लखबीर हत्याकांड मामले में चंद्रशेखर आजाद ने चरणजीत चन्नी को लिखी चिट्ठी, की यह मांग

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सिंधु बार्डर पर लखबीर सिंह की हत्या ने हर किसी को झकझोर कर रख दिया है। खासकर दलित समाज इससे काफी आहत है। हर कोई अपने तरीके से इसका विरोध कर रहा है। दलित समाज के नेताओं में भी इस घटना को लेकर खासा रोष है। बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती के साथ ही आजाद समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद भी इस मुद्दे पर मुखर हैं। इस बीच चंद्रशेखर आजाद आज 18 अक्टूबर को मृतक लखबीर सिंह के घरवालों से मिलने पंजाब के तरणताल पहुंचे। इस दौरान उन्होंने लखबीर सिंह के घरवालों से मिलकर उनका दर्द बांटा।

पंजाब के तरणताल जिले में लखबीर सिंह के परिवार से मिलने के बाद आजाद समाज पार्टी के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद ने पंजाब के मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर न्याय की मांग की है। अपने इस पत्र में चंद्रशेखर आजाद ने सीबीआई जांच की मांग सहित बातें उठाई है। चंद्रशेखर आजाद ने लिखा है-

माननीय चरणजीत सिंह चन्नी मुख्यमंत्री, पंजाब सरकार महोदय, जैसा कि आप जानते हैं कि 14-15 अक्टूबर को दिल्ली हरियाणा के बीच सिंधु बार्डर पर किसान आंदोलन के मंच के पास आपके राज्य पंजाब के एक दलित मजदूर लखबीर सिंह की हत्या कर दी गई थी। इस मजदूर पर आरोप लगाया जा रहा है कि उन्होंने पवित्र ग्रंथ के साथ बेअदबी की थी। मैंने 18 अक्टूबर को लखबीर सिंह के पंजाब के तरनतारन जिला स्थित गांव पर जाकर परिवार और गाँव के लोगों से मुलाकात की और जो तथ्य सामने आए हैं, उससे इस मामले में संदेह पैदा हो रहा है। परिवार का साफ कहना है कि लखबीर सिंह ऐसा कर ही नहीं सकता। मेरा तो ये भी मानना है कि अगर ये आरोप सही भी मान लिया जाएं, तो किसी को कानून हाथ में लेने का अधिकार नहीं है। ऐसे मामलों से निपटने के लिए देश में कानून है, कोर्ट है। अब स्थिति ये है कि परिवार लगातार अपमान झेल रहा है। साथ ही वे लोग खुद को असुरक्षित भी महसूस कर रहे हैं। पंजाब के हर नागरिक के अभिभावक होने के नाते आपको इस मामले में न्याय दिलाने की कोशिश करनी चाहिए। मेरा आग्रह है कि – 1. आप इस मामले की सीबीआई जांच के लिए केंद्र सरकार को लिखें 2. पीड़ित परिवार को एक करोड़ रुपये का मुआवजा दें। 3. परिवार की सुरक्षा की जिम्मेदारी आपकी पुलिस ले और इसके लिए जरूरी हो तो परिवार को चंडीगढ़ में फ्लैट देकर शिफ्ट किया जाए। उम्मीद है आप इस मामले में न्याय करेंगे।

चंद्रशेखर आजाद राष्ट्रीय अध्यक्ष आजाद समाज पार्टी (कांशीराम)

निश्चित तौर लखबीर सिंह की हत्या ने समाज के बीच में एक बड़ी बहस शुरू कर दी है और धार्मिक कट्टरता के इस रूप में मानवीयता में यकीन रखने वाले सभी लोगों को परेशान कर दिया है।

लखबीर के खून के छीटे दलितों के मन से जल्दी नहीं मिटेंगे

गुस्सा सबको आता है। गुस्सा हमें भी आता है, जब कोई बाबासाहेब की प्रतिमाएं तोड़ देता है। गुस्सा हमें भी आता है जब कोई जाति के आधार पर हमारे मान-सम्मान को ठेस पहुंचाता है। हम आए दिन किसी न किसी के द्वारा अपमानित होते हैं, तो हमें गुस्सा आता है। गुस्सा इस घटना पर भी आया जिसमें दिल्ली से सटे सिंधु बार्डर पर किसान आंदोलन के बीच शुक्रवार को दलित समाज के एक व्यक्ति की हत्या कर दी गई। तस्वीरों और वीडियो में साफ दिखा कि उस शख्स का हाथ काट दिया गया, उसे बेरहमी से उल्टा लटकाया गया। साफ दिख रहा था कि उसे बेदर्दी से पीटा गया।

जिस व्यक्ति की हत्या कर दी गई है, उसका नाम लखबीर सिंह है जो कि पंजाब के तरन-तारन जिले के चीमा खुर्द गांव का रहने वाला था। मृतक दलित समाज से ताल्लुक रखता है। इस मामले की जिम्मेदारी निहंग सिखों ने ली है और निहंग सरबजीत सिंह ने अपना जुर्म कबूल कर लिया है, जिसके बाद उसे शनिवार को गिरफ्तार कर लिया गया, मामला अब कोर्ट में है।

हत्या की जो वजह सामने आई है, उसके मुताबिक निहंग सिखों का कहना है कि लखबीर सिंह सेवादार के रूप में जुड़ा था। हत्या की बात कबूल करने वाले सरबजीत का कहना है कि लखबीर सिंह सुबह 3.30 बजे श्री गुरु ग्रंथ साहिब को चोरी कर भाग रहा था। मैं उसके पीछे भागा और उसका हाथ काट दिया। मुझे हत्या का कोई पछतावा नहीं है।

यानी सिखों की भाषा में कहें तो कुल मिलाकर लखबीर सिंह ने सिखों के पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी की थी। वह पकड़ा गया, और फिर उसे पुलिस बैरिकेट से बांध कर पहले उसकी बेदर्दी से पिटाई की गई, फिर हाथ की कलाई काट दी गई और उसकी जान ले ली गई। इस तरह वह दर्द से तड़प कर मर गया।… लेकिन यहां कुछ सवाल उठते हैं। अगर मृतक ने गुरु ग्रंथ साहब के साथ बेअदबी की थी तो निश्चित तौर पर उसकी निंदा होनी चाहिए। उसे सबक सिखाने के लिए उसके साथ मार-पीट करने की बात भी समझ में आती है। लेकिन सवाल उठता है कि इस अपराध के लिए लखबीर सिंह की हत्या कर देना कितना जायज है?

