सीएम हेमंत सोरेन का फैसला, झारखंड में अब स्कूलों में बनेंगे जाति प्रमाण पत्र

 जाति प्रमाण पत्र देश के करोड़ों लोगों के लिए एक ऐसी जरूरत है, जिससे उनका भविष्य निर्धारित होता है। लेकिन हालिया वक्त में जाति प्रमाण पत्र को लेकर मुश्लिकें बढ़ने लगी थी। इस मुश्किल को खत्म करने के लिए झारखंड सरकार ने बड़ा फैसला किया है। झारखंड सरकार के नए फैसले के मुताबिक अब स्कूलों में ही जाति प्रमाण पत्र बन जाएंगे। झारखंड विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान मुख्‍यमंत्री हेमंत सोरेन ने इसकी घोषणा की। सीएम हेमंत सोरेन ने कहा कि 29 दिसंबर के बाद से सरकारी और निजी स्‍कूलों में ही प्रमाणपत्र बनवाए जा सकेंगे। सभी कक्षा के छात्र जाति प्रमाणपत्र बना सकेंगे।

 जाति प्रमाणपत्र बनाने के लिए स्‍व-घोषणापत्र को लेकर भाजपा विधायक नीलकंठ सिंह मुंडा ने विधानसभा सत्र के दौरान सवाल उठाया था, जिसके जवाब में मुख्यमंत्री ने यह ऐलान किया। भाजपा विधायक का कहना था कि बांग्‍लादेश से आने वालों के लिए स्‍व-घोषणापत्र और स्‍थानीय लोगों के लिए नहीं यह गलत है। इस पर मुख्‍यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि जाति प्रमाणपत्र पर सरकार ने संज्ञान लिया है। इसके साथ ही उन्‍होंने कहा कि 29 दिसंबर के बाद प्रदेश के निजी और सरकारी स्‍कूलों में छात्रों के जाति प्रमाणपत्र बनाए जा सकेंगे। यह सुविधा सिर्फ 8वीं या 9वीं कक्षा के छात्रों के लिए नहीं होगी, बल्कि सभी कक्षा के छात्र विद्यालय में ही जाति प्रमाणपत्र बनवा सकेंगे।

 प्रदेश सरकार के इस फैसले की सभी दलों ने सराहना की है। साथ ही छात्रों ने भी मुख्यमंत्री के इस बयान पर खुशी जताई है। गौरतलब है कि जाति प्रमाण पत्र बनाने का जो तरीका रहा है, उसके मुताबिक पहले छात्रों को तमाम लोगों से जाति प्रमाण पत्र के आवेदन को सत्यापित करवाना होता था। उसके बाद भी प्रमाण पत्र हासिल करने के लिए  तमाम अधिकारियों के चक्कर काटने पड़ते थे। लेकिन अब बदली स्थिति में स्कूलों में जाति प्रमाण पत्र बनने से छात्रों और उनके अभिभावकों की अनावश्यक भाग-दौड़ खत्म हो जाएगी।

बहुजन बुलेटिन: 20 दिसंबर 2021

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1- भाजपा को लगा झटका, नेता सुबोध राकेश ने छोड़ी, बसपा में हुए शामिल। उतराखंड चुनाव से पहले  भगवानपुर विधानसभा क्षेत्र के भाजपा नेता सुबोध राकेश ने बसपा का दामन थाम लिया है। बताया जा रहा है कि गाजियाबाद पहुंचकर सुबोध राकेश ने अपने समर्थकों के साथ बसपा की सदस्यता ली। सुबोध राकेश के बसपा में आने से जहां विधानसभा चुनाव से ठीक पहले भाजपा को तगड़ा झटका लगा है तो वहीं बसपा कार्यकर्त्‍ता उत्साह में नजर आ रहे हैं। 2- खेत में चारा लेने गई दलित महिला से दो युवकों ने की रेप की कोशिश और नाकाम होने पर रेत दिया गला। ये मामला उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ से सामने आया है। आरोप है कि अलीगढ़ के थाना पिसावा इलाके में खेत में चारा लेने गई दलित महिला के साथ दो युवकों ने रेप की कोशिश की, लेकिन शोर सुनकर आते लोगों को देखकर, नाकाम महसूस कर उन्होंने महिला का गला रेता दिया। जिससे महिला की हालत गंभीर हो गई है। फ़िलहाल घायल महिला को अस्पताल में भर्ती कराया गया है। 3- खुली जन-धन योजना की पोल, 8 लाख आदिवासियों के खाते में एक भी रुपया नहीं आया। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अगुवाई में हुई एक बैठक के दौरान प्रदेश की आर्थिक प्रगति से जुड़ी एक रिपोर्ट पेश की गई जिसमें बताया गया है कि 1.23 करोड़ आबादी वाले आर्थिक रूप से कमजोर 9 आदिवासी जिलों में बीते 10 साल में 68.3 लाख बैंक खाते खोले गए है लेकिन इनमें से 8 लाख खातों में आजतक  एक रुपया भी जमा नहीं हुआ है जबकि इन खातों को खोलने में सरकार ने 8 करोड़ रु खर्च कर दिए। 4- ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटानयक ने दूर-दराज़ के आदिवासी बहुल जिलों के लिए ‘वायु स्वास्थ्य सेवा’ शुरू की है। इस योजना के तहत डॉक्टर दूर-दराज़ के इलाकों में जाकर गंभीर बीमारियों से ग्रस्त लोगों का इलाज करेंगे। सीएम पटनायक ने आदिवासी बहुल और माओवाद प्रभावित मल्कानगिरी जिले के लिए स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की टीम को ले जा रही एक उड़ान को रवाना करते हुए कहा है कि दूसरे जिलों को भी चरणबद्ध तरीके से इस कार्यक्रम में शामिल किया जाएगा। 5- भाजपा ने शुरू किया पिछड़ा सम्मेलन, पिछड़े वर्ग को साधने के लिये सभी जिलों में आयोजित किए जाएंगे कार्यक्रम। विधानसभा चुनाव 2022 के लिए भाजपा जातीय संतुलन बैठाने में लगी है और इसी के लिए पिछड़ा समाज सम्मेलन आयोजित  कर रही है। इन सम्मलनों मे भाजपा विभिन्न जाति- वर्ग तक अपनी सरकार की नीतियों और उपलब्धियां पहुंचाने का कार्य करेगी ताकि ओबीसी वोटरों का मन बदला सके।

जब ‘खुली सोच’ को लेकर डॉ आंबेडकर ने लड़ी थी ऐतिहासिक क़ानूनी लड़ाई….

