मनु या मैकाले

भारतीय इतिहास में दो तारीखें इस देश की मूलनिवासी दलितबहुजनों के लिये विशेष मायने रखती है, पहला 06 अक्टूबर 1860 और दूसरा 26 जनवरी 1950 . 06 अक्टूबर 1860 को इंडियन पेनल कोड (भारतीय दंड संहिता) लागू हुआ था और 26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान. आईपीसी लागू होने पर कानून के समक्ष ब्राह्मण शूद्र सभी बराबर हो गये और संविधान लागू होने पर वर्षों से चली आ रही मानवता का कलंक अस्पृश्यता को संविधान की आर्टिकल 17 में न केवल समाप्त कर दिया गया बल्कि इसका आचरण और व्यवहार करना कानूनी रूप से दंडनीय भी माना गया. अब अछूत मानव पशु से मानव बन कर जी सकते थे तथा विकास पथ पर अंतरिक्ष से भी आगे जाने के लिए स्वतंत्र थे.

आई0पी0सी0 को लागू करने वाले लार्ड मेकाले (ब्रिटिश शिक्षाविद्) और संविधान की रचना करने वाले धरती पुत्र विश्वविभूति डाॅ0 बाबासाहब अम्बेडकर थे. ये दोनों महामानव बहुजनों के लिए मसीहा के रूप में अवतरित हुये थे. लार्ड मेकाले भले ही किसी और के लिए आलोचना के पात्र हो सकते हं, किन्तु बहुजनों के लिये किसी फरिस्ता से कम नहीं थे. लार्ड मेकाले: कानूनी समता के अग्रदूत:- लार्ड मेकाले ने नई शिक्षा नीति और आईपीसी लागू कर दलितों के उन्नति और मुक्ति का द्वार खोल दिया. आईपीसी लागू होने के पहले भारत में मनुस्मृति के आधार पर कानून व्यवस्था चलता था. ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्रों को एक ही अपराध के लिये अलग-अलग दंड विधान थे. ब्राह्मण मृत्युदंड ;ब्ंचपजंस च्नदपेीउमदज द्ध से मुक्त था चाहे वह कितना भी जघन्य अपराध क्यों न किया हो. परन्तु मेकाले ने वर्णवाद पर आधारित मनु की विधान को आईपीसी से ध्वस्त कर दिया तथा भारत में आजादी के पूर्व ही कानूनी रूप से समता का बेजोड़ मिषाल प्रस्तुत किया. इससे वर्षो से कू्रर षोषण के चक्की में पीसते अछूतों को जीने की एक आषा जगी. अब यदि किसी के विरूद्ध हत्या का आरोप सिद्ध होता है तो उसे भारतीय दंड संहिता की दफा 302 के तहत उम्रकैद अथवा फाँसी की सजा दी जाती है चाहे वह ब्राह्मण हो या भंगी.

मनु ने बहुजनों को षिक्षा-सम्पति से वंचित कियाः- ऋग्वेद में चार वर्णो की कल्पना है. ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र. ब्राह्मण ब्रह्मा के मुख से उत्पन्न होने के कारण शिक्षा का अधिकारी केवल वही है जबकि ब्रह्मा के पैर से जन्मे शूद्र का काम सिर्फ तीनों वर्णो की वगैर मजदूरी लिये सेवा करना है. मनु ने इसी को आधार बना कर बहुजनों पर ढ़ेर सारी निर्योग्ताएं लाद दी. उसके अनुसार शूद्र को विद्या नही ग्रहण करना चाहिए. समर्थ होने पर भी वह सम्पति नहीं रखे. वह गांव के आखिरी छोर पर बसे. जूठा भोजन करे तथा मुर्दों पर का वस्त्र पहने. शूद्र को राजा और न्यायधीश बनने का अधिकार नहीं है, आदि.

मनु के उपर्युक्त विधानों के उल्लंघन करने पर कठोर दंड दिया जाता था. मनु प्रथम व्यक्ति था जिसने भारत में अपराधों को चिन्हित कर उसे दंडविधान से जोड़ा तथा उसका नियमन किया. मनु ने षारीरिक चोट, चोरी, डकैती, झुठी गवाही, आपराधिक विष्वासघात, धोखाधड़ी, व्यभिचार तथा बलात्कार जैसे कृत्य को अपराध की श्रेणी में चिन्हित किया. राजा न्याय करता था तथा आर्थिक दंड राजकोष में जमा होता था. पीड़ित को कोई मुआवजा नहीं दिया जाता था. मनुस्मृति की रचना ईसा पूर्व 185 के आस-पास की गई थी. ऐसा नहीं है कि 2000 साल से अधिक बीत जाने कें बाद उसका असर कम हो गया. मनु का भूत आज भी ब्राह्मणों पर सवार है. मनु के विधानों का समर्थन करते हुये बाल गंगाधर तिलक ने बाबासाहब और षाहू जी महाराज द्वारा साउथवरों कमिषन के समक्ष विधान मंडलों में दलित-पिछड़ों के लिये प्रतिनिधित्व की मांग करने पर घोर आपति जताया था. वे बहुजनों को विकास के पथ पर आगे बढ़ने से वंचित करना चाह रहे थे. तिलक ने मनु विधान का अनुषरण कर कहा था कि ’’दलित पिछडों को मिडिल क्ल्लास से ज्यादा षिक्षा ग्रहण नहीं करना चाहिए.’’ ”09 जनवरी 1917 को यवतमल में उन्होंने ऐलान किया था कि ”हमारा कानून मनुस्मृति है’’( आमचा कायदा म्हण्जे मनुस्मुति). इसीलिए वे चाहते थे कि भारत में राज अंग्रेज करें और नौकरषाही ब्राह्मणों के हाथ में रहे, उनकी नज़र में स्वराज का यही मतलब था (छत्रपति षाहू द पीलर आॅफ षोसल डेमोक्रेसी).” जब तिलक जैसे महाविद्वान मनु का कट्टर सर्मथक हो सकता है तो सधारण ब्राह्मणों को क्या कहा जाय? तिलक ने मनुस्मृति द्वारा षूद्रों पर थोपी गई निर्योग्यताओं का कभी बुरा नहीं माना.

मनु विधान के कारण बाबासाहब अम्बेडकर को संस्कृत शिक्षा से वंचित किया तथा विद्वता की षिखर पर होने के बावजूद हर मोड़ पर उन्हें जाति के नाम पर तिरस्कृत किया. मनु के कारण ही महामना ज्योतिबा राव फूले को कक्षा से नाम काट कर भगा दिया गया. मनु के कारण ही शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक ब्राह्मणों ने पैर में अंगुठा से कराया तथा उनके पोता छत्रपति शाहुजी महाराज को पंचगंगा में षाही स्नान के मौके पर उनके राज पुरोहित राजोपाध्याय द्वारा अपमानित किया गया. मनु का ही प्रभाव है कि आज सारा दलित बहुजन समाज दबा कुचला तथा षोषित पीड़ित है जबकि मुट्ठी भर लोग उनपर षासन और षोषण कर रहे हैं.

लार्ड मेकाले: बहुजन षिक्षा के क्रंातिदूत:- मैकाले ने मनु के वर्षो से चली आ रही बनाई विधान को नई शिक्षा नीति लागू कर विध्वंस कर दिया तथा बहुजनों के लिये षिक्षा का द्वार खोल दिया. 10 जून 1834 को लार्ड मैकाले गवर्नर जनरल की काउंसिल का कानून सदस्य नियुक्त हो कर भारत आया. वर्ष 1813 में ब्रिटिश संसद ने ईस्ट इंडिया कम्पनी पर एक षर्त लगाई, जिसके मुताबिक कम्पनी को हर साल कम से कम एक लाख रूपये भारतीयों की षिक्षा पर खर्च करने होते थे. प्रष्न था किस तरह की षिक्षा भारतीयों को दी जाय. भारत की वर्तमान षिक्षा या ब्रिटिष सिस्टम की शिक्षा. मेकाले ने ब्रिटिश सिस्टम की शिक्षा लागू करने की सिफारिश की थी. उसने अंग्रेजी और साइंस पर जोर दिया था. गवर्नर जनरल बिलियम बैन्टिक ने मेकाले के प्रस्ताव को मंजूर कर लिया साथ ही उसने दूसरी भारतीय भाषाओं की शिक्षा को जोड़ दिया.

मेकाले की षिक्षा नीति का प्रभाव:- वर्ष 1835 से 1853 तक के काल में मेकाले की नीति का ही कार्यान्यवन हुआ. बंगाल में नये स्कूल और काॅलेज खोले गये. प्रत्येक जिले में एक जिला स्कूल खोला गया. 1841 में बंगाल, बंबई और मद्रास में लोक षिक्षा परिषदों की स्थापना की गई. 1844 में घोषणा किया कि अंग्रेजी स्कूलों में षिक्षा प्राप्त करने वाले लोगों को सरकारी नौकरियों में प्राथमिकता दी जायगी.

”अंग्रेजी शिक्षा का ही प्रभाव था जिसने अनेक स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को जन्म दिया. पाष्चात् विचार और विज्ञान से भारत में राजनैतिक जागृति, वैज्ञानिक चेतना और धार्मिक विचार धाराएँ पनपी (भारतीय शिक्षा का इतिहास-शंकर विजयवर्गीय).” अंग्रेजी शिक्षा नहीं लागू होती तो भारत बुद्ध को अब तक नहीं जान पाता. अंग्रेजी में लिखी-सर इडवीन अरनाल्ड की ’’लाइट आॅफ एशिया’’ सर्व प्रथम बुद्ध को विश्व फलक पर लाया. मैकाले की अंग्रेजी षिक्षा नीति के कारण ही कल्पना चावला और सुनिता विलियन जैसे भारतीय मूल की विदेषी महिला अंतरिक्ष में दौड़ लगाकर भारत और विश्व का मान बढ़ाया. प्रसिद्ध लेखक एवं चिंतक मा0 चन्द्रभान के अनुसार इसी शिक्षा नीति के कारण भारत सर्विस सेन्टर में विष्व में अपनी जगह बना रहा है. अमेरिका की शायद ही ऐसी कोई युनिवर्सिटी होगी जहाँ भारतीय मूल के प्रोफेसर न हो. अमेरिका और ब्रिटेन में भारतीय डाक्टरों की अच्छी डिमांड है.’’ स्वामी विवेकानंद जैसा शूद्र संत अंग्रेजी शिक्षा का सहारा लेकर ही षिकागो में हिन्दूत्व का धूम मचा सके.

मेकाले के आलोचक विकास के दुष्मनः- परम्परावादी हिन्दू मेकाले की शिक्षा नीति का आलोचना करते हंै, उसे कोषते है; इसलिए कि मेकाले ने मनू विधान को चुनौती दी तथा ब्राह्मणों की षिक्षा पर एकाधिकार की परम्परा को तोड़ कर षिक्षा में समता की धारा प्रवाहित किया. मेकाले के इस कथन ’’ हमारे पास उपलब्ध संसाधनों के आधार पर यह मूमकीन नहीं कि सभी भारतीयों को एक साथ शिक्षित किया जा सके. कोषिस करनी चाहिए कि ऐसा वर्ग तैयार किया जाय, जो रक्त रंग से तो भारतीय हो, पर स्वाद नज़रिया, नैतिकता बौद्धिकता में इंगलिष हो और जो हमारे शेष भारतीयों के बीच इन्टरप्रेटर का काम कर सके, को गलत समझा गया. सच तो यह है कि इतिहास के पन्ने कहते हंै कि मेकाले भारत के भाग्य विधाता साबित हुये. जिस अंग्रेजी की नींव उन्होनें सन 1835 में डाली आज उसी के सहारे भारत दुनिया पर हावी हो चला है. यदि अब भी कोई मेकाले को कोसता है तो माना जायगा कि वह विकास का दुश्मन है.

संस्कृत षूद्रों का जीवन नर्क बनाया:- यदि मेकाले की षिक्षा नीति और 1854 का मौजूदा एजुकेषन सिस्टम लागू नहीं होता तो क्या होता ? तब भारत की धरती पर मनुस्मृति पर आधारित शिक्षा पद्धति लागू रहता. सारे धर्मशास्त्र संस्कृत में है और इन्हीं धर्मशास्त्रों में बहुजनों के ऊपर ढ़ेर सारी निर्योग्ताएं थोपी गई है. आज भी ये सब लागू रहता . हम अनपढ़ और अनाथ रहते, जुठन पर जिंदा रहते, षरीर में चिता का भस्म लगाकर घूमते तथा मरे जानवरों की लाषें खाते और ढ़ोते रहते. बहुजन गांव के बाहरी छोर पर रहता और पषुओं जैसा जीवन जीता क्योंकि तब अंग्रेजी शिक्षा से लैस डाॅ. बाबासाहब जैसा कोई मसीहा भी नहीं मिलता, जो हमें मुक्ति देकर उन्नति के मार्ग पर अग्रसर करता. न कोई कांशीराम बनता न कोई मायावती (मुख्यमंत्री), के. आर. नारायण (राष्ट्रपति) तथा जी.बी. बाला कृष्णन (सुप्रीम कोर्ट का मुख्य न्यायधीष) पैदा होता. बहुजन सिर्फ और सिर्फ अछूत और दास बन कर पशुओं से भी बदत्तर जीवन जीता.

