नई दिल्ली। पिछले दिनों में सीवर में उतरने से एक के बाद एक हुई मौतों से सफाईकर्मियों का सरकार के खिलाफ गुस्सा आखिरकार फूट पड़ा. इसके खिलाफ जंतर-मंतर पर उतरे हजारों सफाईकर्मियों और दलित समाज के लोगों ने सरकार और व्यवस्था के खिलाफ हल्ला बोल दिया. मंच पर मौजूद मृतक परिवारों के सदस्यों की मौजूदगी माहौल को गमगीन बनाए थी. इस दौरान मृतक परिवार के घरवालों ने अपनी आपबीती लोगों के सामने रखी.
इस विरोध प्रदर्शन को सफाई कर्मचारी आंदोलन के बैनर के तले बुलाया गया था. सफाईकर्मियों को समर्थन देने के लिए तमाम अन्य संगठन, छात्र और एक्टिविस्ट भी पुहंचे थे. उन्होंने अपने हाथों में तख्तियां थाम रखी थी, जिन पर लिखे स्लोगन सरकार और सभ्यता पर सवाल खड़े कर रहे थे. इस दौरान आंदोलनकारियों के निशाने पर केंद्र से लेकर राज्य सरकारें तक रहीं. सफाई कर्मचारी आंदोलन से लंबे वक्त से जुड़े राज वाल्मीकि ने तो मोदी से लेकर अरविंद केजरीवाल तक को कठघरे में खड़ा कर दिया.
सफाई कर्मचारी आंदोलन के मुखिया और मैग्सेसे अवार्ड से सम्मानित बेजवाड़ा विल्सन के सब्र का बांध भी टूट पड़ा. सफाई कर्मियों को लेकर सरकारी अनदेखी पर उन्होंने जमकर अपना गुस्सा निकाला.
इस आंदोलन को समर्थन देने के लिए राजनीतिज्ञ से लेकर बुद्धिजीवि तक पहुंचे. डी.राजा, वृंदा करात, अशोक भारती, कौशल पंवार, योगेन्द्र यादव और अरुंधती राय ने मंच पर पहुंच कर इस आंदोलन को अपना समर्थन दिया.
आजादी के 7 दशक बाद भी एक के बाद एक सीवर में हो रही मौतें जहां सरकार को कठघरे में खड़ा करती है तो वहीं मानव सभ्यता पर भी सवाल उठाती है.
नई दिल्ली। मंगलवार को दुबई के अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम मैदान पर एशिया कप मुकाबले में जब दोनों कप्तान मैदान पर उतर रहे थे सबकी नजरें ठहर गईं. अफगानिस्तान के कप्तान असगर अफगान के साथ जो शख्स टॉस के लिए उतर रहा था वह रोहित शर्मा नहीं था. जी, कैमरा जैसे ही फोकस हुआ सामने महेंद्र सिंह धोनी का चेहरा नजर आया. क्या, इस मैच में धोनी कप्तानी करेंगे. जी, करीब दो साल बाद महेंद्र सिंह धोनी एक बार फिर भारतीय टीम की कप्तानी कर रहे हैं. सही हिसाब लगाएं तो 696 दिन बाद धोनी टीम इंडिया की कप्तानी कर रहे हैं.
धोनी ने आखिरी बार 29 अक्टूबर 2016 को न्यू जीलैंड के खिलाफ विशाखापत्तनम में भारतीय टीम की कप्तानी की थी. इस मैच में भारत को 190 रनों से जीत मिली थी. बतौर कप्तान यह धोनी का 200वां एकदिवसीय मैच है. यह मुकाम हासिल करने वाले वह दुनिया तीसरे कप्तान हैं. एकदिवसीय क्रिकेट में सबसे ज्यादा मैचों में कप्तानी करने का रेकॉर्ड ऑस्ट्रेलिया के रिकी पोंटिंग के नाम है. पोंटिंग ने 230 मैचों में कप्तानी की जिसमें से 165 में ऑस्ट्रेलिया ने जीत हासिल की. इसके बाद न्यू जीलैंड के स्टीफन फ्लेमिंग का नंबर आता है जिन्होंने 218 मैचों में कप्तानी की और कीवी टीम ने इसमें से 98 जीते है, धोनी के 199 मैचों में से 110 में भारत ने जीत हासिल की और 74 मुकाबले हारे. वहीं चार मैच टाई रहे और 11 का कोई नतीजा नहीं निकला. धोनी का जीत औसत 59.57 है, जो किसी भी भारतीय कप्तान से बेहतर है. आईसीसी ने भी अपने ट्वीट में धोनी की कप्तानी में वापसी को लेकर ट्वीट किया है. आईसीसी ने अपने इस ट्वीट में लिखा ‘कैप्टन कूल इज बैक!’
टॉस के बाद धोनी ने मैच में अपनी रणनीति पर बात की. इस मैच में अफगानिस्तान ने टॉस जीतकर पहले बैटिंग का फैसला किया, जिस पर धोनी ने कहा कि अगर वह टॉस जीतते तो वह भी पहले फील्डिंग का ही निर्णय लेते.’ भारत के लिए 200वें वनडे में कप्तानी कर रहे धोनी ने कहा, ‘मुझे यह विश्वास नहीं था कि जहां मैं खड़ा हूं मेरे पास ऐसा मौका आएगा. मैंने 199 वनडे मैचों में कप्तानी की है, तो इससे मुझे 200वें वनडे में कप्तानी करने का मौका मिला है. यह सब भाग्य है और मैं इसमें हमेशा भरोसा करता हूं. यह सब मेरे नियंत्रण में नहीं था, क्योंकि मैं अब कप्तानी छोड़ चुका हूं. बतौर कप्तान 200वां वनडे खेलना शानदार है, लेकिन मुझे नहीं लगता इसका कोई खास महत्व है.
भारत में हर पांचवें दिन एक सफाई कर्मचारी काल का ग्रास बनता है, और राज्यों से लेकर केन्द्र में सरकार के आधीन नगरपालिकाएं, या प्रशासन या निर्वाचित प्रतिनिधि अपेक्षित कदम उठाने की जिम्मेदारी एक-दूसरे पर डाल कर अपना पल्ला झाड़ लेते है. हाथ से मैला साफ करने वाला वह दुर्भाग्यशाली इंसान तब सुर्खियों में आता है जब सीवर में दम घुटने या हादसे में उसकी मौत हो जाती है. पर किसी अधिकारी की जबान से यह नहीं निकलता है कि “यह हमारी समस्या है; हम इसका समाधान करेंगे”
नए प्रौघोगिकीय साधन स्वागतयोग्य है. कितना अच्छा हो कि ये अमानवीय काम सफाई कर्मचारियों के बजाए मशीने करने लगें. पर प्रौघोगिकी समाधान समस्या का हल नहीं है क्यों कि बुनियादी तौर पर यह प्रौघोगिकी की नहीं बल्कि एक समाजिक समस्या है और इसके बाद प्रशासनिक. सफाईकर्मी वाल्मीकि जैसी जातियों से हैं जो सदियों से हाथ से मैला ढ़ोते आ रहे हैं और छुआछूत का शिकार रहे हैं. इस जाति में जन्म लेना अभिशाप के समान है. यह जन्मजात जाति अन्याय के खिलाफ खड़े होने की आपकी क्षमता को पगुं कर देती है.
उसकी बेड़ियां इतनी मजबूत होती है कि इस काम से पीछा छुड़ाने के बाद भी पैरों को जकड़े रहती है. वे भेदभाव से बचने के लिए अपनी पत्नियों से भी पहचान छिपाते हैं. क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि अपनी जाति की पहचान छिपाने कि जरूरत में कैसी बेबसी होगी जो अंतरंग रिश्तों में सच का सामना नहीं कर सकती? कौन-सी तकनीक, कौन-सा ऐप, कौन सा विज्ञापन अभियान इसे ठीक कर सकता है?
1993 और 2013 में पारित कानूनों के तहत हाथ से मैला साफ करना प्रतिबंधित है, फिर इसे लागु क्यों नहीं किया गया? सुप्रीम कोर्ट ने सीवर की सफाई में मरने वाले हर एक कर्मचारी के परिवार को 10 लाख रु. के मुआवजे का आदेश दिया है. फिर भी सिर्फ दो प्रतिशत ही इसका लाभ उठा सके है. हमारी रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 10-15 साल में सीवर की सफाई करने के दौरान करीब 1,870 सफाईकर्मियों की मौत हुई. कई मामले तो सामने भी नहीं आए,
अपनी किताब कर्मयोग में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हाथ से मैला साफ करने को एक ‘आध्यात्मिक अनुभव” माना है. मेरा उनसे निवेदन है कि वे हाथ से मैला साफ करने वाले किसी व्यक्ति से व्यक्तिगत रूप से पूछें कि क्या दूसरों के मल साफ करने के दौरान उसे पलभर के लिए भी आध्यात्मिक अनुभव होता है, या रोजाना काम पर निकलना क्या उसके लिए तीर्थयात्रा जैसा है?
