
ईसा की प्रथम शताब्दी तक एशिया महादेश के अधिकतर देशों में बुद्ध धम्म स्थापित हो चुका था. इसकी आधारशिला ईसा पूर्व 250 के आस पास मौर्य वंश के यशस्वी सम्राट अशोक ने अपने बेटे महेंद्र और बेटी संघमित्रा को धम्म-प्रचार के लिए श्रीलंका भेजकर रख दी थी. ईसा की छठी शताब्दी के आस पास जब एशिया के देशों के मध्य सांस्कृतिक, व्यापारिक एवं राजनीतिक संक्रमण का दौर शुरू हुआ तो अरबी-तुर्की यात्रियों व्यापारियों को जगह जगह बुद्ध मिलते. वे यात्री व्यापारी चीन, जापान, कोरिया, ताइवान, थाईलैंड, म्यांमार, भूटान, भारत, तिब्बत, अफगानिस्तान एवं श्रीलंका आदि जहां भी जाते, वहां के पगोडा, मठ या विहार और स्तूपों में उन्हें आंखे मूंदे, मुस्कुराती हुई एक सौम्य मूर्ति अवश्य दिखाई देती. यदि स्थानीय व्यक्तियों से वो मूर्तियों के विषय में अपनी जिज्ञासा का समाधान चाहते तो केवल एक ही उतर मिलता, यह ‘बुद्ध’ हैं. अन्ततः बुद्ध शब्द अरबी, फ़ारसी भाषा में अपभ्रंशित हो बुत हो गया, जिसका अर्थ ही मान लिया गया मूर्ति. बुद्ध के परिनिर्वाण के लगभग पांच सौ वर्षो के पश्चात भारत में महायानी शाखा ने बुद्ध की मूर्तियों की स्थापना शुरू की और कालांतर में लगभग पूरे पश्चिम एशिया में बुद्ध फ़ैल गये. चीन, जापान, कोरिया, ताइवान, थाईलैंड, म्यांमार, भूटान, तिब्बत, अफगानिस्तान, श्रीलंका इत्यादि सभी जगह. भारत में बुद्ध संस्कृति का प्रभाव एवं विस्तार देश के कोने कोने में है. यह बात प्रमाणिकता से इसलिए कही जा सकती है क्योंकि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा खुदाई में अब तक सबसे ज्यादा साक्ष्य बुद्ध धम्म के होने के ही मिले हैं. खुदाई की सतत प्रक्रिया और बुद्ध धम्म के विश्व व्यापकता के स्वतः प्रमाण इसी खुदाई में मिलते रहे हैं. बुद्ध धम्म के कारण आज भी भारत विश्व गुरु के बैभव से विभूषित है. सम्राट अशोक के काल में भारत बुद्ध धम्ममय एक अखंड देश था. भारत सांस्कृतिक, राजनीतिक (प्रजातांत्रिक) एवं आर्थिक रूप से समृद्ध था. इस धम्म का प्रसार भी यहीं से अन्य देशों में हुआ और खुदाई इसका प्रमाण भी देती हैं. आज दुनिया के 170 देशों में बौद्ध धम्म विद्यमान है. बांग्लादेश जैसे छोटे राष्ट्र में एक करोड़ बुद्धिस्ट हैं. इस आंकड़े से बौद्ध धम्म के प्रसार का अंदाजा लगाया जा सकता है. जहां तक भारत में बौद्ध धम्म के विभिन्न प्रमुख स्थलों की बात है तो यह देश बौद्धमय था और आज भी है. जागृत स्थल का विवरण केवल बुद्ध धम्म की एक छोटी सी भूमिका मात्र है.
बिहार
बोधगया: बिहार प्रदेश में स्थित यह वह स्थान है, जहां सिद्धार्थ को सम्यक सम्बोधि की प्राप्ति हुई थी और वे बुद्ध कहलाये. उरुवेला में निरंजना नदी के तट पर बोधिवृक्ष के नीचे सिद्धार्थ को बुद्धत्व की प्राप्ति हुई थी. आज बोधगया में अनेक देशों ने अपने बुद्ध विहार बनाए हैं. बुद्धत्व प्राप्ति के पूर्व सिद्धार्थ निरंजना नदी के दुसरे किनारे पर स्थित डुंगेश्वरी गुफा में कठिन तपस्या व ध्यान किया करते थे. यह गुफाएं आज भी मौजूद हैं. महाबोधि विहार यहां सबसे पवित्र और दुनिया के बौद्ध शिल्पों में से सबसे सुन्दर व भव्य निर्माणों में से एक है.
