लोकसभा चुनाव में मैनपुरी से मुलायम, कन्नौज से अखिलेश लड़ेंगे चुनाव

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा कि सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव लोकसभा चुनाव मैनपुरी से और वह खुद कन्नौज से लड़ेंगे. इस दौरान अखिलेश ने पाकिस्तान में भारतीय वायु सेना के हमले की सराहना की और कहा कि शहीद जवानों का बदला लेना और पाक को उसी की भाषा में जवाब देना जरूरी है. सपा अध्यक्ष मंगलवार को अपने सैफई स्थित आवास पर पत्रकारों से वार्ता कर रहे थे.

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव सोमवार रात सैफई पहुंचे और कुछ देर पार्टी कार्यकर्ताओं से बातचीत की. मंगलवार सुबह वह विनायकपुर बरनाहल मैनपुरी के शहीद सैनिक रामवकील के घर जाकर उन्हें श्रद्धाजंलि दी और परिजनों को ढांढस बंधाया. इसके पहले सैफई में पत्रकारों से वार्ता करते हुए उन्होंने कहा कि भारतीय वायुसेना ने जो किया वह सराहनीय है. हम सेना को बधाई देते हैं. आतंकवाद पर कठोर से कठोर कार्रवाई होनी चाहिए. इस दौरान उन्होंने मुलायम सिंह यादव के सपा के टिकट पर मैनपुरी और स्वयं के कन्नौज से चुनाव लड़ने की घोषणा की.

अखिलेश ने कहा कि मैनपुरी सांसद तेज प्रताप यादव काफी मेहनती हैं. इसलिए उन्हें कहीं न कहीं ऐडजस्ट किया जाएगा. उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के एक सफाई कर्मी के पैर धोने पर तंज कसते हुए कहा कि अब चुनाव आ गया है ये सब तो होगा ही. इसलिए जनता को इन सबसे सावधान रहने की जरूरत है.

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रेलवे में 1.30 लाख भर्तियां, जानिये ये खास बातें

भारतीय रेलवे ने 1.30 लाख पदों पर भर्ती के लिए शॉर्ट नोटिस जारी कर दिया है. अब विस्तृत नोटिफिकेशन का इंतजार है. विभिन्न रेलवे भर्ती बोर्ड की आधिकारिक वेबसाइट्स पर इसे देखा जा सकता है. नई 1 लाख 30 हजार पदों के लिए आवेदन पक्रिया 28 फरवरी से शुरू हो जाएगी. 28 फरवरी से पहले इन भर्तियों का विस्तृत नोटिफिकेशन आएगा. आयु की गणना 01 जुलाई, 2019 से की जाएगी. योग्यता व आयु की विस्तृत जानकारी पूरा नोटिफिकेशन जारी होने के बाद ही सामने आ पाएगी। यहां पढ़ें इस 1.30 लाख भर्ती से जुड़ी ये खास बातें-

योग्यता पदों से संबंधित पूरी जानकारी के लिए आरआरबी की आधिकारिक वेबसाइट पर पूरा और विस्तृत नोटिफिकेशन जल्द जारी होगा. आरआरबी ने इच्छुक अभ्यर्थियों से कहा है कि वे आधिकारिक नोटिफिकेशन के लिए आरआरबी की वेबसाइट देखते रहें।. विस्तृत नोटिफिकेशन को देखकर ही मांगी गई क्वालिफिकेशन का पता चल पाएगा.

इन पदों पर होगी भर्तियां गैर-तकनीकी लोकप्रिय श्रेणियों (एनटीपीसी), पैरा-मेडिकल स्टाफ, मंत्रिस्तरीय और आइसोलेटेड कैटेगरी के लिए 30,000 रिक्तियां हैं. इसके अलावा लेवल -1 (ग्रुप डी) पदों के लिए 1 लाख उम्मीदवारों की भर्ती की जाएगी.

RRB NTPC के तहत इन पदों पर नियुक्तियां नॉन टेक्निकल पॉपुलर कैटेगरी के तहत अनेक पदों पर कैंडिडेट का चयन किया जाता है. इसमें जूनियर क्लर्क कम टाइपिस्ट, अकाउंट क्लर्क कम टाइपिस्ट, ट्रेन क्लर्क, ट्रैफिक असिस्टेंट, गुड्स गार्ड, स्टेशन मास्टर, कमॉर्शियल अप्रेंटिस इत्यादि पदों पर आरआरबी बहाली करेगा.

पैरा मेडिकल स्टाफ के तहत होंगी नियुक्तियां इसके तहत स्टाफ नर्स, हेल्थ और मलेरिया इंस्पेक्टर, फार्मासिस्ट, ईसीजी टेक्निशियन, लैब असिस्टेंट इत्यादि पदों पर बहाली की जाएगी.

मिनिस्टेरियल और आइसोलेटेड कैटेगरी के पद इसके तहत स्टेनोग्राफर, चीफ लॉ असिस्टेंट, जूनियर ट्रांसलेटर (हिन्दी) के पदों पर चयन किया जाता है.

लेवल- 1 पद (ग्रुप डी) पिछले साल जहां ग्रुप डी की 63000 भर्तियां निकली थीं, वहीं इस बार 1 लाख भर्तियां निकलेंगी. इसके तहत ट्रैक मेंटेनर, विभिन्न विभागों में हेल्पर और असिस्टेंट, असिस्टेंट प्वाइंटमेन और अन्य लेवल वन पोस्ट पर करीब एक लाख अभ्यर्थियों की बहाली होगी.

लेवल- 1 पद (ग्रुप डी) की भर्ती के लिए इस बार आरआरबी नहीं आरआरसी का नोटिफिकेशन ( RRC – 01/2019 ) जारी होगा. रेलवे में ग्रुप डी पदों पर भर्ती के लिए रेल मंत्रालय ने आरआरसी (रेलवे रिक्रूटमेंट सेल) का गठन किया था.

आवेदन शुरू होने की तारीख एनटीपीसी के लिए – 28 फरवरी से पैरा मेडिकल स्टाफ के लिए- 04 मार्च 2019 से मिनिस्टेरियल व आइसोलेटेड कैटेगरी के लिए- 08 मार्च से लेवल-1 पदों के लिए- 12 मार्च, 2019 से

आवेदन फीस सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों को आवेदन शुल्क के तौर पर 500 रुपये और आरक्षित वर्ग के उम्मीदवारों को 250 रुपये देना होगा. पहले चरण की सीबीटी परीक्षा में शामिल होने पर सामान्य वर्ग के अभ्यर्थियों को बैंक चार्ज काट कर 400 रुपये लौटाये जाएंगे. वहीं, आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों और महिला कैंडिडेट्स को 250 रुपये में से बैंक चार्ज काट कर शेष राशि लौटा दी जाएगी.

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हापुड़ की लड़कियों पर बनी फिल्म को मिला ऑस्कर, गांव में जश्न का माहौल

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हापुड़। हापुड़ की महिलाओं पर बनी फिल्म ‘पीरियड एंड ऑफ सेंटेंस’ को अमेरिका में ‘सर्वश्रेष्ठ वृत्तचित्र’ श्रेणी में ऑस्कर पुरस्कार मिलने से शहर में खुशी का माहौल है.

इस फिल्म में हापुड़ के गांव काठीखेड़ा की दो महिलाओं ने अभिनय किया है. काठीखेड़ा निवासी सुमन ‘एक्शन इंडिया’ के नाम से एनजीओ चलाती हैं जो कि सैनिटरी पैड बनाती है. इसमें महिलाएं ही काम करती हैं. इन महिलाओं को लेकर भारतीय फिल्म निर्माता गुनीत मोंगा ने फिल्म बनायी. फिल्म में उन महिलाओं की कहानी जो मासिक धर्म से जुड़ी रूढ़िवादिता के खिलाफ आवाज बुलंद करती है.

इस फिल्म के ऑस्कर पुरस्कार के लिए चयनित होने के बाद सुमन और स्नेहा को पुरस्कार के लिए अमेरिका बुलाया गया. उन्हें सोमवार को पुरस्कार से नवाजा गया. सुमन के भाई सुमित वर्मा ने बताया कि सुमन और स्नेहा 2 मार्च को अमेरिका से भारत लौटेंगी. उनके लौटने पर उनका भव्य स्वागत किया जाएगा.

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मायावती ने वायुसेना को दी बधाई, बोलीं- सेना को पहले ही फ्रीहैंड देते तो नहीं होता पुलवामा जैसा हमला

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मायावती (फाइल फोटो)

लखनऊ। बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती ने भारतीय वायुसेना के बहादुर जांबाज़ों की साहसिक कार्रवाई की मंगलवार को जमकर तारीफ की. उन्होंने सैनिकों को सलाम करते हुए कहा कि यदि हमारी सेना को बीजेपी सरकार पहले ही खुले हाथ दे देती तो बेहतर होता. मायावती ने मंगलवार को ट्वीट कर कहा,’जैश आतंकियों के खिलाफ पाक अधिकृत कश्मीर में घुसकर भारतीय वायुसेना के बहादुर जांबाज़ों की साहसिक कार्रवाई को सलाम व सम्मान.

बीएसपी प्रमुख ने आगे लिखा, ‘काश हमारी सेना को बीजेपी सरकार पहले ही खुला हाथ दे देती तो बेहतर होता.’ उन्होंने एक अन्य ट्वीट में कहा, ‘प्रधानमंत्री ने पुलवामा के जवानों की शहादत के बदले में कार्रवाई करने के लिए जो खुला हाथ सेना को दिया है अगर यह फैसला मोदी सरकार द्वारा पहले ले लिया गया होता तो पठानकोट, उरी और पुलवामा जैसी अति-दुःखद व अति-चिन्तित करने वाली घटनाए नहीं होती और न ही इतने जवान शहीद होते.

बता दें कि वायुसेना की साहसिक कार्रवाई के बाद देश के सभी राजनीतिक दलों ने एक सुर में वायुसैनिकों की तारीफ की है. इस बाबत एसपी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी ट्वीट कर सेना को बधाई दी थी. उन्होंने ट्विटर पर लिखा था, ‘अपनी वायुसेना और सशस्त्र बलों को सलाम करता हूं. बहुत बधाई.’ गौरतलब है कि भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमानों ने मंगलवार को तड़के नियंत्रण रेखा के दूसरी ओर पाकिस्तानी हिस्से में कई आतंकी शिविरों पर बमबारी की. सरकार से जुड़े सूत्रों ने यह जानकारी देते हुए बताया कि यह कार्रवाई जम्मू कश्मीर के पुलवामा में 14 फरवरी को आतंकी गुट जैश ए मोहम्मद द्वारा किए गए आत्मघाती हमले के ठीक 12 दिन बाद की गई है. पुलवामा हमले में सीआरपीएफ के 40 जवान शहीद हो गए थे.

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कश्मीर के बडगाम में वायुसेना का मिग विमान क्रैश

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जम्मू कश्मीर के बडगाम से सात किलोमीटर दूर गारेंद गांव में एक मिग लड़ाकू विमान क्रैश हो गया. विमान खेत में जाकर गिरा और इसमें आग लग गई. हादसे की वजह अब तक साफ़ नहीं हो पाई है. इस दुर्घटना में विमान के दोनो पायलट शहीद हो गए. इस विमान ने श्रीनगर एयरबेस से उड़ान भरी थी. सूत्रों का कहना है कि कश्मीर में विमान पेट्रोलिंग पर था तभी प्लेन क्रैश हो गया.

प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि विमान नीचे की ओर आने लगा और थोड़ी देर बाद जोरदार आवाज आई और विमान क्रैश हो गया. इसमें आग लग गई. मौके पर पुलिस और बचाव दल पहुंच गया है.

