चौथे चरण के चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश की राजनीति बदलती नजर आ रही है। जिस बहुजन समाज पार्टी को पीछे बताया जा रहा था, वह चुपके से आगे बढ़ती जा रही है। बसपा के साथ कैडर वोटों के अलावा कई क्षेत्रों में ब्राह्मण और मुस्लिम वोटों के जुड़ने की खबर से भाजपा और सपा दोनों में बेचैनी है। इस नई खबर से उत्तर प्रदेश का चुनाव रोचक होता जा रहा है। आखिर हम यह बात किस आधार पर कह रहे हैं, और क्या है जमीनी हकीकत… आईए, हम आपको बताते हैं-
चौथे चरण के चुनाव में लखनऊ में अपने बूथ पर वोट डालने के बाद बसपा प्रमुख मायावती ने चुनाव परिणाम में सबको चौंकाने की बात एक बार फिर दोहराई और दावा किया कि 2007 की तरह बहुजन समाज पार्टी एक बार फिर से प्रदेश में सरकार बनाएगी। मायावती यह दावा पहले दिन से कर रही हैं। अगर बहनजी का दावा सच निकल गया तो यह भारत की राजनीति का सबसे ज्यादा चौंकाने वाला चुनाव बन जाएगा।
ऐसा होगा या नहीं यह 10 मार्च को सामने आएगा, लेकिन यह साफ है कि यूपी चुनाव उलझता हुआ दिख रहा है। भले ही समाजवादी पार्टी और भाजपा सत्ता में आने का जोरदार दावा कर रही है और ज्यादातर मीडिया समूह और राजनीतिक विश्लेषक इस दावे पर मुहर भी लगा रहे हैं, लेकिन ऐसा कहने वाले लोग जमीन पर बसपा की ताकत को भूल रहे हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में बसपा को मिले 19 सीटों का हवाला देकर उसे कमजोर आंका जा रहा है। लेकिन उस चुनाव में बसपा को मिले वोट प्रतिशत की तरफ इन मीडिया समूहों और राजनीतिक विश्लेषकों का ध्यान नहीं है।
दरअसल प्रो. विवेक कुमार इसे मीडिया और कुछ राजनीतिक विश्लेषकों की साजिश बताते हैं। उनका कहना है कि अगर बहुजन समाज पार्टी को उत्तर प्रदेश के चुनावों में भाजपा से सीधी लड़ाई में दिखाया गया तो बसपा के जीतने के आसार बढ़ जाएंगे, क्योंकि बसपा के पास उसका 20 प्रतिशत कैडर वोट बना हुआ है। बसपा की जीत की आहट से प्रदेश के 20 प्रतिशत अल्पसंख्यक और भाजपा से नाराज सवर्ण वोटर और गैर यादव पिछड़ी जातियों के वोटर बसपा के साथ आ सकते हैं। यह पूरा चुनावी खेल बदल सकता है। क्योंकि अगर ऐसा होता है, जो कि हो सकता है, तो बसपा की 19 सीटों को 119 और उससे भी आगे बढ़कर 219 होने से कोई दल नहीं रोक सकता।
दूसरी वजह, बहनजी ने जिस तरह से टिकटों का बंटवारा किया है, उसमें जाति और सोशल इंजीनियरिंग दोनों साफ नजर आ रहा है। टिकट बंटवारे में मायावती ने मुसलमान, पिछड़े और ब्राह्मण सभी का ख़्याल रखा है। यह 2007 का पैटर्न है। अगर ये उम्मीदवार अपने-अपने समाज के 5 प्रतिशत वोट भी ले आते हैं, तो बीएसपी का वोट प्रतिशत आसानी से 25 से तीस प्रतिशत तक जा सकता है।
तीसरी बात, 2017 का चुनाव भाजपा के लिए प्रचंड बहुमत का चुनाव था। लेकिन सीएसडीएस के आंकड़े बताते हैं कि भाजपा के लहर में भी बसपा को हर वर्ग का समर्थन मिला था। यह आंकड़ा काफी मायने रखता है। सीएसडीएस के आंकड़े के मुताबिक 2017 के चुनाव में बसपा को मिले वोटों का प्रतिशत देखें तो ब्राह्मण समाज का दो प्रतिशत वोट, राजपूत/भूमिहार का 6 प्रतिशत, वैश्व का चार प्रतिशत, जाट का तीन प्रतिशत जबकि अन्य अगड़ी जातियों का सात प्रतिशत वोट बसपा को मिला था। इसी तरह यादव समाज का 3 प्रतिशत, कुर्मी-कोईरी का 14, अन्य ओबीसी जातियों का 13 प्रतिशत, जबकि मुस्लिम समाज का 19 प्रतिशत वोट बसपा को मिला था। जाटव वोट निश्चित तौर पर सबसे ज्यादा 86 प्रतिशत था, जबकि गैर जाटव दलित समाज का वोट 43 प्रतिशत मिला था।
यहां यह ध्यान रखना होगा कि जब भाजपा अपने चरम पर थी, तब भी 14 प्रतिशत कोईरी कुर्मी समाज, 13 प्रतिशत अन्य ओबीसी, 43 प्रतिशत गैर जाटव दलित वोट, और 19 प्रतिशत मुस्लिम समाज का वोट बसपा को मिला था। यानी तब इन्होंने भाजपा और सपा को न चुन कर बसपा को समर्थन दिया था। इस बार तो भाजपा पहले जैसे लहर पर सवार भी नहीं है, तो क्या बहुजन समाज पार्टी सबको चौंकाते हुए कोई करिश्मा करने को तैयार है?