राजगीर: बिहार राज्य में स्थित इस स्थल को बुद्ध के काल में राजगृह अथवा राजगढ़ भी कहा जाता था. पांच पर्वतो से घिरे होने के कारण सुरक्षित यह मगध राज्य की राजधानी भी थी. बुद्ध के समय यहां बिम्बिसार का शासन था. बुद्धत्व प्राप्ति के पश्चात बुद्ध ने अपना दूसरा, तीसरा व चतुर्थ वर्षावास यहीं बिताया था. राजा बिम्बिसार ने बुद्ध को वेलुवन दान में दिया था, वहां विशाल विहार बनवाया था जो आज भी विद्यमान है. जापान के सहयोग से यहां राजगीर के गृज्झकूट पर्वत पर विशाल विश्व शांति स्तूप व भव्य विहार निर्मित हुआ है.
वैशाली: बिहार राज्य में स्थित यह स्थल बुद्ध के काल खंड में लिच्छिवी वंश की राजधानी के तौर पर विश्व का प्रथम प्रजातांत्रिक राज्य था. बुद्धत्व प्राप्ति के पांचवें वर्षावास में बुद्ध प्रथम बार वैशाली आएं. उन्होंने पांचवा वर्षावास भी यहीं गुजारा. भगवान बुद्ध ने भिक्खुणी संघ की स्थापना यहीं की, नगरवधू आम्रपाली यहीं पर संघ में शामिल हुई. बुद्ध ने तेवज्ज सूत, महाली सूत, रतन सूत सहित अनेक सुतों की देशना यही की थी. बिहार राज्य की राजधानी पटना से 40 किमी की दुरी पर स्थित इसी वैशाली में बुद्ध ने अपने निर्वाण की पूर्व घोषणा की थी.
केसरिया: बिहार के ही पटना से 105 किमी की दुरी पर व चंपारण जिले में स्थित 104 फीट ऊंचा यह स्तूप विश्व के सबसे बड़े व ऊंचे स्तूपों में से एक है. सन् 1998 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा खुदाई कर इसके अस्तित्व को दुनिया के समक्ष अनावृत किया गया. ऐसी मान्यता है की बुद्ध जब वैशाली से केसरिया के लिए विदा हो रहे थे तब वैशाली के लोगों को भिक्षापात्र दान में दिया था. इसके पश्चात इस भिक्षापात्र को वैशाली के मठ में रखा गया जहां किसान और फल व्यापारी अपनी फसल काटने के बाद सर्वप्रथम इसी पात्र को समर्पित करते थे.
नालंदा: बिहार के पटना से 80 किमी की दूरी पर स्थित नालंदा विश्विद्यालय के रूप में विश्व विख्यात नालंदा महाविहार कभी पूरे विश्व समूह का गौरव था. यह मानव के विकास और प्रकृति से समन्वय से जुड़े शुद्ध ज्ञान का केंद्र था. अपने पूर्ण वैभव में यहां 10 हजार विद्यार्थी और 2 हजार अध्यापक थे. यहां के कुछ प्रसिद्ध छात्रों में इत्सिंग, ह्वेनसांग, फ़ो–ताऊ-माऊ, ताओ शिंग, हुएं चाओ, धर्मस्वामिन, आर्यभट् आदि प्रमुख हैं. शिक्षकों में यहां 1 हजार शिक्षक ऐसे थे जो 30 विषयों के ज्ञाता थे व शिक्षा दे सकते थे. नालंदा के प्राचीन खंडहरों से 12 किमी. दूर राजगीर में 433 एकड़ भूमि में निर्माणधीन व संचालित नालंदा विश्वविद्यालय अपने गौरव को पुनः दुहराने की दिशा में अग्रसर है.
विक्रमशिला महाविहार: बिहार राज्य में स्थित इस स्थल की खुदाई में एक पुस्तकालय, स्तूप और वृहद् मठ प्राप्त हुआ है.