निहंग सिख के गुस्से को समझा जा सकता है। लेकिन जब सैकड़ों किसान इस किसान आंदोलन की भेंट चढ़ गए, तब इनका गुस्सा क्यों नहीं दिखा? सिख धर्म कहता है कि हर नस्ल, धर्म या लिंग के लोग समान हैं। सिख काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार इन पाँच दोषों से बचने की कोशिश करते हैं, क्योंकि यह उनके जीवन के ईश्वरीय मार्ग में बाधाएँ पैदा करते हैं। निहंग सिख तो सबसे ज्यादा धार्मिक होते हैं, फिर आखिर वह गुरु ग्रंथ साहिब में लिखी बातों को ही क्यों भूल गए? उनका क्रोध काबू में क्यों नहीं रहा?

गुरु ग्रंथ साहिब की इज्जत हम भी करते हैं, क्योंकि उसमें हमारे गुरु रविदास महाराज की बाणी भी है। जब गुरु ग्रंथ साहिब को तैयार करते समय सिख गुरुओं ने सतगुरु रैदास महाराज के साथ भेद नहीं किया, तो आखिर उसे छू लेने भर से लखबीर की हत्या क्यों कर दी गई। लखबीर ने गलत किया, लेकिन क्या उसकी गलती इतनी बड़ी थी कि इतनी बेदर्दी से उसकी जान ले ली जाती?? लखबीर के खून के छीटे दलितों के मन से जल्दी नहीं मिटेंगे।

कांशीराम के 15वें परिनिर्वाण दिवस पर लखनऊ में बड़ी रैली, संबोधित करेंगी मायावती

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 बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक मान्यवर कांशीराम के 15वें  परिनिर्वाण दिवस के मौके पर बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती जनसभा को संबोधित करेंगी। बहुजन समाज पार्टी की ओर से 9 अक्टूबर को इस मौके पर एक श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया है। यह सभा सुबह 10 बजे से मान्यवर कांशीराम जी स्मारक स्थल जो कि पुरानी जेल रोड पर स्थित है, वहां होगा। बसपा की ओर से कहा गया है कि इस कार्यक्रम में बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष व उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री सुश्री मायावती जी मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित होंगी और मान्यवर कांशीराम जी को श्रद्धांजलि देंगी। इस दौरान बहनजी उपस्थित लोगों को संबोधित भी करेंगी। यानी साफ है कि इस दौरान बसपा प्रमुख मायावती यूपी चुनाव का बिगुल फूंकने जा रही हैं।

डेरा सचखंड बल्लां: दुनिया भर के चमारों को इकट्ठा करने में लगा संगठन

 दलितों की एक जाति चमार जिसे अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है, ने देश-दुनिया में अपनी एक अलग पहचान बनाई है। चाहे राजनीतिक आंदोलन हो, सामाजिक आंदोलन या फिर धर्म का आंदोलन, यह जाति केंद्र में रही है। इसकी खासियत यह है कि यह दलित समाज की सभी जातियों को साथ लेकर चलती रही है। बाबासाहेब का अनुसरण करते हुए जब बौद्ध धर्म को आगे बढ़ाना था, यही जाति सबसे आगे रही। तो वहीं दलित समाज में जन्मे संतों के संत, संत शिरोमणि सतगुरु रविदास महाराज के आंदोलन की कमान भी इसी समाज ने संभाली और रविदासिया धर्म की शुरुआत की। और इस नए धार्मिक और सामाजिक आंदोलन का केंद्र बना डेरा सच्चखंड बल्लां।

डेरा सचखंड बल्लां में दलित दस्तक के संपादक अशोक दास

 पंजाब के जालंधर में स्थित डेरा सच्चखंड बल्लां वर्तमान में रविदासिया धर्म का सबसे बड़ा केंद्र है। लेकिन डेरा सच्चखंड बल्लां महज एक धार्मिक केंद्र ही नहीं हैं, बल्कि सामाजिक आंदोलन भी कर रहा है, और देश एवं समाज को बेहतर बनाने के लिए काम कर रहा है। इसके स्कूल चलते हैं, अस्पताल चलता है, 24 घंटे का लंगर चलता है। और इसके दरवाजे हर किसी के लिए हर वक्त खुले रहते हैं।

डेरा सच्चखंड बल्लां का यह प्रांगण अपने भीतर सतगुरु रविदास के विचारों को आगे बढाने वाले संतों की यादों को भी समेटे है। और इसकी परंपरा शुरू होती है 108 संत श्री सरवण दास से, जिनके नाम पर डेरा बल्लां बना है। संतों की परंपरा और उनकी यादों को भी डेरा सच्चखंड बल्लां में सहेज कर रखा गया है। यहां एक सत्संग भवन भी है, जहां हर रविवार को हजारों श्रद्धालु पहुंचते हैं। तमाम मौकों पर मौजूदा  गद्दीनशीन श्री 108 संत निरंजन दास जी महाराज श्रद्धालुओं को अमृतबाणी का प्रचार करते हैं।

यहां 24 घंटे का लंगर चलता है और सेवादार के रूप में रविदासिया समाज के लोग तन, मन, धन से इसके साथ जुड़े है।वाराणसी में सतगुरु रविदास के जन्म स्थान सिरगोवर्धनपुर में रविदास जयंती के मौके पर हर साल दुनिया भर से रविदासिया धर्म के लोग जुटते हैं। इसका संचालन भी जालंधर के डेरा सच्चखंड बल्लां से ही होता है। इस दौरान यहां देश के दिग्गज नेताओं का जमावड़ा लगता है, जो रविदासिया समाज की बढ़ती ताकत की कहानी कहती है। जालंधर से विशेष ट्रेन बेगमपुरा एक्सप्रेस चलती है, जिसमें वर्तमान गद्दीनशीन श्री 108 संत निरंजन दास जी महाराज के साथ दुनिया के विभिन्न हिस्सों से आए एनआरआई भी संत रविदास जन्मस्थान वाराणसी पहुंचते हैं।

वाराणसी में सतगुरु रविदास जन्मस्थान को भव्य बनाने में मान्यवर कांशीराम से लेकर बहन मायावती तक ने अपना योगदान दिया था। तो यहां पूर्व राष्ट्रपति के.आर. नारायणन भी मत्था टेकने पहुंचे। हालांकि इस बीच एक सवाल यह भी उठता है कि रविदासिया धर्म को धर्म के रूप में मान्यता देने की मांग आखिर क्यों हो रही है? जानने के लिए देखिए यह वीडियो डाक्यूमेंट्री- 

 