मालूम हो कि यह घटना ऐसे वक्त हुई है जब भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव का माहौल है. बता दें कि बीते 20 दिनों में भारत के 5 विमान क्रैश हुए हैं. हाल ही में बेंगलुरु में एयरो शो के दौरान दो सूर्य किरण विमान आपस में टकराकर क्रैश हो गए थे.

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भारत ने पाक के बालाकोट में जैश के ठिकाने तबाह किए

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भारतीय वायुसेना ने पुलवामा आतंकी हमले का करारा जवाब देते हुए पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के ठिकानों को निशाना बनाया है. वायु सेना के मिराज-2000 विमानों की ओर से की गई इस कार्रवाई में आतंकी कैंपों को भारी नुकसान हुआ है, मंगलवार सुबह करीब 3 बजे भारत की ओर से इस कार्रवाई को अंजाम दिया गया.

खैबर पख्तूनख्वा के बालाकोट में भारत की इस एयर स्ट्राइक के बाद दशहत का माहौल है. बीबीसी से बातचीत में स्थानीय निवासी मोहम्मद आदिल ने बताया कि 3 बजे का वक्त था, बहुत तेज आवाज आई, ऐसा लगा जैसे जलजला आ गया. बाद में पता चला कि वहां धमाका हुआ है, इसमें कई घर तबाह हो गए हैं. पांच से दस मिनट तक जहाजों की आवाज आई फिर वह बंद हो गई.

बालाकोट स्थित लाहौर होटल के मालिक ने इंडिया टुडे को फोन पर बताया कि यहां सुबह तड़के बमबारी हुई थी. उनके मुताबिक 4-5 बम गिराए गए और तीन बजे का वक्त था. होटल मालिक ने बताया कि वो सो रहे थे और हमले वाली जगह उनके होटल से करीब एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित है.

भारत सरकार की ओर से कहा गया है कि इस कार्रवाई में किसी नागरिक या सेना को निशाना नहीं बनाया गया है बल्कि एयर फोर्स का टारगेट जैश के ठिकाने थे. विदेश मंत्रालय की ओर से विदेश सचिव विजय गोखले ने बताया कि 14 फरवरी को पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद ने पुलवामा में आतंकी हमला किया था, जिसमें हमारे 40 जवान शहीद हुए थे.

गोखले ने बताया कि इससे पहले पठानकोट में भी जैश की तरफ से आतंकी हमला किया गया था. पाकिस्तान हमेशा इन संगठनों की अपने देश में मौजूदगी से इनकार करता आया है. पाकिस्तान को कई बार सबूत भी दिए गए लेकिन उसने आतंकी संगठन के खिलाफ आजतक कोई कार्रवाई की.

विदेश मंत्रालय के मुताबिक जैश भारत के कई हिस्सों में आतंकी वारदातों को अंजाम देने की फिराक में था और इसके लिए फिदायीन आतंकियों को ट्रेनिंग दी जा रही थी. इस खतरे से निपटने के लिए भारत के लिए एक स्ट्राइक करना बेहद जरूरी हो गया था. हमने खुफिया जानकारी के आधार पर आज सुबह बालाकोट में एयर स्ट्राइक की है जिसमें जैश के कमांडर समेत कई आतंकियों को ढेर किया गया है.

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 क्या संविधान ने हमे सम्मान से जीने के लिए पैर धोने की व्यस्था दी है?

क्या भारत के संविधान में दलितों के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए पैर धौने की व्यवस्था दी गई है? आप संविधान पढ़ेंगे तो पता चलेगा और उसका उत्तर होगा “बिल्कुल भी नही” ! तो फिर दलितों/सामाजिक रूप से बहिष्कृत निचली और पिछड़ी जातियों के सम्मान से जीने के लिए क्या व्यवथा दी गई है! अब प्रश्न यह उठता है कि इन जातियों को ही स्पेशल ट्रीटमेंट की आवश्यकता क्यों महसूस की गई और बाकायदा बाबा साहब भीमराव आंबेडकर ने इसके लिए विशेष संवैधानिक व्यवस्था की! इसके लिए थोड़ा इतिहास में जाने की आवश्यकता है!

यह सर्वविदित है कि भारत के इतिहास के प्रारंभिक काल मे सम्राट अशोक के कालखंड में समता मूलक सामाजिक व्यवस्था जहां सब बराबर थे कोई जाति या धर्म नही था न शोषण था, के बाद वैदिक काल में कुछेक शोषकों द्वारा कूटरचित धर्मशास्त्रों की रचना की गई जिसमें भगवान का डर दिखाकर लोगो को आसानी से डराया जा सकता था, इस विचारधारा को मानने वाले लोगों ने महसूस किया कि यदि बिना मेहनत के सीधे में लोगो को डरा धमकाकर यदि अपना पेट आसानी से भर सकता है एवं हमारी पीढ़ियों का उज्जवल भविष्य बनता है तो क्यों न इसी व्यवस्था को पूर्णकालील व्यवस्था बना दिया जाए और इसी व्यवस्था के तहत चतुवर्ण व्यवस्था अपने अस्तित्व में आई जिसमें लोगों को व्यवस्था के अंदर जीने के लिए उनका कार्य विभाजन किया गया, सभी जनमानस जो समान थे बाद में कार्य विभाजन के बाद लोग वर्गों में बंट गए मुख्य रूप से कार्यो का विभाजन चार वर्गों के रूप में किया गया जिसमें ब्राम्हण,क्षत्रिय,वैश्य और शूद्र थे! इस सामाजिक व्यवस्था के अनुसार ब्राम्हण का कार्य केवल पूजा पाठ करना,एवं धर्म ग्रंथो की शिक्षा देना ,भिक्षा माँगना आदि से अपना गुजारा चलाना था,जबकि क्षत्रिय का कार्य राज्य की सीमा की सुरक्षा,वैश्य का कार्य व्यापार करना जबकि शुद्र को इन तीनो वर्गों की सेवा,साफ सफाई और घृणात्मक कार्य करना जो उपरोक्त तीनों वर्ग में से कोई नही कर सकता था!

उपरोक्त अनुसार व्यस्था चलते रही और इन चारों वर्गों में सबसे आसानी से पेट भरकर खाने वाला वर्ग कालांतर में शूद्रों का शोषक वर्ग बन गया क्योंकि इसने ऐसी मन गणन्त्र व्यवस्था बना रखी थी जिसमे शूद्रों को शिक्षा,धन,से दूर रखा और उन्हें केवल अपना गुलाम बनाये रखा उनको डराने का सबसे प्रबल हथियार जो उन्होंने विकसित किया था वह था “धर्म आधारित (शोषक) जाति व्यवस्था” जिसमें सभी जातियों को धर्म और ईश्वर के प्रति डर दिखाकर आसानी से अपना गुलाम बनाया जा सकता था, चूँकि निचली जातियां गुलामी एवं भय में जी रही थी अतः ईश्वर और धर्म का उपयोग कर सबसे ज्यादा इनको ही डराया जा सकता था और डराकर शोषण किया जा सकता था, ये शुद्र वर्ग न केवल शारीरिक गुलाम था बल्कि कालांतर में मानसिक गुलाम भी बन गया और आज भी बना हुआ है. इस धर्म आधारित शोषक व्यवस्था में शुद्र लगभग 5 सदियों से शिक्षा,धन,संसाधनों,न्याय,सामाजिक समानता,सम्मान,से दूर रखा गया और उसके साथ जानवरो से बदतर व्यवहार किया गया! इस शुद्र वर्ग ने शोषण को अपना कर्म और शोषक को अपना ईश्वर मान लिया था और आज भी माने हुए है.

लगभग पांच हज़ार सालो तक इनके साथ ऐसी ही गैर बराबरी होते आई और शोषण होते रहा लेकिन इनके मानवाधिकारों की रक्षा के लिए उपरोक्त तीनों वर्गों में से कोई भी वर्ग या कोई भी व्यक्ति इनके साथ खड़ा नही हुआ! पांच हज़ार वर्षो के शोषण के बाद शुद्र वर्ग में एक ऐसे कर्मयोगी का जन्म हुआ जिसने पहली बार सामाजिक तिरस्कार झेलते हुए महसूस किया कि सभी इंसान समान है ,सभी इंसानों का खून का रंग भी लाल है सभी एक जैसे है लेकिन सबके साथ एक जैसा सामाजिक व्यवहार नही होता है, कोई बिना मेहनत के भी मलाईदार बना हुआ है और कोई जी तोड़ परिश्रम के बाद भी शोषण का शिकार है उन्होंने इसके कारणों का अध्यन किया और पाया कि इसके पीछे का कारण चतुवर्ण आधारित धार्मिक जातिगत व्यवस्था जिम्मेदार है और इसका अंत उसी व्यवस्था को चुनोती देकर दी जा सकती है और उसके लिए पांच हज़ार सालो से लोगो के दिमाग मे सेट व्यस्था को उखाड़ फेकना इतना आसान नही है इसके लिए मेरिट चाहिए, मेरिट के लिए उन्होंने अत्यंत परिश्रम किया गहन अध्ययन किया न केवल देश मे बल्कि विदेशों के नामी गिरामी यूनिवर्सिटी की परीक्षा पास करके अपने आपको सामर्थवान बनाया इसके उपरांत उन्होंने भारत का भाग्य लिखा जिसे हम ” भारत का संविधान ” कहते है. इस महान विचारक, लेखक, शिक्षाविद, सामाजिकचिंतक, अर्थशास्त्री, इंजीनियर, समाजशास्त्री, राजनीतिज्ञ ,कानूनविद, और बाद में भारतरत्न कहलाए वे थे डॉ भीमराव आंबेडकर जिन्हें प्यार से “बाबा साहेब” भी कहा जाता है.

 उन्होंने पाँच हज़ार साल तक हुए शोषण के शिकार शोषितों,वंचितों,दबे कुचलो,महिलाओं के लिए लिखित समानता आधारित भारत के संविधान में लिपिबद्ध करते हुए लोकतांत्रिक व्यवस्था दी! जिसमे भारत के प्रत्येक नागरिकों के लिए मूल अधिकार दिए (भारत का संविधान भाग 3 अनुच्छेद 14 से 30) जबकि शूद्रों (अनुसूचित जाति और जनजाति) के लिए भारत के संविधान में पाँचवी अनुसूची (भाग 10 अनुच्छेद 244) अनुसूचित और जनजाति क्षेत्रो में प्रशासन की व्यस्था की गई! भारत के संविधान में प्रदत्त मूल अधिकार भारत के सभी नागरिको पर लागू होते है एवं इन अधिकारों से भारत के प्रत्येक नागरिक को समता का अधिकार(अनुच्छेद 14-18),स्वत्रंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19-22),शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23-24),धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार(25-28),संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार (अनुच्छेद 29-30) में सभी नागरिकों को विधि के संगत न्याय की व्यवस्था दी गई ! धर्म,मूलवंश,जाति,लिंग या जन्मस्थान के आधार पर लोगों से विभेद नही किया जा सकता था! नोकरियों के विषय मे समानता के अवसर का प्रावधान था,छुआछूत को निषिद्ध किया गया था, बोलने की आज़ादी / अभिव्यक्ति की आज़ादी दी गयी!मानव के साथ कोई दुर्व्यापार न करे,कोई बलात श्रम न करा पाए,कारखानों में बालको के नियोजन का प्रतिषेद किया गया,लोगो को अपने हिसाब से धर्म की स्वत्रन्त्रता दी गई वह धर्म माने अथवा न माने,या कोई भी धर्म माने!अल्पसंख्यक के हितों का संरक्षण ,शिक्षा के अधिकार दिए गए! उपरोक्त सभी अधिकार “26 जनवरी 1950”  को “भारत के संविधान” के अस्तित्व में आने के साथ ही सभी नागरिकों को मुफ्त में मिल गए! बस यही कारण था कि भारत के संविधान के लागू होते ही उन सभी नागरिकों को समानता के अधिकार मिले जो सम्राट अशोक के काल से लेकर संविधान लागू होने के पहले तक रोककर रखे गए थे, इसकी जद में सभी नागरिक थे तो स्वाभाविक है इसमें अनुसूचित जाति और जनजाति भी आई जिनका शोषण पांच हज़ार सालो से होता आया था!