उत्तर प्रदेश
सारनाथ: उत्तर प्रदेश के वाराणसी में स्थित व वाराणसी रेलवे स्टेशन से 5 किमी. की दुरी पर यह स्थल बुद्ध धम्म में एक प्रतीक स्थल के रूप में विश्व विख्यात है. यही वह पवित्र स्थल है, जहां बुद्ध ने अपनी प्रथम देशना (उपदेश) की थी. बोधगया में ज्ञान प्राप्ति के पश्चात सबके कल्याण हेतु बुद्ध ने सर्वप्रथम अपने पांच पुराने मित्रो को धम्मोप्देश दिए. पहली बार बताया की उन्होंने कल्याणकारी आर्य अष्टांगिक मार्ग खोज लिया है. इस प्रथम उपदेश को धम्मचक्र प्रवर्तन कहा जाता है. भगवान बुद्ध ने सारनाथ में ही भिक्खु संघ की स्थापना भी की.
कुशीनगर: उतर प्रदेश का यह जिला बौद्धों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है. यह भगवान बुद्ध का महापरिनिर्वाण स्थल है. यहीं भगवान बुद्ध ने अंतिम सांसे ली थी. यहां भगवान बुद्ध ने दो साल वृक्षों के बीच में लेटकर महापरिनिर्वाण प्राप्त किया था. यहां भगवान बुद्ध महापरिनिर्वाण नामक विशाल स्तूप विद्यमान है. जहां बुद्ध ने अंतिम सांसे ली वह स्थल भी मौजूद है. पुराने खंडहर आज भी अपने इतिहास की सच्चाई बयां करते हैं.
जौनपुर: मुख्यालय से 55 किमी दूर मादरडीह गांव में, इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पुरातत्व विभाग में प्रोफेसर डॉ. अनिल कुमार दुबे के नेतृत्व में उत्खनन कार्य संपन्न हो रहा है. सर्वेक्षण कर रही टीम को स्तूप व बुद्ध विहार होने के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं. बुद्ध विहार की दीवार के अवशेष भी मिले हैं. अब तक के उत्खनन से यह ध्वनित हो रहा है की लगभग ढ़ाई हज़ार वर्ष पूर्व यहां नगरीय सभ्यता मौजूद थी. संभव है कि यह स्थान विशेष व्यापार–वाणिज्य का एक महत्वपूर्ण पड़ाव भी रहा हो.
उत्तर प्रदेश में ही बुद्ध के अन्य तीर्थस्थलों में श्रावस्ती, संकिसा, कौशाम्बी एवं मथुरा आदि है.
मध्य प्रदेश
साँची: मध्य प्रदेश में स्थित साँची बौद्ध स्मारकों के लिए विश्व प्रसिद्ध है. यह रायसेन जिले में एक छोटा सा गांव है. स्तूपों के लिए प्रसिद्ध यहां कई बौद्ध स्मारक मौजूद हैं. ईसा पूर्व तीसरी सदी से बारहवी सदी के दरम्यान बने स्तूप, मठों, विहार और स्तंभों के लिए जाना जाता है. यहां निर्मित स्तूप तोरणों से घिरे हैं. स्तूप के द्वार की मेहराब पर भगवान बुद्ध का जीवन चरित्र खुदा है. यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया है. साँची में कुल 36 मठ, 18 विहार, एक स्तूप के साथ ही एक अशोक स्तंभ मौजूद है. 1854 ईस्वी में पुरातात्विक विभाग ने यहां खुदाई करवाई थी.
उज्जैन: भगवान बुद्ध के अस्थि अवशेष को संचित कर बने स्तुप 2500 वर्ष से ज्यादा प्राचीन हैं. यह स्तूप उज्जैन रेलवे स्टेशन से 5 किमी दुरी पर ही अवस्थित है.
भरहुत स्तूप: प्रदेश के सतना जिले में स्थित यह एक प्रसिद्ध बौद्ध स्थल है. इस स्तूप को सम्राट अशोक ने ईसा पूर्व तीसरी सदी में निर्मित करवाया था. इस स्तूप में बुद्ध को बौद्ध प्रतीकों के रूप में दर्शाया गया है. जैसे बुद्ध के पद चिन्ह, धम्मचक्र, बोधिवृक्ष इत्यादि.
