जाति के नाम पर इंसान को जानवर से भी बदतर हालत में धकेल देना, यही है सनातनी हिन्दू धर्म की वह असली जड़, जिसे आप चाहे कितना भी चंदन से रगड़ लें, यह सड़ांध फैलाती रहेगी। इटावा के नागला नंदी गांव में जो हुआ, वह सिर्फ एक कथावाचक मणि सिंह यादव के सिर के बालों तक सीमित नहीं है। यह हिन्दू समाज की हड्डियों में गहरे तक घुसे उस सड़ांध का सार्वजनिक प्रदर्शन है, जो इसे हजारों साल से सड़ा रहा है।
ब्राह्मण समाज ने कथा सुनाने के अधिकार पर भी जन्म से पट्टा लिखवा रखा है। भगवान की कहानी सुनाने वाला कोई ‘गैर-ब्राह्मण’ हो तो यह इनकी घुट्टी में जहर जैसा है। इसलिए मणि सिंह यादव से जात पूछी गई। जवाब सुनते ही उन्होंने उसका सिर मुंडवा दिया, अपमानित किया और उसे पैरों में गिरने को मजबूर कर दिया।
याद कीजिए, यही हिन्दू समाज था जिसने 2017 में अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद लखनऊ स्थित मुख्यमंत्री आवास को गंगाजल से धोया था। गंगा मैया भी तब जाति के झंडे में बांध दी गई। संदेश साफ था कि एक यादव ने सत्ता को अपवित्र कर दिया, अब ब्राह्मणवादी व्यवस्था को उसे शुद्ध करना होगा।
कथा का मंच हो या मुख्यमंत्री आवास, जातिवादी हिन्दू व्यवस्था हर जगह ओबीसी को नीचा दिखाकर ही खुद को ऊँचा महसूस करती है। ब्राह्मणवाद का यह अहंकार कभी नहीं गया। बड़े-बड़े संत-महंत ‘सनातन’ को शुद्ध और उदार बताते थकते नहीं, लेकिन असलियत यह है कि इस व्यवस्था में सिर झुकाने का हक भी जाति से तय होता है। इसे समझने के लिए इटावा के इस यादव कथावाचक के साथ हुई बर्बरता और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को अपमानित करने के लिए मुख्यमंत्री आवास पर हुई घटना, एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।
अब बात करते हैं उस यादव समाज कि जो खुद को हिंदू धर्म का सबसे बड़ा ‘गौरक्षक’ समझता है। पूरे यूपी-बिहार में यादव लोग खुद को हिन्दू धर्म का तुर्रम खां मानकर कभी शंख बजाते हैं तो कभी धर्म रक्षक की कमर में तलवार खोंस लेते हैं। इसके अगुवा नेता भी सनातनी संतों के चरणों में बैठने को अपना सौभाग्य समझते हैं। लेकिन ज़रा देखिए, उसी हिन्दू धर्म के नाम पर ब्राह्मण तुम्हारे समाज के पढ़े-लिखे कथावाचक को भरी सभा में नाक रगड़वा देता है। तुम्हारे मुख्यमंत्री के घर को गंगाजल से पवित्र करवाता है। और तुम चुपचाप अपने खापों में दूध-घी खा कर जाति पर गर्व करते हो!
सवाल उठता है कि ओबीसी समाज खुद को कब तक हिन्दू धर्म की तलहटी में छुपाकर ब्राह्मण के ताज को चमकाता रहेगा? चाहे यादव हो, कुर्मी, कुशवाहा या पटेल, सबकी हालत एक जैसी है। कोई मंदिर में पुजारी नहीं बन सकता। कोई शंकराचार्य नहीं बन सकता। कोई कथा नहीं सुना सकता। और तुम फिर भी इनके चरणों में लोट-पोट हो?
अगर इस घटना के बाद भी ओबीसी समाज न जागा, तो ये वही इतिहास दोहराएगा जो दलित समाज ने सदियों पहले भुगता। सिर्फ दलितों को नहीं, हर ओबीसी को समझना होगा कि जाति व्यवस्था ब्राह्मणों के लिए मंदिर है और तुम्हारे लिए एक ऐसा दरवाजा, जिसे तुम बाहर से तो देख सकते हो, लेकिन उसके भीतर जाने का अधिकार तुमको नहीं है।
मणि सिंह यादव के सिर के कटे बाल और अखिलेश यादव का धुला आवास, ये तुम्हारे सिर पर लगे मुकुट नहीं, बल्कि तुम्हारे गले की बेड़ियाँ हैं। ओबीसी समाज अगर अब भी नहीं जागा तो अगला सिर, अगला घर तुम्हारा होगा, और तब तुम्हारी अगली पीढ़ी भी इस अपमान को ढोएगी।

अशोक दास (अशोक कुमार) दलित-आदिवासी समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले देश के चर्चित पत्रकार हैं। वह ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ के संस्थापक और संपादक हैं। उनकी पत्रकारिता को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई जैसे देशों में सराहा जा चुका है। वह इन देशों की यात्रा भी कर चुके हैं। अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं ने, जिनमें DW (जर्मनी), The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspaper (जापान), द वीक मैगजीन (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं। अशोक, दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में फरवरी, 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता के दुनिया के सबसे बड़े संगठन Global Investigation Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग मे आयोजिक कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है।