नई दिल्ली: दशकों पहले कानूनी तौर पर आपराधिक धोषित की जा चुकी छुआछूत की प्रथा के आकड़े देखकर आप दंग रह जाएंगे. हाल ही में सोशल एटिट्यूड रिसर्च ऑफ इंडिया द्वार किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार शहरी राजस्थान में 50%, शहरी उत्तर प्रदेश में 48% और दिल्ली में 39% तक छुआछूत का चलन है. इसके अलावा राजस्थान और उत्तर प्रदेश के दो तिहाई हिस्सों में यह कुप्रथा आज भी कायम है.
यह सर्वे यूनिवर्सिटी ऑफ टैक्सेस और जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी द्वारा किया गया था. इस दौरान फोन के ज़रिए दिल्ली, मुंबई, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के लगभग 8,065 लोगो का इंटरव्यू लिया गया, जिसमे छुआछूत, दलित उत्पीड़न, और अंतरजातीय विवाह पर सवाल किये गये. जिसके बाद इसकी रिपोर्ट इकोनॉमिक एंड़ पॉलिटिकल वीकली में प्रकाशित की गई.
सर्वेक्षण करने वाले अमित थोराट का कहना है कि यह प्रवृत्ति देश के सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए बड़ी चुनौती है और इससे समाज की मानसिकता और भी बदतर होती दिख रही है.
बरहाल, इस सर्वेक्षण से जो आंकड़े सामने आए हैं वह शर्मनाक है. आज भी ऐसी कुरीतियां हमारे समाज को जकड़े हुई हैं. और हम विकसित देश बनने का सपना देख रहे हैं. समझ में यह नहीं आता कि जब संविधान छुआछूत जैसी कुप्रथा को आपराधिक करार देता हैं तो ये लोग जो इन कुरीतेयों को बढ़ावा देते हैं उनके उपर ज़मीनी स्तर पर आखिर कोई कार्यवाही क्यों नहीं की जाती.
पीयूष शर्मा
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