नई दिल्ली। हाल के दिनों में कई बातें ऐसी हुई हैं जो देश के इतिहास में पहली बार हुई हैं। कुछ अच्छी, कुछ बुरी और कुछ बहुत बुरी। कल एक मुलाकात हुई है जो खास है और ऐतिहासिक भी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की सुप्रीम कोर्ट में मुलाकात। मुलाकात खास इस लिहाज से कि सुप्रीम कोर्ट में मुख्यन्यायाधीश रंजन गोगोई से प्रधानमंत्री मोदी की मुलाकात थी और ऐतिहासिक इस लिहाज से देश के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि प्रधानमंत्री सुप्रीम कोर्ट में आये थे।
प्रधानमंत्री मोदी रविवार रात साढ़े नौ बजे सुप्रीम कोर्ट में आये थे, मौका था विधि दिवस की पूर्व संध्या पर कोर्ट द्वारा आयोजित भोज जो BIMSTEC देशों यानि बांग्लादेश, भूटान, नेपाल, श्रीलंका, म्यांमार और थाईलैंड के जजों के लिए आयोजित किया गया था।
आपको ये खबर कहीं प्रमुखता से नहीं दिखी होगी और न ही हर समय कैमरे के सामने रहने वाले प्रधानमंत्री जी की फ़ोटो दिखी होगी। मुझे एक वेब पोर्टल के सौजन्य से प्रधानमंत्री मोदी के साथ मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई की एक तस्वीर मिली है। आप लोगों से साझा कर रहा हूँ।
इसकी वजह ये थी कि न तो हमें यानि सुप्रीम कोर्ट कवर करने वाले रिपोर्टर्स को बताया गया और न ही प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) कवर करने वाले पत्रकारों को। इसकी वजह क्या रही होगी हम और आप केवल अनुमान लगा सकते हैं!
मैं कोई अपना अनुमान आपसे साझा करूँ उससे पहले एक ‘क्रांतिकारी’ एडवोकेट की बात साझा करता हूँ। एक दिन पहले उस एडवोकेट का फोन आया कि ‘क्या आपको पता है कि प्रधानमंत्री सुप्रीम कोर्ट आ रहे हैं! क्यों आ रहे हैं! उनको क्यों आना चाहिए! रफेल डील मामले में प्रधानमंत्री के खिलाफ दायर पेटिशन पर जब मुख्य न्यायाधीश की कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा है, प्रधानमंत्री को सुप्रीम कोर्ट क्यों आना चाहिए!’
एक साथ इतने सवाल सुनकर मैं इरिटेट हो गया, झुंझलाते हुए कहा ‘ तो क्या हो गया! BIMSTEC के जजों के लिए भोज में प्रधानमंत्री के शामिल होने में समस्या क्या है! प्रधानमंत्री, सुप्रीम कोर्ट क्यों नहीं आ सकते!’ एडवोकेट का जवाब था ‘आजतक तो विधि दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री कभी नहीं आये! आखिर आज क्यों! जिस सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप पर मुख्यन्यायाधीश की बेंच सुनवाई कर रही है, भ्रष्टाचार का आरोप खुद प्रधानमंत्री के खिलाफ हो… ऐसे में प्रधानमंत्री को मुख्यन्यायाधीश से कोर्ट में आकर मुलाकात क्यों करनी चाहिए?’
अब इस तस्वीर को देखकर सोच रहा हूँ कि एडवोकेट की बात बेवजह नहीं थी! न्यायपालिका में कार्यपालिका के दखल का आरोप पुराना है। और हाल के दिनों में तो जजों ने भी खुले में आकर प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिये इस बात को साबित भी किया है। हाल में ये भी हुआ कि एक मुख्य न्यायाधीश को लेकर विपक्ष ने महाभियोग लाने की कोशिश भी किया था। दीपक मिश्रा को बीजेपी और सरकार का सीजेआई साबित करने की हरसंभव कोशिश की गई और कुछ हद तक ऐसी इमेज बन भी गई!
अब पीएम और सीजेआई के मुलाकात की इस तस्वीर को देखिए। कल को रफेल मामले में मोदी सरकार को क्लीन चिट मिल जाती है तो लोग क्या कहेंगे! क्या इस फोटो को आधार बनाकर माई लार्ड और सरकार के रिश्ते पर सवाल नहीं उठाएंगे! न्यायपालिका की गरिमा के लिए मुलाकात की ये तस्वीर अच्छी नहीं कही जाएगी माई लार्ड!
साभार- भड़ास4मिडिया
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