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नई दिल्ली- हमारे समाज में यौन शिक्षा और खुल कर बोलने की आजादी होना, आज भी बहस का बड़ा मुद्दा है और कई बार ये बहसें हिंसात्मक भी हो जाती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये मसले समाज में आज ही, विवाद का कारण नहीं बने हैं बल्कि ये साल 1934 से ही समाज की आँखों में खटकते आ रहे हैं। हम उस समय की बात कर रहे हैं जब दलितों और वंचितों की आवाज़ उठाने वाले डॉ भीमराव आंबेडकर, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को न सिर्फ अपना समर्थन देते थे बल्कि उसके लिए क़ानूनी लड़ाई भी लड़ा करते थे। ये मामला एक पत्रिका से जुड़ा है जिसकी क़ानूनी लड़ाई डॉ आंबेडकर ने लड़ी थी। ये बात 20वीं सदी की शुरुआत की है जब महाराष्ट्र के रघुनाथ धोंडो कर्वे अपनी ‘खुले विचारों वाली’ पत्रिका के लिए रूढ़िवादियों के निशाने पर रहते थे। कर्वे अपनी इस ‘समाज स्वास्थ्य” नामक पत्रिका में यौन शिक्षा, परिवार नियोजन, नग्नता और नैतिकता जैसे उन विषयों पर लिखा करते थे जिस पर भारतीय समाज में खुले तौर पर चर्चा करना नामुमकिन था। कर्वे अपनी पत्रिका में सेफ सेक्स लाइफ और इसके लिए मेडिकल एडवाइस से जुड़े सवालों के जवाब तर्कसंगत और वैज्ञानिक रूप से दिया करते थे। कर्वे की इस पहल, उनकी सोच और उनकी इस पत्रिका से समाज के रूढ़िवादी लोग बेहद चिढ़ते थे और इसी वजह से उनके कई दुश्मन भी बन गये थे लेकिन कर्वे कभी निराश नहीं हुए और उन्होंने लिखने के साथ ही अपनी लड़ाई जारी रखी। फिर वो दिन भी आया जब कर्वे को 1931 में पहली बार रूढ़िवादी समूह ने उनके “व्यभिचार के प्रश्न” से जुड़े लेख को लेकर उन्हें अदालत में घसीटा। इसके लिए उन्हें गिरफ्तार किया गया और दोषी ठहराए जाने के बाद 100 रुपये जुर्माना भी लगाया गया। इसके बाद एक बार फिर फरवरी 1934 में कर्वे गिरफ़्तार किए गए। इस बार पत्रिका में पाठकों द्वारा उनकी पर्सनल सेक्स लाइफ से जुड़े, हस्तमैथुन और समलैंगिकता के सवालों के जवाबों पर रूढ़िवादीयों ने हंगामा मचा दिया और उन्हें फिर कोर्ट में घसीटा गया लेकिन इस बार कर्वे अकेले नहीं थे। इस बार उनके साथ थे मुंबई के वकील बैरिस्टर बीआर आंबेडकर।
रघुनाथ धोंडो कर्वे
डॉ आंबेडकर का कर्वे के साथ आना और इस लड़ाई को लड़ना भारत के सामाजिक सुधारों के इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण क़ानूनी लड़ाई में से एक है जिसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए लड़ा गया था। आंबेडकर सिर्फ दलितों और वंचितों के नेता ही नहीं थे बल्कि वो पूरे समाज के लिए एक बेहतरीन सोच रखते थे। सभी वर्गों से बना आधुनिक समाज उनका सपना था और वो उसी दिशा में आगे बढ़ रहे थे। समाज स्वास्थ्य पत्रिका को लेकर शायद उन्होंने ये महसूस किया कि कट्टरपंथी ब्राह्मणवाद। व्यक्तिगत स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति के ख़िलाफ़ खड़ा था और इसलिए उन्होंने कर्वे का साथ देना सही समझा। इस बात को आप ऐसे भी समझ सकते हैं कि आंबेडकर ने 1927 में मनुस्मृति को जलाया था। क्योंकि वो मानते थे कि मनुस्मृति जैसा साहित्य व्यक्तिगत आज़ादी को दबाता है। कर्वे का मामला 28 फरवरी से 24 अप्रैल 1934 के बीच बॉम्बे हाई कोर्ट में चला और उस दौरान लंबी दलीलें चलीं। कर्वे के खिलाफ मुख्य आरोप, सवाल जवाब के जरिए अश्लीलता फैलाना था। जिस पर तर्क रखते हुए डॉ आंबेडकर ने कहा था कि अगर कोई यौन मामलों पर लिखता है तो इसे अश्लील नहीं कहा जा सकता। हर यौन विषय को अश्लील बताने की आदत को छोड़ दिया जाना चाहिए। इस मामले में हम केवल कर्वे के जवाबों पर नहीं सोच कर, सामूहिक रूप से इस पर विचार करने की ज़रूरत है। वहीँ, जब न्यायाधीश ने उनसे पूछा कि हमें इस तरह के विकृत सवालों को छापने की जरूरत क्यों है और यदि इस तरह के सवाल पूछे जाते हैं तो उनके जवाब ही क्यों दिये जाते हैं?  इस पर आंबेडकर ने कहा कि विकृति केवल ज्ञान से ही हार सकती है। इसके अलावा इसे और कैसे हटाया जा सकता है? इसलिए कर्वे को सभी सवालों को जवाब देने चाहिए थे। जरा सोचिए कि उस दौर में जब कोई भी यौन संबंधों पर बात करने से डरता था तब आंबेडकर समलैंगिकता पर अपने विचार रख रहे थे। भले ही कर्वे और डॉक्टर आंबेडकर 1934 की वो लड़ाई कोर्ट में हार गये थे लेकिन आज भी ऐसी लड़ाईयां हमारे आज और आने वाले कल को प्रभावित करती हैं और उनका असर किसी भी परिणाम से परे होता है।

बिहार में हंगामा, बदलेगी सत्ता, तेजस्वी होंगे CM!

डीडी डेस्क- बिहार में क्या भाजपा-जदयू गठबंधन मुश्किल में है? क्या बिहार में सत्ता की बाजी पलटने वाली है? क्या बिहार में तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री बनने वाले हैं? इन तमाम कयासों के पीछे जो नाम है, वह है पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी का। जी हां, जीतन राम मांझी बिहार की राजनीति में एक ऐसा नाम है, जो एक बार मुख्यमंत्री बनने के बाद अब मुख्यमंत्री बनाने की भूमिका में आ गए हैं। खासकर हालिया सरकार में तो सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच सीटों का फासला इतना कम है कि हर विधायक की अहमियत दूल्हे जैसी हो गई है। जहां तक बिहार में सत्ता बदलने के कयास की बात है तो जीतन राम मांझी के एक बयान ने इस कयास को हवा दे दी है। दरअसल बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और आवाम मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जीतन राम मांझी ने तेजस्वी यादव की बेरोजगारी यात्रा का समर्थन किया है। तेजस्वी यादव नए साल में 14 जनवरी से बेरोजगारी यात्रा निकालने जा रहे हैं। इस यात्रा का समर्थन करते हुए मांझी ने कहा, “बिहार में सबसे ज्यादा बेरोजगारी है और अगर इस मुद्दे को उठाने के लिए तेजस्वी यादव यात्रा करते हैं तो इस पर सवाल उठाने का क्या मतलब है?” मांझी बस यहीं नहीं रुकें, बल्कि तेजस्वी का समर्थन करने के साथ ही मांझी ने नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली अपनी ही सरकार पर बेरोजगारी के लिए हमला भी बोला। हालांकि कहा यह भी जा रहा है कि हाल ही में ब्राह्मणों को लेकर जीतनराम मांझी ने जो विवादित बयान दिया था, और सरकार के भीतर से भी उसकी जिस तरह आलोचना हुई थी, मांझी उसी के जवाबी हमले में तेजस्वी का गुणगान कर रहे हैं। संभव है कि मांझी भाजपा-जदयू को यह साफ करना चाहते हैं कि अगर उन्होंने उन्हें छेड़ने की कोशिश की तो उनके पास रास्ते और भी हैं। जहां तक बिहार की राजनीति की बात है तो जिस दिन हिन्दुस्तान आवाम मोर्चा के जीतन राम मांझी और VIP पार्टी के मुकेश साहनी अपना पाला बदल देंगे, उस दिन भाजपा-जदयू की सरकार गिर सकती है और राजद की सरकार बन सकती है।

मांझी के ‘हरामी’ वाले बयान पर बचाव में उतरे दिलीप मंडल, दिया ये तर्क…

नई दिल्ली- बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी का एक ताजा बयान खूब बवाल मचा रहा है। इस बयान में मांझी जहां दलितों में बढ़ रही धार्मिकता को लेकर उन्हें कोस रहे हैं तो वहीं ब्राह्मणवाद पर भी बरसे हैं। भावनाओं में बहते हुए मांझी ब्राह्मणों के लिए ऐसा शब्द बोल गए हैं, जिसके बाद बिहार में बवाल मचा है। इस विवाद के बाद, ब्राह्मण समाज जहां मांझी को चौरतफा घेरने में जुटा है तो वहीं उन्हें बिहार के भाजपा-जदयू गठबंधन से बाहर करने की मांग भी उठने लगी है। मांझी का यह बयान 18 दिसंबर का है, जब वह एक सभा को संबधित कर रहे थे। मांझी ने क्या कहा, आप खुद देखिए-
यह पहली बार नहीं है, जब जीतनराम मांझी ने विवादित बयान दिया है बल्कि मांझी राम और शराब को लेकर भी विवादित बयान दे चुके हैं। माँझी कई बार कह चुके हैं कि वह राम को भगवान नहीं मानते। वह सवर्ण जातियों को विदेशी मूल का भी बता चुके हैं। मांझी का मानना है कि केवल दलित और आदिवासी ही स्वदेशी हैं। मांझी के विवादित बयान के बाद जहां सवर्णों को मिर्ची लगी है तो बहुजन समाज के भीतर से कई लोग मांझी के बचाव में सामने आ गए हैं। वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल ने मांझी के बयान का बचाव करते हुए कहा- बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री माननीय जीतन राम माँझी जी और उनके पुरखों का हिंदू धर्म के साथ Interaction जो अनुभव रहा है, उसके हिसाब से वे जैसी आलोचना कर रहे हैं, वह बहुत विनम्र है। बग़ैर गाली दिए और अपशब्द बोले उन अनुभवों को दर्ज नहीं किया जा सकता। तो कई लोगों का कहना है कि जीतनराम मांझी का यह कहना बिल्कुल सही है कि ब्राह्मण पुरोहित वैसे तो दलितों से जातिवाद और छूआछूत करते हैं लेकिन जब उनसे दक्षिणा लेनी होती है तो उनका जातिवाद खत्म हो जाता है।

