बाबा रामदेव का देश प्रेम!

मल्टीनेशनल कंपनियां तो लुटेरी ठहरी. वह तो आयी ही हैं लाभ कमाने. भला बिना लाभ के लालच में कोई व्यापार करता है? गोलगप्पे वाला भी खोमचा नहीं लगाता बिना लाभ की उम्मीद में. लाखों का विज्ञापन दे कर रामदेव जो बहुराष्ट्रीय कंपनियों के खिलाफ ज़हर उगलते रहते हैं वह देश की मुक्त अर्थ व्यवस्था और सरकार की मेक इन इंडिया, स्टार्ट अप इंडिया, स्टैंड अप इंडिया का मज़ाक ही बना रहे हैं. पर क्या कीजियेगा, भगवा ओढ़ते हैं, पतंजलि के वारिस हैं, और सरकार के नज़दीक भी हैं.  दन्तमंजन से ले कर च्यवनप्राश और दलिया से ले कर आटा तक बेचते हैं. दवा भी बताते हैं उनके वैद्य राज बाल किशन जो वैद्यकी किस आयुर्वेद महाविद्यालय से पढ़े हैं उन्हीं को नहीं पता. पुलिस ने जब छानबीन की तो पता लगा सब फर्जी है और उन्होंने आरोग्य विज्ञान की कोई औपचारिक शिक्षा भी नहीं ली है.

2009 के महाकुम्भ में मैं हरिद्वार में पीएसी का प्रभारी था. काम भी कुम्भ में मुख्य स्नान के दिन ही रहता है. तो समय भी मेरे पास खूब था. पतंजलि आश्रम भी मैं दो बार गया और जब-जब जहां-जहां चर्चा की तो, वहां के किसानों का यह आरोप सुना कि बाबा ने उनकी जमीन जबरदस्ती लिखवा ली. जब इनका आश्रम बन रहा था तो उत्तर प्रदेश सरकार ने (तब उत्तराखंड नहीं बना था) इन्हें जमीन आबंटित की थी. उसी पर इनके आश्रम की शुरुआत हुई. फिर तो यह प्रगति करते ही गए. फिर तो यह भी व्यापारी हो गए और जैसे कि एक महत्वाकांक्षी व्यापारी देर सबेर सरकार का कृपा पात्र बनने की जुगत में रहता है यह भी महाजनो येन गतः स पन्थाः हो गए. इसका इनको लाभ भी मिल रहा हैं. कहीं महाराष्ट्र सरकार इन्हें ज़मीन दे रही है तो कहीं असम तो कहीं गोवा, लब्बो लुबाब यह है कि दिल्लीश्वर और जगदीश्वर की इन पर सतत कृपा बनी हुयी है. योग साधना का इन पर क्या असर पड़ा, यह इसी से स्पष्ट है कि, 6 दिन के अनशन में ही आईसीयू पहुंच गए और मानसिक रूप और इच्छा शक्ति से इतने दुर्बल कि जान बचाने के लिए बृहन्नला का रूप धारण करना पड़ा था एक बार!

-लेखक सेवानिवृत आईपीएस अधिकारी हैं.

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