दलित एक्टिविस्ट शिवकुमार को बचा लीजिए

दिशा रवि को जमानत मिली हम सबने स्वागत किया, लेकिन दलित एक्टिविस्ट शिवकुमार के बारे में कहीं कोई चर्चा नहीं हो रही है। मुझे यह कहते हुए बिल्कुल भी संकोच नहीं है कि इस देश में दलित की जान सबसे सस्ती है और इससे किसी को कोई मतलब नहीं है। सारे सो कॉल्ड लिबरल-प्रोग्रेसिव पत्रकार हों या फिर एक्टिविस्ट अमूमन सभी झूठे और मक्कार हैं। उन्हें दलित-आदिवासी से बिल्कुल भी मतलब नहीं है।
नवदीप कौर का मामला अमेरिकी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस की भांजी नहीं उठाती तो शायद ही कोई उनको भी जान पाता! जैसी चुप्पी शिवकुमार के मामले में है ठीक वैसी ही चु्प्पी नवदीप के मामले में भी दिखती और इसका कारण साफ है कि दोनों उस समाज से आते हैं जो वंचित और शोषित हैं, जिन्हें समाज वॉयसलेस कहता है और अगर वो कुछ बोलना चाहते हैं तो उन्हें इसी तरह की सजा दी जाती है।
मेडिकल रिपोर्ट से साफ़ है कि दलित एक्टिविस्ट शिवकुमार को भयानक यातनाएं दी गई हैं, लेकिन आप सभी सो कॉल्ड लिबरल-प्रोग्रेसिव लोग मुबारक़ के काबिल हैं, क्योंकि बड़ी चालाकी से इस मामले पर फिर से आप लोगों ने चुप्पी साध ली है। शायद इन्हें एक और रोहित वेमुला का इंतजार है जिसपर वे घड़ियाली आंसूं बहा सके।
 दलित एक्टिविस्ट शिवकुमार बेहद ही गरीब परिवार से आते हैं। उनके पिता चौकीदार हैं जिनका वेतन सात हजार रुपया प्रति महीना है। शिवकुमार की एक आंख कक्षा 10 से ही खराब है। मां 23 साल से मानसिक तौर पर बीमार हैं। शिवकुमार के पास ना जमीन है और ना ही कोई सामाजिक संपत्ति।
वरिष्ठ पत्रकार Anil Chamadia के फेसबुक वॉल से

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