क्या संविधान ने हमे सम्मान से जीने के लिए पैर धोने की व्यस्था दी है?

क्या भारत के संविधान में दलितों के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए पैर धौने की व्यवस्था दी गई है? आप संविधान पढ़ेंगे तो पता चलेगा और उसका उत्तर होगा “बिल्कुल भी नही” ! तो फिर दलितों/सामाजिक रूप से बहिष्कृत निचली और पिछड़ी जातियों के सम्मान से जीने के लिए क्या व्यवथा दी गई है! अब प्रश्न यह उठता है कि इन जातियों को ही स्पेशल ट्रीटमेंट की आवश्यकता क्यों महसूस की गई और बाकायदा बाबा साहब भीमराव आंबेडकर ने इसके लिए विशेष संवैधानिक व्यवस्था की! इसके लिए थोड़ा इतिहास में जाने की आवश्यकता है!

यह सर्वविदित है कि भारत के इतिहास के प्रारंभिक काल मे सम्राट अशोक के कालखंड में समता मूलक सामाजिक व्यवस्था जहां सब बराबर थे कोई जाति या धर्म नही था न शोषण था, के बाद वैदिक काल में कुछेक शोषकों द्वारा कूटरचित धर्मशास्त्रों की रचना की गई जिसमें भगवान का डर दिखाकर लोगो को आसानी से डराया जा सकता था, इस विचारधारा को मानने वाले लोगों ने महसूस किया कि यदि बिना मेहनत के सीधे में लोगो को डरा धमकाकर यदि अपना पेट आसानी से भर सकता है एवं हमारी पीढ़ियों का उज्जवल भविष्य बनता है तो क्यों न इसी व्यवस्था को पूर्णकालील व्यवस्था बना दिया जाए और इसी व्यवस्था के तहत चतुवर्ण व्यवस्था अपने अस्तित्व में आई जिसमें लोगों को व्यवस्था के अंदर जीने के लिए उनका कार्य विभाजन किया गया, सभी जनमानस जो समान थे बाद में कार्य विभाजन के बाद लोग वर्गों में बंट गए मुख्य रूप से कार्यो का विभाजन चार वर्गों के रूप में किया गया जिसमें ब्राम्हण,क्षत्रिय,वैश्य और शूद्र थे! इस सामाजिक व्यवस्था के अनुसार ब्राम्हण का कार्य केवल पूजा पाठ करना,एवं धर्म ग्रंथो की शिक्षा देना ,भिक्षा माँगना आदि से अपना गुजारा चलाना था,जबकि क्षत्रिय का कार्य राज्य की सीमा की सुरक्षा,वैश्य का कार्य व्यापार करना जबकि शुद्र को इन तीनो वर्गों की सेवा,साफ सफाई और घृणात्मक कार्य करना जो उपरोक्त तीनों वर्ग में से कोई नही कर सकता था!

उपरोक्त अनुसार व्यस्था चलते रही और इन चारों वर्गों में सबसे आसानी से पेट भरकर खाने वाला वर्ग कालांतर में शूद्रों का शोषक वर्ग बन गया क्योंकि इसने ऐसी मन गणन्त्र व्यवस्था बना रखी थी जिसमे शूद्रों को शिक्षा,धन,से दूर रखा और उन्हें केवल अपना गुलाम बनाये रखा उनको डराने का सबसे प्रबल हथियार जो उन्होंने विकसित किया था वह था “धर्म आधारित (शोषक) जाति व्यवस्था” जिसमें सभी जातियों को धर्म और ईश्वर के प्रति डर दिखाकर आसानी से अपना गुलाम बनाया जा सकता था, चूँकि निचली जातियां गुलामी एवं भय में जी रही थी अतः ईश्वर और धर्म का उपयोग कर सबसे ज्यादा इनको ही डराया जा सकता था और डराकर शोषण किया जा सकता था, ये शुद्र वर्ग न केवल शारीरिक गुलाम था बल्कि कालांतर में मानसिक गुलाम भी बन गया और आज भी बना हुआ है. इस धर्म आधारित शोषक व्यवस्था में शुद्र लगभग 5 सदियों से शिक्षा,धन,संसाधनों,न्याय,सामाजिक समानता,सम्मान,से दूर रखा गया और उसके साथ जानवरो से बदतर व्यवहार किया गया! इस शुद्र वर्ग ने शोषण को अपना कर्म और शोषक को अपना ईश्वर मान लिया था और आज भी माने हुए है.