ग्वालियरः हाल ही में मध्य प्रदेश स्थित ग्वालियर में शिवपुरी जिले के राजापुर गांव में करीब 2200 साल पुराना बौद्ध स्तूप मिला है. यह ईसा पूर्व शुंग वंश के काल का बताया जा रहा है. ग्रामीण इसे अंचल का पहला बौद्ध स्तूप बता रहे हैं. गांव के लोग अब तक इस स्तूप को कुटिया मठ्ठ के नाम से पहचानते आ रहे थे. पुरातत्वविदों का मानना है कि स्तूप के नीचे तांबे का कलश हो सकता है और उसमें सम्राट अशोक की अस्थियां एवं राख हो सकती है. ग्वालियर चंबल संभाग में पहला बौद्ध स्तूप ज्यादातर बपाल, विदिशा, देवास, होशंगाबाद के आस-पास के क्षेत्रों में मिले हैं.
ओडिशा
यह स्थान बुद्ध धम्म संस्कृति के प्रमुख स्थलों में से एक है. प्राचीन बौद्ध विरासत से समृद्ध ओडिशा (उड़िसा) में क्षतिग्रस्त बुद्ध विहार एव स्तूप सर्वत्र विद्यमान हैं. वोलंगीर, ढ़ेनकनाल, फूलबनी, कालाहांडी, संभलपुर, क्योंझार, गंजम, वालासोर और पूरी आदि जिलों में कई महत्वपूर्ण शोध किये गए है, जहां बुद्ध अवशेष या तो मौजूद हैं या प्रमाण मिला है. इस राज्य में बुद्ध धम्म स्मारकों की सर्वोत्तम निधि कटक और जाजपुर जिलों में केद्रित है. इस परिक्षेत्र में ललितगिरी, उदयगिरी, रत्नगिरि एवं लान्गुली में बुद्ध विहारों, स्तूपों और शिलालेखों के रूप में बौद्ध अवशेषों की विशाल निधि है.
ललितगिरी: ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर से लगभग 85 किमी. की दुरी पर स्थित यह स्थल प्रथम ईस्वी सदी में स्थापित किया गया था. यह ओडिशा का सबसे उत्कृष्ट कलात्मक, प्राचीन एवं भव्य स्थलों में से है. खंडहरों में तब्दील हो चुके इस स्थल की खोज 1985 में पुरातत्व विभाग द्वारा की गयी थी. यहां उत्खनन में भगवान् बुद्ध की अस्थिधातु प्राप्त हुई थी. मुख्य स्तूप के अतिरिक्त यहां तीन विशाल विहार, बहुकक्षों वाले चैत्यगृहों के अवशेष विद्यमान हैं.
उदयगिरी: सातवीं सदी में यहां ओडिशा का सबसे वृहद् बौद्ध परिसर था जो करीब करीब 400 एकड़ में विस्तारित था. यहां दो विशाल विहार है तथा दोनों एक साथ मिलकर अपने समय की सबसे वृहद् बौद्ध स्थापनाएं हैं. यह स्थल भुवनेश्वर से 93 किमी. की दुरी पर स्थित है.
रत्नगिरि: यह स्थान बुद्ध धम्म की अन्य शाखा जैसे महायान एवं वज्रयान परंपरा का प्रमुख तीर्थस्थल है. इसमें विहार के दरवाजों पर उत्कृष्ट नक्काशी की गयी है. रत्नगिरि बौद्ध शिल्पकला के दृष्टिकोण से अत्यंत उनन्त थी, यहां भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के संग्रहालय में अनेकों प्रकार के पत्थर की शिल्पकला व अवशेष संरक्षित हैं. भुवनेश्वर से 91 किमी. की दुरी पर स्थित रत्नगिरि में तारा, अवलोकितेश्वर, मंजुश्री और ध्यानी बुद्ध की प्रतिमाएं प्राप्त हुई हैं.
लान्गुली: ओडिशा के प्राचीनतम बौद्ध स्थल के रूप में दर्ज इस स्थल की खोज बाद में हुई. जैपोर जिला मुख्यालय से 6 किमी. की दुरी पर स्थित इस स्थल की खोज के उपरांत ये सर्वविदित हुआ की यहाँ ह्वेनसांग का वैभवशाली पुष्पगिरी महाविहार हैं. यह शिक्षा के महानतम केन्द्रों में से एक था.
धौली: भुवनेश्वर से 8 किमी. की दुरी पर स्थित धौली कलिंग युद्ध का मूक साक्षी है जिसने शासनप्रिय अशोक को धम्मानुरागी में परिवर्तित कर दिया. कलिंग युद्ध के बाद ही बुद्ध धम्म का गौरव पुरे भारत में फैला और भारत विश्व गुरु हो अखंड बना. जापान के सहयोग से यहां एक विशाल स्तूप निर्मित है.