खुली जन-धन योजना की पोल, 8 लाख आदिवासियों के खाते में एक भी रुपया नहीं

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 जन धन योजना को लेकर मोदी सरकार ने खूब ढिंढ़ोरा पीटा था। भाजपा के शासन वाले राज्य सरकारों ने भी केंद्र की हां में हां मिलाते हुए मोदी सरकार का खूब गुणगान किया था। लगा था कि जन धन योजना में खुले बैंक खातों से गरीबों की किस्मत बदल जाएगी। लेकिन भाजपा शासित मध्यप्रदेश में जन-धन खातों को लेकर जो आंकड़े सामने आए हैं, वो चौकाने वाले हैं।

 हाल ही में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अगुवाई में एक बैठक हुई थी, जिसमें प्रदेश की आर्थिक प्रगति से जुड़ी एक रिपोर्ट रखी गई। इसमें बताया गया कि 1.23 करोड़ आबादी वाले आर्थिक रूप से कमजोर 9 आदिवासी जिलों में बीते 10 साल में 68.3 लाख बैंक खाते खोले गए। हैरानी की बात यह है कि इनमें से 8 लाख खातों में आज भी एक रुपया जमा नहीं है। जबकि इन खातों को खोलने में तब करीब 8 करोड़ रु. खर्च आया था।

सरकारी आंकड़े बताते हैं कि 1329 बैंक शाखाओं में मौजूद बाकी के 60 लाख खातों में अभी 1400 करोड़ रु. से कम जमा हैं। जबकि अकेले भोपाल की 561 बैंक ब्रांचों में 1,05,184 करोड़ रु. जमा हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक बैकों से आदिवासियों की दूरी की वजह यह है कि उन्हें पैसा निकालने और जमा करने के लिए मीलों का सफर करना पड़ता है। जिसकी वजह से इन्होंने बैंक से अपनी दूरी बना ली है। क्योंकि प्राइवेट बैंक हो या निजी बैंक सब मध्यप्रदेश के 4 बड़े शहरों में ही शाखाएं खोलने और एटीएम लगाने पर जोर दे रहे हैं।

मसलन, अलीराजपुर जिले की आबादी 7.29 लाख है। इस जिले में 4.29 लाख जन-धन खाते हैं, लेकिन पूरे जिले में सिर्फ 42 बैंक शाखाएं और 29 एटीएम हैं। यानी प्रति लाख आबादी पर महज 5 शाखाएं और 4 एटीएम हैं। जिस कारण आदिवासियों को बैंक पहुंचने में काफी मशक्कत करनी पड़ती है। ऐसे में मध्यप्रदेश सहित तमाम क्षेत्रों में जन-धन योजना बेमानी हो गई है और यह महज मोदी सरकार का विज्ञापन भर बन कर रह गया है।

पंचायत चुनाव में वोट नहीं देने पर दलितों पर टूटा जातिवादियों का कहर

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 बिहार के औरंगाबाद में वोट नहीं देने का आरोप लगाकर दलित समाज के लोगों को थूक कर चाटने को मजबूर करने का मामला अभी शांत भी नहीं हुआ था कि एक और घटना सामने आ गई है। बिहार के ही छपरा जिले में वोट नहीं देने का आरोप लगाते हुए सामंती जातिवादी गुंडों ने दलित समाज के अनाजों में आग लगा दी, और उनके घर के आस-पास गड्ढा खोद दिया।

प्रखण्ड में पंचायत चुनाव 8 दिसंबर को हुआ था, जिसका नतीजा 10 और 11 दिसंबर को सामने आया। प्रखण्ड के अमनौर कल्याण पंचायत में मिश्र टोला सहादी में मुखिया पद के लिए खड़ी प्रत्याशी सीमा देवी चुनाव हार गई। बस यही सीमा देवी के पति ओमप्रकाश सिंह को हजम नहीं हुआ। पहले इस सामंती जातिवादी गुंडे ने अपने गुर्गों के साथ मिलकर चमार समुदाय के लोगों पर वोट नहीं देने का आरोप लगाते हुए उनके घर के चारो ओर जेसीबी से गड्ढा खुदवा दिया। जब इससे भी उस सामंती गुंडे का गुस्सा शांत नहीं हुआ तो उसने दलितों को मजदूरी में मिले धान में आग लगा दी। जब पीड़ित अपने अनाज को बचाने गए तो उनके साथ मारपीट की गई।

इस संबंध में पीड़ितों ने अमनौर थाने में गुंडई करने का आरोप लगाकर मुखिया प्रत्याशी सीमा देवी व उसके पति पैक्स अध्यक्ष ओमप्रकाश सिंह समेत आधा दर्जन लोगों के खिलाफ आवेदन देकर मुकदमा दर्ज करने की मांग की। लेकिन दलित समाज का आरोप है कि एफआईआर दर्ज नहीं किया जा रहा है। पीड़ितों का आरोप है कि स्थानीय पुलिस प्रशासन मामले की लीपापोती करने में जुट गई है। इसी बीच स्थानीय भीम आर्मी के सदस्यों ने पीड़ितों से मुलाकात की है, जिससे यह बड़ा मुद्दा बन गया है। सवाल है कि जातिवादी गुंडे आखिर कब तक दलितो को अपनी रियाया समझते रहेंगे? और स्थानीय प्रशासन कब तक कमजोरों के साथ खड़े होने की बजाय अत्याचारियों की पिछलग्गू बनी रहेगी।

बहुजन बुलेटिनः 18 दिसंबर की खबरें

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1- मध्य प्रदेश में पंचायत चुनाव को लेकर दायर याचिका में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव पर स्टे लगा दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा- OBC आरक्षण पर न हो इलेक्शन। साथ ही आदेश दिया है कि ओबीसी सीटों को फिर से नोटिफाई किया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा है कि यदि कानून का पालन नहीं किया जाएगा तो भविष्य में चुनाव रद्द भी किए जा सकते हैं। इस मामले की अगली सुनवाई 27 जनवरी को की जाएगी। 2- गोरखपुर कॉलेज प्रबंधक के खिलाफ दलित उत्पीड़न समेत कई धाराओं में केस दर्ज किया गया है। खबर है कि जिले के गीडा थाना क्षेत्र के सेक्टर सात स्थित ताहिरा साइंस एंड टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट में काम कर चुके असिस्टेंट प्रोफेसर श्याम चरण ने प्रबंधक चेयरमैन एवं मैनेजर शोएब अहमद पर दलित उत्पीड़न का आरोप लगाया है, जिसके बाद आरोपी के खिलाफ मारपीट व दलित उत्पीड़न की धारा में केस दर्ज किया गया है। 3- मध्य प्रदेश के हरदाका की रहने वाली एक दलित महिला ने दबंगों द्वारा मंदिर के नल से पानी न भरने देने का आरोप लगाया है। महिला ने कहा है कि उसके घर के पास रहने वाले दो लोग उसे दलित होने का हवाला देकर मंदिर में लगे नल से पानी भरने से रोक रहे हैं। उसने पुलिस पर भी आरोप लगाते हुए कहा है कि पुलिस इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं कर रही है। जबकि पुलिस का कहना है कि वह आरोपियों को अभी तक ढूंढ नहीं पाई है, इसलिए उसका बयान दर्ज नहीं हो पाया है। 4- बसपा सुप्रीमो मायावती ने निजीकरण का विरोध करते हुए सत्ताधारी बीजेपी सरकार का विरोध करते हुए ट्विट कर कहा है कि ‘बीएसपी गरीब मेहनतकश जनता का दुख-दर्द समझती है। इसीलिए पूंजीपतियों के धन में विकास के बजाय देश की पूंजी में विकास चाहती है ताकि आमजन व देश का भला हो सके। इसी क्रम में सरकारी बैंक के निजीकरण की समर्थक नहीं, जबकि भाजपा जल्दबाजी करके निजीकरण में ही वयस्त है यह अति दुखद है’। वहीँ, गंगा एक्सप्रेस के शिलान्यास के बाद मायावती ने सपा, कांग्रेस और बीजेपी को आड़े हाथ लेते हुए ट्वीट कर कहा,  हमारी योजना पर सपा, कांग्रेस व भाजपा ने अडंगा लगाया और उसका विरोध किया और अब यही विधानसभा चुनाव आने पर गंगा एक्सप्रेस-वे को टुकड़ों में बांटकर उसका शिलान्यास किया जा रहा है।

