भारतीय डाक में 10वीं पास के लिए 10,066 पदों पर वैकेंसी

नई दिल्ली। सरकारी नौकरी की तलाश कर रहे लोगों के लिए भारतीय डाक  ने बंपर वैकेंसी निकाली हैं. भारतीय डाक ग्रामीण डाक सेवक (जीडीएस) के पदों पर भर्ती करेगा. भारतीय डाक द्वारा असम, बिहार, गुजरात, कर्नाटक, केरल और पंजाब में कुल 10066 पदों पर भर्तियां की जाएगी. इन पदों पर आवेदन की प्रक्रिया शुरू हो गई है. आवेदन करने की आखिरी तारीख 4 सितंबर है. ग्रामीण डाक सेवक को डाक टिकटों और स्टेशनरी की बिक्री, मेल की डिलीवरी और पोस्टमास्टर/ सब पोस्टमास्टर द्वारा दिए गए अन्य कार्य को पूरा करना होगा. इस नौकरी में भारतीय डाक भुगतान बैंक (IPPB) का काम भी शामिल है.

पद का नाम ग्रामीण डाक सेवक (जीडीएस)

कुल पदों की संख्या 10,066 पद

योग्यता इन पदों पर 10वीं पास आवेदन कर सकते हैं. उम्मीदवार 10वीं तक स्थानीय भाषा पढ़ा होना चाहिए.

आयु सीमा आवेदक की आयु 18-40 वर्ष के बीच होनी चाहिए. ओबीसी श्रेणी के लोगों को अधिकतम आयु सीमा में 3 वर्ष और एससी और एसटी वर्ग के लोगों को 5 साल की छूट दी जाएगी. साथ ही उम्मीदवार के पास किसी मान्यता प्राप्त कम्प्यूटरप्रशिक्षण संस्थान से कम से कम 60 दिनों का कम्प्यूटर ट्रेंनिंग सर्टिफिकेट होना चाहिए. केंद्र सरकार/ राज्य सरकार/ विश्वविद्यालय/ बोर्ड आदि से प्राप्त प्रमाण पत्र भी स्वीकार किए जाएंगे.

ऐसे करें आवेदन इच्छुक लोग www.appost.in/gdsonline/ पर जाकर आवेदन कर सकते हैं. ऑफिशियल नोटिफिकेशन भी इस वेबसाइट पर जाकर चेक किया जा सकता है.

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सुषमा स्वराज के अंतिम दर्शन को भाजपा दफ्तर में उमड़े कार्यकर्ता, मंगलवार देर रात निधन

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नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी की दिग्गज नेता और पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का 67 साल की उम्र में एम्स में निधन हो गया. मंगलवार रात दिल का दौरा पड़ने के बाद बेहद नाजुक हालत में उन्हें रात 9 बजे एम्स लाया गया लेकिन डॉक्टर उन्हें बचा नहीं सके. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उनके घर पहुंच श्रद्धांजलि दी. BJP मुख्यालय में भी उनके पार्थिव शरीर को अंतिम दर्शन के लिए रखा गया.

सुषमा का जन्म 14 फरवरी 1952 को हुआ था. उनका जन्म अंबाला कैंट, हरियाणा में हुआ था. सुषमा स्वराज हरदेव शर्मा और लक्ष्मी देवी की बेटी थीं. सुषमा स्वराज के माता-पिता पाकिस्तान के लाहौर के धर्मपुर से थे. बाद में वे हरियाणा में आकर बस गए थे. पाकिस्तान के अपने आखिरी दौरे में सुषमा धर्मपुर भी गई थीं. सुषमा ने अंबाला कैंटोनमेंट के सनातन धर्म कॉलेज से शुरुआती शिक्षा पूरी की. उन्होंने संस्कृत और राजनीति विज्ञान में बैचलर डिग्री ली थी, उसके बाद पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़ से कानून की पढ़ाई की थी. 1973 में सुषमा स्वराज ने सुप्रीम कोर्ट में वकील के तौर पर प्रैक्टिस शुरू की. वह बड़ौदा डायनामाइट मामले (1975-77) में स्वराज कौशल के साथ जॉर्ज फर्नांडीस की लीगल टीम का हिस्सा थीं. सुषमा स्वराज ने 13 जुलाई 1975 को स्वराज कौशल के साथ शादी की थी.

1970 में सुषमा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) में शामिल हुई थीं और यहीं से उनका सियासी सफर शुरू हुआ था. सुषमा स्वराज के पिता भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख सदस्य थे. 1977 में जनता पार्टी की सरकार में 25 वर्षीय सुषमा स्वराज सबसे युवा कैबिनेट मंत्री बन गई थीं. 27 वर्ष की उम्र में सुषमा जनता पार्टी की हरियाणा प्रदेश अध्यक्ष बनने वाली पहली महिला थीं. वह किसी राजनीतिक पार्टी की पहली महिला प्रवक्ता भी बनीं. इसके अलावा, बीजेपी की पहली महिला मुख्यमंत्री, विपक्ष की पहली महिला महासचिव, केंद्रीय कैबिनेट मंत्री, प्रवक्ता और विदेश मंत्री बनने का भी खिताब उनके नाम ही है. 1998 में (13 अक्टूबर-3 दिसंबर) तक काफी कम समय के लिए वह दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं.

अयोध्या विवाद में जब CJI ने पूछा- रामजन्मभूमि में एंट्री कहां से होती है?

अयोध्या में रामजन्मभूमि और बाबरी मस्जिद विवाद पर 6 अगस्त से सुप्रीम कोर्ट में रोजाना सुनवाई शुरू हो गई है. मंगलवार को पहले दिन निर्मोही अखाड़े ने अपनी बात रखी. इस दौरान निर्मोही अखाड़े ने वहां पर पूजा का अधिकार मांगा, इसी बीच चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने निर्मोही अखाड़े से पूछ लिया कि रामजन्मभूमि में एंट्री कहां से होती है?

दरअसल, इस मसले पर जब सुनवाई शुरू हुई तो सबसे पहले निर्मोही अखाड़े ने वहां पर अपनी बात रखनी शुरू की. निर्मोही अखाड़ा ने कहा कि उन्हें वहां पूजा का अधिकार मिलना चाहिए. लेकिन तभी चीफ जस्टिस ने इस मामले से जुड़े कुछ बेसिक सवाल पूछने शुरू किए, CJI के साथ-साथ जस्टिस नजीर ने भी निर्मोही अखाड़े से कहा कि आप सबसे पहले अपनी बात रख रहे हैं, इसलिए पूरे मामले को शुरू से बताएं.

निर्मोही अखाड़े ने अदालत से कहा कि हमसे पूजा का अधिकार छीना गया है. सुप्रीम कोर्ट ने बहस के दौरान निर्मोही अखाड़े से पूछा कि क्या कोर्टयार्ड के बाहर सीता रसोई है? इसके अलावा चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि हमारे सामने वहां के स्ट्रक्चर पर स्थिति साफ करें.

चीफ जस्टिस ने पूछा कि वहां पर एंट्री कहां से होती है? सीता रसोई से या फिर हनुमान द्वार से? इसके अलावा CJI ने पूछा कि निर्मोही अखाड़ा कैसे रजिस्टर हुआ?

आपको बता दें कि निर्मोही अखाड़ा जब अपनी बात अदालत में रख रहा था, उसी समय मुस्लिम पक्ष की ओर से राजीव धवन ने उन्हें टोक दिया. इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि आपको आपका समय मिलेगा, बीच में ना टोकें और कोर्ट की गरिमा का ध्यान रखें.

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या मसले पर पहले मध्यस्थता करने का वक्त दिया था, लेकिन मध्यस्थता से इस मसले का हल नहीं निकल पाया. जिसके बाद अदालत ने इस पर रोजाना सुनवाई का आदेश दिया था.

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जानिए, क्या है कश्मीर का ताजा हाल

जम्मू कश्मीर से धारा 370 और 35A खत्म होने के बाद पूरी दुनिया की नजर कश्मीर पर है. 5 अगस्त को भारत सरकार द्वारा इस मामले पर बड़ा फैसला लेने के बाद हर कोई जानना चाहता है कि आगे क्या होगा. हम आपको इस खबर में बताएंगे कश्मीर का ताजा हाल. साथ ही यह भी बताएंगे कि आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर क्या हो सकता है.

  • आर्टिकल 370 हटाए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा कड़ी कर दी गई है.
  • कश्मीर में कर्फ्यू लगा दिया गया है, जबकि जम्मू में धारा 144 लागू है.
  • पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती और नेशनल कांफ्रेंस के नेता उमर अबदुल्ला के गिरफ्तारी की खबर आ रही है. पहले उनको नजरबंद किया गया था.
  • अधिकारियों का कहना है कि कश्मीर घाटी के पास तीन महीने से ज्यादा का चावल, गेहूं, मीट, अंडे और ईंधन है. प्रदेश में किसी भी तरह के खाने की कमी नहीं होगी.
  • राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल खुद श्रीनगर में मौजूद हैं और हालात पर नजर रखे हुए है. कहा जा रहा है कि अजित डोभाल केंद्र के फैसले को सही तरीके से लागू होने तक वहीं रहेंगे.
  • संसद में इस बिल को पेश करने और फिर इसे पारित करा लेने के बाद गृहमंत्री अमित शाह के तीन दिवसीय कश्मीर दौरे पर जाने की खबर है. अमित शाह संसद का सत्र खत्म होने के बाद घाटी का दौरा करेंगे.
  • कश्मीर घाटी के नेता इस बिल को असंवैधानिक बताकर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की तैयारी में हैं. उनका तर्क है कि संविधान में आर्टिकल 370 को खत्म करने के लिए कुछ विशिष्ट प्रावधान तय हैं और सरकार ने इसकी अनदेखी की है.

आम लोगों की बात करें तो देश के आम नागरिकों में सरकार के इस कदम से उत्साह है. अनुच्छेद 370 को रद्द करना सही है या गलत इस बहस से इतर ज्यादातर लोग सरकार के फैसले के साथ दिख रहे हैं. सोशल मीडिया के जरिए लोग अपनी प्रतिक्रियाएं जारी कर रहे हैं, जिससे साफ पता चल रहा है कि लोगों के बीच इस फैसले का स्वागत किया जा रहा है. इससे पहले गृहमंत्री द्वारा संसद में इस बिल के पेश करने के बाद बहुजन समाज पार्टी ने इस फैसले का समर्थन किया. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी अनुच्छेद 370 पर सरकार के फैसले का स्वागत किया है.

