मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 8 फरवरी 2023 को सागर में आयोजित आंबेडकर महाकुंभ में छह बड़ी घोषणाएं की।ये सभी घोषणाएं दलितों को लुभाने वाली घोषणाएं थी। इसमें, राज्य के औद्योगिक समूहों में एससी-एसटी के लिए 20% भूखंड आरक्षित करना। MSME नीति के तहत अनुसूचित जाति के कारोबारी संगठनों के लिए ‘क्लस्टर’ चिन्हित करना। अनुसूचित जाति के सदस्यों को आवंटित पेट्रोल पंप स्थापित करने के लिए जमीन देना। एससी- एसटी समुदायों के सदस्यों को सरकार के स्टोर खरीद नियम में छूट देना जैसी घोषणाएं शामिल थी।
लेकिन इन घोषणाओं के साथ शिवराज सरकार ने जो सबसे बड़ी घोषणा की थी, वह थी मध्यप्रदेश के सागर में 100 करोड़ रुपये की लागत से सतगुरु रविदासजी का मंदिर बनाना। यानी अपने राजनीतिक स्वार्थ और दलित समाज के वोटरों को लुभाने के लिए बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर के बाद अब राजनीतिक दलों के निशाने पर सतगुरु रविदास हैं। पहले भी कुछ क्षेत्रों में रहे हैं, लेकिन अब ये सुनियोजित योजना के तहत किया जा रहा है। और मध्यप्रदेश में तो लगता है कि भाजपा को विधानसभा चुनाव में अपने जीत के लिए सतगुरु रविदास और उनके अनुयायियों का ही सहारा है।
यही वजह है कि चुनाव के मुहाने पर खड़े मध्य प्रदेश में चुनावी गहमा-गहमी के बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 12 अगस्त को सागर में सतगुरु रविदास मंदिर की नींव रखेंगे।
इस मंदिर के लिए नरयावली के बड़तूमा गांव में 11 एकड़ सरकारी जमीन अलॉट की गई है। भारतीय जनता पार्टी इस मंदिर के जरिये क्या हासिल करना चाहती है और उसके निशाने पर क्या है, यह बताने के लिए इस मंदिर के निर्माण को लेकर भाजपा की रणनीति को देख कर समझा जा सकता है।
भाजपा और संघ ने जैसे अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए चंदा एकत्र किया था। उसी तर्ज पर संत रविदास मंदिर के लिए समरसता यात्राएं निकाल रही है। यह यात्रा प्रदेश के 5 अलग-अलग अंचलों यानी नीमच, धार, श्योपुर, बालाघाट और सिंगरौली से शुरू की गई है। ये यात्राएं 53 हजार गांवों में पहुंचेंगी। साथ ही यह यात्रा 187 विधानसभा क्षेत्रों से होकर भी गुजरेंगी।
इस दौरान वहां की मिट्टी और नदियों का जल एकत्र करके सागर लाया जाएगा। यानी साफ है कि दलितों और खासकर सतगुरु रविदास में आस्था रखने वाले समाज को भाजपा अपनी इस मुहिम के जरिये साथ जोड़ना चाहती है। और इसके लिए उनकी आस्था को निशाना बनाया जा रहा है।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 25 जुलाई को सिंगरौली से इस यात्रा को हरी झंडी दिखाई थी, जिसका का समापन 12 अगस्त को सागर में होगा, जहां प्रधानमंत्री मोदी मंदिर की नींव रखने के बाद एक सभा को संबोधित करेंगे।
ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर मध्य प्रदेश में सतगुरु रविदास मंदिर ही क्यों और वो भी सागर में ही क्यों? इसका जवाब भी जान लिजिए।
- मध्य प्रदेश में दलित समाज की आबादी 1 करोड़ 13 लाख 42 हजार है।
- यह प्रदेश की कुल जनसंख्या में लगभग 16 प्रतिशत हैं।
- प्रदेश में विधानसभा की 84 सीटों पर दलित वोटर हार-जीत तय करते हैं।
- आरक्षित सीटों की बात करें तो मध्यप्रदेश विधानसभा में 35 सीट आरक्षित है।
अब सवाल यह उठता है कि सतगुरु रविदास का मंदिर सागर जिले में ही क्यों। इसकी भी अपनी एक वजह है। रिपोर्ट के मुताबिक सागर जिले में दलितों का वोट 21 प्रतिशत है। सागर में 5 सीटें ऐसी हैं, जहां पर अहिरवार समाज का वोट निर्णायक भूमिका में है। इसमें नरयावली में दलित समाज का वोट 59 हजार है। बंडा में 54 हजार, सुरखी में 45 हजार और सागर में 44 हजार दलितों के वोट हैं। जबकि इससे सटे दमोह, टीकमगढ़, छतरपुर और रायसेन जिले में भी दलित समाज का वोट निर्णायक है।
दूसरी ओर मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड में यह दलित समाज का वोट 22 प्रतिशत है। आंकड़ों के मुताबिक मध्यप्रदेश में 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 41.6 और बसपा को 5.1% वोट मिले थे। बीएसपी के प्रभाव का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि 2003, 2008 और 2013 के विधानसभा चुनावों में 69 सीटें ऐसी थीं, जहां पर बसपा का वोट शेयर औसतन 10% से अधिक रहा है।