लखीमपुर खीरी मामलाः झुक गए योगी, राहुल-प्रियंका गांधी को लखीमपुर जाने की अनुमति

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 उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी के तिकुनिया में रविवार को हुए बवाल के बाद घमासान मचा है। तमाम विपक्षी दलों ने एक सुर में भाजपा सरकार पर हमला बोला है। इस बीच तमाम विपक्षी दल के नेता लखीमपुर पहुंचना चाह रहे हैं। प्रियंका गाँधी को मोदी सरकार ने गिरफ्तार कर लिया है। इस बीच राहुल गाँधी ने राजधानी दिल्ली में पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के साथ लखनऊ और फिर लखीमपुर खीरी जाने का ऐलान किया। हालांकि शुरूआत में भाजपा सरकार ने अनुमति देने से इंकार कर दिया, लेकिन बढ़ते दबाव के बीच आखिरकार कांग्रेस महासचिव प्रियंका गाँधी और पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी को पीड़ित परिवार से मिलने की अनुमति दे दी।

पंजाब के CM को किसान ने क्यों किया सलाम

  पंजाब में सत्ता परिवर्तन से देश भर में हलचल है। किसानों ने भी इस पर अपनी राय दी है। देखिए पंजाब के नए मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी को लेकर क्या सोचता है किसान-

रबर स्टाम्प नहीं कद्दावर नेता हैं चरणजीत सिंह चन्नी, दलित CM के बारे में जानिए सबकुछ

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राजनीति में कभी भी कुछ भी हो सकता है। एक ही पल में कोई अर्स से फर्श तो कोई फर्श से अर्स पर पहुंच सकता है। जब पंजाब के मुख्यमंत्री के लिए तमाम दिग्गजों के बीच दलित समाज के नेता चरणजीत सिंह चन्नी के नाम की घोषणा हुई तो यह कहावत फिर से सच हो गई। घोषणा के बाद अब चरणजीत सिंह चन्नी ने पंजाब के पहले दलित मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ले ली है। जब पिछले दिनों तमाम राजनीतिक दल दलित समाज के नेता को आगामी चुनाव में उप मुख्यमंत्री बनाने की घोषणा कर रहे थे, कांग्रेस ने एक रविदसिया सिख या साफ कहें कि दलित समाज के नेता के हाथ में राज्य की कमान देकर बाजी मार ली है। लेकिन क्या चरणजीत सिंह चन्नी को चुनाव के महज कुछ महीनों पहले पंजाब का मुख्यमंत्री बनाकर कांग्रेस पार्टी दलितों के बीच अपनी पकड़ को बढ़ा पाएगी, जो फिलहाल बसपा-अकाली गठबंधन की ओर जा रहे हैं। इस पर चर्चा बाद में, पहले बात करते हैं पंजाब के पहले दलित मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी की। ऐसा नहीं है कि चन्नी उधार की राजनीति करते हैं और किसी बड़े नेता के पिछलग्गू हैं। बल्कि पंजाब की राजनीति में उन्होंने अपने दम पर अपना एक कद बनाया है। 15 मार्च 1963 को जन्मे चरणजीत सिंह चन्नी ने राजनीति की शुरुआत पार्षद पद से चुनाव लड़कर किया। वह तीन बार पार्षद रहें। वह नगर काउंसिल खरड़ के प्रधान रहे।

साल 2007 में उन्होंने चमकौर साहिब से निर्दलीय चुनाव जीतकर बड़ा धमाका किया। इसके बाद प्रदेश की राजनीति में हर कोई चरणजीत सिंह चन्नी का नाम जानने लगा। बाद में वह कांग्रेस पार्टी में शामिल हुए और 2012 और 2017 में लगातार दो बार कांग्रेस के टिकट पर चमकौर साहिब से चुनाव जीतकर प्रदेश की राजनीति में बड़ा नाम बनते गए। चन्नी की गिनती प्रदेश के बढ़े लिखे नेताओं में होती है। राजनीति शास्त्र में एमए चरणजीत सिंह के पास एमबीए और एएलबी भी डिग्री भी है। कांग्रेस पार्टी के भीतर चरणजीत सिंह के कद का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 2015 में कांग्रेस पार्टी ने सुनील जाखड़ को नेता प्रतिपक्ष के पद से हटाकर चरणजीत सिंह चन्नी को नेता प्रतिपक्ष बनाया। 2017 में चन्नी को पहली बार कैबिनेट में शामिल किया गया। उनके कद का अंदाजा कैबिनेट में मिले उनके प्रोफाइल से भी लगाया जा सकता है। तमाम दलित नेताओं की तरह चरणजीत सिंह न तो सोशल जस्टिस मिनिस्टर हैं, न ही किसी आयोग के सदस्य या अध्यक्ष। बल्कि मुख्यमंत्री बनने तक चरणजीत सिंह के पास तकनीकि शिक्षा, इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग, इम्पलाइ जनरेशन, टूरिज्म व कल्चर अफेयर जैसे विभाग थे।

30 प्रतिशत दलित आबादी वाले पंजाब में पहली बार दलित समाज के व्यक्ति को मुख्यमंत्री बनाए जाने को लेकर निश्चित तौर पर देश भर में एक उत्साह है। सोशल मीडिया पर चरणजीत सिंह को बधाईयों का तांता लगा है। दलित समाज अब राजनीति के भीतर अपनी ताकत को महसूस कर रहा है। इसे बसपा-अकाली गठबंधन की पंजाब में बढ़ती ताकत के रूप में भी देखा जा रहा है। लेकिन यहां सवाल यह है कि क्या चरणजीत सिंह आगामी विधानसभा चुनाव के पहले महज कांग्रेस की ओर से एक दलित चेहरा भऱ होंगे, जिसे रबड़ स्टांप की तरह इस्तेमाल कर के अगले विधानसभा चुनाव में किनारे लगा दिया जाएगा। कांग्रेस के इस कदम के बाद सबकी निगाहें कांग्रेस की ओर है। कांग्रेस की नियत में खोट है या फिर वह ईमानदार है, इस पर निर्भऱ करेगा कि क्या वह चरणजीत सिंह को आगामी विधानसभा चुनाव में भी मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करेगी??