दरअसल इनके पास कोई और चारा भी नहीं, क्योंकि इन जातियों में जन्मे लोगों के लिए कोई वैकल्पिक रोजगार मौजूद नहीं है. इस तरह का ‘आध्यात्मिक ’ रंगरोगन कर सरकार इन लोगों के पुनर्वास के लिए धन आवंटित करने में कोताही करती है. अगर कोई छोटा कोष आवंटित होता भी है तो वह सरकारी विभागों की बंदरबांट और समितियों और सर्वेक्षण कर रहे सरकारी कर्मचारियों को तो रोजगार मिल जाता है, लेकिन उन्हे ही नहीं मिलता जिनके नाम पर कोष जारी होता है.
यही सरकार स्वच्छता अभियान के तहत शौचालयों के निर्माण के लिए 2 लाख करोड़ रूपए आवंटित करती है. इनमें से अधिकतर शौचालय गड्ढ़े या सेप्टिक टैंक वाले होते हैं-5 करोड़ शौचालय का मतलब 5 करोड़ गड्ढ़े इन्हे कौन साफ करेगा? वाल्मीकि लोग, और कौन? मीडिया की सुर्खियों में जगमग दिख रहा स्वच्छ भारत अभियान ऐसी तस्वीरें पेश करता है मानो सभी भारतीय साफ-सफाई की इस नई लहर में मिल-जुलकर हाथ बटां रहे है. लेकिन जरा मरने वाले सफाई कर्मचारियों की जाति के बारे में पिछला ब्योरा मालूम करें. सरकारी टास्क फोर्स के हाल के अनुमान के अनुसार, देश में हाथ से मैला साफ करने वालों की संख्या 53,000 है. लेकिन यह अनुमान 640 जिलों में से सिर्फ 121 जिलों के सर्वेक्षण पर आधारित है. इसमें कुछ गलत है. हमारा अनुमान है कि उनकी संख्या करीब 1,50,000 है.
सरकार के बाद इसकी जिम्मेदारी समाज की है. हमें जातिगत भदभाव, उसकी जड़े कितनी गहरी या विस्तृत है, उसे खंगालने की जरूरत है. न तो समाज हमारा दुश्मन है, न राज्य हम सरकार की नीतियों और परंपरा के वेश में सामाजिक भेदभाव का विरोध करते है. आज स्थितियां बदल गई हैं. समाज में कड़वाहट फैली है. पहले जब हमने ड्राई लैट्रिन के खिलाफ अभियान चलाया तो जिन लोगो ने असुविधाएं झेली, उन्होने भी हमारे खिलाफ गुस्सा नहीं दिखाया था, बल्कि हमें समझा कि हम क्या और क्यों कर रहे हैं. हम चाय पीते हुए अपने मतभेदों पर चर्चा कर सकते थे. लेकिन आज हालात वैसे नहीं.
वास्तविक आध्यात्मिक अनुभव तभी तक जीवंत होगा जब हाथ से मैला ढ़ोने का चलन समाप्त होगा. उन बेबस परिवारों को सम्मानित रोजगार दिलाने की पहल होनी चाहिए जो जिंदा रहने के लिए इस काम को करने के लिए मजबूर है.
बेजवाड़ा विल्सन
बेजवाड़ा विल्सन सफाई कर्मचारी आंदोलन के राष्ट्रीय संयोजक है.
उन्हे 2016 में मैगसेसे पुरस्कार से नवाजा गया है.
नई दिल्ली। बिहार की राजधानी पटना से करीब 200 किलोमीटर दूर 18 सितंबर को महादलित परिवार के तकरीबन 150 घर जलकर खाक हो गए. घटना पटना से सटे बख्तियारपुर के रूपस महाजी गांव की है. घटना शाम 7 बजे के करीब एक गैस सिलेंडर के फट जाने से घटी. अचानक हुए इस हादसे से पूरी बस्ती आग की चपेट में आ गई. सभी मकानों के कच्चे होने और आपस में सटे होने के कारण एक-एक कर सभी मकान आग की चपेट में आ गए.
सबसे बड़ी मुसीबत यह है कि आग ने घरों के साथ मवेशियों को भी अपनी चपेट में ले लिया, जिससे इन परिवारों का सब कुछ जलकर खाक हो गया. घटना के बाद कई बार हुई बारिश ने पीड़ित परिवारों की मुसीबत को औऱ बढ़ा दिया. घटना के एक हफ्ते बाद भी प्रशासन पीड़ित परिवारों को उचित राहत सामग्री मुहैया नहीं करवा पाया है और न ही उनके रहने का ही कोई इंतजाम किया गया है.
इस बड़ी घटना के बाद प्रशासन का रवैया हैरान करने वाला है. राहत के नाम पर सरकार की ओर से अब तक महज 3000 रुपये और एक पॉलीथिन दिया गया है, और वह भी महज 40 लोगों को. हालांकि भीम सेना नाम के संगठन के युवाओं ने पीड़ित परिवारों की मदद को हाथ बढ़ाया है. संगठन की ओर से विमल प्रकाश, धर्मवीर धर्मा सहित तमाम कार्यकर्ताओं ने घटनास्थल पर दो दिन तक कैंप कर के पीड़ितों की मदद की और राहत सामग्री का वितरण किया.
इस पूरी घटना में दुखद पहलू यह है कि 100 से ज्यादा पीड़ितों को अब तक प्रशासन से कोई मदद नहीं मिल सकी है. वो लगातार मदद आस लगाए बैठे हैं, लेकिन सरकार ने घटना के बाद एक चौथाई लोगों को फौरी मदद पहुंचा कर चुप्पी साध ली है. यह इसलिए भी हैरान करने वाली है, क्योंकि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का ताल्लुक भी उसी बख्तियारपुर से है, जहां की यह घटना है.
जाति… जिसके बारे में कहा जाता है कि वो जाति नहीं… जाति समाज की सच्चाई है. आप चाहे इससे जितना बचना चाहें, यह घूम फिर कर आपके सामने आ ही जाती है. खास कर वंचित तबके के सामने तो जाति का सवाल जन्म से लेकर मरण तक बना रहता है. गांवों में जाति के सवाल ज्यादा आते थे और माना जाता था कि महानगर जातिवाद से अछूते हैं. अगर वहां जातिवाद है भी तो ढके-छिपे रूप में. लेकिन जातिवाद ने अब महानगरों को भी अपनी चपेट में लेना शुरू कर दिया है.
बीते कुछ सालों में जातीय संघर्ष समाज के भीतर से निकल कर सड़क पर आ गया है. अब लोग जाति को अपने घर और समाज के भीतर नहीं छोड़ रहे हैं, बल्कि वो हर वक्त उससे चिपके हुए हैं. घर के बाहर.. सड़क पर भी. सड़क पर सरपट भागती इन गाड़ियां को देखिए… आपको खुद समझ में आ जाएगा. ये गाड़ियां सिर्फ इंसानों को नहीं ढो रही, बल्कि ये उस जातीय अहं का वाहक बन गई हैं, जिसे बार-बार दिखाने और बताने में कुछ खास तबके के लोग अपनी बहादुरी समझते हैं.
आप इन गाड़ियों को गौर से देखिए. इन पर लिखी पहचान को देखिए. ब्राह्मण, राजपूत, जाट, गुज्जर जैसे जातीय पहचान लेकर चलने वाली गाड़ियां पहले इक्का-दुक्का दिखती थीं लेकिन यह चलन अब आम हो गया है.
हालांकि उच्च जातीय पहचान लिए इन लोगों के बीच आपको वो जातियां भी दिख जाएंगी जो कल तक अपनी जाति बताने से हिचकती थी. इस ऑटो पर लिखा ‘चौरसिया’ और ‘सायकिल’ पर लिखा जाटव जी, कुछ ऐसे ही उदाहरण हैं.
हालांकि गाड़ियों से पहचान को जोड़ने का सिलसिला कोई नया नहीं है. तमाम गाड़ियों में आपको ईश्वर, अल्लाह, जीसस, गुरुनानक और बुद्ध आराम से देखने को मिल जाएंगे. लेकिन हाल तक ये गाड़ियों के भीतर ड्राइविंग सीट के सामने डैसबोर्ड पर लगाए जाते थे. हर कोई अपनी आस्था के हिसाब से तस्वीरों और नाम का चुनाव करता था. हालांकि यह अलग विषय है कि बावजूद इसके हर रोज सड़कों पर होने वाले एक्सिडेंट में कोई कमी नहीं आई है. खैर, यह आस्था का मुद्दा हो सकता है. लेकिन यही ईश्वर जब गाड़ियों से बाहर निकल आते हैं, क्या तब भी इसे महज आस्था माना जाए?
