नई दिल्ली। राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के नेता लालू यादव और तेजस्वी यादव हमेशा इस बात के हिमायती रहे कि अगर उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) एक साथ महागठबंधन का हिस्सा बन जाएं तो यूपी और बिहार मिलकर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का विजयी रथ रोक सकते हैं. लेकिन जिस तरह मायावती ने राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस को झटका दिया है, उससे आरजेडी भी सकते में है. तेजस्वी ने तो इससे संबंधित सवाल पर चुप्पी साध ली.
विपक्षी एकता की कोशिश कर रहे तेजस्वी बिहार में सीट शेयरिंग को लेकर किसी भी सीमा तक बलिदान देने को तैयार हैं, पर मायावती के स्टैंड ने सबकुछ गड़बड़ कर दिया है. हालांकि बिहार में बसपा का कोई विधायक या सांसद नहीं है, लेकिन यूपी से सटे रोहतास, बक्सर, पश्चिम चंपारण और कैमूर में पार्टी कई बार निर्णायक भूमिका में दिखाई देती है.
जब बुधवार को मायावती ने कांग्रेस पर आरोपों की झड़ी लगाते हुए मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह को बीजेपी का एजेंट तक बता डाला. संयोग से दिग्विजय सिंह उस दिन पटना में ही थे और तेजस्वी से मुलाकात भी की थी.
जब दिल्ली जाने से पहले तेजस्वी से ये पूछा गया कि महागठबंधन से मायावती ने दूरी बना ली है तो उन्होंने कहा, समय आने दीजिए, समय पर पता चल जाएगा.
फिर दिग्विजय सिंह के बारे में मायावती के बयान पर तेजस्वी सकपका गए और इतना ही कहा कि मुझे इस पर कुछ नहीं कहना है.
लिहाजा मायावती के मूड को भांपने से पहले तेजस्वी कुछ नहीं कहना चाहते. एक कारण ये भी है कि बिहार में कांग्रेस के साथ आरजेडी की सियासी साझीदारी लंबे अरसे से है और तेजस्वी अपने किसी बयान से राहुल के साथ बनी केमिस्ट्री नहीं बिगाड़ना चाहेंगे.
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