नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव की तारीख जैसे-जैसे पास आ रही है, दलित वोटों को लेकर घमासान तेज हो गया है. 2014 के चुlनाव में अगर भाजपा जीत पाई तो उसकी एक बड़ी वजह यह रही कि दलितों और पिछड़ों ने भाजपा को खुल कर समर्थन दिया था. हालांकि उत्तर प्रदेश के दलित बसपा के पीछे गोलबंद रहें लेकिन उसके बाहर भाजपा दलित वोटों को हासिल करने में सफल रही थी.
लेकिन पिछले कुछ दिनों में भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार को दलितों से जुड़े कई मुद्दों पर आलोचना का शिकार होना पड़ा है. बीते वक्त में रोहित वेमुला की सांस्थानिक आत्महत्या, सहारनपुर की घटना और एससी-एसटी एक्ट में संशोधन की कोशिश के बाद दलित भाजपा से दूर हुए हैं. भाजपा को लेकर दलितों का गुस्सा हरियाणा में अत्याचार के खिलाफ बौद्ध धर्म ग्रहण कर लेने के दौरान भी देखने को मिला जब बौद्ध धर्म अपनाने के बाद लोगों ने भाजपा को वोट न देने की शपथ खाई थी.
यही वजह है कि अब भाजपा और संघ यह पता लगाने की कोशिश कर रही है कि देश का दलित वोटर उनसे क्यों नाराज है? और उन्हें कैसे दुबारा अपने पाले में लाया जा सकता है. खबर है कि इस मुद्दे पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ द्वारा समर्थित थिंक टैंक इंडिया फाउंडेशन दलित चिंतन के मुद्दे पर एक बैठक बुलाने की तैयारी में है. यह बैठक जल्द ही बुलायी जा सकती है और यह बैठक अलग-अलग सेशन में आयोजित की जाएगी.
इस बैठक की अध्यक्षता केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह और पार्टी के महासचिव राम माधव करेंगे. इन बैठकों में भाजपा सांसद, पार्टी के बड़े पदाधिकारी और दलित समुदाय से जुड़े प्रतिनिधि शामिल होंगे.
खबर है कि इस बैठक में यह टटोलने की कोशिश की जाएगी कि आखिर दलित समाज भाजपा को लेकर गुस्से में क्यों है? खबर है कि बैठक में रोहित वेमुला की आत्महत्या, चंद्रशेखर रावण पर रासुका लगाने और उसे लगातार बढ़ाते रहने के मुद्दे के प्रभाव पर भी चर्चा होगी. दलित चिंतन बैठक ऐसे समय में किया जा रहा है जब मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान जैसे महत्वपूर्ण राज्यों में चुनाव होने वाले हैं. लोकसभा चुनाव को लेकर भी भाजपा घबराई हुई है. देखना होगा कि आखिर इस चिंतन का नतीजा क्या निकलता है?
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