बहरहाल… जाति ढोती ये तस्वीरें कोई आम बात नहीं है, बल्कि यह समाज के बदलने की प्रक्रिया है. यह समाज के भीतर रहने वाले लोगों के एक खास पहचान के खाने में बंट जाने की तस्वीर है. ये तस्वीरें यह भी बताती हैं कि राजनीति ने समाज को किस तरह बांट दिया है. किसी भी बेहतर समाज के बेहतर भविष्य के लिए ऐसी तस्वीरें ठीक नहीं है.
सबसे पहले भड़ास 4 मीडिया को 10 वर्ष पूरा करने की बधाई। आज उन्होंने मुझे यहां देश के दिग्गज पत्रकारों के बीच में खड़ा होने का मौका दिया है, इसके लिए भी मैं उनका आभारी हूं। असल में मुझे कुछ कहना नहीं है, मुझे पूछना है। जो अक्सर कई सालों से मेरे जेहन में है। और उन सवालों को मुझे आप पत्रकारों से ही पूछना है। भड़ास ने हमेशा मीडिया से सवाल पूछा है, मीडिया पर सवाल उठाया है। इसलिए उन सवालों को पूछने के लिए भड़ास का यह मंच सबसे बेहतर मंच है।
कल मैंने एक खबर पढ़ी। नवभारत टाइम्स में- उसकी हेडिंग थी-
“दलित व्यक्ति ने ससुराल वालों पर पत्नी से अलग करने का आरोप लगाया, आत्मदाह किया”
मैंने उस हेडिंग को दुबारा पढ़ा, और मैंने खुद से पूछा कि क्या उस खबर में यह बताना जरूरी था कि वह व्यक्ति दलित था। क्योंकि मामला पारिवारिक था और यहां जातीय पहचान उजागर करने का मुझे मतबल समझ में नहीं आया. इसी तरह तकरीबन 7-8 साल पहले मैंने एक खबर जागरण में भी पढ़ी थी, हेडिंग थी…
“आदिवासी युवक को करंट लगा”
पिछले आठ सालों में मैं वह हेडिंग नहीं भूल पाया। क्या वहां यह बताना जरूरी था कि युवक आदिवासी है।
इसी तरह जब भी दलित समाज से ताल्लुक रखने वाली किसी बच्ची या महिला से बलात्कार होता है तो उसे जरूर लिखा या बताया जाता है। दलित महिला के साथ बलात्कार, दलित युवती के साथ बलात्कार, दलित बच्ची के साथ बलात्कार। वहीं दूसरी ओर किसी अन्य समाज की महिला का बलात्कार होने पर उसकी जाति का जिक्र नहीं होता, क्यों? अमूमन तो किसी दूसरे समाज की महिला के साथ ऐसी दुर्घटनाएं काफी कम होती है, और ये किसी के साथ नहीं होना चाहिए। लेकिन अगर हो भी जाती है तो यही मीडिया उसकी पहचान नहीं बताता। आखिर क्यों?? क्या वह एक समाज की इज्जत उछालता है और दूसरे की बचाता है। वो दोनों को एक नजर से क्यों नहीं देखता??
मीडिया की दुनिया में एक शब्द गढ़ा गया है.. “दबंग”… इस शब्द से जो खबरे आती है, वो देखिए।
– दबंगों ने दलित को पीटा
– दलित ने मटका छू लिया तो दबंगों ने हाथ काट डाला।
– दबंगों ने दलित के साथ ये किया.. वो किया…. ऐसे किया… वैसे किया..
कौन है ये दबंग?? किसने बनाया है ये दबंग.. ऐसी हेडिंग क्यों?
आंकड़े और सर्वे ये साफ बताते हैं कि मीडिया में किसका वर्चस्व है। मीडिया के शीर्ष पदों पर किस जातीय पहचान के लोग बैठे हैं?
तो क्या कहीं ऐसा तो नहीं है कि खबरों की ऐसी हेडिंग देकर कमजोरों को डराया जाता है कि अगर तुमने हमारे खिलाफ जाने की हिम्मत की, अगर तुमने हमारा कहा नहीं माना तो तुम्हें पीटा जाएगा, तुम्हारे घर की औरतों का बलात्कार किया जाएगा??
क्या ऐसा कर समाज के एक विशेष वर्ग को …जिसे दबंग कह कर प्रचारित किया जा रहा है, प्रोत्साहित नहीं किया जाता? और अगर ऐसा नहीं है, संपादकों का, पत्रकारों का मन साफ है तो ऐसे लोगों के लिए दबंग शब्द की जगह जातिवादी और गुंडे शब्द का इस्तेमाल क्यों नहीं किया जाता?
वो क्राइम करता है न… वो तो गुंडा हुआ। उसे दबंग होने का सर्टिफिकेट क्यों दे दिया जाता है?
Bhadas4media के कार्यक्रम में दलित दस्तक के संपादक अशोक दास
मेरा सवाल है कि दलित और आदिवासी समाज देश का एक चौथाई है। लेकिन मीडिया उनके साथ खड़ा क्यों नहीं होता। जब हरियाणा में मिर्चपुर होता है, जब महाराष्ट्र में खैरलांजी होता है और जब आदिवासी समाज अपनी आवाज़ उठाता है तो ये मीडिया पीड़ितों को इंसाफ दिलाने के लिए सामने क्यों नहीं आता, मुहिम क्यों नहीं चलाया जाता? क्या ये लोग अखबारों के पाठक नहीं हैं? क्या ये चैनलों के दर्शक नहीं हैं?
ये लोग भी अखबार खरीद कर पढ़ते हैं, ये लोग भी आपका चैनल सब्सक्राइब करते हैं। भाई उन्हें अपना ग्राहक समझ कर ही उनकी बात कर लो।
जब हम किसी दुकान पर जाते हैं तो दुकानदार को पैसे देते हैं, उससे समान मांगते हैं। वो हमें पैसे के बदले सामान देता है, लेकिन मीडिया ऐसा इकलौता दुकान है, जो देश के वंचित तबके से पैसे तो लेता है, लेकिन बदले में उन्हें कुछ नहीं देता। भला हो मार्क जुकरबर्ग का जिसने फेसबुक बना दिया, भला हो व्हाट्सअप बनाने वालों का। वरना न तो इस देश के अखबार और चैनल न तो रोहित वेमुला को छापते और न ही ऊना की घटना बताते।
भाई आप जिस धूम से गांधी जयंती, दशहरा और रामनवमी मानते हो, उस धूम से अपने अखबारों में आम्बेकर जयंती क्यों नहीं मानते। सावित्रीबाई फुले और ज्योतिबा फुले, संत गाडगे महाराज, कबीर और रैदास की जयंती क्यों नहीं मनाते। क्या इनका समाज निर्माण में कोई योगदान नहीं है?? इन खबरों को इन बहुजन नायकों को आपने ब्लैकलिस्टेड कर के क्यों रखा है??
माफ करिएगा लेकिन आपलोग अपने इस बड़े ग्राहक समुदाय का विश्वास खोने लगे हैं। वैकल्पिक मीडिया इसी का परिणाम है।
इसी तरह जब नारायणन साहब भारत के राष्ट्रपति बने थे तो ये हैडिंग हिंदी और अंग्रेजी के तमाम अखबारों में प्रकाशित हुए थे। हैडिंग थी- “K.R Narayanan is the first dalit president of india”.. राष्ट्रपति बन के भी वो दलित रहें। चलिए मान लेते हैं कि पहली बार एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम हुआ था तो उनकी सामाजिक पृष्ठभूमि का जिक्र करना जरूरी था। तो मेरा सवाल है कि फिर जब मुक्केबाज मैरीकॉम ने ओलंपिक में देश को किसी एकल खेल में पहला स्वर्ण पदक दिलवाया तो आपलोगों ने ये क्यों नहीं लिखा कि एक आदिवासी महिला ने देश के लिए पहला ओलिम्पिक पदक जीता है। अगर आप नारायणन के राष्ट्रपति बनने पर हैडिंग में ही उनकी जाति बताना जरूरी समझते हैं तो आपको मैरीकॉम की जाति भी बतानी पड़ेगी। वरना आपके नजरिये पर सवाल उठेंगे। जब किसी दलित और आदिवासी महिला के साथ बलात्कार होता है तो दलित और आदिवासी की बेटी होती है, लेकिन जब वो ओलंपिक में मैडल लाती है तो वो देश की बेटी बन जाती है। ये कैसा दोहरा रवैया है, ये दोहरा रवैया ठीक नहीं है।
भड़ास के कार्यक्रम में राजस्थान के मिशनरी साथी और वरिष्ठ पत्रकार भंवर मेघवंशी जी को भी सम्मानित किया गया… अशोक दास औऱ भंवर मेघवंशी
पटना में मेरे एक मित्र हैं- संजय कुमार। उन्होंने एक किताब लिखी है, मीडिया में दलित ढूंढते रह जाओगे। मैं इस मंच से पूछना चाहता हूँ, की सच मे ये लोग कहाँ खो जाते हैं। मैंने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मास कम्युनिकेशन से पढ़ाई की है। जब मैंने कोर्स किया तो वहां हिंदी जर्नलिज्म में 40 बच्चे थे। अंग्रेजी में भी इतनी ही सीटें थी। तो अगर वहां रिजर्वेशन ठीक से मिला हो तो माना जाए कि 15-20 बच्चे पत्रकारिता के लिए आये थे। मैं उनमे से बस 4-5 को जनता हूँ जो मीडिया में काम कर रहे हैं। और जो आते भी हैं वो सब एडिटर या फिर सीनियर सुब एडिटर के आगे क्यों नहीं बढ़ पाते।
मैं अपनी बात कहता हूँ, 2 साल तक काम करने के बावजूद मेरे संपादक ने मुझे सब एडिटर लायक नहीं समझा। खैर ये तो अच्छा हुआ, क्योकि मैं आज आपलोगों के सामने खड़ा हूँ।
मैंने अपनी तमाम बातें रखी.. हो सकता है कि आप उसे याद रखें और ये भी हो सकता है कि इस कार्यक्रम से बाहर निकलने के बाद आप उसे बेकार समझकर भूल जाएं, लेकिन आपके भूल जाने से वो सवाल खत्म नहीं हो जाएंगे। वो सवाल बने रहेंगे और अपना जवाब मांगते रहेंगे। अंत में भड़ास4मीडिया और उसके शानदार व्यक्तित्व वाले संपादक यशवंत जी का धन्यवाद की उन्होंने मुझे अपनी बात रखने का मौका दिया।
नई दिल्ली। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बयान पर उदित राज और रामदास अठावले नाराज हो गए हैं. दोनों नेताओं ने कहा है कि मुख्यमंत्री को बयान वापस लेना चाहिए क्योंकि इससे दलितों में नाराजगी बढ़ेगी. मुख्यमंत्री चौहान ने हाल में एक ट्वीट कर कहा था कि मध्य प्रदेश में एससी-एसटी एक्ट के तहत बिना जांच के गिरफ्तारी नहीं होगी.