लगभग पांच हज़ार सालो तक इनके साथ ऐसी ही गैर बराबरी होते आई और शोषण होते रहा लेकिन इनके मानवाधिकारों की रक्षा के लिए उपरोक्त तीनों वर्गों में से कोई भी वर्ग या कोई भी व्यक्ति इनके साथ खड़ा नही हुआ! पांच हज़ार वर्षो के शोषण के बाद शुद्र वर्ग में एक ऐसे कर्मयोगी का जन्म हुआ जिसने पहली बार सामाजिक तिरस्कार झेलते हुए महसूस किया कि सभी इंसान समान है ,सभी इंसानों का खून का रंग भी लाल है सभी एक जैसे है लेकिन सबके साथ एक जैसा सामाजिक व्यवहार नही होता है, कोई बिना मेहनत के भी मलाईदार बना हुआ है और कोई जी तोड़ परिश्रम के बाद भी शोषण का शिकार है उन्होंने इसके कारणों का अध्यन किया और पाया कि इसके पीछे का कारण चतुवर्ण आधारित धार्मिक जातिगत व्यवस्था जिम्मेदार है और इसका अंत उसी व्यवस्था को चुनोती देकर दी जा सकती है और उसके लिए पांच हज़ार सालो से लोगो के दिमाग मे सेट व्यस्था को उखाड़ फेकना इतना आसान नही है इसके लिए मेरिट चाहिए, मेरिट के लिए उन्होंने अत्यंत परिश्रम किया गहन अध्ययन किया न केवल देश मे बल्कि विदेशों के नामी गिरामी यूनिवर्सिटी की परीक्षा पास करके अपने आपको सामर्थवान बनाया इसके उपरांत उन्होंने भारत का भाग्य लिखा जिसे हम ” भारत का संविधान ” कहते है. इस महान विचारक, लेखक, शिक्षाविद, सामाजिकचिंतक, अर्थशास्त्री, इंजीनियर, समाजशास्त्री, राजनीतिज्ञ ,कानूनविद, और बाद में भारतरत्न कहलाए वे थे डॉ भीमराव आंबेडकर जिन्हें प्यार से “बाबा साहेब” भी कहा जाता है.