हर 25 मिनट में आखिर क्यों कर रही हैं महिलाएं आत्महत्या?

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आस्था/नई दिल्ली- भारत में महिलाओं को घर की लक्ष्मी माना जाता है यहां तक की हमारे देश को भारत माता कह कर संबोधित किया जाता है लेकिन भारत माता की गोद में पली-बढ़ी ये महिलाएं क्या अपना जीवन जी पा रही हैं ? राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो की रिपोर्ट सामने आई है। जिसके अनुसार, साल 2020 में 22,372 गृहिणियों ने आत्महत्या की थी जबकि पिछले साल हर दिन 61 और हर 25 मिनट में एक आत्महत्या हुई है। ये हाल सिर्फ पिछले साल का नहीं है बल्कि 1997 में जब से एनसीआरबी ने पेशे के आधार पर आत्महत्या के आंकड़े जुटाने शुरू किए हैं तब से हर साल 20 हज़ार से ज़्यादा गृहणियों की आत्महत्या का आंकड़ा सामने आ रहा है। साल 2009 में ये आंकड़ा 25,092 तक पहुंच गया था। लेकिन यह सवाल ये है कि आखिर ये महिलाएं आत्महत्या क्यों कर रही हैं? एनसीआरबी की रिपोर्ट में इन आत्महत्याओं के लिए “पारिवारिक समस्याओं” या “शादी से जुड़े मामलों” को ज़िम्मेदार ठहराया है। मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि इसका एक प्रमुख घरेलू हिंसा है। ये कारण तब पकड़ में आया जब हाल ही में एक सरकारी सर्वे किया गया जिसमें 30 प्रतिशत महिलाओं ने बताया कि उनके साथ पतियों ने घरेलू हिंसा की है। रोज़ की ये तकलीफ़ें शादियों को दमनकारी बनाती हैं जिससे घरों में महिलाओं का दम घुटता है। जो आगे जाकर महिलाओं की आत्महत्या का कारण बनता है विशेषज्ञों का ये मानना है कि जिन लड़कियों की शादी 18 साल की उम्र में हो जाती है वो सिर्फ पत्नी और बहू बनकर रह जाती है। उनमें से अधिकतर महिलाएं पूरा दिन घर पर खाना बनाते, सफाई करते, घर के काम करते और बच्चों को संभालते हुए बिताती हैं। इन सभी जिम्मेदारियों के साथ उनपर तमाम पाबंदियां भी लगाई जाती हैं जो उनकी शिक्षा, सपने और महत्वाकांक्षाओं को मार देती हैं। इस तरह से उनके में घोर निराशा छा जाती है और उनका अस्तित्व ही प्रताड़ना बन जाता है। ऐसे में महिलाएं गहरे अवसाद में आ जाती हैं और अंत में अपनी जिंदगी को खत्म कर देना ही उन्हें इससे निजात पाने का सबसे आसान तरीका लगता है। रिपोर्ट की माने तो दुनियाभर में, भारत ही एक ऐसा देश है जहां सबसे ज़्यादा आत्महत्याएं होती हैं। भारत में आत्महत्या करने वाले पुरुषों की संख्या दुनिया की एक चौथाई है। वहीं, 15 से 39 साल के समूह में आत्महत्या करने वालों में महिलाओं की संख्या 36 प्रतिशत है। पूरी रिपोर्ट के लिए देखिए ये वीडियो….

एक लड़की जिसने कन्यादान को कह दिया ‘ना’….

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नई दिल्ली- आज की पढ़ती-लिखती लड़कियां कमाल कर रही हैं। उनका हर एक कदम हमारे समाज और उसकी सोच के लिए किसी क्रांति से कम नहीं है। ऐसा ही एक काबिलेतारीफ कदम उठाया है तपस्या परिहार ने। तपस्या परिहार एक आईएएस अधिकारी हैं उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा में 23 वीं रैंक हासिल की है। हाल ही में उन्होंने शादी की है और अपनी शादी के दौरान उन्होंने जो क्रांतिकारी कदम उठाया उसकी तारीफ अब हर कोई कर रहा है। दरअसल, हाल ही में तपस्या की शादी हुई और शादी की कन्यादान की रस्म के दौरान तपस्या ने कन्यादान कराने से इनकार कर दिया। तपस्या ने अपने पिता से कहा है कि मैं दान की चीज नहीं हूं, आपकी बेटी हूं। तपस्या के इन शब्दों ने पहले तो सभी को हैरान कर दिया लेकिन जब सभी को इन शब्दों का महत्व समझ आया तो सभी आँखे भर आईं। अपनी बेटी की इस बात को सुनकर उनके पिता ने उन्हें गले लगा लिया और तपस्या के जीवन साथी बने गर्वित गंगवार ने अपनी पत्नी की इस पहल का स्वागत किया। हम जानते हैं कि हिंदू संस्कृति में कन्यादान का विशेष महत्व है और माता-पिता अपनी बेटी का कन्यादान करना सौभाग्य की बात मानते हैं लेकिन तपस्या ने इसी सोच को बदलते हुए अपना कन्यादान कराने से मना कर दिया। तपस्या मानती है कि कोई कैसे उनका कन्यादान, उनकी इच्छा के बैगर कर सकता है। अपनी इस सोच को जब तपस्या ने अपने परिवार के सामने रखा और वर पक्ष को जब इस बारे में पता चला तो सभी ने तपस्या की सोच का पूरे दिल से स्वागत किया और फिर तपस्या और गर्वित की शादी बिना कन्यादान के पूरी हुई। यहाँ आपको ये भी बता दें कि तपस्या की शादी वैदिक मंत्रों और बाकी के सभी रीति रिवाजों के साथ संपन्न हुई है, लेकिन कन्यादान जैसी कोई रस्म नहीं निभाई गई। समाज में समानता चाहने वाली आइएएस तपस्या के पिता विश्वास परिहार एक किसान हैं। उन्होंने हर कदम पर बेटी का साथ दिया है और यही वजह है कि आज उनकी यही बेटी सफलता की बुलंदियों पर है।

ओमिक्रॉन से बचाव के लिए क्या है उपाय डॉक्टर से खास बातचीत..

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आस्था/नई दिल्ली- भारत में ओमिक्रॉन के मामले बढ़ते जा रहे हैं. जो पिछले 24 घंटों में बढ़कर कुल 111 हो गए हैं। भारत के 9 राज्यों में इसके मरीज देखे गये हैं, जिसमें राजधानी दिल्ली में 22 से ज्यादा केस सामने आए हैं। नए वैरिएंट को लेकर तरह-तरह की खबरें आ रही है, जिससे लोग भ्रमित हो रहे हैं। इन खबरों में कितनी सच्चाई है और इस नए वैरिएंट ओमिक्रॉन का सामना कैसे किया जाए, इस पर बात करने के लिए हमारे साथ आज मौजूद हैं कोरोना के दौरान लगातार सक्रिय रहने वाले और आईएमए दिल्ली नार्थ जोन फाइनेंस सेक्रेटरी, डॉ. सूर्यकांत सूर्यकांत। डॉ. सूर्यकांत एमबीबीएस हैं और कई महत्वपूर्ण बीमारियों पर इनके पेपर प्रकाशित हो चुके हैं। आइए सुनते हैं ओमिक्रॉन से बचाव और उससे जुड़े कुछ बेहद जरूरी सवालों पर डॉ सूर्यकांत के जवाब…..