सीएम शिवराज ने अपने ट्विटर हैंडल से एक ट्वीट किया था कि मध्य प्रदेश में एससी-एसटी एक्ट में बिना जांच के गिरफ्तारी नहीं की जाएगी. उन्होंने कहा कि एमपी में एससी/एसटी एक्ट का दुरुपयोग नहीं होगा.
चौहान से जब सवाल किया गया कि क्या राज्य सरकार केंद्र सरकार के अध्यादेश के एवज में कोई अध्यादेश लाएगी, तो उन्होंने कहा, “मुझे जो कहना था वो मैंने कह दिया.” अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य में सवर्ण, पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति, जनजाति सभी वर्गों के हितों को सुरक्षित रखा जाएगा, जो भी शिकायत आएगी, उसकी जांच के बाद ही किसी की गिरफ्तारी होगी.
क्या कहा उदित राज ने
बीजेपी सांसद उदित राज ने कहा कि इस मामले में मैं तकलीफ महसूस कर रहा हूं कि ऐसा बयान क्यों दिया है. हमारी सरकार कानून मजबूत करती है और हमारे चीफ मिनिस्टर डाइल्यूट करते हैं. इससे बड़ी बेचैनी महसूस कर रहा हूं. फोन भी आ रहे हैं. समाज के अंदर फिर से निराशा है. आक्रोश पैदा हो गया है, इसलिए इस पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए.
उदित राज ने कहा, यह जो हमारा समाज है, इसमें एकता होनी चाहिए. जो अंतर्विरोध है खत्म होने चाहिए. फासला खत्म होना चाहिए. इससे जातिवाद बढ़ेगा. मैं बात पार्टी में भी रखूंगा. चौहान साहब से बातचीत करूंगा. मैं राष्ट्रीय अध्यक्ष से भी बात करूंगा. एससी-एसटी के मामले में ही क्यों ऐसा दोहरा चरित्र, दोहरा मापदंड अपनाया जा रहा है. शिवराज सिंह चौहान को कहूंगा कि वह इस मामले को वापस लें, इस बयान को वापस लें.
क्या कहा अठावले ने
चौहान के बयान के खिलाफ आरपीआई नेता और सांसद रामदास अठावले भी उतर गए हैं. उन्होंने कहा, हो सकता है शिवराज सिंह चौहान ने अपना बयान अगड़ी जातियों को खुश करने के लिए दिया हो लेकिन उन्हें ऐसी कोई बात नहीं बोलनी चाहिए जिससे दलित समुदाय में भय या असुरक्षा की भावना पैदा हो. अठावले ने कहा कि चौहान को अपना बयान वापस लेना चाहिए क्योंकि मुख्यमंत्री अगड़े और पिछड़े दोनों के लिए होता है.
सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी एक्ट के मामले में बड़ा फैसला सुनाया था और जांच के बाद ही प्रकरण दर्ज करने की बात कही थी, मगर केंद्र सरकार ने एक अध्यादेश लाकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बदल दिया था.
इस अध्यादेश के मुताबिक, एससी-एसटी समाज के व्यक्ति की ओर से शिकायत किए जाने पर बिना जांच के मामला दर्ज किया जाएगा और आरोपी छह माह के लिए जेल जाएगा. केंद्र के इस फैसले के खिलाफ मध्यप्रदेश में विरोध प्रदर्शन का दौर लगातार जारी है.
मध्य प्रदेश में विरोध तेज
बीते 3 सितंबर को मध्य प्रदेश में सवर्णों का हुजूम दलित कानून के खिलाफ सड़कों पर उतरा था और अपना विरोध दर्ज कराया था. यूपी के कई हिस्सों में भी विरोध की खबरें हैं. कुछ दिन पहले बिहार के कई जिलों में सवर्णों ने खुलेआम विरोध प्रदर्शन कर नाराजगी जाहिर की थी.
मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं. उसके पहले सवर्णों का विरोध काफी अहम माना जा रहा है. यहां अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा और क्षत्रिय महासभा ने बीजेपी के खिलाफ खुलकर विरोध शुरू किया. चूंकि केंद्र और मध्य प्रदेश दोनों जगह बीजेपी की सरकार है, इसलिए इस कानून का ठीकरा इस पार्टी पर फोड़ते हुए महासभा ने बीजेपी को हराने का संकल्प तक ले लिया.
उधर, अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमर सिंह भदौरिया ने कहा कि अगले विधानसभा चुनाव में संगठन बीजेपी का खुलकर विरोध करेगा और लोगों से इसके खिलाफ वोट देने की अपील करेगा. भदौरिया ने कानून में केंद्र सरकार की ओर से लाए गए बदलाव को गलत ठहराते हुए कहा कि इससे सामान्य वर्ग के हितों को गहरी चोट पहुंची है.
नई दिल्ली। चुनावी मौसम में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को रिझाने का सरकार ने एक और नया दांव चला है. इसके तहत ओबीसी वर्ग के लिए चलाई जाने वाली पोस्ट मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना के दायरे को बढ़ा दिया गया है. जिसका लाभ अब डेढ़ लाख सलाना आमदनी वाले परिवारों के बच्चों को भी मिलेगा. अभी तक इस योजना में एक लाख की सलाना आमदनी वाले ओबीसी परिवारों के बच्चे ही पात्र थे. बावजूद इसके इस योजना का लाभ मौजूदा समय में 25 लाख से ज्यादा ओबीसी परिवारों के बच्चों को मिल रहा है.
केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने इस योजना में यह बदलाव उस समय किया है, जब आने वाले कुछ महीनों में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान सहित चार राज्यों में चुनाव होने है. ऐसे में सरकार को इसका बड़ा लाभ मिल सकता है. साथ ही योजना में इस बदलाव से लाभार्थियों की संख्या भी काफी बढ़ सकती है. वैसे भी इस योजना में बदलाव की यह मांग पिछले कई सालों से उठ रही थी. राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों ने खासतौर से इस बदलाव की मांग की थी. सरकार ने इससे पहले प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति में भी कुछ इसी तरह से का बदलाव किया था. जिसके तहत पात्रता की सीमा को बढ़ाने हुए सलाना ढाई लाख कर दी थी. इससे पहले सरकार ने ओबीसी कमीशन को संवैधानिक दर्जा देकर इस वर्ग को एक तोहफा दिया है.
मंत्रालय ने इसके अलावा ओबीसी वर्ग के लिए चलाए जाने वाले पोस्ट मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना के दो अन्य बदलाव भी किए है, जिसमें इस योजना की 30 फीसद राशि इस वर्ग से आने वाली बालिकाओं और पांच फीसद राशि दिव्यांगजनों पर खर्च की जाएगी. केंद्र ने राज्यों को अनिवार्य रुप से इसे लागू करने के निर्देश भी दिए है. योजना में जो दूसरा बड़ा बदलाव किया है, उसके तहत छात्रवृत्ति के लिए राज्यों को पैसा अब ओबीसी की आबादी के हिसाब से किया जाएगा. मौजूदा समय में राज्यों की मांग के आधार पर इसका फैसला किया जाता था. मंत्रालय ने इस संबंध में राज्यों को नई गाइड लाइन भी जारी कर दी है.