हरियाणा
कुरुक्षेत्र: हरियाणा राज्य के धम्मनगरी कुरुक्षेत्र के ऐतिहासिक बुद्ध स्तूपों का वर्णन कई ग्रंथों में है. थानेसर के शासक हर्षवर्धन के शासनकाल में यहां आये चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी कुरुभूमि में स्तूपों का वर्णन किया है. भारतवर्ष के महान सम्राट अशोक द्वरा निर्मित बौद्ध स्तूपों के बारे में पुरातत्वविदों का भी एकमत है. वर्तमान में ब्रह्म सरोवर के प्राचीन शेरोन वाले घाट के ठीक सामने पुरातत्व महत्व के एक स्थल पर आज भी जीर्णशीर्ण हालत में एक बौद्ध स्तूप मौजूद है. यहीं (कमल के फूलों के एक झुण्ड) अनोता झील पर बुद्ध ने दीक्षा दी थी. हरियाणा में दूसरा स्तूप पड़ोसी जिला यमुनानगर का चनौती का स्तूप है. अभी इन स्तूपों के संरक्षण का कार्य राज्य सरकार द्वारा जारी है.
झारखंड
चतरा: इंटखोरी चतरा में स्थित यह बौद्ध स्तूप भद्रकाली मंदिर परिसर में है. बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर यहां बुद्ध धम्म अनुयायिओं की भीड़ उमड़ी रहती है. माना जाता है कि पहले यहां बौद्ध स्तूप था, जिसे छिपाने के लिए यहां मंदिर का निर्माण किया गया.
महाराष्ट्र
एलोरा: छठीं एवं नौवीं सदी के दौरान निर्मित गुफा विहार कलचुरी, चालुक्य एवं राष्ट्रकूट राजवंशों के शासनकाल के लिए जाना जाता है. पत्थरों को नक्काशी कर निर्मित गुफाएं, विहार, बड़े हॉल, छोटे आवास अपनी महान शिल्पकला के लिए विश्व प्रसिद्ध है.
धम्म्गिरी: यह महाराष्ट्र के नासिक जिले में इगतपुरी में स्थित है. यह स्थल मुंबई महानगरी से 135 किमी. की दुरी पर स्थित है. यह अन्तराष्ट्रीय विपस्सना अकादमी का मुख्यालय है. बुद्ध धम्म के बड़े शोध केन्द्रों में से एक यहां पुरे साल विपस्सना शिविरों का आयोजन होता रहता है.
ड्रैगन पैलेस विहार: यह बुद्ध विहार कामठी, नागपुर महाराष्ट्र में स्थित है. 14 एकड़ भूमि में फैले इस विहार में एक विशाल म्यूजियम, वातानुकूलित सभागार, एक सामुदायिक भवन एवं एक पुस्तकालय है.
कान्हेरी गुफा एवं अन्य स्थल: कान्हेरी गुफा मुंबई के बोरीवली में स्थित है. इसके आलावा महाराष्ट्र में दादर, चैत्यभूमि, राजगढ़, सतारा, पुणे, औरंगाबाद जिले में दर्शनीय स्तूप एवं अन्य बौद्ध अवशेष विद्यमान हैं.
छत्तीसगढ़
सिरपुर: रायपुर से 78 किमी. की दुरी पर महासमुंद जिले में स्थित यह स्थान छठी एवं 10वीं सदी में एक प्रमुख बौद्ध स्थल था और यहां चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी भ्रमण किया था. सन् 2013 में परम पावन दलाई लामा के आने से इस स्थल का गौरव पुनः स्थापित हुआ है. उत्खनन से यहां 10 बुद्ध विहार व दस हजार बौद्ध भिक्खुओं के अध्ययन के पुख्ता प्रमाण प्राप्त हुए हैं. इसके अतिरिक्त कई बौद्ध स्तूप व नागार्जुन के आने के प्रमाण भी मिले हैं. यह दुनिया का सबसे बड़ा बौद्ध स्थल है. नालंदा में चार बुद्ध विहार मिले हैं जबकि यहां अब तक 10 बुद्ध विहार के होने के साक्ष्य प्राप्त हो चुके है.