बहुजन बुलेटिनः 17 दिसंबर की खबरें

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1- हरियाणा के रोहतक में 45 दलित परिवारों का सामाजिक बहिष्कार कर उनसे संबंध रखने वालों से जुर्माना वसूलने का फरमान दिया गया है। खबर है कि गांव में पंचायत कर ये फरमान जारी किया गया कि गांव का कोई व्यक्ति इन 45 परिवारों के सदस्यों को अपने खेतों, घरों और  दुकान में प्रवेश नहीं करने देगा।
यदि कोई ऐसा करता पाया गया तो उसे 11 हजार रुपये जुर्माना भी देना होगा। लेकिन इस प्रतिबंध के बाद इन 45 दलित परिवारों के सामने रोजी-रोटी और उनके पशुओं के लिए बड़ा संकट खड़ा हो गया है।
2- मेरठ के बिसौला गांव के दलित समुदाय के लोगों ने चकबंदी विभाग पर, संत रविदास की प्रतिमा हटाने का लगाया आरोप है। खबर है कि बीती देर रात चकबंदी विभाग पुलिस बल के साथ निर्माणाधीन रविदास मंदिर पर पहुंचे, जहां पुलिस ने चबूतरा तोड़कर यहां लगी संत रविदास की प्रतिमा को रात के अंधेरे में उखाड़ दिया और अपने साथ ले गई। शुक्रवार सुबह जब मामले की जानकारी हुई तो दलित समाज में रोष पैदा हो गया।
3- अगली खबर कर्नाटक से है जहां एक दलित युवक को महज इस बात के लिए पीटा गया क्योंकि शिव मंदिर की सामने वाली सरकारी सड़क का इस्तेमाल कर रहा था। इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार हैरान कर देनी वाली घटना मैसूरु ज़िले के एक गांव की है।
इस बारे में पीड़ित युवक महेश ने बताया कि ‘इस गाँव के लिंगायतों व दलितों ने मिल कर पाँच साल पहले ही शिव मंदिर बनाया था, इसके लिए दोनों ने ही पैसे दिए, दोनों ने ही अपना श्रमदान किया और दोनों की इसमें बराबर की हिस्सेदारी थी, लेकिन मंदिर बनने के बाद दलितों को मंदिर से दूर करने के बाद ये भी कहा गया कि कोई दलित मंदिर के सामने की सड़क से नहीं गुजरेगा। ज्यादातर लोगों ने ये बात मान ली लेकिन मैंने नहीं मानी और मैं सड़क का इस्तेमाल करता रहा।’ और इसी के चलते महेश के साथ मारपीट की गई।
4- दलित बच्चों के साथ दुर्व्यवहार, धमकी देने के आरोप में बेंगलुरु स्कूल की प्रधानाध्यापक के खिलाफ ऍफ़आईआर दर्ज की गई है।
खबर है कि स्कूल के दलित बच्चों के अभिभावकों ने आरोप लगाया है कि उनके बच्चों को प्रधानाध्यापक और कर्मचारी निशाना बनाते हैं। उनसे घटिया काम करवाए जाते हैं, जिन्हें न मानने पर उन्हें धमकी दी जाती है और उनका प्रमोशन ना करने या उनका ट्रान्सफर रोक देने जैसी धमकियां भी दी जाती है।
5- झारखंड में मॉब लिंचिंग करने वाले लोगों के लिए सख़्त क़ानून बनाया जा रहा है, जिसके लिए जल्द ही मॉब लिंचिंग रोकथाम विधेयक लागू किया जाएगा। इस विधयक के अनुसार, मॉब लिंचिंग में मौत होने की स्थिति में इसके लिए दोषी पाए गए अभियुक्तों को कठोर आजीवन कारावास की सज़ा दी जाएगी और उनपर न्यूनतम 25 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया जा सकेगा।

अंतरराष्ट्रीय बहुजन तैराक सतेन्द्र ने किया एक और कारनामा

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नई दिल्ली- कहते हैं कि अगर आपके मन में कुछ हासिल करने का जज्बा हो तो राहें लाख मुश्किलें खड़ी करें, कामयाबी हासिल हो ही जाती है। ऐसी ही कहानी है मध्य प्रदेश के रहने वाले सतेन्द्र सिंह लोहिया की। जिन्होंने अपनी मेहनत और कुछ कर गुजरने के होसले के साथ सिर्फ अपने राज्य का ही नहीं बल्कि पूरे देश का नाम रोशन किया है। मध्यप्रदेश के भिंड जिले के ग्राम गाता में रहने वाले सतेन्द्र बचपन से ही दिव्यांग है लेकिन उनके सपने एक सामान्य व्यक्ति की तरह ही बड़े और सुनहरे हैं। अपने सपनों के बीच सतेन्द्र ने कभी अपनी विकलांगता को नहीं आने दिया। उन्होंने खुद पर विश्वास कर परिस्थितियों को अपनी मेहनत से बदल दिया और एक पैरा स्वीमर बनने का फैसला किया। इसके बाद सतेन्द्र ने कभी पीछे पलट कर नहीं देखा और अपनी कड़ी मेहनत और हुनर के दम पर ढेरों पदक जीते। ये उनका खुद पर विश्वास का ही नतीजा है कि वो आज एक अंतरराष्ट्रीय पैरा स्वीमर हैं। नाम हैं इतनी उपलब्धियां सतेन्द्र ने 7 नेशनल पैरा तैराकी चैंपियनशिप में भाग लेकर देश के लिए अब तक 24 पदक हासिल किए हैं। इसके साथ ही, 3 अंतरराष्ट्रीय पैरा तैराकी चैंपियनशिप में देश के लिए एक गोल्ड मेडल के साथ कुल 4 मैडल जीते हैं। एशिया के पहले पैरा स्वीमर  सतेन्द्र ने 24 जून 2018 को एक रिले इवेंट में, 12 घंटे 24 मिनट में इंग्लिश चैनल तैरकर पार किया था, इस इवेंट के लिए उनका नाम एशियाई लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज हुआ। इसके बाद, 18 अगस्त 2019 को अमेरिका में सतेन्द्र ने 11 घंटे 34 मिनट में कैटरीना चैनल पार किया। जिसके साथ ही, सतेन्द्र टीम इवेंट में, कैटरीना चैनल को पार करने वाले पहले एशियाई दिव्यांग तैराक बन गए। इसके बाद, सतेन्द्र ने अपने सपनों की एक और उड़ान भरते हुए, अपनी टीम के साथ अरब सागर में धरमतर जेट्टी से गेटवे ऑफ इंडिया मुंबई तक 36 कि.मी। की दूरी तैरकर 10 घंटे 3 मिनट में तय की। इसे भारत में सबसे मुश्किल चैनल माना जाता है। यहां आपको ये भी बता दें कि अरब महासागर का यह हिस्सा विशेष रूप से शार्कों से भरा हुआ है और चैनल का पानी लगभग 12 डिग्री रहता है, इसलिए तैराकों के लिए चैनल पार करना बेहद साहस और मुश्किल भरा हो जाता है। लेकिन सतेन्द्र ने इसे किसी चुनौती की तरह लिया और उस पर जीत हासिल की। राष्ट्रपति भी कर चुके हैं सम्मानित सतेन्द्र को साल 2014 में मध्य प्रदेश की तरफ से सर्वोच्च खेल सम्मान ‘विक्रम अवार्ड’ दिया गया था। सीएम शिवराज सिंह चौहान ने भी उनसे मुलाकात करते हुए उनकी जमकर तारीफ भी की थी। इसके बाद 3 दिसंबर 2019 को उपराष्ट्रपति द्वारा सर्वश्रेष्ठ दिव्यांग खिलाड़ी का राष्ट्रीय अवॉर्ड भी इनके नाम दर्ज है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने सत्येंद्र को प्रतिष्ठित तेनजिंग नोर्गे राष्ट्रीय साहसिक सम्मान 2020 से नवाजा। इतना ही नहीं, सत्येंद्र को पीएम नरेंद्र मोदी भी सम्मानित कर चुके है। युवा खिलाड़ियों के बने आदर्श 70% दिव्यांग की कैटेगरी में आने वाले सतेन्द्र ने अपनी कमजोरी को ही ताकत बनाकर दुनिया को ये संदेश दिया कि कमजोरी सोच में होती है, शरीर में नहीं। अंतरराष्ट्रीय पैरा स्वीमर सतेन्द्र सिंह लोहिया उन दिव्यांग युवा खिलाड़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत है जो अपनी शारीरिक कमजोरी से हार मान कर घर बैठ जाते है।

क्या आप पैन कार्ड पर लिखे इन नंबरों का असली मतलब जानते हैं?

