लखनऊ। इन्वेस्टर्स समिट में निवेशकों को लुभाने के लिए लखनऊ चमक रहा है, मायावती के दौर में बने स्मारकों को भी बेहतरीन ढंग से सजाया गया है. लेकिन इन्हीं स्मारकों और चौराहों पर लगी दलित महापुरुषों की मूर्तियां अंधेरे में रह गई हैं या फिर छोड़ दी गई हैं. चलिये योगी सरकार सबको भूल गई, लेकिन कम से कम भीम राव अंबेडकर को तो ध्यान में रखते. जिन्हें वक्त बेवक्त दलिट वोटों को जोड़ने के लिए याद करते रहते हैं.
दरअसल लखनऊ में हो रहे इन्वेस्टर्स समिट के लिए योगी सरकार ने अच्छी खासी तैयारी की. एयरपोर्ट से लेकर इन्दिरा गांधी प्रतिष्ठान तक और हर उन इलाकों को सजाया गया जहां इन्वेस्टर्स को घुमाया जा सके. इसमें कोई शक नहीं है कि सरकार ने इसके लिए अच्छी खासी मेहनत औऱ पैसा खर्च किया. समिट सफल भी माना जा रहा है. इस साज सज्जा में सबसे बड़ा योगदान मायावती के मुख्यमंत्री काल में बने स्मारकों और पार्कों का भी है, जो लखनऊ की खूबसूरती में चार चांद लगा रहे हैं.
योगी सरकार ने पार्कों स्मारकों को तो खूब सजाया, दीवार से लेकर खंभे तक रोशनी से नहा गए. लेकिन स्मारकों और पार्कों के बीच लगी अंबेडकर, नारायण गुरु, ज्योतिबा फूले जैसे महापुरुषों की मूर्तियां रोशनी को तरस गईं. मूर्तियों के प्लेटफार्म तक पर स्ट्रिप लाइट लगाई गई. लेकिन मूर्तियों पर एक भी ऐसी लाइट नहीॆ लगी जिससे कम से कम उनके चेहरे तो दिख सके.
मुख्यमंत्री काल में मायावती ने दलित उत्थान के लिए काम करने वाले महापुरुषों की प्रतिमाएं चौराहों और पार्कों में लगवाई थीं. यही नहीं मायावती ने इनके बीच अपनी और कांशीराम की भी मूर्तियां लगवा दी थीं, जो काफी चर्चा में रही. शायद ये पहला मामला रहा जब किसी ने खुद की मूर्तियां लगवाईं.
योगी सरकार का मायावती से तो परहेज करना लाजिमी है लेकिन दलित महापुरुषों की मूर्तियों को रोशनी से महरूम करने का तुक समझ नहीं आता.

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