बीजेपी का झंडा लगी चलती कार में दलित लड़की के साथ गैंगरेप

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आजमगढ़। आजमगढ़ से दलित शिक्षिका के साथ भाजपा के झंडे लगे वाहन में गैंगरेप का सनसनीखेज मामला सामने आया है. इतना ही नहीं लड़की का वीडियो क्लिप भी बनाया गया है. पीड़िता ने थाने में आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज कराया है.

मामला रानी की सराय थाना क्षेत्र का है. यहां की रहने वाली एक शिक्षिका का आरोप है कि वह शाम को कोचिंग से घर वापस लौट रही थी. तभी आजमगढ़- वाराणसी मार्ग पर भाजपा का झंडा लगे एक स्कार्पियों वाहन सवार लोगों ने उसे अगवा कर लिया और उसके साथ गैंगरेप की वारदात को अंजाम दिया. पीड़िता का आरोप है कि उसकी अश्लील वीडियो भी बनाई गई और किसी को बताने पर जान से मारने धमकी भी दी गई है.

पीड़िता किसी तरह अपने घर पहुंची और उसने आपबीती परिजनों को बताई. जिसके बाद पीड़िता के परिजनों ने थाने में आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज कराया. पुलिस मुकदमा दर्ज कर आरोपियों की तलाश में जुट गई है.

इस बारे में पुलिस अधिक्षक कमलेश बहादुर का कहना है कि मामले की प्राथमिकी दर्ज कर ली गई है. गैंगरेप से पीड़ित युवती का मेडिकल कराने के लिए उसे अस्पताल भेजा जा रहा है. गाड़ी पर झंडा लगा होने की बात भी पुलिस अधीक्षक नगर ने स्वीकार की है.

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जाति को नकारते हुए दलित युवक और ब्राह्मण युवती ने रचाई शादी

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बरेली। दो अलग-अलग जातियों का विवाह होने की वजह से प्रेमी-प्रेमिका को कई मर्तबा परेशानियों का सामना करना पड़ता है. उत्तर प्रदेश के बरेली में ऐसा वाक्या सामने आया है जो देश मे कम देखने या सुनने को मिलता है. दरअसल बरेली के एक दलित युवक का रिश्ता ब्राह्मण समाज की एक युवती से हुआ. दोनों परिवार ने खुशियों के साथ समाज के सामने रिश्ते की रस्में निभाई और एक दूसरे परिवारों के सदस्यों को गले लगाकर एक दूसरे को रिश्ते की मुबारकबाद दी. ये वाक्या जातिवाद की दीवार खड़े कर रहे उन लोगों के लिए सबक है.

दरअसल यूपी के बरेली के बिहारीपुर के रहने वाले मोहित दलित समाज से है जबकि उनकी मंगेतर रितिका ब्राह्मण समाज से है. दोनों की मुलाकात करीब 8 साल पहले एक शादी समारोह की दौरान हुई थी. तबसे वह एक दूसरे को पसंद करने लगे थे लेकिन समाज की तमाम बंदिशों के कारण दोनों के रिश्ते में तमाम दिक्कतें आ रही थी. दोनों के रिश्तों की सबसे बड़ी बाधा थी एक का दलित होना और एक सामान्य जाति का होना. रितिका और मोहित ने हिम्मत नहीं हारी पहले तो दोनों परिवारों ने समाज का वास्ता देकर रिश्ते से इंकार किया बाद में बच्चों की खुशी के लिए स्वीकार कर लिया.

मोहित ने बताया कि वह अपनी मंगेतर से बहुत प्यार करता है. यही वजह रही दोनों एक दूसरे के लिए कई साल इंतजार किया. आज उनकी शादी हुई है. उन्हें खुशी है उनका पूरा सुसराल पक्ष और परिवार ने हम दोनों के साथ हमारी खुशियों में शरीक हैं. वहीं रितिका के एक नजदीकी ने कहा कि दोनों परिवार मोहित और रितिका के रिश्ते से बेहद खुश हैं. उनका आशीर्वाद दोनों बच्चों के साथ है. मोहित और रितिका की खबर उन बाप के लिए खास है जो अपनी झूठी शान और शौकत के लिए अपनी बच्चों की जान के दुश्मन बन जाते हैं.

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कांग्रेस की वजह से प्रदेश और देश में भाजपा की सरकारें: मायावती

भोपाल। मध्य प्रदेश में अपनी पार्टी के प्रत्याशियों के चुनाव प्रचार के लिए बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने बालाघाट में कहा कि कांग्रेस बसपा को खत्म करना चाहती है. प्रदेश में कांग्रेस की स्थिति कमजोर है इसलिए उसने गठबंधन का प्रस्ताव रखा था. लेकिन कांग्रेस सोची समझी रणनीति व षडयंत्र के तहत गठबंधन में कम सीटे देकर बसपा को कमजोर व खत्म करना चाहती थी. तब पार्टी ने अकेले चुनाव लड़ने का फैसला लिया है. मायावती ने कहा कि अगर कांग्रेस पार्टी अब तक के शासन काल में पचास फीसदी वायदे भी पूरी करती तो भाजपा आज इतनी आगे नहीं बढ़ती और न ही उसकी कई प्रदेशों सहित केंद्र में उसकी कहीं सरकार होती.

मायावती ने कहा कि कांग्रेस बसपा के सर्वोच्च नेतृत्व पर अनर्गल आरोप लगा रही हैं. हमने टिकट बंटवारे में भी सर्व समाज के लोगो को टिकिट दिया है. देश को आज हुए भारतीय संविधान को लागू हुए बरसो बीत चुका हैं. कांग्रेस और बीजेपी की सरकार रही तब भी सर्व समाज मे से दलीतो आदिवासियो पिछड़े वर्गों मुस्लिमो व अन्य धर्मिक साथ साथ साथ गरीबो मजदूरों किसानों व्यापारियों का कोई खास विकास नही हो सका हैं.

मायावती ने कहा कि भीमराव के प्रयासों में जो आरक्षण की सुविधा मिली हैं उसे सभी विरोधी पार्टियां धीरे-धीरे खत्म करने में लगी हैं. आरक्षण का कोटा अब तक पूरा नही किया है. कांग्रेस व भाजपा की मिलीभगत से आदिवासी और दलित नौकरी में पदोन्नति में आरक्षण को प्रभावहीन बना दिया है जिसके लिए हमे कड़ा संघर्ष करना पड़ रहा हैं.

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बिहार में बहुजन छात्रों ने मनाया संविधान दिवस

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पटना। विगत 18/11/2018 को अम्बेडकर भवन, दरोग़ा राय पथ, पटना में बहुजन छात्र संघ के द्वारा संविधान दिवस का आयोजन किया गया, जिसमें देश स्तर के छात्र नेता कुणाल किशोर विवेक ने बताया कि चुकी संविधान दिवस 26/11/2018 को मनाया जाना है और कई बड़े बड़े कार्यक्रम लगे है जिसके वजह से पटना के छात्रों के माँग पर 18 नवम्बर को ही संविधान दिवस मनाया गया.

बिहार से छात्र नेता आनंद कुमार दिनकर, परिमल हसन, शुभम,डी॰यू॰,मनोज विभकर, पी॰यू॰,सम्राट चंदन, रणविजय कुमार भारती, दीपक राज,राजाराम बाबू, सुनील कुमार, नागेन्द्र कुमार, अनिल कुमार, आदि प्रमुख छात्रों ने संविधान की महता और इसके प्रयोग पर विशेष बल दिया.

कार्यक्रम की विशेष ख़ूबी और आकर्षण का केंद्र Friends Of Rohit Vemulla, चेरावंदा राजू रहे जो हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय से चलकर पटना को पहुँचे थे. राजू ने युवाओं को अपनी राजनीतिक समझ को बढ़ाने के साथ साथ संविधान की महता पर प्रकाश डाला.

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे मा. शंकर राम, ADM(Ret.) ने कहाँ की छात्रों के लिए आज का समय काफ़ी चुनौती भरा है ऐसे में छात्र काफ़ी तेज़ी से संगठित हों.अपने सम्बोधन में माननीय ने कहाँ की आज के दौर में अग्रेसिव पॉलिटिक्स की काफ़ी ज़रूरत आन पड़ी है और इसके किए युवा आगे आये और संगठित हों.

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इंदिरा की जान बचाने के लिए चढ़ा था 80 बोतल ख़ून

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भुवनेश्वर से इंदिरा गाँधी की कई यादें जुड़ी हुई हैं और इनमें से अधिकतर यादें सुखद नहीं हैं. इसी शहर में उनके पिता जवाहरलाल नेहरू पहली बार गंभीर रूप से बीमार पड़े थे जिसकी वजह से मई 1964 में उनकी मौत हुई थी और इसी शहर में 1967 के चुनाव प्रचार के दौरान इंदिरा गाँधी पर एक पत्थर फेंका गया था जिससे उनकी नाक की हड्डी टूट गई थी.

30 अक्तूबर 1984 की दोपहर इंदिरा गांधी ने जो चुनावी भाषण दिया, उसे हमेशा की तरह उनके सूचना सलाहकार एचवाई शारदा प्रसाद ने तैयार किया था. लेकिन अचानक उन्होंने तैयार आलेख से अलग होकर बोलना शुरू कर दिया. उनके बोलने का तेवर भी बदल गया.

इंदिरा गांधी बोलीं, “मैं आज यहाँ हूँ. कल शायद यहाँ न रहूँ. मुझे चिंता नहीं मैं रहूँ या न रहूँ. मेरा लंबा जीवन रहा है और मुझे इस बात का गर्व है कि मैंने अपना पूरा जीवन अपने लोगों की सेवा में बिताया है. मैं अपनी आख़िरी सांस तक ऐसा करती रहूँगी और जब मैं मरूंगी तो मेरे ख़ून का एक-एक क़तरा भारत को मज़बूत करने में लगेगा.” कभी-कभी नियति शब्दों में ढलकर आने वाले दिनों की तरफ़ इशारा करती है.

भाषण के बाद जब वो राजभवन लौटीं तो राज्यपाल बिशंभरनाथ पांडे ने कहा कि आपने हिंसक मौत का ज़िक्र कर मुझे हिलाकर रख दिया. इंदिरा गाँधी ने जवाब दिया कि वो ईमानदार और तथ्यपरक बात कह रही थीं. उस रात इंदिरा जब दिल्ली वापस लौटीं तो काफ़ी थक गई थीं. उस रात वो बहुत कम सो पाईं. सामने के कमरे में सो रहीं सोनिया गाँधी जब सुबह चार बजे अपनी दमे की दवाई लेने के लिए उठकर बाथरूम गईं तो इंदिरा उस समय जाग रही थीं. सोनिया गांधी अपनी किताब ‘राजीव’ में लिखती हैं कि इंदिरा भी उनके पीछे-पीछे बाथरूम में आ गईं और दवा खोजने में उनकी मदद करने लगीं. वो ये भी बोलीं कि अगर तुम्हारी तबीयत फिर बिगड़े तो मुझे आवाज़ दे देना. मैं जाग रही हूँ.

सुबह साढ़े सात बजे तक इंदिरा गांधी तैयार हो चुकी थीं. उस दिन उन्होंने केसरिया रंग की साड़ी पहनी थी जिसका बॉर्डर काला था. इस दिन उनका पहला अपॉएंटमेंट पीटर उस्तीनोव के साथ था जो इंदिरा गांधी पर एक डॉक्युमेंट्री बना रहे थे और एक दिन पहले उड़ीसा दौरे के दौरान भी उनको शूट कर रहे थे. दोपहर में उन्हें ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री जेम्स कैलेघन और मिज़ोरम के एक नेता से मिलना था. शाम को वो ब्रिटेन की राजकुमारी ऐन को भोज देने वाली थीं. उस दिन नाश्ते में उन्होंने दो टोस्ट, सीरियल्स, संतरे का ताज़ा जूस और अंडे लिए. नाश्ते के बाद जब मेकअप-मेन उनके चेहरे पर पाउडर और ब्लशर लगा रहे थे तो उनके डॉक्टर केपी माथुर वहाँ पहुंच गए. वो रोज़ इसी समय उन्हें देखने पहुंचते थे.

