प्रेस लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है. लोकतंत्र के तीन महत्वपूर्ण स्तंभों-विधायिका, कार्यपालिका व न्यायपालिका की भाँति प्रेस की भी अपनी महत्ता है. शासन-प्रशासन एवं विधि के निर्माण में प्रेस सीधे तौर पर तो अपनी भूमिका नहीं निभाता, पर सत्ता(हाथी) जब अपनी मार्ग भटकता है तब प्रेस (वाच डाग) उसे सचेत करता है. इसलिए राज्य-समाज में पत्रकारों/प्रेस प्रतिनिधियों की बड़ी भूमिका होती है. लोगों तक सही सूचनाएं पहुँचाने की बहुत बड़ी जिम्मेवारी पत्रकारों की है.
पत्रकारों को अपने दायित्वों के ठीक तरह से निर्वहन के लिए भारत में 4जुलाई, 1966 को प्रेस परिषद की स्थापना की गई. 16 नवम्बर, 1966 से यह कार्य करना शुरू किया. तब से प्रत्येक 16 नवम्बर को ‘राष्ट्रीय प्रेस दिवस’ के रूप में मनाया जाता है.
किन्तु दुर्भाग्य की बात है कि स्थापना के पाँच दशक बाद आज प्रेस परिषद के लिए ‘फेक न्यूज’ एक चुनौती बन कर उभरा है. कई मीडिया संगठन व्यसायिक व राजनैतिक लाभ के लिए झूठी खबरें प्रकाशित-प्रसारित कर रहेंं हैं. ऐसी खबरों पर नियंत्रण की कोई व्यवस्था नहीं बन पाई है. सूचना क्रांति के इस दौर में लोगों को सही व निष्पक्ष खबरों का चुनाव करना मुश्किल हो गया है.
‘फेक न्यूज’ से बचने के लिए लोगों को थोड़ा जागरूक होना जरूरी है. सोशल मीडिया और परंपरागत टीवी-वेब चैनलों पर चलने वाली खबरों की वास्तविकता पहचानना वैसे तो जरा मुश्किल है , पर विश्वसनीय समाचार माध्यमों का चुनाव कर हम झूठी खबरों से बच सकते हैं.हम ऐसी मीडिया संगठन, जो झूठी खबरें परोसते हैं , उनकी खबरों को न देखें , न लाइक करें और न शेयर करें. सोशल मीडिया पर मौजूद ‘फेक न्यूज’ वाले वेब पोर्टलों को अनसब्सक्राइब भी कर सकते हैं.
रामकृष्ण यादव
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