रेस के मंत्री, सांसद और विधायक कैमरे पर काल्पनिक कंपनियों को मदद पहुँचाने के लिए मदद देते देखे गए थे, जिसके बाद हंगामा मच गया था। जांच एजेंसी की प्राथमिकी में मुकुल रॉय को पहला आरोपी बनाया गया था, जिसके कुछ सालों बाद मामला जोर पकड़ने पर मुकुल रॉय ने 2017 में भाजपा का दामन थाम लिया था।

तृणमूल कांग्रेस छोड़ भाजपा में गए मुकुल रॉय और शुभेन्दु अधिकारी

इस पूरे मामले ने फिर से साबित किया है कि सीबीआई और राज्यपाल सत्ताधारी दल के एक हथियार हैं, जिसे वह अपने मतलब से चलाती रहती है। क्योंकि जब एक ही आरोप में तृणमूल के नेता जेल में हैं तो फिर तृणमूल छोड़ भाजपा जाने वाले नेता जेल से बाहर क्यों हैं?? क्या भाजपा में होना हर आरोप, हर घोटाले से बचने का प्रमाण पत्र है।

कोरोना के इस जनसंहार के दौर के जिम्मेदार नरेंद्र मोदी ही हैं

चाहे जितनी लागलपेट की बात करो, कितना भी घुमाओ, भटकाओ, कितना भी सच को दबाओ, छिपाओ, लेकिन कोरोना के इस जनसंहार के दौर के जिम्मेदार नरेंद्र मोदी ही हैं। दुनिया में जब सब कुछ स्थगित हो रहा था, भारत में भी कुंभ मेले का आयोजन, राज्यों के चुनाव और आई पी एल के मैच भी स्थगित किए जा सकते थे। इनके कारण ही कोरोना ने विकराल रूप ग्रहण किया। मोदी जी की सत्ता की जबरदस्त भूख और उसके लिए कुछ भी कर गुजरने के दुस्साहस ने देश को मौत के मुंह में धकेल दिया। आज देश श्मशान में तब्दील हो गया है। और कितने लाख लोगों की जान लेकर आपकी महत्वाकांक्षा शांत होगी मोदी जी?
आप मौनी बाबा नहीं हैं,कि कुछ नहीं बोल सकते, आप बहुत वाचाल हैं। जब सारी दुनिया और भारत की जनता कोरोना के खिलाफ लड़ रही थी, आपने राम के अवतारी बनकर भारत को कोरोना से मुक्त होने की घोषणा कर दी। आपके अंध भक्तों ने ‘मोदी है तो मुमकिन है’, का उद्घोष कर आपको विश्व गुरु बना दिया। यह सब आपने मुदित मन से स्वीकार किया। इस सब के कारण दुनिया भर में आपकी जो जग हँसायी और थू-थू हुई है सो हुई है, भारत की छवि को भी जबरदस्त धक्का लगा है। इतना बढ़ चढ़कर बोलने वाले मोदी जी आज चुप क्यों हैं? आज भी क्यों नहीं अपना मुंह खोलते और देश की जनता को संबोधित कर कोरोना के कारण हो रहे इस जन संहार की जिम्मेदारी स्वीकार करते हुए इसके लिए देश से माफी मांगते। आप देश के नायक हैं, आगे आइये। नायक श्रेय लेने के लिए ही नहीं होता, जिम्मेदारी और जवाबदेही के लिए भी होता है।

इंसान गढ़ने वाले महान कलाकार-जनशिक्षक का नाम था: लालबहादुर वर्मा

जो कोई थोड़ा भी नजदीक से या उनके चाहने वालों के जुबानी लालबहादुर वर्मा को जनता रहा होगा, वह उनके बारे में दावे से कह सकता है कि वो इंसान गढ़ने वाले एक महान कलाकार और जनशिक्षक थे। उन्होंने एक नहीं, दो नहीं,… सौ नहीं हजारों इंसान गढ़े हैं, जो आज भी आंखों में खूबसूरत दुनिया का ख्वाब लिए अपने-अपने तरीके से बेहतर दुनिया बनाने की कोशिश में लगे हुए हैं। ये उत्तर भारत हर कहीं, मिल जाते हैं। उन्होंने सैकड़ो पेशेवर क्रांतिकारी गढ़े, उन्होंने सैकड़ों जमीन एक्टिविस्ट गढ़े, उन्होंने नाटकार गढ़े, गीतकार गढ़े और कवि-लेखक गढ़े।
सबसे बड़ी बात यह कि उन्होंने लड़कियों-महिलाओं की एक पूरी पीढ़ी तैयार की, जो अपने-अपने तरीके से बेहतर दुनिया गढ़ रही हैं और साथ ही पितृसत्ता को चुनौती दे रही हैं। उनमें से बहुत सारी आज भी बेहतर दुनिया के लिए लड़ रही है, कुछ जेल की सलाखों के पीछे वर्षों गुजार चुकी हैं, लेकिन क्रांतिकारी परिवर्तन का उनका सपना अभी भी जिंदा है।
लालबहादुर वर्मा के आंखों में न्याय, समता, बंधुता और सबकी समान समृद्धि पर आधारित समाज का एक ख्वाब था, कभी इसे वे समाजवाद के नाम पर परिभाषित करते थे, कभी कोई और नाम दिया, लेकिन सपना वही था।लाल बहादुर वर्मा अच्छी तरह जानते थे कि बेहतर दुनिया बेहतर इंसान बनाते हैं, इसीलिए वे आजीवन बेहतर इंसान गढ़ने में लगे रहे है। अनवरत रात-दिन- अहर्निष। उन्होंने कितनों को बेहतर इंसान बनाया, अंगुलियों पर इसकी गणना करना मुश्किल है।
 
 लालबहुदार वर्मा प्रोफेसर थे, इतिहासकार थे, भंगिमा और इतिहासबोध जैसी जनपक्षधर पत्रिकाओं के संपादक थे, अनुवादक थे, यह उनके लिए बहुत कम मायने रखता था, मेरे लिए भी उनके संदर्भ में यह सब बाते बहुत कम मायने रखती हैं। प्रोफेसर तो आजकल हर शहर में मिल जाते हैं, इतिहासकारों की संख्या भी कम नहीं है, संपादक भी बहुतेरे हैं, अनुवादकों की भी भरमार है। यह सब वर्मा जी के संदर्भ में बहुत कम मायने रखता है, उनके लिए भी बहुत कम मायने रखता था।
लालबहादुर वर्मा हमारे समय के एक महान व्यक्तित्व थे, इसकी मूल वजह है, उनका प्रोफेसर होना, इतिहासकार होना,संपादक होना या लेखक होना नहीं है, इसकी मूल वजह है अंतिम सांस तक खूबसूरत दुनिया के सपने को आंखों में सजोए रखना और उस दुनिया के निर्माण के लिए अपना सबकुछ समर्पित कर देना और उसके लिए अंसख्य इंसानों को गढ़ने में लगे रहना। ऐसे व्यक्तित्व या महान कलाकार के निर्माण के लिए कुछ तत्व आवश्यक हैं- गहरे स्तर की संवेदनशीलता, लोकतांत्रिक मानस और वैज्ञानिक टेंपरामेंट। यह सब वर्मा जी में मौजूद था।
उनके घर के दरवाजे सबसे लिए खुले थे, सच तो यह है कि उन्होंने कभी ऐसा घर बनाया ही नहीं, जिसे कहा जा सके कि यह वर्मा जी का निजी घर है। उनका घर सबका घर था। दिमाग से इतने लोकतांत्रिक यदि कोई बताए न, तो यह किसी को पता न चल पाए कि वह प्रोफेसर हैं, इतिहासकार हैं, साहित्यकार, बड़े लेखक हैं और फ्रांस से पढ़कर आए हैं।
लाल बहादुर वर्मा सच्चे अर्थे में आज के समय में ग्राम्शी के आर्गेनिक जपक्षधर बुद्धिजीवी थे। नुक्कड़ नाटकों की टीम के बीच, सड़कों पर, आम लोगों के बीच उनके जीवन का बड़ा हिस्सा बीता। जितनी उनमें मेधा थी, उतनी ही जनपक्षधरता। वर्मा जी के लिए लोकतांत्रिक दिमाग, सबको समान समझना, वैज्ञानिक चेतना और इतिहास बोध यह सब किताबी बातें नहीं थीं, न कैरियर बनाने की सीढ़ी, न रोब गांठने का माध्यम। यह सबकुछ वे जीते थे, व्यवहार में। अमल में उतारते थे।
जब वे गोरखपुर में थे, उन्होंने अपने घर को गोरखपुर की क्रांतिकारी-प्रगतिशील गतिविधियों का केंद्र बना दिया, जब वे इलाहाबाद गए, वहां के अपने घर को केंद्र बना दिया, जब उन्होंने जीवन के अंतिम समय में देहरादून को बसेरा बनाया, तो भी अपने घर को सामाजिक कार्यों का केंद्र बना दिया। अभी हाल में उन्होंने देहरादून में प्रगतिशील किताबों के एक केंद्र का उद्घाटन किया था, जिसके केंद्र वे स्वयं थे। वे जनकथाकार भी थे, वे मार्क्स की कथा को भी उतने ही चाव से सुनाते, जितने चाव से आंबेडकर की कथा को और भगत सिंह की कथा को। वे इतने जनपक्षधर थे कि कुंभ के मेले में भी जनपक्षधर दुनिया के निर्माण के लिए  प्रगतिशील कथा केंद्र खोल देते थे।
एक बात और मेरी जानकारी में जो है, वह यह कि वर्मा जी, हिंदी पट्टी के अधिकांश बुद्धिजीवियों के उन बदत्तर अवगुणों से मुक्त थे, जो आम तौर पर उनमें उनमें पाई जाती है। जैसे जातिवाद, जैसे अवसरवाद, जैसे कैरियरवाद, जैसे आत्ममुग्धता, जैसे ज्ञान का पोर-पोर में भरा अंहकार, जैसे बेटे-बेटी या भाई-बहन को किसी भी शर्त विश्वविद्यालय में घुसा देने की अदम्य इच्छा और जैसे संपत्ति निर्माण को जीवन का ध्येय बना लेना।लालाबहादुर वर्मा जी हिंदी पट्टी के आज के समय के उन चंद विरले लोगों में एक थे, जिन्हें सच्चे अर्थों में जनबुद्धिजीवी कह सकते हैं, जिनकी सारी मेधा, सारी बुद्धि, सारी जानकारी, सारी लेखकीय-संपादकीय शक्ति और जरूरत पड़ने पर सारे संसाधन और उर्जा जन के लिए समर्पित हो।
 जीवन के अंतिम समय तक,जहां तक मैं जानता हूं, वे अपनी आजीविका के लिए खटते रहे। लालबहादुर वर्मा ने खूबसूरत दुनिया बनाने के रास्ते भले ही थोड़ा अदले-बदले हों, लेकिन जीए जिंदगी भर, दुनिया को खूबसूरत बनाने के सपने के साथ जीएं और उन्हीं सपनों के साथ मरे। वर्मा जी उन चंद सौभाग्यशाली लोगों में थे, जिन्हें टूटकर चाहने वालों की संख्या सैकड़ों में नहीं हजारों में है। हजारों लोगों में वर्मा जी किसी न किसी रूप में जीवित हैं। आज वे सभी लोग गमगीन होंगे, अवसाद में डूबे होंगे। उसमें मैं भी शामिल हूं।
लेकिन अंत में एक बात जरूर, वर्मा जी ने  शानदार जिंदगी जीना किसे कहते हैं और शानदार जिंदगी क्या होती है और बड़ा मनुष्य होना, कितना सुखद होता है, इसकी मिसाल कायम की। उन्होंने एक शानदार जिंदगी जी और बहुतों को जिंदगीं किस बला का नाम है, यह बता कर गए और जिंदगी जीने का सलीका सीखा कर गए। हिंदू पट्टी के महान जन शिक्षक को अंतिम अलविदा, आप हमेशा हमारी यादों, संवेदनाओं में और विचारों में जिंदा रहेंगें, आप हमेशा हमारी प्रेरणा बने रहेंगे। हम आपके सपनों को आगे बढ़ाने की भरपूर कोशिश करेंगे।
अंतिम अलविदा!