उन्होंने डॉक्टर माथुर को भी अंदर बुला लिया और दोनों बातें करने लगे. उन्होंने अमरीकी राष्ट्रपति रोनल्ड रीगन के ज़रूरत से ज़्यादा मेकअप करने और उनके 80 साल की उम्र में भी काले बाल होने के बारे में मज़ाक़ भी किया. नौ बजकर 10 मिनट पर जब इंदिरा गांधी बाहर आईं तो ख़ुशनुमा धूप खिली हुई थी. उन्हें धूप से बचाने के लिए सिपाही नारायण सिंह काला छाता लिए हुए उनके बग़ल में चल रहे थे. उनसे कुछ क़दम पीछे थे आरके धवन और उनके भी पीछे थे इंदिरा गाँधी के निजी सेवक नाथू राम. सबसे पीछे थे उनके निजी सुरक्षा अधिकारी सब इंस्पेक्टर रामेश्वर दयाल. इस बीच एक कर्मचारी एक टी-सेट लेकर सामने से गुज़रा जिसमें उस्तीनोव को चाय सर्व की जानी थी. इंदिरा ने उसे बुलाकर कहा कि उस्तीनोव के लिए दूसरा टी-सेट निकाला जाए.

जब इंदिरा गांधी एक अकबर रोड को जोड़ने वाले विकेट गेट पर पहुंची तो वो धवन से बात कर रही थीं. धवन उन्हें बता रहे थे कि उन्होंने उनके निर्देशानुसार, यमन के दौरे पर गए राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह को संदेश भिजवा दिया है कि वो सात बजे तक दिल्ली लैंड कर जाएं ताकि उनको पालम हवाई अड्डे पर रिसीव करने के बाद इंदिरा, ब्रिटेन की राजकुमारी एन को दिए जाने वाले भोज में शामिल हो सकें. अचानक वहाँ तैनात सुरक्षाकर्मी बेअंत सिंह ने अपनी रिवॉल्वर निकालकर इंदिरा गांधी पर फ़ायर किया. गोली उनके पेट में लगी. इंदिरा ने चेहरा बचाने के लिए अपना दाहिना हाथ उठाया लेकिन तभी बेअंत ने बिल्कुल प्वॉइंट ब्लैंक रेंज से दो और फ़ायर किए. ये गोलियाँ उनकी बग़ल, सीने और कमर में घुस गईं.

वहाँ से पाँच फुट की दूरी पर सतवंत सिंह अपनी टॉमसन ऑटोमैटिक कारबाइन के साथ खड़ा था. इंदिरा गाँधी को गिरते हुए देख वो इतनी दहशत में आ गया कि अपनी जगह से हिला तक नहीं. तभी बेअंत ने उसे चिल्लाकर कहा गोली चलाओ. सतवंत ने तुरंत अपनी ऑटोमैटिक कारबाइन की सभी पच्चीस गोलियां इंदिरा गाँधी के शरीर के अंदर डाल दीं. बेअंत सिंह का पहला फ़ायर हुए पच्चीस सेकेंड बीत चुके थे और वहाँ तैनात सुरक्षा बलों की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई थी. अभी सतवंत फ़ायर कर ही रहा था कि सबसे पहले सबसे पीछे चल रहे रामेश्वर दयाल ने आगे दौड़ना शुरू किया. लेकिन वो इंदिरा गांधी तक पहुंच पाते कि सतवंत की चलाई गोलियाँ उनकी जांघ और पैर में लगीं और वो वहीं ढेर हो गए. इंदिरा गांधी के सहायकों ने उनके क्षत-विक्षत शरीर को देखा और एक दूसरे को आदेश देने लगे. एक अकबर रोड से एक पुलिस अफ़सर दिनेश कुमार भट्ट ये देखने के लिए बाहर आए कि ये कैसा शोर मच रहा है.

उसी समय बेअंत सिंह और सतवंत सिंह दोनों ने अपने हथियार नीचे डाल दिए. बेअंत सिंह ने कहा, “हमें जो कुछ करना था हमने कर दिया. अब तुम्हें जो कुछ करना हो तुम करो.” तभी नारायण सिंह ने आगे कूदकर बेअंत सिंह को ज़मीन पर पटक दिया. पास के गार्ड रूम से आईटीबीपी के जवान दौड़ते हुए आए और उन्होंने सतवंत सिंह को भी अपने घेरे में ले लिया. हालांकि, वहाँ हर समय एक एंबुलेंस खड़ी रहती थी. लेकिन उस दिन उसका ड्राइवर वहाँ से नदारद था. इतने में इंदिरा के राजनीतिक सलाहकार माखनलाल फ़ोतेदार ने चिल्लाकर कार निकालने के लिए कहा. इंदिरा गाँधी को ज़मीन से आरके धवन और सुरक्षाकर्मी दिनेश भट्ट ने उठाकर सफ़ेद एंबेसडर कार की पिछली सीट पर रखा. आगे की सीट पर धवन, फ़ोतेदार और ड्राइवर बैठे. जैसे ही कार चलने लगी सोनिया गांधी नंगे पांव, अपने ड्रेसिंग गाउन में मम्मी-मम्मी चिल्लाते हुए भागती हुई आईं. इंदिरा गांधी की हालत देखकर वो उसी हाल में कार की पीछे की सीट पर बैठ गईं. उन्होंने ख़ून से लथपथ इंदिरा गांधी का सिर अपनी गोद में ले लिया. कार बहुत तेज़ी से एम्स की तरफ़ बढ़ी. चार किलोमीटर के सफ़र के दौरान कोई भी कुछ नहीं बोला. सोनिया का गाउन इंदिरा के ख़ून से भीग चुका था.

कार नौ बजकर 32 मिनट पर एम्स पहुंची. वहाँ इंदिरा के रक्त ग्रुप ओ आरएच निगेटिव का पर्याप्त स्टॉक था. लेकिन एक सफ़दरजंग रोड से किसी ने भी एम्स को फ़ोन कर नहीं बताया था कि इंदिरा गांधी को गंभीर रूप से घायल अवस्था में वहाँ लाया जा रहा है. इमरजेंसी वार्ड का गेट खोलने और इंदिरा को कार से उतारने में तीन मिनट लग गए. वहाँ पर एक स्ट्रेचर तक मौजूद नहीं था. किसी तरह एक पहिए वाली स्ट्रेचर का इंतेज़ाम किया गया. जब उनको कार से उतारा गया तो इंदिरा को इस हालत में देखकर वहाँ तैनात डॉक्टर घबरा गए. उन्होंने तुरंत फ़ोन कर एम्स के वरिष्ठ कार्डियॉलॉजिस्ट को इसकी सूचना दी. मिनटों में वहाँ डॉक्टर गुलेरिया, डॉक्टर एमएम कपूर और डॉक्टर एस बालाराम पहुंच गए.

एलेक्ट्रोकार्डियाग्राम में इंदिरा के दिल की मामूली गतिविधि दिखाई दे रही थीं लेकिन नाड़ी में कोई धड़कन नहीं मिल रही थी.उनकी आँखों की पुतलियां फैली हुई थीं, जो संकेत था कि उनके दिमाग़ को क्षति पहुंची है. एक डॉक्टर ने उनके मुंह के ज़रिए उनकी साँस की नली में एक ट्यूब घुसाई ताकि फेफड़ों तक ऑक्सीजन पहुंच सके और दिमाग़ को ज़िंदा रखा जा सके.

इंदिरा को 80 बोतल ख़ून चढ़ाया गया जो उनके शरीर की सामान्य ख़ून मात्रा का पांच गुना था. डॉक्टर गुलेरिया बताते हैं, “मुझे तो देखते ही लग गया था कि वो इस दुनिया से जा चुकी हैं. उसके बाद हमने इसकी पुष्टि के लिए ईसीजी किया. फिर मैंने वहाँ मौजूद स्वास्थ्य मंत्री शंकरानंद से पूछा कि अब क्या करना है? क्या हम उन्हें मृत घोषित कर दें? उन्होंने कहा नहीं. फिर हम उन्हें ऑपरेशन थियेटर में ले गए.”

डॉक्टरों ने उनके शरीर को हार्ट एंड लंग मशीन से जोड़ दिया जो उनके रक्त को साफ़ करने का काम करने लगी और जिसकी वजह से उनके रक्त का तापमान सामान्य 37 डिग्री से घटकर 31 डिग्री हो गया. ये साफ़ था कि इंदिरा इस दुनिया से जा चुकी थीं लेकिन तब भी उन्हें एम्स की आठवीं मंज़िल स्थित ऑपरेशन थियेटर में ले जाया गया. डॉक्टरों ने देखा कि गोलियों ने उनके लीवर के दाहिने हिस्से को छलनी कर दिया था, उनकी बड़ी आंत में कम से कम बारह छेद हो गए थे और छोटी आंत को भी काफ़ी क्षति पहुंची थी. उनके एक फेफड़े में भी गोली लगी थी और रीढ़ की हड्डी भी गोलियों के असर से टूट गई थी. सिर्फ़ उनका हृदय सही सलामत था.

अपने अंगरक्षकों द्वारा गोली मारे जाने के लगभग चार घंटे बाद दो बजकर 23 मिनट पर इंदिरा गांधी को मृत घोषित किया गया. लेकिन सरकारी प्रचार माध्यमों ने इसकी घोषणा शाम छह बजे तक नहीं की. इंदिरा गांधी की जीवनी लिखने वाले इंदर मल्होत्रा बताते थे कि ख़ुफ़िया एजेंसियों ने आशंका प्रकट की थी कि इंदिरा गाँधी पर इस तरह का हमला हो सकता है. उन्होंने सिफ़ारिश की थी कि सभी सिख सुरक्षाकर्मियों को उनके निवास स्थान से हटा लिया जाए.

लेकिन जब ये फ़ाइल इंदिरा के पास पहुंची तो उन्होंने बहुत ग़ुस्से में उस पर तीन शब्द लिखे, “आरंट वी सेकुलर? (क्या हम धर्मनिरपेक्ष नहीं हैं?)” उसके बाद ये तय किया गया कि एक साथ दो सिख सुरक्षाकर्मियों को उनके नज़दीक ड्यूटी पर नहीं लगाया जाएगा. 31 अक्तूबर के दिन सतवंत सिंह ने बहाना किया कि उनका पेट ख़राब है. इसलिए उसे शौचालय के नज़दीक तैनात किया जाए. इस तरह बेअंत और सतवंत एक साथ तैनात हुए और उन्होंने इंदिरा गाँधी से ऑपरेशन ब्लूस्टार का बदला ले लिया.

साभार- बी.बी.सी.

रेहान फ़ज़लबीसाभार- बी.बी.सी.

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श्रेयात ने नीदरलैंड्स में आयोजित 16th डेवलपमेंटडॉयलाग में हिस्सा लिया

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महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय,वर्धा, महाराष्ट्र में प्रोफ. एल. कारुण्यकरा के मार्गदर्शन में शोधरत श्रेयात ने नीदरलैंड्स में आयोजित 16thडेवलपमेंट डॉयलाग (16th Development Dialogue) में प्रतिभाग एवं शोधपत्र प्रस्तुत किया.

इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ सोशलस्टडीज़{International Institute of Social Studies (ISS)},हेग (The Hague)द्वारा 01&02 नवम्बर 2018 को ‘Social Justice amidst the Convergence of Crises: Repoliticizing Inequalities’थीम पर प्रस्तावित कॉन्फ्रेंस में श्रेयात ने अपने शोध पत्र को प्रस्तुत किया. श्रेयात ने अपने शोधपत्र Activism and Awareness: ‘Weapons’ of Resistance for Dalit Students AgainstCaste Discrimination in Higher Education के माध्यम से विश्वविद्यालयों में हो रहे दलित छात्रों के उत्पीड़न एवं इस उत्पीड़न के विरोध में दलित छात्रों के प्रतिरोध को लिपिबद्ध किया है. कॉन्फ्रेंस के प्रथम दिवस को अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त प्रोफ. बारबराहैरिसव्हाइट ने संबोधित किया और समापन पर प्रोफ. जोजीतिसिकता ने अपना वक्तव्य दिया. इस कॉन्फ्रेंस में विश्व भर के लगभग 140 शोधार्थियों ने प्रातिभाग किया.

भारत के विश्वविद्यालयों में लगातार हो रहे दलित छात्र-छात्राओं के उत्पीड़न और दलित छात्रों के साथ दुर्व्यवहार को इस शोधपत्र के माध्यम से प्रमुखता से उठाने का प्रयास किया गया है. शोधपत्र में दलित छात्रों के प्रतिरोध के विभिन्न आयामों पर भी प्रकाश डाला गया है.

श्रेयात ने भगवान बुद्ध, ज्योतिबा फुले और बाबासाहेब अंबेडकर को अपना आदर्श बताया और कहा कि बहुजन समाज के लोगों को यदि आज सम्मानित जीवन जीने और पढ़ने-लिखने का अधिकार मिला है तो यह इन महापुरुषों के अथक प्रयासों का परिणाम है.