हालांकि सरकार की नजर जम्मू कश्मीर में हालात पर बनी हुई है. देखना यह होगा कि जब जम्मू कश्मीर में कर्फ्यू में ढील होगी और वहां के आम लोगों की प्रतिक्रियाएं आनी शुरू होगी, तब आम कश्मीरी इस फैसले को लेकर क्या कहते हैं.

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क्या है कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के मायने

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जम्मू कश्मीर को लेकर केंद्र की मोदी सरकार ने ऐतिहासिक फैसला किया है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कश्मीर से अनुच्छेद 370 को खत्म करने की घोषणा कर दी है. आज 5 अगस्त को राज्य सभा में अपने एक बयान में अमित शाह ने भारी हंगामे के बीच अनुच्छेद 370 हटाने का प्रस्ताव पेश कर दिया. हालांकि गृह मंत्री ने अपनी घोषणा में अनुच्छेद 370 को पूरी तरह हटाने की बजाय भाग (1) को कायम रखा है. सरकार के नए फैसले के मुताबिक जम्मू कश्मीर अब केंद्र शासित प्रदेश होगा. इसके साथ ही सरकार ने लद्दाख को भी जम्मू-कश्मीर से अलग कर दिया गया है. लद्दाख भी अब अलग केंद्र शासित प्रदेश होगा.

जाहिर है कि यह सरकार का एक बड़ा फैसला है और इस फैसले के बाद तमाम बहस शुरू हो गई है. इस खबर में हम आपको बताएंगे अनुच्छेद 370 से जुड़े तमाम सवालों के जवाब. हम आपको बताएंगे वो इतिहास जिसकी वजह से जम्मू कश्मीर अब तक तमाम अन्य राज्यों से अलग था और उसको विशेष राज्य का दर्जा मिला था.

सबसे पहले बात अनुच्छेद 370 की. आखिर अनुच्छेद 370 है क्या, जिसको लेकर इतना बवाल मचा है. और यह जम्मू कश्मीर को देश का हिस्सा होने के बावजूद देश से अलग कैसे करता है.

दरअसल गोपालस्वामी आयंगर ने अनुच्छेद 306-ए का प्रारूप पेश किया था. बाद में यही अनुच्छेद 370 बनी. इस अनुच्छेद के तहत जम्मू-कश्मीर को अन्य राज्यों से अलग अधिकार हासिल हुआ. 1951 में राज्य को संविधान सभा अलग से बुलाने की अनुमति दी गई. नवंबर 1956 में राज्य के संविधान का काम पूरा हुआ और 26 जनवरी 1957 को राज्य में विशेष संविधान लागू कर दिया गया.

जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 लागू होने के बाद यहां कई चीजें भारत के अन्य राज्यों से अलग हो गई. एक नजर इस पर भी डालते हैं-

Ø अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर को विशेष अधिकार देता है. इसके मुताबिक, भारतीय संसद जम्मू-कश्मीर के मामले में सिर्फ तीन क्षेत्रों-रक्षा, विदेश मामले और संचार के लिए कानून बना सकती है. इसके अलावा किसी कानून को लागू करवाने के लिए केंद्र सरकार को राज्य सरकार की मंजूरी चाहिए होती है.

Ø संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत 35A जोड़ा गया था जिसकी वजह से जम्मू कश्मीर के लोगों को दोहरी नागरिकता हासिल होती थी.

Ø अनुच्छेद 370 की वजह से जम्मू कश्मीर में अलग झंडा और अलग संविधान चलता है.

Ø इसके कारण कश्मीर में विधानसभा का कार्यकाल 6 साल का होता है, जबकि अन्य राज्यों में 5 साल का होता है.

Ø इसके कारण भारतीय संसद के पास जम्मू-कश्मीर को लेकर कानून बनाने के अधिकार बहुत सीमित हैं.

Ø अनुच्छेद 370 के कारण संसद में पास कानून जम्मू कश्मीर में तुरंत लागू नहीं होते हैं. शिक्षा का अधिकार, सूचना का अधिकार, मनी लांड्रिंग विरोधी कानून, कालाधन विरोधी कानून और भ्रष्टाचार विरोधी कानून कश्मीर में लागू नहीं है. इससे यहां ना तो आरक्षण मिलता है, ना ही न्यूनतम वेतन का कानून लागू होता है.

Ø इस अनुच्छेद के कारण जम्मू-कश्मीर पर संविधान का अनुच्छेद 356 लागू नहीं होता है. जिस कारण राष्ट्रपति के पास राज्य के संविधान को बर्खास्त करने का अधिकार नहीं था.

Ø जम्मू-कश्मीर में बाहर के लोग जमीन नहीं खरीद सकते थे.

Ø जम्मू-कश्मीर में महिलाओं पर शरियत कानून लागू होता था.

Ø जम्मू-कश्मीर की कोई महिला यदि भारत के किसी अन्य राज्य के व्यक्ति से शादी कर ले तो उस महिला की जम्मू-कश्मीर की नागरिकता खत्म हो जाती थी.

Ø जम्मू-कश्मीर में भारत के राष्ट्रध्वज या राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान अपराध नहीं था. और यहां सुप्रीम कोर्ट के आदेश भी मान्य नहीं होते थे.

Ø अनुच्छेद 370 के चलते कश्मीर में रहने वाले पाकिस्तानियों को भी भारतीय नागरिकता मिल जाती थी.

अब हम इस सवाल पर आते हैं कि अनुच्छेद 370 हटने के बाद अब क्या बदल जाएगा

Ø अनुच्छेद 370 हटने के बाद अब कश्मीर में अलग झंडा नहीं, बल्कि भारतीय तिरंगा फहराएगा.

Ø अब कश्मीर में अलग संविधान नहीं होगा, बल्कि जो संविधान पूरे देश के लिए वही कश्मीर के लिए भी.

Ø अब दोहरी नागरिकता नहीं होगी.

Ø अनुच्छेद 370 हटने के बाद विधानसभा का कार्यकाल 6 साल की बजाय अन्य राज्यों की तरह 5 साल का होगा.

Ø कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने के बाद अब कश्मीर में कोई भी जमीन खरीद सकेगा.

अनुच्छेद 370 को हटाने पर जिस तरह से बवाल हो रहा है, ऐसे में यह देखना होगा कि क्या यह आर्टिकल स्थायी था और इसे हटाया नहीं जा सकता था? असल में ऐसा नहीं है.

 
  •  Article 370 को हटाने को लेकर संविधान में दो बातें कहीं गई है. पहली बात ये है कि अनुच्छेद 370 को जम्मू कश्मीर विधानसभा की सहमति से संसद हटा सकती है, जबकि दूसरा प्रावधान है कि संविधान के अनुच्छेद 368 के तहत संसद दो तिहाई बहुमत से इसको समाप्त कर सकती है.
  •  Article 370 और Article 35A को लेकर संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप का कहना है कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 370 पूरी अस्थायी है और इस बात का जिक्र अनुच्छेद में ही किया गया है. सुभाष कश्यप के मुताबिक अनुच्छेद 368 संसद को संविधान के किसी भी अनुच्छेद में संशोधन करने या उसको हटाने का अधिकार देती है. ये ही अनुच्छेद 370 के बारे में कई गुत्थियां सुलझाता है.

इस पूरे मामले में सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा क्यों मिला और अनुच्छेद 370 अस्तित्व में कैसे आया. क्योंकि बिना उस इतिहास को जाने बिना इस पूरे मामले पर राय बनाना आसान नहीं है. इसके लिए हम आपको इतिहास में ले चलते हैं.

तीन जून, 1947 को भारत के विभाजन की घोषणा के समय तमाम राजे-रजवाड़े यह फैसला ले रहे थे कि उन्हें किसके साथ जाना है. उन्हें यह चुनना था कि वह भारत के साथ बने रहना चाहते हैं या फिर भारत से अलग हुए हिस्से पाकिस्तान के साथ जाना चाहते हैं.

उस वक़्त जम्मू-कश्मीर दुविधा में था. 12 अगस्त 1947 को जम्मू-कश्मीर के महाराज हरि सिंह ने भारत और पाकिस्तान के साथ ‘स्टैंड्सस्टिल एग्रीमेंट’ पर हस्ताक्षर किया. इस एग्रीमेंट के मुताबिक महाराजा हरि सिंह ने निर्णय किया कि जम्मू कश्मीर न भारत में समाहित होगा और न ही पाकिस्तान में, बल्कि जम्मू-कश्मीर स्वतंत्र रहेगा. दोनों पक्षों ने इस समझौते को मान लिया लेकिन पाकिस्तान ने इसका सम्मान नहीं किया और उसने कश्मीर पर हमला कर दिया. पाकिस्तान में जबरन शामिल किए जाने से बचने के लिए महाराजा हरि सिंह ने 26 अक्टूबर, 1947 को ‘इन्स्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन’ पर हस्ताक्षर किया.

इसमें कहा गया है कि जम्मू-कश्मीर भारत का हिस्सा होगा लेकिन उसे ख़ास स्वायत्तता मिलेगी. इसमें साफ़ कहा गया है कि भारत सरकार जम्मू-कश्मीर के लिए केवल रक्षा, विदेशी मामलों और संचार माध्यमों को लेकर ही नियम बना सकती है.अनुच्छेद 35-ए 1954 में राष्ट्रपति के आदेश के बाद आया. यह ‘इन्स्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन’ की अगली कड़ी थी. ‘इन्स्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन’ के कारण भारत सरकार को जम्मू-कश्मीर में किसी भी तरह के हस्तक्षेप के लिए बहुत ही सीमित अधिकार मिले थे.