बसपा समर्थकों का कमाल, ट्विटर पर दिखाया दम

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ऐसे में जब देश भर में सरकारी विफलता की चर्चा जोरो पर है, और अंधभक्तों को छोड़कर देश की ज्यादातर जनता मोदी सरकार को फेल करार दे चुकी है, यह बहस आम है कि आखिर देश को कैसा नेतृत्व चाहिए जो कोरोना जैसे मुश्किल वक्त में चुप्पी साधने की बजाय सामने आकर व्यवस्था को दुरुस्त कर सके। तमाम लोग ऐसे वक्त में बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष बहन कुमारी मायावती के शासनकाल को याद कर रहे हैं।

इसी बीच कुछ दिनों पहले सोशल मीडिया पर एक पोस्टर तेजी से वायरल हुआ, जिसमें 16 मई की शाम को 4 बजे ट्विटर पर #Nation_wants_Behan_Ji ट्रेंड करवाने की अपील की गई। यह मैसेज तेजी से सोशल मीडिया पर घूमने लगा और 16 मई को तो कमाल हो गया। बहुजन समाज पार्टी के समर्थकों ने तय वक्त पर #Nation_wants_Behan_Ji को ट्रेंड करवा दिया। एक लाख से ज्यादा लोगों ने इस स्लोगन को रि-ट्विट किया। ऐसा कर बसपा समर्थकों ने दिखा दिया कि ट्विटर पर भी वो अपनी मर्जी से अपना दम दिखा सकते हैं।

यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि आमतौर पर ट्विटर को देश के संभ्रांत खाए, पीये, अघाए लोगों का केंद्र माना जाता है, लेकिन जिस तरह से यहां भी बहुजनों की धमक बढ़ रही है, वह उत्साहित करने वाली खबर है। यह इसलिए भी मायने रखता है क्योंकि जब बसपा समर्थक #Nation_wants_Behan_Ji को ट्विटर पर ट्रेंड करवाने में जुटे थे, उसी वक्त यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के समर्थक भी उनके समर्थक में हैशटैग चला रहे थे, लेकिन बहनजी के समर्थकों ने उन्हें पछाड़ दिया।

खास बात यह भी रही कि इस दौरान लगातार बसपा समर्थक बसपा शासनकाल में किये गए शानदार कामों को भी प्रचारित करते रहे। उत्तर प्रदेश में अगले साल चुनाव होने हैं और जिस तरह बसपा और उसकी प्रमुख मायावती के समर्थक एकजुट हो रहे हैं, वह बसपा के लिए काफी अच्छा संकेत है।

अखिलेश कृष्ण मोहन: बहुजन पत्रकारिता के विरल रत्न

कल सुबह एक खास लेख लिखने में व्यस्त था। उसका अंतिम वाक्य लिखना शुरू ही किया था कि मोबाइल बज उठा। वह डॉ. कौलेश्वर प्रियदर्शी का कॉल था। अंतिम वाक्य पूरा करना इतना जरुरी लगा कि कॉल रिजेक्ट कर दिया। ज्यों ही लेख पूरा हुआ, मेरे दामाद राजीव रंजन का फोन आ गया। उन्होंने बिना कोई भूमिका बांधे बताया,’ पत्रकार अखिलेश कृष्ण मोहन नहीं रहे! सुनकर स्तब्ध रह गया। मैंने उन्हें कहा कि थोड़ी देर पहले डॉ. प्रियदर्शी का फोन आया था, शायद वह भी यही सूचना देना चाहते थे। इतना कहकर मैं फोन काट दिया। फोन काटने के बाद मैंने रुधे गले से अपने मिसेज को सूचना दी। सुनकर उन्हें भी भारी आघात लगा और ऑंखें भर आयीं। बहू खाना बनाने जा रही थी। मैंने अपने हिस्से का खाना बनाने के लिए मना कर दिया। उसके बाद अखिलेश के बेहद खास डॉ. प्रियदर्शी को फोन लगाया। प्रायः 5 मिनट बात हुई। डॉ. कौलेश्वर ने रुधे गले से कहा कि हमने सामाजिक न्याय की दुनिया का एक बड़ा नायक खो दिया। अखिलेश के नहीं रहने पर ऐसा लगता है बहुजन समाज का कोई अंग ख़त्म हो गया। उनके नहीं रहने पर हमारा फर्ज बनता है कि अब उनके परिवार के विषय में सोचें।

 डॉ. कौलेश्वर से बात करने के बाद लखनऊ में अखिलेश के अभिभावक की भूमिका में दिखने वाले डॉ. लालजी निर्मल को फोन लगाया। उन्होंने जब मेरी कॉल उठाई, मेरे धैर्य का बाँध टूट गया और मैं जोर से रो पड़ा। उन्होंने भरे गले से बताया कि जो ही सुन रहा है, वही रो रहा है। अभी विद्या गौतम का फोन आया था, वह भी बेतहासा रोये जा रही थी। विद्या और अखिलेश ने शुरुआती दौर में साथ- साथ एक चैनल में काम किया था। जब मैंने उनसे आगे के प्रोग्राम के विषय में पूछा तो उन्होंने बताया कि पार्थिव शरीर गाँव जाएगा। वहीं उनका शेष कार्य किया जायेगा। अखिलेश का पार्थिव शरीर गाँव जाना इसलिए जरुरी था, क्योंकि उनकी मां को कल ही ऐसा कुछ होने आभाष हो गया था। अगर आखिरी वक्त में अखिलेश का शरीर गाँव नहीं गया तो घर वालों का दुःख और बढ़ जायेगा। आखिर में उन्होंने कहा कि हमने अपने जीवन के एक महत्वपूर्ण साथी को खो दिया। उनकी भरपाई होनी मुश्किल है। डॉ. निर्मल से बात करने के बाद जब मैंने फेसबुक खोला, देखा अखिलेश के प्रति श्रद्धांजलि की बाढ़ आई हुई है। सब कुछ देख कर दिमाग और सुन्न हो गया और मैंने छोटा सा यह पोस्ट लिखा, ‘अखिलेश कृष्ण मोहन का जाना मेरे लिए कोरोना के दूसरे वेभ की सबसे बड़ी घटनाओं में एक है। मुझे तो ऐसा लगता है मेरा एक अंग ही ख़त्म हो गया। मुश्किल है एक और अखिलेश कृष्ण मोहन का होना। उनके जाने से बहुजन पत्रकारिता की एक विराट संभावना का अंत हो गया।’

 उपरोक्त अंश लिखने के बाद मैं इस लेख को पूरा करने में जुट गया, पर दिमाग सुन्न हो गया था, जिससे कंसेन्ट्रेशन ही नहीं बन पा रहा था। दिन में कुछ खाया नहीं था। इसलिए शाम को जल्दी से खा कर यह सोच कर सो गया कि सुबह तरोताजा होकर लेख पूरा करूँगा। सुबह उठा भी, किन्तु जब फेसबुक पर नजर दौड़ाया मनस्थिति और ख़राब हो गयी। फेसबुक अखिलेश की माँ के निधन की खबरों से भरा पड़ा था। वह अपने प्यारे बेटे की मौत के सदमे को झेल नहीं पायीं और शाम होते ही अखिलेश के साथ अनंत यात्रा पर निकल पड़ीं। उनकी मां के जाने की खबर सुनकर एक बार फिर मैं आंसुओं में डूब गया। उसके बाद भी लेख को पूरा करने के लिए प्रयास किया, पर बिलकुल ही सफल नहीं हुआ। शब्द- शक्ति एकदम से ख़तम सी हो गयी। अंत में फेसबुक पर यह पोस्ट डालकर मैं सरेंडर कर गया– ‘महान पत्रकार अखिलेश कृष्ण मोहन पर आयेगी किताब!

दरअसल उनका व्यक्तित्व और कृतित्व इतना व्यापक है कि लेख के जरिये उनके साथ न्याय करने में खुद को अक्षम पा रहा हूँ। ऐसे में उनपर एक किताब लाने का निर्णय लिया हूँ। अगर कोरोना काल में बचा रहा और प्रेस इत्यादि खुले रहे तो आगामी 6 दिसम्बर बाबासाहेब डॉ आम्बेडकर के परिनिर्वाण दिवस पर वह किताब लोगों के हाथों में होगी!’