 यही वजह रही कि वेदों में लिखी कूटरचित और शोषणकारी नीतियों का खुलकर विरोध हुआ और संविधान में दिए अधिकारो से दबे कुचले समाज,अनुसूचित जाति जनजाति  और महिलाओं को सामाजिक समानता मिली, नोकरी के अवसरों में समानता मिली ,वह शिक्षा एक अधिकार मिला जो उनसे छीना जा चूका था शिक्षा के अधिकार पाते ही वंचित वर्ग शिक्षित और प्रबुद्ध हुआ फलस्वरूप उसमें भी नेतृत्व क्षमता विकसित हुई अब महिलाएं भी शासन और प्रशासन चला सकती थी ! वाक- स्वत्रंतता मिली जिस कारण वंचित शोषण के खिलाफ बोल सकते थे ! केवल जाति और धर्म देखकर दिए जाने वाले न्याय की जगह सभी को समान न्याय मिलने लगा, छुआछूत निषिद्ध और असंवैधानिक करार दिया गया! स्पष्ट है कि संविधान में वंचितों,दबे कुचलों, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के लिए के लिए जो संवैधानिक प्रावधान किए गए है उनमें उपरोक्त प्रावधान शामिल है न कि इन वर्गों के पैर धोना! इस प्रकार हम पाते है कि संवैधानिक प्रावधान वे कारण थे जिसने “धर्म आधारित जाति आधारित शोषक वर्ण व्यस्था” और उनके प्रशासकों की चूले हिला कर रख दी थी! वो इस बात से भयभीत हो गए कि हमारी शोषण आधारित ,धर्म आधारित , चतुर्वर्ण व्यस्था को यह भारत का संविधान न केवल चुनौती दे रहा अपितु हमारी षणयंत्र पूर्वक रचित व्यवस्था को नष्ट करने में तुला हुआ है! अपने अस्तित्व को बचाये रखने के लिए इस शोषण व्यवस्था को बनाए रखने के लिए इसके प्रशासको ने वही धर्म आधारित व्यवस्था “मनुस्मृति”  की पुरजोर वकालत करते आ रहे है ! इसी का परिणाम है कि इन्होंने इसी वर्ष दिल्ली में भारत का संविधान जलाया और सबसे बड़ा देशद्रोह किया परंतु इनके ही काका-मामा शासन प्रशासन और न्यायपालिका में है इसलिए ये देशद्रोहीयो पर कोई कार्यवाही नही हुई और आज भी बेख़ौफ़ होकर घूम रहे है.

चूंकि “भारत के संविधान” को एकदम से नष्ट करने पर भूचाल आ जायेगा इसलिए ये शोषक धीरे धीरे अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए किए गए विशेष प्रावधान जैसे कि आरक्षण खत्म करना,गैरसंवैधानिक तरीके से आर्थिक आधार पर आरक्षण देना,पदोन्नति में आरक्षण खत्म करना, अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम को नष्ट करने की कोशिश करना, 200 पॉइंट पोस्टर सिस्टम को खत्म कर 13 पॉइंट रोस्टर सिस्टम लागू करना! ये संविधान में प्रदत्त उन शक्तियों को ही नष्ट कर देना चाहते है जिसके कारण वंचित को समान स्तर पर जीने की सामाजिक व्यवस्था बनाई गई है. जब संविधान के वे मुख्य प्रयोजन धीरे धीरे नष्ट कर दिए जाएंगे जिनसे दलितों, वंचितों महिलाओं को विशेष ट्रीटमेंट देकर समता मूलक समाज की कल्पना कि गई है तो वह संविधान किस काम का बचेगा? यही षणयंत्र धीरे धीरे संविधान की आत्मा को चोट पहुचा रहा है और अंदर से खोखला कर रहा है ,ये देश फिर से उसी पांच हज़ार साल पहले जाने की ओर अग्रसर है जहाँ गैर बराबरी, शोषण,अन्याय,अत्याचार,छुआछूत,गुलामी,कायम की जा सके, यदि समय रहते देश का मूलनिवासी ST/SC/OBC/minority का 80% जनसंख्या वाला तबका जागरूक नही हुआ तो देश मे शीघ्र ही “लोकतांत्रिक व्यस्था” खत्म हो जावेगी एवं तानाशाही “मनुस्मृति व्यवथा” लागू कर दी जावेगी जहाँ पूर्व की भांति, शोषण,अत्याचार,गुलामी,छुआछूत,ग़ैरबराबरी,गरीबी,सामाजिक त्रिस्कार का बोलबाला होगा जहाँ बुद्धिजीवी,शिक्षविद, वैज्ञानिक,इंजीनियर,वकील,डॉ को फांसी चढ़ा दी जाएगी केवल धार्मिक उन्मादियों को जीने की स्वतंत्रता होगी विज्ञान और तकनीकी अपनी अंतिम सांसे गिनेगी.

उपरोक्त अनुसार स्पष्ट है इस देश मे वंचितों, दलितों,गरीबो से हमदर्दी दिखाने के लिए इन वर्गों की आरती उतारने की जरूरत है न ही पैर धौने के जरूरत है क्योंकि ये असंवैधानिक प्रक्रिया है अगर आपको इन वंचितों का वास्तविक सम्मान करना है तो आप उन्हें अवसरों की समानता दीजिए! नोकरी दीजिए! उनसे जाति ,धर्म,लिंग,सम्प्रदाय के आधार पर शिक्षा,धन, जल,जंगल जमीन संसाधन मत छीनिए! आपको उनके न पैर धौने की जरूरत है न पैर पकड़ने की क्योंकि भारत के संविधान में इन वर्गों के सम्मान के लिए ऑलरेडी संवैधानिक उपचार दिए गए है जरूरत है केवल लागू करने की, इसलिए पैर मत धोइये बल्कि  जरूरत है केवल उनको संवैधानिक प्रावधान को हूबहू लागू कराने की! यही उनका वास्तविक सम्मान होगा फालतू के ढोंग छोड़िए ये देश कर्मकांडो और अंधविश्वास से नही चलता ये देश दुनिया के सबसे ताकतवर संविधान से चलता है, आज जरूरत है इस संविधान को बचाने की आओ मूलनिवासियों/ बहुजनों हम देश को बचाने का प्रण ले.

लेखक: राजेश बकोड़े सोशल थिंकर,B.Sc.,M.Sc.,MSW

वर्तमान की परत खोलती कविताएं…

दुख-सुख, आचार-विचार, चेतन-अचेतन अवस्था ही नहीं, मुक्तावस्था भी कविता को जन्म देती है. अनुभूतियों का वह स्तर जहाँ पहुँचकर मानव स्वयं को भूल जाता है और अपनी निजता को लोक-सत्ता में लीन किए रहता है या फिर सत्ता और सामाजिक व्यवस्था के विरुद्ध खड़ा हो जाता है, वहाँ विचारवान मानव जैसे कवि हो जाता है. संकुचन समाप्त प्राय: हो जाता है. फिर जैसा मन, वैसी कविता. व्यक्ति यदि मानसिक रूप से धार्मिक है तो धार्मिक कविता, राजनीतिक है तो राजनीतिक कविता, किसी का प्रेमी है तो प्रेमान्ध कविता, उत्पीड़ित है तो प्रताड़ना के खिलाफ चीखती-चिल्लाती अर्थात देश, काल और परिस्थिति कविता को सदैव प्रभावित करती है.

सड़क-चौराहों तक हिन्दू-मुसलमान के लबादे में लिपटी सियासी गर्मी कब बाज आती है अपनी बेशर्मी से जमकर कवायद करती है सियासी मुनाफा कमाने की.

इस प्रकार की कविता करना किसी जीवट व्यक्तित्व का ही काम हो सकता है, वरना तो आज की सियासत के चलते किसी की भी पूंछ सीधी नहीं हो पा रही हैं. इसलिए यह कहना कि जिस कविता में समाज के सरोकार प्रकट होते हैं, वह कविता आमजन की कविता बन जाती है…. ईश कुमार गंगानिया जी के कविताओं में अक्सर ये गुण देखने को मिलते हैं. जाहिर सी बात है कि लोकतंत्र के वर्तमान रूप – स्वरूप को यदि ऐसे का ऐसे ही झेलते रहे तो देश के शहरों का तो पता नहीं क्या होगा, किंतु ग्रामीण तबकों से उठने वाला धुआँ कभी थमने वाला नहीं लग रहा. मुझे ईश कुमार गंगानिया जी के कविताओं में अक्सर वह ज़मीन दिखाई देती है जहाँ कोई व्यक्ति सच कह सकता है. पुनर्निमाण की प्रक्रिया अपने चर्म पर है. ऐसे में मुझे उनकी ‘बदलाव की बात करें तो’ शीर्षांकित कविता की अधोलिखित पंकितियां उद्धृत करने का मन हो रहा है…. यथा

‘बदलाव की बात करें तो राम-रहीम मंदिर-मस्जिद और शिवाले वैसे ही नजर आते हैं जैसे हुआ करते थे पहले भी बदलाव की बात करें अगर तो बस ये सियासी चौसर के पालतू पियादे हो गए हैं.‘

कविता लिखना औरों के साथ कुछ बांटने, अकेलेपन के एहसास को ख़त्म करने, अत्याचार और अन्याय के खिलाफत की एक अहम प्रक्रिया है, किंतु समाज और राजनीति के सरोकारों पर बात करना भी कविता का काम है, इसे नकारा नहीं जा सकता, विगत इसका प्रमाण है. कविता यदि समीचीन है और समय के साथ सफर तय करती है तो इसे काव्य प्रवृति की सघन प्रवृत्ति कहा जा सकता है. देश, काल और परिस्थिति को भुला कर कविता करने भ्रम पालना जैसे अन्धे कुए में झांकर कोई ऐसा प्रतिबिम्ब देखना है जो वास्तव में है ही नहीं. ईश कुमार इस भ्रम को नही पालते…… ‘मेरी मर्जी’ शीर्षांकित की अधोलिखित पंक्तियां, इस ओर इशारा करती हैं…

‘मैं ही स्वतयंभु, मैं ही संप्रभु मैं ही रिंगमास्ट‍र लोकतंत्र के अखाड़े का मेरी ही लगेगी मुहर देशभक्ति और देशद्रोही के पिछवाड़े कौन रहेगा देश, और कौन जाएगा सीमा पार तय करना मेरा है अधिकार लोकतंत्र के तोते उड़ाऊं या उड़ाऊं कबूतर, मेरी मर्जी…’

ईश कुमार जी की कविताएं अपने समय की विसंगति, विडम्बना और तनाव से जुड़े सवालों को बखूभी इठाती हैं. यूँ तो हिन्दी साहित्य पर हिन्दी साहित्य पर विष्लेषण और चिन्ता किये जाने की स्थिति कमतर होती जा रही है किंतु ईश कुमार इस आपत्ति के दायरे से परे के कवि हैं. इतना ही नहीं, उनकी कविताएं सत्ता का प्रतिपक्ष प्रस्तुत करने में काफी हद तक सामर्थ्यवान हैं. ‘तानाशाही का आगाज’ नामक कविता समसामयिक राजनीति के चरित्र का खुलासा करने का उपक्रम करती है…यथा