मनु का दंड-विधान वर्णवाद पर आधारित:- मनु ने न केवल बहुजनों को षिक्षा और सम्पति के अधिकार से वंचित किया बल्कि उनके लिये कठोर दंड विधान भी बनाया. मनु का दंड विधान जाति आधारित था. एक ही अपराध के लिए ब्राह्मण, वैश्य, क्षत्रिय तथा शूद्र के लिये अलग-अलग दंड का प्रावधान था. ब्राह्मण को मृत्युदंड से मुक्त रखा गया था. भले ही वह कईयों की हत्या कर दे. मनु के अनुसार राजा ब्राह्मण का वध नहीं करेगा, चाहे उसने कितने ही भयंकर अपराध किये हो (मनु-8.350). इस पृथ्वी पर ब्राह्मण वध के समान कोई दूसरा बड़ा पाप नहीं है अतः राजा ब्राह्मण के वध का विचार मन में भी ना लाये (मनु-8.581). राजा आर्थिक दंड की राशि ब्राह्मण को दे (मनु-8.336). यदि कोई षूद्र ब्राह्मणी स्त्री के साथ व्यभिचार करे तो उसका लिंग कटवा कर राजा सारी संपति ले ले, वैष्य को इसी अपराध के लिये एक वर्ष की कारावास और सारी सम्पति से बेदखल कर दंड दे. परन्तु इसी अपराध के लिये क्षत्रिय और ब्राह्मण को सिर्फ एक हजार पण का आर्थिक दंड दे (मनु -8-374-383). ब्राह्मण की सम्पति राजा कभी न ले (मनु-9.189). शूद्र ऊँचे वर्ण की आजीविका कभी न अपनावे, ऐसा करने पर राजा उसकी सम्पति छीन कर उसे देश से निष्कासित कर दे (मनु-10.96). अगर कोई शूद्र अहंकार वश ब्राह्मण को उपदेष दे तो राजा उसके मुंह और कान में खौलता तेल डलवावे (मनु-8.272). शूद्र यदि ब्राह्मण की निंदा करे, कठोर वचन कहे तो उसकी जिह्वा काट कर फेंक देनी चाहिए क्योंकि वह जन्म से ही नीच है.

मनु का उपरोक्त दंड विधान कू्ररतम और दिल दहला देने वाला है. यदि मेकाले आईपीसी लागू नहीं करता तो मनु विधान प्रत्यक्ष रूप से आज भी लागू रहता; तब हमारी स्थिति कैसी होती है ? यह लिखने की आवष्यकता नहीं है.

मेकाले की दंड संहिता समता पर आधारित:- प्रख्यात लेखक, स्तम्भकार और डाइवर्सिटी आन्दोलन के नायक मा. एच0 एल0 दुसाध लिखते है कि ’’लार्ड मेकाले भारत में एक फरिस्ते के रूप में आविर्भाव हुआ. वे फादर विलियन केरी और चाल्र्स ग्रान्ट के भारत सुधार वादी मंत्रों से अभिप्रेरित थे.’’ मेकाले ने भारत आने से पूर्व ब्रिटिष पार्लियामेन्ट को संबोधित करते हुये बडे क्षोभ के साथ कहा था ’’भारत में पंडितों और काजियों का कानून चलता है जो भारत के बृहतर हित में घातक है. यहाँ मुसलमान कुरान द्वारा और हिन्दू मनुविधान द्वारा षासित होता है.” उस समय भारत के विभिन्न राज्यों में क्रिमिनल लाॅ में समरूपता नहीं थी. लार्ड मेकाले भारत को एक समरूप और समता मूलक कानून देना के उद्देष्य से भारत प्रस्थान किये थे. सन् 1834 में पहला भारतीय विधि आयोग ;थ्पतेज प्दकपंद स्ंू ब्वउपेेपवदद्ध का गठन हुआ जिसका प्रथम प्रेसीडेन्ट लार्ड मेकाले थे. मेकाले 14 अक्टूबर 1837 र्को आ0पी0सी0 का ड्राफ्ट रिर्पोट तत्कालीन गर्वनर जनरल को सौंप दिया. कई बार जाँच-पड़ताल के बाद ड्राफ्ट रिर्पोट को अंतिम रूप से सन् 1856 में प्रस्तुत किया गया. अंततः मेकाले का सोच परिणाम में सामने आया और 06 अक्टूबर 1860 को इंडियन पेनल कोड (भारतीय दंड संहिता) के रूप में यह भारत में लागू हो गया. इसके पारित होते ही भारत के सभी पूर्ववर्ती नियम-कानून निष्प्रभावी हो गये तथा देष में कानूनी एकरूपता और समानता आ गई. मनु का विषमतावादी कानून मिट गया, वर्णवाद की रीढ़ टूट गई. यह भारत में बहुजनों के हक में सबसे बड़ी क्रांतिकारी घटना थी. इस आई0 पी0 सी0 ने कानून के नज़रों में सबको एक समान बना दिया क्या ब्राह्मण, क्या शूद्र सभी एक कानून की तराजू पर तौले जाने लगे. इससे बहुजनों को षिक्षा और सम्पति अर्जन करने के अधिकार मिल गये. बहुजन शिक्षक, चिकित्सक, व्यवसायी, शासक, प्रशासक और लेखक आदि बनने के सपने देखने लगे. यह सपना साकार हुआ भी. इसका सारा श्रेय लार्ड मेकाले को जाता है जिनके अगुवाई में आई0 पी0 सी0 जैसे क्रिमिनल लाॅ बने.

आई0पी0सी0 ने हिन्दू साम्राज्यवाद को ध्वस्त कियाः-मा0 दुसाध साहब डाइवर्सिटी के घोषणा पत्र में लिखते है कि ’’मेकाले ने हिन्दू साम्राज्यवाद से लड़ने का मार्ग प्रषस्त किया है. अगर उन्होंने कानून की नजरों में सबकों एक बराबर करने का उद्योग नहीं किया होता तो डाॅ. अम्बेडकर, कांषीराम, मायावती, लालू प्रसाद यादव, चन्द्रभान प्रसाद, डाॅ. संजय पासवान, राजेन्द्र यादव, एस0 के0 विश्वास इत्यादि जैसे ढे़रों नेताओं, लेखकों नौकरशाहों आदि का उदय नही होता. तब शुद्रातिशूद्रों को विभिन्न क्षेत्रोें में योग्यता प्रदर्षन का कोई अवसर नहीं मिलता. कारण, तब मनु का कानून चलता.” जिन हिन्दू भगवानों और षास्त्रों का हवाला देकर वर्ण-व्यवस्था को विकसित किया गया था, आईपीसी ने एक झटके में झूठा साबित कर दिया. आईपीसी में ब्राह्मणी अर्थव्यवस्था को भी खारिज कर दिया. लेकिन सदियों से अर्थोपार्जन के बंद पडे जिन स्रोतों को मैकाले ने शुद्रातिशूद्रों के लिये मुक्त किया उसका हिन्दू साम्राज्यवाद में शिक्षा व धन बल में उन्हें इतना कमजोर बना दिया गया था कि वे लाभ उठाने की स्थिति में ही नहीं रहे.

बहुजन समाज मेकाले को सम्मान दें:- अंग्रेजी शिक्षा और आईपीसी लागू कर लार्ड मेकाले ने बहुजनों का सदियों से जकडे़ जंजीर को काट दिया है. हम गलतफहमी वश इस मसीहा के प्रति अनादार का भाव रखते हैं, यह ठीक नहीं. हमारे अन्य बहुजन नायकों की तरह वे भी हमारा उद्धारक हैं. उन्होंने षिक्षा, सत्ता, सम्पति पर ब्राह्मणों के एकाधिकार को तोड़ कर और हमें हमारा अधिकार दिलाकर हमारा उद्धार किया है. अंग्रेजों की ईस्ट इंड़िया कम्पनी रूल के कारण ही देश में प्रथम बार सन् 1774 में नंद कुमार देव नाम के एक ब्राह्मण अपराधी कों फांसी की सजा दी गई. जो कि न्यायिक जगत में एक एक महत्वपूर्ण घटना थी. बाद में कम्पनी रूल को हटा कर पूरे भारत में समान रूप से आई0 पी0 सी0 लागू किया गया जिसका श्रेय लार्ड मेकाले को जाता है. वर्णवादी ब्राह्मणवादी के नज़रों में मेकाले भले ही आदरणीय नहीं हो परन्तु बहुजनों के लिए तो वे नायक थे. हम उन्हंे 25 अक्टूबर को उनके 208 वाँ जन्म दिन पर कोटिशः नमन करते हैं.

दो में से क्या चाहिए ? मनु या मेकाले:- इतिहास से सबक लेकर बहुजनों को यह निर्णय लेना है कि उसे किसको चुनना है ? मनु अथा मेकाले को. संकीर्णता से ऊपर उठकर निःसंकोच बहुजन विचार करे, विचार दे और विचार फैलाये. चिल्ला-चिल्लाकर इतिहास कहता है कि मेकाले ने जिस अंग्रेजी शिक्षा की नींव सन् 1835 में और आईपीसी की नींव 1860 में डाली थी उसी के बूते बहुजन विकास के पंख से अंतरिक्ष छूने को बेताब है तथा भारत दुनियां पर हावी हो चला है. इसमें कोई शक नहीं की मेकाले भारत के भाग्य विधाता साबित हुये. प्रसिद्ध स्तम्भकार, लेखक और चिंतक मा. चन्द्रभान प्रसाद का मानना है कि अंग्रेज भारत में देर से आये और पहले चले गये. यदि ब्रिटिश शासन सन् 1600 में पूर्णत स्थापित हो जाता और वे सन् 2001 तक रहते तो दलित समाज आज उन्नति के सोपान पर होता (भारतीय समाज और दलित राजनीति). चन्द्रभान जी की बातों में दम है, इसमें कोई शक नहीं.

आज मेकाले की मूत्र्ति स्थापित करने की जरूरत है; मनु की नहीं. परन्तु राजस्थान उच्च न्यायलय परिषर में अन्याय और असमसनता के प्रतिक मनु की आदमकद मूत्ति न्याय की खुली चुनौति दे रही है. किसी की मूर्ति उसके व्यक्तित्व, कृतित्व और आदर्ष की याद दिलाती है. समाज उसका अनुकरण कर मानववादी और समतावादी विकास के पथ पर प्रषस्त होता है. जब मद्रास षहर की एक प्रमुख सड़क पर जनरल नील की मूर्ति स्थापित की गई तो कांग्रेस के तत्वकालीन प्रखर सांसद एस0 सत्यमूर्ति ने जनरल नील की मूर्ति हटाये जाने का सवाल उठाते हुये कहा था कि “मनुष्य रूप में यह राक्षस मद्रास (अब चेन्नई) षहर के सुन्दरतम सार्वजनिक भागों में से एक को बदनुमा बना रहा है.’’ सत्यमूर्ति ने ब्रिटिष सरकार को याद दिलाया कि नील ने कानपुर में किस कदर क्रूरता का नंगा नाच किया था और विद्रोही गांवों को जला डालने और गांव वालों को मौत के घाट उतरवा कर तथा कथित बागियों के सिर कत़्ल कर के सार्वजनिक स्थलों पर लटकाने का काम किया था. सत्यमूर्ति ने जनरल नील के आदेष पर हुई बर्बरता को ‘‘मनुष्यता के विरूद्ध जधन्य अपराध’’ बताया और कहा कि ‘‘ऐसा नहीं हो सकता कि लोग उस मूर्ति को देख कर यह महसूस करंगेे कि इसे हटाया नहीं जाना चाहिए’’. सता पक्ष के लोगों को इस दलील को अनसुनी करने का नैतिक साहस नहीं था. वे शर्मिंदा हुये और नील की मूर्ति को हटा कर संग्रहालय में रख दिया गया. यह बात 1927 की हैं.

बिल्कूल नील की मूर्ति की तरह ही राजस्थान हाई कोर्ट परिसर में स्थापित मनु की मूर्ति मनु काल की बर्बर और विषम कानून तथा सामाजिक विधान को याद दिलाती है. यह मूर्ति आज के बहुजनों को याद दिला कर विचलित करता है कि किस तरह मनु ने भारत के मूलनिवासियों के ऊपर षास्त्रीय निर्योग्यताओं को थोप कर उन्हें ‘‘षिक्षा, सम्पति और षस्त्र’’ के अधिकार से बंचित किया. ये 85ः बहुजन घोर बंचनाओं के दौर से गुजरते हुये मानव होते हुये मानव-पषु बना दिये गये. वह मनु ही था, जिसने लिखा कि ”यदि षूद्र ब्राह्मण के सामने आसन पर बैठे तो उसके चुतड़ काट देना चाहिए, ब्राह्मणों को दुर्बचन कहे तो उसके मुंह में दस अगुंल की तपाई लोहे की छड़ घुसेड़ देना चाहिए और किसी ब्राह्मणी बाला से प्रेम करे तो उसका लिंग कटवा देना चाहिए.” इतना ही नहीं, ”यदि षूद्र अपनी जीवन निर्वाह के लिये सम्पति रखे तो ब्राह्मणों को उसे छीन लेना चाहिए.” क्या इन टीश भरी बातों का चूभन मनु की प्रतिमा देख कर बहुजन मानस में नहीं होता होगा?

वास्तव में मनु की मूर्ति की मौजूदगी अपने में मानव गरीमा का अपमान है. इस बात पर भी गौर किया जाना चाहिए कि यह मूर्ति किसी लोकप्रिय मांग के कारण नहीं लगाई गई, बल्कि हुछ लोग इकठा हुये और सार्वजनिक स्थान को हड़प लिया. वे मनु को न देखे हैं और न ही उसका इतिहास जानते हैं, मनुस्मृति किसकी कृति है यह भी ठीक-ठीक पता नहीं, परन्तु मनु के नाम पर हैं, फिर भी मनु की घृणामूलक काल्पनिक मूर्ति लगा दिये. उन्होंने यह जानते हुये भी प्रतिमा की स्थापना कर दी कि भारत के बहुसंख्यक लोग मनु और उसकी कृति से घोर नफरत करते हैं, उसकी मूत्र्ती पर कालिख पोतने हिमाकत रखते हैं. आने वाले समय में यह नफरत की आग एक बड़े क्रांति की ज्वाला का रूप ले सकती है. अतः मनु के मूर्ति को उखाड़ कर किसी अज्ञात कुड़ेदान में फेंक देना चाहिए तथा मनुस्मृति को जला कर भस्म कर देना चाहिए. बाबासाहेब डाॅ0 अम्बेडकर ने 25 दिसम्बर 1927 को काले और क्रूर कानून के प्रतिक मनुस्मृति को सार्वजनिक रूप से दहन कर यह दिखा दिया है कि बहुजनों को किसी भी हाल में मनु और उसके विधान स्वीकार्य नहीं है. आज बाबासाहेब के सच्चे अनुयायियों को ऐसा करने के लिए उद्यत होना चाहिए.

