Budget 2019: मध्यवर्ग को टैक्स में राहत, किसानों की मदद के लिए विशेष कदम उठाने का होगा ऐलान?

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नई दिल्ली। आम चुनाव बेहद नजदीक होने के कारण मोदी सरकार पर कृषि संकट और मध्यवर्ग की मुश्किलों को दूर करने का बड़ा दबाव है. इसका असर अंतरिम बजट में देखा जा सकता है. अंतरिम वित्त मंत्री पीयूष गोयल पहले बजट भाषण में किसानों के साथ-साथ मध्यवर्ग को खुशखबरी दे सकते हैं. अंतरिम बजट में कई दिलचस्प घोषणाएं हो सकती हैं. इनमें संभवतः कृषि क्षेत्र के संकट को दूर करने के साथ-साथ मध्यवर्ग को टैक्स में राहत देने के प्रयास शामिल होंगे. दरअसल सरकार के सामने अगले आम चुनाव की चुनौती है जिसे किसानों एवं मध्यवर्ग की विशाल आबादी का दिल जीतकर आसान बनाया जा सकता है.

टैक्स पर छूट, लेकिन किस तरह?

टैक्स पर छूट की रूपरेखा क्या होगी, यह तो अभी स्पष्ट नहीं है, लेकिन सूत्रों ने संकेत दिया है कि 1 फरवरी को पेश होने जा रहे बजट में वित्त वर्ष 2019-20 के पहले कुछ महीनों के दौरान टैक्स छूट का ऐलान संभव है. बजट में यह वादा किया जा सकता है कि अगर मोदी सरकार दोबारा सत्ता में आई तो इस राहत की अवधि बढ़ाई जाएगी.

कौन सा विकल्प अपनाएगी सरकार? अभी वित्त मंत्रालय का कामकाज देख रहे केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल अपने पहले बजट भाषण के बड़े हिस्से में सरकार की विभिन्न पहलों एवं भविष्य के अजेंडे का बखान कर सकते हैं. अटकलें लग रही हैं कि गोयल टैक्स पर राहत देने के लिए स्लैब में बदलाव करेंगे या फिर स्टैंडर्ड डिडक्शन की सीमा 40 हजार रुपये से बढ़ाने का ऐलान होगा. चर्चा इस बात की भी है कि वह मेडिकल इंश्योरेंस लेने पर छूट के ऐलान तक ही सीमित रह सकते हैं.

जेटली का संकेत

बहरहाल, मोदी सरकार से इस बजट में बड़े-बड़े ऐलान की उम्मीद की जा रही है, लेकिन आशंका यह भी है कि अंतरिम बजट की बाध्याताओं के कारण ऐसा संभव नहीं हो. हालांकि, अमेरिका में इलाज करा रहे निवर्तमान वित्त मंत्री अरुण जेटली ने हाल ही में संकेत दिया था कि सरकार अर्थव्यवस्था की तात्कालिक चुनौतियों से निपटने के लिए कदम उठा सकती है. इसलिए, उम्मीद की जा रही है कि इस बार के कृषि संकट और इसका अर्थव्यवस्था पर असर जैसे मुद्दे बजट की प्राथमिकता में शामिल रह सकते हैं.

सरकार की मुश्किल

पिछले बजट में भी टैक्स दरों में बदलाव की बड़ी उम्मीद जताई गई थी, लेकिन वित्तीय अनुशासन में बंधे होने के कारण सरकार ने ऐसा कोई ऐलान नहीं किया था. हालांकि, सरकार लगातार कहती रही है कि टैक्सपेयर के पॉकेट में ज्यादा पैसे रहने से अर्थव्यवस्था में मांग बढ़ती है. सरकार के सामने मुश्किल यह है कि आयुष्मान भारत जैसी विशाल योजना को सुचारू तरीके से चलाने के लिए मोटी रकम की जरूरत है जबकि जीएसटी के तहत टैक्स कलेक्शन अब भी लक्ष्य से कम हो रहा है.