मध्य प्रदेश में बसपा की यही ताकत कांग्रेस और भाजपा दोनों को हमेशा से परेशाना करती रही है। इस बार सतगुरु रविदास मंदिर के जरिये भाजपा बसपा के इसी वोट बैंक में सेंध लगाने की तैयारी में है।
लेकिन दलितों के सामने अब भी सवाल वही है कि उन्हें मूर्तियां चाहिए या रोजगार, स्वास्थ्य और शिक्षा। क्योंकि आजादी के बाद से जैसे-जैसे बाबासाहेब आंबेडकर के समाज की ताकत और हैसियत बढ़ने लगी, तमाम राज्यों में तमाम राजनैतिक दलों ने उनकी बड़ी-बड़ी प्रतिमाएं बना कर खुद को अंबडकरवादियों का हितैषी बताते हुए अंबेडकरवादी समाज का वोट हासिल करने का काम किया। लेकिन वहीं दूसरी ओर दलितों तक उनके जायज अधिकारों को भी पूरा नहीं पहुंचने दिया गया।
मंदिर का स्वागत है, लेकिन भाजपा सरकार और उसके नेता अगर सच में दलितों की हितैषी हैं तो उसे इस समाज को मिलने वाले हकों को कागज से बाहर जमीन पर उतारना होगा।
मेरा सवाल यह भी है कि ये तमाम नेता ये क्यों नहीं बताते कि सरकार में रहते हुए उन्होंने दलितों के लिए क्या किया। मध्य प्रदेश सरकार और मुख्यमत्री शिवराज सिंह चौहान को यह बताना चाहिए कि अपने कार्यकाल में उनकी सरकार ने दलितों के लिए क्या किया। 12 अगस्त को जब पीएम मोदी सागर में सतगुरु रविदास मंदिर की नींव रखेंगे, तब उन्हें बताना चाहिए कि उनकी केंद्र सरकार ने दलितों और आदिवासियों के हित में क्या-क्या काम किया। याद रहे, जब भी कोई नेता, मंत्री, सीएम या पीएम मंच से नए वादे करे, जनता को उनसे बीते सालों का हिसाब जरूर मांगना चाहिए।

अशोक दास ‘दलित दस्तक’ के फाउंडर हैं। वह पिछले 15 सालों से पत्रकारिता में हैं। लोकमत, अमर उजाला, भड़ास4मीडिया और देशोन्नति (नागपुर) जैसे प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों से जुड़े रहे हैं। पांच साल (2010-2015) तक राजनीतिक संवाददाता रहने के दौरान उन्होंने विभिन्न मंत्रालयों और भारतीय संसद को कवर किया।
अशोक दास ने बहुजन बुद्धिजीवियों के सहयोग से साल 2012 में ‘दलित दस्तक’ की शुरूआत की। ‘दलित दस्तक’ मासिक पत्रिका, वेबसाइट और यु-ट्यूब चैनल है। इसके अलावा अशोक दास दास पब्लिकेशन के संस्थापक एवं प्रकाशक भी हैं। अमेरिका स्थित विश्वविख्यात हार्वर्ड युनिवर्सिटी में आयोजित हार्वर्ड इंडिया कांफ्रेंस में Caste and Media (15 फरवरी, 2020) विषय पर वक्ता के रूप में शामिल हो चुके हैं। भारत की प्रतिष्ठित आउटलुक मैगजीन ने अशोक दास को अंबेडकर जयंती पर प्रकाशित 50 Dalit, Remaking India की सूची में शामिल किया था। अशोक दास 50 बहुजन नायक, करिश्माई कांशीराम, बहुजन कैलेंडर पुस्तकों के लेखक हैं।
देश के सर्वोच्च मीडिया संस्थान ‘भारतीय जनसंचार संस्थान,, (IIMC) जेएनयू कैंपस दिल्ली’ से पत्रकारिता (2005-06 सत्र) में डिप्लोमा। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में एम.ए हैं।
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Ashok Das is the founder of ‘Dalit Dastak’. He is in journalism for last 15 years. He has been associated with reputed media organizations like Lokmat, Amar Ujala, Bhadas4media and Deshonnati As a political correspondent for five years (2010-2015). He covered various ministries and the Indian Parliament.
Ashok Das started ‘Dalit Dastak’ with a group of bahujan intellectual in the year 2012. ‘Dalit Dastak’ is a monthly magazine, website and YouTube channel. Apart from this, Ashok Das is also the founder and publisher of ‘Das Publication’. He has attended the Harvard India Conference held at the world-renowned Harvard University in America as a speaker on the topic of ‘Caste and Media’ (February 15, 2020). India’s prestigious Outlook magazine included Ashok Das in the list of ‘50 Dalit, Remaking India’ published on Ambedkar Jayanti. Ashok Das is the author of 50 Bahujan Nayak, Karishmai Kanshi Ram, Ek mulakat diggajon ke sath and Bahujan Calendar Books.