नई दिल्ली। बसपा सुप्रीमो मायावती ने कहा है कि आरएसएस का दिल्ली में तीन दिनों तक चला बहु-प्रचारित संवाद राजनीति से ज्यादा प्रेरित था. यह भाजपा की केंद्र व राज्य सरकार की विफलता से चुनाव के समय लोगों का ध्यान बंटाने के लिए किया गया.
बसपा सुप्रीमो ने जारी बयान में कहा है कि केंद्र सरकार की विफलताओं से जनता के गुस्से से आरएसएस भी चिंतित है. उसने भाजपा की जीत के लिए सब कुछ दांव पर लगा दिया था. अब इन विफलताओं से ध्यान बांटने का इस तरह का प्रयास सफल होने वाला नहीं है. कहा, ‘अयोध्या में जन्मभूमि पर मंदिर बने और अगर मुसलमान खुद बनवाते हैं तो बरसों से उन पर उठ रही अंगुलियां झुक जाएंगी’
संबंधी आरएसएस प्रमुख के बयान से बसपा सहमत नहीं है. एक नहीं बल्कि अनेकों मंदिर बन जाएं तब भी संकीर्ण संघी हिंदु व मुसलमान के बीच रिश्ते सुधारने वाले नहीं हैं. इनकी बुनियादी सोच व मानसिकता दलित, मुस्लिम व अन्य अल्पसंख्यक विरोधी है.
मायावती ने केंद्र सरकार द्वारा लाए गए ‘तीन तलाक’ अध्यादेश को पूरी तरह राजनीति से प्रेरित बताया है. उन्होंने कहा कि यह लोगों का ध्यान हिंदू-मुस्लिम की तरफ भटकाने की कोशिश भर है. भाजपा इस तरह के संवेदनशील मुद्दों पर भी स्वार्थ की राजनीति कर रही है.
छत्तीसगढ़ में पिछले डेढ़ दशक से सत्तारुढ़ बीजेपी राज्य में अपनी सत्ता बचाए रखने की कोशिशों में जुटी है, तो कांग्रेस सत्ता में वापसी के लिए संघर्षरत है, लेकिन इस बीच नए राजनीतिक समीकरण में मायावती ने पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की नई पार्टी के साथ गठबंधन कर लिया है.
भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने गुरुवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि पाकिस्तान के आग्रह पर विदेश स्तर की बातचीत करने के लिए तैयार हो गया है. भारत और पाकिस्तान के विदेश मंत्रियों के बीच मुलाकात होगी, हालांकि मुलाकात की जगह, समय और तारीख अभी बाद में तय होगी.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना के बाद के जो प्रमुख पड़ाव हैं, उनमें संघ के संस्थापक केशवराव बलिराम हेडगेवार के बाद दूसरा अहम नाम है गुरु गोलवरकर का. हेडगेवार के संघ को आक्रामक और तेज़ी से प्रसारित करने का काम गोलवरकर ने किया. इसके बाद राममंदिर आंदोलन के दौरान दूसरा बड़ा विस्तार था मधुकर दत्तात्रेय यानी बालासाहेब देवरस की सोशल इंजीनियरिंग. इस दौरान संघ अगड़ी जातियों से निकलकर पिछड़ों और दलितों, आदिवासियों को एक अभियान के तहत खुद से जोड़ने की रणनीति के साथ आगे बढ़ा.
पाकिस्तान की बॉर्डर एक्शन टीम के कायराना हमले में बीएसएफ जवान की मौत और शव के साथ बर्बरता करने के मामले पर भारत सख्त कार्रवाई करने की तैयारी में है. वहीं सूत्रों के मताबिक, जवान पर हमला करने से एक दिन पहले बीएसएफ ने इलाके में पाकिस्तान का हेलिकॉप्टर देखा था. वहीं PAK रेंजर्स अब भी इस घटना को मानने से इनकार कर रहे हैं. पाकिस्तान के रेंजर्स भारत के ऊपर आरोप लगा रहे हैं.
इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीनों (EVMs) से छेड़छाड़ के आरोप विपक्षी पार्टियां गाहे-बगाहे लगाती रहती हैं. इसी मुद्दे को लेकर सत्तारूढ़ पार्टी पर भी निशाना साधा जाता रहा है. वहीं बीते कुछ वर्षों में कम से कम 9 देश भारतीय चुनाव आयोग से इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीनों के लिए आग्रह कर चुके हैं. ये खुलासा सूचना के अधिकार के तहत एक याचिका (RTI) से हुआ है.
भोपाल। बसपा प्रमुख मायावती मध्य प्रदेश में अकेले चुनाव लड़ेंगी. मायावती ने कहा कि वह सभी 230 सीटों अपने उम्मीदवार खड़े करेंगी. बसपा ने गुरुवार को उम्मीदवारों की पहली सूची भी जारी कर दी. इस सूची में 22 उम्मीदवारों के नाम हैं. बसपा की पहली सूची में जिन 22 सीटों के लिए उम्मीदवार घोषित किए गए हैं, उनमें तीन वर्तमान विधायक हैं. इससे कांग्रेस को लगा बड़ा झटका लगा है और BSP से गठबंधन की आस खत्म हो गई है. जारी सूची के अनुसार, मुरैना जिले के सबलगढ़ से लाल सिंह केवट, अम्बाह से सत्य प्रकाश, भिंड से संजीव सिंह कुशवाह, सेवढ़ा से लाखन सिंह यादव, करैरा से प्रागीलाल जाटव, अशोकनगर से बाल कृष्ण महोबिया, छतरपुर जिले के चंदला से पुष्पेंद्र अहिरवार को उम्मीदवार बनाया गया है.
बसपा के प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप अहिरवार के अनुसार, दमोह के पथरिया से राम बाई परिहार, जबेरा से डेलन सिंह धुर्वे, सतना के रैगांव से उषा चौधरी, अमर पाटन से छंगे लाल कोल, रामपुर बघेलान से रामलखन सिंह पटेल, रीवा के सिरमौर से राम गरीब कोल, सेमरिया से पंकज सिंह पटेल, देवतलाब से सीमा सिंह, मनगंवा से शीला त्यागी, सिंगरौली के चितरंगी से अशोक गौतम, शहडोल के धोहनी से अवध प्रताप सिंह, उमरिया के बांधवगढ़ से शिव प्रसाद कोल, कटनी के बहोरीबंद से गोविंद पटेल और जबलपुर के सीहोरा से बबीता गोटिया को उम्मीदवार बनाया है.
बसपा के उम्मीदवारों की यह सूची राष्ट्रीय महासचिव व प्रदेश प्रभारी रामअचल राजभर और प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप अहिरवार के दस्तखत से जारी की गई है. बता दें कि मायावती ने छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव के लिए राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की पार्टी के साथ गठबंधन किया है.
नई दिल्ली। बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती ने कांग्रेस को झटका देते हुए छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में अजीत जोगी के नेतृत्व वाली जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जकांछ) से गठबंधन करने का फैसला किया है. इधर मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस के साथ गठबंधन की चर्चा को झटका देते हुए बहुजन समाज पार्टी ने गुरुवार को 22 प्रत्याशियों का एलान कर दिया.
छत्तीसगढ़ की 90 सीटों वाली विधानसभा की 35 सीटों पर जहां बसपा चुनाव लड़ेगी, वहीं 55 सीटों पर जकांछ उम्मीदवार उतारेगी. गठबंधन पर फैसले के लिए जकांछ के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी गुरवार को लखनऊ में बसपा प्रमुख मायावती से मिले. बाद में संयुक्त हस्ताक्षर से लिखित बयान जारी किया. मायावती ने कहा कि अजीत जोगी ही गठबंधन के मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी होंगे. गठबंधन की जल्द ही बड़ी रैली छत्तीसगढ़ में होगी.
मध्य प्रदेश, राजस्थान के लिए कांग्रेस पर बढ़ाया दबाव छत्तीसगढ़ में जोगी से गठबंधन करके जहां बसपा ने कांग्रेस को झटका दिया है, वहीं उसने लोकसभा चुनाव से पहले राजस्थान और मध्यप्रदेश विस चुनाव में कांग्रेस पर समझौते का दबाव भी बढ़ा दिया है. दरअसल कांग्रेस, राज्यों के चुनाव में भी बसपा से समझौता तो करना चाहती है लेकिन, जितनी सीटें मायावती चाह रही हैं उतनी देने को तैयार है.
राज्य के प्रमुख राजनीतिक दल पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस के बाद बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने भी निकाय चुनाव के बहिष्कार का एलान किया है. प्रदेश नेतृत्व ने राज्यपाल सत्यपाल मलिक से राज्य के मौजूदा हालात को ध्यान में रखते हुए चुनावों को स्थगित करने की मांग की है.