श्रेयात ने प्रसिद्ध समाजशास्त्री प्रोफ. विवेक कुमार एवं प्रोफ. एल. कारुण्यकरा को अपना प्रेरणास्रोत बताया और अपने माता-पिता और चाचा को अपनी इस सफलता का श्रेय दिया.

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मध्य प्रदेश में फिर से दहाड़ने को तैयार मायावती

मायावती (फाइल फोटो)

नई दिल्ली। तीन राज्यों में चुनाव प्रचार में जुटीं बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती एक बार फिर मध्य प्रदेश में होंगी. लखनऊ कार्यालय से इस बारे में जारी प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक बसपा अध्यक्ष सुश्री मायावती मध्य प्रदेश राज्य में अपनी पार्टी के चार दिवसीय चुनावी प्रचार अभियान के तहत 20 नवम्बर को पहले दिन दो चुनावी जनसभाओं को सम्बोधित करेंगी.

अपने पहले दिन के चुनावी कार्यक्रम के तहत सुश्री मायावती मध्य प्रदेश खजुराहो से हवाई यात्रा द्वारा बालाघाट ज़िला पहुँचेगी और वहाँ वारसियोनी स्थित रानी अवन्ती बाई स्टेडियम (सिविल क्लब) में आयोजित पार्टी की पहली चुनावी जनसभा को सम्बोधित करेंगी, जबकि इनकी दूसरी चुनावी जनसभा प्रदेश की राजधानी भोपाल में दशहरा मैदान बी.एच.ई.एल. (भेल) गोविन्दपुरा में होगी. उल्लेखनीय है कि बसपा 230 सदस्यीय मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में अकेले ही अपने बल पर लगभग सभी विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ रही हैं.

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दो धड़ों में बंटी भीम आर्मी

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सहारनपुर हिंसा के बाद जब भीम आर्मी को देश भर में जाना-पहचाना जाने लगा तो इस संगठन और इसके संस्थापक चंद्रशेखर आजाद को अचानक दलित युवाओं की आवाज कहा जाने लगा. चंद्रशेखऱ की रिहाई को लेकर कई आंदोलन हुए और कई सामाजिक कार्यकर्ता इस आंदोलन से जुड़ने लगे. बावजूद इसके बहुजन बुद्धिजीवियों का एक तबका ऐसा भी था जो इस पूरे घटनाक्रम को दूर से देख रहा था. वह यह आशंका जाहिर कर रहा था कि आखिर विचारधारा के स्तर पर आंदोलन के नए खिलाड़ी अनुभवहीन नेतृत्व के बिना कितने दिन तक चल सकेंगे. आखिरकार वही हुआ. खबर आई है कि भीम आर्मी आपसी झगड़ों में उलझकर दो धड़ों में बंट गई है. चंद्रशेखर आजाद के नेतृत्व में अविश्वास जताते हुए संगठन के एक धड़े ने अलग होकर भीम आर्मी-2 बना लिया है.

नई बनी भीम आर्मी-2’ के संस्थापक बने हैं शिवजी गौतम, जिन्होंने लोकेश कटारिया को इसका अध्यक्ष बनाया है. इस गुट ने चंद्रशेखर पर बीजेपी से साठ-गांठ करने का आरोप लगाया है. नए गुट ने यह भी आरोप लगाया है कि चंद्रशेखर आजाद साठ-गांठ के कारण भारत बंद के दौरान जेल में बंद निर्दोष दलित नेताओं और कार्यकर्ताओं की रिहाई के प्रयास नहीं कर रहे हैं.’ नए गुट ने जेल में बंद अपने निर्दोष साथियों की रिहाई के लिए अभी हाल ही में जिलाधिकारी को ज्ञापन दिया गया है और कहा है कि जल्द ही बड़ा आंदोलन किया जाएगा.’

नए गुट के आरोप पर चंद्रशेखर के करीबी योगेश गौतम ने हालांकि अपना पक्ष रखते हुए साफ किया है कि ‘चंद्रशेखर की भीम आर्मी मनुवादी सोच वालों से कभी समझौता नहीं करेगी, वह अपना संघर्ष पहले की तरह जारी रखेगी.’ उन्होंने शिवजी गौतम और लोकेश कटारिया पर पलटवार करते हुए कहा, ‘दो अप्रैल को भारत बंद के दौरान हुई कथित हिंसा में जेल भेजे गए निर्दोष साथियों की रिहाई के लिए भीम आर्मी काफी पहले छह दिसंबर से देशव्यापी आंदोलन करने का ऐलान कर चुकी है. उन्होंने भीम आर्मी-2 पर सत्तारूढ़ दल के बहकावे में आकर समानांतर संगठन खड़ा करने का आरोप लगाया.

सच चाहे जो हो, इस टकराव और टूट ने एक तेजी से उभरते संगठन की साख पर सवालिया निशान तो लगा ही दिया है.

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बीजेपी और कांग्रेस एक ‘सांपनाथ’ और एक ‘नागनाथ’ : मायावती

रायपुर। छत्तीसगढ़ में अजित जोगी की अगुवाई वाली जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जेसीसी) के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ रही बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) की अध्यक्ष मायावती ने चुनाव में स्पष्ट बहुमत मिलने का दावा किया है. बीजेपी और कांग्रेस को ‘सांपनाथ’ और ‘नागनाथ’बताते हुए मायावती ने कहा कि उनका गठबंधन इन दोनों पार्टियों से कतई गठबंधन नहीं करेगा.

मायावती ने मीडिया से बातचीत में कहा कि उन्हें पूरा विश्वास है कि छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में बीएसपी और जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जेसीसी) गठबंधन को पूर्ण बहुमत मिलेगा. ऐसे में सरकार बनाने के लिए किसी अन्य दल से समर्थन लेने की कल्पना नहीं की जा सकती. उन्होंने कहा, ‘हमें और अजित जोगी को (पूर्ण बहुमत मिलने का) पूरा भरोसा है लेकिन जहां तक बीजेपी और कांग्रेस से गठबंधन की बात है तो ऐसा करने के बजाय हम विपक्ष में बैठना पसंद करेंगे.’

मालूम हो कि जेसीसी-बीएसपी गठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार जोगी ने गुरुवार को कहा था, ‘राजनीति में किसी भी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता इसलिए कुछ भी हो सकता है लेकिन मुझे पूरा विश्वास है कि ऐसी कोई स्थिति नहीं बनेगी.’ उनसे पूछा गया था कि अगर जेसीसी-बीएसपी गठबंधन छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत हासिल नहीं कर पाता है तो क्या वह बीजेपी का साथ लेंगे. जोगी के इसी बयान पर मायावती ने शुक्रवार को प्रतिक्रिया दी है.

बीएसपी प्रमुख ने कहा, ‘बीएसपी-जेसीसी गरीबों, किसानों, मजदूरों, दलितों और पिछड़ों को मजबूत करने के लिए काम कर रही हैं जबकि बीजेपी और कांग्रेस इन तबकों की हितैषी कतई नहीं हैं. इन वर्गों के मामले में ये दोनों पार्टियां ‘सांपनाथ’ और ‘नागनाथ’ हैं. इनका साथ लेने का सवाल ही नहीं है.’ गौरतलब है कि बीएसपी और जेसीसी ने पिछले सितंबर में छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में गठबंधन करके लड़ने का ऐलान किया था. प्रदेश की 90 में से 55 सीटों पर जेसीसी और 35 सीटों पर बीएसपी ने अपने प्रत्याशी खड़े किए हैं. गठबंधन के तहत यह भी ऐलान किया गया है कि अगर बहुमत मिला तो जोगी मुख्यमंत्री होंगे.

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दलित दंपती पर जानलेवा हमला

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गुड़गांव। फिरोजपुर झिरका के कोलगांव में दलित दंपती पर जानलेवा हमला और जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल करने का मामला सामने आया है. हमले में दलित दंपती गंभीर रूप से घायल हो गए हैं. उन्हें अल-आफिया अस्पताल में भर्ती कराया गया है. पुलिस ने एक ही परिवार के 5 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है.

पुलिस के मुताबिक, कोलगांव निवासी टेकचंद कपास चुनने पंजाब गए थे. जब वह लौटे तो घर पर टीवी नहीं था. उनके बेटे ने बताया कि टीवी गांव का जैकम ले गया है. आरोप है कि वह जैकम से टीवी लेने गए तो वह तैश में आ गया और जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल कर जान से मारने की धमकी देने लगा. इस पर वह घर लौट गए.

कुछ देर बाद जैकम, उसकी बीवी मैमूना, बेटा जमशेद, बेटी आबिदा व आलिदा लाठी-डंडे लेकर आए और उन पर जानलेवा हमला बोल दिया. इसमें टेकचंद और उनकी पत्नी बिमला गंभीर रूप से घायल हो गईं. फिरोजपुर झिरका थाने के जांच अधिकारी अतर सिंह ने बताया कि पांचों आरोपितों के खिलाफ केस दर्ज कर लिया गया है. उन्हें जल्द ही गिरफ्तार कर लिया जाएगा.

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To

The Hon’ble Prime Minister of India Shri Narendra Modi Ji New Delhi Sub: Regarding the malicious transfer by General Manager SECL Kusmunda Area. Ref: Transfer Ref No.SECL/GM/KA/PER/18/10070 Date 27/07/2018. Respected sir,

I am an employee, working as a clerk in South Eastern Coalfields Limited Kusmunda area Chhattisgarh. I have been working as an employee of this company for almost 25 years. I am 53 years old.I have never received any kind of punishment letter, misbehaviour, warning letter, charge sheet from the Secl Kusmunda Project. I have also got the Best Worker Award. My bad day starts with a transfer letter issued by an officer Sri UK Singh, General Manager SECL Kusumunda Area through the Area Personnel Manager. I have never been absent from my entire job since the beginning of the service. My family has now reached the starvation conditions. My salary will not be paid due to being absent for a long time. My life has been destroyed. My health is getting worse, and I have reached a stage of mental depression. My whole family is forced to undergo unexpected phobia and mental torture. Who is responsible for that? All this happened due to a transfer. I am in a condition of illness due to the transfer, and I am unable to perform my duties. There is no other way other than famine or death in front of my life and the entire family today. My children’s education and their future dreams are starting to be ruined. I am not solely responsible for the absence of my duty and the eradication of my innocent family.

I am transferred to the Area Finance Department Kusmunda. The interesting thing is that I am not the Clerk of the Account Cadre. I was pushed into that Job or department, that work I do not understand at all. I do not even have a slight knowledge of accountancy. I do not have any knowledge about the main discipline of the Accounting Department such as making, processing and passing the bills of various sections. In the beginning, I wanted to tell the Area General Manager that I am inappropriate for the finance department. Nobody has tried to understand my problem. Reluctantly, due to excessive pressure, I had to work for 15 days in the Finance Department. See my helplessness or impact of terror, that without the knowledge of accounting, I was compelled to pass the bill of Crore of rupees.

As soon as it came to know that I have been transferred for a special motive. Someone told me that this transfer was done based on a party (contractor, suppliers) complaint. I did not know that the complaint was against me, or against the account cadre clerk (Shri Ramsharan Choubey), who had been transferred to the Project in my place. The purpose of this transfer was soon exposed. They framed me for their selfish ambition. So that he could set his favourite employee in the Project Kusmunda. The process of transfer was just a Drama. Why was I targeted only? I have not been able to know anything yet. But it was very important to find out who was behind it. Finally, I decided to meet the Area General Manager of Kusumunda personally to describe my problem. I requested the General Manager to reconsider my transfer. Because I was having difficulty working in the finance department. I wanted to say a lot about my trouble. When the General Manager agreed to reconsider the transfer, I became silent. The General Manager had said that the matter of transfer would be reviewed after one month. He said that my selection was done on merit basis. Now it had been clear that my transfer was caused on the instructions of the General Manager Area kusmunda.

There were many reasons for destroying my determination and moral power. As a result, I had a bad effect on my mental state and I got sick. My duty closed completely from date of 03/09/2018. I did not absent in the entire Service period. However, the absence is continuing to go on.

I informed the concerned department that I got sick on the date 10/09/2018 through a registered letter. I am not capable to work in the Finance Department. During my absence, my work was changed (Letter No SECL/AFM/KA/Job Assignment/Estb/00/18-19/1624 Dated 12/09/2018). According to which I had to do a different type of work in the same department. But my request was not considered. I saw, the general manager’s refusal to send me back the project, So I requested that Please make me a posting in any department other than the Finance Department forever through the Registered letter on dates 17/09/2018. Because I am not suitable for this department.