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डीडी डेस्क – आपकी जेब या पर्स में हमेशा एक आइडी प्रूफ होता है जो आपकी आइडेंटिटी बताता है। इसमें आधार कार्ड, पैन कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस मौजूद होते हैं। इन सबका अपना महत्व होता है। आज हम आपको पैन कार्ड के बारे में बताएंगे, क्या आप जानते हैं कि पैन कार्ड पर लिखे आइडी नंबरों का क्या मतलब होता है? अगर नहीं पता तो आज इस हम आपको यही बताने जा रहे हैं…. पैन कार्ड पर 10 डिजिट का खास नंबर होता है, जो लेमिनेटेड कार्ड के रूप में आता है। इसे इनकम टैक्स डिपार्टमेंट इश्यू करता है। किसी व्यक्ति का पैन कार्ड बन जाने के बाद उस व्यक्ति के सारे फाइनेंशियल ट्रांजेक्शन डिपार्टमेंट के पैन कार्ड से लिंक्ड् हो जाते हैं। इनमें टैक्स पेमेंट से लेकर क्रेडिट कार्ड से होने वाले फाइनेंशियल लेन-देन सभी कुछ डिपार्टमेंट की निगरानी में रहते हैं।
पैन कार्ड पर 10 लेटर्स में से पहले तीन डिजिट अंग्रेजी के लेटर्स होते हैं। यह AAA से लेकर ZZZ तक कोई भी लेटर हो सकता है जिसे डिपार्टमेंट अपने हिसाब से तय करता है।  पैन कार्ड नंबर का चौथा डिजिट भी अंग्रेजी का ही एक लेटर होता है। यह पैन कार्डधारी का स्टेटस बताता है। इसमें- P- एकल व्यक्ति के लिए इस्तेमाल होता है F- फर्म को रिप्रजेंट करता है, C- कंपनी, A- एसोसिएशन ऑफ पर्सन, T- ट्रस्ट, H- हिन्दू अनडिवाइडिड फैमिली, B- बॉडी ऑफ इंडिविजुअल के लिए है, L- लोकल के लिए, J- आर्टिफिशियल जुडिशियल पर्सन और G- गवर्नमेंट के लिए होता है। पैन कार्ड नंबर का पांचवां डिजिट भी ऐसा ही एक अंग्रेजी का लेटर होता है। यह डिजिट पैन कार्डधारक के सरनेम का पहला अक्षर होता है। इसके बाद पैन कार्ड में 4 नंबर होते हैं, जो 0001 से लेकर 9999 तक कुछ भी हो सकते हैं। आपके पैन कार्ड के ये नंबर उस सीरीज को दर्शाते हैं, जो मौजूदा समय में इनकम टैक्स डिपार्टमेंट में चल रही होती है। इसका आखिरी डिजिट एक अल्फाबेट चेक डिजिट होता है, जो कोई भी लेटर हो सकता है।

राजस्थान के मनुवादियों के मुंह पर तमाचा, हेलिकॉप्टर में दुल्हन लेकर उड़ा दुल्हा

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डीडी डेस्क- जिस राजस्थान में दलितों के घोड़ी पर चढ़ने को लेकर बवाल मचाया जाता है, उसी राजस्थान में दलित समाज के दूल्हे ने अपनी दुल्हन को हेलिकॉप्टर में विदाई करा कर जातिवादियों के मुंह पर करारा तमाचा जड़ दिया है। सड़क की गलियों की बजाय हवा में उड़ान भरने वाले दलित समाज के इस जोड़े ने उन मनुवादियों को जमकर चिढ़ाया है, जो अक्सर घोड़ी चढ़ने वाले दूल्हों की राह में खड़े हो जाते हैं। हालांकि आखिरी समय पर हेलिकॉप्टर खराब बताकर इस जोड़े को हेलिकॉप्टर में उड़ने से रोकने की कोशिश की गई, लेकिन दूल्हे के जिद्दी पिता ने एक लाख रुपये ज्यादा देकर दूसरी कंपनी से हेलिकॉप्टर मंगवा कर एक मिसाल कायम कर दी। राजस्थान के बाड़मेर जिले के मंसुरिया कॉलोनी की निवासी तिल्लाराम मेघवाल के बेटे तरुण पन्नू की शादी होनी थी। माँ पार्वती की जिद थी कि उनका बेटा दूल्हन को हेलिकॉप्टर में लेकर आए। दूल्हे के पिता तिल्लाराम मेघवाल ने अपने परिवार की इस इच्छा को पूरा करने के लिए 6 लाख रुपये में हेलिकॉप्टर बुक करवा लिया। मंगलवार को जब दुल्हन को विदा होना था, हेलिकॉप्टर कंपनी ने तकनीकी खराबी बताकर हेलिकॉप्टर भेजने से मना कर दिया। लगा कि अब दुल्हन हेलिकॉप्टर पर विदा नहीं हो पाएगी, लेकिन दूल्हे के पिता तिल्लाराम मेघवाल ने हार नहीं मानी उन्होंने तुरंत दूसरी कंपनी से बात की और एक लाख रुपये ज्यादा देकर हेलिकॉप्टर मंगवा लिया। राजस्थान के दलित समुदाय की शादी में दुल्हन को इस शाही अंदाज में विदाई की यह घटना कोई आम खबर नहीं है। बल्कि यह दलितों की नई पीढ़ी द्वारा बनी बनाई व्यवस्था को चुनौती देने की बड़ी घटना है। क्योंकि हम जिस राजस्थान की बात कर रहे हैं, उसके बारे में अलग-अलग मीडिया रिपोर्ट्स बताते हैं कि पिछले पांच साल में प्रदेश में दलितों को घोड़ी से उतारने के 80 से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं। साल 2018 में राजस्थान के गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया ने विधानसभा में कहा था कि प्रदेश में बीते तीन साल में दलित दूल्हों को घोड़ी पर चढ़ने से रोकने की 38 घटनाओं में मुकदमें दर्ज हुए हैं। निश्चित तौर पर उस राजस्थान में दुल्हन की हेलिकॉप्टर से विदाई बड़ी खबर है। इस घटना ने उन जातिवादियों को मुंह चिढ़ाया है, जो दलितों को शादियों में घोड़ी पर चढ़ने से रोकते हैं।