‘लगता है देश में तानाशाही का आगाज लोकतंत्र का दरवाजा खटखटा रहा है मेरे चहेते गुलाब न जाने क्यूं गुलाब कहीं खो गए हैं और कांटे ही कांटे बचे रह गए हैं मेरे निजी संबंधों की तरह.‘

कहना अतिशयोक्ति नहीं कि आज का दौर कई मायनों में कठिन व पेचीदा दौर है. लोकतांत्रिक अवधारणा के विपरीत पूँजी और शक्ति के केन्द्रीकरण के कारण निरंकुश तानाशाही की ओर बढ़ती साम्राज्यवादी सत्ता ने दमन का रास्ता अपना लिया है, ऐसा लगता है. सत्ता के इस निरंकुश मार्ग से जनता भी अछूती नहीं रह गई है. कवि ईश कुमार अपनी अधोलिखित कविता ‘स्लोगन बनाने की कला’ में यही संदेश देते नजर आते हैं

‘मध्यवम वर्गीय इंसान ने आजकल जैसे आदर्शो और इंसानी मूल्यों का मोह ही त्याग दिया है और बनकर रह गया है वह भी खुराफातों का बाजार.‘

आज के खुरापाती दौर के चलते आखिर कोई रचनाकार करे भी तो क्या? इतिहास गवाह है कि ऐसे समय में एक रचनाकार अपनी रचनाओं के माध्यकम से केवल और केवल सार्थक हस्तमक्षेप करने के अलावा कुछ और नहीं कर पाता. आज के दौर में भी समकालीन कविता की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है, उसमें आज का समय परिलक्षित हो, यह जरूरी है. उनकी हर कविता इस भाव को परिलक्षित करती है. ईश कुमार जी ने कुछ ग़ज़लें कहने का भी प्रयास किया है किंतु उनकी ग़ज़लें उनकी कविताओं के सामने बौनी नजर आती हैं. हाँ! उनसे इतनी आस जरूर बनती है कि आने वाले समय में वो ग़ज़लों को भी उम्दा धरातल देने में सफल होंगे. सारांशत: उनकी कविताएं वर्तमान की परतें निकोलने में अग्रणीय हैं. ऐसे में पुस्तक की सफलता की कामना की जा सकती है. पुस्तक पठनीय और संग्रहणीय है.

समीक्षक – तेजपाल सिंह ‘तेज’ कौन जाएगा पाकिस्तान (कविताएं) कवि : ईश कुमार गंगानिया प्रकाशक : पराग बुक्स (9911379368) Read it also-दुबई (यु. ए. इ.) यात्रा : एक अनुभव

टीम इंडिया ये 4 गलतियां जिस से झेलनी पड़ी हार

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नई दिल्ली। विशाखापत्तनम में खेले गए आखिरी गेंद तक खिंचे कम स्कोर वाले पहले टी-20 मैच में ऑस्ट्रेलिया ने अपने पुछल्ले बल्लेबाजों के दम पर भारत पर तीन विकेट से रोमांचक जीत दर्ज कर ली. इतना ही नहीं कंगारू टीम ने दो मैचों की टी-20 सीरीज में 1-0 से बढ़त बना ली. अपने घर में यह भारत की आठ मैचों में पहली हार है. अब भारत इस सीरीज को बराबर ही कर सकता है लेकिन, जीत नहीं सकता. अगला टी-20 मैच 27 फरवरी को बेंगलुरु में खेला जाएगा.

ऑस्ट्रेलिया ने पहले गेंदबाजी करते हुए भारत को 7 विकेट पर 126 रन पर रोक दिया और फिर निर्धारित 20 ओवरों में 7 विकेट खोकर लक्ष्य हासिल कर लिया. ऑस्ट्रेलिया के लिए ग्लेन मैक्सवेल ने सर्वाधिक 56, डार्सी शॉर्ट ने 37 और अपना पदार्पण मैच खेल रहे पीटर हैंड्सकॉम्ब ने 13 रन बनाए. इस रोमांचक मैच में भारत ने कई गलतियां कीं, जिसके कारण ऑस्ट्रेलिया को फायदा मिला. आइए एक नजर डालते हैं टीम इंडिया की हार के कारणों पर:

1. उमेश यादव का आखिरी ओवर में 14 रन देना: इस मैच में एक पल ऐसा आया, जब भारत की जीत लगभग तय लग रही थी. लेकिन, उमेश यादव का आखिरी ओवर टीम इंडिया को भारी पड़ गया. ऑस्ट्रेलिया को आखिरी छह गेंदों पर 14 रन बनाने थे और गेंद अनुभवी गेंदबाज उमेश यादव के हाथों में थी. लेकिन, उमेश अपने अनुभव का फायदा नहीं उठा पाए और ऑस्ट्रेलिया ने आखिरी ओवर में 14 रन बटोरकर रोमांचक जीत अपने नाम कर ली. बुमराह ने 19वें ओवर में केवल दो रन दिए तथा पीटर हैंडसकॉम्ब और नाथन कुल्टर नाइल को आउट करके भारतीय खेमे में उम्मीद जगा दी. लेकिन, उमेश आखिरी ओवर में 14 रन लुटा गए. उमेश यादव आखिरी ओवर करने आए. उनके सामने ऑस्ट्रेलिया के पुछल्ले बल्लेबाज झाए रिचर्डसन (नाबाद 7 रन) और पैट कमिंस (नाबाद 7 रन) थे. इन दोनों ने उमेश पर एक एक चौका लगाया. कमिंस ने पांचवीं गेंद चार रन के लिए भेजी और अंतिम गेंद पर दो रन लेकर जीत अपने नाम कर ली.

2. मैक्सवेल और शॉर्ट की पार्टनरशिप: विशाखापत्तनम की पिच पर गेंदबाजों को मदद मिल रही थी और बल्लेबाजों के लिए रन बनाना कभी मुश्किल साबित हो रहा था. भारत को अच्छी शुरुआत भी मिली और 5 रनों के स्कोर पर ऑस्ट्रेलिया के दो विकेट गिर गए थे. लेकिन, टीम इंडिया इसका फायदा नहीं उठा पाई. ग्लेन मैक्सवेल और डार्शी शॉर्ट ने मिलकर तीसरे विकेट के लिए 84 रन जोड़ दिए और मैच को भारत की पकड़ से दूर ले गए. मैक्सवेल ने 40 गेंदों पर छठा टी-20 अर्धशतक पूरा किया. ऑस्ट्रेलिया के लिए ग्लेन मैक्सवेल ने सर्वाधिक 56 और शॉर्ट ने 37 रन बनाए.

3. धोनी चले कछुआ चाल: मध्यक्रम लड़खड़ाने और धोनी की धीमी बल्लेबाजी से टीम इंडिया अच्छा स्कोर नहीं बना पाई. धोनी ने 11वें ओवर के शुरू में क्रीज पर कदम रखा और आखिर तक टिके रहे. लेकिन, उनके बल्ले से केवल एक छक्का निकला. धोनी ने यह छक्का भी 20वें ओवर में लगाया. उन्होंने 29 रन बनाए, लेकिन इसके लिए 37 गेंदें खेलीं. धीमी बल्लेबाजी के लिए पहले भी आलोचकों के निशाने पर इस विकेटकीपर बल्लेबाज का स्ट्राइक रेट 78.37 रहा.

4. प्लेइंग इलेवन से छेड़छाड़ करना: वर्ल्ड कप में कुछ ही महीने बाकी रह गए हैं, लेकिन, टीम इंडिया अब तक अपनी बेस्ट इलेवन की तलाश कर रही है. कप्तान विराट कोहली ने इस मैच को शिखर धवन को आराम देकर ओपनिंग कॉम्बिनेशन के साथ छेड़छाड़ कर दी, जिसका खामियाजा भारत को भुगतना पड़ा. हालांकि धवन की जगह खेलने वाले केएल राहुल ने शानदार अर्धशतक लगाया. लेकिन, राहुल को मिडिल ऑर्डर में फिट कर धवन को शामिल किया जा सकता था. वहीं दिनेश कार्तिक को बाहर बैठाया जा सकता था.

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‘टोटल धमाल’, ओपनिंग डे पर हुई अपार कमाई

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नई दिल्ली। ‘टोटल धमाल’ कॉमेडी फिल्म रिलीज होने साथ ही बॉक्स ऑफिस पर जबरदस्त रिस्पॉन्स दे रही है. पहले दिन अजय देवगन, अनिल कपूर और माधुरी दीक्षित की कॉमेडी फिल्म ‘टोटल धमाल’ने शानदार कमाई कर डाली. दर्शक सिनेमाघरों से निकलने पर हंस-हंस बोल रहे हैं कि फिल्म तो बहुत मजेदार है. ट्रेड एनलिस्ट तरण आदर्श के ट्वीट के मुताबिक फिल्म ने पहले दिन 16.50 करोड़ रुपए का कारोबार किया है. यानी इस फिल्म को वीकेंड से अच्छा कलेक्शन करने को मिल सकता है, क्योंकि अभी भी वीकेंड के दो दिन शनिवार और रविवार बचे हुए हैं. देखना होगा कि क्या फिल्म वीकेंड पर 50 करोड़ का आंकड़ा पार कर पाएगी.

‘टोटल धमाल’ फिल्म के रिलीजिंग के बारे में बात करें तो इस साल पहले दिन सबसे अधिक कमाने वाली बड़ी फिल्म कही जा सकती है, क्योंकि रिलीज वाले दिन न तो हॉलीडे था और न ही कोई स्पेशल दिन. वहीं रणवीर सिंह की फिल्म ‘गली बॉय को वेलेन्टाइन्स डे का फायदा मिला था और 19.26 करोड़ रुपए कमाए थे. जबकि दूसरे दिन शनिवार को कमाई सीधे 13.10 करोड़ पर आ गई थी. हालांकि एक अनुमान के अनुसार देखा जाए तो अजय देवगन, अनिल कपूर और माधुरी दीक्षितकी फिल्म दूसरे दिन करीब 14-15 करोड़ रुपए कमा सकती है.

इंद्र कुमार के डायरेक्शन में ‘धमाल’ सीरीज की यह तीसरी फिल्म है. ‘टोटल धमाल’ में इस बार अजय देवगन, अनिल कपूर, माधुरी दीक्षित, रितेश देशमुख, अरशद वारसी, जावेद जाफरी , संजय मिश्रा और पीतोबाश नजर आंगे. फिल्म की टीम का दावा है कि इस बार धमाल का मजा तीन गुना ज्यादा होने वाला है. इस फिल्म में कोबरा, वनमानुष से लेकर बब्बर शेर तक दिखाई दे रहे हैं.

धमाल सीरीज की पहली फिल्म साल 2007 में रिलीज हुई थी. जिसमें संजय दत्त,अरशद वारसी, रितेश देशमुख, जावेद जाफरी और आशीष चौधरी मुख्य किरदार में थे. दर्शकों को यह फिल्म खूब पसंद आई थी. सीरीज की दूसरी फिल्म ‘डबल धमाल’ 4 साल बाद 2011 में रिलीज हुई थी. इस फिल्म को दर्शकों को उतना प्यार नहीं मिला था. जितना प्यार सीरीज की पहली फिल्म को मिला था. सीरीज की तीसरी फिल्म में कई नए किरदार जुड़े हैं. जिनमें अजय देवगन, अनिल कपूर और माधुरी दीक्षित शामिल हैं.