 

पंजाब के दलित सीएम पर बहन मायावती का बड़ा बयान

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पंजाब में कांग्रेस पार्टी द्वारा दलित समाज के नेता चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाए जाने के दांव पर देश की राजनीति गर्मा गई है। हर पार्टी और नेता इसको अपने तरीके से देख रहा है। इस बीच बहुजन समाज पार्टी की मुखिया सुश्री मायावती ने भी पंजाब के नए मुख्यमंत्री को लेकर बड़ा बयान दिया है।

पंजाब में पहले दलित मुख्यमंत्री के राजनीतिक मायने

गुरुओं की धरती जहां से संतों ने अनगिनत सामाजिक आंदोलन चलाए, जिसे पांच दरियावों की धरती भी कहा जाता है, जहां दलित मतदाताओं की संख्या पूरे भारत में सबसे ज्यादा है, जहां पर कांशीराम सरीखे दलित नेता ने जन्म लिया, में आज आजादी के 74 वर्षों के लंबे इंतजार के बाद पहला दलित मुख्यमंत्री नामित किया गया है। पंजाब भारत का एकमात्र प्रदेश है जहां पर दलितों की संख्या सबसे ज्यादा है इसके बावजूद प्रदेश की कमान आज तक दलितों को नहीं मिली, परंतु आज कांग्रेस आलाकमान ने सभी नामों पर चर्चा करने के बाद 2007 से लगातार दलित विधायक “चरनजीत सिंह चन्नी” को प्रदेश का मुख्यमंत्री घोषित किया है।

हम देखते हैं कि पंजाब सरकार और कांग्रेस पार्टी में पिछले तीन महीनों से भारी कलह चल रही थी, और हाल ही में मौजूदा मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की इच्छा के खिलाफ नवजोत सिंह सिद्धू को पंजाब प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष नियुक्त किया गया, इसके बाद निरन्तर प्रदेश की राजनीति में गहमा गहमी का माहौल बना हुआ था। 18 सितंबर की दोपहर को कैप्टन अमरिंदर सिंह ने सभी को चकित करते हुए मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर कहा कि पिछले कुछ समय से उन्हें पार्टी आलाकमान द्वारा अपमानित किया जा रहा है इसलिए अब उनका इस पद पर बने रहना उनके आत्मसम्मान के खिलाफ है। और उन्होंने खुले तौर पर कहा कि नवजोत सिंह सिद्धू को यदि पार्टी मुख्यमंत्री बनाती है तो वो इसका साफ तौर पर विरोध करेंगे।

19 सितंबर की शाम होते होते पार्टी आलाकमान ने चरणजीत सिंह चन्नी को प्रदेश का नया मुख्यमंत्री घोषित कर दिया है। कांग्रेस पार्टी ने प्रदेश में पहला दलित मुख्यमंत्री बना कर अकाली बसपा गठबंधन, आम आदमी पार्टी और भाजपा की उम्मीदों को झटका दिया है, क्योंकि ये सभी राजनीतिक दल इस बार चुनावों में दलित मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए प्रदेश में दलित नेता को मुख्यमंत्री या उप मुख्यमंत्री बनाने की घोषणा कर रहे थे।

चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बना कर कांग्रेस पार्टी ने दलित मतदाताओं को लुभाने का दांव चला है साथ मे प्रदेश में जातीय समीकरण को सुलझाने की कोशिश की है। काफी लंबे समय से ये मांग चल रही थी कि यदि प्रदेश में मुख्यमंत्री जट्ट सिख समुदाय से हो तो प्रदेश पार्टी के अध्यक्ष दलित समुदाय से होने चाहिए। नवजोत सिंह सिद्धू को जब प्रदेश पार्टी का अध्यक्ष बनाया गया तब पूरे राजनीतिक और बौद्धिक समुदाय में ये बात सामने आ रही थी कि दोनों पद जट्ट सिख समुदाय के नेताओं को देने से प्रदेश में दलित समुदाय नाराज़ हो सकता है जिसका आगामी विधानसभा चुनावों में पार्टी को भारी नुक़सान होने की सम्भावना थी क्यूंकि इससे वो दूसरे दलों की तरफ जा सकता है।

चरनजीत सिंह चन्नी उस समय पर मुख्यमंत्री बनाए गए है जब प्रदेश में अस्थिरता का दौर चल रहा है, जब सरकार को मात्र 6 महीने बचे है इस प्रकार इनकी राह कांटो भारी है, क्यूंकि हम देखते हैं कि कैप्टन सरकार के 18 सूत्रीय कार्यक्रम जिसकी 2017 के चुनावों में पार्टी ने घोषणा की थी में से अभी बहुत से कार्यों पर काम करना बाकी है तो क्या अब नए मुख्यमंत्री कैप्टन सरकार के लंबित पड़े कार्यों को संपन्न करवाएंगे या फिर आगामी 6 महीनों के लिए नई नीति बनाएंगे।

अब प्रश्न ये भी उठता है कि प्रदेश में इस समय हर रोज़ किसी ना किसी विभाग जैसे पंजाब रोडवेज, नर्सिंग स्टाफ, अध्यापकों आदि के कैप्टन आवास के सामने निरन्तर प्रदर्शन चल रहें थे वो अब नवनियुक्त मुख्यमंत्री आवास के सामने स्थानांतरित होएंगे या चरणजीत सिंह चनी कर्मचारियों की समस्याओं का समाधान खोज पाएंगे। क्या कैप्टन अमरिंदर सिंह और अन्य मजबूत जट्ट सिख नेता दलित मुख्यमंत्री का नेतृत्व स्वीकार कर पाएंगे? इस बार का संशय भी बना हुआ है।

क्या प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव चरणजीत सिंह चन्नी के नाम पर लड़ा जाएगा? क्या प्रदेश में यदि आगामी विधानसभा चुनावों में पार्टी को बहुमत मिलता है तो पूरे कार्यकाल के लिए भी चरणजीत सिंह चनी को मुख्यमंत्री बनाया जाएगा? या फिर ये संकट टालने के लिए और दलित समुदाय को लुभाने के लिए इन्हें बचे हुए 6 महीनों के लिए मुख्यमंत्री बनाया गया है। ऐसे अनेकों प्रश्न है जिनका जवाब आने वाले वक्त में मिलेगा। परन्तु अभी कांग्रेस पार्टी ने अपने सभी समीकरणों को ध्यान में रखते हुए सभी नामों पर चर्चा करने के बाद दलित मुख्यमंत्री के नाम की घोषणा की है।आशा करते है कि पूरा प्रदेश और पार्टी दलित नेतृत्व को स्वीकार करेगी और चरनजीत सिंह चन्नी पार्टी को इस संकट से बाहर निकाल पाने में सफल होंगे।