डाॅ0 विजय कुमार त्रिषरण

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एक दैत्य अथवा महान उदार द्रविड़ शासक, जिसने अपने लोगों की लुटेरे-हत्यारे आर्यो से रक्षा की

 
फोटो : TheQuint.com

महिषासुर ऐसे व्यक्तित्व का नाम है, जो सहज ही अपनी ओर लोगों को खींच लेता है. उन्हीं के नाम पर मैसूर नाम पड़ा है. यद्यपि कि हिंदू मिथक उन्हें दैत्य के रूप में चित्रित करते हैं, चामुंड़ी द्वारा उनकी हत्या को जायज ठहराते हैं, लेकिन लोकगाथाएं इसके बिल्कुल भिन्न कहानी कहती हैं. यहां तक कि बी. आर. आंबेडकर और ज्योति राव फूले जैसे क्रांतिकारी चिन्तक भी महिषासुर को एक महान उदार द्रविडियन शासक के रूप में देखते हैं, जिसने लुटेरे-हत्यारे आर्यों (सुरों) से अपने लोगों की रक्षा की.

इतिहासकार विजय महेश कहते हैं कि ‘माही’ शब्द का अर्थ एक ऐसा व्यक्ति होता है, जो दुनिया में ‘शांति कायम करे. अधिकांश देशो के राजाओं की तरह महिषासुर न केवल विद्वान और शक्तिशाली राजा थे, बल्कि उनके पास 177 बुद्धिमान सलाहकार थे. उनका राज्य प्राकृतिक संसाधनों से भरभूर था. _उनके राज्य में होम या यज्ञ जैसे विध्वंसक धार्मिक अनुष्ठानों के लिए कोई जगह नहीं थी. कोई भी अपने भोजन, आनंद या धार्मिक अनुष्ठान के लिए मनमाने तरीके से अंधाधुंध जानवरों को मार नहीं सकता था. सबसे बड़ी बात यह थी कि उनके राज्य में किसी को भी निकम्मे तरीके से जीवन काटने की इजाजत नहीं थी. उनके राज्य में मनमाने तरीके से कोई पेड़ नहीं काट सकता था. पेडों को काटने से रोकने के लिए उन्होंने बहुत सारे लोगों को नियुक्त कर रखा था.

विजय दावा करते हैं कि महिषासुर के लोग धातु की ढलाई की तकनीक के विशेषज्ञ थे. इसी तरह की राय एक अन्य इतिहासकार एम.एल. शेंदज प्रकट करती हैं, उनका कहना है कि “इतिहासकार विंसेन्ट ए स्मिथ अपने इतिहास ग्रंथ में कहते हैं कि भारत में ताम्र-युग और प्राग ऐतिहासिक कांस्य युग में औजारों का प्रयोग होता था. महिषासुर के समय में पूरे देश से लोग, उनके राज्य में हथियार खरीदने आते थे. ये हथियार बहुत उच्च गुणवत्ता की धातुओं से बने होते थे. *लोककथाओं के अनुसार महिषासुर विभिन्न वनस्पतियों और पेड़ों के औषधि गुणों को जानते थे और वे व्यक्तिगत तौर पर इसका इस्तेमाल अपने लोगों की स्वास्थ्य के लिए करते थे.*

*क्यों और कैसे इतने अच्छे और शानदार राजा को खलनायक बना दिया गया?* इस संदर्भ में सबल्टर्न संस्कृति के लेखक और शोधकर्ता योगेश मास्टर कहते हैं कि “इस बात को समझने के लिए सुरों और असुरों की संस्कृतियों के बीच के संघर्ष को समझना पडेगा”. वे कहते हैं कि “ जैसा कि हर कोई जानता है कि असुरों के महिषा राज्य में बहुत भारी संख्या में भैंसे थीं. आर्यों की चामुंडी का संबंध उस संस्कृति से था, जिसका मूल धन गाएं थीं. जब इन दो संस्कृतियों में संघर्ष हुआ, तो महिषासुर की पराजय हुई और उनके लोगों को इस क्षेत्र से भगा दिया गया”.

कर्नाटक में न केवल महिषासुर का शासन था, बल्कि इस राज्य में अन्य अनेक असुर शासक भी थे. इसकी व्याख्या करते हुए विजय कहते हैं कि “1926 में मैसूर विश्वविद्यालय ने इंडियन इकोनामिक कांफ्रेंस के लिए एक पुस्तिका प्रकाशित की थी, जिसमें कहा गया था कि _कर्नाटक राज्य में असुर मुखिया लोगों के बहुत सारे गढ़ थे. उदाहरण के लिए गुहासुर अपनी राजधानी हरिहर पर राज्य करते थे. हिडिम्बासुर चित्रदुर्ग और उसके आसपास के क्षेत्रों पर शासन करते थे. बकासुर रामानगर के राजा थे. यह तो सबको पता है कि महिषासुर मैसूर के राजा थे. यह सारे तथ्य यह बताते हैं कि आर्यों के आगमन से पहले इस परे क्षेत्र पर देशज असुरों का राज था. आर्यों ने उनके राज्य पर कब्जा कर लिया”.

आंबेडकर ने भी ब्राह्मणवादी मिथकों के इस चित्रण का पुरजोर खण्डन किया है कि असुर दैत्य थे. आंबेडकर ने अपने एक निबंध में इस बात पर जोर देते हैं कि “महाभारत और रामायण में असुरों को इस प्रकार चित्रित करना पूरी तरह गलत है कि वे मानव-समाज के सदस्य नहीं थे. असुर मानव समाज के ही सदस्य थे”. *_आंबेडकर ब्राह्मणों का इस बात के लिए उपहास उड़ाते हैं कि उन्होंने अपने देवताओं को दयनीय कायरों के एक समूह के रूप में प्रस्तुत किया है. वे कहते हैं कि हिंदुओं के सारे मिथक यही बताते हैं कि असुरों की हत्या विष्णु या शिव द्वारा नहीं की गई है, बल्कि देवियों ने किया है. यदि दुर्गा (या कर्नाटक के संदर्भ में चामुंडी) ने महिषासुर की हत्या की, तो काली ने नरकासुर को मारा. जबकि शुंब और निशुंब असुर भाईयों की हत्या दुर्गा के हाथों हुई. वाणासुर को कन्याकुमारी ने मारा. एक अन्य असुर रक्तबीज की हत्या देवी शक्ति ने की. आंबेडकर तिरस्कार के साथ कहते हैं कि “ऐसा लगता है कि भगवान लोग असुरों के हाथों से अपनी रक्षा खुद नहीं कर सकते थे, तो उन्होंने अपनी पत्नियों को, अपने आप को बचाने के लिए भेज दिया”.

*आखिर क्या कारण था कि सुरों (देवताओं) ने हमेशा अपनी महिलाओं को असुरों राजाओं की हत्या करने के लिए भेजा.* इसके कारणों की व्याख्या करते हुए विजय बताते हैं कि “देवता यह अच्छी तरह जानते थे कि असुर राजा कभी भी महिलाओं के खिलाफ अपने हथियार नहीं उठायेंगे. इनमें से अधिकांश महिलाओं ने असुर राजाओं की हत्या कपटपूर्ण तरीके से की है. अपने शर्म को छिपाने के लिए भगवानों की इन हत्यारी बीवियों के दस हाथों, अदभुत हथियारों इत्यादि की कहानी गढ़ी गई. नाटक-नौटंकी के लिए अच्छी, लेकिन अंसभव सी लगने वाली इन कहानियों, से हट कर हम इस सच्चाई को देख सकते हैं कि कैसे ब्राह्मणवादी वर्ग ने देशज लोगों के इतिहास को तोड़ा मरोड़ा. इतिहास को इस प्रकार तोड़ने मरोड़ने का उनका उद्देश्य अपने स्वार्थों की पूर्ति करना था.

केवल बंगाल या झारखण्ड में ही नहीं, बल्कि मैसूर के आस-पास भी कुछ ऐसे समुदाय रहते हैं, जो चामुंडी को उनके महान उदार राजा की हत्या के लिए दोषी ठहराते हैं. उनमें से कुछ दशहरे के दौरान महिषासुर की आत्मा के लिए प्रार्थना करते हैं. जैसा कि चामुंडेश्वरी मंदिर के मुख्य पुजारी श्रीनिवास ने मुझसे कहा कि “तमिलनाडु से कुछ लोग साल में दो बार आते हैं और महिषासुर की मूर्ति की अाराधना करते हैं”.

पिछले दो वर्षों से असुर पूरे देश में आक्रोश का मुद्दा बन रहे हैं. यदि पश्चिम बंगाल के आदिवासी लोग असुर संस्कृति पर विचार-विमर्श के लिए विशाल बैठकें कर रहे हैं, तो देश के विभिन्न विश्विद्यालयों के कैम्पसों में असुर विषय-वस्तु के इर्द-गिर्द उत्सव आयोजित किए जा रहे हैं. बीते साल उस्मानिया विश्विद्यालय और काकाटिया विश्वविद्यालय के छात्रों ने ‘नरकासुर दिवस’ मनाया था. चूंकि जेएनयू के छात्रों के महिषासुर उत्सव को मानव संसाधन मंत्री (तत्कालीन) ने इतनी देशव्यापी लोकप्रियता प्रदान कर दी थी कि, मैं उसके विस्तार में नहीं जा रही हूं.

महिषासुर और अन्य असुरों के प्रति लोगों के बढ़ते आकर्षण की क्या व्याख्या की जाए? क्या केवल इतना कह करके पिंड छुडा लिया जाए कि, मिथक इतिहास नहीं होता, लोकगाथाएं भी हमारे अतीत का दस्तावेज नहीं हो सकती हैं. विजय इसकी सटीक व्याख्या करते हुए कहते हैं कि “मनुवादियों ने बहुजनों के समृद्ध सांस्कृतिक इतिहास को अपने हिसाब से तोड़ा मरोड़ा. *हमें इस इतिहास पर पड़े धूल-धक्कड़ को झाडंना पडेगा, पौराणिक झूठों का पर्दाफाश करना पड़ेगा और अपने लोगों तथा अपने बच्चों को सच्चाई बतानी पडेगी. यही एकमात्र रास्ता है, जिस पर चल कर हम अपने सच्चे इतिहास के दावेदार बन सकते हैं.* महिषासुर और अन्य असुरों के प्रति लोगों का बढता आकर्षण बताता है कि वास्तव में यही काम हो रहा है. जय महिषासुर! जय मूलनिवासी!!

(गौरी लंकेश ने यह रिपोर्ट मूल रूप से अंग्रेजी में लिखी थी, जो वेब पोर्टल बैंगलोर मिरर में 29 फरवरी, 2016 को प्रकाशित हुई थी)

“गंगा का कपूत, गंगा के सपूत को खा गया है,

“गंगा का कपूत, गंगा के सपूत को खा गया है, यह कोई सामान्य मौत नही, यह एक राजनैतिक हत्या है एक माँ की अस्मत के लिए एक बेटे ने अपनी जान दे दी है, लेकिन कभी उसका बेटा होने का दावा नहीं किया,

और जो गला फाड़-फाड़ कर खुद को गंगा माँ का स्वघोषित बेटा बताता फिरता रहा उसी ने गंगा माँ को बेच डाला है…”

प्रो० जी०डी०अग्रवाल (स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद) गंगा को बचाने के लिए 111 दिनों से भूख हड़ताल पर चल रहे थे, परंतु माँ गंगा के स्वघोषित फर्जी बेटे और उसकी बड़बोली सरकार को इंच मात्र फ़र्क नहीं पड़ा. (जिस सरकार की जल संसाधन व गंगा सफ़ाई मंत्री उमा भारती ने अपने बड़बोलेपन में गंगा के स्वच्छ न होने पर उसी गंगा में डूबकर प्राण त्यागने का प्रण लिया था, आज वह बेहयाई की पराकाष्ठा पर विराजमान है)

गंगा माँ को बचाने के लिए अंतिम साँस तक संघर्षरत रहे प्रोफ़ेसर को कुछ दिन पूर्व ही पुलिस द्वारा जबरन अनशन स्थल से उठाकर एम्स में भर्ती करवाया गया था, जहाँ कल शाम उनकी मृत्यु हो गई, और गंगा माँ का सच्चा सपूत सदैव के लिए गंगा माँ की गोद में चिर निद्रा में लीन हो गया.

2014 में जब प्रधानमंत्री मोदी बनारस से चुनाव लड़ने आए थे, तो उत्तर प्रदेश और बनारस वासियों की भावनाओं से खेलने के लिए मोदी ने माँ गंगा को खिलौने की तरह खूब इस्तेमाल किया था. उन्होने खुद को माँ गंगा का बेटा बताया और ‘नमामि गंगे’ प्रोजेक्ट की शुरूआत की, जो इनके बाकी चुनावी नारों की तरह ही मात्र एक जुमला साबित हुआ.

लेकिन इस दुनिया में अगर अंबानी के दलाल मोदी जैसे लफ्फाज और बहुरूपिए नेता हैं तो जी०बी०अग्रवाल जैसे उच्चशिक्षित, कर्तव्यनिष्ठ और वचनबद्ध लोग भी हैं, जो मात्र सत्ता हासिल करने के लिए जुमलेबाजी करने वाले धूर्तों से बेहद आगे हैं.

आई०आई०टी० कानपुर के प्रोफ़ेसर और पर्यायवरण विभाग के प्रमुख रहे जी०डी०अग्रवाल जी ने 24 फ़रवरी 2018 व 13 जून 2018 को प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर गंगा की दयनीय स्थिति का हवाला देते हुए प्रधानमंत्री पर गंगा की उपेक्षा का आरोप लगाते हुए अंतिम साँस तक भूख हड़ताल पर बैठने की बात लिखी थी.