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आम चुनाव 2019: चुनावी समर में इसबार कई बड़े चेहरे नजर नहीं आएंगे

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बिहार में लोकसभा चुनाव-2019 के दंगल में पिछले लोकसभा चुनावों में सक्रिय रहे कई चेहरे नजर नहीं आएंगे. इनमें से कई ऐसे हैं, जिनके नाम पर भीड़ जुटती थी. जिन्हें देखने और सुनने दूर-दराज से लोग आते थे. इसबार इनमें से कुछ सक्रिय राजनीति से दूर हो चुके हैं, कुछ कानूनी प्रावधानों के तहत चुनाव प्रक्रिया से बाहर हैं. कई नेता दिवंगत हो चुके हैं. कई की भूमिकाएं बदल गई हैं.

बिहार के चुनाव में चर्चित चेहरों में पिछले चार दशक से सबसे बड़ा नाम लालू प्रसाद का रहा है. फिलहाल वह चारा घोटाला में सजायाफ्ता हैं और रांची के होटवार जेल में हैं. महागठबंधन को लालू के आकर्षण और देसी भाषण के बगैर चुनावी लड़ाई लड़नी होगी. पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र पहले ही चुनावी राजनीति से अलग हो चुके हैं. अब उनका न तो किसी दल से सीधा जुड़ाव है और न ही उनका स्वास्थ्य ही चुनावी सक्रियता की इजाजत देगा. कभी जहानाबाद की राजनीति की धुरी रहे जगदीश शर्मा भी चारा घोटाले में जेल की सजा काट रहे हैं.

भोला सिंह, असरारुल हक हो चुके हैं दिवंगत बेगूसराय के सांसद भोला प्रसाद सिंह और किशनगंज के सांसद मौलाना असरारुल हक का निधन हो चुका है. वर्ष 2009 तक लोकसभा चुनाव में सक्रिय रहे कैप्टन जयनारायण निषाद और जॉर्ज फर्नांडिस भी अब हमारे बीच नहीं हैं. राजद के दिग्गज नेता रघुनाव झा, अटल जी के सहयोगी लालमुनी चौबे भी दिवंगत हो चुके हैं.

रामविलास राज्यसभा जाएंगे लोजपा सुप्रीमो पासवान ने तय किया है कि वह लोकसभा चुनाव लड़ने की जगह राज्यसभा जाएंगे. हाजीपुर की जनता चुनाव में उन्हें मिस करेगी. हालांकि, वह लोजपा और एनडीए के स्टार प्रचारक के रूप में सक्रिय रहेंगे. चर्चाओं के मुताबिक मधुबनी के सांसद हुकुमदेव नारायण यादव भी चुनाव में नहीं उतरेंगे. प्रकाश झा और शेखर सुमन भी चुनाव नहीं लड़ेंगे. पिछली बार जमुई से कांग्रेस के टिकट पर लड़े अशोक चौधरी और जदयू से श्याम रजक की भूमिकाएं बदल चुकी हैं. महेश्वर हजारी और डॉ. अशोक कुमार का भी यही हाल है.

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SP-BSP गठबंधन: जानें, क्यों 2014 के फॉर्म्युले को सीट शेयरिंग में नहीं दी जगह, यह है वजह

नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव के लिए गठबंधन में लड़ रहे बीएसपी और एसपी ने यूपी में अपनी सीटों का बंटवारा कर लिया है. अखिलेश की समाजवादी पार्टी 37 सीटों पर लड़ेगी, जबकि मायावती की बीएसपी 38 सीटों पर उम्मीदवार उतारेगी. कुल 80 सीटों में से 75 अपने पास रखने के बाद दोनों दलों ने तीन सीटें आरएलएडी और दो कांग्रेस के लिए छोड़ दी हैं. हालांकि दोनों दलों ने सीटों के बंटवारे के लिए 2014 के आम चुनाव के फॉर्म्युले को नहीं माना है. जानें, दोनों दलों ने किस फॉर्म्युले से किया सीटों का बंटवारा…

2014 नहीं, 2009 के गणित से कर रहे काम एसपी और बीएसपी ने चुनावी समीकरण तैयार करने के लिए 2014 की बजाय 2009 के आम चुनावों को आधार माना है. दोनों दलों का कहना है कि 2014 में मोदी लहर थी, जिसके चलते उनके अपने वोट बड़ी संख्या में कट गए थे. लेकिन, 2009 के आम चुनाव में दोनों दलों से मजबूत गढ़ का संकेत मिलता है. तब 80 लोकसभा सीटों में से समाजवादी पार्टी ने 23.4 फीसदी वोट के साथ 23 सीटें जीती थीं, जबकि 27.5 पर्सेंट मतों के साथ बीएसपी के खाते में 20 सीटें गई थीं. उस वक्त बीजेपी को महज 10 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा था, जबकि आरएलडी के खाते में 5 सीटें गई थीं. इसके अलावा एक सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार जीता था.

आसान नहीं समझना सीट बंटवारे का फॉर्म्युला बीएसपी 12 ऐसी सीटों पर चुनाव लड़ेगी, जहां उसका वोट शेयर 2014 में एसपी के मुकाबले कम था. इसके अलावा वह दो ऐसी सीटों से भी चुनावी जंग में उतरेगी, जहां उसके वोट एसपी के लगभग बराबर थे.

कम वोट वाली 14 सीटें एसपी के खाते में आम चुनाव में एसपी समाजवादी पार्टी के खाते में भी ऐसी 14 सीटें गई हैं, जहां 2014 में उसका वोट प्रतिशत बीएसपी के मुकाबले कम था.

मिर्जापुर में बीएसपी से आधे वोट, सीट SP के खाते में पूर्वांचल की मिर्जापुर सीट पर बीएसपी को 20.6 फीसदी वोट मिले थे, एसपी को 10.6 पर्सेंट वोट ही मिले थे. लेकिन, यह सीट भी मायावती ने अखिलेश यादव को सौंप दी है.

2014 में लड़ते साथ तो कितनी बनती बात यदि बीते आम चुनाव में बीएसपी और एसपी एक साथ लड़ते तो करीब 15 सीटें ऐसी थीं, जहां उनका वोट प्रतिशत 50 से भी अधिक रहता. 31 सीटों पर दोनों दलों को 40 से 50 फीसदी तक वोट मिलते. 23 सीटों पर दोनों दलों का वोट प्रतिशत 30 से 40 पर्सेंट तक होता. 3 सीटों पर यह आंकड़ा 20 से 30 फीसदी तक और 3 ही सीटों पर 20 फीसदी से नीचे रहता.

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सुप्रीम कोर्ट के आदेश से 10 नहीं, करीब 20 लाख आदिवासी हो सकते हैं ज़मीन से बेदखल

भारत में छत्तीसगढ़ के धारबागुड़ा में एक राहत शिविर मैं बैठे आदिवासी. (फाइल फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली। बीते बुधवार को यह रिपोर्ट किया गया था कि सुप्रीम कोर्ट करीब10 लाख से अधिक आदिवासियों और वनवासियों को वन भूमि से बेदखल करने का आदेश दिया है.

शीर्ष अदालत के आदेश के अनुसार, जिन परिवारों के वनभूमि के दावों को खारिज कर दिया गया था, उन्हें राज्यों द्वारा इस मामले की अगली सुनवाई से पहले बेदखल किया जाना है.

हालांकि कोर्ट के आदेश की वजह से लगभग 20 लाख आदिवासी और वनवासी परिवार प्रभावित हो सकते हैं. यह आंकड़ा जनजातीय मामलों के मंत्रालय द्वारा एकत्र आंकड़ों के अनुसार है. मंत्रालय के मुताबिक 30 नवंबर, 2018 तक देश भर में 19.39 लाख दावों को खारिज कर दिया गया था.

कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के पहले कार्यकाल में पास होने वाले वन अधिकार अधिनियम के तहत सरकार को निर्धारित मानदंडों के अनुसार आदिवासियों और अन्य वनवासियों को पारंपरिक वनभूमि वापस सौंपना होता है. साल 2006 में पास होने वाले इस अधिनियम का वन अधिकारियों के साथ वन्यजीव समूहों और नेचुरलिस्टों ने विरोध किया था.

वनवासियों के समूह का एक राष्ट्रीय मंच ‘कैंपेन फॉर सर्वाइवल एंड डिग्निटी’ के सचिव शंकर गोपालकृष्णन के अनुसार, यह आदेश उन राज्यों के लिए लागू होता है जिसे सुप्रीम कोर्ट द्वारा व्यक्तिगत रूप से निर्देशित किया गया है. हालांकि आने वाले समय में यह संख्या और बढ़ेगी.

उन्होंने द वायर को बताया बताया, ‘जैसा ही अन्य राज्य अदालत में अपना हलफनामा दायर करेंगे, उनके लिए भी संभावित तौर पर ऐसा ही आदेश पारित होगा और इस तरह प्रभावित होने वालों की संख्या बढ़ जाएगी.’

गोपालकृष्णन ने कहा कि आदेश को वन विभाग द्वारा आदिवासियों और वनवासियों को जमीन से बेदखल करने के लिए दुरुपयोग भी किया जा सकता है.

अदालत का यह आदेश एक वन्यजीव समूह द्वारा दायर की गई याचिका के संबंध में आया है जिसमें उसने वन अधिकार अधिनियम की वैधता पर सवाल उठा था.

याचिकाकर्ता ने यह भी मांग की थी कि वे सभी जिनके पारंपरिक वनभूमि पर दावे कानून के तहत खारिज हो जाते हैं, उन्हें राज्य सरकारों द्वारा निष्कासित कर दिया जाना चाहिए.

याचिकाकर्ता बेंगलुरु स्थित वाइल्डलाइफ फर्स्ट जैसे कुछ गैर-सरकारी संगठनों का मानना है कि यह कानून संविधान के खिलाफ है और इसकी वजह से जंगलों की कटाई में तेजी आ रही है. उनका कहना है कि अगर यह कानून बचा भी रह जाता है तब भी दावों के खारिज होने के कारण राज्य सरकारें अपने आप जनजाति परिवारों को बाहर कर देंगी.

जनजाति समूहों का कहना है कि कई मामलों में दावों को गलत तरीके से खारिज कर दिया गया. उनका कहना है कि इसकी नए अधिनियम के तहत समीक्षा होनी चाहिए जिसे जनजाति मामलों के मंत्रालय ने सुधार प्रक्रिया के रूप में लाया था. कानून के तहत उन्हें अपने आप बाहर नहीं निकाला जा सकता है और कुछ मामलों में तो जमीनें उनके नाम पर नहीं हैं क्योंकि वे उन्हें पैतृक वन संपदा के रूप में मिली हैं.

वन अधिकार कानून के बचाव के लिए केंद्र सरकार ने जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस नवीन सिन्हा और जस्टिस इंदिरा की पीठ के समक्ष 13 फरवरी को अपने वकीलों को ही नहीं भेजा. इसी वजह से पीठ ने राज्यों को आदेश दे दिया कि वे 27 जुलाई तक उन सभी आदिवासियों को बेदखल कर दें जिनके दावे खारिज हो गए हैं. इसके साथ ही पीठ ने इसकी एक रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में जमा करने को भी कहा. यह लिखित आदेश 20 जनवरी को जारी हुआ है.

आदिवासी मामलों के मंत्री को इस महीने की शुरुआत में भेजे गए एक पत्र में, विपक्षी दलों और भूमि अधिकार कार्यकर्ताओं के समूहों ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि भारत सरकार ने कानून का बचाव नहीं किया है.

पत्र में कहा गया है, ‘पिछली तीन सुनवाई में – मार्च, मई और दिसंबर 2018 में – केंद्र सरकार ने कुछ नहीं कहा है.’ इसके अलावा बीते 13 फरवरी को हुई आखिरी सुनवाई के दौरान कोर्ट में सरकारी वकील मौजूद ही नहीं थे.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे पत्र में, पूर्व राज्यसभा सांसद और माकपा की नेता बृंदा करात ने भी कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश से प्रभावित लोगों की कुल संख्या बहुत अधिक हो सकती है.