विगत 17 सालों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय अशोक दास अंबेडकरवादी पत्रकारिता का प्रमुख चेहरा हैं। उन्होंने साल 2012 में ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ की नींव रखी। वह दलित दस्तक के फाउंडर और संपादक हैं, जो कि मासिक पत्रिका, वेबसाइट और यू-ट्यूब के जरिये वंचितों की आवाज को मजबूती देती है। उनके काम को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई में सराहा जा चुका है। वंचित समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं, जिनमें DW (जर्मनी) सहित The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspapers (जापान), The Week (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत), फारवर्ड प्रेस (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं।
अशोक दास दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड युनिवर्सिटी में साल 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता (Investigative Journalism) के सबसे बड़े संगठन Global Investigative Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग में आयोजित कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है। वह साल 2023 में कनाडा में आयोजित इंटरनेशनल कांफ्रेंस में भी विशेष आमंत्रित अतिथि के तौर पर शामिल हो चुके हैं। दुबई के अंबेडकरवादी संगठन भी उन्हें दुबई में आमंत्रित कर चुके हैं। 14 अक्टूबर 2023 को अमेरिका के वाशिंगटन डीसी के पास मैरीलैंड में बाबासाहेब की आदमकद प्रतिमा का अनावरण अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर नाम के संगठन द्वारा किया गया, इस आयोजन में भारत से एकमात्र अशोक दास को ही इसकी कवरेज के लिए आमंत्रित किया गया था। इस तरह अशोक, दलित दस्तक के काम को दुनिया भर में ले जाने में कामयाब रहे हैं। ‘आउटलुक’ मैगजीन अशोक दास का नाम वंचितों के लिए काम करने वाले भारत के 50 दलितों की सूची में शामिल कर चुकी है।
उन्हें प्रभाष जोशी पत्रकारिता सम्मान से नवाजा जा चुका है। 31 जनवरी 2020 को डॉ. आंबेडकर द्वारा प्रकाशित पहले पत्र ‘मूकनायक’ के 100 वर्ष पूरा होने पर अशोक दास और दलित दस्तक ने दिल्ली में एक भव्य़ कार्यक्रम आयोजित कर जहां डॉ. आंबेडकर को एक पत्रकार के रूप में याद किया। इससे अंबेडकरवादी पत्रकारिता को नई धार मिली।
अशोक दास एक लेखक भी हैं। उन्होंने 50 बहुजन नायक सहित उन्होंने तीन पुस्तकें लिखी है और दो पुस्तकों का संपादक किया है। ‘दास पब्लिकेशन’ नाम से वह प्रकाशन संस्थान भी चलाते हैं।
साल 2006 में भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC), दिल्ली से पत्रकारिता में डिप्लोमा लेने के बाद और दलित दस्तक की स्थापना से पहले अशोक दास लोकमत, अमर-उजाला, देशोन्नति और भड़ास4मीडिया जैसे प्रिंट और डिजिटल संस्थानों में आठ सालों तक काम कर चुके हैं। इस दौरान वह भारत की राजनीति, राजनीतिक दल और भारतीय संसद की रिपोर्टिंग कर चुके हैं। अशोक दास का उद्देश वंचित समाज के लिए एक दैनिक समाचार पत्र और 24 घंटे का एक न्यूज चैनल स्थापित करने का है।