कश्मीरियों के साथ-साथ भारत के तमाम उदारवादी बुद्धिजीवी कहते हैं कि चूंकि जम्मू-कश्मीर भारत में इसी शर्त पर आया था इसलिेए इसे मौलिक अधिकार और संविधान की बुनियादी संरचना का हवाला देकर चुनौती नहीं दी जा सकती है. उनका मानना है कि यह भारत के संविधान का हिस्सा है कि जम्मू-कश्मीर में भारत की सीमित पहुंच होगी.

उनका कहना है कि जम्मू-कश्मीर का भारत में पूरी तरह से कभी विलय नहीं हुआ और यह अर्द्ध-संप्रभु स्टेट है. यह भारत के बाक़ी राज्यों की तरह नहीं है. अनुच्छेद 35-ए ‘इन्स्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन’ का पालन करता है और इस बात की गारंटी देता है कि जम्मू-कश्मीर की स्वायत्तता बाधित नहीं की जाएगी.

जबकि दूसरा पक्ष जिसमें भाजपा भी शामिल है, का मानना है कि अनुच्छेद 35-ए को संविधान में जिस तरह से जोड़ा गया वो प्रक्रिया के तहत नहीं था. संविधान में अनुच्छेद 35-ए को जोड़ने के लिए संसद से क़ानून पास कर संविधान संशोधन नहीं किया गया था, बल्कि तात्कालिक राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने इसे राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद का यह फैसला विवादित होने की बात कही जाती है. इसी को आधार बनाकर गृह मंत्री अमित शाह ने जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 को खत्म करने की घोषणा कर दी है और अब जम्मू कश्मीर केंद्र शासित राज्य होगा.

हालांकि जैसा कि हमने खबर की शुरुआत में ही बताया था कि अनुच्छेद 370 को पूरी तरह से नहीं हटाया गया है बल्कि गृहमंत्री ने अपनी घोषणा में कहा है कि अनुच्छेद 370 का खंड एक मान्य होगा. दरअसल अनुच्छेद 370 तीन भागों में बंटा हुआ है. जम्मू-कश्मीर के बारे में अस्थाई प्रावधान है; जिसको या तो बदला जा सकता है या फिर हटाया जा सकता है. गृह मंत्री के बयान के अनुसार अनुच्छेद 370 (2) और (3) को ही हटाया गया है, जबकि 370(1) अब भी कायम है. 370(1) के प्रावधान के मुताबिक जम्मू कश्मीर सरकार से सलाह करके राष्ट्रपति के आदेश द्वारा संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों को जम्मू और कश्मीर पर लागू किया जा सकता है. जबकि 370 (3) में प्रावधान था कि 370 को बदलने के लिए जम्मू और कश्मीर संविधान सभा की सहमति चाहिए. अब चूंकि जम्मू कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लागू है और अधिकार राज्यपाल के हाथ में है ऐसे में राष्ट्रपति आसानी से राज्यपाल के सलाह से जम्मू कश्मीर में संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों को लागू कर सकती है. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि 35A के बारे में यह तय नहीं है कि वह खुद खत्म हो जाएगा या फिर उसके लिए संशोधन करना पड़ेगा. अनुच्छेद 370 को लेकर सरकार का फैसला कश्मीर और देश के लिए सही होगा या गलत यह तो आने वाला वक्त बताएगा.

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भारत की जीत और रोहित शर्मा के रिकॉर्ड्स

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नई दिल्ली। कप्तान विराट कोहली से अनबन की खबरों से ‘बेखबर’ उप कप्तान रोहित शर्मा वने अपनी शानदार फॉर्म बरकरार रखी है. भारत के इस स्टार ओपनर ने रविवार को वेस्टइंडीज के खिलाफ दूसरे टी20 मैच में शानदार अर्धशतक बनाया. इसके साथ ही उन्होंने तीन विश्व रिकॉर्ड अपने नाम कर लिए. रोहित शर्मा के नाम टी20 क्रिकेट में सबसे अधिक रन बनाने का रिकॉर्ड भी है. वे अब क्रिकेट के इस सबसे छोटे फॉर्मेट में सबसे अधिक छक्के लगाने वाले खिलाड़ी भी बन गए हैं.

भारत और वेस्टइंडीज के बीच टी20 क्रिकेट का यह मुकाबला अमेरिकी शहर लॉडरहिल में खेला जा रहा है. भारत ने दूसरे मैच में टॉस जीतकर पहले बैटिंग की. रोहित शर्मा और शिखर धवन ने 67 रन जोड़कर भारत को बेहतरीन शुरुआत दी. धवन 23 रन बनाकर आउट हुए.

क्रिस गेल का रिकॉर्ड तोड़ा रोहित शर्मा ने इस मैच में 51 गेंदों पर 67 रन बनाए. भारतीय बल्लेबाज ने अपनी इस पारी में तीन छक्के जमाए. इसके साथ ही उन्होंने टी20 क्रिकेट में अपने छक्कों की संख्या 107 पहुंचा दी. वे अब टी20 क्रिकेट में सबसे अधिक छक्के लगाने के मामले में क्रिस गेल से आगे निकल गए हैं. वेस्टइंडीज के क्रिस गेल (Chris Gayle) ने 58 मैचों में 105 छक्के लगाए हैं. रोहित ने 96 मैचों में 107 छक्के लगाए हैं.

रोहित शर्मा की 17वीं फिफ्टी रोहित शर्मा ने इस मैच में 40 गेंद पर अर्धशतक बनाया. यह रोहित का टी20 क्रिकेट में 17वां अर्धशतक है. वे चार शतक भी लगा चुके हैं. इसके साथ ही वे 50 से अधिक रन की पारी खेलने के मामले में विराट कोहली से आगे निकल गए हैं. रोहित शर्मा की अब 50 रन से अधिक की 21 पारियां हैं. विराट कोहली ऐसी 20 पारियां खेल चुके हैं.

2400 रन बनाने वाले पहले बल्लेबाज रोहित शर्मा टी20 क्रिकेट में पहले ही सबसे अधिक रन बनाने वाले बल्लेबाज थे. उन्होंने इस मैच में अपने रनों की संख्या 2400 से अधिक पहुंचा दी है. वे यह आंकड़ा छूने वाले दुनिया के पहले बल्लेबाज हैं. उन्होंने 96 मैचों की 88 पारियों में 32.72 की औसत से 2422 रन बनाए हैं.

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गृह मंत्री अमित शाह ने पेश किया कश्मीर से धारा 370 हटाने की सिफारिश

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नई दिल्ली। जम्मू कश्मीर को लेकर मोदी सरकार ने ऐतिहासिक फैसला किया है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कश्मीर से धारा 370 हटाने की सिफारिश कर दी है। राज्य सभा में अपने एक बयान में अमित शाह ने भारी हंगामे के बीच संकल्प पेश करते हुए यह बात कही. शाह के इस बयान के बाद राज्यसभा में जमकर हंगामा शुरू हो गया. शाह ने कहा कि 370 के सभी खंड राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद लागू नहीं होंगे.

सरकार ने कहा है कि जम्मू कश्मीर अब केंद्र शासित प्रदेश होगा. इसके साथ ही सरकार ने लद्दाख को भी जम्मू-कश्मी से अलग कर दिया गया है. लद्दाख अब अलग केंद्र शासित प्रदेश होगा. सरकार ने फैसला किया है कि अब अनुच्छेद 370 का सिर्फ खंड एक रहेगा. सरकार के इस फैसले के बाद कश्मीर अब अति विशेष राज्य नहीं रहेगा.

इससे पहले जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्रियों फारुख अब्दुल्ला, उमर अबदुल्ला और महबूबा मुफ्ती को उनके घरों में नजरबंद कर दिया गया है. इसके बाद से ही अंदेशा जताया जा रहा था कि सरकार जम्मू कश्मीर को लेकर बड़ा फैसला करने वाली है. इस फैसले के पहले ही सरकार ने कश्मीर के हालात को काबू में रखने के लिए सुरक्षा बलों की कई कंपनियों को पहले ही कश्मीर रवाना किया जा चुका था.

भारतीय सैनिकों ने घुसपैठियों को किया ढेर, पाकिस्तान से बोले शव ले जाओ

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जम्मू। भारतीय सेना ने एक बार फिर से भारत में घुसने की घुसपैठियों की कोशिश को नाकाम कर दिया. सेना ने जम्मू-कश्मीर के केरन सेक्टर में बॉर्डर एक्शन टीम की घुसपैठ की कोशिशों को नाकाम कर दिया. इस दौरान दोनों ओर से जबरदस्त मुठभेड़ हुई, जिसमें भारतीय सेना पाकिस्तानी सेना के तकरीबन आधा दर्जन BAT कमांडो/आतंकियों को मार गिराया. इसके बाद भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना को मारे गए आतंकियों का शव ले जाने का प्रस्ताव भेजा है. भारतीय सेना ने यह भी कहा कि शवों को ले जाने के लिए पाकिस्तानी सेना को सफेद झंडे के साथ आना होगा. हालांकि इस घटना से खार खाए पाकिस्तान की तरफ से अभी तक कोई जवाब नहीं आया है. भारतीय सेना ने घुसपैठियों के शव की तस्वीर भी जारी की थी.

वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार को रैमॉन मैग्सेसे अवार्ड

नई दिल्ली। पत्रकारिता जगत में अपने अलग अंदाज के लिए आम लोगों में लोकप्रिय रवीश कुमार को वर्ष 2019 का रैमॉन मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। रवीश एनडीटीवी इंडिया के मैनेजिंग एडिटर है. वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार को ये सम्मान हिंदी टीवी पत्रकारिता में उनके योगदान के लिए मिला है. ‘रैमॉन मैगसेसे’ को एशिया का नोबेल पुरस्कार भी कहा जाता है. इससे पहले रवीश कुमार को पत्रकारिता का प्रतिष्ठित रामनाथ गोयनका अवार्ड भी मिल चुका है।
पुरस्कार संस्था ने ट्वीट कर बताया कि रवीश कुमार को यह सम्मान “बेआवाजों की आवाज बनने के लिए दिया गया है.” रैमॉन मैगसेसे अवार्ड फाउंडेशन ने इस संबंध में कहा, “रवीश कुमार का कार्यक्रम ‘प्राइम टाइम’ ‘आम लोगों की वास्तविक, अनकही समस्याओं को उठाता है.” साथ ही प्रशस्ति पत्र में कहा गया, ‘अगर आप लोगों की अवाज बन गए हैं, तो आप पत्रकार हैं.’ रवीश कुमार ऐसे छठे पत्रकार हैं जिनको यह पुरस्कार मिला है. इससे पहले अमिताभ चौधरी (1961), बीजी वर्गीज (1975), अरुण शौरी (1982), आरके लक्ष्मण (1984), पी. साईंनाथ (2007) को यह पुरस्कार मिल चुका है.
बता दें कि रैमॉन मैगसेसे पुरस्कार एशिया के व्यक्तियों और संस्थाओं को उनके अपने क्षेत्र में विशेष रूप से उल्लेखनीय कार्य करने के लिए प्रदान किया जाता है. यह पुरस्कार फिलीपीन्स के भूतपूर्व राष्ट्रपति रैमॉन मैगसेसे की याद में दिया जाता है.