जिसके बाद वह विगत चार महीनों से अनवरत भूख हड़ताल पर बैठे हुए थे. उन्होने कहा था ‘अब तो लगता है गंगा की स्वच्छता के लिए जारी मेरा यह अनशन मेरी मौत के साथ ही खत्म होगा’. और हुआ भी यही, इस निकम्मी सरकार के कानों पर जूँ तक न रेंगी, और प्रोफ़ेसर ने प्राण त्याग दिए.

हमें तो यह डर हैं कि कहीं अब यह सरकार और इनके मंदबुद्धि समर्थक किसानों की तरह प्रोफ़ेसर जी०डी०अग्रवाल को भी नक्सली न घोषित कर दें. यह भक्त अपने आका मोदी की फटी पतलून को अपने हाथ से ढँककर छिपाने के लिए किसी भी हद तक नीचे गिर सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कुछ दिन पूर्व ही मोदी सरकार की गंगा सफ़ाई के प्रति लापरवाही देख फटकार लगाते हुए कहा था कि “इस तरह से तो गंगा 200 साल में भी साफ़ नहीं होगी”. गंगा के नाम पर चुनकर आई भाजपा की मोदी सरकार ने बीते चार सालों में 16 हजार करोड़ ₹ का बजट देने की बात कही थी जिसने वास्तव में गंगा माँ से ही बेईमानी की और केवल 5378 करोड़ ₹ ही बजट में दिए. बजट में जारी 5378 ₹ में से केवल 3633 करोड़ ₹ खर्च के लिए निकाले गए और इसमें से केवल 1836 करोड़ 40 लाख ₹ ही वास्तव में खर्च किए गए. अर्थात किए गए वादे का लगभग 10%!

इसके बावजूद कि 1836 करोड़ 40 लाख ₹ गंगा की सफाई पर खर्च हुए, पिछले 54 महीने में गंगा पहले के मुकाबले 58% और मैली हो गयी.

रिपोर्ट बताती है कि गंगा के पानी में कोलिफॉर्म बैक्टीरिया 58 फीसदी बढ़ गया है. 1000 मिलीलीटर पानी में 2,500 से ज्यादा कोलिफॉर्म माइक्रोऑर्गेनिज्म्स की मौजूदगी इसे नहाने के लिए असुरक्षित बना देती है. गंगा के पानी के नमूने में बैक्टीरिया दूषण आधिकारिक मानकों से 20 गुना अधिक है.

सोचिए कि यह इंसान जब अपनी माँ का नहीं हो सका तो किसका होगा? सिर्फ अडानी और अंबानी का ही हो सकता है यह. क्योंकी इसी ने एक बार कहा थी कि यह गुजराती व्यापारी है, इसके खून में व्यापार है.

हमें यह प्रण लेना चाहिए कि इन राजनैतिक नरपिशाचों की असंवेदना और लापरवाही के कारण हुतात्मा प्रोफ़ेसर जी०डी०अग्रवाल के दिए गए बलिदान को हम ज़ाया नही जाने देंगे. हमें गंगा की स्वच्छता का संकल्प लेते हुए प्रोफ़ेसर के सपनों को मंज़िल तक पहुँचाने का प्रण लेना चाहिए.

प्रोफ़ेसर जी०डी०अग्रवाल अमर रहें! निकम्मी मोदी सरकार मुर्दाबाद!

प्रतीक सत्यार्थ फ़ैज़ाबाद (उ०प्र०)

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मोदी के खिलाफ बनारस में ताल ठोकेंगे शत्रुध्न सिन्हा?

नई दिल्ली। क्या शत्रुध्न सिन्हा वाराणसी में नरेन्द्र मोदी के खिलाफ आगामी लोकसभा चुनाव में ताल ठोकेंगे. जी हां, यह सवाल उत्तर प्रदेश की राजनीति में बहुत तेजी से फैल रही है. चर्चा तेज है कि बिहारी बाबू 2019 के लोकसभा चुनाव में वाराणसी से सांसद पीएम नरेन्द्र मोदी के खिलाफ चुनाव मैदान में उतरेंगे.

दरअसल यह चर्चा 11 अक्टूबर को शत्रुध्न सिन्हा के लखनऊ में सपा कार्यालय में आयोजित कार्यक्रम में शामिल होने के बाद शुरू हुई है. इस दिन अखिलेश यादव की अगुवाई में जयप्रकाश नारायण की जयंती मनाई गई. इसमें शॉट गन शत्रुध्न सिन्हा भी शामिल हुए, जिसके बाद यह चर्चा चल पड़ी है.

लखनऊ में सपा कार्यालय में शत्रुध्न सिन्हा की मौजूदगी सीधे-सीधे भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को चुनौती थी. सिन्हा के साथ पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा भी कार्यक्रम में पहुंचे थे. कार्यक्रम में शत्रुघ्न सिन्हा उर्फ बिहारी बाबू ने कहा कि वे जेपी से प्रभावित होकर राजनीति में आए थे. अटल जी के वक्त लोकशाही थी, आज तानाशाही चल रही है. खोखली जुमलेबाजी नहीं चलेगी.

इस दौरान शत्रुध्न सिन्हा और अखिलेश यादव दोनों ने एक-दूसरे की जमकर तारीफ की. शत्रुध्न सिन्हा ने कहा कि अखिलेश के ऊर्जावान और ओजस्वी नेतृत्व में उत्तर प्रदेश जयप्रकाश जी के सपनों को पूरा करेगा और भाजपा का सफाया करने में सफल होगा. शत्रुघ्न सिन्हा ने कहा- ‘यहां अखिलेश तैयार है, बिहार में तेजस्वी तैयार हो चुका है. अब डरने को जरूरत नहीं है.’ ईवीएम पर सवाल उठाते हुए बीजेपी सांसद शत्रुघ्न सिन्हा ने कहा, ईवीएम पर भी निगाह और खयाल रखना.

इस कार्यक्रम के बाद सपा के शीर्ष नेतृत्व के बीच यह चर्चा जोरों पर है कि वाराणसी में पार्टी शत्रुध्न सिन्हा को मैदान में उतरने के लिए आग्रह कर सकती है. जल्दी ही इस संबंध में सिन्हा से बातचीत किए जाने की भी चर्चा है. ये चर्चा खोखली नहीं है, बल्कि इसके पीछे ठोस वजह भी है. दरअसल बिहार में बिहारी बाबू शत्रुध्न सिन्हा के लाखों चाहने वाले हैं. वाराणसी बिहार से सी सटा हिस्सा है. यह पूर्वांचल बेल्ट कहा जाता है, जहां सिन्हा को उतना ही पसंद किया जाता है, जितना कि बिहार के किसी हिस्से में. दूसरी बात, वाराणसी में कायस्थ वोटों की संख्या भी शत्रुध्न सिन्हा के पक्ष में जाती है. वाराणसी कैंट विधानसभा को लें तो यहां कायस्थ वोटों की संख्या 35 हजार है। सन् 1991 से लेकर ताजा विधानसभा चुनाव पर यहां कायस्थ नेता का ही कब्जा है। शहर दक्षिणी विधानसभामें भी कायस्थ वोटों की संख्या ठीक-ठाक है. तो ऐसे में अगर 2019 लोकसभा चुनाव से पहले शत्रुध्न सिन्हा भाजपा से इस्तीफा दे देते हैं तो उन्हें सपा से टिकट ऑफर किया जा सकता है. और अगर ऐसा होता है और मोदी फिर से वाराणसी से चुनाव लड़ने की हिम्मत दिखाते हैं तो अबकी लड़ाई एक तरफा नहीं रह जाएगी. शॉट गन उन्हें कड़ी टक्कर देंगे.

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प्रधानमंत्री मोदी को लिखे जीडी अग्रवाल के वो तीन पत्र, जिसका उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया

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नई दिल्ली। पिछले 112 दिनों से गंगा सफाई की मांग लेकर आमरण अनशन पर बैठे प्रोफेसर जीडी अग्रवाल का गुरुवार को निधन हो गया. उन्होंने गंगा नदी को अविरल बनाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को तीन बार पत्र लिखा था. हालांकि एक बार भी वहां से कोई भी जवाब नहीं आया.

वे अपने पत्रों में बार-बार प्रधानमंत्री को याद दिलाते रहे कि गंगा नदी को जल्द से जल्द साफ करना कितना जरूरी है. लेकिन मोदी की तरफ से कोई भी प्रतिक्रिया नहीं आई.

पहला पत्र उन्होंने उत्तरकाशी से 24 फरवरी 2018 को लिखा था, जिसमें वे गंगा की बिगड़ती स्थिति के साथ प्रधानमंत्री को साल 2014 में किए गए उनके उस वादे की याद दिलाते हैं जब बनारस में उन्होंने कहा था कि ‘मुझे मां गंगा ने बुलाया है.’ उन्होंने लिखा,

भाई, प्रधानमंत्री तो तुम बाद में बने, मां गंगाजी के बेटो में मैं तुमसे 18 वर्ष बड़ा हूं. 2014 के लोकसभा चुनाव तक तो तुम भी स्वयं मां गंगाजी के समझदार, लाडले और मां के प्रति समर्पित बेटा होने की बात करते थे. पर वह चुनाव मां के आशीर्वाद और प्रभु राम की कृपा से जीतकर अब तो तुम मां के कुछ लालची, विलासिता-प्रिय बेटे-बेटियों के समूह में फंस गए हो और उन नालायकों की विलासिता के साधन (जैसे अधिक बिजली) जुटाने के लिए, जिसे तुम लोग विकास कहते हो, कभी जल मार्ग के नाम से बूढ़ी मां को बोझा ढोने वाला खच्चर बना डालना चाहते हो, कभी ऊर्जा की आवश्यकता पूरी करने के लिए हल का, गाड़ी का या कोल्हू जैसी मशीनों का बैल. मां के शरीर का ढेर सारा रक्त तो ढेर सारे भूखे बेटे-बेटियों की फौज को पालने में ही चला जाता है जिन नालायकों की भूख ही नहीं मिटती और जिन्हें मां के गिरते स्वास्थ्य का जरा भी ध्यान नहीं.

मां के रक्त के बल पर ही सूरमा बने तुम्हारी चाण्डाल चौकड़ी के कई सदस्यों की नज़र तो हर समय जैसे मां के बचे खुचे रक्त को चूस लेने पर ही लगी रहती है. मां जीवीत रहे या भले ही मर जाए. तुम्हारे संविधान द्वारा घोषित इन बालिगों को तो जैसे मां को मां नहीं, अपनी संपत्ति मानने का अधिकार मिल गया है. समझदार बच्चे तो नाबालिग या छोटे रहने पर भी मातृ-ऋण उतारने की, मां को स्वस्थ-सुखी रखने की ही सोचते हैं और अपने नासमझ भाई-बहनों को समाझाते भी हैं. वे कुछ नासमझ, नालायक, स्वार्थी भाई-बहनों के स्वार्थ परक हित-साधन के लिए मां पर बोझा-लादने, उसे हल, कोल्हू या मशीनों में जोतने की तो सोच भी नहीं सकते खूच चूसने की तो बात ही दूर है.

तुम्हारा अग्रज होने, तुम से विद्या-बुद्धि में भी बड़ा होने और सबसे ऊपर मां गंगा जी के स्वास्थ्य-सुख-प्रसन्नता के लिए सब कुछ दांव पर लगा देने के लिए तैयार होने में तुम से आगे होने के कारण गंगा जी से संबंधित विषयों में तुम्हें समाझाने का, तुम्हें निर्देश देने का जो मेरा हक बनता है वह मां की ढेर सारी मनौतियों और कुछ अपने भाग्य और साथ में लोक-लुभावनी चालाकियों के बल पर तुम्हारे सिंहासनारूढ़ हो जाने से कम नहीं हो जाता है. उसी हक से मैं तुम से अपनी निम्न अपेक्षाएं सामने रख रहा हूं.

इसके बाद दूसरा पत्र उन्होंने हरिद्वार के कनखाल से 13 जून 2018 को लिखा. इसमें जीडी अग्रवाल ने प्रधानमंत्री को याद दिलाया कि उनके पिछले खत का कोई जवाब नहीं मिला है. अग्रवाल ने इस पत्र में भी गंगा सफाई की मांगों को दोहराया और जल्द प्रतिक्रिया देने की गुजारिश की.

हालांकि इस पत्र का भी उनके पास कोई जवाब नहीं आया. इस बीच उनकी मुलाकात केंद्रीय मंत्री उमा भारती से हुई और उन्होंने फोन पर नितिन गडकरी से बात की थी. कोई भी समाधान नहीं निकलता देख उन्होंने एक बार फिर पांच अगस्त 2018 को नरेंद्र मोदी को तीसरा पत्र लिखा.

आदरणीय प्रधानमंत्री जी,

मैंने आपको गंगाजी के संबंध में कई पत्र लिखे, लेकिन मुझे उनका कोई जवाब नहीं मिला. मुझे यह विश्वास था कि आप प्रधानमंत्री बनने के बाद गंगाजी की चिंता करेंगे, क्योंकि आपने स्वयं बनारस में 2014 के चुनाव में यह कहा था कि मुझे मां गंगा ने बनारस बुलाया है, उस समय मुझे विश्वास हो गया था कि आप शायद गंगाजी के लिए कुछ करेंगे, इसलिए मैं लगभग साढ़े चार वर्ष शान्ति से प्रतीक्षा करता रहा.

आपको पता होगा ही कि मैंने गंगाजी के लिए पहले भी अनशन किए हैं तथा मेरे आग्रह को स्वीकार करते हुए मनमोहन सिंह जी ने लोहारी नागपाला जैसे बड़े प्रोजेक्ट रद्द कर दिए थे जो कि 90 प्रतिशत बन चुके थे तथा जिसमें सरकार को हजारों करोड़ की क्षति उठानी पड़ी थी, लेकिन गंगाजी के लिए मनमोहन सिंह जी की सरकार ने यह कदम उठाया था.

इसके साथ ही इन्होंने भागीरथी जी के गंगोत्री जी से उत्तरकाशी तक का क्षेत्र इको-सेंसिटिव जोन घोषित करा दिया था जिससे गंगाजी को हानि पहुंच सकने वाले कार्य न हों.