मंदिर की सड़क पर चलने वाले दलित युवक को पीटा

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डीडी डेस्क– कर्नाटक में धर्मांतरण विरोधी विधेयक सामने आने के बीच ईसाईयों पर उत्पीड़न के मामले बढ़ गये हैं लेकिन इसके साथ ही राज्य में दलित अत्याचार की वारदातें भी जोर पकड़ रही है। ऐसी ही एक हैरान कर देनी वाली घटना मैसूरु ज़िले के एक लिंगायत वर्चस्व वाले गांव से सामने आई है जहां एक दलित युवक को महज इस बात के लिए पीटा गया क्योंकि उसने मंदिर के सामने बनी सड़क का इस्तेमाल किया था। ये घटना अन्नूर होशाहल्ली गाँव की है। जहां के रहने वाले दलित युवक महेश अपने एक दोस्त के साथ बाइक पर जा रहे थे कि उन्हें कुछ लोगों ने शिव मंदिर के पास रोक लिया और उनकी कथित रूप से पिटाई कर डाली। जिन लोगों ने महेश को पीटा वो लिंगायत समुदाय के लोग थे। कर्नाटक में लिंगायत को एक बड़ी और महत्वपूर्ण जाति के रूप में देखा जाता है। लिंगायतों का शिक्षा, राजनीति, खेती-बाड़ी, व्यवसाय समेत लगभग सभी क्षेत्रों पर दबदबा देखा जाता है। कर्नाटक के जिस शिव मंदिर को लेकर ये घटना हुई है उस मंदिर को बनवाने में भी दलित और लिंगायत दोनों समुदाय के लोगों ने अपनी बराबरी की हिस्सेदारी दी थी। पीड़ित महेश ने भी इस बार इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि ” इस गाँव के लिंगायतों व दलितों ने मिल कर पाँच साल पहले ही शिव मंदिर बनाया था, इसके लिए दोनों ने ही पैसे दिए, दोनों ने ही अपना श्रमदान किया और दोनों की इसमें बराबर की हिस्सेदारी थी।” लेकिन मंदिर बनने के बाद ही लिंगायतों ने दलितों को मंदिर से दूर करना शुरू कर दिया। कुछ समय बाद उन्होंने दलितों की मंदिर में एंट्री भी बंद करा दी और जब दलितों ने इस पर सवाल उठाया तो उनकी पिटाई कर दी गई। महेश ने ये भी बताया कि ‘दलितों को मंदिर से दूर करने के बाद ये भी कहा गया कि कोई दलित मंदिर के सामने की सड़क से नहीं गुजरेगा। ज्यादातर लोगों ने ये बात मान ली लेकिन मैंने नहीं मानी और मैं सड़क का इस्तेमाल करता रहा।’ बताते चले कि इस गांव में तीन सौ लिंगायतों के घर हैं जबकि दलितों के सिर्फ 35 घर हैं। बहरहाल, पुलिस ने आईपीसी और एसटी एक्ट 1989 के तहत मामला दर्ज कर लिया है और जनवरी में होने वाले गांव के खास उत्सवों को देखते हुए इलाके में पुलिस बल तैनात कर दिए गये हैं।

ओमिक्रॉन से चाहते हैं बचाव? तो सुन लिजिए एक्सपर्ट्स की राय….

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नई दिल्ली- कोरोना वायरस पिछले दो साल से काल बनकर पूरी दुनिया पर छाया हुआ है। इन दो सालों में ये कई प्रचंड रूपों में हमारे सामने आया है। इसमें अब तक डेल्टा वैरिएंट सबसे ज्यादा भयानक रहा है। लेकिन अब एक नया वैरिएंट सामने आया है जिसे पूरी दुनिया में ओमिक्रॉन के नाम से जाना जा रहा है। हालांकि इसे लेकर अभी तक कुछ साफ नहीं हो पाया है कि ये किस तरह दुनिया को प्रभावित करने वाला है। कई एक्सपर्ट्स का मानना है कि ये डेल्टा से 5 से 7 गुना ज्यादा प्रभावित करेगा। भारत में अब तक ओमिक्रॉन के कुल 64 केस दर्ज किए गए हैं और इसमें सबसे पहला केस केरल से आया था, जहां ये प्रचंड रुप अपनाए हुए है। इसके अलावा दिल्ली और महाराष्ट्र में इसके अब तक 8-8 मामले सामने आ चुके हैं। इसी तरह ओमिक्रॉन ने देश के कुल 8 राज्यों में अपनी घुसपैठ कर ली है। अब बात करें इसकी गंभीरता, ट्रांसमिशन रेट और लक्षणों की, जिसको लेकर कई तरह के दावे किए जा रहे हैं। वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन का दावा है कि नया ओमिक्रॉन वैरिएंट पहले संक्रमित हो चुके लोगों को भी आसानी से अपनी चपेट में ले सकता है। इसके अलावा, वैक्सीन के दोनों डोज ले चुके लोग भी ओमिक्रॉन के खिलाफ सुरक्षित नहीं हैं। आपको बता दें ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी के रीसर्चर्स की भी तरफ से ये बात सामने आई है कि ये उन लोगों को भी संक्रमित कर सकता है जिन्होंने वेक्सीन की दोनों डोज ले ली है। लेकिन इसके साथ ही एक राहत की बात यह है कि आमिक्रॉन के खिलाफ वैक्सीन की बूस्टर डोज प्रभावी साबित हो रही है इसलिए तीसरा डोज भी लगवाएं।
वहीं बात करें बायोएनटेक और फाईजर की तो, बीते हफ्ते कंपनी की तरफ से बयान सामने आया जिसमें कहा गया है कि उनके वैक्सीन की तीन डोज नए वैरिएंट ओमिक्रॉन से लड़ने में कामयाब साबित हो रही है। हालांकि मॉडर्ना की तरफ से अभी तक कोई डेटा सामने नहीं आया है और जॉनसन एंड जॉनसन ने भी इस मामले में किसी भी तरह का कमेन्ट करने से इन्कार कर दिया है। इसके लक्षण की बात करें तो एक्सपर्ट्स का मानना है कि ओमिक्रॉन से संक्रमित मरीजों को रात में पसीना आने की शिकायत हो सकती है। कई बार मरीज को इतना ज्यादा पसीना आता है कि उसके कपड़े या बिस्तर तक गीले हो सकते हैं, संक्रमित को ठंडी जगह में रहने पर भी पसीना आ सकता है। इसके अलावा मरीज को शरीर में दर्द की शिकायत भी हो सकती है।

यूपी विधानसभा चुनाव से पहले काशी के पंडों ने उड़ाई भाजपा की नींद

नई दिल्ली- जिस काशी और अयोध्या के बूते भाजपा यूपी की सत्ता में दुबारा आने की राह तैयार करने में जुटी है, उसी काशी के साधुओं ने प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा के सपनों पर पानी फेरने का ऐलान कर दिया है। 14 दिसंबर को एबीपी न्यूज में दिखाई गई एक चर्चा में साधुओं ने धर्म की राजनीति करने पर मोदी और भाजपा को न सिर्फ घेरा, बल्कि बेरोजगारी और महंगाई की बात कर सबको चौंका दिया। साधुओं ने जब एक के बाद एक मुद्दे गिनाने शुरू किये तो चैनल के दफ्तर में बैठी एंकर भी तिलमिला गई, और एजेंडा सेट न होता देख साधुओं का वीडियो बंद कर दिया गया। वीडियो में साफ दिख रहा है कि जब चैनल का रिपोर्टर साधुओं से धर्म को लेकर बात करना चाहता है, साधु बेरोजगारी और महंगाई का मुद्दा उठा देते हैं। साथ ही धर्म की राजनीति को लेकर पीएम की आलोचना से भी नहीं चूकते। ऐसे में पहले तो चैनल की एंकर और रिपोर्टर द्वारा साधुओं को अपने धर्म के एजेंडे पर लाने की कोशिश की जाती है और जब साधु लगातार भाजपा पर धर्म की राजनीति को लेकर सवाल उठाते हैं तो उनका वीडियो बंद कर दिया जाता है। यहां एक सवाल तो यह उठ रहा है कि न्यूज चैनलों पर जिस तरह भाजपा का एजेंडा सेट करने का आरोप लगता रहा है, भाजपा के विरोध में बोलने वाले साधुओं का वीडियो बंद कर देने से क्या वो आरोप साबित नहीं होते? क्योंकि चैनल भाजपा और मोदी पर सवाल उठाने वालों का वीडियो तक चलाना नहीं चाहते हैं। और दूसरा सवाल यह है कि मीडिया को अपने खेमे में कर के देश की जनता पर अपने मुद्दे थोपने की कोशिश में लगी भाजपा क्या ऐसा करने में फेल हो गई है? क्योंकि पीएम मोदी से लेकर सीएम योगी तक, जिस धर्म के नाम पर यूपी और तमाम प्रदेशों सहित केंद्र की सियासत जीतने की तैयारी में लगे हैं, वैसा होता तो नहीं दिख रहा। क्योंकि जब धर्म का आवरण ओढे साधु ही धर्म की राजनीति पर सवाल उठा दें और बेरोजगारी और महंगाई को मुद्दा बताने लगे तो फिर साफ है कि भाजपा के लिए यूपी और अन्य प्रदेशों में चुनावी जीत की राह मुश्किल है।

हर साल लाखों लोग आखिर क्यों छोड़ रहे हैं भारत की नागरिकता?