I again sent a registered letter to the General Manager, Area kusmunda to review the transfer on date 22/09/2018. Till now, I have been waiting for their decision. I am not habitually “Absentee”.

But their intention was to disturb (mental torture)to me. So they transferred me to the EXCAVATION DEPARTMENT (with the conditions of “After release”) of the Area Letter No/SECL/GM/Kusmunda Area/Personnel /2018/691/Dated 11/10/2018 (Which I had received on date 15/10/2018). But I did not send the PROJECT kusmunda, from where I was evicted, in the name of normal transfer. It is noteworthy that the Area finance department is not in favour of Release.

According to the General Manager’s statement, so far, more than a month has passed. I have not seen any ray of hope yet. What will happen to my family without pay? Nobody is worried about it. The attitude of management seems to be that my transfer has been done by being motivated by malice. Therefore, after being disturbed, I have to be forced to resign from the job.

Sir, I have presented all the matter and circumstances before you. The General Manager, kusmunda Area (Sri U.K.SINGH) has made this transfer the subject of its reputation. They do not worry about the troubles that occur to my family and me. In such a situation, I may have to be compelling to take drastic measures.

Sir, I am expecting justice from you. I would urge you to consider my past performances. I should be transferred to the kusmunda project from the Area Finance Department kusmunda/recently transferredExcavation section Area, where I can execute the related jobs with full efficiency and confidence. I hope you will take a favourable view of this request.

Thanking you.

Yours Faithfully BP.Shriwas Clerk I Neis No: 21494927 SECL Kusmunda Area

Copy to as above Ø Hon’ble Minister of Coal and Railways of India. Ø CMD SECL Bilaspur CG. Ø DIRECTOR (PERSONNEL) SECL Bilaspur CG. Ø National Human Rights Commission, New Delhi. Ø Central Vigilance Commission, New Delhi.

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दलित आंदोलन बनाम सवर्ण आंदोलन

भारत देश में पद्मावती विवाद जैसे फ़िज़ूल मुद्दे आंदोलन का रूख अख्तियार कर लेते हैं, परंतु दलितों का विरोध प्रदर्शन कभी राष्ट्रव्यापी आंदोलन नहीं बन पाता.

जबकि भारत में दलितों की जनसंख्या, पद्मावती विवाद को लेकर तोड़-फोड़ करके राष्ट्र का नुकसान करने वाले जाति वर्ग की जनसंख्या से कई गुना अधिक है. कारण क्या है? आइए समझते हैं…

मीडिया की भूमिका

आंदोलन अचानक नहीं खड़ा होता है… आंदोलन को खड़ा करना पड़ता है… पहली क्रिया को देखकर ही दूसरी प्रतिक्रिया होती है. पहले चिंगारी निकलती है, फिर धीरे-धीरे वह आग बनती है. पहले एक आवाज़ उठती है, फ़िर उस आवाज़ को सुनकर ही उसके समर्थन में दूसरी आवाज़ उठती है.

पद्मावती मामले में मीडिया की भूमिका को आपको ठीक से समझना चाहिए. मीडिया ने शुरू से ही इस विवाद में काफ़ी दिलचस्पी दिखाई है, और पद्मावती का विरोध कर रहे जाति समुदाय को खूब प्रचार दिया है. पद्मावती के विरोध की हर घटना को टी०वी० ने सभी जगह दिखाया है. और यही सब देख-देखकर ही यह विरोध प्रदर्शन अपने पैर पसारता गया. धीरे-धीरे इस विरोध में हर राज्य से संबंधित जाति समुदाय के लोग जुड़ते गए.और यह बड़ा बनता गया. हम यह कह सकते हैं कि मीडिया ने ही इस विरोध प्रदर्शन को अपने कैमरे के जरिए घर-घर तक पहुँचा दिया.

अब ज़रा दलितों के विरोध प्रदर्शन पर आइए…

जो मीडिया का कैमरा अन्य जगह बहुत तीव्र गति से घूमता है, वही कैमरा दलित आंदोलन पर न जाने कहाँ खो जाता है. उदाहरण-

गुजरात के उना में दलितों को महिन्द्रा ज़ायलो गाड़ी से बाँधकर निर्ममता से लोहे की बेंते मारी गई. जिसके बाद गुजरात भर में दलितों ने संवैधानिक व शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन किया जिसमें उन्होने मरी हुई गायों को उठाकर उसकी खाल उतारने की जगह उन मरी हुई गायों को हर जिले के कलेक्ट्रेट कार्यालय में फेंक आए और कहा ‘तुम्हारी माँ, तुम ही सँभालो’. काफ़ी दिनों तक यह विरोध प्रदर्शन चला…परंतु किसी न्यूज़ चैनल नें इस विरोध प्रदर्शन में तनिक भी दिलचस्पी नहीं ली. समाचार पत्रों में भी यह विरोध प्रदर्शन जगह नहीं बना पाया. जिसके कारण यह बड़ा आंदोलन बनने से पहले ही दब गया.

अगर इसे मीडिया ने दिखाया होता, तो निश्चित रूप से गुजरात के विरोध प्रदर्शन का असर इतर राज्यों में भी दिखाई पड़ता, परंतु गुजरात के दलित आंदोलन कि सवर्ण आधिपात्य वाली गोदी मीडिया ने कोख में ही भ्रूण हत्या कर दी.

दूसरा उदाहरण लीजिए-

कुछ दिनो पूर्व भीमा कोरेगाँव में दलित समुदाय अपने महार सैनिकों की जीत का जश्न मनाने एकत्रित हुए. जिन पर अचानक भगवा झंडा लिए हथियारबंद हिंदूवादियों ने हमला कर दिया, व दलितों को दौड़ा दौड़ा कर पीटा व उनकी गाड़ियों के शीशे तोड़ दिए. इस हमले के विरोध में महाराष्ट्र में दलित समुदाय के लोगों ने बहुत भारी विरोध प्रदर्शन किया. परंतु भीमा कोरेगाँव में हुए दलित उत्पीड़न की खबर किसी चैनल (सिवाय एन०डी०टी०वी० के) ने नहीं दिखाई. इसलिए वह विरोध प्रदर्शन भी महाराष्ट्र में ही दबकर रह गया.

यह तो रही मीडिया की भूमिका जो बहुत ज़रूरी होती है. परंतु मीडिया में हद से ज्यादा सवर्ण वर्ग के आधिपात्य के चलते मीडिया बहुजनों के मुद्दों को निगल जाता है, और डकार भी नहीं लेता. (अमेरिका में मीडिया हाउसेज़ अपने न्यूज़ चैनल में अश्वेतों की नियुक्तियों पर खासा ध्यान रखते हैं)

समाज की भूमिका

जब जब दलित अपने हक के लिए खड़ा होगा! तुरंत ही कुछ ऐंटीना धारियों को डर लगने लगता है कि जिस फर्जी हिंदुत्व के नाम पर उन्होने विराट हिंदू एकता स्थापित कर अपना राज स्थापित किया है, वह विराट हिंदू एकता टूट रही है. अब वह आपको वापस अपने फर्जी विराट हिंदू एकता में शामिल करने के लिए जुगत भिड़ाने लगते हैं. इसके तहत तुरंत ही वो किसी एक मुसलमान को उन दलितों के विरूद्ध खड़ा कर देते हैं… ताकि दलितों के सवर्णों के खिलाफ़ उबल रहे गुस्से को हिंदू-मुसलमान ऐंगल देकर अपनी रोटी सेंकी जाए. और दुर्भाग्यवश ऐसा हो भी जाता है. दलित आंदोलन अपने मूल मुद्दे से भटककर हिंदू-मुसलमान विवाद बन जाता है. जिसमें लाठियाँ तो दलित खाता है, परंतु बाद में राज सवर्ण करते हैं. (वे आप पर राज इसलिए नहीं कर रहे हैं, क्योंकी वे बुद्धिमान है ! बल्कि इसलिए कर रहें हैं क्योंकी आप बेवकूफ़ है)

राजनीति की भूमिका

दलितों को हमेशा कोर वोट बैंक माना गया है, क्योंकी दलित केवल झंडा और निशान देखकर वोट करता है. जिसका फ़ायदा सभी पार्टियाँ उठाती हैं. जिस पार्टी को दलितों का वोट मिलता आया है, वे इसलिए कुछ नहीं बोलती क्योंकी उन्हे तो दलितों का समर्थन है ही! और जिस पार्टी को दलितों का वोट नहीं मिलता है, वे खुलकर दलितों के मुद्दों को दरकिनार कर दूसरी जातियों को अपनी ओर खींचती है. परंतु सवर्ण वोटर बहुत चालाकी से हर चुनाव में अपना पाला बदलते रहते हैं. वे कभी कांग्रेस में रहे…फिर एक वर्ग सतीश मिश्रा के कारण बसपा में गया, और दूसरा वर्ग रघुराज प्रताप सिंह के कारण सपा में आया! आजकल वे सभी भाजपा में हैं. वे कभी किसी एक के नहीं रहे, और इस बात का उन्हे लाभ भी खूब मिला. वे किसी के कोर वोटर नहीं बनते, जिसके कारण हर पार्टी उन्हे अपनी तरफ़ खींचने की जुगत में रहती है. इसी कारण पार्टियाँ दलित मुद्दों पर ध्यान नहीं देती क्योंकी उन्हे पता है कि दलितों का वोट तो वहीं जाएगा, जहाँ हमेशा से जाता रहा है. इसी कारण दलितों के आंदोलनों को राजनैतिक साथ भी नहीं मिल पाता. इन्ही सब सम्मिलित कारणों से दलितों का आंदोलन कभी राष्ट्रव्यापी नहीं बन पाता.

बहुत लंबा झोल-झाल है… हर किसी को समझना चाहिए.

प्रतीक सत्यार्थ Read it also-लोकसभा चुनाव लडऩे की तैयारी में बसपा मुखिया मायावती

फेक न्यूज’ से रहें सचेत

प्रेस लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है. लोकतंत्र के तीन महत्वपूर्ण स्तंभों-विधायिका, कार्यपालिका व न्यायपालिका की भाँति प्रेस की भी अपनी महत्ता है. शासन-प्रशासन एवं विधि के निर्माण में प्रेस सीधे तौर पर तो अपनी भूमिका नहीं निभाता, पर सत्ता(हाथी) जब अपनी मार्ग भटकता है तब प्रेस (वाच डाग) उसे सचेत करता है. इसलिए राज्य-समाज में पत्रकारों/प्रेस प्रतिनिधियों की बड़ी भूमिका होती है. लोगों तक सही सूचनाएं पहुँचाने की बहुत बड़ी जिम्मेवारी पत्रकारों की है.

पत्रकारों को अपने दायित्वों के ठीक तरह से निर्वहन के लिए भारत में 4जुलाई, 1966 को प्रेस परिषद की स्थापना की गई. 16 नवम्बर, 1966 से यह कार्य करना शुरू किया. तब से प्रत्येक 16 नवम्बर को ‘राष्ट्रीय प्रेस दिवस’ के रूप में मनाया जाता है.

किन्तु दुर्भाग्य की बात है कि स्थापना के पाँच दशक बाद आज प्रेस परिषद के लिए ‘फेक न्यूज’ एक चुनौती बन कर उभरा है. कई मीडिया संगठन व्यसायिक व राजनैतिक लाभ के लिए झूठी खबरें प्रकाशित-प्रसारित कर रहेंं हैं. ऐसी खबरों पर नियंत्रण की कोई व्यवस्था नहीं बन पाई है. सूचना क्रांति के इस दौर में लोगों को सही व निष्पक्ष खबरों का चुनाव करना मुश्किल हो गया है.

‘फेक न्यूज’ से बचने के लिए लोगों को थोड़ा जागरूक होना जरूरी है. सोशल मीडिया और परंपरागत टीवी-वेब चैनलों पर चलने वाली खबरों की वास्तविकता पहचानना वैसे तो जरा मुश्किल है , पर विश्वसनीय समाचार माध्यमों का चुनाव कर हम झूठी खबरों से बच सकते हैं.हम ऐसी मीडिया संगठन, जो झूठी खबरें परोसते हैं , उनकी खबरों को न देखें , न लाइक करें और न शेयर करें. सोशल मीडिया पर मौजूद ‘फेक न्यूज’ वाले वेब पोर्टलों को अनसब्सक्राइब भी कर सकते हैं.

