मंदिर और मूर्तियों में रुचि रखने वाले शूद्रों(पिछड़ों) और आम महिलाओं से एक विनम्र सवाल!

क्या आपने ‘संघ-विहिप-भाजपा’ से कोई एमओयू (MoU) करा ली है कि अयोध्या के भावी भव्य मंदिर से लेकर केरल के शबरीमला मंदिर तक, सारा धरम-करम अब लोकतांत्रिक ढंग से होगा? जाति, उम्र और लिंग का भेदभाव नहीं होगा? किसी भी जाति का व्यक्ति पुजारी हो सकता है और पूजा करने कोई भी व्यक्ति, १० से ५० वर्ष की महिला सहित, मंदिर के अंदर जा सकता है?

क्या संघ-परिवार से संचालित मौजूदा केंद्र सरकार अयोध्या में मंदिर-निर्माण के कथित अध्यादेश से पहले पूरे भारत के अधिसंख्य मंदिरों के संचालन-प्रबंधन और उपासना के अधिकार से सम्बंधित इस आशय का कानून संसद से पारित कराएगी? आप क्यों नहीं यह सवाल उनसे पूछते हैं?

अगर आपने ऐसा कोई MoU उनके साथ नहीं किया है या मंदिर-प्रबंधन व उपासना के अधिकार सम्बन्धी जरुरी सवाल का जवाब उनसे नहीं लिया है तो यकीनन आप मंदिरों और भगवानों को कुछ गिने-चुने चितपावन या कुलीन ब्राह्मण पुरुषों के हवाले कर रहे हैं!

आखिर ये कैसा धर्म है, जिसके अधिसंख्य उपासना-गृहों(मंदिरों) पर सिर्फ एक खास जाति के कुछ पुरुषों का ही ‘राज’ कायम रहता है? शूद्रों और महिलाओं को अपने इस धर्म और इसके अधिसंख्य उपासना-गृहों(मंदिरों) के बारे में जरूर सोचना चाहिए!

अच्छी स्थिति दलितों और दक्षिण भारत (खासकर तमिलनाडु) के ज्यादातर शूद्रों की है, उनका बड़ा हिस्सा इस धर्म, इसकी उपासना पद्धति और मंदिरों की असलियत से काफी पहले ही वाकिफ हो गया था!

उर्मिलेश

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