”नेल्सन मंडेला की तरह सारी उम्र अश्वेतों के लिए लड़ने वालीं 88 वर्षीय नोबल पुरस्कार विजेता महान लेखिका टोनी मॉरीसन का निधन हो गया है.अमेरिकी लेखक टोनी मॉरिसन का 88 साल की उम्र में 5 अगस्त 2019 को निधन हो गया. मॉरिसन ऐसी इकलौती अमेरिकी अफ्रीकी महिला हैं जिनको साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला. मॉरिसन ने अपने छह दशक लम्बे करियर में 11 उपन्यास, पाँच बाल-उपन्यास और दो नाटक लिखे. उनका पहला नॉवेल The Bluest Eye 1970 में प्रकाशित हुआ था, जिसने साहित्य की दुनिया में तहलका मचा दिया. उस समय वह 40 साल की थीं. इस उपन्यास में मॉरिसन ने एक अफ्रीकी-अमेरिकी महिला की कहानी कही थी.
मॉरिसन का जन्म 18 फरवरी 1931 को अमेरिका को ओहायो में हुआ था. उनके परिवार को भारी नस्लभेद का सामना करना पड़ा था. इन सब घटनाओं का उनकी जिंदगी में सीधा प्रभाव पड़ा और उनके उपन्यास अश्वेतों पर गोरों की जुल्म की दास्तान थीं. वह ताउम्र अमेरिका में काले लोगों के साथ होने वाले भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाती रहीं.
60 साल की उम्र तक उनके छह उपन्यास प्रकाशित हो चुके थे. इस बीच वर्ष 1993 में उन्हें साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला. साहित्य का नोबेल पाने वाली पर पहली अश्वेत महिला बन गईं. अपने उपन्यास “बिलव्ड” (Beloved) के लिए उन्हें वर्ष 1988 में पुलित्जर पुरस्कार से सम्मानित किया गया. तो साल 2012 में उन्हें अमेरिका के प्रेंसिडेंशियल मेडल ऑफ फ्रीडम से सम्मानित किया गया. Beloved के अलावा Song of Solomon और The Bluest Eye उनके सर्वाधिक चर्चित उपन्यास हैं. मॉरिसन पेशे से प्रोफेसर थीं.
उनका कहना था कि ‘मौन मुझे लिखने के लिए प्रेरित करता है.’ स्वीडिश एकेडमी ने उनके “विजनरी फोर्स” और खासकर उसकी भाषा की बड़ी प्रशंसा की थी. वह ताउम्र अश्वेतों की मजबूत आवाज बनकर जिंदा रही. जब संपादक बनीं तो ब्लैक राइटर को खूब बढ़ाया. जब भी बोलने का मौका मिलता अमेरिकी ब्लैक के साथ होने वाले भेदभाव के बारे में खुलकर बोलतीं. चाहे भारतीय दलित हों या फिर अमेरिकी अफ्रीकी ब्लैक, दोनों से उन्हें समान सहानुभूति थी. वह अपनी तमाम रचनाओं में नस्लभेद के दर्द की दास्तां सुनाती रहीं.
मॉरीसन पुरस्कार की राशि व प्रोफेसर के रूप में मिलने वाली पूरी तनख्वाह विश्व के अलग अलग हिस्सों के अश्वेत बच्चों की शिक्षा पर खर्च करती थीं.इसी वर्ष उनके बेटे की कैंसर से मौत हो गई थीं.मॉरीसन अपना उपन्यास होम लिख रहीं थीं. लेकिन बेटे की मौत के गम के चलते वो उसे कभी पूरा नहीं कर सकीं.”
- सुनील कुमार ‘सुमन’
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