रामकृष्ण यादव

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बौद्ध रीति रिवाजों से शादी करेगें दलित

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प्रतिकात्मक चित्र

हिसार। सामाजिक बहिष्कार जैसे जातीय विवादों के लिए चर्चित हरियाणा के जिला हिसार के गांव भाटला में 20 अगस्त को दलित परिवारों ने विरोध प्रदर्शन करते हुए गांव के गुरु रविदास मंदिर में एकत्र होकर करीबन 300 परिवारों में बौद्ध धर्म ग्रहण किया था. अब गांव के दलितों ने एक कदम आगे बढ़ते हुए अपने पुराने हिंदू रीति-रिवाजों को त्याग कर अपने शादी-ब्याह भी बौद्ध रीति-रिवाजों से करने का फैसला किया है.

गांव की दलित महिला जर्मिला देवी ने अपनी पुत्री का विवाह बौद्ध रीति-रिवाजों से करने का फैसला किया है. इस बारे में जो शादी का आमंत्रण पत्र छपवाया गया है, उस पर भी पारंपरिक तौर पर हिंदू देवी देवताओं की जगह डॉ. बीआर आंबेडकर, गुरु रविदास तथा भगवान बुद्ध की तस्वीरों को स्थान दिया गया है. अब भाटला गांव की दलित महिला जर्मिला ने पुलिस को शिकायत देकर 15 नवंबर को बौद्ध रीति रिवाजों से होने वाली पुत्री की शादी में सुरक्षा प्रदान करने की मांग की है.

अपनी शिकायत में दलित महिला जर्मिला देवी ने कहा है कि गांव में सामाजिक बहिष्कार के चलते गांव के दलितों व सवर्णो में बेहद तनातनी का माहौल है. गांव की भाईचारा कमिटी उससे रंजिश रखती है. उसकी पुत्री की बौद्ध रीति रिवाज से होने वाली शादी के दौरान भाईचारा कमिटी के सदस्य या उनकी शह पर कुछ अपराधी तत्व उनकी बेटी की शादी में किसी अप्रिय घटना को अंजाम दे सकते हैं. इसलिए इस शादी के दौरान उसको पुलिस सुरक्षा प्रदान की जाए और विशेष रूप से महिला पुलिस कर्मियों को भी तैनात किया जाए.

इस बारे में भाटला दलित संघर्ष समिति के प्रधान बलवान सिंह का कहना है कि यह बहुत खुशी का विषय है कि गांव में बौद्ध धर्म ग्रहण करने के बाद अब लोग इसे पूरी तरह अपना रहे हैं तथा शादी ब्याह भी बौद्ध रीति रिवाजों से करा रहे हैं. गांव में शादी के दौरान किसी अप्रिय घटना होने का दलित संघर्ष समिति के प्रधान ने भी अंदेशा जताते हुए कहा कि दलित महिला जर्मिला देवी की शिकायत पर कार्रवाई होनी चाहिए तथा शादी के दौरान पुख्ता पुलिस इंतजाम होने चाहिए.

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बुद्ध की मूर्तियों की दर्दनाक दास्तान!

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बिहार के जिला मुंगेर, प्रखंड असरगंज के गाँव लगमा से सोमनाथ आर्य की यह रिपोर्टिंग इसी साल 2018 की है. द इंडियन सन के रिपोर्टर लगमा गाँव में दाखिल हुए तो एक मंडप में काले ग्रेनाइट की भूमि स्पर्श मुद्रा में बुद्ध की मूर्ति थी. मगर गाँव के लोग मुरकटवा बाबा कहते हैं और शराब चढ़ाते हैं. मुरकटवा का मतलब, वह जिसका सिर कटा हुआ हो.

लगमा गाँव के बाहर तीन प्रतिमाएँ गड़ी हुई हैं. स्थानीय लोग इन्हें ” लतखोरवा ” गोसाईं कहते हैं. लतखोरवा गोसाईं का मतलब हुआ, वह देवता जो लात (पैर) मारने से खुश रहे. अजूबा बात थी. भला कोई देवता पैर से ठोकर मारने और चप्पल से पीटे जाने पर क्यों खुश होंगे. आखिर कौन है लतखोरवा गोसाईं?

तस्वीरें यूनिवर्सिटी आॅफ मुंबई भेजी गई. पालि विभाग के राहुल राव ने बताया कि तीनों मूर्तियाँ बुद्ध की हैं. ऐसा जान पड़ता है कि लगमा का क्षेत्र कभी बौद्ध – स्थल था. निकट की ढोल पहाड़ी पर बुद्ध के चित्र उकेरे गए हैं. कालांतर में कभी यह स्थल बौद्ध विरोधियों के कब्जे में आया तो वे इसे नष्ट-भ्रष्ट कर दिए. कारण कि तीन में से एक मूर्ति को बारूद से उड़ाया गया है.

कभी बौद्ध विरोधियों ने बुद्ध की मूर्तियों को लात – जूता से पीटने की परंपरा चालू की होगी और यह परंपरा बाद में भी जाने – अनजाने में लोगों ने जारी रखी.

खैर, खबर बौद्ध संस्था हयूनेंग फाउंडेशन को मिल चुकी है. यह राहत की बात है.

राजेन्द्र प्रसाद सिंह के फेसबुक वॉल से

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विश्व कवि ढसाल का एक यादगार पत्र: दुसाध के नाम!

8 दिसंबर ,2011 मेरे जिंदगी का एक बेहद खास दिन था, इसकी उपलब्धि एक अन्तराल के बाद किया. उस दिन मेरी मुलाकात विश्व विख्यात कवि नामदेव लक्ष्मण ढसाल से हुई थी. 1999 से ही प्राय हर साल मेरा मुंबई और नागपुर का दौरा होता रहा है . इन दौरों में अक्सर किसी न किसी से ढसाल साहब का जिक्र सुनता. उनका नाम सुनते-सुनते उनसे मिलने की इच्छा भी धीरे-धेरे जाग्रत होने लगी. तब 6 दिसंबर को मुंबई के शिवाजी पार्क में किताबों की प्रदर्शनी लगाने के दौरान कई बार उनसे मिलवाने के लिए वहां के मित्रों हल्का-फुल्का अनुरोध किया. हर बार पता चलता चला कि या तो वे बीमार हैं या पूना गए हुए हैं. ऐसा ही एक अवसर 6 दिसंबर, 2011 को फिर आया. उस दिन शिवाजी पार्क में मेरे स्टाल पर काफी भीड़ थी. वैसे जहां कहीं भी स्टाल लगाताता हूँ, विविध कारणों से लोगों की भीड़ मेरे स्टाल पर औरों से कुछ ज्यादे ही रहती है. बहरहाल उस दिन स्टाल पर जुटी भीड़ में से फिर किसी ने ढसाल साहब का जिक्र छेड़ दिया. मैंने बिना किसी खास व्यक्ति की ओर मुखातिब हुए यूं ही कह दिया कि काफी दिनों से उनसे मिलने की तमन्ना है, पर मिलने का असवर अबतक नहीं मिला.

अचानक मेरी किताबों को उलटने पलटने में व्यस्त एक व्यक्ति ने मेरी आँखों में आँखे डाल सवाल किया, ’आप उनसे मिलना चाहते हैं?’ .जी हाँ, क्या कोई उपाय है आपके पास उनसे मिलवाने का!,मेरा जवाब था. हाँ, वह आजकल मुंबई में ही हैं, मैं मिलवा दूंगा,जवाब था उस व्यक्ति का, जो शिवाजी पार्क में स्टाल लगाने पर हर बार ,मेरे स्टाल पर आते और घंटों किताबों को न सिर्फ उलटने पलटने में व्यस्त रहेते, बल्कि जाते-जाते हजार-पांच सौ की किताबें भी जरुर ले लेते. हर बार वहां जाने पर मुझे उनका इन्तजार भी रहता था,किन्तु कभी विस्तार से उनका परिचय जानने का प्रयास नहीं किया. उस दिन किया तो पता चला वे दलित पैंथर के पदाधिकारी और ढसाल साहब के अत्यंत विश्वासपात्र सुरेश केदारे हैं. उन्होंने मिलने का दिन पूछा तो मैने बता दिया :8 दिसंबर! केदारे जी ने उनका लैंड लाइन नंबर और पता लिखकर देते हुए देते हुए कहा,’मैं, उन्हें बता दूंगा, आप चले जाईयेगा.’

और मैं 8 दिसंबर को फोन करके पहुंच गया लोखंडवाला काम्प्लेक्स के निकट अँधेरी वेस्ट वाले उनके अपार्टमेंट: फ्लोराइड में. दूसरे तल अवस्थित पर उनके फ़्लैट का कॉल बेल बजाते ही मुस्कुराते हुए एक भद्र महिला ने दरवाजा खोला, बाद में जाना वह खुद उनकी अर्द्धांगिनी मल्लिका नामदेव ढसाल थीं. ऐसा लगा वे मेरे आने की प्रतीक्षा कर रही थीं.अन्दर कदम रखते ही मैंने खुद को उनके ड्राइंग रुम में पाया. मुझे बैठने का अनुरोध कर वह अन्दर कमरे में चली गयीं और मैं कुछ हद तक धडकते दिल से ढसाल साहब की प्रतीक्षा करने लगा. उनका ड्राइंग रूम आकार में बहुत विशाल तो नहीं था, किन्तु सुरुचिपूर्ण तरीके से सजा हुआ था. लग रहा था किसी लेखक के ड्राइंग रूम जैसे. उसमें हर सभ्य दलित परिवारों की भांति बाबा साहेब की तस्वीर तो थी ही, साथ ही एक और व्यक्ति की विभिन्न मुद्राओं में एकाधिक तस्वीरें भी टंगी थीं:ज्यादातर तस्वीरें ब्लैक एंड व्हाईट में थी. मैंने अनुमान लगा लिया कि वही होंगे ढसाल साहब. इन तस्वीरों के आधार पर उनके व्यक्तित्व की कल्पना करने लगा. ज्यादा नहीं, बमुश्किल तीन-चार मिनट प्रतीक्षा के बाद ही भव्य व्यक्तित्व के स्वामी ढसाल साहब को चेहरे पर भव्य मुस्कान लिए बड़ी मुश्किलों से, लगभग लंगड़ाते हुए अपनी ओर आते देखा. उन्हें देखकर मैं खड़ा हो गया. वे आये और मुझसे हाथ मिलाने के बाद बैठने का संकेत करते हुए धम्म से व्हील चेयर पर बैठ गए. मैं लगभग चालीस मिनट उनके पास बैठा रहा. उनके लिए काफी किताबें लेकर आया था. वे किताबें पलटते हुए वर्तमान हालात पर विचार विनिमय करते रहे. हमारी चर्चा मुख्यतः केजरी-हजारे द्वारा चलाये जा रहे आन्दोलन पर केन्द्रित रही. उनके पास से हटने का तो मन नहीं कर रहा था, किन्तु उनके स्वास्थ्य को देखते हुए और ज्यादा ठहरना उचित नहीं लगा. मैंने लगभग चालीस मिनट बाद उनसे चलने की इजाजत मांगी. जब चलने लगा, उन्होंने मना करने के बावजूद मेरी जेब में कुछ रूपये ठूस दिए. बाहर आकर गिना तो पाया 2,500 रूपये थे. उनके और हमारे बीच परवर्तीकाल में चिरकाल के लिए सेतु बने भाई सुरेश केदारे ने कहा था,’दादा दिल से राजा हैं.’ उनके घर के हालात देखर मुझे ऐसा लगा था वे आर्थिक प्राचुर्य नहीं, अभावों में ही जी रहे हैं. वावजूद इसके उन्होंने उतने रूपये मेरी जेब डाल दिया. ऐसा कोई राजा दिल व्यक्ति ही कर सकता था. बाद में तो उनसे हमारे सम्बन्ध बहुत प्रगाढ़ हुए और कई मुलाकातें हुईं: हर मुलाकात में उनकी शाही दिली का सबूत मिलता रहा . दिसंबर 8 की उस मुलाकात के शायद एक माह बाद ही अचानक एक दिन फोन आया. उन्होंने कहा ,’दुसाध जी अन्ना आन्दोलन के खिलाफ हमलोग तीन दिन बाद एक बड़ा प्रतिवाद सभा करने जा रहे हैं, आपको हर हाल में आना है.’ ‘सर, मैं बनारस में हूँ,’इतनी जल्दी ट्रेन का टिकट कंफर्म होना मुमकिन नहीं दीखता, अतः …’इससे आगे मैं कुछ कहता मेरी बात को काटते हुए उन्होंने कहा,’डोंट वोर्री’!मैं जहाज का टिकट भेजता हूँ.’ और उन्होंने भेजा तथा मैं दादर, चैत्यभूमि के पास आयोजित उस सभा में पहुंचा भी, किन्तु देर से. मौसम ख़राब होने के कारण फ्लाईट कुछ देर से पहुंची थी. जब सभा स्थल पर पहुंचा, उस समय वह ज्ञापन देने के लिए राज्यपाल हाउस जाने की तैयारियों में व्यस्त दिखे. हमलोग दर्जन से अधिक गाड़ियों के काफिले के साथ गवर्नर हॉउस पहुँच कर ज्ञापन दिए.

