बहुजनों के आंदोलन के आगे झुकी मोदी सरकार, NEET में OBC आरक्षण लागू करने की घोषणा

मेडिकल की इंट्रेंस परीक्षा NEET में आरक्षण की मांग कर रहे ओबीसी समाज को बड़ी कामयाबी मिली है। पिछड़ी जातियों के भारी विरोध और सोशल मीडिया पर चली मुहिम के बाद आखिरकार मोदी सरकार झुक गई है और पिछड़ी जातियों को 27 प्रतिशत आरक्षण देने का आदेश जारी कर दिया है। इसके अलावा आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग यानी EWS के लिए भी दस प्रतिशत आरक्षण देने की घोषणा हुई है। इस आदेश के बाद पांच हजार से ज्यादा ओबीसी छात्र आरक्षण का लाभ लेकर हर साल डॉक्टर बन सकेंगे।

नए आदेश के मुताबिक अंडर ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल, डेंटल कोर्स (एमबीबीएस, एमडी, एमएस डिप्लोमा, बीडीएस, एमडीएस) के लिए ओबीसी को सत्ताईस प्रतिशत और ईडब्लयूएस कोटे वाले को दस फीसदी आरक्षण मिलेगा। इसका फायदा ऑल इंडिया कोटा स्कीम (AIQ) के तहत मिलेगा। आरक्षण का यह लाभ अभ्यर्थियों को वर्तमान 2021-22 सत्र से मिलेगा। इस घोषणा के बाद हर साल ओबीसी समाज के 1500 छात्रों को MBBS में 2500 ओबीसी छात्रों को पोस्ट ग्रेजुएशन में फायदा मिलेगा।सरकारी मेडिकल कॉलेजों की कुल सीटों में से अंडर ग्रेजुएट की पंद्रह प्रतिशत और पोस्ट ग्रेजुएट की पचास प्रतिशत सीटें ऑल इंडिया कोटा में आती है।

दरअसल सरकार को यह फैसला मजबूरी और दबाव में लेना पड़ा है। एनईईटी में ओबीसी को आरक्षण दिये जाने की मांग को लेकर ओबीसी समाज ने मोर्चा खोल दिया था। सोशल मीडिया पर पिछड़े समाज के तमाम चिंतकों और बुद्धिजीवियों ने मुहिम चला रखी थी। दलित समाज ने भी इस मुहिम को अपना समर्थन दिया था। बहुजनों की इस एकता से मोदी सरकार दलित-पिछड़ा विरोधी छवि और मजबूत होने लगी थी।ओबीसी समाज के लोग मोदी सरकार में शामिल अपने समाज के मंत्रियों के खिलाफ भी हमलावर थे। यही वजह रही कि एनडीए के अन्य पिछड़ा वर्ग के सांसदों के एक प्रतिनिधिमंडल ने बुधवार को प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात कर अखिल भारतीय चिकित्सा शिक्षा कोटे में ओबीसी और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के उम्मीदवारो के लिए आरक्षम लागू करने की मांग की थी, जिसके बाद सरकार ने इसको हरी झंडी दे दी है।

हालांकि आज भले ही मोदी सरकार एनईईटी में पिछड़े वर्ग को आरक्षण देकर अपनी पीठ थपथपा रही है, लेकिन पिछले चार साल में 11 हजार ओबीसी की मेडिकल सीटों को आरक्षण नहीं होने की वजह से नुकसान हुआ है। माना जा रहा है कि अगले साल उत्तर प्रदेश के चुनाव में विपक्षी दल इसे मुद्दा बनाने के लिए तैयार थे, इसी वजह से मोदी सरकार को यह फैसला लेने के लिए मजबूर होना पड़ा।

 

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