पंजाब को मिला दलित मुख्यमंत्री, जानिए कौन हैं चरणजीत सिंह चन्नी

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 लंबी गहमा-गहमी के बीच पंजाब को नया मुख्यमंत्री बन गया है। कांग्रेस पार्टी ने दलित समाज के चरणजीत सिंह चन्नी के नाम का ऐलान नए मुख्यमंत्री के तौर पर कर दिया है। कांग्रेस आलाकमान ने विधायकों की सर्वसम्मति से यह फैसला लिया है। पार्टी के फैसले के बाद चरणजीत सिंह चन्नी जल्दी ही राज्यपाल से मुलाकात करेंगे। चरणजीत सिंह चन्नी के सीएम बनने की जानकारी पंजाब कांग्रेस के प्रभारी हरीश रावत ने ट्वीट करके दी। हालांकि कुछ देर पहले तक सुखजिंदर सिंह रंधावा का नाम आगे चल रहा था, लेकिन आखिरी मौके पर चन्नी के नाम की घोषणा कर दी गई। कौन हैं चरणजीत सिंह चन्नी? चरणजीत सिंह चन्नी रामदासिया समुदाय से आते हैं। चन्नी पंजाब की चमकौर साहिब विधानसभा से लगातार तीन बार से विधायक हैं। वह  कैप्टन अमरिंदर सिंह की कैबिनेट में तकनीकी शिक्षा और औद्योगिक प्रशिक्षण मंत्री रहे हैं। वह 2015-2016 तक पंजाब विधानसभा में विपक्ष के नेता रहे। राहुल के करीबी माने जाने वाले चन्नी 2007 में पहली बार चमकौर विधानसभा सीट से विधायक चुने गए थे। चरणजीत सिंह चन्नी, कैप्टन अमरिंदर सिंह के धुर विरोधी रहे हैं।

यहां साफ है कि चरणजीत सिंह चन्नी को चुनाव के महज कुछ महीने पहले सीएम बनाकर कांग्रेस पार्टी ने आगामी विधानसभा चुनाव के लिए दांव चल दिया है। लेकिन अगर कांग्रेस पार्टी की नियत साफ है तो उसे आगामी विधानसभा चुनाव में चरणजीत सिंह चन्नी को अपना मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करना चाहिए।

इस अंबेडकर स्कूल की दुनिया भर में होती है चर्चा

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बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर ने बहुत ही मुश्किल से उच्च शिक्षा हासिल की थी। वो शिक्षा के महत्व को जानते थे। इसलिए वो चाहते थे कि वंचित समाज में ज्यादा से ज्यादा लोग शिक्षित हों। वह जानते थे कि वंचित समाज की मुक्ति शिक्षा से ही संभव है। डॉ. आंबेडकर ने वंचित समाज को जो तीन आदेश या यूं कहें कि उपदेश दिया था, उसमें उन्होंने सबसे ज्यादा जोर शिक्षित बनने पर दिया। यही वजह रही कि डॉ. आंबेडकर ने अपने जीवनकाल में ही 8 जुलाई 1945 को पीपुल्स एजुकेशन सोसायटी की स्थापना की थी और कई कॉलेज शुरू किये।

लेकिन 1956 में बाबासाहेब के परिनिर्वाण के बाद यह कारवां धीमा हो गया। बाबासाहेब के जाने के बाद अंबेडकरवादी या तो उनकी मूर्तियां बनाने में जुट गए या फिर बौद्ध विहार। लेकिन इसी बीच में कुछ लोग ऐसे भी थे, जो बाबासाहेब के आदेश, या यूं कहें कि उपदेश की पहली लाइन “शिक्षित बनों” को भूले नहीं थे। उन्हें डॉ. आंबेडकर द्वारा दिया गया शिक्षा का मंत्र भी याद था और धम्म का रास्ता भी। हम आपको जो खबर दिखाने जा रहे हैं, या जो कहानी बताने जा रहे हैं, वह इसी तरह की है।

पंजाब के जिस जालंधर शहर की धरती पर डॉ. आंबेडकर ने 27 अक्टूबर 1951 को अपने कदम रखे थे, वहां के अंबेडकरवादियों ने शहर से तकरीबन 20 किलोमीटर दूर फूलपुर-धनाल गाँव में बाबासाहेब आंबेडकर के नाम पर यह शानदार स्कूल बना डाला। 12वीं तक के इस स्कूल का नाम है- बोधिसत्व बाबासाहेब आंबेडकर पब्लिक सीनियर सेकेंडरी स्कूल। फिलहाल तकरीबन 500 बच्चों वाला यह स्कूल नर्सरी से लेकर 12वीं तक का है, जिसमें आस-पास के 20-25 गाँवों के बच्चे पढ़ने आते हैं। स्कूल का दरवाजा समाज के हर वर्ग के लिए खुला है। स्कूल की मान्यता पंजाब स्कूल एजुकेशन बोर्ड से है। दलित दस्तक के संपादक अशोक दास ने सितंबर के पहले हफ्ते में अपने पंजाब दौरे के दौरान इस स्कूल को करीब से देखा और यु-ट्यूब के लिए इसकी स्टोरी की। आप भी देखिए, इस अनोखे स्कूल की कहानी-

‘अमिताभ ठाकुर (रिटा. आईपीएस) डायरेक्ट सीएम के क़ैदी हैं’

 अमिताभ ठाकुर (पूर्व आईपीएस) से मिलने पर भी पाबंदी है क्या भाई! दिल्ली से लखनऊ जेल गया लेकिन बिना मिले निराश हो लौटना पड़ा! यूपी में सपा बसपा भाजपा सभी सरकारों के समय भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ लड़ने वाले और राजकाज में ट्रांसपैरेंसी लाने के लिए प्रयासरत भाई अमिताभ ठाकुर से मिलने आज लखनऊ जेल गया लेकिन योगी शासन की दमनकारी-तानाशाही कार्यप्रणाली को जी जान से आगे बढ़ाने में जुटी नौकरशाही ने मुझे अमिताभ जी से मिलने से रोक दिया। हवाला दिया गया कि एक हफ़्ते में एक व्यक्ति मिल सकता है लेकिन नियमों के तहत हफ़्ते भर में दो व्यक्ति मिल सकते हैं। कई अफ़सरों से पैरवी लगाने की कोशिश की लेकिन अमिताभ ठाकुर जैसे ‘ख़ूँख़ार’ क़ैदी से कोई मिलवाने के लिए तैयार नहीं हुआ।