इसमें कोई शक नहीं कि अखिलेश कृष्ण मोहन जितने बड़े पत्रकार थे, उतने ही बड़े इन्सान भी थे। इसलिए उनके नहीं रहने पर लोगों ने उनके प्रति जो श्रद्धा उड़ेली, वह विरले ही किसी को नसीब होती है। योगेश योगेश्वर ने विस्मित होकर यूँ नहीं फेसबुक पर लिखा-‘ गज़ब हो गया! इस व्यक्ति के लिए फेसबुक पर इतना लिखा गया है। क्या कमाई की है। नमन श्रद्धांजलि!’ अब जबकि मेरी शब्द-शक्ति जवाब दे चुकी है, मैं फेसबुक पर सैकड़ों की संख्या में आये लोगों के उदगार के मध्य मैं कुछेक ऐसे लोगों की राय से अपने लेख की कमी को पूरा करना चाहता हूँ, जिन्होंने उन्हें ज्यादे करीब से देखा-सुना है।

 शुरुआत प्रख्यात बहुजन चिन्तक चन्द्रभूषण सिंह यादव से करता हूँ, जिन्होंने उनकी तुलना कोहिनूर हीरे से की है। उन्होंने लिखा है-‘ अब तो स्मृतियां ही शेष हैं। “फर्क इंडिया” के सम्पादक साथी अखिलेश कृष्णमोहन जी का न होना बहुजन पत्रकारिता की अपूरणीय क्षति।।……. मैं लिखूं क्या अपने इस पत्रकारिता जगत के कोहिनूर हीरे के बारे में, क्योंकि जब से यह खबर मिली है कि “फर्क इंडिया” के सम्पादक अखिलेश कृष्णमोहन जी हम सबके बीच नहीं रहे, मन उदास है, कुछ कह पाना मुश्किल है क्योंकि लखनऊ रहने पर मिलना, मुद्दों पर बहस करना, नई-नई चीजें बताना, मोटरसाइकिल पर बैठकर एक साथ भिन्न-भिन्न मिशनरी साथियो से मिलना आदि अब किसके साथ होगा?….

 मशहूर पत्रकार उर्मिलेश ने लिखा है,’ लखनऊ से फिर एक बहुत स्तब्धकारी सूचना! सोशल मीडिया से ही पता चला कि ‘फ़र्क इंडिया’ के संपादक अखिलेश कृष्ण मोहन नहीं रहे। लखनऊ स्थित एक बड़े शासकीय अस्पताल में उनका इलाज़ चल रहा था। बेहद सक्रिय इस उत्साही और जनपक्षधर युवा पत्रकार के असामयिक निधन की सूचना से आज मन बहुत खिन्न और उदास है…..

उनके गृह जनपद बस्ती के वीरेंद्र कुमार दहिया का उद्गार है,’कुछ लोगों का जाना सिर्फ एक व्यक्ति का जाना नहीं होता, उनके साथ साथ मिशन, नेकी, अच्छाई, न्याय की लड़ाई के साथ साथ और भी बहुत सी चीजों का जाना होता है….  एक्टिविस्ट पत्रकार सोबरन कबीर ने बहुत भावुक होकर लिखा है,’ भैया।।।। आप भी हम लोगों को छोड़कर चले गए।।।।। निशब्द हूं। कुछ भी कह पाने की स्थिति में नहीं हूं।’

जिस ‘दलित दस्तक’ के जरिये वह बहुजनवादी पत्रकारिता से जुड़े, उसके संपादक अशोक दास ने उन्हें यद्त करते हुए लिखा है,’  साल 2012 में जब “दलित दस्तक” की लॉन्चिंग हो रही थी, एक हमउम्र उत्साही युवा मेरे पास आया। युवक ने अपना परिचय अखिलेश कृष्ण मोहन के रूप में दिया। वो तब दिल्ली के किसी मीडिया संस्थान में काम कर रहे थे….. दिल्ली की मनुवादी मीडिया में जब भाई-भतीजावाद का बोलबाला बढ़ा और बहुजनों का काम करना मुश्किल हो गया तो अखिलेश जी लखनऊ शिफ्ट हो गए। लखनऊ जाने के बाद भी वो लंबे समय तक “दलित दस्तक” के लिए काम करते रहे। संघर्ष के दिनों में जब भी लखनऊ जाना हुआ, ठिकाना उन्ही का घर रहा। वो अपनी बाइक से मुझे हर जगह ले जाते। बाद में उन्होंने “फर्क इंडिया” के नाम से मैगज़ीन निकालनी शुरू की, फिर यूट्यूब भी चलाया। निरंतर सामाजिक न्याय की आवाज़ उठाते रहे। अखिलेश जी OBC (यादव) समाज के उन पत्रकारों में से रहे, जिन्होंने दलितों और पिछड़ों की एकता पर हमेशा विश्वास किया… मुझे “संपादक जी” कहने वाला शख्स आज हमेशा के लिए चला गया…. कल्पना में भी नहीं सोचा था कि कभी आपके बारे में ऐसे लिखना पड़ेगा। ये आपके साथ अच्छा नहीं हुआ। नमन।’

अशोक दास का पूरा संस्मरण यहां पढ़ सकते हैं- सामाजिक न्याय की पत्रकारिता करने वाला संघर्ष का साथी चला गया

अखिलेश कृष्ण मोहन जहाँ हास्पिटल में रहकर कोरोना के खिलाफ जंग लड़ रहे थे, वहीं हास्पिटल से बाहर उनकी ओर से लड़ाई कर रहे थे जुझारू पत्रकार नीरज भाई पटेल। अखिलेश के संघर्ष की विस्तृत जानकारी पटेल के जरिये ही मिली है। उनके पोस्ट को पढ़कर भावुक हुए बिना रहा नहीं जा सकता। उन्होंने लिखा है-‘ एक बार सोचिएगा जरूर इस शख्स के बारे में इतना क्यों लिखा जा रहा है। वजह सिर्फ इतनी है इस इंसान ने संपत्ति नहीं इंसान कमाए हैं। सुबह से सोशल मीडिया पर बहुत कुछ लिखा और कहा जा चुका है।।। अब ज्यादा कुछ कहने की स्थिति में नहीं हूं।।। बस ऐसा लग रहा है जैसे बीतों कुछ दिनों से लड़ी जा रही एक लड़ाई आज सुबह 5 बजकर 15 मिनट पर मैं हार गया। इतना कहूंगा कि मैंने अपना एक खुशमिजाज दोस्त, साथी, मित्र, सहयोगी, बड़ा भाई हमेशा के लिए खो दिया। सोचिए बस्ती जिले के छोटे से गांव परसांव से निकलकर लखनऊ में बिना प्रपंच जाने हुए घाघों के बीच सीमित संसाधनों में स्थापित होकर न सिर्फ जिंदगी भर दबे-कुचले, शोषित तबके की बात करना बल्कि पत्नी, दो बच्चों की जिम्मेदारी उठाकर आत्म सम्मान-स्वाभिमान के साथ जिंदगी जीना व ईमानदारी व बेबाकी से पत्रकारिता करना उनके लिए कितना मुश्किल रहा होगा। सोचा न था कि अखिलेश कृष्ण मोहन भाई ऐसे चले जाएंगे कि दिन में कई-कई बार फोन पर नीरज भाई नमस्ते अब कभी सुन ही नहीं पाउंगा….

इसमें कोई दो राय नही कि मिशन जनमत पत्रिका को शुरूआत कराने में अखिलेश भाई का सबसे बड़ा योगदान है। इसलिए संपादक होने के नाते भारी मन से ये घोषणा करता हूं कि अगले माह के अंक से जिंदगी भर अखिलेश कृष्ण मोहन जी का नाम मिशन जनमत पत्रिका की प्रिंट लाइन में संस्थापक सदस्य के बतौर लिखा जाएगा… 30 अप्रैल की रात SGPGI में एडमिट होने के बाद से लगातार डॉक्टरों से बात करना, अच्छे इलाज के लिए तमाम प्रोफेसर्स से निवेदन करना। हाल पता करके भाभी से बात करना समझाना, हिम्मत बंधाना, झूठा दिलासा देना जैसे दिनचर्या में शामिल हो गया था।।।

ऐसा लगने लगा था कि अखिलेश भाई का संघर्ष अब मेरा संघर्ष है वो जीतकर बाहर आएंगे तो उनके साथ भाभी-बच्चों को देखने में ही मेरी जीत है। अहसास तो 3-4 दिन से होने लगा था कि किसी भी दिन बुरी खबर आ सकती है लेकिन फिर भी झूठी उम्मीद का दिलासा देने के लिए भाभी और उनके छोटे भाई से माफी भी चाहता हूं। 2 मई तक अखिलेश भाई को BI-PAP पर रखा गया। 4-5 मई की देर रात को किसी तरह कोशिश के बाद ICU में शिफ्ट कर दिए गए। इसके बाद उनको वेंटिलेटर पर भेज दिया गया। धीरे-धीरे मल्टीआर्गन फेल्योर, सेप्टिक शॉक, सेपसिस की खबर सुनने को मिल रही थी। भाभी को क्या समझाता बस कह देता था स्थिति अच्छी नहीं है बस उम्मीद बनाए रखिए। दो दिन बाद ही स्थिति ये थी कि उनको कंपलीट वेंटिलेटर सपोर्ट देने के अलावा डायलिसिस भी करना पड़ा लंग्स 70 प्रतिशत तक इंफेक्टिड हो चुके थे लेकिन मन मानने को कतई तैयार नहीं था। डॉक्टर्स अपनी पूरी कोशिश में लगे थे।।। हालांकि 2-3 दिनों से वहां से भी अच्छी खबरें मिलना बंद हो गई थीं।

आखिरकार 13 मई को सुबह संघर्ष विराम की खबर आ गई।।। ईश्वर नाम के अदृश्य जीव से न पहले प्रार्थना की थी न अब करूंगा।।।।मेडिकल साइंस, अच्छे डॉक्टर्स, अच्छे मेडिकल संस्थान पर पहले भी भरोसा था आज भी है। हां इस पोस्ट को पढ़ने वाले मानवों से जरूर अपील करूंगा कि अखिलेश भाई के कामों को लेकर अगर वाकई चिंतित हो तो आगे उनके परिवार व बच्चों के लिए बुरे वक्त में काम आ जाना यही उस नेक दिल के इंसान के लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