आंगनवाड़ी में महिला पर्यवेक्षक के 3034 पदों पर निकली वैकेंसी, ऐसे करें आवेदन

समाज कल्याण विभाग (SWD) बिहार ने एकीकृत बाल विकास सेवा प्रोग्राम के तरह आंगनवाड़ी में महिला पर्यवेक्षक (लेडी सुपरवाइजर) के पदों पर बंपर वैकेंसी निकाली हैं. भर्ती कुल 3034 पदों पर होनी है. इन पदों पर भर्ती के लिए ऑनलाइन आवेदन की प्रक्रिया 29 जुलाई 2019 को शुरू हुई. आवेजन करने की आखिरी तारीख 5 अगस्त 2019 है. इस वैकेंसी के माध्यम से बिहार राज्य के विभिन्न जिलों में ब्लॉक स्तर पर आंगनबाड़ी निरीक्षण हेतु सुपरवाइजर की भर्ती की जाएगी अगर आप इन पदों पर आवेदन करना चाहते हैं तो नीचे दी गई जानकारी को ध्यान से पढ़ने के बाद ही अप्लाई करें.

   पद का नाम                                    कुल पदों की संख्या महिला पर्यवेक्षक                                    3034 पद

महत्वपूर्ण तारीख

  • ऑनलाइन आवेदन शुरू होने की तारीख- 29 जुलाई 2019
  • ऑनलाइन आवेदन बंद होने की तारीख- 5 अगस्त 2019

योग्यता

  • किसी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन किया हो.

चयन प्रक्रिया

  • उम्मीदवारों का चयन चयन मेरिट लिस्ट के आधार पर किया जाएगा.

सैलरी

  • 12,000 रुपए प्रति माह

ऐसे करें आवेदन:- इंटीग्रेटेड चाइल्ड डेवलपमेंट सर्विस (ICDS) की आधिकारिक वेबसाइट fts.bih.nic.in पर जाकर आवेदन कर सकते हैं.

Noida Metro में निकली भर्तियां

बीजेपी ने आरोपी विधायक कुलदीप सेंगर को दिखाया पार्टी से बाहर का रास्ता

भारतीय जनता पार्टी ने उन्नाव रेप केस के आरोपी विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को पार्टी से निकाल दिया है. इससे पहले कुलदीप सिंह को बीजेपी ने निलंबित किया था लेकिन रेप पीड़िता के साथ हुए सड़क हादसे के बाद विधायक सेंगर को पार्टी ने बाहर का रास्ता दिखाया है.

उन्नाव दुष्कर्म पीड़िता की चाची का अंतिम संस्कार बुधवार को शुक्लागंज गंगाघाट में किया गया. पीड़िता के चाचा ने मुखाग्नि दी. इस दौरान जिला प्रशासन का पूरा अमला मौजूद रहा. इसके अलावा पीड़िता का पूरा परिवार गंगाघाट पर मौजूद रहा. चिता में आग लगते ही पुलिस ने चाचा को ले चलने का दबाव बनाया. इस पर पीड़िता के चाचा बिफर पड़े और पूरी चिता जलने के बाद ही जाने का आग्रह किया. मौके पर भारी बल के साथ पुलिस और प्रशासनिक अफसर भी मौजूद थे. पुलिस ने घाट पर आए अन्य लोगों को शवों की अंत्येष्टि से फिलहाल रोक रखा था.

पीड़िता के चाचा ने घर वालों को हिम्मत बंधाई और कहा, “इस लड़ाई में हम पूरी मजबूती के साथ खड़े हैं. न्याय की लड़ाई में पीछे नहीं हटेंगे. विधायक कुलदीप सिंह सेंगर समेत सभी आरोपितों को सजा दिलाकर ही दम लेंगे.”

उन्नाव दुष्कर्म पीड़िता की सड़क दुर्घटना की जांच कर रही केंद्रीय जांच ब्यूरो की टीम ने रायबरेली पहुंच कर जांच में पाया कि पीड़िता की कार से टकराने वाला ट्रक 70 से 80 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से चल रहा था, वहीं स्विफ्ट डिजायर कार 100 किलोमीटर प्रतिघंटा से ज्यादा की रफ्तार से चल रही थी. दुर्घटना में पीड़िता की चाची और मौसी की मौत हो गई थी और पीड़िता और उसका वकील गंभीर रूप से घायल हो गए थे.

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दिल की बात- बिहार और कथित डबल इंजन

जिस देश या राज्य की आबादी का जितना प्रतिशत ग़रीबी और हाशिए के अंतिम पायदान पर खड़ा होता है उस राज्य के लिए एक संवेदनशील सरकार का होना उतना ही आवश्यक होता है. हर नीतिगत निर्णय, सरकार व प्रशासन की चपलता या शिथिलता का सीधा-सीधा कमज़ोर वर्गों और ग़रीबों की सुरक्षा, आय और जीवन स्तर पर पड़ता है. बिहार एक ऐसा ही राज्य है जिसकी बहुसंख्यक आबादी की आय राष्ट्रीय औसत से कम है. और यह तब है जब लगभग पिछले 14 वर्षों से ऐसी सरकार रही है जो अपने आप को सुशासन या डबल इंजन की सरकार कहने से नहीं अघाती! उद्योग धंधे, पूँजी निवेश, रोजगार के अवसर तो नदारद रहे, फिर भी स्वघोषित सुशासन! शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाएं व निर्धन नागरिकों का जीवन स्तर सहारा अफ्रीका से भी बदतर! कानून व्यवस्था नाम की चीज़ नहीं, ऊपर से भ्रष्टाचार, भू माफिया और महंगाई की मार सहते विकल्पहीन नागरिक! सुशासन का अर्थ कोई गुणात्मक सुधार नहीं बल्कि उसके पहले के यानि आज से 25-30 वर्ष पूर्व के कार्यकाल का हौआ खड़ा करने और अपनी हर नाकामी पर उसे कोसने की आदत भर है.

एक सरकार का बर्ताव नागरिकों के लिए उसी प्रकार का अपेक्षित है जैसा एक माँ का अपनी संतानों के लिए होता है. सदैव उनका दर्द समझना और उनके भविष्य व हितों के प्रति पूरी संवेदना से सजग होना. बिहार में चमकी बुखार की भेंट में प्रतिवर्ष की भाँति फिर 200 से अधिक बच्चे चढ़ गए और सारी व्यवस्था, सरकार और प्रशासन खानापूर्ति कर कुछ सुधार करने का नहीं बल्कि प्रकृति को दोष देने का प्रयास करता रहा.

चरमराती व्यवस्था, मदमस्त अफ़सर व सरकार और दोनों के बोझ तले कराहती जनता! इसी तरह लू की चपेट में भी आकर 200 से अधिक नागरिकों ने अपने प्राण गँवा दिए! सरकारी अस्पताल बेहतर इलाज देने तक की स्थिति में नहीं! हर साल राज्य में कुछ क्षेत्र सूखाग्रस्त रह जाते हैं और कुछ बाढ़ की चपेट में आकर आम जनजीवन को अस्त व्यस्त कर देते हैं. दोनों ही स्थिति में इसे राज्य का आम नागरिक और गरीब किसान अकेले झेलता है. इन प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए सरकार हर बार पूरी तरह से असमर्थ और उदासीन दिखती है. अगर प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुकसान से सरकार गरीबों को बचा ही नहीं सकतीं तो सरकार चुनने का भला क्या उद्देश्य रह जाता है?

प्राकृतिक आपदाएँ जो बर्बादी का मंज़र सरकारी लापरवाही की देख रेख में असहाय गरीबों पर थोपती है वो तो एक तरफ सरकारी भ्रष्टाचार, अफसरशाही, घोटालेबाज़ी जो अत्याचार कर रही है उसकी बात ना ही की जाए तो बेहतर! पिछले कुछ वर्षों में 40 से अधिक घोटाले, बालिका गृहों में मासूम बच्चियों से सरकारी संरक्षण में हैवानियत, हर जिम्मेदारी से भागती और चारों खाने चित्त होती योजनाओं पर पीठ थपथपाती सरकार!

ऐसे प्रदेश में नागरिक किस आधार पर आशावादी होकर भविष्य की ओर सकारात्मकता से देख सकते हैं? यह नागरिकों को खुद सोचना होगा! सृजन घोटाले या बालिका गृह कांड के अभियुक्तों पर आज तक बिहार पुलिस या CBI हाथ नहीं डाल पाई है क्योंकि सत्तारूढ़ दलों के कई बड़े नाम इन कांडों में सम्मिलित है. यह सब बिहार की जनता आँख मूंदे सह रही है.

आम जनता को भी चाहिए कि वो विज्ञापन के बदले एडिट की हुई ख़बरों के प्रोपगैंडा को सत्य ना मानकर अपने दैनिक जीवन को प्रभावित करने वाली अपनी मूल समस्याओं जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार, कृषि, विकास, समता, समभाव इत्यादि को ही ध्यान में रखकर सरकार का चयन करे. अगर हम चुनावों में हिंदू-मुसलमान और छद्म राष्ट्रवाद के मुद्दे को प्राथमिकता देंगे तो कोई क्यों हमारी समस्याओं का निराकरण करने की ज़रूरत महसूस करेगा?

