
नवदीप कौर का मामला अमेरिकी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस की भांजी नहीं उठाती तो शायद ही कोई उनको भी जान पाता! जैसी चुप्पी शिवकुमार के मामले में है ठीक वैसी ही चु्प्पी नवदीप के मामले में भी दिखती और इसका कारण साफ है कि दोनों उस समाज से आते हैं जो वंचित और शोषित हैं, जिन्हें समाज वॉयसलेस कहता है और अगर वो कुछ बोलना चाहते हैं तो उन्हें इसी तरह की सजा दी जाती है।
मेडिकल रिपोर्ट से साफ़ है कि दलित एक्टिविस्ट शिवकुमार को भयानक यातनाएं दी गई हैं, लेकिन आप सभी सो कॉल्ड लिबरल-प्रोग्रेसिव लोग मुबारक़ के काबिल हैं, क्योंकि बड़ी चालाकी से इस मामले पर फिर से आप लोगों ने चुप्पी साध ली है। शायद इन्हें एक और रोहित वेमुला का इंतजार है जिसपर वे घड़ियाली आंसूं बहा सके।
दलित एक्टिविस्ट शिवकुमार बेहद ही गरीब परिवार से आते हैं। उनके पिता चौकीदार हैं जिनका वेतन सात हजार रुपया प्रति महीना है। शिवकुमार की एक आंख कक्षा 10 से ही खराब है। मां 23 साल से मानसिक तौर पर बीमार हैं। शिवकुमार के पास ना जमीन है और ना ही कोई सामाजिक संपत्ति।
वरिष्ठ पत्रकार Anil Chamadia के फेसबुक वॉल से

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