आंध्र प्रदेश
अमरावती स्तूप: गुंटूर जिले में स्थित इसी स्तूप से स्तूप उपासना की शुरुआत हुई थी. यह भारत में निर्मित सबसे वृहद् स्तूप था, हालांकि अब इसके अवशेष ही बचे हैं. बुद्ध धम्म के विख्यात आचार्य बुद्धघोष का पता यहीं से मिलता है. आन्ध्र प्रदेश में अब तक 150 बौद्ध स्थलों की खुदाई हो चुकी है. प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर कहा जा सकता है कि बुद्ध धम्म यहां दूसरी सदी ईसा पूर्व से 14 वीं सदी तक अपने पुरे वैभव में मौजूद था व पुरे दक्षिण भारत में फैला.
चंदावरम स्तूप: यह दुर्लभ स्तूप आन्ध्र प्रदेश के प्रकाशम् जिले के चंद्रवरम में स्थित है. भारत के उतर से दक्षिण कांचीपुरम जाने के लिए एक पड़ाव था, संभवतः इसलिए यहां बुद्ध विहार बनवाया गया था.
विजयवाड़ा: बौद्ध विरासत को समेटे यहां उंडवल्ली गुफा है जो की उंडवल्ली ग्राम का ही हिस्सा है. गुंटूर जिले में कृष्णा नदी के किनारे स्थित इस गुफा को भिक्खुओं के मठ के रूप में उपयोग में लाया जाता था.
कर्नाटक
सनाती: कर्नाटक के गुलबर्ग जिले के चितापुर तहसील में स्थित सनाती बौद्ध वास्तुशिल्प के उत्कृष्टतम स्थलों में से एक है. भीमा नदी के तट पर स्थित सनाती को 1954 में पहचाना गया. 1964 से 1966 के दरम्यान पुरातत्व विभाग द्वारा इसका विधिवत सर्वेक्षण पूरा हुआ. उत्खनन से शिलालेख, पक्की मिटटी की भृतिकाएं आदि प्राप्त हुए हैं. इसी इलाके में मौजूद अनेक स्तूपों से यहां बुद्ध धम्म के विस्तार की पुष्टि होती है.
कंगनाहल्ली: यहां भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा किये गए उत्खनन से भीमा नदी के तट पर विशाल स्तूप, बाएं तट पर एक विहार परिसर तथा उसके समीप एक चैत्यगृह प्रकट हुए हैं.
गुजरात
जूनागढ़: तीसरी व चौथी सदी में निर्मित खपरा कोडिय गुफाएं गुजरात के जूनागढ़ में स्थित है. जूनागढ़ जिला अशोक के काल से ही एक प्रसिद्ध बौद्ध स्थल था. यहां अनेकों बौद्ध स्तूप, मठ, प्रस्तर गुफाएं व विशाल चैत्य हैं. अहमदाबाद से करीब 128 किमी. दूर बनास और रुपेन नदी के बीच मौजूद एक बौद्ध पुरातात्विक स्थल है, जहां 12 सेलनुमा संरचना है जो पूर्व में बुद्ध विहार रहा होगा. चीनी यात्री वडनगर के आसपास के इलाको में आये थे जिन्होंने इन इलाकों का विस्तृत वर्णन भी किया है. पुरातत्विदों ने बुद्ध मूर्ति सहित करीब 2000 कलाकृतियां खोजी है, जो अब महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय, वडोदरा के पुरातत्व संग्रहालय में रखा गया है.
हिमाचल प्रदेश
धनकर बौद्ध मठ: यह बौद्ध मठ धनकर ग्राम में हिमाचल के स्पिति में 3890 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. स्पीति और पिन नदी के संगम पर स्थित यह स्थल दुनियां में बुद्ध धम्म के ऐतिहासिक विरासतों में स्थान रखता है.
कश्मीर
परिहासपुर: श्रीनगर से 26 किमी. की दुरी पर बारामुला के पास स्थित इस स्थल पर कई बुद्ध विहार, चैत्य व स्तूप पाए गए हैं.