विगत 5 साल तक किसान कभी समर्थन मूल्य तो कभी खाद, बीज, उचित हर्जाने के लिए कभी मार्च, तो कभी आंदोलन करते रहे तो कभी सड़कों पर सरकारी उदासीनता से निराश दूध, अनाज, फल, सब्जियां फेंकते रहे लेकिन चुनावों के दिन किसानों के खातों में कुछ नाम मात्र यानि 17 रु प्रतिदिन के डालकर केंद्र सरकार ने प्रलोभन देने की चाल चली.

अगले 5 साल में अगर कर्ज़ के तले आत्महत्या करने के लिए कई किसान मजबूर हुए तो उसका दोषी कौन होगा? जब तक देश को समझ आएगा कि ₹6000/वर्ष किसी पार्टी, सरकार या व्यक्ति विशेष का नहीं, बल्कि उन्हीं का पैसा, अप्रत्यक्ष रूप से उन्हीं की जेब से निकाल कर उन्हें उपकार बता कर दिया जा रहा है तब तक उनके जीवन के 5 और वर्ष खत्म हो चुके होंगे! सरकार की असली दरियादिली किसानों पर नहीं उन उद्योगपतियों पर फूटती है जिनके अरबों रुपये का कर्ज़ यह सरकार बिना एक पल भी सोचे माफ़ कर देती है. सरकार की प्राथमिकता ग़रीब नहीं, वे धन्ना सेठ हैं जिनके काले धन एर इलेक्ट्रोल बॉंड से ये चुनाव लड़ते हैं और उन्हीं को लाभ पहुंचाने के लिए पूरे 5 साल नागरिकों का खून चूसते हैं.

तथाकथित सुशासन की संवेदनहीन सरकार नाकामियों और घोटालों की सरकार है जो अपनी हर नाकामी के लिए अपने से पहले की सरकार को दोषी ठहराती है, उसी पर ठीकरा फोड़ती है. सुशासन मतलब कोई सकारात्मक बदलाव या कोई गुणात्मक सुधार नहीं, बल्कि तथाकथित जंगलराज का अनर्गल दोषारोपण है. अगर आंकड़ों की बात करें तो आँकड़े साफ साफ दिखाते हैं कि कानून व्यवस्था पिछले 13-14 वर्षों में बद से बदतर होती चली गयी. अर्थव्यवस्था की बात हो तो 90 के दशक से लागू हुए उदारीकरण की नीति के कारण 2005 के बाद पूरे देश के सकल घरेलू उत्पाद और वृद्धि दर में भारी उछाल आने लगा केंद्र की आय, राज्यों की आय और राज्यों को केंद्र से मिलने वाली मदद में 90 के दशक के मुकाबले भारी उछाल आया और जिसका नतीजा पूरे देश ने देखा.

अगर बिहार में सचमुच 2005 के बाद सुशासन का आगमन हुआ तो नीतीश जी बताएँ कि किस मानक में बिहार आज किस राज्य से आगे है? प्रति व्यक्ति आय, स्वास्थ्य, शिक्षा, जीवन स्तर, रोज़गार, पलायन- किसमें बिहार किस राज्य से आगे है? हर मानक में हर राज्य से पीछे, फिर भी सुशासन? 14 साल के तथाकथित सुशासन और डबल इंजन वाली सरकार के बाद अब तो और भी फ़िसड्डी राज्य हो गया है.

बिहार की 60 फ़ीसदी आबादी युवा है. अब बिहार को रूढ़िवादी नहीं बल्कि उनके सपनों और आकांक्षाओं से क़दमताल करने वाली नयी सरकार की ज़रूरत है.

तेजस्वी यादव Read it also-चंद्रयान-2 लॉन्चिंग: मिशन के वो 15 सबसे मुश्किल मिनट जब धड़कनें थम जाएंगी

जयंती विशेषः दुनिया की 27 भाषाओं में छपने वाले महान साहित्यकार थे अण्णा भाऊ साठे

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स्कूली शिक्षा के शुरुआती दिनों में ही मुझे रविन्द्र नाथ टैगोर का नाम पता चल गया था. लेकिन अण्णा भाऊ साठे का नाम जानने में मुझे अगले 20 सालों तक और इंतजार करना पड़ा. अण्णा भाऊ साठे का नाम मुझे तब पता चला जब मैं महाराष्ट्र के एक अखबार से जुड़ा और महाराष्ट्र के अम्बेडकरवादियों के संपर्क में आया. और मैं हैरान रह गया कि आखिर इतना बड़े साहित्यकार की कहानी देश के भीतर एक राज्य तक ही क्यों सीमित है. अण्णा भाऊ साठे ऐसे महान साहित्यकार हैं, जिनकी प्रतिभा का डंका दुनिया के 27 देशों में बजता था. लेकिन भारतीय साहित्यकारों के बीच वह अछूत हैं.

जी हां, अण्णा भाऊ साठे, जिन्होंने अपनी कलम की मशाल बनाकर दलित, मजदूर, गरीब, झुग्गी-झोपड़पट्टी वासियों की समस्या को विश्व के पटल पर रखा. एक अगस्त को इस महानायक की जयंती होती है. महाराष्ट्र के सांगली जिले के वालवा तहसील के वाटे गांव में बेहद गरीब, दलित–मातंग परिवार में एक जनवरी 1920 को अण्णा भाऊ साठे का जन्म हुआ था. पहले उनका नाम तुकाराम रखा गया था लेकिन बाद में वह अण्णा भाऊ नाम से जाने गये.

उनके जीवन की सबसे क्रांतिकारी घटना यह रही कि अण्णा भाऊ स्कूली शिक्षा नहीं ले पाएं. सड़क किनारे दुकानों पर लगे साइन बोर्ड पढ़कर उन्होंने अक्षरों को पहचानना सीखा. उन्होंने खुद साक्षर होकर कलम थाम लिया और विश्वविख्यात साहित्यकार बने. बिना किसी युनिवर्सिटी में गए विश्वस्तरीय साहित्य रचने वाले अण्णाभाऊ अपने दौर के इकलौते साहित्यकार हैं. विश्व के 27 भाषाओं में छपने वाला साहित्यकार विश्वविख्यात तो बन गया, लेकिन उन्हें अपने देश भारत में ही वो ख्याति नहीं मिली, जिसके वह हकदार थे.

अण्णा भाऊ ने अपने जीवन में कई महत्वपूर्ण साहित्य की रचना की. उनके 20 कहानी संग्रह, नाटिका, 12 लोकनाट्य, एक यात्रा वृतांत, 30 उपन्यास, 10 लोकप्रिय पोवाडे के साथ ही अनेक साहित्य कृतिया प्रकाशित हुए. उनके उपन्यास पर 8 फिल्में भी बनीं. उनके द्वारा लिखे साहित्य का रशियन, फ्रेंच, अंग्रेजी के साथ देश-विदेश की 27 भाषाओं में अनुवाद प्रकाशित हुआ. अण्णा भाऊ की रचना को देश-विदेश के अनेक पुरस्कार-सम्मान प्राप्त हुए. कहा तो यह भी जाता है कि रूस में अण्णाभाऊ के साहित्य के इतना पसंद किया गया कि भारत और रूस के आपस के संबंध ज्यादा बेहतर हो गए.

साहित्य के अलावा उनके जीवन का एक पहलू आंदोलनकारी का भी था. मुंबइ के दादर स्थित मोरबाग कपड़ा मिल में 1936-37 में मजदूरी करते हुए वो श्रमिक आंदोलन से जुड़ गए. उस दौरान वह रशियन साम्यवादी क्रांति से प्रभावित थे. अण्णाभाऊ साठे ने अपने गीत एवं साहित्य को पूंजीवादी व्यवस्था और मजदूरों के शोषण के खिलाफ शस्त्र बनाया. अन्याय-अत्याचार के खिलाफ उनकी कलम आग उगलती थी. लोक नाटिका के माध्यम से उन्होंने सोये हुये समाज को जगाने का काम किया. अगर यह कहा जाए कि संयुक्त महाराष्ट्र के आंदोलन में उनकी कलम तथा वाणी ने जान फूंकी तो गलत नहीं होगा. मातंग समाज के बागी नायक ‘फकीरा’ के जीवन पर ‘फकीरा’ शीर्षक से ही लिखे उपन्यास से उन्हें काफी प्रसिद्धी मिली. इसके लिए उन्हें अनेक राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिले तथा उन्हें महाराष्ट्र का मैक्सिम गोर्की कहा गया.

हालांकि शुरू में कम्युनिस्ट प्रभाव वाले अण्णाभाऊ बाद में आम्बेडकरवादी विचारधारा के हो गए. बाद के दिनों में अण्णा भाऊ भारतीय वर्ण व्यवस्था के विनाश के लिए आंबेडकरी विचारधारा के अलावा अन्य विकल्प ना होने की बात कहते थे. उनका विचार था कि पूरी व्यवस्था बदले बगैर देश के गरीब, श्रमिक, दलित व किसानों को न्याय नहीं मिलेगा. यही वजह रही कि उन्होंने भारत की स्वतंत्रता पर ही सवाल उठाया था. 15 अगस्त 1947 को जब भारत आजाद हुआ और देश भर में जश्न मनाया जा रहा था, तब अण्णा भाऊ ने सवाल उठाया कि स्वाधीनता किसे मिली? पूंजीपति को या जन सामान्य को? ऐसे सवाल उठाकर अण्णाभाऊ ने जहां आमजन को विचलित कर दिया तो सरकार को परेशान कर दिया. हर प्रकार के अन्याय के खिलाफ बगावत अण्णा भाऊ का स्थायी भाव था. उनकी जयंती पर उनको नमन.

सैलरी में कटौती से परेशान चंद्रयान भेजने वाले वैज्ञानिक

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सदस्य मोतीलाल वोरा ने आज यानी 30 जुलाई को राज्यसभा में ISRO वैज्ञानिकों की तनख्वाह काटने का मामला उठाया. उन्होंने कहा कि जब पूरा देश चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग के बाद इसरो वैज्ञानिकों की सफलता पर उन्हें बधाई दे रहा है, ऐसे में भारत सरकार उनकी सैलरी काट रही है. इसरो वैज्ञानिकों के लिए दो अतिरिक्त वेतन वृद्धि की अनुमति राष्ट्रपति ने दी थी. ताकि देश में मौजूद बेहतरीन टैलेंट्स को इसरो वैज्ञानिक बनने का प्रोत्साहन मिले. साथ ही इसरो वैज्ञानिक भी प्रेरित हो सके.

