”न्यायपालिका में हमेशा न्याय नहीं होता. कभी-कभी सिर्फ जजमेंट होता है”- पूर्व न्यायाधीश

बाम्बे हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश बी जी कोलसे पाटिल कहते हैं: ”न्यायपालिका में हमेशा न्याय नहीं होता. कभी-कभी सिर्फ जजमेंट होता है.’ विख्यात न्यायविद पाटिल ने यह टिप्पणी ‘सत्ता की सूली’ शीर्षक पुस्तक की भूमिका में दर्ज की है. पुस्तक के लेखक हैं: महेंद्र मिश्र, प्रदीप सिंह और उपेंद्र चौधरी. इसे ‘शब्दलोक प्रकाशन’ दिल्ली ने छापा है.

हमारी न्यायिक व्यवस्था कैसे अनेक सनसनीखेज और अपराध के भयानक षड्यंत्रों को बेपर्दा नहीं कर पाती और न्यायालयों में सिर्फ फैसला(जजमेंट) हो जाता है, न्याय नहीं हो पाता; यह पुस्तक ऐसे कई बड़े मामलों को ठोस साक्ष्यों के साथ सामने लाती है. लेकिन पुस्तक का केंद्रीय विषय है: मुंबई स्थित विशेष सीबीआई कोर्ट के जज बी एच लोया की कथित संदिग्ध मौत.

जज लोया की कथित संदिग्ध मौत के बारे में दो कहानी सामने आई: नागपुर के एक गेस्ट हाउस में वह अचानक अस्वस्थ हुए और उनकी मौत हो गई. दूसरी बात सामने आई कि उनकी बड़े षड्यंत्रपूर्वक हत्या कर दी गई. वह एक बहुत बड़े मुकदमे की सुनवाई कर रहे थे. यह मामला था: गुजरात से जुड़ी कुछ रहस्यमय मुठभेड़ हत्याओं का. बहुचर्चित सोहराबुद्दीन मुठभेड़ कांड इसमें सबसे अहम था. सोहराबुद्दीन, उसकी बीवी कौसर बी और उस केस के एक गवाह तुलसीराम प्रजापति मार डाले गए थे . पहले इन्हें मुठभेड़ माना गया. बाद में सवाल उठे कि यह तो योजनाबद्ध हत्या के मामले थे. इस मामले की सीबीआई जांच हुई, इसमें तकरीबन एक हजार पेज की चार्जशीट दाखिल हुई. इसमें पुलिस अफसर डी जी वंजारा और उसकी टीम के सदस्यों के अलावा राजनीतिक-प्रशासनिक पदों पर आसीन रहे लोगों के भी नाम अलग-अलग संदर्भ में दर्ज हुए. इनमें एक नाम था: गुजरात के तत्कालीन मंत्री अमित शाह का. सीबीआई ने 25 जुलाई, 2010 को इस मामले में षड्यंत्रकर्ता होने के कथित आरोप में उन्हें गिरफ्तार भी किया था. बाद में उन्हें सशर्त जमानत मिली. कुछ वर्ष बाद बाद यह केस भी खत्म .

सोहराबुद्दीन मुठभेड़ हत्या कांड के तार एक दूसरे हाई प्रोफाइल मर्डर से जुड़े बताए गए. यह मर्डर था: भाजपा नेता और गुजरात के गृह राज्यमंत्री रहे हरेन पंड्या का. ठोस तथ्यों के साथ पुस्तक में बताया गया है कि जिस वक्त जज लोया की संदिग्ध मौत हुई, वह सीबीआई स्पेशल कोर्ट, मुंबई में सोहराबुद्दीन और अन्य के एनकाउंटर कांड का मामला चल रहा था. जज लोया ने इस मामले में भाजपा नेता अमित शाह को भी समन किया था. उसी दौर में एक दिन जज लोया नागपुर जाते हैं और उनकी मौत हो जाती है. काफी वक्त बाद जज लोया की मौत की स्वतंत्र जांच का मामला एक याचिका के जरिए सुप्रीम कोर्ट में आता है. पर कोर्ट केस में मेरिट नहीं देखता और इस तरह मामला खत्म हो जाता है. लेकिन कोर्ट के स्तर पर खत्म समझे जाने वाले उसी मामले से जुड़ी पूरी कथा को ‘सत्ता की सूली’ में दस्तावेजों के साथ सामने लाया गया है. सभी जानते हैं कि जज लोया की संदिग्ध मौत पर पहली खोज-पड़ताल अंग्रेजी की मशहूर पत्रिका ‘द कैरवान’ ने छापी थी.

इस किताब के बारे में विख्यात न्यायविद प्रशांत भूषण और इंदिरा जयसिंह ने भी आमुख लिखे हैं. इंदिरा जयसिंह की यह टिप्पणी इस किताब की महत्ता और भूमिका रेखांकित करती है: भारत में अनेक अनसुलझी हत्याओं के दृष्टांत मिल जाते हैं. अनेक बार ‘अपराध न्याय प्रणाली’ विफल हुई है और यह किताब उस श्रेणी की है, जो अन्याय की कड़वी यादों को हमारे जेहन में जीवित रखती है.’

– उर्मिलेश

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