“हमने सदियों तक एससी-एसटी के लोगों के साथ खराब व्यवहार किया, हमें अपना सिर शर्म से झुका लेना चाहिए- मद्रास हाईकोर्ट

मद्रास हाईकोर्ट के न्यायाधीश ने एक ऐसा बयान दिया है, जिससे आने वाले समय में दलित समाज को लेकर न्यायपालिका के रवैये पर एक नई बहस छि़ड़ सकती है। एक अहम मामले की सुनवाई करते हुए मद्रास हाईकोर्ट ने दलितों को लेकर बड़ा बयान दिया। हाईकोर्ट ने कहा, “हमने सदियों तक एससी-एसटी के लोगों के साथ खराब व्यवहार किया। आज भी उनके साथ ठीक व्यवहार नहीं हो रहा है। इसके लिए हमें अपना सिर शर्म से झुका लेना चाहिए।”

 दरअसल कोर्ट ने तमिल दैनिक अखबार ‘दिनकरन’ में प्रकाशित एक खबर का खुद संज्ञान लेते हुए यह बयान दिया है। इसी खबर को हिन्दी अखबार दैनिक भास्कर ने भी प्रकाशित किया है।

तमिल दैनिक में 21 दिसंबर को एक खबर प्रकाशित हुई थी, जिसमें बताया गया था कि मेलूर तालुक की मरुथुर कॉलोनी से एक दलित परिवार को अपने परिजन का अंतिम संस्कार करने के लिए खेतों से गुजरकर कब्रिस्तान जाना पड़ा। क्योंकि वहां तक पहुंचने के लिए सड़क नहीं थी। अदालत ने इस खबर पर खुद ही संज्ञान लेते हुए इसे जनहित याचिका मानकर सुनवाई की।

 सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा, अन्य वर्गों की तरह अनुसुचित जाति वर्ग के लोगों को भी कब्रिस्तान/विश्राम घाट घाट तक पहुंचने के लिए अच्छी सड़कों की सुविधा मिलनी चाहिए। लेकिन इस खबर से पता चलता है कि उनके पास ऐसी सुविधा, अब भी कई जगह नहीं है।

इस दौरान अदालत ने राज्य के अफसरों से दलित-आदिवासी समाज की स्थिति को लेकर कई सवाल पूछ डाले। कोर्ट ने अफसरों से पूछा-

  • तमिलनाडु में एससी के लोगों की कितनी बस्तियां हैं?
  • क्या अनुसूचित जाति की सभी रिहाइशों में साफ पानी, स्ट्रीट लाइट, शौचालय, कब्रिस्तान तक पहुंचने के लिए सड़क आदि की सुविधा है?
  • इस तरह की ऐसी कितनी बस्तियां हैं, जहां कब्रिस्तान तक पहुंचने के लिए सड़क आदि की सुविधा है।
  • इस तरह की ऐसी कितनी बस्तियां हैं, जहां कब्रिस्तान तक पुहंचने के लिए सड़क नहीं हैं?
  • इन लोगों को परिजनों के शव के साथ कब्रिस्तान तक पहुंचने के लिए सड़क की सुविधा मिले, इसके लिए अब तक क्या कदम उठाए गए?
  • ऐसी सभी रिहाइशों में साफ पानी, शौचालय, सड़क आदि की सुविधा कब तक मिल जाएगी?

इस मामले में, अदालत ने राज्य के मुख्य सचिव के साथ-साथ आदिवासी कल्याण, राजस्व, शहरी निकायों और जल आपूर्ति विभागों के प्रमुख सचिवों को भी पार्टियों के रूप में मांगा है। अधिकारियों से अनुसूचित जाति की बस्तियों में मौजूद सुविधाओं के बारे में भी सवाल पूछे गए थे। तमाम मामलों में जब यह आरोप लगने लगा है कि देश में इंसाफ भी उन्हीं को मिलता है, जिनके पास सत्ता और रुतबा है। जब देश के कई रिटायर जज भी अदालत की भूमिका पर सवाल उठा चुके हैं, ऐसे में मद्रास हाईकोर्ट का दलितों से जुड़े मामले का स्वतः संज्ञान लेना और शासन-प्रशासन से सवाल पूछना निश्चित तौर पर देश की न्याय व्यवस्था का एक बेहतर कदम है।

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