मेरी अपेक्षा यह थी कि आप इससे दो कदम आगे बढ़ेंगे तथा गंगाजी के लिए और विशेष प्रयास करेंगे क्योंकि आपने तो गंगा का मंत्रालय ही बना दिया था. लेकिन इन चार सालों में आपकी सरकार द्वारा जो कुछ भी हुआ उससे गंगाजी को कोई लाभ नहीं हुआ.

उसकी जगह कॉरपोरेट सेक्टर और व्यापारिक घरानों को ही लाभ दिखाई दे रहे हैं. अभी तक आपने गंगा से मुनाफा कमाने की ही बात सोची है. गंगाजी को आप कुछ दे नहीं रहे हैं. ऐसा आपकी सभी योजनाओं से लगता है. कहने को आप भले ही कहें कि अब हमें गंगाजी से कुछ लेना नहीं है, उन्हें देना ही है.

दिनांक 03.08.2018 को मुझसे केंद्रीय मंत्री साध्वी उमा भारती जी मिलने आई थीं. उन्होंने नितिन गडकरी जी से मेरी फोन पर बात करवाई थी, किन्तु समाधान तो आपको करना है, इसलिए मैं सुश्री उमा भारती जी को कोई जवाब नहीं दे सका. मेरा आपसे अनुरोध है कि आप मेरी नीचे दी गई चार मांगों को, जो वही हैं जो मेरे आपको 13 जून 2018 को भेजे पत्र में थी, स्वीकार कर लीजिए, अन्यथा मैं गंगाजी के लिए उपवास करता हुआ आपनी जान दे दूंगा.

मुझे अपनी जान दे देने में कोई चिंता नहीं है, क्योंकि गंगाजी का काम मेरे लिए सबसे महत्वपूर्ण है. मैं आईआईटी का प्रोफेसर रहा हूं तथा मैं केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड एवं गंगाजी से जुड़ी हुई सरकारी संस्थाओं में रहा हूं. उसी के आधार पर मैं कह सकता हूं कि आपकी सरकार ने इन चार सालों में कोई भी सार्थक प्रयत्न गंगाजी को बचाने की दिशा में नहीं किया है. मेरा आपसे अनुरोध है कि मेरी इन चार मांगों को स्वीकार किया जाए. मैं आपको यह पत्र उमा भारती जी के माध्यम से भेज रहा हूं.

मेरी चार मांगे निम्न हैं…

1. गंगा जी के लिये गंगा-महासभा द्वारा प्रस्तावित अधिनियम ड्राफ्ट 2012 पर तुरन्त संसद द्वारा चर्चा कराकर पास कराना (इस ड्राफ्ट के प्रस्तावकों में मैं, एडवोकेट एम. सी. मेहता और डा. परितोष त्यागी शामिल थे ), ऐसा न हो सकने पर उस ड्राफ्ट के अध्याय–1 (धारा 1 से धारा 9) को राष्ट्रपति अध्यादेश द्वारा तुरन्त लागू और प्रभावी करना.

2. उपरोक्त के अन्तर्गत अलकनन्दा, धौलीगंगा, नन्दाकिनी, पिण्डर तथा मन्दाकिनी पर सभी निर्माणाधीन/प्रस्तावित जलविद्युत परियोजना तुरन्त निरस्त करना और गंगाजी एवं गंगाजी की सहायक नदियों पर सभी प्रस्तावित जलविद्युत परियोजनाओं को भी निरस्त किया जाए.

3. उपरोक्त ड्राफ्ट अधिनियम की धारा 4 (डी) वन कटान तथा 4(एफ) खनन, 4 (जी) किसी भी प्रकार की खुदान पर पूर्ण रोक तुरंत लागू कराना, विशेष रुप से हरिद्वार कुंभ क्षेत्र में.

4. एक गंगा-भक्त परिषद का प्रोविजिनल (Provisional) गठन, (जून 2019 तक के लिए). इसमें आपके द्वारा नामांकित 20 सदस्य, जो गंगा जी और केवल गंगा जी के हित में काम करने की शपथ गंगा जी में खड़े होकर लें और गंगा से जुड़े सभी विषयों पर इसका मत निर्णायक माना जाए.

प्रभु आपको सदबुद्धि दें और अपने अच्छे बुरे सभी कामों का फल भी. मां गंगा जी की अवहेलना, उन्हें धोखा देने को किसी स्थिति में माफ न करें.

मेरे द्वारा आपको भेजे गए अपने पत्र दिनांक 13 जून 2018 का कोई उत्तर या प्रतिक्रिया न पाकर मैंने 22 जून 2018 से उपवास प्रारंभ कर दिया है. इसलिए शीघ्र आवश्यक कार्यवाही करने तथा धन्यवाद सहित.

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सहारनपुर में फिर दलित-राजपूतों में विवाद, तीन युवकों की जमकर पिटाई

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उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले में एक बार फिर से विवाद हो गया. यहां बारात में शामिल होने आए दलित युवकों के बाइक से पटाखे की आवाज निकालने पर विवाद हो गया. दूसरे वर्ग के लोगों ने उनके साथ मारपीट कर दी. इसमें तीन युवक घायल हो गए. दलितों का आरोप है कि विवाद रास्ता पूछने को लेकर हुआ. मौके पर पहुंची पुलिस ने घायलों को सीएचसी फतेहपुर में भर्ती कराया. बाद में दलित समाज के लोग इकट्ठे होकर थाने पहुंचे और सात राजपूत युवकों के खिलाफ तहरीर देकर कार्रवाई की मांग की. सीओ सदर ने भी गांव में पहुंचकर स्थिति का जायजा लिया. दलित और राजपूतों के विवाद की खबर मिलते ही एसओ भारी पुलिस बल के साथ गांव पहुंचे और घायलों को सीएचसी फतेहपुर भिजवाते हुए आरोपी पक्ष के एक ग्रामीण को हिरासत में ले लिया. एहतियात के तौर पर गांव में पुलिस तैनात कर दी गई. घटना के बाद दलित पक्ष के लोग इकट्ठा होकर थाने पहुंचे. जहां दाबकी जुनारदार निवासी सुग्घन चंद पुत्र आशाराम की तरफ से बडेढ़ी निवासी सात युवकों के खिलाफ थाने में तहरीर देकर कार्रवाई की मांग की. तहरीर में आरोप है कि बाराती में गए युवक गांव में रास्ता पूछने के लिए रुके थे जिस पर राजपूतों ने जाति सूचक शब्दों का इस्तेमाल करते हुए धारदार हथियारों से हमला कर दिया.

फतेहपुर थाना अध्यक्ष एमपी सिंह ने बताया कि अल्हेड़ी गांव में दलित राजू पुत्र हुकम सिंह की बेटी की बारात दाबकी जुनारदार गांव से आई थी. गुरुवार की शाम चार बजे दो बाइकों पर सवार कुछ बाराती पास के गांव बडेढी घोघु आए थे. यहां पर वह बुलेट मोटरसाइकिलों के साइलेंसरों से पटाखे जैसी आवाज निकाल रहे थे, साथ ही अभद्र भाषा का प्रयोग भी कर रहे थे. गांव के राजपूत युवकों द्वारा ऐसा करने से रोकने पर विवाद हो गया. विवाद बढ़ने पर बडेढ़ी के युवकों ने बाइक सवार युवकों के साथ मारपीट कर दी. इसमें राम प्रसाद, अनुज, सोनू सिंह घायल हो गए. उन्होंने बताया कि तहरीर मिल गई है. रिपोर्ट दर्ज की जा रही है. गांव में तनाव जैसी कोई बात नहीं है.

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राजस्थान चुनाव: दलित संगठनों ने चुनाव से पहले जारी किया ‘घोषणा-पत्र’

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नई दिल्ली। राजस्थान में चुनाव की घोषणा के साथ हीं राज्य में सक्रिय दलित संगठन अपनी अनेक मांगों के साथ राज्य के सियासी दलों के पास पहुंचने जा रहे हैं. गुरुवार को दलित संगठनों ने समाज के इस वंचित समुदाय से जुड़े मुद्दों को लेकर एक ‘दलित घोषणा-पत्र’ को मीडिया के समक्ष जयपुर में जारी किया है. इस मांग-पत्र को वे राज्य की सियासत में सक्रिय सारे दलों को भेजकर अपनी चुनावी घोषणा-पत्र में शामिल करनें को कहेंगे.

10 पेज की इस घोषणा-पत्र को अखिल भारतीय दलित महिला अधिकार मंच ने तैयार किया है. इस घोषणा पत्र में दलित उत्थान और सरोकार से जुड़े सारे मुद्दों को शामिल किया गया है. दलितों से जुड़े सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक ,शैक्षणिक मुद्दों को लेकर तैयार किए गए इस मांग-पत्र के माध्यम से दलित समाज से जुड़े मुद्दे पर राजनीतिक दलों को अपना दृष्टिकोण भी बताना पड़ेगा.

फिलहाल चुनाव के पहले जारी इस दलित घोषणा पत्र के माध्यम से समाज के दलित समुदाय के अलावा घूमंतु समुदाय,आदिवासी और महिलाओं के अधिकार से जुड़े मांगों को भी शामिल किया गया है. इस घोषणा पत्र में छुआछुत को खत्म करना, एससी -एसटी एक्ट 1989 को पूरी तरह लागू करना, मैला उठाने के काम में लगे सफाईकर्मियों का पुर्नवास, डायन-प्रथा के खिलाफ सशक्त कानून और दलित समुदाय के लोगों को मुफ्त शिक्षा देने जैसे मुद्दों को शामिल किया गया है.

दलित महिला अधिकार मंच की राजस्थान की समन्वयक सुमन देवथिया के अनुसार, ‘ इस बार सत्ता में आने वाला दल सरकार बनने के बाद उत्पीड़न के शिकार दलितों को आर्थिक सहायता भी उपलब्ध कराए. साथ हीं राजस्थान के जिन भागों से इस तरह के ज्यादातर मामलें सामने आते हैं, उन इलाकों को संवेदनशील घोषित किया जाए.’

देवथिया का यह भी कहना है कि, ‘सिर पर मैला ढोने की प्रथा को स्थायी रूप से समाप्त किया जाना चाहिए और इस काम में लगे सफाईकर्मियों का पुनर्वास भी किया जाना चाहिए. वहीं उनके पुर्नवास के लिए सरकार को आर्थिक सहायता के साथ स्थायी नौकरी भी देनी चाहिए.’

दलित समुदाय के इस घोषणा-पत्र में दलितों के लिए लागू राजस्थान सिलिंग एक्ट के तहत दलित समुदाय के लोगों को जमीन के समान वितरण की भी मांग की गई है. इसके अलावा दलित संगठनों ने राजनीतिक दलों से अनारक्षित सीटों पर दलित महिलाओं को चुनाव में टिकट देने की भी मांग की है.

वैसे राज्य की आबादी में 17 प्रतिशत वाले SC समुदाय को आए दिन जातिगत उत्पीड़न का शिकार होना पड़ता है. राजस्थान में 5 दलितों की डांगावास कांड में हुई हत्या, राज्य के कई इलाको में ऊंची जाति के लोगों का दलितों को शादी के वक्त घोड़ी पर ना चढ़ने देना जैसी घटनाएं सामने आती हो. लेकिन दलितों के साथ होने वाले अत्याचार के मामले,अब तक राजस्थान की राजनीति में चुनावी मुद्दा बन कर नहीं उभर सकी हैं.

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ओडिशा-आंध्र में चक्रवात कहर, मछुआरों की नाव पलटी, एक की मौत

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चक्रवाती तूफान तितली उत्तरी आंध्र प्रदेश और दक्षिणी ओडिशा के तटीय तटों तक पहुंचने के बाद बंगाल की ओर बढ़ गया है. ओडिशा के गोपालपुर में आए समुद्री तूफान की चपेट में आकर मछुआरों की एक नाव डूब गई. इसमें पांच मछुआरे सवार थे, जिन्हें बचा लिया गया है. वहीं, तूफान से आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम जिले में 8 लोगों की मौत हो गई है.

ओडिशा के मौसम विभाग ने अगले 12 घंटों तक तूफानी हवाओं की चेतावनी जारी की है. एहतियात के तौर पर ओडिशा से तीन लाख लोगों को तटीय इलाकों से हटाकर सुरक्षित जगहों पर पहुंचाया गया है.

तितली का लैंडफॉल ओडिशा के गोपालपुर से 86 किमी दक्षिण-पश्चिम में रहा. तेज हवाओं के कारण कई इलाकों में बिजली के पोल और पेड़ गिरने की खबरें हैं. राहत और बचाव के लिए एनडीआरएफ की टीमों को तैनात किया गया है.

तूफान से आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम जिले में भारी बारिश हुई जिससे सैकड़ों पेड़ और बिजली के खंभे उखड़ गए. जिले के कई मंडलों में दो सेंटीमीटर से लेकर 26 सेमी. तक बारिश दर्ज की गई है. सड़क मार्ग बड़े पैमाने पर अवरुद्ध हुआ और राज्य सड़क परिवहन निगम ने अपनी बस सेवाएं निलंबित कर दी. एसडीएमए ने मुसीबत में फंसे लोगों की मदद करने के लिए टोल फ्री नंबर 18004250101 बनाया है जबकि तीन उत्तरी तटीय जिलों में नियंत्रण कक्ष चालू कर दिए गए हैं. गोपालपुर में तूफानी हवाएं 140 से 150 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से पहुंच रही है, इसकी गति 165 किमी प्रति घंटे तक होने का अनुमान है. जानकारी के मुताबिक गोपालपुर में सुबह साढ़े चार बजे 126 किमी प्रति घंटे और कलिंगपटनम में 56 किमी प्रति घंटे की तेजी से तूफानी हवाएं दर्ज की गईं.

आंध्र प्रदेश के सीएम चंद्रबाबू नायडू इस तूफान का जायजा लेने के लिए गुरुवार सुबह ही अमरावती के गर्वनेंस मॉनीटरिंग सेंटर पहुंच गए थे. तूफान की रफ्तार इतनी ज्यादा है कि गोपालपुर और बेरहमपुर में कई पेड़ उखड़ गए.