उनकी पत्नी रीता कृष्ण मोहन का अकाउंट नंबर-

AC Name- Rita Krishna Mohan AC No- 55148830004 State Bank of India IFSC- SBIN0050826 BRANCH- ALIGANJ, LUCKNOW

इस बुरे वक्त में जो भी साथ खड़ा रहा सभी साथियों व भाईयों का शुक्रिया।।। आप बहुत याद आओगे अखिलेश भाई।।।’

नीरज भाई पटेल ने अखिलेश के परिवार के मदद की जो अपील की है, उसमें उनके चाहने वाले तमाम लोगों की भावना का प्रतिबिम्बन हुआ है। उनके परिवार को मदद मिले, यही उनके चाहने वालों की अंतिम इच्छा है, जिसे सही तरीके से शब्द दिया है चौधरी संदीप यादव ने। उन्होंने मुख्यमंत्री को अपील करते हुए लिखा है- ‘सीनियर पत्रकार जिंदादिल इंसान अखिलेश कृष्ण मोहन आज कोरोना से जंग हार गए! उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री से मेरी माँग है पीड़ित परिवार को 5 करोड़ की आर्थिक सहायता दी जाएं!’ यह भारी संतोष का विषय है कि अखिलेश कृष्ण मोहन के हजारों कद्रदानों की भांति प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उनके शोक संतप्त परिजनों के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त की है।

कोरोना संकट के बीच पीएम मोदी का बेतुका बयान

 प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी काफी दिनों तक गायब रहने के बाद देश की जनता के सामने आए। जब किसान आंदोलन लगातार जारी है और किसान कृषि बिल को वापस लेने की मांग पर अड़े हुए हैं, उन्हें लुभाने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने आज किसान सम्मान निधी की आठवीं किस्त जारी की। कार्यक्रम ऑनलाइन था। अब चूकि पीएम मोदी सामने आए थे, तो निश्चित तौर पर उन्हें कोरोना को लेकर कुछ न कुछ बोलना ही था। क्योंकि अगर वह नहीं बोलते तो सवाल उठता ही। ऐसे में भाषणवीर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने भाषण के दौरान कोरोना को लेकर तमाम बातें कही, जिसमें तीन बातें उल्लेख करना जरूरी है।

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, बीते कुछ समय से जो कष्ट देशवासियों ने सहा, मैं भी उतना ही महसूस कर रहा हूं। उन्होंने कहा कि कुछ लोग दवाओं और जरूरी वस्तुओ की कालाबजारी में लगे हैं, इन पर कठोर कार्रवाई की जाए। पीएम ने यह भी कहा कि भारत और कोई भी भारतवासी हिम्मत नहीं हारेगा, हम लड़ेंगे और जीतेंगे।
भाषणवीर प्रधानमंत्री के इस बयान के आने से ज्यादा बेहतर होता कि वो जैसे अब तक कोरोना के कोहराम के बीच चुप्पी साधे रहे, आज भी अपना मुंह बंद ही रखते, क्योंकि उन्होंने जो कहा, उसने देश के लोगों को और ज्यादा ही निराश किया और उनकी गिरती साख पर एक बट्टा और लगा दिया। साथ ही उनके लोगों और भांड मीडिया द्वारा प्रचारित 56 इंच के सीने को एक बार फिर से छलावा साबित कर दिया।

पीएम मोदी ने कहा कि वो देशवासियों के कष्ट को महसूस कर रहे हैं। सवाल उठता है कि देश की जनता ने मोदी के नाम पर इसलिए वोट नहीं दिया था कि वो उनकी परेशानी महसूस करेंगे, बल्कि निश्चित तौर पर इसलिए दिया था कि वो देश के लोगों की तकलीफों को दूर करेंगे। कालाबजारी पर प्रधानमंत्री मोदी का बयान गोल मोल रहा। जिस गुजरात और मध्यप्रदेश में नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन बनाने की घटना हुई है, उन दोनों राज्यों में भाजपा की सरकार है, जो कहीं न कहीं पीएम मोदी के इशारे पर ही चलती है। केंद्र में भी ‘मोदी राज’ है। ऐसे में उन पर शिकंजा कौन कसेगा??

 जब से कोरोना की दूसरी लहर आई है, देश की सरकार सुन्न सी पर गई है। बल्कि कहीं न कहीं इस दूसरी लहर को बढ़ाने में योगदान ही दिया है। तमाम राज्यों के चुनाव और यूपी के पंचायत चुनाव ने तमाम राज्यों की हालत खराब कर दी है। हाल ही में प्रतिष्ठित आउटलुक मैग्जीन ने अपने कवर पेज पर Missing (लापता) लिखा है, उसने भारत सरकार को मिसिंग बताया है। वर्तमान में देश ऐसे ही हालात में है। ऐसे वक्त में जब देश की जनता को उसकी सरकार की सबसे ज्यादा जरूरत थी, सरकार खामोश खड़ी तमाशा देख रही है। देश किसके भरोसे चल रहा है, किसी को नहीं पता।

दलितों का अपमान करने वाली टीवी अभिनेत्री पर एफआईआर दर्ज

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दलितों का अपमान करने वाली टीवी अभिनेत्री पर एफआईआर दर्ज टेलीविजन जगत की एक सुप्रसिद्ध अभिनेत्री द्वारा भारत के करोड़ों दलितों का अपमान किए जाने की घटना के बाद एक बड़ी खबर आ रही है। पिछले दो दिनों में इलेक्ट्रॉनिक एवं प्रिंट मीडिया सहित सोशल मीडिया पर बड़े पैमाने पर यह मुद्दा चर्चा में बना हुआ था। आज खबर आ रही है कि दलितों का सार्वजनिक रूप से अपमान करने वाली एवं जाति सूचक शब्द का इस्तेमाल करने वाली टीवी कलाकार मुनमुन दत्ता पर एससी एसटी एक्ट के अंतर्गत मामला दर्ज कर लिया गया है। मुनमुन दत्ता ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ टीवी सिरियल में बबीता का किरदार निभाती है।
वायरल वीडियो में अभिनेत्री ने वाल्मीकि समाज के एक ऐसे शब्द का इस्तेमाल किया, जिसे वह समाज अपमानजनक मानता है। इसके बाद हालांकि अभिनेत्री ने माफी भी मांगी, लेकिन अभिनेत्री के खिलाफ हरियाणा के हांसी में एफ आई आर दर्ज की गई थी। हांसी की पुलिस सुपरीटेंडेंट निकिता गहलोत ने जानकारी दी है कि इस अभिनेत्री के खिलाफ सिटी पुलिस स्टेशन में एससी एसटी एक्ट की धारा 3(1), U के अंतर्गत 11 मई मंगलवार को प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी।

सामाजिक न्याय की पत्रकारिता करने वाला संघर्ष का साथी चला गया

साल 2012 में जब “दलित दस्तक” की लॉन्चिंग हो रही थी, एक हमउम्र उत्साही युवा मेरे पास आया। युवक ने अपना परिचय अखिलेश कृष्ण मोहन के रूप में दिया। वो तब दिल्ली के किसी मीडिया संस्थान में काम कर रहे थे। हम दोनों दिल्ली के पांडव नगर (मदर डेयरी) मुहल्ले में रहते थे। हमारा मिलना-जुलना चलता रहा। बाद के दिनों में अखिलेश जी “दलित दस्तक” पत्रिका से भी जुड़े। दिल्ली की मनुवादी मीडिया में जब भाई-भतीजावाद का बोलबाला बढ़ा और बहुजनों का काम करना मुश्किल हो गया तो अखिलेश जी लखनऊ शिफ्ट हो गए। लखनऊ जाने के बाद भी वो लंबे समय तक “दलित दस्तक” के लिए काम करते रहे। संघर्ष के दिनों में जब भी लखनऊ जाना हुआ, ठिकाना उन्ही का घर रहा। वो अपनी बाइक से मुझे हर जगह ले जाते। बाद में उन्होंने “फर्क इंडिया” के नाम से मैगज़ीन निकालनी शुरू की, फिर यूट्यूब भी चलाया। निरंतर सामाजिक न्याय की आवाज़ उठाते रहे। अखिलेश जी OBC (यादव) समाज के उन पत्रकारों में से रहे, जिन्होंने दलितों और पिछड़ों की एकता पर हमेशा विश्वास किया।
पिछले दिनों जब उन्नाव की घटना हुई तो लखनऊ जाना हुआ। उनसे मिलना तय था, लेकिन मुलाकात नहीं हो सकी। कोरोना से संघर्ष के दिनों में जब वो अस्पताल में भर्ती थे, मैंने उनको फोन लगाया। उनका फोन नहीं उठा। फिर उन्होंने मुझे फोन लगाया, तो मैं फोन से दूर था। इस तरह फिर बात नहीं हो पाई। हां, मैंने व्हाट्सएप्प पर मैसेज किया तो उनका जवाब आया कि “अब ठीक हो रहा हूँ सर”। थोड़ी तसल्ली हुई। लेकिन फिर नेशनल जनमत के संपादक और छोटे भाई नीरज पटेल से बात हुई तो उन्होंने स्थिति चिंताजनक बताई। अखिलेश जी के घर कई बार रुका हूँ, तो उनके परिवार से भी संपर्क में रहा। पिछले कुछ दिनों से उनकी पत्नी के संपर्क में था। मन परेशान था, अखिलेश जी की चिंता थी, तो हर रोज एक बार बात कर लेता था। परसो आखिरी बार उनसे हाल-चाल लिया। वो बेतहासा रो रहीं थी, मैंने कोई जरूरत पूछा तो बोलीं.. “भईया, बस उनको ले आइये आपलोग”। मन रो दिया, मैंने फोन रख दिया। कल डर के मारे फोन नहीं किया कि क्या कहूंगा। अखिलेश जी इकलौते ऐसे शख्स रहे जो पहले दिन से लेकर आखिरी वक्त तक मुझे “संपादक जी” कह कर संबोधित करते रहे। उनकी पत्नी ने बताया की उनके फोन में भी मेरा नम्बर इसी नाम से सेव था।
मुझे “संपादक जी” कहने वाला शख्स आज हमेशा के लिए चला गया। कोरोना ने इस उम्र के कई साथियों को लील लिया है। हर खबर परेशान कर रही है।
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अखिलेश जी के दो छोटे-छोटे बच्चे हैं। मैंने उनको बड़ा होते हुए देखा है। क्या कहूँ… उनके ऊपर बहुत जिम्मेदारी थी। अखिलेश जी से जुड़े सभी लोगों को इस मुश्किल वक़्त में उनके परिवार के साथ खड़ा होना होगा। उनके परिवार की ओर मदद का हाथ बढ़ाना होगा। उनके नहीं रहने के बाद उनके परिवार-बच्चों को संभालना होगा। यही उनको सच्ची श्रद्धांजलि होगी। व्यक्ति के नहीं रहने पर आर्थिक सहायता उसके परिवार की सबसे बड़ी मदद होती है। मेरी अपील है कि आप अखिलेश कृष्ण मोहन जी के परिवार की आर्थिक मदद जरूर करें। उनकी पत्नी रीता कृष्ण मोहन का अकाउंट नंबर दे रहा हूं-
AC Name- Rita Krishna Mohan AC No- 55148830004 State Bank of India IFSC- SBIN0050826 BRANCH- ALIGANJ, LUCKNOW
अलविदा भाई।
कल्पना में भी नहीं सोचा था कि कभी आपके बारे में ऐसे लिखना पड़ेगा। ये आपके साथ अच्छा नहीं हुआ। नमन Akhilesh Krishna Mohan जी।

आरएसएस,भाजपा और नरेंद्र मोदी के इतना आश्वस्त होने का स्रोत क्या है?

