चन्द्र शेखर आजाद के राजनीति में आने के मायने।

जो लोग यह कहते थे कि चन्द्र शेखर आज़ाद युवाओं को बर्बाद कर रहे हैं उनकी चिंता अब और बढ़ गई है क्योंकि चन्द्र शेखर आज़ाद के सामाजिक व राजनीतिक आंदोलन में आने से हज़ारों लोगों को नेतृत्व करने का मौका मिला रहा है।पहले ही चुनाव में बड़ी संख्या में ग्राम, प्रधान, बीडीसी और जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लोग जीते हैं । आसपा बुलन्दशहर के विधानसभा के उपचुनाव में कांग्रेस और आरएलडी से भी आगे रही। अब उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा, मणिपुर राज्यों में विधायक पद के उम्मीदवार हैं। बढ़ता जनाधार उन्हें एक दिन विधानसभा व लोक सभा में पहुँचायेगा।

वह समाज जो लम्बे समय तक एक पार्टी विशेष को वोट देता रहा उसकी समस्यओं में उस पार्टी के नेता साथ खड़े होने के बजाए नदारद नज़र आये। समाज में जहाँ कहीं अन्याय अत्याचता होता है तो लोग भीम आर्मी के लोगों से सम्पर्क करते हैं। लेकिन एक नेता विशेष की भक्ति में डूबे लोग पीड़ित के साथ खड़े होने के बजाए भीम आर्मी के युवाओं को भड़काते हैं कि आप अपना कैरियर खराब कर रहे हैं। ये वह लोग हैं जिन्हें समाज में हो रहे रेप, हत्या, लूटपाट, आगजनी, महंगाई, अत्याचार, अन्याय आदि से कोई फर्क नहीं पड़ता। अगर इन्हें फर्क पड़ता तो यह और इनके शीर्ष नेता पीड़ितों के इंसाफ की आवाज बुलंद करते। हाथरस में रेप पीड़िता व शहीद बहन मनीषा वाल्मीकि की हत्या में यह लोग गयाब थे और भीम आर्मी लड़ रही थी। इन्हें मुसलमानों का वोट चाहिए लेकिन उनके समर्थन में नहीं खड़ा होना है। चन्द्र शेखर आज़ाद CAA, NRC, NPR की लड़ाई में सबसे आगे रहे और जामा मस्जिद से गिरफ्तार हुये। किसान आंदोलन में यह लोग शामिल ही नहीं हुये चन्द्र शेखर आज़ाद आसपा व भीम आर्मी के साथियों के साथ संघर्ष करते रहे और अंततः जीत हुई। यह लोग प्रयागराज में जब चार दलितों (पासी समुदाय) के लोगों की हत्या हुई तो वहाँ परिजनों से मिलने तक नहीं गये। NEET परीक्षा में जब ओबीसी आरक्षण घोटाला हुआ तो ओबीसी आयोग और दिल्ली में पहला धरना प्रदर्शन भीम आर्मी व आसपा ने किया जिसमें सरकार को झुकना पड़ा और हमारी जीत हुई। गोरखपुर में अनीस कन्नौजिया की जब अंतर जातीय विवाह करने से हत्या हुई तो उनके इंसाफ की लड़ाई में चन्द्र शेखर आज़ाद अपनी टीम के साथ सबसे पहले पहुँचे। हिसार हरियाणा में विनोद वाल्मीकि की हत्या हुई तो उन्हें इंसाफ दिलाने भीम आर्मी व आसपा वहाँ गई। उत्तराखंड में दलित के खाना छूने पर सवर्णों द्वारा हत्या हुई तो परिजनों से मिलने चन्द्र शेखर आज़ाद गये। मध्य प्रदेश के पंचायत चुनाव में ओबीसी का आरक्षण जब खत्म हुआ तो उस लड़ाई में भीम आर्मी व आसपा के लोग सबसे आगे थे। इस लड़ाई में पूना से भोपाल पहुँचें एअरपोर्ट से पुलिस ने चन्द्र शेखर आज़ाद को गिरफ्तार किया और बहुजनों की बात करने वाले नेता ओबीसी आरक्षण पर चुप रहे।

जो लोग समाज की किसी भी लड़ाई में हिस्सा नहीं ले रहे हैं चुनाव के समय उन्हें समाज याद आ रहा है और ये बेशर्म लोग उन्हीं पीड़ितों के घर वोट मांगने जा रहे हैं जिनकी लड़ाई में ये अपने एसी कमरे से बाहर ही नहीं निकले।

जो समाज में हो अन्याय अत्याचार की लड़ाई में समाज के साथ न खड़ा हो कृपया उसको अपना वोट देकर अपने बच्चों का भविष्य खतरे में न डालें। जीतने के बाद यह लोग अपने साथ खड़े नहीं होंगे चन्द्र शेखर आज़ाद भीम आर्मी व आसपा के साथी हर सामाजिक न्याय की लड़ाई में सड़क से संसद भवन तक लड़ते नज़र आयेंगे क्योंकि इनके लिए समाज सबसे पहले है।

डॉ. बाल गंगाधर बाग़ी
पीएच.डी जे एन यू, नई दिल्ली।

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