वह कहती हैं कि चूंकि 42.19 लाख दावों में से केवल 18.89 लाख दावों को स्वीकार किया गया है, शेष 23.30 लाख दावेदारों को आदेश की वजह से बदखल किया जाएगी. उन्होंने मोदी से आदिवासियों और वनवासियों की रक्षा के लिए अध्यादेश पारित करने का आग्रह किया है.

साभार- द वायर read it also- सुप्रीम कोर्ट ने 16 राज्यों के 10 लाख से अधिक आदिवासियों को जमीन से बेदखल करने का आदेश दिया  

दलित ज्वाइंट एक्शन कमेटी के कार्यकर्ता भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को दिखाएंगे काले झंडे

दलित ज्वाइंट एक्शन कमेटी के कार्यकर्ता 25 फरवरी को हिसार में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को काले झंडे दिखाएंगे. अधिवक्ता रजत कल्सन ने बताया कि दलित पीड़ित परिवारों की जायज मांगों के लिए जींद में 379 दिन से चल रहे अनिश्चितकालीन धरने पर बैठे पीड़ित परिवारों की मांगों की भाजपा की खट्टर सरकार द्वारा अनदेखी करने और बार-बार झूठे आश्वासन देने से लोग नाराज हैं.

वादा खिलाफी व विश्वासघात के विरोध में अमित शाह के हिसार आगमन पर दलित ज्वाइंट एक्शन कमेटी के लोग काले झंडों से विरोध जताएंगे. इतने लंबे और कड़े संघर्ष के बाद भी भाजपा की दलित विरोधी सरकार ने पीड़ित परिवारों की जायज मांगों को पूरा नहीं किया है. खासकर के दलित समाज की संयुक्त मांग दो अप्रैल के आन्दोलन के दौरान दलित समाज के लोगों पर जो झूठे मुकदमें दर्ज किए गए थे, हरियाणा सरकार ने उन मुकदमों को भी खारिज नहीं किया है.

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संख्यानुपात में आरक्षण का मुद्दा म्लान कर सकता है: राष्ट्रवादी लहर !

एक ऐसे समय में जबकि लोकसभा चुनाव की औपचारिक घोषणा होने ही वाली है, गत 14 फ़रवरी को जम्मू कश्मीर के पुलवामा जिले में सीआरपीऍफ़ की टुकड़ी पर एक भयावह आतंकी हमला हुआ, जिसमें 40 से अधिक जवानों की जान चली गयी और कई घायल हुए. इस आतंकी हमले के बाद देश भर में बड़े स्तर पर लोगो में वैसा ही गुस्सा देखा गया जैसा कभी संसद, मुंबई, उरी इत्यादि आतंकी घटनाओं के बाद दिखा था. किन्तु पुलवामा की घटना कुछेक मामले में बाकी घटनाओं भिन्न रही. अतीत की सभी घटनाओं में हमारी चूक को लेकर सवाल जरुर खड़े हुए, किन्तु इस मामले में पुलवामा आतंकी हमला शायद सबसे अलग है. देश के इस सबसे सुरक्षित मार्ग पर 250 किलो भयावह विस्फोटक सामग्री लेकर एक अकेला हमलावर कैसे 78 गाड़ियों के काफिले में घुस गया और कैसे उस एकमात्र गाड़ी को टारगेट किया, जो बुलेट प्रूफ नहीं थी, ऐसे दो-चार नहीं ढेरों सवाल हैं, जिसे लेकर केंद्र सरकार की ओर से संतोषजनक जवाब अबतक नहीं मिल पाया है. इस कारण ही इस किस्म की घटना को लेकर पहली बार कोई सरकार इस तरह विपक्ष व बुद्धिजीवियों के निशाने पर आई है. सोशल मीडिया पर ढेरों लोगों ने सरकार पर निशाना साधते हुए लिखा है, ’पुलवामा धमाके में बस और सैनिकों के ही परखच्चे नहीं उड़े, बल्कि राफेल, राम मंदिर, मंहगाई-बेरोजगारी, भष्टाचार, भागते लुटेरे, पिंजरे में कैद होता तोता, सुप्रीम कोर्ट के बहार आकर रोते जज, किसानों की दुर्दशा, सवर्ण आरक्षण, 13 पॉइंट रोस्टर, मोदी सरकार की समस्त विफलतायें और देश से जुड़े दूसरे जरुरी मुद्दे भी उड़ गए. यही है मोदी मैजिक!’ यही नहीं बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने तो इसके लिए मोदी सरकार को सीधा दोषी ठहरा दिया है.

दरअसल मोदी सरकार अगर विपक्ष के निशाने पर आ गयी है तो उसके लिए खुद भाजपा के नेता जिम्मेवार हैं. मीडिया में कई ऐसे तस्वीरें वायरल हुई हैं,जिनमें देखा गया है कि शहीदों की लाशें ले जाते वक्त उसके कई नेताओं के चेहरे पर ऐसी हंसी खिली रही जो जश्न के माहौल में उभरती है. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की देश-विदेश के नेताओं के साथ ऐसी कई तस्वीरे मीडिया में आई है, जिनमें वह ठहाके लगाते हुए दिखे. इन पक्तियों के लिखे जाने के दौरान इस मामले में सबसे बड़ा आरोप मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस की ओर से यह लगाया गया है-‘ 14 फ़रवरी,2019 को दिन में 3 बज कर 10 मिनट पर पुलवामा की घटना हुई, पूरा देश सदमे से जूझ रहा था, किन्तु मोदी उत्तराखंड के जिम कॉर्बेट में अपने प्रचार की एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म की शूटिंग में व्यस्त रहे. देश जब शहीदों के शवों के टुकड़े चुन रहा था, मोदी डिस्कवरी चैनल के मुखिया व उनके क्रू के साथ नौका विहार करते हुए घडियालों को निहार रहे थे. मोदी के लिए सत्ता की लालसा देश की सेना और शहीदों से बड़ी है.शहीदों और शहादत के अपमान का जो उदहारण मोदी जी ने पेश किया है वैसा कोई उदारण पूरी दुनिया में नहीं है. ’विपक्ष की इस बात को पूरी तरह न झुठलाते हुए सरकार की ओर से कह दिया गया है,’ भारत उस घटना से डरा नहीं है, रुका नहीं है’, यह सन्देश प्रधानमंत्री देना चाहते है.

इसमें कोई शक नहीं कि पुलवामा जैसी स्तब्धकारी घटना पर जितनी गंभीरता सरकार को दिखानी चाहिए थी, वैसा नहीं किये जाने के कारण ही इसे लेकर विपक्ष को राजनीति गरमाने का मौका मिल गया है. लेकिन इस मामले में खुद मोदी सरकार विपक्ष से कई कदम आगे है. पुलवामा घटना के बाद विपक्ष जनभावना का सम्मान करते हुए अपना कई प्रोग्राम ख़ारिज कर दिया, किन्तु मोदी सरकार की ओर से ऐसा नहीं किया गया. शहीदों की लाशें चिता पर चढ़ने के पहले मोदी-शाह और उनके लोग इस घटना से उपजे गुस्से को भुनाने में जुट गए और पकिस्तान तथा कश्मीरियों के बहाने, उस मुस्लिम विद्वेष को एक बार फिर तुंग पर पहुचाने में सफल हो गए, जो भाजपा की विजय में सबसे प्रभावी कारक का काम करता है. पुलवामा की घटना के जरिये आगामी लोकसभा चुनाव का लक्ष्य सधते देखकर ही इसे ब्रह्मास्त्र की तरह इस्तेमाल करने के लिए 19 जनवरी को गुजरात भाजपा के नेता और पार्टी प्रवक्ता भरत पंड्या ने कार्यकर्ताओं को कह दिया, ’40 जवानों के शहीद होने के बाद देश में इस समय ‘राष्ट्रवादी लहर’ चल रही है. हमें इसे वोटों में तब्दील करना होगा.’

वास्तव में विपुल प्रचार माध्यमों के समर्थन से पुष्ट दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा जिस तरह मुद्दे सेट करने में महारत हासिल कर चुकी है, उसके आधार पर यह मानकर चलना चाहिए कि पुलवामा का आतंकी हमला ही लोकसभा चुनाव-2019 का मुख्य मुद्दा बनने जा रहा है, जिसमें राष्ट्रवादी लहर पर सवार होकर मोदी एक बार फिर सत्ता में आने का प्रयास करेंगे. चूँकि मुद्दा सेट करने में भाजपा अप्रतिरोध्य है, इसलिए न चाहते हुए भी विपक्ष मोदी सरकार की तमाम नाकामियां भूलकर राष्ट्रवाद की पिच पर खेलने के लिए मजबूर होगा. और दुनिया जानती है कि इस पर भाजपा को मात देना बहुत कठिन काम है. हालांकि प्रियंका गांधी के सक्रिय राजनीति में आने के बाद नयी उर्जा से सराबोर कांग्रेस शायद इस पिच पर भी कुछ कमाल कर जाये, क्योंकि आतंकवाद के खिलाफ उसका ट्रैक रिकार्ड भाजपा से बेहतर होने के साथ– साथ इंदिरा और राजीव गांघी के प्राण-बलिदान की पूंजी भी उसके पास है. किन्तु ऐसी लड़ाई में तो बहुजनवादी दल भाजपा और कांग्रेस की लड़ाई में के बीच सैंडविच बनकर रह जायेंगे:उनका अता-पता ही नहीं चलेगा. ऐसा में वे कौन सा ऐसा मुद्दा उठायें जो भाजपा को अप्रतिरोध्य बनाने वाली ‘राष्ट्रवाद की लहर’ को म्लान कर सके, यह सबसे बड़ा सवाल है! बहरहाल आज जबकि राष्ट्रवाद की लहर पर सवार होकर भाजपा एक बार फिर निर्णायक चुनावी लड़ाई में उतरने जा रही है, मीडिया,धन-बल और मोदी जैसे प्रभावशाली नेता से शून्य बहुजनवादी दलों को भाजपा की खूबियों और कमियों का एक बार गंभीरता से सिंहावलोकन कर लेना चाहिए.