देश को लाशों के ढेर में तब्दील कर देने के बावजूद भी, वह कौन सा कारण है, जिसके चलते आरएसएस, भाजपा और नरेंद्र मोदी का यह  विश्वास डिगा नहीं है कि भारत की जनता का एक बड़ा हिस्सा उन्हें पसंद करता है और यदि पसंद नहीं भी करता है, तो उसके पास कोई और  विकल्प नहीं है और भविष्य वे उन्हें वोट देने के लिए वे मना लेंगे। इसके दो बड़े  कारण हैं-
1- पहला देश की आबादी के के बड़े हिस्से में मुसलमानों के प्रति घृणा
2- दूसरा अपरकॉस्ट के अंदर दलित-बहुजनों के प्रति घृणा
देश की आबादी एक बड़े हिस्से में मुसलमानों के प्रति घृणा भरने में आरएसएस, भाजपा और नरेंद्र मोदी पूरी तरह कामयाब हुए हैं।  अपरकॉस्ट का बहुलांश हिस्सा, पिछड़ों का एक  बड़ा हिस्सा और दलितों-आदिवासियों का भी एक छोटा सा हिस्सा मुसलमानों के प्रति घृणा भाव से भरा हुआ है। फिलहाल यही सच है।
यह घृणा मुसलमान, कश्मीर और पाकिस्तान के माध्यम से राष्ट्रवादी होने की शर्त बन चुकी है यानि यह घृणा और राष्ट्रवाद एक दूसरे के पर्याय बन चुके हैं।
आरएसएस-भाजपा और नरेंद्र मोदी ने भाजपा के अतिरिक्त सभी पार्टियों को मुसलमान समर्थक यानि गैर-राष्ट्रवादी हैं, यह स्थापित करने में  काफी हद तक सफलता प्राप्त कर ली हैं यानि भाजपा के अलावा किसी को वोट देना ( विशेषकर केंद्र में)  राष्ट्र विरोधी होना है।
दूसरा दलितों-पिछड़ों के राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और एक हद तक आर्थिक उभार ने ( विशेषकर आरक्षण के चलते) भारत के अपरकॉस्ट के भीतर एक तीखी प्रतिक्रिया को जन्म दिया है। जिन दलितों-पिछड़ों ( शूद्रों-अतिशूद्रों) को वे अपने पांव की जूती समझते थे, वे उन्हें बराबर के स्तर खड़े होकर चुनौती दे रहे हैं और जीवन के सभी क्षेत्रों में बराबरी की मांग कर रहे हैं और बराबरी हासिल भी कर रहे हैं, इसे स्वीकार करने के लिए भारत के अपरकॉस्ट का बहुलांश हिस्सा तैयार नहीं है। जिसके चलते वह भीतर-भीतर इनके प्रति गहरी नरफरत से भरा हुआ है।
अपरकॉस्ट एक साथ दो घृणाओं से भरा है, एक मुसलमानों के प्रति और दूसरा पिछड़े-दलितों के प्रति। इन  दोनों घृणाओं की संतुष्टि सिर्फ और सिर्फ मोदी-योगी जैसे लोग ही कर सकते हैं। पिछड़ों-दलितों के नेतृत्व वाली पार्टियां अपरकॉस्ट को किसी भी शर्त पर स्वीकार नहीं है और कांग्रेस के राष्ट्रवाद और गांधी परिवार की भारतीयता पर भाजपा ने उनके भीतर गहरा शक पैदा कर दिया है।
पिछड़ों का एक बड़ा हिस्सा मुस्लिम विरोध यानि हिंदुत्व की राजनीति में फिलहाल अपनी पहचान खो रहा है, जिसकी संतुष्टि मोदी के नेतृत्व में भाजपा ही कर सकती है।
भारतीयों का एक बड़ा हिस्सा किसी भी सूरत में यह नहीं चाहता है कि लड़कियां अपनी मर्जी से शादी करें या प्रेम करें। यह स्थिति बनाए रखने में आरएसएस-भाजपा उनकी बेहतर तरीके मदद कर रहे हैं और करते रहेंगे। लव जेहाद रोकने के लिए कानून इसी दिशा में उठाए गए कदम हैं। यह एक तीसरा तत्व है, जो भारतीयों के एक बड़े हिस्से को भीतर-भीतर आरएसएस-भाजपा और मोदी-योगी के साथ खड़ा कर देता है।
कार्पोरेट जगत के एक हिस्से का खुला समर्थन तो भाजपा को है ही, विशेषकर पैसा और मीडिया के माध्यम से ।
आरएसएस-भाजपा और नरेंद्र मोदी भीतर-भीतर आश्वस्त हैं कि मुसलमानों और दलितों-पिछड़ों से घृणा करने वाला अपरकॉस्ट और मुसलमानों के प्रति घृणा और हिंदुत्व में अपनी पहचान खोज रहा पिछड़े वर्ग का एक बड़ा हिस्सा आखिर जाएगा, तो जाएगा कहां, कुछ भी  हो जाए, उसे आरएसएस-भाजपा और नरेंद्र मोदी के पास ही आना पड़ेगा।
यही वह आधार है, जिसके बूते मोदी समर्थक यह कह रहे हैं कि आखिर आएगा मोदी ही।
इसका उत्तर रामपट्टी, गाय पट्टी और हिंदू पट्टी को पेरियार पट्टी, नानक पट्टी और अय्यंकाली पट्टी में बदल कर ही दिया जा सकता है,  इस पर विस्तार से बाद में।”

चिकित्सा विज्ञान की जानी-मानी हस्ती प्रो. राजकुमार के जबरन रिटायरमेंट पर उठते सवाल

भारत में करीब 542 मेडिकल कॉलेज हैं जिसमें 64 पोस्ट ग्रैजुएट इंस्टीट्यूट है जिसमें कि पीजीआई लखनऊ के प्रख्यात न्यूरो सर्जन, साउथ एशिया के सबसे क्वालिफाइड न्यूरोसर्जन, ट्रामा सेंटर SGPGI लखनऊ के संस्थापक, AIIMS ऋषिकेश, उत्तराखंड के फाउंडिंग डायरेक्टर, करीब 54 से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान प्राप्त, डिपार्टमेंट ऑफ़ साइंस एंड टेकनोलॉजी, भारत सरकार द्वारा विज्ञान गौरव एवं विज्ञान रत्न से सम्मानित, नेशनल एकेडमी ऑफ़ मेडिकल साइंसेज द्वारा सम्मानित, लगभग दस हज़ार जटिल मस्तिष्क सर्जरी करने वाले बहुआयामी प्रतिभा के धनी, चिकित्सा विज्ञान के अम्बेडकर कहे जाने वाले, वर्तमान में सैफई आयुर्विज्ञान मेडिकल यूनिवर्सिटी के कुलपति, प्रोफेसर राजकुमार जिनके कार्यकाल में सैफई आयुर्विज्ञान मेडिकल यूनिवर्सिटी ने नए आयाम स्थापित किए।

उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रोफ़ेसर राजकुमार, जिनके नाम 500 से अधिक शोध पत्र है जिसमें 34 विशेषतया कोविड पर प्रकाशित हैं, उनको उनके मेडिकल साइंस में अभूतपूर्व योगदान के लिए यूपी रत्न से सम्मानित किया है। पूरे कोविड-19 महामारी के दौर में कोरोना की पहली कामयाब पुस्तक कोविडोलॉजी व कोविड निवारक दवा RNB (राज निर्वाण बटी) देकर प्रो० राजकुमार ने पूरे विश्व में भारत का नाम रोशन किया। आज जहां लगभग हर मेडिकल संस्थान में ऑक्सीजन की कमी हो रही है, वही रात-रात भर जागकर अपने दायित्व का निर्वहन करते हुए प्रो० राजकुमार ने ऑक्सीजन की सप्लाई को निरबाधित रखा। सैफई मेडिकल विश्वविद्यालय में अपना कार्यभार संभालते हुए अपने तेज-तर्रार तेवर के लिए जाने जाने वाले प्रो. राजकुमार ने विश्वविद्यालय में सभी प्रकार की अनियमितताओं को दुरुस्त करके, इटावा जैसे गुंडागर्दी व बदमाशी के लिए मशहूर जनपद में स्थापित आयुर्विज्ञान संस्थान में पारदर्शी व्यवस्था को लागू किया, जो कि वहां के स्थानीय माफियाओं को रास नहीं आया। आरोप है कि वे विभिन्न माध्यमों से कुलपति, प्रो. राजकुमार के ऊपर तमाम तरह के रजनैतिक दबाव व अनर्गल आरोप लगाते रहे, किंतु अपनी साफ-सुथरी व कड़क कार्यशैली के आगे प्रो० राजकुमार ने सब कुछ फीका कर दिया।