मोतीलाल वोरा ने कहा कि ये अतिरिक्त वेतन वृद्धि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद 1996 में अंतरिक्ष विभाग ने लागू किया था. सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में कहा था कि इस वेतन वृद्धि को स्पष्ट तौर पर ‘तनख्वाह’ माना जाए. मोतीलाल वोरा ने सदन में अपील की कि केंद्र सरकार इसरो वैज्ञानिकों की तनख्वाह न काटे.

इसरो वैज्ञानिकों के संगठन द्वारा इसरो चीफ को लिखी गई चिट्ठी.
इसरो वैज्ञानिकों के संगठन द्वारा इसरो चीफ को लिखी गई चिट्ठी.

भारत सरकार ने Chandrayaan-2 की लॉन्चिंग से ठीक पहले ISRO वैज्ञानिकों की तनख्वाह में कटौती कर दी थी. केंद्र सरकार ने 12 जून 2019 को जारी एक आदेश में कहा है कि इसरो वैज्ञानिकों और इंजीनियरों को साल 1996 से दो अतिरिक्त वेतन वृद्धि के रूप में मिल रही, प्रोत्साहन अनुदान राशि को बंद किया जा रहा है. ये हाल तब है जब इसरो के वैज्ञानिकों की उपलब्धि पर पूरे देश को गर्व है.

इसरो के वैज्ञानिकों के संगठन स्पेस इंजीनियर्स एसोसिएशन (SEA) ने इसरो के चेयरमैन डॉ. के. सिवन को पत्र लिखकर मांग की थी कि वे इसरो वैज्ञानिकों की तनख्वाह में कटौती करने वाले केंद्र सरकार के आदेश को रद्द करने में मदद करें. क्योंकि वैज्ञानिकों के पास तनख्वाह के अलावा कमाई का कोई अन्य जरिया नहीं है. SEA के अध्यक्ष ए. मणिरमन ने इसरो चीफ को लिखे पत्र में कहा था कि सरकारी कर्मचारी की तनख्वाह में किसी भी तरह की कटौती तब तक नहीं की जा सकती, जब तक बेहद गंभीर स्थिति न खड़ी हो जाए. तनख्वाह में कटौती होने से वैज्ञानिकों के उत्साह में कमी आएगी. हम वैज्ञानिक केंद्र सरकार के फैसले से बेहद हैरत में हैं और दुखी हैं.

SEA ने इसरो चीफ को लिखे पत्र में बिंदुवार ये मांगे रखी हैं…

इसरो वैज्ञानिकों के लिए दो अतिरिक्त वेतन वृद्धि की अनुमति राष्ट्रपति ने दी थी. ताकि देश में मौजूद बेहतरीन टैलेंट्स को इसरो वैज्ञानिक बनने का प्रोत्साहन मिले. साथ ही इसरो वैज्ञानिक भी प्रेरित हो सके. ये अतिरिक्त वेतन वृद्धि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद 1996 में अंतरिक्ष विभाग ने लागू किया था. सुप्रीम कोर्ट के आदेश में कहा था कि इस वेतन वृद्धि को स्पष्ट तौर पर ‘तनख्वाह’ माना जाए.

छठे वेतन आयोग में भी इस वेतन वृद्धि को जारी रखने की सिफारिश की गई थी. साथ ही कहा गया था कि इसका लाभ इसरो वैज्ञानिकों को मिलते रहना चाहिए.

दो अतिरिक्त वेतन वृद्धि इसलिए लागू किया गया था कि इसरो में आने वाले युवा वैज्ञानिकों को नियुक्ति के समय ही प्रेरणा मिल सके और वे इसरो में लंबे समय तक काम कर सकें.

केंद्र सरकार के आदेश में परफॉर्मेंस रिलेटेड इंसेंटिव स्कीम (PRIS) का जिक्र है. हम यह बताना चाहते हैं कि अतिरिक्त वेतन वृद्धि और PRIS दोनों ही पूरी तरह से अलग-अलग हैं. एक इंसेंटिव है, जबकि दूसरा तनख्वाह है. दोनों एक दूसरे की पूर्ति किसी भी तरह से नहीं करते.

सरकारी कर्मचारी की तनख्वाह में किसी भी तरह की कटौती तब तक नहीं की जा सकती, जब तक बेहद गंभीर स्थिति न खड़ी हो जाए. ये था केंद्र सरकार का तनख्वाह काटने वाला आदेश

इस आदेश में कहा गया है कि 1 जुलाई 2019 से यह प्रोत्साहन राशि बंद हो जाएगी. इस आदेश के बाद D, E, F और G श्रेणी के वैज्ञानिकों को यह प्रोत्साहन राशि अब नहीं मिलेगी. इसरो में करीब 16 हजार वैज्ञानिक और इंजीनियर हैं. लेकिन इस सरकारी आदेश से इसरो के करीब 85 से 90 फीसदी वैज्ञानिकों और इंजीनियरों की तनख्वाह में 8 से 10 हजार रुपए का नुकसान होगा. क्योंकि ज्यादातर वैज्ञानिक इन्हीं श्रेणियों में आते हैं. इसे लेकर इसरो वैज्ञानिक नाराज हैं.

बता दें कि वैज्ञानिकों को प्रोत्साहित करने, इसरो की ओर उनका झुकाव बढ़ाने और संस्थान छोड़कर नहीं जाने के लिए वर्ष 1996 में यह प्रोत्साहन राशि शुरू की गई थी. केंद्र सरकार की ओर से जारी आदेश में कहा गया है कि छठे वेतन आयोग की सिफारिशों के आधार पर वित्त मंत्रालय और व्यय विभाग ने अंतरिक्ष विभाग को सलाह दी है कि वह इस प्रोत्साहन राशि को बंद करे. इसकी जगह अब सिर्फ परफॉर्मेंस रिलेटेड इंसेंटिव स्कीम (PRIS) लागू की गई है.

अब तक इसरो अपने वैज्ञानिकों को प्रोत्साहन राशि और PRIS स्कीम दोनों सुविधाएं दे रहा था. लेकिन अब केंद्र सरकार ने निर्णय किया है कि अतिरिक्त वेतन के तौर पर दी जाने वाली यह प्रोत्साहन राशि 1 जुलाई से मिलनी बंद हो जाएगी.

C श्रेणी में होती है इसरो वैज्ञानिकों की भर्ती, प्रमोशन पर मिलती थी प्रोत्साहन राशि

इसरो में किसी वैज्ञानिक की भर्ती C श्रेणी से शुरू होती है. इसके बाद उनका प्रमोशन D, E, F, G और आगे की श्रेणियों में होता है. हर श्रेणी में प्रमोशन से पहले एक टेस्ट होता है. उसे पास करने वाले को यह प्रोत्साहन अनुदान राशि मिलती है. लेकिन अब जब जुलाई की तनख्वाह अगस्त में आएगी, तब वैज्ञानिकों को उसमें कटौती दिखेगी.

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भाजपा नेता पर बलात्कार का आरोप लगाने वाली लड़की को ट्रक ने मारी टक्कर

उन्नाव बलात्कार कांड की पीड़िता, जिसने भाजपा के दबंग विधायक कुलदीप सेंगर पर बलात्कार का आरोप लगाया था, वह इस वक्त लखनऊ के केजीएमयू अस्पताल में पड़ी है! रायबरेली जाते समय उसकी कार को एक ट्रक ने बड़े संदिग्ध तरीके से टक्कर मारी! यह टक्कर इतनी भयानक थी कि दुर्घटना में उस लड़की की दो चाचियों की मौत हो गई! अस्पताल में पड़े ड्राइवर और उस लड़की की हालत बहुत नाज़ुक बताई जा रही है। लड़की के पिता की पहले ही संदिग्ध अवस्था में मौत हो चुकी है और उसका चाचा रायबरेली जेल में बंद हैं, जिससे मिलने वह अपनी चाची के साथ वहां जा रही थी! यह मामला महज दुर्घटना है या कुछ और? मुझे लगता है, इन चार विंदुओं पर जांच केंद्रित हो तो सही तथ्य सामने आ सकेंगे:

1.टक्कर मारने वाला टृक सामने की तरफ से(Wrong Side) ही आ रहा था! ऐसा क्यों?
2. उस टृक के पीछे लगी नंबर प्लेट पर काला पेंट कर कुछ नंबर छुपा दिए गए थे! ऐसा क्यों?
3. बलात्कार के आरोपी कुलदीप सेंगर जो जेल में हैं, से खतरा के मद्देनजर उस लड़की को दो सुरक्षाकर्मी मिले हुए थे। पुलिस के इन दो गनर ने उन्नाव से रायबरेली जाते वक्त लड़की को असुरक्षित क्यों छोड़ा?
4. बताया जा रहा है, वे दो दिन से लड़की के साथ नहीं थे! किसकी मंजूरी लेकर वे ड्यूटी से गायब थे?
अब बडा सवाल तो ये है कि इस मामले में कौन कराएगा सही ढंग की जांच और कौन सी एजेंसी करेगी जांच? ‘रामराज’ में सिर्फ आदेश जारी होते हैं, जांच कहां होती है?
वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश की फेसबुक वॉल से

टाटा सोशल इंस्टीट्यूट के छात्र संघ के अध्यक्ष पद पर बहुजनों का कब्जा, भट्टा राम नए अध्यक्ष

भट्टाराम

टाटा समाजिक विज्ञान संस्थान, मुंबई में छात्रसंघ चुनाव में राजस्थान के बाड़मेर जिले के टापरा गांव के दलित युवा भट्टा राम ने जीत हासिल कर इतिहास रच दिया है. सुदूर रेगिस्तान के दलित-किसान-मजदूर परिवार में पैदा हुये भट्टाराम एक ऐसे इलाके से आते है, जहां पर जातिगत भेदभाव व छुआछूत भयंकर रूप में विद्यमान है. यह इलाका आज भी सामंतवाद की चपेट में है. आज भी यहां दलितों को छूने तक से परहेज किया जाता है. बच्चों के साथ स्कूलों में भेदभाव आम बात है.