नई दिल्ली- भारत में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर यानी एनआरसी को लेकर अभी तक कोई अंतिम फैसला नहीं आया है। जबकि 10 जनवरी 2020 से ही नागरिकता संशोधन विधेयक यानी सीएए लागू कर दिया गया है।  इस बिल के तहत भारत की नागरिकता पाने के लिए पात्र आवेदन कर सकते हैं। लेकिन हम बात यहां भारत की नागरिकता को छोड़ने को लेकर करने जा रहे हैं। लोकसभा में गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने एक सवाल का जवाब देते हुए, लिखित में बताया है कि साल 2015 से 2019 के बीच 6।76 लाख से ज्यादा लोगों ने भारत की नागरिकता छोड़ दी है। विदेश मंत्रालय से मिली जानकारी की माने तो तकरीबन 1,24,99,395 भारतीय नागरिक दूसरे देशों में रह रहे हैं। टाइम ऑफ़ इंडिया के अनुसार, अमेरिका में सबसे ज्यादा भारतीय रहते हैं। इनमें से औसतन 44% भारतीय लोग भारत की नागरिकता छोड़ देते हैं। इसके बाद भारतीय सबसे ज्यादा कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में हैं जहां रहते हुए करीब 33% भारतीय नागरिकता छोड़ देते हैं। दूसरे देशों की बात करें तो ब्रिटेन, सऊदी अरब, कुवैत, यूएई, कतर, सिंगापुर आदि देशों में भी भारतीय बड़ी संख्या में जा बसते हैं। गृह मंत्रालय द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, विदेश में रह रहे 1।25 करोड़ भारतीय नागरिकों में से 37 लाख लोग ओवरसीज सिटीजनशिप ऑफ इंडिया कार्डधारक हैं फिर भी इन्हें अभी वोट देने, चुनाव लड़ने, एग्रीकल्चर प्रॉपर्टी खरीदने का या सरकारी कार्यालयों में काम कर पाने का अधिकार प्राप्त नहीं है। अब सवाल ये हैं कि आखिर क्यों हर साल भारतीय देश को छोड़ बाहर बस रहे हैं और अपनी नागरिकता त्याग रहे हैं। जानकारों की माने तो बाहर जाकर बसने वाले लोग अपनी पढ़ाई, अच्छे करियर, फाइनेंसियल स्टेटस और अपने फ्यूचर को बेहतर बनाने के उद्देश से विदेश जाते हैं और वहीँ बस कर रह जाते हैं। ये देखा गया है कि विदेशों में पढ़ाई के लिए हर साल जाता युवा वर्ग वहीँ सेटल होने के बारे में सोचता हैं और ऐसा करते हुए लगभग हर साल विदेश पढ़ाई के लिए जाने वाला 80% युवा वहीँ का हो कर रह जाता है। युवाओं की बात करें तो उनके सामने कई बड़ी कंपनियों के भारतीय मूल के अधिकारियों के उदहारण सामने हैं जिन्हें अपना आदर्श मान कर युवा विदेश का रुख कर रहे हैं। इन अधिकारियों में सीईओ सुंदर पिचाई, सत्य नडेला, अरविंद कृष्णा, पराग अग्रवाल का नाम मुख्यता से लिया जाता है। इसके साथ ही युवाओं का मानना है कि भारत में अच्छी शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी उन्हें बेहतर अवसर नहीं मिल पाते हैं इसलिए वो विदेश में जाकर फ्यूचर बनाने की सोचते हैं।

दलितों के लिए शिक्षा बनी संघर्ष, पक्षपात और यातनाएं सहने को मजबूर हैं छात्र

नई दिल्ली- हमारे समाज को जातीयता का कीड़ा सदियों से खाता चला आ रहा है। इस दानव रूपी कीड़े को जड़ से खत्म करने के लिए डॉ भीमराव आंबेडकर ने कड़ा संघर्ष किया लेकिन आज जब हम उनके किए गये कार्यों के बावजूद समाज को जातिवाद की बेड़ियों में जकड़ा हुआ देखते हैं तो खुद को असहाय पाते है। आंबेडकर इस जातीयता को मिटाने का सबसे बड़ा हथियार शिक्षा को मानते थे और आज शिक्षा के क्षेत्र में ही सबसे ज्यादा जातिवाद देखा जा रहा है। इसके हालिया उदहारणों में जवाहरलाल नेहरु यूनिवर्सिटी से वायवा स्कैम, इलाहाबाद के झूसी स्थिति जी.बी. पंत सोशल इंस्टीट्यूट में नॉट फाउंड सुटेबल और इलाहाबाद यूनिवर्सिटी का दो साल पुराने मामले में कोर्ट द्वारा पक्षपात के साक्ष्य मांगने को लेकर देखे गये हैं। भारत में आज भी अपने मूल अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे दलितों की आबादी लगभग 20 करोड़ है। इस बारे में दिल्ली यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर जेनी रोवेना कहती हैं कि “यूनिवर्सिटी कैम्पस में जातिगत उत्पीड़न होना आम बात है। यूनिवर्सिटी की कक्षाएं दलित छात्रों के लिए भयानक जगह बन चुकी हैं इसलिए शर्मिंदगी और यातनाओं से बचने के लिए बहुत से दलित छात्र कक्षाओं में जाते ही नहीं हैं।” सरकार के हायर एजुकेशन इंस्टीट्यूट के आंकड़े बताते हैं कि 18 से 23 साल के दलित या अन्य पिछड़ी जातियों के बच्चों की संख्या केवल 14.7% है जबकि उन्हें कई सब्जेक्ट्स में 15% आरक्षण हासिल है, इसके बावजूद दलित छात्र कक्षाओं में ना जाने को मजबूर हैं।
डीडब्लू से साभार
ऐसा ही भेदभाव जब कोट्टायम की दीपा पी मोहनन के साथ हुआ तब उन्होंने इसके खिलाफ लड़ने का फैसला लिया। 11 दिनों की भूख हड़ताल के बाद दीपा ने अपनी लड़ाई जीती और हजारों दलित छात्रों के लिए मिसाल खड़ी की। दीपा नैनोमेडिसन पर रिसर्च कर रही हैं। उन्होंने देखा कि उन्हें स्टाफ लगातार परेशान करता था और यूनिवर्सिटी लैब में घूसने तक नहीं दिया जाता था, यहाँ तक कि उन्हें बैठने के लिए कुर्सी तक नहीं मिलती थी। अपने साथ होते इस अपमानजनक व्यवहार के बाद उनकी कई बार हिम्मत टूटी और कई बार उनके मन में आया कि वो अपनी रिसर्च छोड़ दें लेकिन फिर दीपा ने लड़ने का फैसला किया। दीपा ने अपने ऊपर हो रहे अन्याय के खिलाफ 11 दिन की भूख हड़ताल की और उनकी शिकायतों पर महात्मा गांधी यूनिवर्सिटी के नैनोसाइंस और नैनोटेक्नोलॉजी सेंटर के अध्यक्ष को बर्खास्त कर दिया गया। उनकी शिकायत के बाद ही यूनिवर्सिटी ने वाइस चांसलर की अध्यक्षता में एक कमिटी भी स्थापित की है, जो दलित विद्यार्थियों के साथ कैंपस में हो रहे दुर्व्यवहार और शोषण के आरोपों की जांच करेगी। समाज में दलितों के साथ इस तरह की घटनाएं होना आम बात है लेकिन हमारा समाज इसे मानने को तैयार नहीं है। समाज यही कहता है कि वो बदल गया है जबकि सच तो ये हैं कि समाज की समझ में जातिगत भेदभाव रचा बसा है बस उसे दर्शाने के तरीकों में बदलाव आया है।