देश के धन्नासेठों, मीडिया, लेखकों, साधु-संतों एवं प्रभु वर्ग के प्रबल समर्थन से पुष्ट संघ के राजनीतिक संगठन भाजपा जैसी ताकतवर राजनीतिक पार्टी आज भारत ही नहीं, पूरी दुनिया में कोई और नहीं है: विपक्ष, विशेषकर बहुजनवादी दल उसके सामने पूरी तरह बौने हैं. किन्तु यदि हम इस बात को ध्यान में रखे कि लोकतान्त्रिक व्यवस्था में सत्ता हासिल करने में संख्या-बल सर्वाधिक महत्वपूर्ण फैक्टर का काम करता है और इसी संख्या-बल को अनुकूल करने के लिए राजनीतिक दलों को धन-बल,मीडिया-बल ,कुशल प्रवक्ताओं-कार्यकर्ताओं की भीड़ तथा योग्य नेतृत्व की जरुरत पड़ती है तो पता चलेगा ढेरों कमियों से घिरे भारत के बहुजनवादी दलों जैसी अनुकूल स्थिति पूरे विश्व में और कहीं है ही नहीं. ऐसा इसलिए क्योंकि आज की तारीख में सामाजिक अन्याय की शिकार बनाई गयी भारत के बहुजन समाज (एससी-एसटी-ओबीसीऔर इनसे धर्मान्तरित तबकों) जैसी विपुलतम आबादी दुनिया में कही और है ही नहीं.इसी विशालतम आबादी के सबसे बड़े हिस्से को न्याय दिलाने के लिए जब अगस्त, 1990 में मंडल की रिपोर्ट प्रकाश में आई, तब संग-संग भाजपा ने राम जन्मभूमि मुक्ति आन्दोलन छेड़ दिया, जिसके फलस्वरूप राष्ट्र की करोड़ों की संपदा और असंख्य लोगों की प्राण-हानि हुई. सामाजिक न्याय को दबाने के लिए शुरू किये गए मंदिर आन्दोलन की नौका पर सवार होकर ही भाजपा एकाधिक बार सत्ता में आई और हर बार उसने ऐसी नीतियां अख्तियार की जिससे बहुजन मंडल-पूर्व स्थिति में पहुँच जाए. इसके लिए उसने खास तौर से उस आरक्षण को निशाना बनाया, जिसके सहारे हजारों साल से शक्ति के स्रोतों (आर्थिक-राजनैतिक-शैक्षिक-धार्मिक) से बहिष्कृत बहुजन कुछ-कुछ राष्ट्र की मुख्यधारा से जुड़ने लगे थे. आरक्षण के खात्मे के लिए उसने नरसिंह राव की उन नवउदारवादियों नीतियों को हथियार की तरह इस्तेमाल किया, जिन्हें कभी वह विदेशियों का गुलाम बनाने वाली नीतिया घोषित किया करती थी. इससे आरक्षण को ख़त्म करने में वह काफी हद कामयाब जरुर हो गयी, किन्तु उसकी छवि सबसे बड़े सामाजिक न्याय-विरोधी दल की बन गयी, यही उसकी एक ऐसी कमजोरी है, जिसकी काट वह आंबेडकर प्रेम प्रदर्शन में दूसरे दलों को मीलों पीछे छोड़ने के बाद भी आजतक नहीं ढूंढ पाई है. उसकी इसी कमजोरी का सद्व्यवहार कर लालू प्रसाद यादव ने उसे बिहार विधानसभा चुनाव- 2015 बुरी तरह शिकस्त दे दिया था. स्मरण रहे बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान जब संघ प्रमुख ने आरक्षण के समीक्षा की बात उठाया, तब लालू प्रसाद यादव ने फिजा में यह बात फैला दी,’तुम आरक्षण का खात्मा करना चाहते हो, हम सत्ता में आयेंगे तो संख्यानुपात में सबको आरक्षण देंगे.’ तब विपुल प्रचारमाध्यमों और संघ के विशाल संख्यक एकनिष्ठ कार्यकर्ताओं से लैस भाजपा लाख कोशिशें करके भी लालू की उस बात की काट नहीं ढूंढ पाई और शर्मनाक हार झेलने के लिए विवश हुई.

2019 में स्थितियां और बदतर हुईं हैं. तब 2015 में मोदी का सम्मोहन चरम पर था : वे अपराजेय थे. किन्तु अपने कार्यकाल में लोगों के खाते 15 लाख रूपये जमा कराने; युवाओं को हर साल दो करोड़ नौकरियां देने व अच्छे दिन लाने इत्यादि में बुरी तरह विफल मोदी आज खुद भाजपा के लिए ही बोझ बन चुके हैं. इस बीच वह सामाजिक न्याय को क्षति पहुचाने व आरक्षण को कागजों की शोभा बनाने के मोर्चे पर नरसिंह राव, डॉ.मनमोहन सिंह और खुद संघी वाजपेयी जैसे अपने पूर्ववर्तियों को बहुत पीछे छोड़ चुके हैं. इधर उनके कार्यकाल के स्लॉग ओवर में 7 से 22 जनवरी, 2019 के मध्य जिस तरह ‘सवर्ण आरक्षण’ तथा ‘विभागवार आरक्षण’ पर मोहर लगी है, उससे जहाँ एक ओर उनकी छवि नयी सदी के सबसे बड़े सवर्ण ह्रदय-सम्राट के रूप में स्थापित हुई है, वहीँ दूसरी ओर वह बहुजनों की नज़रों में मंडल उत्तर-काल के सबसे बड़े सामाजिक न्याय विरोधी के रूप में उभरे हैं. उनकी चरम सामाजिक न्याय-विरोधी छवि के कारण ही 8 जनवरी, 2019 से रातो-रात बहुजन नेताओं में संख्यानुपात में आरक्षण की वह मांग शोर में तब्दील हो गयी, जिसके लिए बहुजन बुद्धिजीवी वर्षों से प्रयास कर रहे थे. उसके अतिरिक्त 13 प्वाइंट रोस्टर के खात्मे की लड़ाई के साथ बहुजन बुद्धिजीवि अवसरों और संसाधनों के बंटवारे में मूलनिवासी एसटी-एससी और ओबीसी को प्राथमिकता दिए जाने की मांग उठाने लगे है, जिसके सुप्रीम कोर्ट द्वारा लाखों आदिवासियों को जंगल से खदेड़ने का आदेश जारी होने के बाद जोर पकड़ने की सम्भावना काफी बढ़ गयी. ऐसे में 7 जनवरी, 2019 के बाद के बदले हालात को दृष्टिगत रखते हुए यदि बहुजनवादी दल नौकरियों के साथ-साथ शैक्षणिक व अर्थोपार्जन की समस्त गतिविधियों में प्रमुख सामाजिक समूहों -एसटी/एससी,ओबीसी,सवर्ण और धार्मिक अल्पसंख्यकों – के संख्यानुपात में आरक्षण के दिलाने के मुद्दे पर चुनाव में उतरें तो शायद बिहार विधानसभा चुनाव- 2015 से भी बेहतर परिणाम देने में सफल हो जायेंगे. संख्यानुपात में आरक्षण के सामने राष्ट्रवाद की बड़ी से बड़ी लहर का भी म्लान होना अवधारित है.

लेखक बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष है- सम्पर्क: 9654816191

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दलित परिवार (बेटी) की बिंदौली पर हमला, पिता, भाई समेत चार घायल

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चित्तौड़गढ़। जिला मुख्यालय के सदर थाना क्षेत्र के लक्ष्मीपुरा गांव में बुधवार रात एक दलित परिवार की ओर से निकाली जा रही बिंदौली में आपसी मारपीट में चार जनें घायल हो गए. घायलों में दुल्हन का पिता व भाई शामिल हैं. घटना से सकते में आई दुल्हन भी एकबार बेहोश हो गई. सूचना मिलने पर सदर थाना पुलिस रात को ही मौके पर पहुंची. पुलिस ने जानलेवा हमले व एसटीएससी एक्ट के तहत मामला दर्ज कर एक आरोपित को हिरासत में ले लिया है. गुरुवार दोपहर पुलिस उप अधीक्षक (मुख्यालय) माधो सिंह साढ़ा लक्ष्मीपुरा पहुंचे और मौका मुआयना किया.

उन्होंने बताया कि लक्ष्मीपुरा निवासी नाथूलाल भाम्बी की पुत्री का विवाह था. उसकी बुधवार रात बिंदौली निकाली जा रही थी. इसी दौरान बिंदौली में शामिल कुछ लोगों की वहां से गुजर रहे सवर्ण वर्ग के किशोर से कहासुनी हो गई. लोगों ने उसे मार-पीटकर भगा दिया. उसके बाद किशोर के साथ 10-15 लोग लाठी-सरिया लेकर आए और हमला कर फरार हो गए. हमले में दुल्हन के पिता नाथूलाल (69), उसका पुत्र शिवलाल (32) और रमेश (25) घायल हो गए. इन तीनों को रात में ही जिला चिकित्सालय ले जाया गया. नाथूलाल की हालत गंभीर है. रमेश के हाथ में फ्रेक्चर हो गया है. उधर घटना की सूचना मिलते ही रात करीब 12 बजे सदर थाना के एसआई रोशनलाल जाप्ते के साथ मौके पर पहुंचे, लेकिन तब तक बदमाश फरार हो चुके थे.

गुरुवार दोपहर चित्तौडग़ढ़ के पुलिस उप अधीक्षक माधो सिंह ने पीडि़त परिवार के बयान दर्ज किए हैं, वहीं घटना को लेकर कई दलित संगठनों के पदाधिकारी भी पीडि़त के पास पहुंचे और जानकारी ली. ओछड़ी ग्राम पंचायत सरपंच दिग्विजय सिंह भी मौके पर पहुंचे हैं. पुड़िया और पत्थर फेंके नाथूलाल ने बताया कि रात में बिंदौली निकालते समय कुछ लोग आए और उन्होंने बिंदौली पर पुड़िया और पत्थर फेंकने शुरू कर दिए. बाद में उन्होंने मारपीट भी की. गांव के प्रकाशचंद्र भाम्बी के अनुसार, अफरा-तफरी और झगड़े के दौरान आरोपितों ने दुल्हन को बग्गी से उतारने का प्रयास किया, जिससे वह बेहोश हो गई. इस घटना को लेकर परिजनों में आक्रोश है. प्रत्येक कार्यक्रम में करते हैं हंगामा ग्रामीणों और परिजनों की मानें तो गांव में कुछ लोग हैं शराब पीकर उत्पात मचाते हैं. किसी भी सार्वजनिक कार्यक्रम के दौरान ये लोग कार्यक्रम को प्रभावित करने का प्रयास करते हैं, लेेकिन इनकी पुलिस में शिकायत नहीं की गई. उसी का नतीजा है कि इतने बड़े घटनाक्रम को अंजाम दिया गया.

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नगीना सीट से चुनाव लड़ सकती हैं मायावती, सीटों के बंटवारे के बाद अटकलें तेज

लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ बनाए गए बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी के महागठबंधन में सीटों के बंटवारे में वेस्ट यूपी में अखिलेश यादव ने मायावती को ज्यादा तरजीह दी है. पश्चिम यूपी की पांच रिजर्व सीटों में से चार पर बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवारों को गठबंधन का प्रत्याशी बनाने का निर्णय किया गया है. इसके अलावा एक रिजर्व सीट पर समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी उतारने का निर्णय हुआ है. गुरुवार को सीटों के बंटवारे के बाद हुए निर्णय में नगीना सुरक्षित सीट के बीएसपी के खाते में आने से मायावती के चुनाव लड़ने की अटकलें तेज हो गई हैं.

गुरुवार को हुए समझौते के मुताबिक, वेस्ट यूपी के मेरठ मंडल में एसपी सिर्फ एक सीट गाजियाबाद पर चुनाव लड़ेगी. जबकि बीएसपी यहां मेरठ, गौतमबुद्धनगर और बुलंदशहर लोकसभा तीन सीट पर उम्मीदवार उतारेगी. इसके अलावा बागपत की सीट आरएलडी के पास रहेगी. सहारनपुर मंडल में एसपी के पास सिर्फ कैराना सीट रहेगी. यह सीट एसपी ने आरएलडी से वापस ले ली है. कैराना की जगह मुजफ्फरनगर की सीट आरएलडी को दी गई है. इन सब के साथ सहारनपुर की सीट को बीएसपी के कोटे में डाला गया है.

*पश्चिम यूपी में सीटों के बंटवारे में माया को अखिलेश ने दी तरजीह *पांच रिजर्व सीटों में से चार सीटों को बीएसपी के खाते में डालने का फैसला *नगीना सीट पर बीएसपी ने किया दावा, मायावती खुद लड़ सकती हैं चुनाव *सहारनपुर सीट पर भी बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी को उतारने का फैसला

दूसरी ओर मुरादाबाद मंडल में एसपी मुरादाबाद, रामपुर और संभल तो बीएसपी बिजनौर, नगीना अपने पास रखेंगी. दिलचस्प बात यह है कि वेस्ट यूपी की पांच रिजर्व सीटों में से चार नगीना, बुलंदशहर, आगरा और शाहजहांपुर बीएसपी के पास रहेगी. एक रिजर्व सीट हाथरस एसपी को मिली हैं.