कोविड-19 की दूसरी लहर में सुचारू रूप से चिकित्सा सेवा दुरुस्त करवाए रखना शायद कुछ माफिया प्रवृत्तियों को रास नहीं आ रहा है और वे अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त प्रो. राजकुमार का आंकलन उनकी जाति को उनकी योग्यता से ऊपर रखकर करते है, हद तो तब हो गई जब कल उन्हें जबरिया अवकाश पर भेज दिया गया।

भारत जैसे देश में जहां प्रत्येक वर्ष जातिगत दुर्भावना का शिकार होकर रोहित वेमुला जैसे हजारों बच्चों की संस्थानिक हत्या कर दी जाती है ऐसे में प्रोफेसर राजकुमार जिनकी योग्यता का डंका विदेशों में भी बजता है उनको अपने ही देश में जातिगत दुर्भावना का शिकार होना पड़ रहा हैं । जबकि प्रो० राजकुमार न केवल शोषित वर्ग बल्कि सर्वसमाज द्वारा निष्ठा एवं योग्यता के लिए जाने जाते है।

ऐसे में शासन-प्रशासन व समस्त अनुसूचित जाति/जनजाति, पिछड़ा वर्ग अल्पसंख्यक एवं सर्वसमाज से अपील है कि राष्ट्र एवं चिकित्सा हित में प्रो. राजकुमार जैसे योग्य सर्जन के साथ खड़े हों और अपने स्तर से सरकार से अपील करें कि जिन लोगों के दबाव में ऐसी दुर्भावनापूर्ण कार्रवाई की गई है उनके उनके खिलाफ उचित कार्यवाही करने का कष्ट कर, प्रो. राजकुमार का जबरिया अवकाश का आदेश निरस्त करें। जिससे कि कोविड महामारी के दौर में चिकित्सा क्षेत्र में कार्यरत चिकत्सक व अन्य कर्मचारियों का मनोबल बना रहे व वे निडर एवं ईमानदारी के साथ अपनी सेवाएं दे सकें।


यह रिपोर्ट जानी-मानी समाजसेवी और बीएचयू में अंग्रेजी विभाग में असि. प्रोफेसर डॉ. इंदू चौधरी द्वारा लिखा गया है।

बहुजन बुद्धिजीवी हनी बाबू की जिंदगी खतरे में, परिवार ने लगाया बड़ा आरोप

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 प्रोफेसर हैनी बाबू भीमा कोरोगांव मामले में एक विचाराधीन कैदी हैं। जुलाई 2020 से ही बिना ट्रायल वह तजोला जेल में बंधक हैं, जहां उनकी आंखों में एक संक्रमण हुआ। उनकी बांयी आंख की रोशनी लगभग नहीं ही बची है। माथे से लेकर कान और नीचे ठुड्डी तक सूजन फैली हुई है। उनके अन्य अंग भी प्रभावित हैं। संक्रमण के कारण शरीर में मस्तिष्क तक जहर फैलने का खतरा है, इससे उनकी जान तक जा सकती है। असहनीय पीड़ा के कारण न ही वो नींद ले पा रहे हैं और न ही अपनी दिनचर्या के काम कर पाने में समर्थ हैं। जेल में जबरदस्त पानी की किल्लत के कारण उन्हें साफ पानी तक नहीं मिल रहा ताकि वह अपनी संक्रमित आंखों पर पानी की कुछ बूंदे तक छिड़क पाएं। उन्हें मजबूर किया जा रहा है कि वह अपनी संक्रमित आंखों को सख्त तौलिए से साफ करें।

 हैनी बाबू 3 मई, 2021 से बायीं आंख में पीड़ा और सूजन महसूस कर रहे, जल्द ही उनके संक्रमण ने न सिर्फ पीड़ा बढ़ाई बल्कि इसके कारण उन्हें कोई भी चीज दोहरी और धुंधली नजर आने लगी। जेल के स्वास्थ्य अधिकारी ने भी यह सूचित किया कि हैनी बाबू के आंखों के संक्रमण के इलाज के लिए यहां पर्याप्त सुविधाएं नहीं हैं, इन्हें तत्काल किसी विशेषज्ञ चिकित्सक से परामर्श और उपचार चाहिए होगा। लेकिन उन्हें अभी तक परामर्श के लिए नहीं ले जाया जा सका है क्योंकि एस्कॉर्ट अधिकारी वहां उपलब्ध नहीं थे। 6 मई, 2021 को उनके वकील ने मजबूर होकर तजोला जेल के अधीक्षक को एक ई-मेल लिखा, जिसके बाद 7 मई को उन्हें वाशी के सरकारी अस्पताल में ले जाया गया।

वाशी सरकारी अस्पताल में हैनी बाबू का परीक्षण एक नेत्र विशेषज्ञ ने किया और उन्होंने परामर्श में कहा कि इन्हें जीवाणुरोधी (एंटी-बैक्टीरियल) दवाएं दी जाएं और दो दिन के बाद दोबारा चिकित्सकीय परामर्श के लिए लाया जाए। उनकी स्थिति लगातार बिगड़ रही है और इसके बावजूद दो दिन बाद उन्हें अस्पताल नहीं ले जाया गया है। उन्होंने सूचित किया है कि इस बार भी वजह यही है कि जेल में एस्कॉर्ट अधिकारी नहीं है।

10 मई को हैनी बाबू के वकील श्री पायोशी राय ने जेल अधीक्षक से बात करने के लिए करीब 8 बार फोन किया, लेकिन अधीक्षक ने फोनलाइन पर आने से मना कर दिया। रात करीब 8:30 बजे जेलर ने सूचित किया कि श्रीमान राय वह हैनी बाबू की स्थिति से अवगत हैं और अगले रोज उन्हें अस्पताल ले जाने का इंतजाम कर रहे हैं। वकील पायोशी राय ने एक ई-मेल भी अधीक्षक को किया और प्रार्थना में कहा कि हैनी बाबू को अस्पताल ले जाने में किसी तरह की कोताही न की जाए। ई-मेल में उनके सेहत की गंभीरता पर भी जोर दिया गया और बताया गया था कि ऐसे संक्रमण में यदि एक दिन की भी देरी की गई तो उनके आंखों की न सिर्फ रोशनी जा सकती है बल्कि यदि संक्रमण का जहर उनके दिमाग तक पहुंचा तो उनकी जान भी जा सकती है। हालांकि, उन्हें 11 मई को भी अस्पताल नहीं ले जाया गया।

बीते कुछ दिन बहुत ही कष्टकारी और चिंताजनक रहे हैं यह सोचकर कि हैनी बाबू को बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए भीख मांगनी पड़ रही है। यह हृदय को चीरकर रख देना वाला है। यहां तक कि आज भी वकील पायोशी राय के जरिए कई बार जेल में फोन करने के बाद भी हमें किसी तरह का जवाब नहीं मिला है। हमें यह भय है कि यह मलिन व्यवस्था ऐसे कई जेलों में होगी और वहां भी लोगों को इस तरह का अपूर्णीय नुकसान उठाना पड़ रहा होगा। ऐसे में हम मांग करते हैं कि इस तरह के गंभीर मामलों में तत्काल और उचित चिकित्सकीय देखभाल पूरी पारदर्शिता के साथ लोगों को मिलनी चाहिए। आखिरकार हम सिर्फ भारतीय संविधान के तहत निहित गारंटीशुदा प्रदत्त अधिकारों की मांग कर रहे हैं।

जेनी रोवेना (पत्नी), हरीश एमटी एंड एमटी अंसारी (भाई) का 11 मई, 2021 को जारी बयान

(यह पूरी आशंका है कि ये मामला ब्लैक फंगस का है। प्रोफेसर बाबू की मृत्यु किसी भी वक्त हो सकती है यदि जेल वाले तत्काल नहीं जगे)


अंग्रेजी में जारी बयान का विवेक मिश्रा द्वारा हिन्दी में अनुवाद

गॉड इज नॉट ग्रेट!

 21वीं सदी में दुनिया में जो पांच-दस सबसे महान नास्तिक विचारक पैदा हुए हैं, उनमें से रिचर्ड डॉकिंस के बाद सबसे बड़ा नाम आता है, किस्तोंपर हीचेन का। उन्होंने 2007 में “गॉड इज नॉट ग्रेट” नाम की किताब लिखी और उस किताब में उन्होंने सैकड़ों सबूत दे कर यह साबित करने की कोशिश की कि पिछले 5000 साल में मानव जाति पर जितने भी महाविनाशकारी संकट आए उस दौरान दुनिया के किसी भी ईश्वर, अल्लाह या गॉड ने मानव जाति की कोई मदद नहीं की। मानव जाति में जो मुश्किल से 5% बुद्धिमान लोग हैं उन्होंने मानव जाति को हर संकट के समय कोई न कोई रास्ता ढूंढ कर बाहर निकाला लेकिन धर्म के नाम पर जो लोग अपना पेट पालते हैं और अपने आप को धर्म का ठेकेदार और ईश्वर का प्रतिनिधि समझते हैं उन लोगों ने मानव जाति के जो 95% लोग है और जो जन्मजात बुद्धिहीन है और जो किसी न किसी काल्पनिक सहारे के बगैर जी ही नहीं सकते, ऐसे लोगों को बार-बार अपने धर्म के जाल में जकड़ के रखा और कोई मदद नहीं की। दुर्भाग्य से आज ‘किस्तोंपर हिचेन’ हमारे बीच नहीं है, लेकिन कोरोना वायरस ने फिर एक बार किस्तोंपर हीचैन को सही साबित किया है और यह भी साबित किया है कि कोरोना वायरस प्रकृति ने पैदा किया है, ईश्वर, गॉड और अल्लाह उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकते। सिर्फ विज्ञान ही उसको कंट्रोल करेगा।