वीरवार को यहां पत्रकारों से रूबरू बसपा के प्रदेश प्रधान सोमराज मगोत्रा ने कहा कि राज्य की मौजूदा परिस्थितियां चुनाव के लायक नहीं हैं. भाजपा और आरएसएस राज्य की जनता पर जबरन चुनाव थोप रहे हैं. भाजपा लोकतांत्रिक व्यवस्था में हर क्षेत्र में विफल रही है. राज्य के प्रमुख दलों के चुनाव से किनारा करने के बाद भाजपा सत्ता के लिए कुछ भी करने को तैयार है.
पंचायती चुनाव पर पूछे गए सवाल पर मगोत्रा ने कहा कि इस पर आगामी हालात को देखते हुए बाद में फैसला लिया जाएगा. राज्य में 8 अक्तूबर से चार चरणों में निकाय और 17 नवंबर से नौ चरणों में पंचायत चुनाव करवाए जा रहे हैं.
नई दिल्ली। गोरखपुर विश्वविद्यालय के दर्शनशास्त्र विभाग में जहर खाकर शोध छात्र दीपक कुमार ने बृहस्पतिवार को खुदकुशी करने की कोशिश की. गंभीर हालत में शोध छात्र को जिला अस्पताल ले जाया गया. हालत बिगड़ने के बाद उसे बीआरडी मेडिकल कॉलेज रेफर कर दिया गया. जहर खाने से पहले शोध छात्र ने मोबाइल से वीडियो बनाया और डीन कला संकाय प्रो. सीपी श्रीवास्तव के साथ विभागाध्यक्ष प्रो. द्वारिकानाथ पर उत्पीड़न का गंभीर आरोप लगाया.
दीपक ने कहा कि तीन महीने से दौड़ाया जा रहा है. साथ ही जातिसूचक शब्दों का प्रयोग करके अपमानित किया जा रहा. इस मामले को विश्वविद्यालय प्रशासन ने गंभीरता से लिया. कुलपति ने विभागाध्यक्ष प्रो. द्वारिका को पद से हटा दिया. साथ ही प्रति कुलपति प्रो. एसके दीक्षित की अध्यक्षता में जांच कमेटी गठित कर दी. कुलपति का कहना है कि रिपोर्ट आने के बाद दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी.
झंगहा क्षेत्र के राघोपट्टी निवासी जगदीश के पुत्र दीपक ने इसी वर्ष दर्शनशास्त्र विभाग में शोध के लिए पंजीकरण कराया है. वह बिलंदपुर में किराए का मकान लेकर रहता और पढ़ाई करता है. दीपक ने अपराह्न तीन बजे के आसपास जो वीडियो बनाकर वायरल किया, उसके मुताबिक मनमाफिक शोध सुपरवाइजर प्रो. डीएन यादव को चुना था. इस वजह से डीन कला संकाय, विभागाध्यक्ष नाराज थे. आए दिन दुर्व्यवहार और जातीय टिप्पणी करते थे. दीपक का आरोप है कि दर्शनशास्त्र विभाग के इन दो शिक्षकों ने मेरी पीएचडी पूरी न करने देने की धमकी दी थी.
इस मामले की शिकायत कुलपति से छह सितंबर को ही की थी लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई. बल्कि इसका उल्टा असर हुआ. डीन, विभागाध्यक्ष का नाम लेकर 18 सितंबर को विश्वविद्यालय के मुख्य द्वार पर कुछ लोगों ने मुझे जान से मारने की धमकी देने लगे. इसके बाद दीपक ने वीडिया बनाकर वायरल किया.
दीपक ने कहा कि सारे मामले से कुलपति को अवगत कराने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं की गई. मैं अवसाद में हूं और आत्महत्या करने जा रहा हूं. बाद में दर्शनशास्त्र विभाग में ही जाकर जहर खा लिया. इसकी जानकारी हुई तो अफरा-तफरी मच गई. आनन-फानन में दीपक को जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया. अब मेडिकल कॉलेज के मेडिसिन वार्ड में इलाज चल रहा है.
आज जब हम समाचार पत्रों अथवा इलेक्ट्रानिक मीडिया पर खबरें पढ़ते अथवा सुनते हैं तो विभिन्न प्रकार के संदर्भ पढ़ने और सुनने को मिलते हैं. कभी किसी खबर पर हम उछ्ल पड़ते हैं तो कभी किसी पर अपना माथा धुन लेते हैं. कारण केवल यह है कि आज का ‘मीडिया’ गोदी मीडिया बनकर रह गया है… पूरी तरह व्यावसायिक हो गया है. सच और फेक न्यूज से उसका कुछ लेना-देना नहीं रह गया है. …आज मैं भी कुछ अलग-अलग मुद्दों पर बात कर रहा हूँ. कुछ संघ की, कुछ आरक्षण की, कुछ जाति-व्यवस्था की तो कुछ सरकार से असहमति की….. यह सब मैंने गोदी मीडिया के माध्यम से ही जाना है.
पिछले दिनों यहाँ-वहाँ हुए चुनावों में भाजपा के नेताओं न जाने कितने ही आपत्तिजनक शब्दों का प्रयोग किया, इनकी गिनती करना नामुमकिन ही नहीं, अपितु कष्टदायी भी है. राजनीतिक दलों द्वारा राजनीति में श्मशान, कब्रिस्तान, भगवा आतंकवाद जैसे शब्दों का प्रयोग नितांत ही समाज विरोधी कहे जा सकते हैं. इतना ही राजनीतिक विचारधारा में दकियानूसी सोच की ठुस्मठास भी कही जा सकती है.
संघ प्रमुख भागवत कहने को तो खुले तौर पर ये कहते हैं कि राजनीति लोक कल्याण के लिए चलनी चाहिए. लोक कल्याण का माध्यम सत्ता होती है. यदि राजनेता इस सोच के तहत काम करें तो श्मशान, कब्रिस्तान, भगवा आतंकवाद जैसी बातें होंगी ही नहीं. ये सारी बातें तब होती हैं, जब राजनीति केवल सत्ता भोग के लिए चलती है…. किंतु जब भागवत जी का गोदी राजनीतिक दल के राजनेता इस प्रकार के शब्दों का प्रयोग करके समाज में दीवार खींचने का यत्न करते हैं तो भागवत जी मौन रहने अलावा और कुछ नहीं करते…क्यों? इस प्रकार क्या भागवत जी खुद अस्वस्थ्य राजनीती को पीछे से हवा नहीं दे रहे नहीं लगते?
आज जबकि देश के हर कौने में नाना प्रकार से अनुसूचित /अनुसूचित जाति व अन्य पिछड़े वर्ग को सरकारी नौकरियों/ शिक्षा में प्रदत्त संवैधानिक आरक्षण का सवर्णों के अनेकानेक संगठनों द्वारा विरोध किया जा रहा है, संघ् प्रमुख मोहन भागवत कहते हैं, ‘सामाजिक विषमता हटाने के लिए संविधान के तहत सभी प्रकार के आरक्षण को संघ का समर्थन है…और रहेगा. उनका कहना है कि आरक्षण नहीं, बल्कि आरक्षण की राजनीति समस्या है. ऐतिहासिक – सामाजिक कारणों से समाज का एक अंग पीछे है. बराबरी तब आएगी, जब जो लोग ऊपर हैं, वो झुकेंगे. समाज के सभी अंगों को बराबरी में लाने के लिए आरक्षण जरूरी है. हजार वर्ष से यह स्थिति है कि हमने समाज के एक अंग को विफल बना दिया है. जरूरी है कि जो ऊपर हैं वह नीचे झुकें और जो नीचे हैं वे एड़ियां उठाकर ऊपर हाथ से हाथ मिलाएं. इस तरह जो गड्ढे में गिरे हैं उन्हें ऊपर लाएंगे. समाज को आरक्षण पर इस मानसिकता से विचार करना चाहिए. सामाजिक कारणों से एक वर्ग को हमने निर्बल बना दिया. स्वस्थ समाज के लिए एक हजार साल तक झुकना कोई महंगा सौदा नहीं है. समाज की स्वस्थता का प्रश्न है, सबको साथ चलना चाहिए.’… भागवत जी के इस कथन को पढ़ने के बाद तो जैसे लगा कि संघ भारत का सबसे आदर्श संगठन है, किंतु संघ की कथनी और करनी में जमीन और आसमान का अंतर है. कहना अतिशयोक्ति न होगा कि आरक्षण के विरोध में जितने भी आन्दोलन हो रहे हैं अथवा किए जाए जा रहे हैं, सब के सब संघ और सत्ता द्वारा प्रायोजित ही लगते हैं… राजनीतिक लाभ लेने के लिए इन आन्दोलनों के पीछे विपक्षी दलों का हाथ भी हो सकता, इससे भी इंकार नहीं किया जा सकता.