‘तितली’ के ओडिशा और आंध्र प्रदेश की ओर बढ़ने के साथ-साथ प्रशासन मुस्तैद हो गया है. तूफान में होने वाले नुकसान से बचने के लिए अलग-अलग जिलों में एनडीआरएफ 18 टीमें तैनात की गई हैं. ओडिशा, आंध्र प्रदेश, बंगाल के कई इलाकों में तितली तूफान को लेकर रेड अलर्ट जारी कर दिया गया है और 3 लाख लोगों को महफूज़ जगहों पर पहुंचाया गया है.

ओडिशा सरकार ने तूफान के चलते 11 और 12 तारीख को स्कूल-कॉलेज बंद रखने का फैसला किया है. इसके अलावा तूफान से निपटने की तैयारियों का जायजा लेने के लिए ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने एक उच्चस्तरीय बैठक भी की है. उत्तरी आंध्र प्रदेश और दक्षिणी ओडिशा के तट पर ‘तितली’ के प्रभाव को देखते हुए कई ट्रेनों को रद्द किया गया है तो वहीं कुछ के रूट में बदलाव किया है.

ओडिशा सरकार पहले ही गंजम, पुरी, खुर्दा, जगतसिंहपुर और केंद्रपाड़ा जिलों के प्रशासन को चक्रवाती तूफान ‘तितली’ की राह में आने वाले सभी संभावित क्षेत्रों को खाली कराने के निर्देश दे चुकी है. मौसम विभाग द्वारा चक्रवात तितली के गंभीर स्तर पर पहुंचने की सूचना देने के बाद मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने इन पांच जिलों के जिला अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा है कि कोई दुर्घटना ना घटे.

गंजम जिले में पहले ही जिला खाली करने की प्रक्रिया शुरू होने की समीक्षा करने के बाद पटनायक ने कहा कि सभी स्कूलों, कॉलेजों और आंगनवाड़ी केंद्रों को 11 -12 अक्टूबर को बंद रखा जाएगा, हालांकि शिक्षक ड्यूटी पर रहेंगे. मुख्य सचिव आदित्य प्रसाद पधी ने कहा कि राज्य में 11 अक्टूबर को होने जा रहे छात्र संघ चुनावों को रद्द कर दिया गया है.

चक्रवात और इसके साथ भारी बारिश आने की संभावना के बीच सभी अधिकारियों की छुट्टियों पर रोक लगा दी गई है. तूफान और बारिश से पूरे राज्य के चपेट में आने की संभावना है.

मौसम विभाग ने कहा कि ओडिशा के गोपालपुर और आंध्र प्रदेश के कलिंगापत्तनम के बीच गुरुवार तड़के भूस्खलन होने की संभावना है. अगले 18 घंटों में गुरुवार तड़के तक इसके बहुत गंभीर स्तर पर पहुंचने का भी अनुमान है. गंजम, गजपति, पुरी, जगतसिंहपुर, केंद्रपाड़ा, खुर्दा, नयागढ़, कटक, जाजपुर, भद्रक, बालासोर, कंधमाल, बौंध और ढेंकनल में गुरुवार तक तेज से मूसलाधार बारिश होने की संभावना है.

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मनुवाद की छाती पर बिरसा-फुले-अम्बेडकर…

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मनुवाद की छाती पर बिरसा-फुले-अम्बेडकर…

इस नारे को 8 अक्टूबर को जीवंत कर दिया महाराष्ट्र की अंबेडकरवादी वीरांगनाओं कांता रमेश अहीर और शीला बाई पवार ने. उन्होंने बिना किसी डर के राजस्थान हाईकोर्ट, जयपुर के परिसर में लगी “मानवता पर कलंक मनु” की मूर्ति की मुँह पर सरेआम कालिख़ पोती और वहीं बेख़ौफ खड़े होकर गिरफ्तारी भी दी.

मानवता पर कलंक मनु ने भारतीय समाज को पूरी तरह विकृत कर देने वाली संहिता बनाई. उसने गैर-बराबरी, भेदभाव और असमानतामूलक व्यवहार को लिपिबद्ध करते हुए दुनिया की सबसे निकृष्ट किताब मनु स्मृति लिखी जिस कारण महिलाओं और शूद्रों को सदियों से ग़ुलामी झेलनी पड़ी और आज तक झेलनी पड़ रही है. मानवता के विरोधी मनु की मूर्ति देश के केवल इसी हाईकोर्ट में लगी है जो न केवल मानवता बल्कि इस देश के संविधान के ख़िलाफ़ भी है.

राजस्थान हाईकोर्ट में वर्ष 1989 से अवैध रूप से मनु प्रतिमा लगी है, इसे हटाने के आदेश खुद कोर्ट दे चुका है, लेकिन उस पर मनुप्रेमियों ने स्टे लगवा दिया. मूर्ति के लगने के निर्णय के बाद से ही अम्बेडकरवादियों ने लगातार इसका विरोध किया है , इसी विरोध का परिणाम रहा कि ना तो इस मूर्ति का उद्घाटन हुआ और न नेमप्लेट लगी. मनु की ये मूर्ति बिना नाम की खड़ी हुई है, सवर्ण कानूनी दाँवपेंच खेल कर इस मामले को उलझाए हुए है. लेकिन अंबेडकरवादी संगठन भी बिना थके 26 सालों इसके अगेंस्ट केस लड़ रहे हैं.

वर्ष 1996 में मान्यवर कांशीराम जी ने इस मूर्ति को हटाने के लिये सभा भी की थी. बाद में महाराष्ट्र के मजदूर नेता बाबा आढाव ने वर्ष 2000 और 2005 में भी मनु मूर्ति हटाने के लिए पुणे से जयपुर तक यात्राएँ निकलवाई. राजस्थान के अंबेडकरवादी साथी भी लगातार इसके ख़िलाफ़ प्रयासरत रहे.

विरोध की इसी मुहिम को राष्ट्रीय पटल पर हमारी वीरांगनाओं ने ज़िंदा किया है मनु की मूर्ति को कालिख़ पोतकर. विरोध की यह गूँज पूरे देश में गूँजनी चाहिए. मनु की मूर्ति या विचारों अम्बेडकरवादी ही ख़त्म करेंगे. देश के बहुजन आंदोलन को बहुजन बेटियाँ ही आगे ले जाएंगी…..

इन वीरांगनाओं को क्रांतिकारी जयभीम…..

इनकी गिरफ्तारी और पुलिस प्रताड़ना के ख़िलाफ़ लामबंद होइए. इन्हें जान से मारने की धमकी दी जा रही है. राजस्थान के बहुजन वकील और एक्टिविस्ट साथी इनकी मदद करें. #BahuajanPride #WeDareWeCar

यूपी: पूर्व बसपा विधायक की गोली लगने से मौत, शव के पास मिली पिस्टल

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बुलंदशहर सदर सीट से बसपा के पूर्व विधायक हाजी अलीम की गोली लगने से संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई. पूर्व विधायक का गोली लगा शव उनके आवास के ऊपर के कमरे में बुधवार सुबह साढ़े 11 बजे बैड पर पड़ा मिला. शव के पास दो खोखे और उनकी लाइसेंसी पिस्टल पड़ी थी. हत्या या आत्महत्या को लेकर पुलिस जांच-पड़ताल कर रही है. पूर्व विधायक के पीआरओ ने घटना की तहरीर दी है.

एसएसपी ने बताया कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में नजदीक से कनपटी पर एक गोली लगने और उसके पार होने की बात सामने आई है, इस मामले में जांच पूरी होने के बाद ही कुछ कहा जा सकेगा. पोस्टमार्टम के बाद रात नौ बजे पूर्व विधायक के शव को आवास विकास प्रथम के पास स्थित कब्रिस्तान में सुपुर्द ए खाक कर दिया गया. इस दौरान भारी संख्या में लोग मौजूद रहे.

नगर कोतवाली क्षेत्र के ऊपरकोट के मोहल्ला मिर्चीटोला निवासी हाजी अलीम (57 वर्ष) बुलंदशहर सदर सीट से बसपा के टिकट पर 2007 और 2012 में लगातार दो बार विधायक चुने गए थे. बताया जाता है कि मंगलवार रात हाजी अलीम अपने आवास पर पहली मंजिल के कमरे में सोए हुए थे. सुबह जब नहीं उठे तो करीब 11.30 बजे कमरे की खिड़की तोड़कर उनके परिजन अंदर पहुंचे. अंदर बैड पर हाजी अलीम की दायीं कनपटी पर गोली लगा खून से लथपथ शव पड़ा था. पास में पिस्टल और दो खोखे मिले. पूर्व विधायक की गोली लगने से मौत की खबर से पुलिस महकमे में भी हड़कंप मच गया.

एसएसपी समेत एसपी सिटी, एसपी क्राइम, सीओ और कोतवाल मौके पर पहुंचे. फोरेंसिक टीम ने मौके पर जांच-पड़ताल कर कुछ साक्ष्य भी जुटाए. पुलिस ने शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. पूर्व विधायक के पीआरओ रईस अब्बासी ने नगर कोतवाली में पूर्व विधायक का गोली लगा शव कमरे में मिलने की तहरीर दी है. उधर, रात करीब आठ बजे आई पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार पूर्व विधायक की कनपटी पर नजदीक से एक गोली लगने की बात सामने आई है. पोस्टमार्टम के पास आवास विकास प्रथम के पास स्थित कब्रिस्तान में पूर्व विधायक के शव को सुपुर्द ए खाक कर दिया गया. इस दौरान हजारों लोगों ने उन्हें अंतिम विदाई दी.

पूर्व विधायक का गोली लगा शव उनके आवास पर कमरे में मिला है. मौके से उनका लाइसेंसी पिस्टल और दो खोखे मिले हैं. तीन डॉक्टरों के पैनल ने पोस्टमार्टम किया है. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में पास से कनपटी पर गोली लगने की बात सामने आई है. अभी हादसा, आत्महत्या या हत्या पर कुछ भी नहीं कहा जा सकता, जांच पूरी होने के बाद ही स्थिति साफ होगी.

कनपटी पर नजदीक से लगी गोली, खुदकुशी अथवा हादसे की आशंका

पूर्व विधायक हाजी अलीम की संदिग्ध मौत के मामले में पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पूरा मामला खुदकुशी अथवा हादसे की ओर बढ़ता दिखाई दे रहा है. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में कनपटी में नजदीक से गोली लगने का पता चला है. इसके अलावा एक ही गोली सिर से आरपार हो जाने की भी पुष्टि हुई है. ऐसे में दो खोखे में से एक पुराना होने की आशंका है.

बुधवार शाम को चिकित्सकों के पैनल ने पूर्व विधायक हाजी अलीम के शव का पोस्टमार्टम किया. पोस्टमार्टम के बाद शव को पीड़ित परिजनों के सुपुर्द कर दिया गया, वहीं पोस्टमार्टम रिपोर्ट को पुलिस के अवलोकन के लिए भेज दिया गया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आधार पर पूरा मामला खुदकुशी अथवा हादसे का प्रतीत हो रहा है. एसपी सिटी डा.प्रवीन रंजन सिंह ने बताया कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मृतक के सिर में बेहद नजदीक से गोली लगने का पता चला है.

गोली का एंट्री और एग्जिट पाइंट भी एक-एक मिला है यानि एक ही गोली सिर से आरपार हुई है. ऐसे में प्रारंभिक जांच और पोस्टमार्टम रिपोर्ट से खुदकुशी अथवा हादसे में मौत की आशंका है. फिर भी पुलिस अन्य बिंदुओं पर जांच कर रही है. जल्द ही जांच पूरी कर घटना की तह तक पहुंचा जाएगा.

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बीकानेर में राहुल की रैली, BSP के वोट बैंक में सेंध की कोशिश

राजस्थान विधानसभा चुनाव की सियासी जंग फतह करने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी राज्य के दौरे पर हैं. वो बुधवार को अपने दौरे के दूसरे दिन दलितों के मजबूत गढ़ बीकानेर में एक जनसभा को संबोधित करेंगे. जबकि राहुल से पहले बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह गुरुवार को बीकानेर में दलित सम्मेलन के जरिए जातीय गणित साधने की कोशिश कर चुके हैं.

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी बुधवार को बीकानेर की संकल्प रैली से पहले राजधानी जयपुर में यूथ कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में बैठक में शिकरत शामिल हुए. इस दौरान राहुल ने इस बैठक में विधानसभा और लोकसभा चुनावों में यूथ कांग्रेस की अहम भूमिका बताई.

बीकानेर की संकल्प रैली के जरिए राहुल ने राज्य की राजनीतिक समीकरण को साधने की योजना बनाई है. बीकानेर दलित बहुल इलाका माना जाता है. विधानसभा चुनाव के मद्देनजर बीकानेर रैली कांग्रेस के लिए काफी महत्वपूर्ण मानी जा रही है.

बता दें कि राजस्थान में करीब 17.8 दलित फीसदी मतदाता हैं. इनमें 3.9 फीसदी हिस्सा गांवों में और 3.9 फीसदी हिस्सा शहरों में है. राज्य में कुल 200 सीटें हैं. इनमें 142 सीट सामान्य, 33 सीट अनुसूचित जाति और 25 सीट अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित हैं.

राजस्थान में दलित मतदाता बीजेपी का परंपरागत वोटर माना जाता है, लेकिन उपचुनाव में पार्टी से उसका मोहभंग हुआ है. इसी का नतीजा था कि कांग्रेस को जीत और बीजेपी को हार का मुंह देखना पड़ा था. ऐसे में बीजेपी राजस्थान में अपने परंपरागत वोट बैंक दलित, राजपूत और ब्राह्मण के खिसकने से परेशान है. बीते एक दशक में दलित वोटबैंक कांग्रेस को छोड़ बीजेपी के साथ जुड़ गया है. लेकिन इस बार दलित बीजेपी का मोह छोड़ फिर से अपनी पुरानी पार्टी कांग्रेस की तरफ लौट सकते हैं.