कई लोग नाम न बताने की शर्त पर कहते मिले कि अमिताभ ठाकुर डायरेक्ट सीएम के क़ैदी हैं, इसलिए उनकी हर वक्त मानिटरिंग होती है। कौन मिलता है क्या बात होती है, इस सब पर नज़र रखी जाती है। वैसे एक रोज़ पहले यानी बीते कल (13 सितंबर) अमिताभ जी से उनकी पत्नी नूतन जी मिलकर आईं। इनकी मुलाक़ात बेहद दूर से कराई जाती है जिससे बहुत तेज तेज बोलकर बात करनी पड़ती है। कोई फल वग़ैरह जब अमिताभ जी को दिया जाता है तो उसे उन तक दो दिनों बाद पहुँचाया जाता है। ये जाने किस नियम के तहत होता है। ऐसे में वे फल सड़ कर बेकार हो चुके होते हैं। यह देख अमिताभ ठाकुर ने खुद ही पत्नी नूतन को मना कर दिया कि वे फल आदि न लाया करें। अमिताभ ठाकुर कलम और काग़ज़ की माँग करते हैं जो उन तक नूतन जी पहुँचा देती हैं।

अमिताभ ठाकुर अपना केस खुद लड़ रहे हैं। इसके लिए वे अध्ययन व लेखन का काम लगातार जारी रखते हैं। मुझे अमिताभ ठाकुर से न मिलने दिए जाने से निराशा हुई। मैं उन्हें देने के लिए एक किताब ले गया था जिसे उन तक जेल अधीक्षक आशीष तिवारी ने पहुँचवा दिया। ये किताब कई कारणों से मुझे बहुत पसंद है। एक अमेरिकी नागरिक ने लम्बे समय तक भारत में संत जीवन बिताने के बाद जो ये आत्मकथा लिखी है, वो मुग्ध करने वाली है। ये किताब प्रकृति ईश्वर चेतना ब्रम्हाण्ड को समझने बूझने का एक नया सिरा समझाती है।

जुझारू अमिताभ ठाकुर को प्रकृति ने माध्यम बनाया है क्रूर शासकों से मुक़ाबिल होने के लिए। जेल में बंद कर योगी सरकार ने अमिताभ ठाकुर का क़द काफ़ी बढ़ा दिया है। उम्मीद करता हूँ कि अगले कुछ दिनों में मुझे अमिताभ ठाकुर से जेल में मिलने का मौक़ा मिल पाएगा तो उनसे कुछ ज़रूरी बातचीत कर सकूँगा और उनकी मन:स्थिति को भी समझ सकूँगा। आप सबसे अनुरोध है कि इस पोस्ट को शेयर फ़ॉर्वर्ड करें जिससे एक क्रूर शासक द्वारा एक ईमानदार अफ़सर को प्रताड़ित किए जाने का ये प्रकरण पढ़े लिखे लोगों तक ज़्यादा से ज़्यादा पहुँच सके।


(यशवंत सिंह के फेसबुक पोस्ट से)

इंदिरा गाँधी के करीबी अंबेडकरवादी राजदूत से सुनिए प्रधानमंत्रियों के दिलचस्प किस्से

एंबेसडर रमेश चंदर दलित समाज के ऐसे चुनिंदा लोगों में शामिल हैं, जो उस पद तक पहुंचें जहां गिने-चुने लोग पहुंच पाते हैं। 1984 बैच के भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी रमेश चंदर जी बेलारुस के राजदूत रह चुके हैं। तो कई प्रमुख देशों में काउंसलर जनरल ऑफ इंडिया रहे हैं। इंदिरा गांधी के करीबी रहें रमेश चंदर ने कई प्रधानमंत्रियों और कद्दावर नेताओं को करीब से देखा है। इस इंटरव्यू में एंबेसडर रमेश चंदर जी से जानिए, दिलचस्प किस्से-

पंजाब चुनाव में दलित फैक्टर

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 देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। इसमें उत्तर प्रदेश और पंजाब ऐसे राज्य हैं; जिस पर देश भर की निगाहे हैं। उत्तर प्रदेश में बसपा सबसे मजबूत मानी जाती है तो पंजाब में भी अकाली दल से गठबंधन के बाद बसपा-अकाली गठबंधन मजबूत ताकत बन चुकी है। पंजाब में क्या होगा दलित फैक्टर, किसके साथ होंगे पंजाब के दलित…. जानिए इस वीडियो में-

नंदकुमार बघेल की गिरफ्तारी के विरोध में छत्तीसगढ़ के बहुजन संगठनों ने खोला मोर्चा

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 छत्‍तीसगढ के पेरियार के नाम से विख्‍यात 84 वर्षीय श्री नंदकुमार बघेल की गिरफ्तारी के विरोध में देश के तमाम हिस्सों में प्रदर्शन हो रहा है। छ्त्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में स्थित संविधान चौक जिसे अंबेडकर चौक भी कहते हैं, वहां भी छत्तीसगढ़ के सामाजिक, जनवादी, प्रगतिशील और जन संगठनों ने संयुक्त रूप से एक साथ आकर नंद कुमार बघेल की गिरफ्तारी के खिलाफ प्रदर्शन किया। इस विरोध प्रदर्शन में दो दर्जन से ज्यादा संगठन शामिल रहें। संयुक्त मोर्चा की ओर से एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा गया कि भारत एक ऐसा देश है, जब एक समुदाय विशेष जंतर मंतर दिल्‍ली में संविधान की प्रतियां जलाता है, मनुस्‍मृति को लागु करने के नारे लगाता है, तब गिरफ्तारियां नही होती। संविधान के हक-अधिकार, आरक्षण, जाति जनगणना के खिलाफ बोलने या लिखने से गिरफ्तारियां नही होती। लेकिन एक 84 साल के बुजुर्ग की गिरफ्तारियां होती है, जिन्‍होंने उनकी ही बात को दोहराया है।

कहा गया है कि नंद कुमार बघेल छत्तीसगढ़ में लंबे समय से बहुजन जागृति के संदर्भ में कार्य करते आ रहे है। यह समझने की जरूरत है कि असल परेशानी उन्‍हे इनके भाषण से नहीं है। शिकायतकर्ताओं की परेशानी है कि एक ओबीसी मुख्‍यमंत्री जिन्‍होंने ओबीसी आरक्षण हेतु ओबीसी गणना का आदेश दिया है, ताकि ओबीसी के आरक्षण का मार्ग प्रसस्‍त हो सके। उन्‍हे परेशानी है कि देश के अजा अजजा ओबीसी एवं अल्‍पसंख्‍यक को जगाने में नंद कुमार बघेल निर्णायक भूमिका में है। भेदभाव पूर्ण ब्राम्‍हणवादी व्यवस्था का वे विरोध करते है, लेकिन कई ब्राम्‍हण उनके शार्गिद है। चंद ब्राह्मणों को इसी से परेशानी है की ओबीसी सामाज आज जाग रहा है और जातीय गुलामी को तोड़ने की ओर अग्रसर है। वे आज अपने संवैधानिक हको को मांग रहे हैं। इसी बहाने वे ओबीसी मुख्‍यमंत्री को ही निशाना बनाना चाहते हैं।