 उन्होंने पाँच हज़ार साल तक हुए शोषण के शिकार शोषितों,वंचितों,दबे कुचलो,महिलाओं के लिए लिखित समानता आधारित भारत के संविधान में लिपिबद्ध करते हुए लोकतांत्रिक व्यवस्था दी! जिसमे भारत के प्रत्येक नागरिकों के लिए मूल अधिकार दिए (भारत का संविधान भाग 3 अनुच्छेद 14 से 30) जबकि शूद्रों (अनुसूचित जाति और जनजाति) के लिए भारत के संविधान में पाँचवी अनुसूची (भाग 10 अनुच्छेद 244) अनुसूचित और जनजाति क्षेत्रो में प्रशासन की व्यस्था की गई! भारत के संविधान में प्रदत्त मूल अधिकार भारत के सभी नागरिको पर लागू होते है एवं इन अधिकारों से भारत के प्रत्येक नागरिक को समता का अधिकार(अनुच्छेद 14-18),स्वत्रंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19-22),शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23-24),धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार(25-28),संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार (अनुच्छेद 29-30) में सभी नागरिकों को विधि के संगत न्याय की व्यवस्था दी गई ! धर्म,मूलवंश,जाति,लिंग या जन्मस्थान के आधार पर लोगों से विभेद नही किया जा सकता था! नोकरियों के विषय मे समानता के अवसर का प्रावधान था,छुआछूत को निषिद्ध किया गया था, बोलने की आज़ादी / अभिव्यक्ति की आज़ादी दी गयी!मानव के साथ कोई दुर्व्यापार न करे,कोई बलात श्रम न करा पाए,कारखानों में बालको के नियोजन का प्रतिषेद किया गया,लोगो को अपने हिसाब से धर्म की स्वत्रन्त्रता दी गई वह धर्म माने अथवा न माने,या कोई भी धर्म माने!अल्पसंख्यक के हितों का संरक्षण ,शिक्षा के अधिकार दिए गए! उपरोक्त सभी अधिकार “26 जनवरी 1950”  को “भारत के संविधान” के अस्तित्व में आने के साथ ही सभी नागरिकों को मुफ्त में मिल गए! बस यही कारण था कि भारत के संविधान के लागू होते ही उन सभी नागरिकों को समानता के अधिकार मिले जो सम्राट अशोक के काल से लेकर संविधान लागू होने के पहले तक रोककर रखे गए थे, इसकी जद में सभी नागरिक थे तो स्वाभाविक है इसमें अनुसूचित जाति और जनजाति भी आई जिनका शोषण पांच हज़ार सालो से होता आया था!

 यही वजह रही कि वेदों में लिखी कूटरचित और शोषणकारी नीतियों का खुलकर विरोध हुआ और संविधान में दिए अधिकारो से दबे कुचले समाज,अनुसूचित जाति जनजाति  और महिलाओं को सामाजिक समानता मिली, नोकरी के अवसरों में समानता मिली ,वह शिक्षा एक अधिकार मिला जो उनसे छीना जा चूका था शिक्षा के अधिकार पाते ही वंचित वर्ग शिक्षित और प्रबुद्ध हुआ फलस्वरूप उसमें भी नेतृत्व क्षमता विकसित हुई अब महिलाएं भी शासन और प्रशासन चला सकती थी ! वाक- स्वत्रंतता मिली जिस कारण वंचित शोषण के खिलाफ बोल सकते थे ! केवल जाति और धर्म देखकर दिए जाने वाले न्याय की जगह सभी को समान न्याय मिलने लगा, छुआछूत निषिद्ध और असंवैधानिक करार दिया गया! स्पष्ट है कि संविधान में वंचितों,दबे कुचलों, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के लिए के लिए जो संवैधानिक प्रावधान किए गए है उनमें उपरोक्त प्रावधान शामिल है न कि इन वर्गों के पैर धोना! इस प्रकार हम पाते है कि संवैधानिक प्रावधान वे कारण थे जिसने “धर्म आधारित जाति आधारित शोषक वर्ण व्यस्था” और उनके प्रशासकों की चूले हिला कर रख दी थी! वो इस बात से भयभीत हो गए कि हमारी शोषण आधारित ,धर्म आधारित , चतुर्वर्ण व्यस्था को यह भारत का संविधान न केवल चुनौती दे रहा अपितु हमारी षणयंत्र पूर्वक रचित व्यवस्था को नष्ट करने में तुला हुआ है! अपने अस्तित्व को बचाये रखने के लिए इस शोषण व्यवस्था को बनाए रखने के लिए इसके प्रशासको ने वही धर्म आधारित व्यवस्था “मनुस्मृति”  की पुरजोर वकालत करते आ रहे है ! इसी का परिणाम है कि इन्होंने इसी वर्ष दिल्ली में भारत का संविधान जलाया और सबसे बड़ा देशद्रोह किया परंतु इनके ही काका-मामा शासन प्रशासन और न्यायपालिका में है इसलिए ये देशद्रोहीयो पर कोई कार्यवाही नही हुई और आज भी बेख़ौफ़ होकर घूम रहे है.