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल ने ऐसे में जातीय समीकरण साधने की रणनीति पर काम शुरू कर दिया है. दलित समुदाय का सबसे ज्यादा वोट इसी बीकानेर संभाग में है. इसके अलावा कई सीटों पर निर्णायक भूमिका में है. बीकानेर संभाग में दो लोकसभा क्षेत्र बीकानेर और श्रीगंगानगर दलित समुदाय के लिए आरक्षित हैं. इसके अलावा 5 विधानसभा सीटें भी दलित समुदाय के आरक्षित हैं.

दलित सीटों से ज्यादा महत्वपूर्ण बात ये है कि बीकानेर संभाग में 19 विधानसभा सीटों पर दलितों का साथ आना या छिटकना हार-जीत तय करने में अहम भूमिका अदा करता है.

SC/ST एक्ट को लेकर हुए आंदोलन में जिस तरह से दलितों पर कार्रवाई हुई है, उससे वे खासा नाराज हैं. ऐसे में कांग्रेस लगातार दलितों को साधने की कोशिश में है. राहुल इसी नाराजगी को कैश कराने की जुगत में हैं.

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दलित-आदिवासी वोटों के बिखराव की यह पटकथा कौन लिख रहा है?

जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, उन राज्यों में अचानक कई दलित, आदिवासी, बहुजन, मूलनिवासी संज्ञाओं वाली राजनीतिक पार्टियों का प्रवेश, उद्भव हो गया है और उनके नवनियुक्त नेतागण सभी सीटों पर उम्मीदवार उतारने की घोषणा इस तरह कर रहे हैं, जैसे कि वे हेलिकॉप्टर में भर कर आसमान से जमीन पर उम्मीदवारों का छिड़काव कर देंगे.

दलित बहुजन मूलनिवासी नेताओं के तूफानी हवाई दौरे शुरू हो चुके हैं. नामचीन और बेनाम, दोनों ही वैरायटी के नेताओं का भारी मात्रा में राजस्थान सहित सभी चुनावी राज्यों में पदार्पण हो रहा है. इनमें से कुछ तो निजी विमानों व चॉप्टर का आनंद भी उठा रहे हैं. हाल यह है कि जिनको कोई बस में न बुलाएं, उनके लिए हेलीकॉप्टर भेजे जा रहे हैं. जमीन से आसमान तक आनंद ही आनंद है, मौजां ही मौजां.

आचार संहिता लागू हो गई है, राज्य सरकारों द्वारा 2 अप्रैल के केस वापस लेने का वादा धरा का धरा रह गया है. इससे दलित आदिवासी वर्ग में नाराजगी का बढ़ना स्वाभाविक मानते हुए भी भाजपा की सत्तारूढ़ सरकारों ने यह खतरा उठा लिया है. वे इस मुद्दे पर एकदम मौन हैं. उनकी खामोशी अजा/जजा वर्ग के फंसे हुए आंदोलनकारियों को आक्रोशित कर रही है, वहीं बड़ी संख्या में अन्य वर्गों को तुष्ट भी कर रही है.

electionबहुचर्चित और बहुप्रतीक्षित बसपा कांग्रेस का महागठबंधन बनने से पूर्व ही टूट गया है, वो भी एक ऐसे व्यक्ति को दोष देते हुए, जिसे उनकी पार्टी भी सीरियस नहीं लेती. पर बहन मायावती ने कांग्रेस अध्यक्ष व सप्रंग अध्यक्षा के प्रति नरम रुख रखते हुए सारा ठीकरा दिग्विजय सिंह पर फोड़ दिया है और राजस्थान व मध्यप्रदेश में अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है. रणनीति अब यह है कि बहुजन समाज के तमाम संघर्षशील लड़ाकू लोगों को टिकट दे कर सारी सीटें लड़ी जाए.

एक और घटना पर गौर करना भी लाज़मी होगा कि महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले के एक अनाम से गांव की दो अधेड़ महिलाएं जयपुर पहुंची और उन्होंने हाईकोर्ट में लगी मनु की मूर्ति पर काला रंग स्प्रे कर दिया और पकड़ी भी गई. वो अभी पुलिस हिरासत में हैं. उनके पक्ष में माहौल खड़ा किया जा रहा है, मूर्तियों के मान अपमान की राजनीति फिर से लौटने की संभावना प्रबल हो रही है. इसके साथ-साथ सुनियोजित तरीके से हर विधानसभा क्षेत्र से एक दलित या आदिवासी उम्मीदवार किसी न किसी वैकल्पिक दल या समूह से उतारने की कोशिश हो रही है, ताकि वह 5 से 15 हजार वोटों का कबाड़ा करके भाजपा की जीत को पक्का कर दे.

उपरोक्त बातों को अलग अलग देखा जाए तो यह स्वाभाविक सी प्रक्रिया लगती है, मगर इनको जोड़कर देखा जाये तो कुछ और ही तस्वीर बनती दिखलाई पड़ती है. ऐसा लगता है कि कोई शातिर जमात सुव्यवस्थित रूप से इस पटकथा को रच रहा है, जिसके ध्वजवाहक बने लोग दरअसल लीडर नहीं बल्कि डीलर हैं और इस नाटक को मासूम लोग बिना समझे मंचित करने को उतावले हो रहे हैं. सवाल है कि आखिर वो कौन लोग, समूह या ताकतें है जो राजस्थान की अनुसूचित जाति के 17 प्रतिशत आबादी वाले मतदाताओं और 13 फीसद वाले जनजाति वोटरों की ताकत को बिखेरने का उच्चस्तरीय षड्यंत्र रच रहे हैं? इनकी पहचान व पर्दाफाश होना बहुत जरूरी है.

अजीब प्रहसन चल रहा है. मंच पर भाजपा को रोकने की बातें, कसमें और वादे किए जा रहे हैं और धरातल पर जो काम हो रहा है, उससे चुनावी राज्यों में सीधे सीधे भाजपा की सत्ता में वापसी सुनिश्चित हो रही है. इसलिए अब शायद वक़्त आ गया है जब हमें खुलकर यह जरूर पूछना चाहिए कि पार्टनर लोगों आपका एक्चुअल प्लान क्या है? करना क्या चाहते हो? ये मिशन, विचारधारा, जन गोलबंदी आदि इत्यादि के बड़े बड़े शब्दों की आड़ में क्या करने जा रहे हो? कहीं कोई और लोग तो एजेंडा फिक्स नहीं कर रहे हैं? यह देखना बेहद जरूरी है.

कोई क्यों मुंबई, नागपुर, दिल्ली या लखनऊ में बैठ कर तय कर रहा है कि राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ का दलित आदिवासी अपने मताधिकार का कैसे उपयोग करेगा? चुनावी राज्य के बजाय किन्ही अन्य राज्यों में बैठे लोग किस मकसद से एजेंडा तय कर रहे है और क्यों? दलित आदिवासी बहुजन मूलनिवासी वोटों के इन सौदागरों से पूछिए कि आप होते कौन हैं हमारे बारे में निर्णय करने वाले? हमें मूर्ख या गुलाम समझ रखा है जो हमारे नाम पर कोई और, कहीं और फैसला करोगे?

नहीं, अब यह नहीं चलने वाला. राजस्थान वाले साथी राजस्थान में तय करेंगे, एमपी वाले एमपी में और छतीसगढ़ वाले छत्तीसगढ़ में सब कुछ तय करेंगे. ‘वोट हमारा – निर्णय तुम्हारा’ नहीं चलेगा। हम सामूहिक रूप से निर्णय करेंगे, हम यह तय करेंगे कि कौन हमारे राज्यों में संविधान विरोधी, दलित आदिवासी विरोधी भाजपा को रोक सकता है? हम ऐसे जिताऊ, टिकाऊ और गैर बिकाऊ तथा 2 अप्रैल के आंदोलन में हमारे साथ खड़े रहे उम्मीदवारों को चुनेंगे, यही हमारा मापदंड है और यही हमारा गठबंधन है. बाकी तो ठगबंधन है, डीलें हैं और डीलरशिप के मामले हैं, जिन्हें समझना अब इतना मुश्किल भी नहीं हैं.

– भंवर मेघवंशी (संपादक – शून्यकाल)

तीन राज्यों के चुनावी सर्वे से उड़ी भाजपा की नींद

PC- thehindu

नई दिल्ली। 2019 लोकसभा चुनाव से पहले तीन महत्वपूर्ण राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव के सर्वे ने भाजपा की नींदे उड़ा दी है. चुनाव की तारीख घोषित होने के बाद कई सर्वे सामने आए हैं. इसके मुताबिक भाजपा सिर्फ एक राज्य मध्यप्रदेश में वापसी कर सकती है, जबकि छत्तीसगढ़ और राजस्थान की सत्ता भाजपा से छिनने की पूरी संभावना है. इन दोनों राज्यों में कांग्रेस के सरकार बनाने की संभावना जताई जा रही है. चुनावी नतीजे 11 दिसंबर को आएंगे.

मध्य प्रदेश के लिए हुए सर्वे में कुल 230 सीटों में से भाजपा को 126 सीटें मिलने का अनुमान है. वहीं कांग्रेस 97 सीटें हासिल कर सकती है. इसके साथ ही सात सीटें अन्य को मिलने की संभावना है. सी वोटर, आई.ई.टेक ग्रुप और टाइम्स नाऊ के सर्वे में यह बात सामने आई है.

वहीं राजस्थान विधानसभा चुनाव को लेकर हुए सर्वे में 200 सीटों वाली विधानसभा में कांग्रेस को इस बार 129 सीटें मिलने की संभावना जताई गई है जबकि भाजपा को सिर्फ 63 सीटें मिलने की बात कही जा रही है. सी वोटर और टाइम्स नाऊ के सर्वे में यह अनुमान लगाया गया है. साल 2013 के चुनाव की बात करें तो तब कांग्रेस को सिर्फ 21 सीटें मिली थी जबकि बीजेपी को 163 सीटें मिली थीं. राज्य में सरकार बनाने के लिए किसी भी एक दल को 101 सीटों की जरूरत होगी.

इसके साथ ही छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के मद्देनजर सी वोटर, आई.ई.टेक ग्रुप और टाइम्स नाऊ के सर्वे के औसत में यह बात सामने आई है कि यहां 90 सीटों वाली विधानसभा में बीजेपी को इस बार 39 सीटें मिल सकती है जबकि कांग्रेस को बहुमत से 1 सीट ज्यादा यानी 47 सीटें मिलने की संभावना है. अन्य के खाते में 4 सीटें जा सकती हैं. इस सर्वे के सामने आने के बाद भाजपा नेताओं में खलबली मच गई है. हालांकि असल नतीजें क्या होंगे, यह तो 11 दिसंबर को चुनाव परिणाम सामने आने के बाद ही पता चल सकेगा.

गुजरातः साबरकांठा मामले की आग, बिहार-UP के लोगों का पलायन जारी

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गुजरात से पलायन करते बिहार के लोग (फोटो क्रेडिटः पीटीआई)

अहमदाबाद। उत्तर भारतीयों पर गुजरात में हो रहा हमला रुकने का नाम नहीं ले रहा है. गुजरात सरकार भले ही मामले को संभाल लेने का दावा कर रही हो, प्रदेश भर में हिंसा जारी है. मंगलवार को सूरत और वडोदरा में हिंसा के मामले सामने आए. वडोदरा में तो बिहार के लोगों से भरी ट्रेन पर हमला कर दिया गया. ट्रेन की 6 बोगियों में जमकर तोड़फोड़ की गई.

मंगलवार को ही सूरत, अहमदाबाद समेत कई औद्योगिक क्षेत्रों से लोग छोड़कर लोग रवाना हो चुके हैं. लोगों की मजबूरी का फायदा फैक्ट्रियों के मालिक भी जमकर उठा रहे हैं. तमाम स्थानीय कंपनियों और फैक्ट्रियों में लोगों ने तनख्वाह नहीं देने की शिकायत की है. हमला बढ़ता देख वो जल्दी-जल्दी में बिना अपनी तनख्वाह लिए ही घर वापस जा रहे हैं. अभी तक इन घटनाओं को लेकर पूरे राज्य में कुल 68 FIR दर्ज हो चुकी हैं, जबकि 500 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया है.

दूसरी ओर इस मामले में राजनीति भी तेज हो गई है. कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी पार्टियां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को निशाने पर ले रही हैं. तो वहीं बीजेपी ने अल्पेश ठाकोर के बहाने इन घटनाओं का जिम्मेदार कांग्रेस को ही बताया है. गौरतलब है कि गुजरात के साबरकांठा जिले में 28 सितंबर को एक बच्ची के साथ बलात्कार हुआ था और इस आरोप में बिहार निवासी मजदूर को गिरफ्तार किया गया था. इसके बाद से ही गुजरात में हिन्दी भाषी लोगों पर हिंसा बढ़ गई.

क्या बिहारी होना गुनाह है?

गुजरात बिहार के लोगों पर हो रहे अत्याचार और उसके बाद उनके पलायन को लेकर सुर्खियों में है. हफ्ते भर पहले 28 सितंबर को बिहारियों के खिलाफ भड़की हिंसा अब तक शांत नहीं हो सकी है. या यूं भी कहा जा सकता है कि इस हिंसा को शांत होने नहीं दिया जा रहा है. बिहार के लोगों पर हमला जारी है, और गुजरात से उनका पलायन भी जारी है.

दरअसल, गुजरात के साबरकांठा जिले में 28 सितंबर को 14 वर्षीय बालिका के साथ दुष्कर्म के मामले में बिहार के एक युवक का नाम आया था. इसके बाद पुलिस ने आरोपी युवक को गिरफ्तार कर लिया था. यह गलत काम था और गुनहगार को उसकी सजा जरूर मिलनी चाहिए. लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि एक व्यक्ति के अपराध के लिए उस प्रदेश के सभी लोगों को दोषी कैसे ठहराया जा सकता है? इस घटना के बाद जिस तरह बिहार से ताल्लुक रखने वाले हर व्यक्ति को निशाना बनाया जा रहा है, उसके बाद क्या यह सोचा जाए कि गुजरात में रहने वाला बिहार का हर व्यक्ति बलात्कारी है. या फिर क्या गुजरात के लोग यह दावा कर सकते हैं कि गुजरात में होने वाले यौन हिंसा में गुजरात का कोई भी व्यक्ति शामिल नहीं है? जाहिर सी बात है कि दोनों बातें झूठी है.