वे लोग जो भुपेश बघेल के मुख्‍यमंत्री बनने के पहले से नंदकुमार बघेल को जानते हैं, उन्‍हे मालूम है कि वे वंचित समुदाय अजा अजजा ओबीसी एवं अल्‍पसंख्‍यक के लिए हमेशा आवाज उठाते रहे हैं। उनकी पहचान एक लेखक, किसान नेता एवं ओबीसी-बहुजन नेता के रूप में पहले से है। ऐसी स्थिति में उनकी गिरफ्तारी एक षडयंत्र का हिस्‍सा है। जिसकी हम निंदा करते है। समस्‍त अजा अजजा ओबीसी एवं अल्‍पसंख्‍यक समाज को इस गिरफ्तारी की निंदा करनी चाहिए।

छत्‍तीसगढ के पेरियार के नाम से विख्‍यात 84 वर्षीय श्री नंदकुमार बघेल की आज गिरफ्तारी हो गई। गौरतलब है कि पिछले दिनों नंदकुमार बघेल ने यूपी में एक स्‍टेटमेंट दिया था जिसे ब्राह्मण विरोधी कहा जा रहा है। इसी मामले में एक ब्राह्मण गुट की शिकायत पर उनकी गिरफ्तारी की गई। श्री नंदकुमार बघेल ने कहा था ’ब्राम्‍हण विदेशी है उन्‍हे गंगा से वोल्‍गा भेजा जाना चाहिए।’ यहां पर ब्राह्मण को विदेशी कहे जाने पर आपत्ति है। अगर ये आपत्ति सही है तो सबसे पहले उन्‍हें जेल भेजा जाना चाहिए जिन ब्राह्मणों ने अपने आपको विदेशी होने की बात कही है। जैसे वोल्‍गा से गंगा में महापंडित राहुल सांस्‍कृतयायन, भारत एक खोज में पंडित जवाहर लाल नेहरू, लोकमान्य तिलक आदि आदि।

ज्ञात हो कि नंद कुमार बघेल को एक वर्ग विशेष के खिलाफ तथाकथित टिप्पणी करने के आरोप में रायपुर पुलिस ने मंगलवार को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया। उन्हें 15 दिनों के लिए ज्यूडिशियल कस्टडी में जेल भेज दिया गया है। अब 21 सितंबर को मामले की अगली सुनवाई होगी।

विनीत डॉ० गोल्डी एम० जॉर्ज छत्तीसगढ़ नागरिक संयुक्त संघर्ष समिति

सहभागी संगठन: दलित मुक्ति मोर्चा, दलित स्टडी सर्कल, दलित मूवमेंट असोसीएशन, जाति उन्मूलन आंदोलन, भारतीय संवैधानिक समाज, छत्तीसगढ़ पिछड़ा समाज, सामाजिक न्याय मंच, छत्तीसगढ़ महिला अधिकार मंच, महिला मुक्ति मोर्चा, छत्तीसगढ़ महिला जागृति संगठन, सबला दल, छत्तीसगढ़ बाल श्रमिक संगठन, राष्ट्रीय आदिवासी संगठन, बिरसा अम्बेडकर छात्र संगठन, संयुक्त ट्रेड यूनियन काऊंसिल, अलाइयन्स डिफ़ेंडिंग फ़्रीडम, इंडिया, छत्तीसगढ़ क्रिश्चयन फोरम, खीस्तीय जन जागरण मंच, यंग मेन्स क्रिश्चयन ऐसोसिऐशन, रायपुर, छत्तीसगढ़ क्रिश्चयन फैलोशिप, मुस्लिम खिदमत संघ, यंग मुस्लिम सोशल वेलफेयर सोसायटी, छत्तीसगढ़ बैतुलमाल फाउंडेशन, तथागत संदेश परिवार, पी०यू०सी०एल छत्तीसगढ़, इंसाफ, छत्तीसगढ़, छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन, छत्तीसगढ़ नागरिक विकास मंच, सिरसा, छत्तीसगढ़, कसम, छत्तीसगढ़, अखिल भारतीय समता सैनिक दल रायपुर

दलितों के आगे बढ़ने में कितनी बड़ी दीवार है जाति, पढ़िए बीबीसी की यह रिपोर्ट

1991 में उस समय के वित्त मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने भारतीय अर्थव्यवस्था के उदारीकरण की शुरुआत की थी। इसके साल भर के भीतर 1992 में महाराष्ट्र के एक दलित उद्यमी अशोक खाड़े ने अपनी कंपनी ‘डीएएस ऑफ़शोर इंजीनियरिंग प्राइवेट लिमिटेड’ लॉन्च की। अब उदारीकरण के तीन दशक बाद, ये दोनों अपने क्षेत्रों में ऊँचे मुक़ाम पर खड़े हैं। ऑफ़शोर स्ट्रक्चर (समुद्र के किनारे बनने वाली संरचना) खड़ा करने के क्षेत्र में आज डीएएस ऑफ़शोर ने दुनिया में अपना नाम बना लिया है। वहीं अशोक खाड़े दलित समुदाय के पहले और अपने दम पर आगे बढ़ने वाले चुनिंदा उद्यमियों में से एक हैं।

लिंक पर जाकर पढ़िए बीबीसी मराठी के पत्रकार मयूरेश कोन्नूर की पूरी रिपोर्ट

पंजाब विसा चुनावः बसपा-अकाली के बीच दो सीटों की अदला-बदली

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 पंजाब के विधानसभा चुनाव में सत्ता हासिल करने के लिए बहुजन समाज पार्टी और अकाली गठबंधन पूरा जोर लगा रहा है। दोनों दल जीत के लिए तमाम रणनीतियों पर चर्चा कर रहे हैं। गठबंधन का लक्ष्य प्रदेश में ज्यादा से ज्यादा सीटें जीत कर सत्ता में आना है। इसी क्रम में दो विधानसभा सीटों पर अकाली दल और बसपा के बीच सीटों की अदला-बदली हुई है। शिरोमणि अकाली दल ने बसपा से उसके हिस्से की दो सीटों अमृतसर उत्तर और सुजानपुर को बसपा से ले लिया है, उसके बदले बसपा को दलित बाहुल्य क्षेत्र की शाम चौरासी और कपूरथला सीट दी गई हैं। गौरतलब है कि पंजाब में 2022 में होने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर जून में शिअद ने 25 साल बाद फिर से बसपा के साथ गठबंधन की घोषणा की थी। गठबंधन के तहत शिअद की ओर से बसपा को 20 विधानसभा सीटें दी गई थीं और 97 सीटों पर शिअद ने चुनाव लड़ने का एलान किया था। इसकी आधिकारिक पुष्टि शिअद प्रवक्ता डॉ. दलजीत सिंह चीमा ने की है।

दलित होने के कारण छह साल तक जेल में रहा शख्स, रिहा होने के बाद बयां किया दर्द

 

Written by Anand Mohan J 

‘I was framed for being a Dalit, 6 years of my life were taken away from me’

DURING HIS six years in prison, he had a recurring dream: he would fly, but fall to the ground when he saw his worried wife. Then, he says, he would catch a bus home. And that was when he would wake up to reality, inside his cell at Tihar jail, awaiting trial in a POCSO case. Released last month, after a city court held that he was “falsely framed” because of his Dalit identity, the 55-year-old man — he did not want to be named — says the dreams have stopped.

