गुजरात बिहार के लोगों पर हो रहे अत्याचार और उसके बाद उनके पलायन को लेकर सुर्खियों में है. हफ्ते भर पहले 28 सितंबर को बिहारियों के खिलाफ भड़की हिंसा अब तक शांत नहीं हो सकी है. या यूं भी कहा जा सकता है कि इस हिंसा को शांत होने नहीं दिया जा रहा है. बिहार के लोगों पर हमला जारी है, और गुजरात से उनका पलायन भी जारी है.
दरअसल, गुजरात के साबरकांठा जिले में 28 सितंबर को 14 वर्षीय बालिका के साथ दुष्कर्म के मामले में बिहार के एक युवक का नाम आया था. इसके बाद पुलिस ने आरोपी युवक को गिरफ्तार कर लिया था. यह गलत काम था और गुनहगार को उसकी सजा जरूर मिलनी चाहिए. लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि एक व्यक्ति के अपराध के लिए उस प्रदेश के सभी लोगों को दोषी कैसे ठहराया जा सकता है? इस घटना के बाद जिस तरह बिहार से ताल्लुक रखने वाले हर व्यक्ति को निशाना बनाया जा रहा है, उसके बाद क्या यह सोचा जाए कि गुजरात में रहने वाला बिहार का हर व्यक्ति बलात्कारी है. या फिर क्या गुजरात के लोग यह दावा कर सकते हैं कि गुजरात में होने वाले यौन हिंसा में गुजरात का कोई भी व्यक्ति शामिल नहीं है? जाहिर सी बात है कि दोनों बातें झूठी है.
गुजरात में रह रहे बिहार और उत्तर भारतीय लोगों को 10 अक्टूबर तक गुजरात छोड़ने की धमकी दी गई है. कहा गया है कि यदि 10 अक्टूबर तक उन्होंने गुजरात नहीं छोड़ा तो उनके हाथ-पैर काट दिए जाएंगे. मीडिया की रिपोर्ट्स के मुताबिक इस धमकी के बाद अब तक 50 हजार लोग गुजरात से कूच कर गए हैं. इसमें वो तमाम लोग भी शामिल हैं, जो पिछले 5, 10 और 15 साल से गुजरात में नौकरी कर रहे थे. खुद को गुजरात का अंग मान चुके थे. उन्होंने अपने पूरे जीवन में गुजरात में ऐसा माहौल नहीं देखा, जो अब देखने को मिल रहा है.
बीते 10 सालों के आंकड़े बताते हैं कि पेट की खातिर बिहार से 7 लाख लोग गुजरात पहुंचे. सूरत जिसे हीरों के कारोबार के लिए दुनियाभर में जाना जाता है, वहां तो गुजराती से कहीं ज्यादा 56 फीसदी लोग बिहार और उत्तर भारत से हैं. इसकी वजह बिहार के लोगों का मेहनतकश होना है. वो जहां जाते हैं, अपनी मेहनत के बूते अपना एक मुकाम बना लेते हैं. देश के तमाम शहरों में अगर बिहारी मजदूर हैं तो बिहार के लोग वहां अधिकारी भी हैं.
लेकिन बीते दस दिनों में बिहारियों की सारी मेहनत, उनकी सारी ईमानदारी को लोग भूल चुके हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक अकेले गुजरात के मेहसाणा से बिहार और उत्तर भारत के 200 परिवारों ने अपने घर खाली कर दिए हैं और वे अपने अपने घरों को लौट गए हैं. कल तक ये सभी गुजरात में बसने का सपना देख रहे थे. इनके बच्चे वहां के स्कूलों में पढ़ रहे थे. इनके दोस्त भी वही गुजराती थे, जो आज उन्हें मार कर भगा रहे हैं. उन पर हमले कर रहे हैं. ये सभी एक ही सवाल पूछ रहे हैं, क्या बिहारी होना सबसे बड़ा गुनाह है? बिहारी गाली क्यों है?
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अशोक दास साल 2006 से पत्रकारिता में हैं। वह बिहार के गोपालगंज जिले से हार्वर्ड युनिवर्सिटी, अमेरिका तक पहुंचे। बुद्ध भूमि बिहार के छपरा जिला स्थित अफौर गांव के मूलनिवासी हैं। राजनीतिक विज्ञान में स्नातक (आनर्स), देश के सर्वोच्च मीडिया संस्थान ‘भारतीय जनसंचार संस्थान, (IIMC) जेएनयू कैंपस दिल्ली’ से पत्रकारिता (2005-06 सत्र) में डिप्लोमा। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में एम.ए। लोकमत, अमर उजाला, भड़ास4मीडिया और देशोन्नति (नागपुर) जैसे प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों में काम किया। पांच साल (2010-2015) तक राजनीतिक संवाददाता रहे, विभिन्न मंत्रालयों और भारतीय संसद को कवर किया।
अशोक दास ‘दलित दस्तक’ (27 मई 2012 शुरुआत) मासिक पत्रिका, वेबसाइट, यु-ट्यूब के अलावा दास पब्लिकेशन के संस्थापक एवं संपादक-प्रकाशक भी हैं। अमेरिका स्थित विश्वविख्यात हार्वर्ड युनिवर्सिटी में Caste and Media (15 फरवरी, 2020) विषय पर वक्ता के रूप में अपनी बात रख चुके हैं। 50 बहुजन नायक, करिश्माई कांशीराम, बहुजन कैलेंडर पुस्तकों के लेखक हैं।