आर एस एस और विभिन्न मुद्दों पर उसकी सोच को लेकर कौतुहल का अंदाजा इससे ही लगाया जा सकता है कि तीन दिनों तक चले कार्यक्रम में भाजपा व संघ से जुड़े लोगों के साथ-साथ बड़ी संख्या में न सिर्फ पत्रकार, लेखक, कलाकार, अधिवक्ता, प्राध्यापक, छात्र व अन्य जुटे बल्कि सवालों की बारी आई तो 215 सवालों की बौछार भी की गई. उसे जोड़कर समूहों में भागवत ने जवाब भी दिए और आरोप लगाने वालों पर परोक्ष निशाना भी साधा. कभी गंभीरता से तो कभी हास्य विनोद के साथ उन्होंने यह स्थापित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी कि संघ किसी जाति, समुदाय, धर्म के पक्ष और विरोध में नहीं, राष्ट्र के लिए कार्यरत है. संघ लकीर का फकीर नहीं, बल्कि बदलते जमाने के साथ परंपरा और सभ्यता का ध्यान रखते हुए कदमताल करता संगठन है. राजनीति से संघ का कोई लेना देना नहीं है…… संघ का यह बयान कितना ईमानदार और व्यावहारिक है? इस पर कैसे विश्वास किया जाय जबकि जमाने भर से स्पष्ट है कि पहले की जनसंघ और आज की भारतीय जनता पार्टी की पैत्रिक संस्था आर एस एस ही तो है. इस तीन दिन की संगोष्ठी ने मोहन भागवत ने तमाम के तमाम सवालों के दोहरे अर्थ वाले जवाब दिए. किसी भी सवाल का सीधा उत्तर नहीं दिया.
एक सवाल आया कि अगर सभी धर्म समान ही हैं तो धर्म परिवर्तन का विरोध क्यों? क्या इसके लिए कोई कानून बनना चाहिए? इसके उत्तर में भागवत जी ने इतना ही कहा कि मैं भी सवाल ही पूछता हूं, अगर सभी धर्म समान हैं तो धर्म परिवर्तन क्यों?… यही भाजपा का भी रवैया है …वह सवाल का उत्तर, सवाल के जरिए ही देती है. अपनी गलतियों पर परदा डालने के लिए दूसरी राजनीतिक पार्टियों की कमियां गिनाने पर उतर आती है.
जब भागवत जी से पूछा गया कि समाज में जाति व्यवस्था को संघ कैसे देखता है. संघ में अनुसूचित जाति और जनजातियों का क्या स्थान है? घुमंतू जातियों के कल्याण के लिए संघ ने क्या कोई पहल की है? तो भागवत जी बड़े ही दार्शनिक अन्दाज में सवाल को लील गए और कहा, ‘आज व्यवस्था कहां है, अव्यवस्था है. कभी जाति व्यवस्था रही होगी, आज उसका विचार करने का कोई कारण नहीं है. जाति को जानने का प्रयास करेंगे तो वह पक्की होगी. हम सामाजिक विषमता में विश्वास नहीं करते.’
एससी/एसी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर समाज में विभाजन की स्थिति है? इस पर प्रतिक्रिया और आक्रोश निर्मित हुआ है. क्या संसद को इसे बदलना चाहिए था? संघ इसे कैसे लेता है? इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि कोई भी कानून गलत नहीं होता किंतु उसका अनुपालन ईमानदारी से होना चाहिए, उसका दुरुपयोग नहीं. … प्रतिक्रियात्मक दृष्टि से तो यही लगता है कि सत्ता द्वारा अपने वकीलों के जरिए ही कोर्ट मे केस डालना और अपने ही वकीलों के द्वारा उस वाद के प्रतिवाद का केस डलवाना राजनीति का जैसे खेल हो गया है. और बाद में संसद के माध्यम से एससी/एसी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरोध में अध्यादेश पारित कर देना, क्या राजनीतिक रोटियां सेकने का एक नापाक इरादा नहीं है? अध्यादेश पारित होने के बाद भी, क्या सुप्रीम कोर्टा नैनीताल हाईकोर्ट के निर्णय को मान्यता प्रदान करेगा…अभी यह प्रश्न निरुत्तर है.
चलते-चलते …. भीमा-कोरेगांव हिंसा के मामले में पाँच (5) सामाजिक एक्टिविस्टों की गिरफ्तारी के मामले में भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (19.09.2018) को कहा कि किसी भी व्यक्ति की स्वतंत्रता का महज अनुमान के आधार पर गला नहीं घोटा जा सकता. हमारे संस्थान इतने मजबूत होने चाहिए कि विरोध और असहमति को बर्दास्त कर पाएं…. मैं समझता हूँ कि यहाँ संस्थान का आशय केवल संस्थानों से ही नहीं, केन्द्रीय और राज्य सरकारों से भी है. हमें यह समझने की जरूरत है कि असहमति हमेशा नकारात्मक नहीं होती. …सरकार को यह समझने की जरूरत है, अन्यथा……
नई दिल्ली। तीनों तक चलने वाले आरएसएस के संवाद कार्यक्रम पर बसपा प्रमुख सुश्री मायावती ने संघ को कठघरे में खड़ा किया है. एक बयान जारी कर संवाद कार्यक्रम की पोल खोलते हुए बसपा प्रमुख ने कहा है कि देश की राजधानी में हुआ आर.एस.एस. का बहु-प्रचारित संवाद कार्यक्रम राजनीति से ज़्यादा प्रेरित था. ताकि चुनावों के समय भाजपा सरकार की घोर कमियों व देश की ज्वलन्त समस्याओं से लोगों का ध्यान हट जाए.
बसपा प्रमुख ने कहा कि- भाजपा की केंद्र सरकार की विफलताओं के कारण व्यापक जन आक्रोश से आर.एस.एस. भी चिंतित है, क्योंकि धन्नासेठों की तरह इन्होंने भी बीजेपी की जीत के लिये अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया था. इसीलिए लोगों का ध्यान बांटने के लिये आरएसएस इस तरह के कार्यक्रम कर रही है.
जन्मभूमि पर मुसलमानों द्वारा मंदिर बनवाने के संघ प्रमुख मोहन भागवत की अपील पर बसपा प्रमुख ने उन्हें आड़े हाथों लेते हुए कहा कि मुस्लिम समाज अगर अनेकों मंदिर भी बना दे तो भी संकीर्ण हिन्दुओं की मुसलमानों को लेकर बुनियादी सोच बदलने वाली नहीं है. क्योंकि इनकी बुनियादी सोच व मानसिकता दलित, मुस्लिम व अन्य अल्पसंख्यक विरोधी है. बता दें कि भागवत ने कहा था कि जन्मभूमि पर मन्दिर बने और अगर मुसलमान इसे खुद बनवाते हैं तो बरसों से उन पर उठ रही अंगुलियाँ झुक जायेंगी.
यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि वास्तव में बीजेपी के केन्द्र व विभिन्न राज्यों में सत्ता में आने के बाद इनका संकीर्ण जातिवादी व साम्प्रदायिक चाल, चरित्र व चेहरा और ज्यादा बेनकाब हुआ है. आरएसएस को कठघरे में खड़ा करते हुए उन्होंने कहा कि- आर.एस.एस. की सोच व मानसिकता अगर इतनी ही सही, मानवीय, सच्ची संवैधानिक व जनहित में ईमानदार होती तो फिर आजादी के बाद तीन बार इस संगठन को प्रतिबन्धित होने का कलंक नहीं झेलना पड़ता. “तीन तलाक’’ पर अध्यादेश लाकर इसे अपराध घोषित करने पर बसपा प्रमुख ने भाजपा पर संवेदनशील मुद्दों पर स्वार्थ की राजनीति करने का आरोप लगाया.
BBAU के होनहार दलित छात्र रोहित सिंह को हॉस्टल न मिलने से विवि के प्रांगण में बिना किसी दबाव के तंबू लगाकर रहने के लिए मजबूर हुआ. आज रोहित सिंह ने विवि प्रशासन को लिखित में रहने के लिए ज्ञापन दिया.
आपको सूचित करना चाहता हूँ कि प्रार्थी रोहित सिंह जो एम०ए० शिक्षा शास्त्र प्रथम वर्ष का छात्र है, और साथ मे बी०पी०एल०कार्ड धारक है, जिसने अपनी आर्थिक स्थिति का हवाला देते हुए छात्रावास न मिलने से विश्वविद्यालय के प्रांगड़ में तंबू लगाने की अनुमति और तंबू का सामान मांगने के लिए 31 अगस्त2018 को प्रार्थना पत्र DSW,कुलसचिव,और कुलपति को दिया था लेकिन विश्विद्यालय ने एक हफ्ते के बाद भी मेरे प्रार्थना पत्र के जबाब देने को उचित नही समझा, तो प्रार्थी ने पुनः 10 सितम्बर2018 को एक प्रार्थना पत्र दिया जिसमें प्रार्थी ने ये अवगत कराया था कि प्रार्थी 13 सितम्बर2018 से तंबू लगाकर रहने लगेगा, लेकिन प्रार्थी यह सोचकर नही रहा कि शायद आखिरी सूची में प्रार्थी का नाम आ जाए लेकिन आखिरी सूची जारी होने के बाद जब प्रार्थी की सारी उम्मीद खत्म हो जाने के बाद तथा अपनी पढ़ाई को नियमित व सुचारूरूप से करने लिए और अपने उज्जवल भविष्य को ध्यान में रखकर दिनांक 24/09/2018 दिन सोमवार से बिना किसी दवाव के विश्वविद्यालय के छात्रावास के प्रांगड़ में तंबू लगाकर रहने जा रहा है.यदि इस दरमियान प्रार्थी को कोई शारीरिक व मानसिक नुकसान होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी कुलानुशासक और DSW महोदय की होगी .
