देश में चुनाव लड़ना दिन-ब-दिन महंगा होता जा रहा है। इसका सबसे अधिक शिकार वे पार्टियां हो रही हैं, जो गरीबों का प्रतिनिधित्व करती हैं। जबकि वे पार्टियां जिनके पास चुनावी चंदा अकूत मात्रा में प्राप्त होता है, वे अर्थ बल का जमकर उपयोग करती हैं। इसी क्रम में सुप्रीम कोर्ट में इलेक्शन बांड को लेकर सुनवाई शुरू हुई है। इस संबंध बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती ने सुप्रीम कोर्ट से सकारात्मक हस्तक्षेप की अपेक्षा की है।
दरअसल, देश में पार्टियां चंदे से चलती हैं। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि आज तमाम कारपोरेट जगत देश की लगभग सभी पार्टियेां को इलेक्शन बांड के रूप में करोड़ों रुपए का चंदा देती हैं। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफार्म्स (एडीआर) ने अपनी रपट में बताया है कि पिछले पांच वर्षो में इलेक्शन बांड के जरिए जो धन विभिन्न राजनीतिक दलों को प्राप्त हुए हैं, उनमें सबसे पहले नंबर पर भाजपा है, जिसे करीब 85 फीसदी दान प्राप्त हुए हैं। इसकी वैधानिकता को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गयी थी, जिसकी सुनवाई को लेकर उसने अपनी सहमति दे दी है।
इसी संबंध में बसपा प्रमुख मायावती ने कहा है कि कारपोरेट जगत व धन्नासेठों के धनबल के प्रभाव ने देश में चुनावी संघर्षों में गहरी अनैतिकता व असमानता की खाई तथा ’लेवल प्लेइंग फील्ड’ खत्म करके यहाँ लोकतंत्र एवं लोगों का बहुत उपहास बनाया हुआ है। गुप्त ’चुनावी बाण्ड स्कीम’ से इस धनबल के खेल को और भी ज्यादा हवा मिल रही है।
उन्होंने यह भी कहा है कि अब काफी समय बाद मा. सुप्रीम कोर्ट चुनावी बाण्ड से सम्बन्धित याचिका पर सुनवाई शुरू करेगी, उम्मीद की जानी चाहिए कि धनबल पर आधारित देश की चुनावी व्यवस्था में आगे चलकर कुछ बेहतरी हो व चुनिन्दा पार्टियों के बजाय गरीब-समर्थक पार्टियों को खर्चीले चुनावों की मार से कुछ राहत मिले।

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