“I always used to fly in my dreams. The strange thing is that now that I have been released, I have stopped flying in my dreams. I want to fly again, one more time,” he says.

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दलित-मुस्लिम चुनावी एकता से कैसे बदल जाएगी भारत की सियासत

Why Dalit-Muslim electoral unity is a mirage

Cunningly cobbling caste/religious alliances is the shrewdest move on the chessboard of contemporary electoral politics in India. Uttar Pradesh has probably been the laboratory for formulating and testing new caste/religious equations of political chemistry. Ever since Asaduddin Owaisi’s All India Majlis-e-Ittehad-ul-Muslimeen won five Assembly seats in the Bihar elections, talk about an electoral alliance between parties that represent Dalits and Muslims has got a fresh life. The AIMIM and Bahujan Samaj Party (BSP) had joined forces in the Bihar polls and many now say this partnership will extend to Uttar Pradesh, where the Assembly election is due in 2022.

In Maharashtra, Owaisi allied with Prakash Ambedkar’s Vanchit Bahujan Aghadi in the 2019 election. The Bhim Army and its chief Chandrashekhar Azad ‘Ravan’ kindled another hope of Dalit-Muslim unity during the anti-CAA protests. According to the Pew Research Center, there were around 213 million Muslims in India in 2020, 15.5% of the population. Dalits form around 16.6%. In Uttar Pradesh Muslims are 19% and Dalits 20.7%. Together they make up about 40%. A combination of these two sections would be a formidable electoral alliance. Nonetheless, a Dalit-Muslim electoral alliance is only a pipe dream thanks to many socio-political reasons.

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नंद कुमार बघेल की गिरफ्तारी के खिलाफ सोशल मीडिया से लेकर सड़क तक पर आंदोलन

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 छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री और मतदाता जागृति मंच एवं अखिल भारतीय कुर्मी, किसान, मजदूर, महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नंद कुमार बघेल को कल 7 अगस्त को आगरा से गिरफ्तार कर लिया गया। हैरान करने वाली बात यह रही कि उनकी गिरफ्तारी खुद उनके बेटे और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की शासन की पुलिस ने किया। छत्तीसगढ़ के रायपुर से यूपी के आगरा पहुंची पुलिस ने 86 वर्षीय नंद कुमार बघेल को गिरफ्तार कर लिया। उनपर आरोप है कि उन्होंने सामाजिक सौहार्द को बिगाड़ने वाला बयान दिया। दरअसल सीनियर बघेल, जिन्हें उत्तर भारत का पेरियार कहा जाता है, ने पिछले दिनों लखनऊ में ब्राह्मणों को लेकर एक बयान दिया था, जिसके कारण उनको गिरफ्तार किया गया है। नंद कुमार पर सामाजिक द्वेष पैदा करने का आरोप है। उनके खिलाफ आईपीसी की धारा 505- समुदायों के बीच शत्रुता, घृणा या वैमनस्य की भावनाएं पैदा करने और धारा 153 ए के तहत सामाजिक तनाव बढ़ाने वाला बयान देने का आरोप है।

पिछले महीने लखनऊ में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान मीडिया से बातचीत में नंद कुमार बघेल ने कहा था, अब वोट हमारा राज तुम्हारा नहीं चलेगा। हम यह आंदोलन करेंगे। ब्राह्मणों को गंगा से वोल्गा (रूस की एक नदी) भेजेंगे, क्योंकि वे विदेशी हैं। जिस तरह से अंग्रेज आए और चले गए। उसी तरह से ये ब्राह्मण या तो सुधर जाएं या फिर गंगा से वोल्गा जाने को तैयार रहें। गौरतलब है कि वोल्गा रूस की एक नदी है। इससे करीब 3 दिन पहले नंद कुमार बघेल के बयान से नाराज ब्राह्मण समाज ने रायगढ़ में उनका पुतला दहन किया था। FIR दर्ज करने की मांग को लेकर सिटी कोतवाली का घेराव कर दिया। घंटों चले हंगामे के बाद पुलिस ने समाज के लोगों से शिकायत ले ली थी और कार्रवाई का भरोसा दिया था। हालांकि मुख्यमंत्री के पिता का मामला होने के कारण पुलिस ने एफआईआर दर्ज नहीं किया। मामला मुख्यमंत्री भूपेश बघेल तक पहुंचा तो उन्होंने कहा कि कानून सबके लिए बराबर है और इसके बाद रायपुर के डीडी नगर थाने में केस दर्ज किया गया। मामला दर्ज होने के बाद रायपुर पुलिस आगरा पहुंची और नंद कुमार बघेल की गिरफ्तारी की गई। उन्हें मंगलवार को रायपुर डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में पेश किया गया है। कोर्ट ने उन्हें 14 दिन के लिए न्यायिक हिरासत में भेज दिया। बताया जा रहा है कि नंद कुमार बघेल ने जमानत लेने और वकील रखने से मना कर दिया है।

इसके बाद मामले में नया मोड़ आ गया है। सामाजिक संगठन खासकर दलित-पिछड़े और आदिवासी समाज के संगठनों ने नंद कुमार बघेल की गिरफ्तारी का विरोध करते हुए सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। तो वहीं सोशल मीडिया पर भी लोग नंद कुमार बघेल के पक्ष में मुहिम चला रहे हैं। नंद कुमार बघेल ने भी यह लड़ाई सुप्रीम कोर्ट तक लड़ने की बात कही है। सीनियर बघेल के पक्ष में रायपुर में सड़क पर आंदोलन शुरू हो चुका है। बहुजन समाज उनकी गिरफ्तारी के खिलाफ विरोध कर रहा है।