नई दिल्ली। भाजपा सरकार में एक खास जाति से ताल्लुक रखने वाले अधिकारी भी अपने विभागीय मामलों पर भाजपा और संघ की भाषा बोलने लगे हैं. यहां तक की ये राजनीतिक बयानबाजी करने तक से नहीं चूक रहे हैं तो वहीं संविधान की अनदेखी भी कर रहे हैं. उत्तराखंड के विधालयी शिक्षा के महानिदेशक ने ऐसा ही एक बयान दिया है, जिसके बाद उनके ही शिक्षा विभाग में खासा रोष है.
दरअसल स्वतंत्रता दिवस के मौके पर शिक्षा महानिदेशक की लिखित भाषण की प्रति उनके ऑफिस ने माध्यमिक और प्रारंभिक शिक्षा सहित तमाम शिक्षा परिषदों को भेजा. साथ ही इस भाषण की प्रति को राज्य के सभी विद्यालयों और कार्यालयों में उपलब्ध कराने का फरमान जारी किया. लेकिन इस भाषण में जो लिखा था, उससे शिक्षा विभाग के भीतर ही विवाद हो गया है.
विधालयी शिक्षा के महानिदेशक ने अपने भाषण में आरक्षण को लेकर विवादास्पद बात कही है. साथ ही संघ की भाषा का भी इस्तेमाल किया है. स्वतंत्रता दिवस के भाषण में महानिदेशक आईएएस आलोक शेखर तिवारी ने आरक्षण को अतिवादी कह दिया. तो वहीं संघ और भाजपा के प्रचलित शब्द सामाजिक समरसता का भी जिक्र किया.
महानिदेशक तिवारी ने अपने भाषण में क्या कहा है, ……
“आज देश के सम्मुख क्षेत्रवाद, भाषावाद, बेरोजगारी, पर्यावरण, जल संरक्षण, आरक्षण, असमान क्षेत्रीय विकास के साथ-साथ आतंकवाद,नक्सलवाद जैसे अतिवादी विचारों से निपटने की चुनौती है. इन चुनौतियों का सामना राष्ट्र, समर्थ नागरिकों के माध्यम से कर सकता है.”
देखा आपने महानिदेशक आलोक शेखर तिवारी ने आतंकवाद और नस्लवाद के साथ आरक्षण को रखते हुए आरक्षण को अतिवादी विचार कहा है. तो वहीं इससे निपटने के लिए समर्थ नागरिकों की बात कही है. यहां महानिदेशक तिवारी किन ‘समर्थ नागरिकों’ की बात कह रहे हैं. यह भी देखना जरूरी है.
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