उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए हर राजनीतिक दल सियासी समीकरण साधने में जुट गया हैं। भाजपा ने जहां दलितों-पिछड़ों को केंद्र में सरकार में शामिल कर अपनी चाल चल दी है तो बसपा ने ब्राह्मण सम्मेलन शुरू कर दिया है। इन दोनों पार्टियों को टक्कर देने के लिए उत्तर प्रदेश में एक तीसरा सियासी गठबंधन भी तैयार है, जिसमें समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव और राष्ट्रीय लोकदल के जयंत चौधरी शामिल हैं। इन दोनों युवा नेताओं के बीच रविवार 25 जुलाई को दिल्ली में बैठक हुई, जिसमें पश्चिमी उत्तर प्रदेश के राजनीतिक समीकरण पर चर्चा हुई है।
दरअसल पहली बार बिना अपने पिता अजीत चौधरी के चुनाव मैदान में उतरने जा रहे जयंत चौधरी पश्चिमी यूपी में जाट और मुस्लिम सहित अन्य जातियों को जोड़कर नई सोशल इंजीनियरिंग खड़ी करने की कवायद में जुट गए हैं। जाट-मुस्लिम एकता के लिए राष्ट्रीय लोकदल 27 जुलाई से भाईचारा सम्मेलन शुरू करने जा रही है। इसका आगाज, पश्चिमी यूपी के मुजफ्फरनगर के खतौली से किया जा रहा है।
उत्तर प्रदेश में जाट समुदाय की आबादी करीब 4 प्रतिशत है, जबकि पश्चिमी यूपी में यह 17 फीसदी के करीब हैं। वहीं 20 फीसदी मुस्लिम आबादी वाले यूपी के पश्चिमी उत्तर प्रदेश की विधानसभा सीटों पर मुस्लिम समाज की आबादी 35 से 50 फीसदी तक है। जाट और मुस्लिम वोटों की बात करें तो यह दोनों समुदाय मिलकर सहारनपुर, मेरठ, बिजनौर, अमरोहा, मुजफ्फरनगर, बागपत और अलीगढ़ एवं मुरादाबाद मंडल सहित विधानसभा की लगभग 100 सीटों पर निर्णायक भूमिका में हैं। इसी समीकरण के सहारे आरएलडी खासतौर पर पश्चिमी यूपी में हमेशा किंगमेकर की भूमिका में रहती है। हालांकि 2013 में हुए मुजफ्फरनगर दंगे के बाद रालोद कमजोर हुई है। जाट जहां भाजपा में चला गया तो मुस्लिम समाज अलग-अलग मौके पर बसपा और समाजवादी पार्टी के साथ जाता रहा।
इसके कारण अजीत चौधरी और जयंत चौधरी को भी 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा। अपने पिता की मुत्यु के बाद जयंत चौधरी फिलहाल अखिलेश यादव के साथ मिलकर अपने भविष्य को बेहतर बनाने में जुटे हैं। जयंत चौधरी और अखिलेश यादव को उम्मीद है कि सपा और रालोद मिलकर जाट और मुस्लिम वोटों को फिर से एक साथ ले आएंगे। अगर ऐसा होता है तो निश्चित तौर पर यह दोनों दल यूपी की सियासत में बाकी दलों का खेल बिगाड़ सकते हैं।

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