दरअसल पहली मुलाकात में मैंने जो उन्हें कई किताबें भेंट की थी, उनमें मेरी दो किताबें अन्ना-केजरी के ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन’ आन्दोलन पर थीं, जिनमें मैंने उन्हें बुरी तरह एक्सपोज कर दिया था. उस समय तक इनके खिलाफ कम से कम हिंदी में कोई किताब नहीं आई थी. इसलिए ही उन्होंने एक स्पेश्लिस्ट के तौर पर उस सभा को संबोधित करने के लिए आमंत्रित किया था.उस दौरे में दो दिन मुंबई में रहा. इस बीच हमने एकाधिक बार लम्बा वार्तालाप किया. एक दिन उन्होंने इस बात के लिए अफ़सोस जताया कि हिंदी पट्टी में बाबा साहेब पर इतना काम हो रहा है, पर वहां के लेखकों से मिलने का अवसर नहीं निकाल पाया. बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने हिदी पट्टी के लेखकों से मिलवाने की जिम्मेवारी मुझ पर डाल दी. उन दिनों मैं 15 मार्च को आयोजित होने वाले ‘बहुजन डाइवर्सिटी मिशन’ के स्थापना दिवस की तैयारियों में व्यस्त था. मैंने एक पंथ दो काज के तहत मौका-माहौल देखकर उन्हें आयोजन में मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत करने का अनुरोध किया, जिसे उन्होंने सहजता से स्वीकार कर लिया. तय यह हुआ कि 15 मार्च को वे स्थापना दिवस में शामिल होंगे और अगले दिन शाम को दिल्ली के दलित लेखकों के साथ डिनर करेंगे.

उसके बाद दिल्ली आकर अतिरिक्त उत्साह के साथ स्थापना दिवस की तैयारियों में जुट गया. आयोजन स्थल के लिए हमने चयन किया, दिल्ली के जेएनयू को. इस बीच कई लेखक मित्रों को डिनर के लिए तैयार भी कर लिया था. किन्तु प्रोग्राम के तीन-चार दिन पहले से ही उनके स्वास्थ्य में और गिरावट की खबरें आने लगीं. और शेष में स्थिति ऐसी हो गयी कि वे आने की हालात में नहीं रहे. ऐसी स्थित में उन्होंने 14 मार्च,2012 को यह पत्र फैक्स के जरिये भेजा और अनुरोध किया कि इसे उपस्थिति श्रोताओं के मध्य पढ़कर, न आ पाने के लिए मेरी और से खेद प्रकट कर दीजियेगा और मैंने वैसा किया भी. उनका वह दुर्लभ पत्र कहीं खो गया था,जो 7 नवम्बर, 2018 को लैपटॉप पर कुछ पुरानी सामग्री ढूंढते-ढूंढते अचानक मिल गया, जिसे मैंने 8 नवम्बर को फेसबुक पर डाल दिया. फेसबुक पर प्राख्यात लेखक प्रो. चौथीराम यादव, डॉ. लाल रत्नाकर, कर्मेंदु शिशिर, सुदेश तनवर, चंद्रभूषण सिंह यादव सहित अन्य कई लोगों ने उनके इस पत्र को एक स्वर में ‘ऐतिहासिक दस्तावेज’ करार दिया. बहरहाल यह पत्र एकाधिक कारणों से मेरे लिए बेहद महत्त्वपूर्ण था. पहला तो यह कि इस पत्र में उनकी लिखावट मुझे विस्मित की थी. मैं ही क्यों, कोई भी उनकी लिखावट देखकर मेरी तरह ही विस्मित हो सकता है. बहुतों को पता नहीं है कि उन्होंने ‘फाइन आर्ट’ में ग्रेजुएशन किया था. इस कारण उनकी लिखावट बेहद खूबसूरत हुआ करती थी, जिसका साक्ष्य है यह पह . उनकी विरल लिखावट के अतिरिक्त इसके महत्वपूर्ण होने का दूसरा कारण यह रहा है कि उनकी जैसी ऐतिहासिक शख्सियत ने मुझ जैसे तुच्छ व्यक्ति के साथ मिलकर बाबा साहेब के मिशन को आगे बढाने का आह्वान किया था. ढसाल साहब बहुत ही डॉमिनेटिंग:सरल भाषा में कुछ हद तक खौफनाक व्यक्तित्व के स्वामी रहे, जिनके सामने आने पर बड़े से बड़े लोगों का भी निष्तेज हो जाना तय था. किन्तु एक खास बात यह थी कि उनके चेहरे पर सब समय एक ऐसी मुस्कान खेलती रहती थी जिसके नीचे एवरेस्ट सरीखा बुलंद आत्म विश्वास और करुणा का अपार सागर हिलोरे मारते रहता था. इस मुस्कान का पहली बार साक्षात् मैंने 8 दिसंबर, 20011 को उनके फ्लोरिडा अपार्टमेंट में किया था. 2013 के 8 दिसंबर को जब मरीन लाइन के बॉम्बे हॉस्पिटल में उन्हें आखरी बार जिंदगी और मौत से जूझते देखा, तब भी वह खास मुस्कान उनके चेहरे से जुदा नहीं हुई थी.15 फरवरी,1949 को अपने जन्म से दलित भारत को धन्य करने वाले ग्रेट पैंथर उसी हॉस्पिटल में लगभग सवा महीने जिदगी और मौत से आँख मिचौनी करते हुए 15 जनवरी, 2014 को आखरी साँस लिए थे. 2013 के 6 दिसम्बर को शिवाजी पार्क के लिए रवाना होने के सप्ताह पूर्व ही हमारे मध्य सेतु रहे सुरेश केदारे भाई से पता चल चुका था कि पैन्थरों के ‘दादा’ अर्थात हमारे ढसाल बहुत ही गंभीर हालात में बॉम्बे हॉस्पिटल में एडमिट किये गए हैं. ऐसे में 6 दिसंबर को शिवाजी पार्क में किताबों का स्टाल लगाने के बाद अगले ही दिन हॉस्पिटल पहुँच गया. किन्तु उनकी हालत इतनी गंभीर थी कि डॉक्टर ने मिलने की इजाजत ही नहीं दी. ऐसा लगा उनसे बिना मिले ही वापस आ जाना पड़ेगा. किन्तु उनके प्रति मेरी अपार श्रद्धा को देखते हुए खुद मल्लिका मैडम सहित उनके सहयोगियों ने बहुत रिक्वेस्ट कर डॉक्टर से मेरे लिए इजाजत मांगी और 2011 के 8 दिसंबर की पहली मुलाकात के बाद फिर एक और 8 दिसम्बर को उनसे मिल सका,जो आखरी मुलाकात साबित हुई.

भारी सावधानी के बीच आईसीयू में पड़े ढसाल साहब के पास पहुंचा.वह ऑंखें बंद किये बेड पर पड़े हुए थे.’सर!मैं आया हूँ’, यह सुनते उन्होंने धीरे से आँखे खोला और फ़ैल गयी उनके चेहरे पर उनकी चिरपरिचित स्वाभाविक मुस्कान. उन्होंने मद्धिम आवाज में पूछा,’सब ठीक है न’! मैं स्तब्ध था.सर हिलाकर हामी भरा. वह और कुछ कहना चाहते थे.मैंने डॉक्टर की हिदायत को ध्यान में रखते हुए चुप रहने का संकेत किया. वे मुस्कुराकर खामोश हो गए. फिर धीरे से कहे ‘डाइवर्सिटी रुकना नहीं चाहिए’. यह सुनकर मेरी ऑंखें छलछला आयीं, किन्तु मैं खुद को सामान्य बनाये रखा. लगभग डेढ़-दो मिनटों तक स्तब्ध होकर निहारते रहने के बाद इजाजत लेकर आईसीयू से बाहर आ गया. मन बहुत उदास था. ऐसा लगा ग्रेट पैंथर को दुबारा दहाड़ते हुए नहीं देख पाऊंगा. और जिसकी आशंका थी, वह खबर आ ही गयी.

14 जनवरी को कोलकाता से दिल्ली के लिए चला था. भयंकर ठंडी में रात में कम्बल में दुबक सो रहा था. अचानक मोबाइल घनघना उठा. देखा सुबह के तीन बजे हैं और उधर से भाई सुरेश केदारे की कॉल आ रही थी. मैं समझ गया, ग्रेट पैंथर जन अरण्य का परित्याग कर चुका है. कॉल को रेस्पोंस किया तो उधर से आवाज आई,’दादा नहीं रहे’! अब जहां तक ढसाल साहब की महानता का सवाल है, उस पर बहुत कुछ लिखा गया है: देश-विदेश के ढेरों मनीषियों ने उनका आंकलन किया है. किन्तु मेरा मानना है कि जितना हुआ है, वह पर्याप्त नहीं है. डॉ.आंबेडकर के बाद दलित साईक को बदलने में सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने वाले इस पैंथर का सम्पूर्ण आंकलन अभी भी बाकी है. वह विश्व इतिहास के पहले कवि रहे जिन्होंने दलित पैंथर जैसा एक मिलिटेंट(उग्र)संगठन स्थापित कर देश और महाराष्ट्र की राजनीति में बवंडर पैदा कर दिया. अधिकांश लेखक-कवि-शिल्पी समाज परिवर्तन के लिए पहले से स्थापित सामाजिक/राजनीतिक संगठनों में योगदान किये, किन्तु स्वतंत्र रूप में, खासकर लेखक नहीं, किसी कवि ने दलित पैंथर जैसा आक्रामक संगठन कही नहीं बनाया. विष्णु खरे के शब्दों में वह कवि के रूप में रवीन्द्रनाथ टैगोर से बड़े ऐसे कवि थे,जिन्होंने देश और महाराष्ट्र की राजनीति को गहराई से प्रभावित किया. अंतरराष्ट्रीय कविता जगत में भारतीय कविता के विजिटिंग कार्ड रहे ढसाल साहब ने भारत में कविता को परम्परा से मुक्त एवं उसके आभिजात्यपन को ध्वस्त करने के साथ दलित साहित्य को जो तेवर दिया,उससे मुख्यधारा का साहित्य करुणा का विषय बन कर रह गया, यह सब बातें मैंने अपनी दो प्रकाशित पुस्तकों,सितम्बर 2012 में ‘टैगोर बनाम ढसाल’ तथा उनके मरणोपरांत मार्च,2014 में प्रकाशित ‘महाप्राण नामदेव ढसाल’ के जरिये काफी हद तक प्रमाणित कर दिया है. लेकिन पद्मश्री ढसाल एक कवि, संगठनकर्ता और राजनेता से भी बहुत आगे की चीज थे.

वह विश्व के इकलौते कवि-लेखक थे,जिनके समक्ष साहित्य और राजनीति ही नहीं अंडरवर्ल्ड की हस्तियाँ भी झुकती थीं. उन्होंने जिस तरह अपार प्रतिकूलताओं को जय करते हुए विविध क्षेत्रों में विश्वस्तरीय छाप छोड़ी, उसके आधार पर वे सिकंदर और नेपोलियन जैसे योद्धाओं की पंक्ति में स्थान पाने के हकदार थे, यह बात सिद्ध करने के लिए उन पर मैंने 2015 में एक खास किताब लिखने की परिकल्पना किया. इसके लिए काफी हद तक जरुरी सामग्री भी जुटा लिया था. किन्तु 2014 के बाद जिस तरह देश के हालात बद से बदतर होने लगे, मुझे उस लम्बी परियोजना से विरत होना पड़ा. यदि 2019 के बाद बहुजन भारत विशेषाधिकारयुक्त तबकों, जिनके खिलाफ संग्राम चलाने के लिए ही ढसाल साहब ने खुद को साधारण से अति-असाधारण में परिणत किया था, के हाथ से मुक्त सका तो फिर विश्व इतिहास की सबसे अनूठी शख्सियत से जुड़े अधूरे काम को पूरा करने में खुद को झोंक दूंगा, यह मेरी ग्रेट पैंथर के गुणानुरागियों के समक्ष प्रतिश्रुति है.

