डॉ. आंबेडकर भारतमाता की अवधारणा या भारत सभी भारतीयों का है, इस भावात्मक कथन में बिल्कुल विश्वास नहीं रखते थे. उनका मानना था कि भारत के भीतर एक बहिष्कृत भारत है. इसी के चलते उन्होंने भारतमाता या भारतीय मातृभूमि के बरक्स बहिष्कृत भारत की अवधारणा रखी. उन्होंने अपने जीवन के उद्देश्य की घोषणा इन शब्दों में किया, “युगों से दबे हुए दरिद्र बहिष्कृतों को बंधनमुक्त करना है.”
वे यहां तक कहते थे कि बहिष्कृत भारत के लोगों की कोई मातृभूमि नहीं है.
जब द्वितीय गोलमेज सम्मेलन के बाद गांधी और अम्बेडकर की पहली मुलाकात हुई, तो गांधी ने अम्बेडकर से कहा कि डॉ. अम्बेडकर भारत आपकी मातृभूमि है, तो इसके जवाब में अम्बेडकर ने कहा कि “आप कहते हैं कि यह मेरी मातृभूमि है, लेकिन मैं फिर भी कहता हूं कि मेरी कोई मातृभूमि नहीं है. जिस देश में कुत्ते-बिल्ली के समान भी हमें जीने नहीं दिया जाता, उन्हें जो सुविधाएं मिल रही हैं, वह भी हमें नसीब नहीं.
अस्पृश्यों को मानवता की चेतना और स्वाभिमान दोनों से वंचित कर दिया गया है. इस देश ने हमारे साथ इतना अक्षम्य अपराध किया है कि हम उसके विरोध में कितना बड़ा द्रोह का कार्य करें, फिर भी उसके पाप की जिम्मेदारी हमारे सिर पर नहीं आएगी. अतः कोई मुझे अर्राष्ट्रीय कह दे तो भी मैं बुरा नहीं मानूंगा, क्योंकि मेरे अराष्ट्रवाद के लिए ही मुझे अराष्ट्रीय कहते हैं. मेरे पाप के वे ही उत्तरदायी हैं. मेरा कोई दोष नहीं है. लेकिन मेरे पास सद्विवेक बुद्धि है.
मैं राष्ट्र या राष्ट्र धर्म का उपासक नहीं हूं, किंतु अपनी विवेक बुद्धि का उपासक हूं. जैसा आप कहते हैं कि मेरे द्वारा राष्ट्र की सेवा की जा रही है. उसका श्रेय मेरी राष्ट्र भक्ति को नहीं, बल्कि मेरी विवेक बुद्धि से पैदा प्रेम को है. जिस राष्ट्र में मेरी अछूत जनता की मानवता धूल के समान पैरों तले रौंदी जा रही है, उस मानवता को प्राप्त करने के लिए, इस राष्ट्र को यदि मैंने कोई हानि भी पहुंचाई है तो पाप नहीं पुण्य कहलायेगा….इस राष्ट्र को हानि पुहंचाए बिना अपनी अछूत जनता का कैसे कल्याण किया जा सकता है, इसी चिंता में मैं हूं.”
आज भी भारतीय राष्ट्र और राज्य किसी भी तरह दलितों का राष्ट्र या राज्य नहीं बना है. मैं अरूनधती राय के इस कथन से अक्षरश : सहमत हूं कि भारतीय राज्य कार्पोरेट उच्च जातियों का हिंदू राज्य है. इस देश के संसाधनों और असली सत्ता के मालिक उच्च जातीय हिंदू मर्द हैं. दलित, पिछड़े, आदिवासी, औरतें, अल्पसंख्य समुदायों पर उनका पूर्ण वर्चस्व और नियंत्रण है. अभी भी ये वंचित समुदायों का यह देश नहीं, इसके मालिक कार्पोरेट उच्च जातीय हिंदू मर्द हैं.
कोई यह पूछ सकता है कि इस देश का प्रधानमंत्री पिछड़े वर्ग (शूद्र) का और राष्ट्रपति दलित (अतिशूद्र) समुदाय का है, फिर भी इस देश के मालिक कैसे उच्च जातीय मर्द हैं. इसका सीधा और प्रत्यक्ष उत्तर यह है कि इस देश के इस समय दो ही शक्तियां चला रही हैं, उच्च जातीय कारपोरेट और उच्च जातीय संघ.
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बहुत अच्छा कार्य कर रहे हैं। आगे भी जारी रखें। आपके अद्वितीय कार्य के लिए शुभकामनाएं
शुक्रिया।