ऐसी विपरीत सामाजिक आर्थिक व भौगोलिक पृष्ठभूमि से आने वाले भट्टाराम ने इस विश्व विख्यात संस्थान के छात्रसंघ के चुनाव में उतरने की ठानी, यह उनकी बड़ी हिम्मत और आत्मविश्वास था. बाड़मेर जिले के पचपदरा ब्लॉक के टापरा गांव के राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय से 2014 में हिंदी माध्यम से 12वीं तक शिक्षा ग्रहण की. फिर 2017 में एमबीआर राजकीय कॉलेज बालोतरा से बीए कम्पलीट किया. उच्च शिक्षा के लिए पैसा जमा करने के लिए अप्रैल 2015 से अगस्त 2017 तक आईडिया डिस्ट्रीब्यूटर के यहां सेल्स एक्सिक्यूटिव की नौकरी की और भवन निर्माण में अकुशल श्रमिक के तौर पर मजदूरी भी की.

इसके बाद 8 महीने तक नालंदा एकेडमी वर्धा में रहकर उच्च शिक्षा के लिए तैयारी की और 2018 में जल नीति और शासन के परास्नातक पाठ्यक्रम हेतू टाटा इंस्टीट्यूट मुम्बई पहुंचे. भट्टाराम में अपने इलाके के कालूडी गांव में 70 दलित परिवारों को गांव छोड़ने के लिए मजबूर करने वाले आतंकी जातिवादी तत्वों के खिलाफ जबरदस्त संघर्ष किया और कालूडी के मुद्दे को यूएनओ तक पहुंचाने में सफलता प्राप्त की. जाहिर है कि वर्तमान में वह भट्टाराम टाटा इंस्टीट्यूट के छात्र हैं. टाटा इंस्टीट्यूट के अध्यक्ष पद का चुनाव जीतना टापरा के इस युवा की बहुत ऊंची उड़ान है. वंचित तबके के छात्रों के लिए भट्टाराम की सफलता एक एक मिशाल है.

समीक्षा: ओमप्रकाश वाल्मीकि का अंतिम संवाद, दलित विमर्श पर गहन चिंतन

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भारतीय दलित साहित्य में ओमप्रकाश वाल्मीकि बड़ा नाम हैं. उनके लेखन में सिर्फ दलित विमर्श ही नहीं, लेखन की बारीकियां और साहित्य से सरोकार भी मौजूद है. उनके लेखन व साहित्य में दलित विमर्श और अन्य मुद्दों पर उनके विचारों का उपयोगी संकलन है ‘‘ओमप्रकाश वाल्मीकि का अंतिम संवाद’’ यह पुस्तक उनसे भंवरलाल मीणा की लंबी बातचीत पर आधारित है.मीणा राजस्थान के आदिवासी क्षेत्र में अध्यापन कार्य करते हैं. किताब में समाज, जाति और धर्म से जुड़े अनेक प्रासंगिक सवाल हैं जिनका वाल्मीकि जी ने तार्किक एवं बेबाक जवाब दिया है.

दसअसल, यह किताब मात्र संवाद भर नहीं, साहित्य में दलित विमर्श और समाज में दलितोत्थान के प्रयासों का एक पारदर्शी चेहरा है, जिसमें उनकी कमियां एवं अच्छाइयां सब स्पष्ट हो गई हैं. खासतौर पर दलित विमर्श की बात की जाए तो वाल्मीकि जी ने पूरे इतिहास को ही खंगालकर उदाहरण पेश किए हैं. बड़े-बड़े लेखकों एवं पाठकों की चूक पर उन्होंने दृढ़ता से न सिर्फ उंगली रखी है बल्कि सही क्या होना चाहिए, यह भी सुझाया है. इस लिहाज से किताब और भी विचारणीय हो जाती है.

धर्म और जाति से जुड़े प्रश्न हमारे देश में हमेशा ही ज्वलंत रहे हैं. शिक्षा के इतने विस्तार के बावजूद गांवों और शहरों में जातिवाद कायम है. जाति के नाम पर चुनाव लड़े और जीते जाते हैं. वाल्मीकि जी हमारे समाज की संरचना एवं सोच से भलीभांति वाकिफ थे. इस किताब में उन्होंने जातिवाद के अलग-अलग रूपों की चर्चा की है. शहरों के शिक्षित लोगों के बीच भी जातिवाद की मजबूत जड़ें हैं. यहां तक कि जो विदेश में रह आए हैं वे भी भारत में आकर वैसा ही रवैया अपना लेते हैं. किस तरह सदियों से चली आ रही जातिवादी व्यवस्था अब भी लोगों के मन में किसी न किसी रूप में जिंदा है- इसके अनेक उदाहरण दिए हैं. मार्क्सवाद के वर्गीय अवधारणा को नकारते हुए उनका कहना है कि भारत में जाति एक सामाजिक सचाई है. कई उदाहरण उन्होंने इसे साबित किया है. एक उदाहरण के तौर पर वे बताते हैं,

‘‘जगजीवन राम उप-प्रधानमंत्री बन चुके थे. बनारस यूनिवर्सिटी में संपूर्णानंद की मूर्ति का उद्घाटन करने जाते हैं, जब उद्घाटन करके आ जाते हैं, तब उस मूर्ति को गंगाजल से धोया जाता है कि एक अछूत ने उसका उद्घाटन किया है, जबकि वे एक सम्पन्न और प्रधानमंत्री पद के दावेदार आदमी थे…. यहां पर कहां है वर्ग और वर्ग का आधार क्या है?भारत में वर्ग हैं ही नहीं, यहां पर वर्ण है. जब तक वर्ण नहीं टूटेगा, वर्ग नहीं बन सकता. भारतीय मार्क्सवादी घर के बाहर वर्गवादी और घर के अंदर वर्णवादी हैं.’’

ये कुछ इतिहास से लिये गए उदाहरण हैं लेकिन उन्होंने भारत के शहरों में व्याप्त जाति व्यवस्था को दर्शाते हुए कुछ समकालीन उदाहरण भी पेश किए हैं. ‘‘जब वह आया है दिल्ली जैसे शहर में उसने क्या अनुभव अर्जित किये हैं? जब वो किराये का मकान लेने जाता है, तब उससे जात पूछी जाती है, जब वह अपने आप को दलित कहता है या एसटी, एससी कहता है, तब उसे मकान नहीं मिलता है.

किताब में उनके व्यक्तिगत जीवन और आचार-विचार से भी जुड़ी बातें हैं. जो बताती हैं कि वे अच्छे लेखक होने के साथ अच्छे इंसान भी थे. जीवन के अंतिम क्षणों में बातचीत के माध्यम से समाज का पथ प्रदर्शन करने वाले विचार देकर उन्होंने अपने पाठकों और चिंतकों को एक नायाब तोहफा दिया है.

समीक्षा – सरस्वती रमेश

किताब — ओमप्रकाश वाल्मीकि का अंतिम संवाद

लेखक/बातचीत– भंवरलाल मीणा

प्रकाशक –राजपाल एन्ड सन्ज़

साभार-हिन्दुस्तान

दलित लड़की को बेहोशी की दवाई देकर किडनैप किया और फिर गैंग रेप

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सांकेतिक चित्र

बांदा। बांदा जिले के तिंदवारी क्षेत्र में पुलिस ने एक दलित किशोरी के अपहरण के बाद उससे कथित रूप से सामूहिक बलात्कार किए जाने का मामला दर्ज किया है. पुलिस सूत्रों ने दर्ज रिपोर्ट के हवाले से बताया कि पिछली 29 मई को तिंदवारी थाना क्षेत्र के एक गांव की रहने वाली 16 साल की एक किशोरी को मोटरसाइकिल सवार दो युवक बेहोशी की दवा देकर उठा ले गये.

किशोरी को पहले हमीरपुर जिले के इचौली ले जाया गया जहां अगवा करने वाले एक लड़के की बहन ने जबरन उसकी मांग में सिंदूर भरवाया. इसके बाद दोनों युवकों ने उसे लुधियाना (पंजाब) में रख कर 51 दिनों तक उससे बलात्कार किया.सूत्रों के मुताबिक किशोरी ने मौका पाकर फोन से खुद के लुधियाना में होने की सूचना परिजन को दी तब परिजन उसे लुधियाना से छुड़ा कर सोमवार को थाने लाए और मुकदमा दर्ज कराया.

प्रभारी निरीक्षक नीरज कुमार सिंह ने बताया कि ‘पीड़िता के पिता की तहरीर पर तेरही माफी गांव के निवासी रामलखन (22), उसकी बहन कलावती उर्फ कल्ली और उसके एक अन्य अज्ञात साथी के खिलाफ अपहरण, षड्यंत्र में शामिल होने, बलात्कार और एससी-एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया है. उन्होंने बताया कि आरोपियों की तलाश शुरू कर दी गयी है.

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गठबंधन सरकार गिरी, BJP आज पेश कर सकती है सरकार बनाने का दावा

गठबंधन सरकार गिरी, BJP आज पेश कर सकती है सरकार बनाने का दावाविश्वास प्रस्ताव पर चार दिनों की बहस के बाद कनार्टक में एच. डी. कुमारस्वामी की सरकार गिर गई है. विधानसभा में मंगलवार को मुख्यमंत्री कुमारस्वामी के नेतृत्व में कांग्रेस व जनता दल सेक्युलर (जद-एस) की गठबंधन सरकार विश्वास मत हासिल नहीं कर सकी. 225 सदस्यीय कनार्टक विधानसभा में विश्वास मत के लिए 20 विधायक सदन में उपस्थित नहीं हुए थे. विधानसभा अध्यक्ष के. आर. रमेश कुमार ने विश्वास मत के बाद सदन के सदस्यों को बताया कि मुख्यमंत्री एच. डी. कुमार स्वामी विश्वास मत हासिल नहीं कर सके. उन्होंने बताया कि विश्वास मत के पक्ष में 99 जबकि इसके खिलाफ 105 मत पड़े हैं. इसके साथ ही भाजपा ने कहा है कि वह कनार्टक में सरकार बनाने का दावा पेश करेगी. बताया जा रहा है कि सरकार बुधवार को सरकार बनाने का दावा पेश कर सकती है.