हारवन बौद्ध स्तूप: श्रीनगर में स्थित इस विश्व प्रसिद्ध बौद्ध स्थल की खोज सर अर्ल स्टेन ने की थी. यहां चौथी सदी में तृतीय बुद्ध धम्म संगीति का आयोजन हुआ था. यहां निर्मित स्तूप कुषाण काल के हैं. इस स्तूप का संरक्षण भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण कर रहा है. खुदाई में प्राप्त अवशेषों को भारतीय पुरातत्व विभाग ने अपने म्यूजियम में रखा है वहीं कुछ अवशेष विश्व म्यूजियम में संरक्षित है.
अरुणाचल प्रदेश
तक्त्सांग मठ: यहां महान बौद्ध गुरु पद्मसंभव ने ध्यान साधना की थी. इस मठ का निर्माण 8वीं सदी में किया गया था. छोटी सी पहाड़ी के टीले पर स्थित यह मठ हरे भरे वन से घिरा हुआ है. यहां का शांत निर्मल माहौल मन को सुकून देता है.
गोरसम चोरटेन: तवांग कस्बे से 90 किमी. दूर इस क्षेत्र का सबसे बड़ा स्तूप है. ऐसी मान्यता है कि इस स्तूप का निर्माण 12वीं सदी में एक लामा प्राधार द्वारा किया गया था. गली गली में विस्तार लिए हुए अरुणाचल प्रदेश में आज अनेक मठ विद्धमान हैं, जिनमें उर्गेलिंग मठ, बोमडिला मठ इत्यादि प्रमुख हैं.
दो द्रुल चोर्टन स्तूप: यह गंगटोक के प्रमुख आकर्षण में एक है. इसे सिक्किम का सबसे महत्वपूर्ण स्तूप माना जाता है. इसकी स्थापना त्रुलुसी रिम्पोचे ने 1945 ईस्वी में की थी. सिक्किम में भी अनेकों मठ मौजूद हैं.
पंजाब
संघोल: फतेहगढ़ साहिब जिले में स्थित एक गांव है जो चंडीगढ़ से 40 किमी दूर है. यहां प्रथम सदी में निर्मित बौद्ध स्तूप प्राप्त हुए हैं एवं एक महत्वपूर्ण बौद्ध भिक्खु के अस्थि अवशेष और बौद्ध मठ भी सामने आए हैं.
गोवा
लेमगांव गुफा: लेमगांव गुफा भिक्खुओं द्वारा ध्यान व निवास स्थान के लिए उपयोग में लाया जाता था. लेमगांव शब्द का मतलब है, लामाओं का निवास. यह स्थल उतरी गोवा के बिचोलिम शहर से 2 किमी दूर है.
राज्स्थान
विराट बौद्ध मठ: जयपुर में स्थित इस स्थल पर सम्राट अशोक यहां स्वयं आये थे. वर्षों तक यह बुद्ध धम्म के प्रचार प्रसार का केंद्र रहा. यहां एक बौद्ध स्तूप भी है जिसका आकार सांची के स्तूप के कलाशिल्प से मिलता है.
तामिलनाडु
कवेरीपुमपट्टीनम: भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा खुदाई में कवेरीपुमपट्टीनम के एक मंदिर में अनेको बुद्ध मूर्ति एवं कांस्य कलाकृतियों के प्राप्त होने से राज्य में बुद्ध धम्म के प्रभाव का पता चलता है. राज्य के ही नागपट्टीनम बुद्ध के काल के उन्नत भवनों के अवशेष भी प्राप्त हुए है जो विदेशी सहयोग से निर्मित थे.
तथागत बुद्ध से जुड़ी स्मृतियों, अवशेषों व धरोहरों की खोज निरंतर जारी है. उपरोक्त जानकारी से यह बात सामने है कि कि भारत देश में जहां देशों वहीं बुद्ध विद्यमान हैं. यह स्थिति तब है, जब बौद्ध धम्म को नष्ट करने में कोई कसर नहीं छोड़ा गया. भारतवर्ष का एक-एक ईंट, एक-एक पत्थर कहता है की भारत बुद्धमय है. बुद्ध का शासन हमारे मन पर है. दुनिया के सभी देशों में खुदाई से बुद्ध अवशेष प्राप्त हुए हैं. कभी कभी तो युद्ध में विध्वंस के पश्चात बुद्ध की मुर्तिया भूमि के गर्भ से निकली. एक कहावत भी है कि ‘हुआ युद्ध निकले बुद्ध’. बुद्ध शालीनता से देश के हर राज्य में हर गांव-मुहल्ले में मौजूद हैं.