गुजरात में रह रहे बिहार और उत्तर भारतीय लोगों को 10 अक्टूबर तक गुजरात छोड़ने की धमकी दी गई है. कहा गया है कि यदि 10 अक्टूबर तक उन्होंने गुजरात नहीं छोड़ा तो उनके हाथ-पैर काट दिए जाएंगे. मीडिया की रिपोर्ट्स के मुताबिक इस धमकी के बाद अब तक 50 हजार लोग गुजरात से कूच कर गए हैं. इसमें वो तमाम लोग भी शामिल हैं, जो पिछले 5, 10 और 15 साल से गुजरात में नौकरी कर रहे थे. खुद को गुजरात का अंग मान चुके थे. उन्होंने अपने पूरे जीवन में गुजरात में ऐसा माहौल नहीं देखा, जो अब देखने को मिल रहा है.

बीते 10 सालों के आंकड़े बताते हैं कि पेट की खातिर बिहार से 7 लाख लोग गुजरात पहुंचे. सूरत जिसे हीरों के कारोबार के लिए दुनियाभर में जाना जाता है, वहां तो गुजराती से कहीं ज्यादा 56 फीसदी लोग बिहार और उत्तर भारत से हैं. इसकी वजह बिहार के लोगों का मेहनतकश होना है. वो जहां जाते हैं, अपनी मेहनत के बूते अपना एक मुकाम बना लेते हैं. देश के तमाम शहरों में अगर बिहारी मजदूर हैं तो बिहार के लोग वहां अधिकारी भी हैं.

लेकिन बीते दस दिनों में बिहारियों की सारी मेहनत, उनकी सारी ईमानदारी को लोग भूल चुके हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक अकेले गुजरात के मेहसाणा से बिहार और उत्तर भारत के 200 परिवारों ने अपने घर खाली कर दिए हैं और वे अपने अपने घरों को लौट गए हैं. कल तक ये सभी गुजरात में बसने का सपना देख रहे थे. इनके बच्चे वहां के स्कूलों में पढ़ रहे थे. इनके दोस्त भी वही गुजराती थे, जो आज उन्हें मार कर भगा रहे हैं. उन पर हमले कर रहे हैं. ये सभी एक ही सवाल पूछ रहे हैं, क्या बिहारी होना सबसे बड़ा गुनाह है? बिहारी गाली क्यों है?

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शिवसेना कार्यकर्ता बसपा में शामिल

नई दिल्ली। बहुजन समाज पार्टी की दिल्ली प्रदेश इकाई को बड़ी सफलता मिली है. दिल्ली में सक्रिय शिवसेना के नेताओं ने बहुजन समाज पार्टी में आस्था जताते हुए बसपा ज्वाइन कर लिया. सोमवार 8 अक्टूबर को दर्जन भर से ज्यादा शिवसैनिकों ने शिवसेना छोड़ कर बसपा की सदस्यता ली.

प्रदेश अध्यक्ष सुरेन्द्र कुमार सिंह ने ‘दलित दस्तक’ को इसकी जानकारी देते हुए खुशी जताई. उन्होंने कहा कि दिल्ली प्रदेश के सभी पदाधिकारी प्रदेश में लगातार पार्टी को बढ़ाने में लगे हैं. इन्हीं कोशिशों की बदौलत पार्टी लगातार लोगों को जोर रही है. शिवसेना से बसपा में शामिल नेताओं के बारे में उन्होंने कहा कि सभी ने बसपा की सदस्यता लेते हुए पार्टी की नीतियों में यकीन जताया है और 2019 में बहन कु. मायावती जी को प्रधानमंत्री बनाने का संकल्प लिया है.

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मा. कांशीराम के परिनिर्वाण पर मायावती ने लिया संकल्प

नई दिल्ली। बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक मान्यवर कांशीराम की पुण्यतिथि के मौके पर बसपा प्रमुख मायावती ने उन्हें याद किया. इस मौके पर आम तौर पर लखनऊ में रहने वाली मायावती आगामी चुनावों के कारण दिल्ली में ही मौजूद थीं, जहां उन्होंने पार्टी के केंद्रीय कार्यालय स्थित बहुजन प्रेरणा केंद्र जाकर मान्यवर कांशीराम जी को श्रद्धांजली दी. साथ ही बसपा संस्थापक की पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धांजली देने के लिए देश भर के कार्यकर्ताओं का आभार जताया. इस दौरान उन्होंने आगामी चुनावों को लेकर एक बार फिर अपना संदेश साफ तौर पर दे दिया.

श्रद्धांजली देने के बाद वहां मौजूद लोगों को संबोधित करते हुए उन्होंने मान्यवर श्री कांशीराम जी के सपनों का भारत बनाने के लिये बीजेपी जैसी घोर जातिवादी, साम्प्रदायिक, अहंकारी व विद्वेषपूर्ण सरकार को सत्ता से बाहर करने के संकल्प को दोहराया. उन्होंने कहा कि बी.एस.पी. दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों, मुस्लिम व अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों एवं सर्वसमाज के गरीबों, मजदूरों, किसानों आदि के सम्मान व स्वाभिमान के साथ कभी भी कोई समझौता नहीं कर सकती, चाहे उसके लिये कांग्रेस व बीजेपी सरकारों का कितना ही विद्वेष व प्रताड़ना झेलना पड़े.

गठबंधन पर एक बार फिर अपने बयान में उन्होंने कहा कि भाजपा को हटाने के लिए ही चुनावी गठबन्धनों के लिये भी हमारी पार्टी ने सम्मानजनक सीटें मिलने मात्र की शर्त रखी. इसका मतलब साफ तौर पर यह है कि गठबन्धन में बी.एस.पी. सीटों के लिए भीख नहीं मांगेगी. ऐसा नहीं होने पर वह अकेले अपने बलबूते पर ही चुनाव लड़ती रहेगी.

उन्होंने ऐलान किया कि बाबासाहेब और कांशीराम जी के बताये रास्ते पर पूरे जी-जान से चलती रहेगी तथा इन मामलों में कभी भी किसी भी ताक़त के आगे ना तो टूटेगी और ना ही झुकेगी, बल्कि हर समस्या व षड़यन्त्र का सामना करते हुये सत्ता की मास्टर चाबी को प्राप्त करने के लिए कोशिश जारी रखेंगी.

पार्टी प्रमुख ने कांग्रेस और भाजपा पर यह भी आरोप लगाया कि कांग्रेस व बीजेपी दोनों ही पार्टियां बी.एस.पी. व इसके नेतृत्व को बदनाम व राजनीतिक तौर पर कमजोर करने के लिए साम, दाम, दण्ड, भेद आदि अनेकों हथकण्डों का लगातार इस्तेमाल करती रहती हैं. खासकर चुनावों के समय तो यह प्रयास और भी ज़्यादा सघन व विषैला हो जाता है, जिससे काफी ज्यादा सावधान रहने की सख़्त ज़रूरत है.

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गाड़ी आगे चलाने पर जातिवादियों ने ले ली दलित युवकी की जान

शिमला। हिमाचल प्रदेश से एक परेशान कर देने वाली खबर सामने आई है. खबर यह है कि एक दलित युवक को जातिवादी युवकों ने इसलिए पीट-पीट कर मार डाला, क्योंकि वह अपनी गाड़ी उनसे आगे चला रहा था. घटना शिमला से करीब 120 किलोमीटर दूर नेरवा इलाके में बीते शुक्रवार को घटी.

पुलिस को दी गई शिकायत के मुताबिक 24 साल का रजत अपनी मां को लेने के लिए जा रहा था। जब वह नेरवा बाजार से गुजर रहा था तो पीछे से एक स्विफ्ट कार में आ रहे तीन स्थानीय युवकों ऋषभ भिकटा (19) ,कार्तिक लोथता (20) और निखिल, जिनका संबंध राजपूत समाज से था जोर जोर से हॉर्न बजाकर साइड मांगने लगे. वो रजत को लगातार गालियां देने लगें कि दलित होकर वह कैसे उनके आगे चल सकता है.

चूंकि सड़क तंग थी इसलिए रजत पास नहीं दे पाया. इससे भड़के तीनों जातिवादी गुंडे रजत को गाड़ी से खींचकर पीटने लगे. हालांकि तब ट्रैफिक ड्यूटी पर तैनात एक जवान ने बीच-बचाव कर मामला सुलझा दिया, लेकिन आरोपी अगले मोड़ पर रुककर रितेश का इंतजार करने लगे. आरोपियों ने बीच सड़क में अपनी गाड़ी रोककर रितेश का रास्ता रोक लिया और उसे बेरहमी से पीटकर फरार हो गए. थोड़ी ही देर में जब रितेश के परिजनों को पता चला तो वह घटनास्थल पर पहुंचे और उसे खून से लतपथ बेहोश पाया. उसे नेरवा के स्थानीय अस्पताल में ले जाया गया जहां उसे मृत घोषित कर दिया गया.

पुलिस ने तीनों आरोपियों ऋषभ भिकटा ,कार्तिक लोथता और निखिल को गिरफ्तार कर लिया है. उनके खिलाफ IPC की धारा 341, 223, 506, 302 और SC/ST एट्रोसिटी एक्ट के तहत मामला दर्ज कर लिया गया है. गौरतलब है कि कुछ दिन पहले ही सिरमौर जिला के बसपा नेता को पीट-पीटकर मौत के घाट उतार दिया गया था.

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मोदी के गुजरात में बिहार-यूपी के लोगों के साथ मारपीट

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के गृह राज्य गुजरात में बिहार और उत्तर प्रदेश के लोगों के साथ मारपीट के बाद भगदड़ मच गई है. इन दोनों प्रदेशों के लोग गुजरात छोड़कर वापस अपने राज्य लौटने लगे हैं. इसके बाद सियासत भी गरमा गई है.

दरअसल गुजरात के हिम्मतनगर में पिछले हफ्ते 14 महीने की एक बच्ची से बलात्कार की घटना हुई थी. इस मामले में बिहार के एक शख़्स का नाम आया था, जिसे बाद में पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था. इस वाकये के बाद गुजरात के कई इलाकों में रहने वाले यूपी और बिहार के प्रवासियों पर स्थानीय लोगों ने हमला शुरू कर दिया है. खासकर गांधीनगर, अहमदाबाद, पाटन, साबरकांठा और मेहसाणा इलाक़े से सैकड़ों प्रवासियों के साथ मारपीट की खबर है, जिसके बाद वो गुजरात छोड़कर वापस अपने घरों की ओर लौटने लगे हैं. हालांकि मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पुलिस ने उत्तर भारतीयों पर हमले के मामले में तकरीबन 342 लोगों को गिरफ़्तार कर लिया है.

घटना के बाद सियासत गरमा गई है. पीएम मोदी के गृह राज्य में उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश के लोगों पर हमले को लेकर कांग्रेस नेता संजय निरूपम ने कहा कि पीएम को यह नहीं भूलना चाहिए कि कल को उन्हें वोट मांगने के लिए वाराणसी ही जाना है. Read it also-हमें सीवर/सेप्टिक टैंको में मारना बंद करो!
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भारत ने लगातार तीसरी बार अंडर-19 एशिया कप पर किया कब्जा

नई दिल्ली। भारत की अंडर-19 क्रिकेट टीम ने एशिया कप खिताब जीत लिया है. रविवार को उसने श्रीलंका को 144 रनों से रौंदकर छठी बार एसीसी अंडर-19 एशिया कप पर कब्जा किया. अंडर-19 भारतीय टीम ने इससे पहले 2016, 2014, 2012 (पाक के साथ संयुक्त रूप से), 2003 और 1989 में यह खिताब जीता था.

मीरपुर के शेर-ए-बांग्ला नेशनल स्टेडियम में टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी करते हुए भारत ने 50 ओवरों में 304/3 रनों का विशाल स्कोर खड़ा किया. लक्ष्य का पीछा करने उतरी श्रीलंकाई टीम 38.4 ओवरों में 160 रनों पर सिमट गई. भारत की ओर से स्पिनर हर्ष त्यागी ने सर्वाधिक 6 विकेट चटकाए.

अंडर-19 भारतीय टीम की ओर से पांच में से चार बल्लेबाजों ने अर्धशतक जमाए. सलामी जोड़ी यशस्वी जायसवाल (85), अनुज रावत (57) के अलावा विकेटकीपर बल्लेबाज व कप्तान सिमरन सिंह (नाबाद 65) और आयुष बदोनी ( नाबाद 52) ने अर्धशतकीय पारियां खेलीं.

भारतीय टीम ने एक समय 45 ओवरों में 225/3 रन बनाए थे, लेकिन आखिरी पांच ओवरों में सिमरन सिंह और आयुष बदोनी 79 रन जुटाकर टीम को 300 के पार ले जाने में कामयाब रहे. सिमरन ने 37 गेंदों की पारी में 4 छक्के जड़े, जबकि बदोनी ने 28 गेंदों की पारी में ताबड़तोड़ 5 छक्के उड़ाए.

इससे पहले यशस्वी और अनुज की जोड़ी ने भारत को शानदार शुरुआत दी और 121 रनों की साझेदारी की. भारत की अंडर-19 टीम ने सेमीफाइनल में बांग्लादेश को दो रनों से हराकर एशिया कप के फाइनल में जगह बनाई थी.

जबाव में श्रीलंका ने लगातार अंतराल पर विकेट गंवाए. निशान मुदुसखा फर्नांडो ने 49 रनों की पारी खेली. हर्ष त्यागी (10-0-38-6) के अलावा सिद्धार्थ देसाई ने 2 विकेट चटकाए. मोहित जांगड़ा को एक सफलता मिली, जबकि एक खिलाड़ी रन आउट हुआ.

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