चुनावी माहौल में दलित और महिला पहचान 

वर्ष 2022 की शुरुआत पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों की घोषणा के साथ हुई है, भारतीय निर्वाचन आयोग द्वारा चुनावों के लिए अनेकों नियम व शर्तें बनाए हुए हैं और उन्हें चुनावों के समय सख्ती से लागू करता है। परन्तु इन सबके बावजूद राजनीतिक दल और राजनेता आम जन को अपने पक्ष में करने के लिए समय समय पर इन नियम व शर्तों को अनदेखा करते हैं और कई बार इसमें मीडिया भी उनका सहयोग करता हुआ प्रतीत होता है। जैसे हम देखें दिनांक 22 जनवरी 2022 को भारत के बड़े अखबार “जनसत्ता” के पहले पेज पर पहली खबर छपी “आठ दलितों को मिला टिकट” ये खबर पंजाब से सम्बन्धित है, कि पंजाब में भारतीय जनता पार्टी ने अपने 34 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी की और जनसत्ता ने अपनी इस महत्वपूर्ण खबर में बताया कि इनमें 13 सिखों को, 12 किसानों को और 8 दलितों को टिकट मिला है।

हमें ये भी देखना होगा कि ये कोई खैरात में दलितों को टिकट नहीं दिए गए क्योंकि जिन आठ उम्मीदवारों की घोषणा की गई है वो सभी आरक्षित सीटों से चुनाव लडेंगे, अर्थात उन सीटों पर भारतीय संविधान के अनुसार केवल दलित ही चुनाव लड़ सकते हैं ।   इसके साथ साथ अखबार द्वारा सीटों का जो वर्गीकरण किया गया है वो तीन अलग अलग मापदंडों को दर्शा रहा है, पहले में अखबार ने धर्म को लिया, दूसरे मे काम को और तीसरे में जाति को। इसके बाद अखबार ने जातीय पहचान को अपनी हेडलाइन बनाया क्यूंकि ये पाठकों को सबसे ज्यादा आकर्षित करती प्रतीत हो रही है। हालांकि ये हेडलाइन तब बननी चाहिए थी जब किसी गैर आरक्षित सीट से दलित समुदाय के व्यक्ति को पार्टी द्वारा उम्मीदवार बनाया जाता, परंतु ऐसा नहीं हुआ इसलिए प्रश्न ये है कि सबसे ज्यादा 13 उम्मीदवार सिख समुदाय से संबंध रखते है, 12 किसान परिवारों से तो फिर सबसे कम 8 उम्मीदवार वाले दलित समुदाय को लेकर अखबार ने अपने पहले पेज पर सबसे पहली हेडलाइन क्यों बनाई?

इसी प्रकार महिलाओं को लेकर जनसत्ता ने ही अपने 21 जनवरी के संस्करण में पहले पेज पर खबर दी कि कांग्रेस पार्टी ने अपने उम्मीदवारों की दूसरी सूची में 16 महिलाओं को दिए टिकट। जब कोई पार्टी किसी महिला या दलित को टिकट देती है तो ये खबर आकर्षण का मुद्दा क्यों बन जाती है? क्यों अखबार और मीडिया के अन्य संस्थान उस खबर को सबसे ज्यादा दिखाना और चलाना चाहते हैं?

इसका सीधा सा जवाब है कि चुनावी माहौल में दलित और महिलाएं दोनों ही चर्चा का विषय हैं क्योंकि मतदाताओं के समूह में इन दोनों वर्गों की बड़ी संख्या है ,इसलिए प्रत्येक राजनीतिक दल इन्हे अपने पक्ष में करने का प्रयास करता है।

जैसे कि दलित पंजाब में सबसे बड़ा समूह है और अब जब कांग्रेस पार्टी ने बीते सितंबर में प्रदेश को पहला दलित मुख्यमंत्री दे दिया है तो इस बार प्रदेश में दलितों का खास तरीके से ख्याल रखा जा रहा है, प्रत्येक राजनीतिक दल और राजनेता दलित समुदाय को खुश करने में लगे हुए हैं। इसी प्रकार उत्तर प्रदेश में भी लगभग हर पांचवा मतदाता दलित है, जिसका देश की राजनीति में सबसे अहम स्थान है, इसलिए अखबार और राजनीतिक दल ऐसी शब्दावलियों का प्रयोग कर रहे हैं ताकि दलित मतदाताओं को लुभाया जा सके।

वहीं कांग्रेस पार्टी ने उत्तरप्रदेश जैसे राज्य में अपना वनवास खत्म करने के लिए एक नई योजना निकाली है, उन्होंने “लड़की हूं लड़ सकती हूं” का नारा देकर अपने उम्मीदवारों में 40 फीसदी सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित की हैं ताकि महिला मतदाताओं को पार्टी की तरफ आकर्षित किया जा सके, परंतु ये काफी नहीं है क्योंकि केवल आरक्षण से काम नहीं होने वाला, जैसे हम देखते हैं कि पंचायतों में लगभग सभी राज्यों में एक तिहाई या आधी सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित है और उन सीटों पर महिलाएं चुनाव जीत कर आ भी रही हैं परन्तु उनमें सक्षमता का अभाव पाया जाता है, उनके नाम पर सारे काम उनके पति या घर के अन्य पुरुष करते हैं, इसी प्रकार कांग्रेस उत्तर प्रदेश में कमज़ोर है वहां तो महिलाओं के लिए “लड़की हूं लड़ सकती हूं” जैसे नारे का प्रयोग कर रही है परन्तु पंजाब, गोवा व उत्तराखंड जैसे राज्यों में जहां पार्टी मजबूत है वहां ऐसा कोई नारा नहीं चल रहा और ना ही 40 फीसदी टिकट महिलाओं को दिए जा रहे ।

प्रत्येक राजनीतिक दल की चाहत है कि जिस प्रदेश में मतदाताओं का जो समूह अब तक किसी दल का वोट बैंक नहीं बना है उसे अब बनाया जाए। जैसे उत्तर प्रदेश में दलित मतदाता जागरूक हैं तो यहां पर महिला मतदाताओं पर ध्यान दिया जा रहा है, वहीं पंजाब में दलित मतदाताओं में उत्तर प्रदेश के मतदाताओं की भांति जागरूकता का अभाव है, इसलिए वहां सभी राजनीतिक दलों का मुख्य बल दलित मतदाताओं को लुभाने में लगा हुआ है।

चाहे दलित हों या महिलाएं हर किसी को अपने आप को मजबूत करना होगा और ये सुनिश्चित करना होगा कि कोई भी राजनीतिक दल उनको केवल मात्र वोट बैंक ना माने। उनके साथ एक नागरिक और मतदाता की तरह व्यवहार करें और उन्हें मजबूत करने व मुख्य धारा में शामिल करने के लिए प्रयास किया जाए।

राजेश ओ.पी.सिंह

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