सभी धर्मों के ठेकेदारों का यह सनातन दावा है कि, ईश्वर इस ब्रह्मांड का निर्माता है और वह सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ और हर जगह पर मौजूद है और उसके मर्जी के बगैर एक पत्ता भी नहीं हिलता है। दुनिया का सबसे बड़ा धर्म ईसाई धर्म है और पूरी दुनिया के क्रिश्चन लोगों का सबसे बड़ा गुरु इटली के रोम शहर में रहता है, जिसे वेटिकन सिटी कहा जाता है। आजकल कोरोना के डर से इटली के सभी चर्च और वेटिकन सिटी लॉक डाउन हैं और उनके सबसे बड़े धर्म गुरु यानी पोप नजर नहीं आ रहे हैं। दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा धर्म इस्लाम है और दुनिया भर में फैले मुसलमानों की सबसे पवित्र भूमि और पवित्र धर्मस्थल मक्का मदीना है, वह भी आज पूरी तरह से बंद है और दुनिया के तीसरे नंबर का धर्म यानी हिंदू धर्म और उसके सभी प्रसिद्ध धर्मस्थल जैसे कि चारों धाम, बालाजी मंदिर, शिर्डी के साईं बाबा का मंदिर, जम्मू के वैष्णो देवी का मंदिर और बहुत सारे छोटे-मोटे मंदिर 6-7 महीने तक लॉक डाउन रहे हैं।

दुनिया के किसी भी धर्म में और किसी भी भगवान में इतनी ताकत नहीं है की वह कोरोना नाम के एक मामूली कीटाणु को रोक सके। धर्म के ठेकेदारों ने बुद्धिहीन लोगों के अज्ञान और डर का फायदा उठाकर उनका शोषण करने के लिए दुनिया भर में बड़े-बड़े धर्मस्थल बना के रखे हैं और हजारों सालों से भोली-भाली जनता के अज्ञान और डर का नाजायज फायदा उठा रहे हैं, उनका शोषण कर रहे हैं।

जब हजारों लोग मुंबई से शिरडी तक बिना चप्पल पहने हुए पैदल जाते हैं और साईं बाबा को अच्छी बीवी, अच्छी नौकरी, अच्छी संतान और धंधे में मुनाफा मांगते हैं और समझते हैं कि साईं बाबा उनको यह सब कुछ दे देगा। यदि साईं बाबा या बालाजी या वैष्णो देवी या अजमेर शरीफ या फिर मक्का मदीना और वेटिकन सिटी अपने भक्तों की ऐसी छोटी मोटी मांगे और मुरादे पूरी करते हैं और मानव जाति का हमेशा हित और सुख देखते हैं, तो फिर आज जब मानव जाति पर इतना बड़ा संकट है, वो सामने क्यों नहीं आ रहे हैं।

विज्ञान कहता है 14 बिलियन साल पहले बिग बैंग के माध्यम से इस विश्व की निर्मिती हुई और लगभग 5 बिलियन ईयर पहले पृथ्वी की निर्मिति हुई। इस पृथ्वी पर आज तक विज्ञान ने लगभग 8 मिलियन प्रजातियां आईडेंटिफाई की हैं और मानव जाति होमोसेपियन 18 मिलियन प्रजातियों में से एक प्रजाति है और इस विश्व के अनगिनत साल के इतिहास में मानव जाति का कोई अता पता नहीं था, मानव जाति मुश्किल से पिछले चार मिलियन साल से इस पृथ्वी पर आई है। आज तक कई प्रजातियां पृथ्वी पर आई, कुछ साल तक रही और जलवायु बदलते ही नष्ट हो गई। मानव जाति भी इस पृथ्वी पर हमेशा रहेगी इसका कोई भरोसा नहीं है। जिस तरह डायनासोर और न जाने कितनी प्रजातियां आई और गई और इंसान भी इनमें से एक मामूली प्रजाति है।

इस विश्व को चलाने वाली एक शक्ति है इसे विज्ञान, नेचर या प्रकृति के नाम से जाना जाता है और विज्ञान यह भी मानता है कि प्रकृति निश्चित नियमों के अनुसार इसको चलाती है। यदि इस प्रकृति पर काबू पाना है तो हमारे हाथ में सिर्फ एक ही रास्ता है और वह है इस प्रकृति के रहस्य के नियमों को अनुसंधान, संशोधन और प्रयोग के द्वारा जान लेना। आज तक विज्ञान ने प्रकृति के बहुत सारे नियमों को खोज लिया है और विज्ञान की खोज निरंतर जारी है। दुनिया के सारे धर्म हमको सिर्फ प्रकृति की पूजा करने की शिक्षा देते हैं और यह कहते हैं की पूजा करने से प्रकृति प्रसन्न होगी और हमारी मांगे और मुरादे पूरी करेगी। दुनिया के सारे धर्मों की यह मूलभूत शिक्षा ही सरासर झूठ है। विज्ञान ने इस बात को साबित किया है कि पूजा पाठ करने से प्रकृति अपने नियम कभी नहीं बदलती। यदि प्रकृति पर काबू पाना है तो उसका एकमात्र रास्ता है प्रकृति के नियमों को जानना।

आज तक दुनिया में मानव जाति के सामने जितनी भी समस्याएं आई जैसे कि प्राकृतिक आपदाएं, और सभी प्रकार की संसर्गजन्य बीमारियां। किसी भी धर्म ने या धर्म गुरु ने या ईश्वर ने इनमें से एक भी बीमारी का कोई इलाज मानव जाति को नहीं दिया बल्कि सिर्फ विज्ञान ने दिया। मलेरिया, इनफ्लुएंजा, कॉलरा, स्मॉल पॉक्स और कितनी बीमारी पर साइंस ने दवाइयां खोजी है और इन महामारीयों को हमेशा के लिए दुनिया से मिटा दिया है। कोरोना के ऊपर भी बहुत जल्द साइंस इलाज ढूंढ निकालेगा। आज तक मानव जाति के ऊपर जब भी कोई बड़ा संकट आया है तो सारे मानव अपने अपने तीर्थ स्थल पर जाकर भगवान अल्लाह या गॉड के सामने झुक जाते हैं, लेकिन कोरोनावायरस ने तो यह रास्ता भी बंद कर दिया है। अभी सिर्फ हमारे सामने एक ही रास्ता है और वह है विज्ञान का। इसलिए कोरोना वायरस से कुछ सीख लो ! विज्ञान वादी बनो!


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शुरुआती लापरवाही से ग्रामीणों पर कोरोना पड़ा भारी

रिपोर्ट- रूबी सरकार, भोपाल, मप्र।  मध्य प्रदेश के गांवों में सन्नाटा पसरा है। ग्रामीण सर्दी, जुकाम, खांसी और बुखार से ग्रसित हैं। अस्पताल न जाने, जांच न कराने और वैक्सीन न लेने की जिद, इन्हें मौत के मुंह में धकेल रहा है। जो अपनों को खो रहे हैं, उनकी आंखें नम है, लेकिन वह कोरोना संक्रमण से मौत पर बात करने को तैयार नहीं है। अधिकतर मृत्यु जांच न होने के कारण सामान्य माना जा रहा है। लेकिन गांव में मौतों की संख्या लगातार बढ़ रही है। अकेले पन्ना जिले के पवई विकासखंड के 18 गांवों में पिछले एक हफ्ते में 17 लोगों की मौत हुई है। इसी तरह शहडोल जिले के ब्यौहारी विकासखंड में 87, बैतूल जिले के एक ही गांव बोरगांव में 21, यहां तक प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री के विधानसभा क्षेत्र में आने वाला टिकोदा गांव में 20 दिनों में 10 लोगों की बुखार के बाद मौत हो गई और इतने ही लोग हालत बिगड़ने के बाद इलाज के लिए दूसरे शहर गए हैं, जबकि टिकोदा की कुल आबादी ही 350 हैं, जिनमें से तकरीबन आधे लोग बुखार और खांसी से पीड़ित हैं।

लोग बुखार से दम तोड़ रहे हैं। फिर भी समय रहते जांच करवाने को तैयार नहीं है। कुछ दबी जुबान कहते है, कि कुछ लोगों को वैक्सीन लगवाने के बाद बुखार आया, जो बहुत दिनों तक ठीक नहीं हुआ और कई लोगों की तो जान चली गई। उनके भीतर डर इस कदर समा गया, कि कहते हैं, जांच कराने जाएंगे, तो कोविड के लक्षण बताकर अस्पताल में अलग-थलग भर्ती कर देंगे, फिर वहां से हम घर वापस नहीं आएंगे। छिंदवाड़ा में तो स्वास्थ्य विभाग की टीम सहजपुरी गांव पहुंची तो ग्रामीणों ने हंगामा खड़ा कर दिया, टीम को उल्टे पांव वापस भागना पड़ा। हालांकि स्वास्थ्य विभाग ने वैक्सीन के बाद किसी की भी मौत को नकारा है, लेकिन यह भी सच है, कि सरकारी आंकड़ों में गांव में कोरोना या बुखार से मौतों के सही आंकड़े सामने नहीं आ रहे है। इस तरह कोविड से मौत का सही आंकड़ा कभी हमारे सामने नहीं आ पायेगा। इसलिए आज वैक्सीन से मौत के डर को खत्म करना सरकार और समाज के सामने सबसे बड़ी चुनौती है।

बैतूल जिले की रहने वाली रेखा गुजरे भीमपुर विकासखंड के 155 गांवों में काम करती है। वह बताती है कि ग्रामीण कोविड संक्रमण की जांच के लिए बिल्कुल तैयार नहीं है। दूसरी तरफ लोग इतने डरे हुए हैं कि कहते हैं ‘वैक्सीन लेने से वे मर जाएंगे। टीका लगने के बाद उन्हें बुखार और चक्कर आयेगा। फिर उन्हें अस्पताल में भर्ती कर लिया जाएगा, जहां उसकी मृत्यु निश्चित है।’ वह घर में ही बीमारी का इलाज कर रहे हैं। कुछ तो पूजा-पाठ कर बीमारी को ठीक करने की कोशिश कर रहे हैं। लोगों के अंदर यह जो भ्रम है, यह बहुत खतरनाक हैं। इसे किसी भी सूरत में तोड़ना ज़रूरी है। जब मरीजों की स्थिति बहुत गंभीर होने लगती है, तभी मजबूरन उसे अस्पताल लेकर जाते है, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।