चूंकि “भारत के संविधान” को एकदम से नष्ट करने पर भूचाल आ जायेगा इसलिए ये शोषक धीरे धीरे अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए किए गए विशेष प्रावधान जैसे कि आरक्षण खत्म करना,गैरसंवैधानिक तरीके से आर्थिक आधार पर आरक्षण देना,पदोन्नति में आरक्षण खत्म करना, अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम को नष्ट करने की कोशिश करना, 200 पॉइंट पोस्टर सिस्टम को खत्म कर 13 पॉइंट रोस्टर सिस्टम लागू करना! ये संविधान में प्रदत्त उन शक्तियों को ही नष्ट कर देना चाहते है जिसके कारण वंचित को समान स्तर पर जीने की सामाजिक व्यवस्था बनाई गई है. जब संविधान के वे मुख्य प्रयोजन धीरे धीरे नष्ट कर दिए जाएंगे जिनसे दलितों, वंचितों महिलाओं को विशेष ट्रीटमेंट देकर समता मूलक समाज की कल्पना कि गई है तो वह संविधान किस काम का बचेगा? यही षणयंत्र धीरे धीरे संविधान की आत्मा को चोट पहुचा रहा है और अंदर से खोखला कर रहा है ,ये देश फिर से उसी पांच हज़ार साल पहले जाने की ओर अग्रसर है जहाँ गैर बराबरी, शोषण,अन्याय,अत्याचार,छुआछूत,गुलामी,कायम की जा सके, यदि समय रहते देश का मूलनिवासी ST/SC/OBC/minority का 80% जनसंख्या वाला तबका जागरूक नही हुआ तो देश मे शीघ्र ही “लोकतांत्रिक व्यस्था” खत्म हो जावेगी एवं तानाशाही “मनुस्मृति व्यवथा” लागू कर दी जावेगी जहाँ पूर्व की भांति, शोषण,अत्याचार,गुलामी,छुआछूत,ग़ैरबराबरी,गरीबी,सामाजिक त्रिस्कार का बोलबाला होगा जहाँ बुद्धिजीवी,शिक्षविद, वैज्ञानिक,इंजीनियर,वकील,डॉ को फांसी चढ़ा दी जाएगी केवल धार्मिक उन्मादियों को जीने की स्वतंत्रता होगी विज्ञान और तकनीकी अपनी अंतिम सांसे गिनेगी.

उपरोक्त अनुसार स्पष्ट है इस देश मे वंचितों, दलितों,गरीबो से हमदर्दी दिखाने के लिए इन वर्गों की आरती उतारने की जरूरत है न ही पैर धौने के जरूरत है क्योंकि ये असंवैधानिक प्रक्रिया है अगर आपको इन वंचितों का वास्तविक सम्मान करना है तो आप उन्हें अवसरों की समानता दीजिए! नोकरी दीजिए! उनसे जाति ,धर्म,लिंग,सम्प्रदाय के आधार पर शिक्षा,धन, जल,जंगल जमीन संसाधन मत छीनिए! आपको उनके न पैर धौने की जरूरत है न पैर पकड़ने की क्योंकि भारत के संविधान में इन वर्गों के सम्मान के लिए ऑलरेडी संवैधानिक उपचार दिए गए है जरूरत है केवल लागू करने की, इसलिए पैर मत धोइये बल्कि  जरूरत है केवल उनको संवैधानिक प्रावधान को हूबहू लागू कराने की! यही उनका वास्तविक सम्मान होगा फालतू के ढोंग छोड़िए ये देश कर्मकांडो और अंधविश्वास से नही चलता ये देश दुनिया के सबसे ताकतवर संविधान से चलता है, आज जरूरत है इस संविधान को बचाने की आओ मूलनिवासियों/ बहुजनों हम देश को बचाने का प्रण ले.

लेखक: राजेश बकोड़े
सोशल थिंकर,B.Sc.,M.Sc.,MSW

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