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लोकसभा चुनाव लडऩे की तैयारी में बसपा मुखिया मायावती

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लखनऊ। भारतीय जनता पार्टी को 2019 के लोकसभा चुनाव में शिकस्त देने की तैयारी में विपक्ष की योजना को बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती भी धार देने में लगी हैं. मायावती करीब 15 वर्ष के बाद लोकसभा के चुनावी मैदान में उतरने के मूड में हैं.

लोकसभा के बाद राज्यसभा से शीर्ष सदन में जगह बना चुकीं उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती को अब लोकसभा सीट तय करनी है. उत्तर प्रदेश में लोकसभा के उपचुनाव में समाजवादी पार्टी को दो सीट दिलाने में मदद करने वाली मायावती का संकेत है कि उनकी पार्टी उत्तर प्रदेश की आधी से अधिक सीट यानी करीब 50 पर बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी उतारेगी. बसपा सुप्रीमों मायावती 2019 के लोकसभा चुनाव में उतरने की तैयारी कर रही हैं. इसके लिए उन्होंने लोकसभा सीट की तलाश शुरू कर दी है.

मायावती को पता है कि केंद्र की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से ही होकर जाता है. भाजपा को 2019 में सत्ता में आने से रोकने के लिए मायावती और अखिलेश यादव के एक साथ आने की उम्मीद है. अखिलेश के साथ गठबंधन में मायावती खुद किस सीट से चुनाव लड़ेंगी, यह उनको तय करना है. इससे पहले 2004 में मायावती अकबरपुर सीट से लोकसभा चुनाव जीती थीं.

बसपा का यह पुराना गढ़ है लेकिन यह सीट समान्य हो गई. इसी कारण वह अपने गृह जिले गौतम बुद्ध नगर से चुनाव मैदान में उतर सकती हैं. वह अभी तक राज्यसभा और विधानपरिषद के रास्ते सदन तक पहुंचीं हैं. अब डेढ़ दशक बाद उनके एक बार फिर से ताल ठोंकने की तैयारी है. अगर गठबंधन के तहत मायावती चुनाव लड़ती है तो निश्चित तौर पर बसपा को जमीनी स्तर पर काफी फायदा होगा. इसके अलावा गठबंधन के तहत अखिलेश यादव भी मायावती के लिए प्रचार करते नजर आ सकते हैं.

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दलित परिवार के साथ मारपीट, चार दिन बाद भी पुलिस हरकत में नहीं

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नूंह। खंड के खेड़ा-खलीलपुर गांव में दबंग परिवार द्वारा दलित परिवार के साथ मारपीट करने का मामला प्रकाश में आया है. वारदात को चार दिन बीत जाने के बाद भी पुलिस ने इस मामले में किसी को गिरफ्तार नहीं किया है. जिससे पीड़ित दलित परिवार में भय का माहौल है. मारपीट के दौरान दलित परिवार के लोगों को गंभीर चोटें आई हैं और उनमें से एक महिला को दिल्ली रेफर कर दिया गया है. पुलिस ने दया, कृष्ण, खजान, रमेश, नेपाल, राजू, विजयपाल सहित कई लोगों खिलाफ मामला दर्ज किया है. पीड़ित पक्ष का आरोप है कि गांव के दया ने अपने घर का रैंप गली में बनाया हुआ है. कोई भी वाहन वहां से निकलता है तो उसके मकान की दीवार को रगड़ा मारता है, जिससे मकान गिरने का डर रहता है. उन्होंने अपने घर को बचाने की नीयत से दीवार के साथ एक पत्थर डाल दिया जिससे वाहन बचकर निकल जाए. इसका दया व उनके परिजनों ने विरोध किया. इसी बात को लेकर उक्त लोगों उनके साथ मारपीट की. पीड़ित परिजनों का आरोप है कि इससे पहले भी उनके साथ साथ मारपीट की जा चुकी है. झगड़े में बिश्बंर, भरतसिंह, शकुंतला, लीला को चोटें आई है. शकुंतला के सिर में अधिक चोट होने के कारण उसे मेडिकल कॉलेज नलहड़ से दिल्ली के लिए रेफर कर दिया गया है. वहीं दूसरे पक्ष का कहना है कि उन पर झूठे आरोप लगाए जा रहे हैं. ये लोग आए दिन गलती करते हैं और दूसरों को दोषी ठहराते हैं. डीएसपी सुखबीर सिंह का कहना मामले की जांच चल रही है जल्द ही आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया जाएगा.

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बहुजनों को गुलामी से बचाने का एक ही रास्ता है डाइवर्सिटी:एच.एल.दुसाध

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मऊ। ‘कार्ल मार्क्स ने कहा है कि दुनिया का लिखित इतिहास वर्ग संघर्ष का इतिहास है.समाज में सदैव ही विरोधी आर्थिक वर्गों का अस्तित्व रहा है. एक वर्ग वह है जिसके पास उत्पादन के साधनों का स्वामित्व रहा और दूसरा वह जो केवल शारीरिक श्रम करता है. मार्क्स का बताया वर्ग संघर्ष का वह इतिहास भारत में आरक्षण पर संघर्ष के रूप में क्रियाशील रहा. क्योंकि जिस वर्ण-व्यवस्था के द्वारा भारत समाज सदियों से परचालित होता रहा, वह बुनियादी तौर पर आरक्षण की व्यवस्था रही, जिसमें उत्पादन के सभी साधन ब्राह्मण,क्षत्रिय और वैश्यों से युक्त सवर्णों के लिए आरक्षित रहे. इस हिन्दू आरक्षण में ही अपनी हिस्सेदारी के लिए वंचित बहुजन सदियों से सघर्षरत रहा. आरक्षण पर इस संघर्ष में 7 अगस्त,1990 को तब एक नया ऐतिहासिक मोड़ आया, जब पिछड़ों को मंडल रिपोर्ट के जरिये नौकरियों में 27 प्रतिशत आरक्षण मिला. तब इस आरक्षण के खात्मे लिए वर्ण-व्यवस्था का सुविधाभोगी वर्ग नए सिरे से उठ खड़ा हुआ.उसने आरक्षण के खात्मे के लिए तरह –तरह के उपाय किये,जिसमें सबसे कारगर रही 24 जुलाई ,1991 से लागू नवउदारवादी अर्थनीति. और आज इस अर्थनीति को हथियार बनाकर वह आरक्षण को लगभग पूरी तरह कागजों की शोभा बनाने के बाद मंडल उत्तरकाल में संगठित वर्ग-संघर्ष में अपनी विजय का पताका फहरा चुका है.’ यह बातें आज पालिका कम्युनिटी हॉल,मऊ में आयोजित तेरहवें ‘डाइवर्सिटी डे’ समारोह में बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष एच.एल.दुसाध ने विषय प्रवर्तन करते हुए कही.

उन्होंने आगे कहा कि जब शासक वर्गों ने नवउदारवादी अर्थनीति को हथियार बनाकर तेजी से आरक्षण का खात्मा करना शुरू किया, तब 12-13 जनवरी ,2002 को भोपाल में आयोजित ऐतिहासिक कांफ्रेंस से डाइवर्सिटी समर्थक दलित बुद्धिजीवियों ने नौकरियों में आरक्षण से आगे बढ़कर सप्लाई, डीलरशिप, ठेकों, फिल्म-मीडिया इत्यादि अर्थोपार्जन की समस्त गतिविधियों में हिस्सेदारी की लड़ाई के लिए आरक्षित वर्गों के बुद्धिजीवी, एक्टिविस्टों और नेताओं को आह्वान किया पर, वे उसकी लगातार अनदेखी करते रहे.वे आज भी ‘आरक्षण बचाओ’की लड़ाई में समाज को उलझाये हुए हैं.फलस्वरूप उनकी नाक के नीचे से शासक वर्गों ने आरक्षण को धीरे-धीरे ख़त्म सा कर दिया है .किन्तु डाइवर्सिटी समर्थक बुद्धिजीवी अर्थोपार्जन की समस्त गतिविधियों में हिस्सेदारी की वैचारिक लड़ाई लगातार लड़ते रहे. उनके प्रयासों से कई राज्यों में ठेकों,सप्लाई,डीलरशिप, आउट सोर्सिंग जॉब में आरक्षण लागू हुआ. आज जबकि शासक वर्गों ने बहुजनों को नये सिरे से गुलामी की ओर ठेल दिया है, जरुरत है कि पूरा आरक्षित वर्ग सर्वशक्ति से सर्वव्यापी आरक्षण की लड़ाई में उसी तरह कूद पड़े, जैसे अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की लड़ाई में सारे भारतीय कूद पड़े थे. आज बहुजनों के समक्ष भारत के स्वाधीनता संग्राम की भांति संपदा-संसाधनों में अपनी हिस्सेदारी की लड़ाई लड़ने के सिवाय कोई और विकल्प नहीं रह गया है.’

तेरहवें डाइवर्सिटी डे के अवसर पर सबसे पहले मुख्य अतिथि विद्या गौतम ने दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम की शुरुआत किया. उसके बाद गढ़वा, समस्तीपुर, पटना, देवरिया, गोरखपुर, गाजीपुर, भागलपुर,बनारस इत्यादि सहित देश के विभिन अंचलों से आये अतिथियों ने बाबा साहेब डॉ.आंबेडकर और महापंडित राहुल सांकृत्यायन की तस्वीरों पर माल्यार्पण कर उनके प्रति श्रद्धा सुमन अर्पित किया. बाद में एक-एक करके सभागार में उपस्थित लोगों ने पुष्प अर्पित कर श्रद्धा व्यक्त किया.पुष्पार्पण के बाद मंच संचालक डॉ. रामबिलास भारती ने डाइवर्सिटी डे के अवसर पर किताबों के विमोचन की घोषणा की. इस अवसर पर ‘डाइवर्सिटी मैन ऑफ़ इंडिया’ के रूप में विख्यात बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष एच.एल.दुसाध की डाइवर्सिटी इयर बुक:2018-19 , हकमार वर्ग(विशेष सन्दर्भ:आरक्षण का वर्गीकरण), धन के न्यायपूर्ण बंटवारे के लिए सर्वव्यापी आरक्षण की जरुरत (विशेष सन्दर्भ: अमेरिकी और दक्षिण अफ़्रीकी आरक्षण) तथा 21वीं सदी में कोरेगांव जैसी चार किताबों का विमोचन हुआ. पुस्तक विमोचन के बाद डाइवर्सिटी मैन ऑफ़ द इयर की घोषणा की गयी. इस सम्मान के लिए सुपर्सिद्ध पत्रकार-लेखक महेंद्र नारायण सिंह यादव, अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त चित्रकार डॉ.लाल रत्नाकर तथा वरिष्ठ पत्रकार सत्येन्द्र प्रताप सिंह के नामों की घोषणा हुई.इनमें सिर्फ सत्येन्द्र प्रताप सिंह ही सशरीर उपस्थित होकर सम्मान ग्रहण कर सके.

चर्चा के लिए निर्दिष्ट विषय ‘धन-दौलत के न्यायपूर्ण बंटवारे की रणनीति’ पर विचार रखने का क्रम पथरदेवा पीजी कॉलेज के डॉ. कौलेश्वर प्रियदर्शी से शुरू हुआ.उन्होंने जोर देकर कहा कि नौकरियों में आरक्षण से आगे बढ़कर सम्पूर्ण भागीदारी का सवाल खड़ा करना आज की सबसे बड़ी जरुरत है और यह काम पूरे देश में ‘बहुजन डाइवर्सिटी मिशन’ ही कर रहा है. इस संगठन द्वारा सुझाये जा रहे उपाय के तहत यदि समस्त क्षेत्रों में सामाजिक और लैंगिक विवधता लागू हो जाय तो देश और बहुजन समाज की सारी समस्यायों का हल स्वतः हो जायेगा. तमाम क्षेत्रों में सामाजिक और लैंगिक विविधता लागू होने से सर्वसमाज का समवेत विकास और सुदृढ़ीकारण हो जायेगा,जो देश को विभेदीकरण से मुक्तकर देश की अखंडता को चिरकाल के लिए मजबूती प्रदान कर देगा.समस्तीपुर से आये सोशल एक्टिविस्ट मन्नू पासवान ने कहा कि देश का बहुजन बहुत ही संकट ही संकट से जूझ रहा है. शासकों ने नवउदारवादी नीति को हथियार बनाकर हमारा सब कुछ ख़त्म कर दिया है. राहत की बात है कि इस संकट में बाबा साहेब डॉ. आंबेडकर के बाद सबसे बड़े लेखक-चिन्तक के रूप में उभरे एच.एल.दुसाध हमारे बीच हैं. दुसाध जी ने इस संकट की घड़ी में डाइवर्सिटी का एजेंडा सामने लाकर हमें इस हालात से उबरने का रास्ता सुझा दिया है. जरुरत इस बात है की है कि हम डाइवर्सिटी को जनांदोलन का रूप दें. सिवान से आये युवा लेखक राजवंशी जे.ए.आंबेडकर ने धन के न्यायपूर्ण बंटवारे की रणनीति पर आलोकपात करते हुए कहा कि बहुजन डाइवर्सिटी मिशन ने सही समय पर धन-दौलत के न्यायपूर्ण बंटवारे का अभियान छेड़ा है. शासकों ने जिस तरह आरक्षण को कागजों की शोभा बनाकर बहुजनों को गुलामी की ओर ठेल दिया है, इस किस्म के आन्दोलन की निहायत ही जरुरत थी.लेकिन इस लड़ाई को लड़ते हुए हमें कुछ ऐसी योजना बनाना पड़ेगा, जिससे इसका लाभ अंतिम व्यक्ति तक पहुंचे.