अतः श्री मान जी से निवेदन है कि प्रार्थी के द्वारा बताई गई समस्याओ को, उज्जवल भविष्य को ध्यान में रखकर उसको रहने दिया जाए, और उसके सामान की सुरक्षा की मुहैया कराई जाए.
महान कृपा होगी.
दिनांक:- 18/09/2018 प्रार्थी
रोहित सिंह
एम०ए०शिक्षा शास्त्र प्रथम वर्ष
बी बी ए यू लखनऊ
मो.8381909041
संलग्न:-पूर्व में दिए गए प्रार्थना पत्रो की छायाप्रति.
प्रेषित प्रतिलिपि-
1:-कुलसचिव, बी बी ए यू ,लखनऊ.
2:-सा. कुलसचिव, SC/ST सेल,बी बी ए यू लखनऊ.
3:-कुलपति,बी बी ए यू ,लखनऊ.
4:-कुलानुशासक, बी बी ए यू, लखनऊ.
5:-मा. चैयरमैन, राष्ट्रीय अनु. जाति आयोग, भारत सरकार, नई दिल्ली.
6:-मा. मंत्री, मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार नई दिल्ली.
7:-मा. प्रधानमंत्री, भारत सरकार, नई दिल्ली.
8:-मा. राष्ट्रपति महोदय, नई दिल्ली.
मेरठ। इलाहाबाद होईकोर्ट ने बसपा पूर्व विधायक योगेश वर्मा से रासुका हटाने और रिहा करने का आदेश दिया है. योगेश वर्मा पर दो अप्रैल को मेरठ में हुई हिंसा के आरोप में रासुका की कार्रवाई की गई थी.
बता दें कि मेरठ के हस्तिनापुर सीट से पूर्व बसपा विधायक योगेश वर्मा को बड़ी राहत मिली है. योगेश वर्मा ने रासुका के तहत की गई कार्रवाई को चुनौती दी थी. जस्टिस वी. के. नारायण और जस्टिस आर. एन. कक्कड़ की खंडपीठ ने यह आदेश दिया है.
उल्लेखनीय है कि बसपा नेता और पूर्व विधायक योगेश वर्मा को मेरठ पुलिस ने जेल भेजा था. योगेश वर्मा और उनके भाई पवन वर्मा व राजन वर्मा इस आंदोलन से सीधे जुड़े थे. सुबह जो बवाल मवाना में हुआ, उसके पीछे योगेश वर्मा के समर्थक ही रहे. एनएच-58 पर मोदीपुरम की तरफ से जो बवाल होते हुए रोहटा रोड और कंकरखेड़ा तक पहुंचा, वहां पर भी योगेश वर्मा ने खुद ही कमान संभाले रखी. यही नहीं कचहरी के पूर्वी गेट पर डॉ. अंबेडकर प्रतिमा के पास सुबह से जनसभा हो रही थी और भारी भीड़ जमा थी. लेकिन उसमें सिर्फ नारेबाजी के अलावा कोई हंगामा नहीं था. लेकिन जैसे ही दोपहर में करीब 12 बजे योगेश वर्मा अपने करीब सौ समर्थकों के साथ वहां पहुंचे तो भीड़ में हलचल शुरू हो गई. इस दौरान योगेश वर्मा ने संबोधन शुरू किया तो समर्थकों ने एनएएस कॉलेज की तरफ से आने वाले मार्ग पर उपद्रव करते हुए डिवाइडर पर रखे गमले तोड़ डाले और पुलिस कर्मियों की पिटाई करते हुए गाड़ी में तोड़फोड़ करते हुए जला डालीं.
इसके बाद इन उपद्रवियों की तरफ से फायरिंग भी हुई तो योगेश वर्मा ने मंच से कहा कि फायर नहीं है, जोश में युवक डंडे फटकार रहे हैं. लेकिन उपद्रवी लगातार उग्र होते गए. इसके बाद माहौल तब ज्यादा गरमाया जब उपद्रवियों ने पूर्वी कचहरी गेट तोड़ भीतर घुसकर वाहनों को क्षतिग्रस्त करते हुए एक बाइक और स्कूटी में आग लगा दी और पथराव कर दिया. तब जवाब में पुलिस ने भी हवाई फायरिंग की. इस दौरान योगेश वर्मा वहां से खिसक गए और सबसे ज्यादा बवाल वाले कंकरखेड़ा क्षेत्र में पहुंचे. यहां भी उनके पहुंचने के बाद बवाल बढ़ता चला गया, लेकिन पुलिस योगेश वर्मा को रोकने की हिम्मत नहीं जुटा सकी. इन तमाम सूचनाओं पर नजर रखे भाजपा विधायक और वरिष्ठ पदाधिकारियों ने मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव और डीजीपी से फोन पर बात करते हुए पूरे माहौल की जानकारी दी. साथ ही बसपा के पूर्व विधायक योगेश वर्मा पर सख्ती की मांग की. इसके बाद शासन से मिले निर्देश पर तत्काल योगेश वर्मा को गिरफ्तार कर लिया गया. योगेश वर्मा के पकड़े जाने के बाद तमाम बवाली भी गायब हो गए.
रायपुर। जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के सुप्रीमो व पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के साथ गठबंधन करने के लिए अपने पुत्र विधायक अमित जोगी के साथ दिल्ली में डेरा डाल दिया है. वहीं, बसपा प्रदेश प्रभारी ओपी वाचपेयी भी मायावती से मिलने दिल्ली पहुंचे हैं.
ज्ञात हो कि अपना इलाज कराने दिल्ली पहुंचे जोगी ने कुछ महीने पहले विधानसभा चुनाव में गठबंधन को लेकर बसपा सुप्रीमो मायावती से मुलाकात की थी, लेकिन उस समय बसपा ने गठबंधन पर कोई तवज्जो नहीं दिया था. तब जोगी ने उस मुलाकात को औपचारिक बताकर गठबंधन की खबर को सिरे से खारिज कर दिया था.
जोगी इलाज के बहाने बुधवार को फिर दिल्ली रवाना हुए. पार्टी सूत्रों के अनुसार वह गठबंधन के लिए बसपा सुप्रीमो से फिर बातचीत करेंगे. छत्तीसगढ़ में बसपा के गढ़ में 23 सितंबर से अजीत जोगी का विजय रथ भी निकलना है.
नई दिल्ली। आम आदमी पार्टी (आप) दिल्ली व पंजाब की दलित सियासत में मजबूत पैठ बनाने की कोशिश में है. देश भर में कहीं भी दलितों के साथ होने वाली हिंसा के खिलाफ मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल काफी मुखर रहते हैं. वहीं, बीते दिनों पंजाब में हरपाल चीमा को नेता प्रतिपक्ष बनाने के पीछे दलित समाज को सम्मान व हक दिलाने की आप ने दलील दी थी. दूसरी तरफ दिल्ली विधानसभा से लेकर सड़क पर दलित मसलों पर दिल्ली सरकार के मंत्री राजेंद्र पाल गौतम सड़क से लेकर सदन में संघर्ष करते दिखते हैं. इसी कड़ी में बुधवार को राजेंद्र पाल गौतम ने भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर से उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में मुलाकात की. उनके साथ दलित समाज का एक प्रतिनिधिमंडल भी था. इस दौरान दोनों नेताओं ने 2019 के लोक सभा चुनाव के बारे में एक घंटे से अधिक समय तक चर्चा की. साथ ही दलित आंदोलन को साथ-साथ आगे बढ़ाने की मंशा भी जाहिर की.
मुलाकात के बारे में राजेंद्र पाल गौतम का कहना था कि चंद्रशेखर उनके समाज से ताल्लुक रखते हैं. उनकी तबियत की जानकारी लेने के साथ ही 2019 के चुनाव में न्याय की लड़ाई और संविधान की रक्षा सहित कमजोर वर्ग की लड़ाई में भीम आर्मी प्रमुख का भी सहयोग लिए जाने पर चर्चा हुई. दोनों नेताओं ने करीब एक घंटे से ज्यादा समाज के अलग-अलग मसलों पर बात की. गौरतलब है कि इससे पहले अरविंद केजरीवाल ने भी सहारनपुर जाकर भीम आर्मी प्रमुख से मिलने की इच्छा जताई थी. लेकिन जिला प्रशासन ने इसकी इजाजत नहीं दी थी. ऐसे में केजरीवाल को अपना कार्यक्रम रद्द करना पड़ा था.