सहारनपुर और मेरठ सीट बीएसपी को

दलित मुद्दे पर आंदोलन और हिंसा को लेकर चर्चा में रही सहारनपुर और मेरठ सीट बीएसपी के खाते में गई है. सहारनपुर सीट यूपी में योगी सरकार बनने के बाद वहां हुई हिंसा के बाद चर्चा में आई थी. इस हिंसा में दलित उत्पीड़न का आरोप लगाकर बीएसपी प्रमुख मायावती ने राज्यसभा की सदस्यता तक से इस्तीफा दे दिया था और इसके बाद वह सहारनपुर पहुंच गई थीं. इस दौरान मायावती ने बीजेपी पर खुद की हत्या कराने तक की साजिश रचने का आरोप लगा दिया था. इस के साथ बीते साल दो अप्रैल को दलित आरक्षण को लेकर अदालत के आदेश पर संशोधन के खिलाफ भारत बंद के दौरान मेरठ और हापुड़ में सबसे ज्यादा हिंसा हुई थी. इस घटना के दौरान कई दलितों की गिरफ्तारी हुई थी. साथ ही हजारों दलितों के खिलाफ एफआईआर लिखी गई थी. इस पूरे मामले के बाद अब गठबंधन के फैसले में मेरठ-हापुड़ लोकसभा सीट को बीएसपी को दिया गया है.

नगीना से माया के चुनाव में उतारने की अटकलें तेज

नगीना सीट शीट शेयरिंग के आंकड़े के मुताबिक एसपी के खाते में जानी चाहिए थी. 2014 में इस सीट पर एसपी दूसरे नंबर पर रही थी, लेकिन बीएसपी ने चर्चित गाजियाबाद सीट को छोड़कर नगीना की सीट को चुन लिया. माना जा रहा है कि आगामी लोकसभा चुनाव में खुद मायावती इस सीट से चुनाव लड़ सकती हैं. अब तक राज्यसभा की सांसद रहीं माया के सियासी जीवन में बिजनौर जिले का बड़ा योगदान है. मायावती ने पहली बार लोकसभा का चुनाव भी बिजनौर की सीट से ही जीता था, ऐसे में यह माना जा रहा है कि इस बार नगीना सीट से मायावती लोकसभा चुनाव के मैदान में उतरेंगी. वहीं पार्टी के नेताओं का कहना है कि इस सीट पर मायावती को अपनी दावेदारी का फैसला खुद करना है.

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सुप्रीम कोर्ट ने 16 राज्यों के 10 लाख से अधिक आदिवासियों को जमीन से बेदखल करने का आदेश दिया

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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश से देश के करीब 12 लाख आदिवासियों और वनवासियों को अपने घरों से बेदखल होना पड़ सकता है। दरअसल शीर्ष अदालत ने 16 राज्यों के करीब 11.8 लाख आदिवासियों के जमीन पर कब्जे के दावों को खारिज करते हुए सरकारों को आदेश दिया है कि वे अपने कानूनों के मुताबिक जमीनें खाली कराएं। सुप्रीम कोर्ट ने लाखों हेक्टेयर जमीन को कब्जे से मुक्त कराने का आदेश दिया।

*अदालत ने 16 राज्यों की सरकारों को आदेश दिया है कि वे अपने कानूनों के मुताबिक जमीनें खाली कराए *SC के इस आदेश से देश के करीब 12 लाख आदिवासियों और वनवासियों को अपने घरों से बेदखल होना पड़ सकता है *प्रभावित लोगों की कुल संख्या पता चलने के बाद केंद्र सरकार उनको लेकर विचार करेगी

बिजनेस स्टैंडर्ड की ख़बर के अनुसार, अब अन्य राज्यों को भी अदालत का आदेश लागू करने के लिए बाध्य होना होगा जिसकी वजह से देशभर में अपनी जमीन से जबरदस्ती बेदखल किए जाने वालों की संख्या में बढ़ोतरी देखी जाएगी. अदालत का यह आदेश एक वन्यजीव समूह द्वारा दायर की गई याचिका के संबंध में आया है जिसमें उसने वन अधिकार अधिनियम की वैधता पर सवाल उठा था.

याचिकाकर्ता ने यह भी मांग की थी कि वे सभी जिनके पारंपरिक वनभूमि पर दावे कानून के तहत खारिज हो जाते हैं, उन्हें राज्य सरकारों द्वारा निष्कासित कर दिया जाना चाहिए.

इस कानून के बचाव के लिए केंद्र सरकार ने जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस नवीन सिन्हा और जस्टिस इंदिरा की पीठ के समक्ष 13 फरवरी को अपने वकीलों को ही नहीं भेजा. इसी वजह से पीठ ने राज्यों को आदेश दे दिया कि वे 27 जुलाई तक उन सभी आदिवासियों को बेदखल कर दें जिनके दावे खारिज हो गए हैं. इसके साथ ही पीठ ने इसकी एक रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में जमा करने को भी कहा. यह लिखित आदेश 20 जनवरी को जारी हुआ है.

अदालत ने कहा, ‘राज्य सरकारें यह सुनिश्चित करेंगी कि जहां दावे खारिज करने के आदेश पारित कर दिए गए हैं, वहां सुनवाई की अगली तारीख को या उससे पहले निष्कासन शुरू कर दिया जाएगा. अगर उनका निष्कासन शुरू नहीं होता है तो अदालत उस मामले को गंभीरता से लेगी.’

मामले की अगली सुनवाई की तारीख 27 जुलाई है. इस तारीख तक राज्य सरकारों को अदालत के आदेश से आदिवासियों को उनकी जमीन से बेदखल करने का काम शुरू कर देना होगा.

अदालत के आदेश के विश्लेषण से पता चलता है कि शीर्ष अदालत को अब तक अस्वीकृति की दर बताने वाले 16 राज्यों से खारिज किए गए दावों की कुल संख्या 1,127,446 है जिसमें आदिवासी और अन्य वन-निवास घर शामिल हैं. वहीं जिन राज्यों ने अदालत को अभी तक ऐसी जानकारी उपलब्ध नहीं कराई है उन्हें उपलब्ध कराने को कहा गया है. उनके द्वारा जानकारी उपलब्ध कराए जाने के बाद यह संख्या बढ़ भी सकती है.

कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के पहले कार्यकाल में पास होने वाले वन अधिकार अधिनियम के तहत सरकार को निर्धारित मानदंडों के विरुद्ध आदिवासियों और अन्य वनवासियों को पारंपरिक वनभूमि वापस सौंपना होता है. साल 2006 में पास होने वाले इस अधिनियम का वन अधिकारियों के साथ वन्यजीव समूहों और नेचुरलिस्टों ने विरोध किया था.

जनजातीय समूह मानते हैं कि उनके दावों को कुछ राज्यों में व्यवस्थित रूप से अस्वीकार कर दिया गया है और उनकी समीक्षा किए जाने की आवश्यकता है. वहीं कई राज्यों से ऐसी रिपोर्टें आई हैं जहां समुदायिक-स्तर के दावों को स्वीकार करने को लेकर भी गति बहुत धीमी है.

याचिकाकर्ता बेंगलुरु स्थित वाइल्डलाइफ फर्स्ट जैसे कुछ गैर-सरकारी संगठनों का मानना है कि यह कानून संविधान के खिलाफ है और इसकी वजह से जंगलों की कटाई में तेजी आ रही है. उनका कहना है कि अगर यह कानून बचा भी रह जाता है तब भी दावों के खारिज होने के कारण राज्य सरकारें अपने आप जनजाति परिवारों को बाहर कर देंगी.

जनजाति समूहों का कहना है कि कई मामलों में दावों को गलत तरीके से खारिज कर दिया गया. उनका कहना है कि इसकी नए अधिनियम के तहत समीक्षा होनी चाहिए जिसे जनजाति मामलों के मंत्रालय ने सुधार प्रक्रिया के रूप में लाया था. कानून के तहत उन्हें अपने आप बाहर नहीं निकाला जा सकता है और कुछ मामलों में तो जमीनें उनके नाम पर नहीं हैं क्योंकि वे उन्हें पैतृक वन संपदा के रूप में मिली हैं.

अदालत ने जब आखिरी बार इस मामले की सुनवाई की थी तब कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भाजपा नेतृत्व वाली एनडीए सरकार पर इस मामले में मूक-दर्शक बने रहने का आरोप लगाया था. उन्होंने कहा, ‘भाजपा सुप्रीम कोर्ट में मूक दर्शक बनी हुई है, जहां वन अधिकार कानून को चुनौती दी जा रही है. वह लाखों आदिवासियों और गरीब किसानों को जंगलों से बाहर निकालने के अपने इरादे का संकेत दे रही है. कांग्रेस हमारे वंचित भाई-बहनों के साथ खड़ी है और इस अन्याय के खिलाफ पूरे दम से लड़ाई लड़ेगी’

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अब श्रीनगर आने-जाने के लिए अर्धसैनिक बलों के जवानों को मिलेगी हवाई सेवा

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नई दिल्ली। पुलवामा आतंकी हमले के बाद केंद्र सरकार ने जवानों की सुरक्षा को मद्देनजर रखते हुए गुरुवार को बड़ा एलान किया है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, गृह मंत्रालय ने जानकारी दी है कि अब जवानों को हवाई जहाज से आने-जाने की सुविधा मिलेगी. गृह मंत्रालय ने केंद्रीय सशस्त्र अर्धसैनिक बलों के सभी जवानों की दिल्ली-श्रीनगर, श्रीनगर-दिल्ली, जम्मू-श्रीनगर और श्रीनगर-जम्मू क्षेत्रों में हवाई यात्रा की मंजूरी दी है.

सरकार के इस एलान के बाद 7 लाख 80 हजार जवानों को इसका फायदा मिलेगा. इसमें कांस्टेबल, हेड कांस्टेबल और एएसआई को भी शामिल किया गया है. बता दें पहले इन्हें इस सुविधा से बाहर रखा गया था. अब जवानों को श्रीनगर से छुट्टी पर जाने और छुट्टी से लौटने पर भी हवाई यात्रा की सुविधा मिल सकेगी.

गौरतलब है कि पुलवामा में 14 फरवरी को सीआरपीएफ के काफिले पर आतंकवादी हमला हुआ था जिसमें 40 जवान शहीद हो गए थे. हमले के तुरंत बाद मोदी सरकार ने पाकिस्तान के खिलाफ बड़ा एक्शन लेते हुए पाक से मोस्ट फेवर्ड नेशन (एमएनएफ) का दर्जा वापस लेने का एलान किया, जो पाकिस्तान को 1996 में मिला था.

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बसपा और सपा ने जारी की सीटों की लिस्ट, देखिए किस सीट पर किसका उम्मीदवार

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नई दिल्ली। बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी ने सीटों को लेकर अपनी लिस्ट जारी कर दी है. संयुक्त बयान जारी कर दोनों दलों ने बताया है कि कौन सी पार्टी किस लोकसभा सीट से चुनाव लड़ेगी. बसपा ने अपने 38 सीटों की लिस्ट जारी की है, जबकि सपा ने 37 सीटों की. सुरक्षित सीटों की बात करें तो बसपा लोकसभा की 10 सुरक्षित सीटों पर चुनाव लड़ेगी जबकि सपा 7 सुरक्षित सीटों पर लड़ेगी. देखिए लिस्ट

Samajwadi party List
बसपा-सपा ने जारी की लोकसभा सीटों की लिस्ट