वैक्सीन का उल्लेख करते हुए रेखा गुजरे ने कहा, कि भीमपुर विकासखंड के 155 गांवों में तीन फीसदी से भी कम टीकाकरण हुआ है। रेखा ने कहा, कि ग्रामीणों द्वारा वैक्सीन को नकारे जाने पर पूरा प्रशासन और स्वास्थ्य अमला परेशान है। इनका भ्रम दूर करने और उन्हें जागरूक करने के लिए सरकार को कुछ अलग तरीके सोचनी होगी। वह बताती है, कि उनकी संस्था लगातार ग्रामीणों को जागरूक करने का काम कर रही है। उन्होंने बोरगांव का उल्लेख करते हुए कहा, कि यहां एक हफ्ते में 21 लोगों की बुखार से मृत्यु हुई है। डॉक्टरों के अनुसार मरीजों के अंदर लक्षण कोविड के ही थे, फिर भी इन मौतों को सामान्य माना गया। रेखा ने कहा संस्था अपनी तरफ से ग्रामीणों को ऑक्सीमीटर, थर्मामीटर, स्टीम मशीन आदि दे रही है। उन्हें समझा रही है वह अपना ऑक्सीजन का स्तर बराबर जांचते रहें। ऑक्सीजन का लेवल कम होने पर मरीज को तुरंत अस्पताल लेकर जाये, क्योंकि ऑक्सीजन का कम होना जानलेवा हो सकता है। लेकिन यह काम संस्था के प्रयास से बहुत कम गांव में हो पा रहा है। इसका दायरा बढ़ाने की जरूरत है।

इसी तरह पन्ना जिले के सामाजिक कार्यकर्ता रामनिवास खरे बताते हैं कि यहां के गांवों में संक्रमण को लेकर ऐसी भ्रम की स्थिति है कि गांव वाले कहते हैं, कि जांच रिपोर्ट में कोरोना संक्रमित बताकर हमें कोविड केयर सेंटर भेज देंगे। जहां से हम ठीक होकर घर वापस नहीं आयेंगे। रामनिवास ने अपने बड़े भाई जीतेन्द्र खरे का उल्लेख करते हुए बताया, कि भाई बीमार हुए, तो हम लोग उन्हें पन्ना से छतरपुर ले गये। क्योंकि पन्ना में इलाज की सुविधा नहीं मिल पा रही थी। कोविड की जांच हुई रिपोर्ट आने तक उन्हें जनरल वार्ड में रखा गया। रिपोर्ट में कोविड संक्रमण आने के बाद उन्हें कोविड वार्ड भेजने की तैयारी होने लगी। कोविड का नाम सुनते ही उनकी हृदय गति रूक गई।

दरअसल ग्रामीण क्षेत्रों के लोग समुदाय के साथ मिलकर रहते हैं। कोविड वार्ड में उन्हें अकेले रहना पड़ेगा, यह सोचकर ही वह डर जाते हैं। उन्होंने पन्ना के चिकित्सा सुविधा का उल्लेख करते हुए कहा, कि पवई विकासखंड के तीन आदिवासी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र जैसे मोहन्द्रा, सिमरिया और हरदुआ खमरिया में पिछले एक साल से डॉक्टर नहीं है। यहां कोई बीमार पड़े तो झोलाछाप डॉक्टर ही इनका इलाज करते हैं। कोरोना संक्रमण की जांच सिर्फ पवई सामुदायिक केंद्र में हो रहा है, जो गांवों से लगभग 55 किलोमीटर दूर है। ग्रामीण जांच कराने इतनी दूर जाने को भी तैयार नहीं है।

मण्डला की अनीता संगोत्रा के अनुसार इस जिले के गांवों में 22 अप्रैल से महिला एवं बाल विकास विभाग की टीम घर-घर जाकर ग्रामीणों की जांच कर रही हैं। इन्हें बुखार, खांसी की दवा दी जा रही है। ग्रामीणों को कोरोना संक्रमण की चेन तोड़ने के लिए जागरूक किया जा रहा है। अनीता बताती है, कि कोरोना की दूसरी लहर पहले जैसी नहीं है, मास्क और सामाजिक दूरी से इससे बचा जा सके। इसलिए ज्यादा बुखार वाले लोगों को तुरंत कोविड केयर सेंटर में भेजा जा रहा है। मवई विकासखंड के 15 गांव में से अभी तक केवल दो गांव में संक्रमित पाये गये है, जिसमें से चंदा गांव के सरपंच और उनकी पत्नी का कोरोना से निधन हुआ है। इसके अलावा यहां विधायक के छोटे भाई की भी मृत्यु कोरोना से हुई है। फिर भी ज्यादा लोग वैक्सीन को लेकर भ्रमित है। बुखार आने पर खुद जाकर जांच नहीं करवा रहे हैं। इस भ्रम को तोड़ने के लिए पॉजिटिव से नेगेटिव हुए लोगों का अनुभव साझा करना बहुत जरूरी है। हालांकि आंगनबाड़ी और स्वास्थ्य केंद्रों में पल्स ऑक्सीमीटर से ग्रामीणों की जांच हो रही है, लेकिन वैक्सीनेशन के बारे में चर्चा करने पर ग्रामीण मुंह फेर लेते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि सरपंच की मौत वैक्सीन लगवाने के बाद ही हुई थी।

दरअसल जांच न होने से बीमारी को पहचानने में देरी, इसे स्वीकार करने में देरी, फिर इलाज शुरू करने में देरी, लक्षण होने के बावजूद जांच रिपोर्ट का इंतजार करना, तुरंत इलाज शुरू न करना जैसे कारण गांव में मौतों की संख्या बढ़ाने में मददगार साबित हो रहे हैं। इससे पहले कि यह भयावह स्थिति को पहुंचे राज्य सरकार से लेकर स्थानीय प्रशासन को सतर्क होकर काम करने और ज़्यादा से ज़्यादा जागरूकता अभियान चलाने की ज़रूरत है। (चरखा फीचर)


चरखा फीचर के लिए यह रिपोर्ट रुबी सरकार ने भोपाल मध्य प्रदेश से लिखी है।

अमेरिका में स्वामिनारायण मंदिर पर छापा

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अमेरिका से भारत के हिंदू संप्रदाय के लोगों द्वारा बनाए जा रहे एक मंदिर के बारे में एक बड़ी खबर आ रही है। आरोप लगाया जा रहा है कि अमेरिका में बन रहे इस सबसे बड़े हिंदू मंदिर में मजदूरों को उचित एवं नियमित मजदूरी दिए बिना उनसे आस्था के आधार पर बेगार करवाई जा रही है। यह मामला न्यूजर्सी का है जहां पर अमेरिका के फेडरल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन, डिपार्टमेंट ऑफ होम सिक्योरिटी एवं अमेरिका के लेबर डिपार्टमेंट ने जांच के उद्देश्य से यह छापा मारा है। यह छापा स्वामीनारायण संप्रदाय के ‘बोचासनवासी अक्षर पुरुषोत्तम स्वामीनारायण संस्थान’ पर मारा गया है। महत्वपूर्ण बात यह है कि मंदिर में काम करने वाले अधिकांश लोग दलित समुदाय के हैं।

 न्यूयॉर्क टाइम्स में प्रकाशित खबर में सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि इस रेड के बाद निर्माण स्थल पर से 90 मजदूरों को अमेरिका की सेंट्रल एजेंसी के द्वारा काम से हटाया गया है। मंगलवार 11 मई को अमेरिका के न्यूजर्सी की ‘नेवार्क कोर्ट’ में इस मंदिर में काम करने वाले 6 मजदूरों ने अपील की और शिकायत की थी कि उनसे बेगार कराई जा रही है। मजदूरों ने आरोप लगाया है कि उन्हें भारत से अमेरिका इसी मंदिर में काम करने के लिए लाया गया है। यह मंदिर ‘रॉबिंसविले न्यूजर्सी’ में स्थित है। मजदूरों का आरोप है कि उन्हें बहुत कम पगार दी जा रही है। अमेरिका में एक घंटे के लिए काम के लिए जितना पैसा दिया जाता है, उन्हें उसका केवल 10% ही दिया जा रहा है। इसके अलावा उन्हें लंबे घंटो तक काम करने के लिए मजबूर किया जाता है। मजदूरों ने यह भी कहा कि उनके पासपोर्ट मंदिर प्रशासन द्वारा जब्त कर लिए गए हैं।

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पप्पू यादव की गिरफ्तारी पर बवाल, सीएम नीतीश पर लगाया बड़ा आरोप

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 बिहार में कोरोना से निपटने को लेकर नहीं, बल्कि कोरोना को लेकर राजनीति अपने चरम पर है। आलम यह है कि सरकार मर्यादा तक भूल गई है और राजनीतिक द्वेष से कार्रवाई करने पर अमादा है। भाजपा नेता और छपरा से सांसद राजीव प्रताप रूढ़ी और पप्पू यादव के बीच विवाद के बाद नीतीश सरकार ने जन अधिकार पार्टी के प्रमुख और पूर्व सांसद पप्पू यादव को गिरफ्तार कर लिया है। इसके बाद पप्पू यादव और राज्य सरकार के बीच तनातनी बढ़ गई है। गिरफ्तारी के बाद पप्पू यादव ने ट्विट कर राज्य सरकार पर बड़ा आरोप लगाया है। अपने ट्विट में पप्पू यादव ने नीतीश सरकार पर कोरोना से मारने का षड्यंत्र रचने का आरोप लगाया है।

पप्पू यादव ने अपने एक अन्य ट्विट किया, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया है कि जब बिहार सरकार को कोरोना की तीसरी लहर से लड़ने की तैयारी करनी चाहिए, तो सरकार पप्पू यादव से लड़ रहे हैं।

पप्पू यादव की गिरफ्तारी को लेकर कई नेताओं ने बिहार सरकार के खिलाफ नाराजगी जाहिर की है। राजद नेता और बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने भी पप्पू यादव की गिरफ्तारी का विरोध किया है। यहां तक की नीतीश सरकार में मंत्री और वीआईपी पार्टी के प्रमुख मुकेश सहनी ने भी पप्पू यादव की गिरफ्तारी को असंवेदनशील बताया।

गौरतलब है कि भाजपा नेता राजीव प्रताप रूढ़ी के निजी परिसर में सरकारी एंबुलेंस खड़े मिले थे, जिसके बाद पप्पू यादव ने मामले को उठाते हुए बड़ा आरोप लगाया था। जिस पर राजीव प्रताप रूढ़ी ने ड्रायवरों की कमी का हवाला दिया था और पप्पू यादव से कहा था कि वो ड्रायवर ले आएं। पप्पू यादव ने ड्रायवरों की परेड करवा दी थी। जिसके बाद राजीव प्रताप रूढ़ी, भाजपा और नीतीश सरकार की जमकर फजीहत हुई थी।