नई दिल्ली। भयंकर जाति व्यवस्था से जूझने वाले भारत में दलितों और आदिवासियों की स्थिति काफी खस्ता है. जहां उन्हें सामाजिक तौर पर लगातार प्रताड़ना झेलनी पड़ती है तो वहीं उनकी आर्थिक हालत भी खस्ता है. सरकार ने खुद इस बात को माना भी है.
एक सरकारी आंकड़े के मुताबिक देश में गरीबी की बात करें तो यहां करीब 27 करोड़ लोग गरीबी में जी रहे हैं. सरकारी शब्दों में कहें तो गरीबी रेखा के नीचे यानि बीपीएल का जीवन जी रहे हैं. तो वहीं अगर अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति की बात करें तो अनुसूचित जनजाति के 45.3 प्रतिशत और अनुसूचित जाति के 31.5 प्रतिशत लोग ग़रीबी रेखा के नीचे हैं. बुधवार को संसद में एक सवाल के जवाब में यह जानकारी योजना राज्य मंत्री राव इंद्रजीत सिंह ने दी.
मंत्री ने बताया कि साल 2011-12 के आंकड़े के मुताबिक देश में करीब 27 करोड़ लोग यानि की तकरीबन 22 फीसदी लोग ग़रीबी रेखा के नीचे जीपन यापन कर रहे हैं. इसमें अनुसूचित जनजाति के 45.3 फीसदी और अनुसूचित जाति के 31.5 फीसदी लोग शामिल हैं.
देश की आजादी के 70 साल बाद इस तरह के आंकड़े चौंकाने वाले हैं, जहां एक बहुत बड़े समाज की आधी आबादी गरीबी में जी रही है. यह तब है जब देश की पहली सरकार से लेकर अब तक की सरकारें गरीबी उन्मूलन के लिए तमाम कानून चला रही है. यह आंकड़ें यह जाहिर करने के लिए काफी है कि देश में गरीबी उन्मूलन और गरीबों की स्थिति सुधारने के नाम पर तमाम सरकारें अलग ही खेल खेलती रही हैं.

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