बलिया के प्रखर वक्ता आर.के .यादव ने धन के न्यायपूर्ण बंटवारे का आन्दोलन चलाने के लिए बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष एच. दुसाध को साधुवाद देते हुए कहा कि आज धन का न्यायपूर्ण बंटवारा सबसे बड़ा सवाल है. इसके लिए दलित, आदिवासी,पिछड़े और धार्मिक अल्पसंख्यक समूहों को नए सिरे से संगठित होने की जरुरत है. अगर नहीं संगठित हुए तो विदेशी मूल का शासक वर्ग हमारा बचा-खुचा भी ख़त्म कर देगा. इसलिए धन के न्यायपूर्ण बंटवारे के आन्दोलन को कामयाब बनाने के लिए मूलनिवासियों की एकता पर पहले से कहीं ज्यादा जोर देना पड़ेगा. देवरिया से आये शिक्षा अधिकारी शिवचन्द्र राम ने धन के न्यायपूर्ण बंटवारे की बहुत जोरदार शब्दों में हिमायत की. उन्होंने कहा आरक्षण बचाने की लड़ाई अब बेमानी हो चुकी है. अब जरुरत नौकरियों से आगे बढ़कर सप्लाई, डीलरशिप, ठेकों इत्यादि अर्थोपार्जन की ए टू जेड समस्त गतिविधियों में ही आरक्षण बढ़ाने की लड़ाई लड़ने की है. इतिहास की पुकार है कि बहुजन समाज पूरी ताकत से सर्वव्यापी आरक्षण की लड़ाई के लिए कमर कसे. कानपुर से आये प्राख्यात बहुजन लेखक के. नाथ ने कहा कि आज बड़ी जरुरत अपने आन्दोलनों की आत्म-समीक्षा करने की है. बाबा साहब के जाने के बाद उनका मिशन पूरा करने के लिए मैदान में उतरे आधिकांश संगठन ब्राह्मणवाद के खात्मे को अपना मुख्य लक्ष्य बनाया पर, क्या हम इस दिशा में अपेक्षित कामयाबी हासिल कर पाए? नहीं! बाद में मंडल की रिपोर्ट प्रकाशित होने के बाद जब शासक दल निजीकरण, उदारीकरण,विनिवेशीकरण की दिशा में जोर-शोर से आगे, हमारे कई संगठन और नेता आरक्षण बचाने की लड़ाई में कूद पड़े . आज भी हमारे तमाम संगठन आरक्षण बचाने तथा निजीक्षेत्र में आरक्षण बढ़ाने में मशगूल हैं. पर क्या हम कुछ कामयाब भी हुए? आज आंकडे बताते हैं कि 10% टॉप की आबादी का 90% से अधिक धन-संपदा पर कब्ज़ा हो चुका है और नीचे की 60% आबादी सिर्फ 4% से थोड़े से अधिक धन पर गुजर–बसर करने के लिए मजबूर है . जो आरक्षण दलितों की उन्नति और बचे रहने का आधार था, आज वह लगभग नहीं के बराबर रह गया है . इसलिए अतीत के अनुभवों से सबक लेते हुए ज़रूरी है कि हम बाकी चीजें भूलकर संपदा-संसाधनों में भागीदारी के लिए ताकत लगायें. इसके लिए बहुजन डाइवर्सिटी मिशन का दस सूत्रीय एजेंडा हमारे काम आ सकता है. यदि इस एजेंडे को लागू करव्वाने में हम कामयाब हो गए तो दलित,आदिवासी ,पिछड़े और अल्पसंख्यक न सिर्फ खुद को गुलाम होने से बचा सकते हैं, बल्कि संपदा-संसाधनों में उचित हिस्सेदारी हासिल कर अपनी भावी पीढ़ी का भविष्य भी सुरक्षित कर सकते हैं. अगर स्वाधीनता संग्राम की भांति अर्थोपार्जन के तमाम क्षेत्रों अपने शेयर की लड़ाई न लड़कर, सिर्फ आरक्षण बचाने में जुटे रहे तो हमारा बचा-खुचा शेष होना बिलकुल तय है.

अंत में मुख्य अतिथि विद्या गौतम,जिन्होंने देश की हर ईंट में भागीदारी के लिए 46 दिनों तक भूख हड़ताल करके एक इतिहास रचा है, ने जोरदार शब्दों में आह्वान किया कि आरक्षण बचाने की लड़ाई धोखा साबित हुई है.ऐसे लोगों के कारण ही बाबा साहेब का दिया हुआ आरक्षण दम तोड़ने जा रहा है. आज जरुरत इस बात की है कि बहुजनों का बच्चा- बूढा-जवान, औरत-मर्द उसी शिद्दत के साथ डाइवर्सिटी की लड़ाई लड़ें जैसे अंग्रेजों के खिलाफ राजनीतिक आजादी की लड़ाई लड़ी गयी थी. उन्होंने आंकड़ों के सहारे बताया कि नौकरी में हमारी हिस्सेदारी मात्र 3.95% है .आज भी 1.8% एससी/एसटी के लोग उच्च शिक्षा में हैं. 2018 में दलित बेरोजगारों की तादाद 8 करोड़ है. 54.71% दलितों के एक गज भी जमीन नहीं है. कैसे करेंगे आर्थिक और सामाजिक गैर-बराबरी का खात्मा; कैसे होगा समाज का विकास ?इसलिए हमारे सामने मात्र एक विकल्प रह गया है, और वह है आबादी के अनुपात में हिस्सेदारी.इसके लिए शक्ति के सभी स्रोतों में न्यायपूर्ण बंटवारा ही एक मात्र विकल्प है,जिसमें मुख्य रूप से सभी सरकारी टेंडर में हमारी हिस्सेदारी हो.मूलनिवासी दलित ,आदिवासी ,पिछड़े तभी प्रगति कर सकेंगे, जब प्रगति के सभी रास्तों में हिस्सेदारी हो. इसका यही रास्ता है कि उद्योगपति,सप्लायर, डीलर,ठेकेदार,पत्रकार,फिल्मकार इत्यादि बनने की चाह हमारे लोगों में पैदा हो. हमें इस मुद्दे को पोलिटिकल पार्टियों को चुनावी मुद्दों में शामिल करवाने के लिए विशेष रूप से संघर्ष चलाना होगा. आदरणीय दुसाध साहब की किताबें हम सबके लिए एक रास्ता हैं मंजिल तक पहुँचने के लिए.मैं साधुवाद दूंगी दुसाध साहब को जिन्होंने आपनी किताब डाइवर्सिटी इयर बुक:2018-19 में हमारे संघर्षों को महत्वपूर्ण स्थान दिया है.

शेष में गढ़वा से आये अशर्फीलाल बौद्ध ने सभी अतिथियों तथा बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के इस वार्षिक आयोजन को सफल बनाने में अपेक्षित सहयोग के लिए बहुजन कल्याण परिषद्/महाबोधि समाज सेवा समिति एवं भारतीय एकता परिषद्, डॉ.सी.पी.आर्य, लालचंद राम को धन्यवाद दिया. अंत में उन्होंने उपस्थित लोगों से निवेदन किया कि एच.एल.दुसाध ने धन के न्यायपूर्ण बंटवारे का जो अभियान छेड़ा है, उसे पूरा करने के लिए हमें भारत के स्वतंत्रता संग्राम की भांति संघर्ष चलाना होगा. यहाँ से संकल्प लेकर जाइए कि आप अपने-अपने इलाके में लोगों बहुजनों की आजादी की इस नयी लड़ाई से जोड़ेंगे. हम लोग 18 आदमी गढ़वा से चलकर आये हैं. इनकी ओर से मैं आश्वस्त करता हूँ कि झारखण्ड में लड़ाई को हमलोग आगे बढ़ाने के लिए मान्यवर एच.एल. दुसाध और विद्या गौतम को शीघ्र ही अपने इलाके में बुलाएँगे.

तेरहवें डाइवर्सिटी डे आयोजन में देश के विभिन्न अंचलों से आये डाईवर्सिटी समर्थक लेखक, छात्र-गुरुजन और एक्टिविस्टों ने शिरकत किया, जिनमें अतिथि वक्ताओं के अतिरिक्त दयानाथ निगम, चंद्रभूषण सिंह यादव , केसी भारती,हरिवंश प्रसाद,डॉ.राहुल राज, इकबाल अंसारी, वसीम अख्तर,लालचंद राम,राजीव रंजन, मुंद्रिका बौद्ध इत्यादि प्रमख रहे.मंच का सफल संचालन डॉ.राम बिलास भारती के नाम रहा.

डॉ.कविश कुमार

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इटली के इस आलीशान रिज़ॉर्ट में हो रही है, दीपिका-रणवीर की शादी

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नई दिल्ली। बॉलिवुड की सबसे रोमांटिक जोड़ी दीपिका-रणवीर 14 नवंबर को शादी के बंधन में बंधने जा रही है. इटली के जिस विला में इनकी शादी हो रही है, उसकी कीमत 8 से 10 लाख रुपये पर नाइट है. बताते हैं कि बॉलिवुड ही नहीं हॉलिवुड सिलेब्रिटीज के बीच भी यह हॉट डेस्टिनेशन है. आइए देखते हैं क्‍या है इस डेस्टिनेशन की खास बातें और इटली में कहां स्थित है यह डेस्टिनेशन…

दीपिका-रणवीर ने अपनी शादी के लिए इटली के लेक कोमो को चुना है. यहां के विला देल बालिबियानेलो को उनकी डेस्टिनेशन वेडिंग के लिए चुना है और इसे खूबसूरती से सजाया जा रहा है.

लेक कोमो में कई विला हैं, जो अपनी खूबसूरती के लिए बहुत मशहूर हैं. मगर विला देल बालिबियानेलो को इटेलियन आर्किटेक्‍चर के बेहतरीन नमूने के तौर पर जाना जाता है. सिलेब्रिटीज की चहल-पहल के कारण इस लोकेशन की कड़ी सुरक्षा रहती है.

खूबसूरती की बात करें, तो इस विला में लेक कोमो के इतिहास, ग्लैमर और प्राकृतिक सुंदरता का बहुत ही सुंदर मिश्रण देखने को मिलता है.

यह विला चारों ओर से पानी से घिरा है जिसकी वजह से यह आकर्षण का प्रमुख केंद्र बन जाता है. इस विला में पहुंचने के लिए ढाई किलोमीटर लंबा घुमावदार रास्ता तय करना पड़ता है.

विला देल बालिबियानेलो में कई रिज़ॉर्ट हैं. यह आपके ऊपर निर्भर है कि आप कौन सा सिलेक्‍ट करते हैं. इनकी कीमत 8000 से 10000 यूरो के बीच है. जो भारतीय करंसी में करीब 6. 59 lakh to Rs 8.29 lakh पड़ती है.

केवल बॉलिवुड सिलेब्रिटीज के बीच ही नहीं हॉलिवुड सिलेब्रिटीज का भी यह फेवरिट डेस्टिनेशन है. जॉर्ज क्‍लूनी और किम करदाशियां जैसी सिलेब्रिटीज के लिए यह हॉलिडे होम के जैसा है.

लेक कोमो अपनी खूबसूरत लोकेशंस और यहां के साल भर रहने वाले सुहावने मौसम के कारण सिलेब्रिटीज के बीच हॉट डेस्टिनेशन बन चुका है.

मुकेश अंबानी की बेटी ईशा अंबानी की सगाई भी लेक कोमो के ही एक रिजॉर्ट में की गई थी.

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