गोरखपुर। वैसे यह कहना गलत नहीं होगा कि गोरखपुर विश्वविद्यालय में शिक्षकों की नियुक्तियों में जमकर ठाकुर-ठाकुर, बाभन-बाभन का खेल खेला गया है. 02 जुलाई को गोरखपुर विश्वविद्यालय में 62 नये शिक्षकों की नियुक्ति हुई है. करीब सारे सीटों पर इनका ही हक है. आंकड़ा देखने के बाद भी शायद आप भी ऐसा ही कहेंगे.
टोटल 62 शिक्षक के सीट में 42 शिक्षक सिर्फ दो जातियों के हैं. 24 ठाकुर और 18 ब्राह्मण यानी 67.74 प्रतिशत शिक्षक या तो ठाकुर या बाभन. करीब दो तिहाई. इसमें भी इस बार बाभनों से ठाकुरों ने बाजी मार ली. 18 बाभनों की तुलना में 24 ठाकुर हुए अर्थात कुल पदों के 38.70 प्रतिशत पर ठाकुरों ने कब्जा कर लिया. बाभनों से करीब 10 प्रतिशत अधिक. कुल नियुक्तियों में बाभनों का प्रतिशत 29.03 है.
कोई पूछ सकता है कि ज्ञानी बाभनों की तुलना में ठाकुरों ने कैसै बाजी मार ली. अगर मुख्यमंत्री अजय सिंह विष्ट उर्फ योगी आदित्यनाथ और कुलपति विजय कृष्ण सिंह के रहते भी ऐसा न होता, तो आखिर कब होता?
बाभन ऋषि वशिष्ठ के वंशजों को ठाकुर ऋषि विश्वामित्र में वंशजों ने पराजित ही कर दिया. गोरखपुर में बाभनों और ठाकुरों का संघर्ष काफी पुराना है. हरिशंकर तिवारी और विरेन्द्र प्रताप शाही के जमाने में तो कितने लोग इस वर्चस्व की लड़ाई में मारे गये. फिलहाल गोरखपुर में अजय सिंह विष्ट के वर्चस्व के बाद गोरखपुर और आस-पास के क्षेत्रों में बाभनों के दिन ठाकुरों की तुलना में बुरे चल रहे हैं. फिर भी बाभन शंबूक के बंशजों के खिलाफ ठाकुरों के साथ एकजुट हैं.
शंबूक के वंशजों को कितने पद मिले इसका जायजा लेने से पहले थोड़ा लाला लोगों का जायजा ले लिया जाय. 02 लाला ( श्रीवास्तव) लोग भी नियुक्त हुए हैं. लाला लोग शंबूक के वंशज हैं या वशिष्ठ-विश्वामित्र के तय नहीं हो पाया है. अंदर-अंदर बाभन-ठाकुर इन्हें शंबूक का वंशज मानते हैं, जबकि ये लोग अपने को वशिष्ठ-विश्वामित्र से जोड़ते हैं. कौन इस पचड़े में पड़े इसे छोड़ते हैं. इन्हें बाभनों-ठाकुरों की गोल का मान लेते हैं. अब जरा शंबूक के वंशजों के की चर्चा. करीब 20 प्रतिशत पदों पर ओबीसी और दलित समाज के लोग भी नियुक्त हुए हैं.
उर्दू विभाग में 2 मुसलमानों को निुयक्त करना पड़ा है. पता चला है कि कोई हिंदू इस योग्य नहीं था. दुखद है, योगी के गढ़ में संघी कुलपति के रहते म्लेच्छ की नियुक्ति?
खैर नियुक्तियों का एक दौर और पूरा हुआ. 15 प्रतिशत से भी कम आबादी बाले ठाकुरों-बाभनों ने करीब 70 प्रतिशत पदों पर कब्जा कर लिया. ठाकुरों ने बाभनों को पराजित कर दिया. दोनों ने मिलकर शंबूक के करीब 70 प्रतिशत वंशजों को 20 प्रतिशत पद देकर राम राज्य की उदारता का परिचय दिया.
-सिध्दार्थ रामू
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