1. कर्नाटक मामले पर राहुल गांधी ने ट्वीट कर कहा, ” अपने पहले दिन से ही कांग्रेस-जद(एस) सरकार भीतर और बाहर के उन निहित स्वार्थ वाले लोगों के निशाने पर आ गयी थी जिन्होंने इस गठबंधन को सत्ता के अपने रास्ते के लिए खतरा और रुकावट के तौर पर देखा.” उन्होंने दावा किया, “उनके लालच की आज जीत हो गयी. लोकतंत्र, ईमानदारी और कर्नाटक की जनता हार गयी.”

2. वहीं पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने भाजपा पर संस्थाओं और लोकतंत्र को व्यवस्थित ढंग से कमजोर करने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा, ”एक दिन भाजपा को यह पता चलेगा कि सब कुछ नहीं खरीदा जा सकता, हर किसी के पीछे नहीं पड़ा जा सकता और हर झूठ आखिरकार बेनकाब होता है.”गौरतलब है कि कर्नाटक में कांग्रेस-जद(एस) की सरकार मंगलवार को विधानसभा में विश्वास मत हासिल करने में विफल रही और सरकार गिर गई. इसी के साथ राज्य में करीब तीन हफ्ते से चल रहे राजनीतिक नाटक का फिलहाल पटाक्षेप हो गया.

3. कर्नाटक में कांग्रेस-जद(एस) गठबंधन की सरकार मंगलवार को विधानसभा में विश्वासमत हासिल करने में विफल रहने के बाद गिर गयी . इसी के साथ राज्य में 14 महीने से अस्थिरता के दौर का सामना कर रहे मुख्यमंत्री एच डी कुमारस्वामी का कार्यकाल खत्म हो गया. कुमारस्वामी ने विधानसभा में विश्वास प्रस्ताव हारने के तुरंत बाद राज्यपाल वजूभाई वाला को अपना इस्तीफा सौंप दिया. अधिकारियों ने बताया कि परिणाम के तुरंत बाद कुमारस्वामी, उपमुख्यमंत्री जी. परमेश्वर और अन्य वरिष्ठ सहयोगियों के साथ राजभवन गए और इस्तीफा सौंप दिया. 4. कुमारस्वामी को अपने पत्र में राज्यपाल ने कहा, ”मैंने तत्काल प्रभाव से आपका इस्तीफा स्वीकार कर लिया है . वैकल्पिक व्यवस्था होने तक कार्यवाहक मुख्यमंत्री के पद पर बने रहिए. यह कहने की जरूरत नहीं है कि इस दौरान कोई कार्यकारी फैसले नहीं लिए जाने चाहिए.

5. भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने मंगलवार को कर्नाटक के मुद्दे पर पार्टी नेताओं के साथ विचार-विमर्श किया. शाह ने इन संकेतों के बीच पार्टी नेताओं के साथ सलाह मशविरा किया कि कर्नाटक में एच डी कुमारस्वामी नीत गठबंधन सरकार के मंगलवार को गिरने के बाद बी एस येदियुरप्पा मुख्यमंत्री पद के लिए भाजपा की पसंद हो सकते हैं. राज्य में शीर्ष पद के लिए भाजपा की पसंद के बारे में पूछे जाने पर पार्टी के एक नेता ने कहा कि येदियुरप्पा जाहिर तौर पर दावेदार हैं, लेकिन साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और शाह सहित पार्टी का शीर्ष नेतृत्व इस बारे में निर्णय करेगा.

6. विधानसभा में पिछले बृहस्पतिवार को कुमारस्वामी ने विश्वास मत का प्रस्ताव पेश किया था. चार दिनों तक विधानसभा में विश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के बाद कुमारस्वामी ने कहा,”मैं खुशी से इस पद का बलिदान करने को तैयार हूं. कार्यवाही में 21 विधायकों ने हिस्सा नहीं लिया जिससे सदन की प्रभावी क्षमता घटकर 204 रह गयी. कार्यवाही में कांग्रेस-जदएस (17), बसपा (एक), निर्दलीय (दो) के विधायक नहीं आए. इस तरह 103 का जादुई आंकड़ा नहीं जुट पाया.

7. कुमारस्वामी ने कहा कि विश्वास मत की कार्यवाही को लंबा खींचने की उनकी कोई मंशा नहीं थी. उन्होंने कहा, ”मैं विधानसभाध्यक्ष और राज्य की जनता से माफी मांगता हूं. कुमारस्वामी ने कहा, ”यह भी चर्चा चल रही है कि मैंने इस्तीफा क्यों नहीं दिया और कुर्सी पर क्यों बना हुआ हूं. उन्होंने कहा कि जब विधानसभा चुनाव का परिणाम (2018 में) आया था, वह राजनीति छोड़ने की सोच रहे थे.

8. अपने संबोधन में कांग्रेस नेता सिद्धरमैया ने आरोप लगाया कि भाजपा रिश्वत और विधायकों की खरीद फरोख्त के जरिए सत्ता में आने का प्रयास कर रही है. उन्होंने कहा कि 15 विधायकों का इस्तीफा और कुछ नहीं बल्कि यह खरीद फरोख्त है. सिद्धरमैया ने आरोप लगाया कि विधायकों को प्रलोभन देने के लिए 20, 25 और 30 करोड़ रुपये का प्रस्ताव दिया गया . उन्होंने पूछा कि यह धन कहां से आया?

9. मतदान के बाद विजय चिन्ह बनाते हुए भाजपा नेता बी एस येदियुरप्पा ने परिणाम को लोकतंत्र की जीत बताया. उन्होंने कर्नाटक के लोगों को आश्वस्त किया कि भाजपा के सत्ता में आने के साथ विकास का एक नया युग आरंभ होगा. अगले कदम पर येदियुरप्पा ने कहा कि शीघ्र ही उपयुक्त फैसला किया जाएगा. कुमारस्वामी सरकार के विश्वास मत के दौरान बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के विधायक के विधानसभा से गैरहाजिर रहने को पार्टी सुप्रीमो मायावती ने गंभीरता से लेते हुए उन्हें तत्काल प्रभाव से पार्टी से निष्कासित कर दिया है.

10. कर्नाटक में 2018 में विधानसभा चुनाव के बाद 14 महीने में दो मुख्यमंत्री को विश्वास मत में हार के बाद सरकार गंवानी पड़ी है. कर्नाटक में मई में चुनाव के बाद भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनी. चुनाव में भाजपा को 104 सीटें मिली थीं. जबकि कांग्रेस को 78 और जेडीएस को 37 सीट मिली थी. इसके बाद राज्यपाल ने भाजपा के येदियुरप्पा को सरकार बनाने का न्योता दिया था. पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद वह बहुमत सिद्ध नहीं कर सके और मात्र छह दिन मुख्यमंत्री रहे.

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UGC ने इन 23 यूनिवर्सिटी को फर्जी घोषित किया

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विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने 23 फर्जी यूनिवर्सिटी की सूची जारी की है. इनमें सबसे ज्‍यादा आठ उत्‍तर प्रदेश में संचालित हो रही हैं. आयोग द्वारा जारी एक नोटिस में कहा गया है कि विद्यार्थियों और आम लोगों को सूचित किया जाता है कि फिलहाल देश के विभिन्न हिस्सों में 23 यूनिवर्सिटी गैरमान्‍यता प्राप्‍त चल रही हैं. ऐसे में छात्र-छात्राएं एडमिशन लेते वक्‍त ध्‍यान रखें.

वहीं इस बारे में यूजीसी सचिव रजनीश जैन ने कहा फिलहाल देश के विभिन्न हिस्सों में यूजीसी अधिनियम का उल्लंघन कर 23 यूनिवर्सिटी स्वघोषित, गैर-मान्यता प्राप्त संस्थान चल रहे हैं. इनमें से आठ विश्वविद्यालय उत्तर प्रदेश में हैं, उसके बाद दिल्ली में (सात) हैं. इसके अलावा केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र और पुडुचेरी में एक-एक फर्जी विश्वविद्यालय हैं. आइए जानते हैं इन यूनिवर्सिटी पर एक नजर.

यूपी नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ इलेक्ट्रो कॉम्प्लेक्स होम्योपैथी, कानपुर नेताजी सुभाष चंद्र बोस विश्वविद्यालय (मुक्त विश्वविद्यालय),

अलीगढ़ उत्तर प्रदेश विश्व विद्यालय, कोसी कलां, मथुरा

महाराणा प्रताप शिक्षा निकेतन विश्व विद्यालय, प्रतापगढ़ वारणसी संस्कृत विश्व विद्यालय,

वाराणसी महिला ग्राम विद्यापीठ / विश्व विद्यालय, (महिला विश्वविद्यालय), इलाहाबाद

गांधी हिंदी विद्यापीठ, प्रयाग, इलाहाबाद

इंद्रप्रस्थ शिक्षा परिषद, संस्थागत क्षेत्र, खोड़

दिल्‍ली एडीआर-सेंट्रिक ज्यूरिडिकल यूनिवर्सिटी

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड इंजीनियरिंग

स्व-रोजगार के लिए विश्वकर्मा मुक्त विश्वविद्यालय

कमर्शियल यूनिवर्सिटी लि, दरियागंज

संयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय

वोकेशनल यूनिवर्सिटी

अध्यात्म विश्व विद्यालय (आध्यात्मिक विश्वविद्यालय)

वरान्स्य संस्कृत विश्व विद्यालय

ओडिशा नौभारत शिक्षा परिषद, अनूपपूर्णा भवन, राउरकेला

उत्तर उड़ीसा कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय

वेस्‍ट बंगाल भारतीय वैकल्पिक चिकित्सा संस्थान, कोलकाता

इंस्टीट्यूट ऑफ अल्टरनेटिव मेडिसिन एंड रिसर्च, कोलकाता

कर्नाटक बडगानवी सरकार वर्ल्ड ओपन यूनिवर्सिटी एजुकेशन सोसाइटी बेलगाम सेंट जॉन्स यूनिवर्सिटी, किशनट्टम

महाराष्‍ट्र राजा अरबी विश्वविद्यालय, नागपुर

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