बिहार महागठबंधन में चल रही वर्चस्व की लड़ाई

पटना। सीट बंटवारे से पहले महागठबंधन के बड़े नेताओं के बीच बौद्धिक और राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई भी शुरू हो गई है. हैसियत बचाने-बढ़ाने के लिए राजद-कांग्रेस में जारी दांव-पेंच से अलग लालू प्रसाद यादव और शरद यादव भी अपनी-अपनी चालें चल रहे हैं.

मधेपुरा को लेकर ठन गया है मामला

बिहार की सियासत में तीन दशकों से दोस्ती-दुश्मनी का सिलसिला निभाते आ रहे दोनों दिग्गजों के बीच अबकी फिर मधेपुरा को लेकर ही ठन गई है. राजनीति में तेजी से उभर रहे तेजस्वी यादव की राह में शरद का सियासी कद रोड़े अटका सकता है. इसलिए लालू की कोशिश है कि जदयू से अलग होने के बाद शरद की मद्धिम होती सियासी शक्ति को दोबारा नहीं पनपने दिया जाए, जिनसे वह खुद एक बार पराजित हो चुके हैं.

शरद के सामने अस्तित्व बचाने का संकट

बेबाक और समाजवादी चरित्र के शरद यादव की अतीत की गतिविधियों की गणना करते हुए लालू प्रसाद यादव की नजर भविष्य पर है. अपने सियासी उत्तराधिकारी की हिफाजत के लिए उन्होंने शरद के सामने स्पष्ट कर दिया है कि उन्हें मधेपुरा के मैदान में राजद के सिंबल पर ही उतरना होगा. लालू की चाल से जहां कांग्रेस की कृपा के आकांक्षी पप्पू यादव के लिए दिल्ली दूर नजर आने लगी है, वहीं शरद के सामने भी अस्तित्व बचाने का संकट खड़ा हो गया है.

पप्पू यादव ने भी खोल रखे हैं सारे घोड़े

रांची के रिम्स में भर्ती लालू से तीन-तीन बार मिलने के बाद भी अगली पारी को लेकर वह आश्वस्त नहीं हैं. कांग्रेस पप्पू यादव के लिए राजद से मधेपुरा मांग रही है. सिटिंग के नाम पर पप्पू यादव ने भी सारे घोड़े खोल रखे हैं. जाप के राष्ट्रीय प्रधान महासचिव एजाज अहमद के मुताबिक मधेपुरा से कोई समझौता नहीं होगा. एक सीट के लिए शरद को संघर्ष करते हुए देखकर पूर्व विधानसभा अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी ने लालटेन थामने में देर नहीं की. चौधरी जमुई से टिकट के दावेदार हैं.

शरद यादव ने ही की थी शुरुआत

अबकी दांव-पेच की शुरुआत शरद ने ही की थी. पाला बदलकर राजग से आए रालोसपा प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा को साथ लेकर महागठबंधन में वह खुद को मजबूत करने की कोशिश में थे. इसके लिए रालोसपा में अपनी नई पार्टी के विलय की तैयारी में थे. वहीं हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) प्रमुख जीतनराम मांझी पर भी डोरे डाले जा रहे थे.

मुकेश सहनी को ज्वाइन कराकर संतुलन बनाने की कोशिश

इसकी भनक मिलते ही लालू ने आनन-फानन में तेजस्वी ने मुकेश सहनी को ज्वाइन कराकर संतुलन बनाने की कोशिश की. सहनी को साथ लाने के पहले तेजस्वी ने अन्य सहयोगी दलों से सहमति नहीं ली थी. लालू के दबाव पर शरद को प्रेस कॉन्फ्रेंस करके रालोसपा में अपने दल के विलय की बात का खंडन करना पड़ा.

विभागवार आरक्षण : वर्ग संघर्ष के इतिहास में वंचितों वर्गों पर एक और प्रहार!

7 जनवरी को मंत्रिमंडल में पारित प्रस्ताव को मोदी सरकार द्वारा संविधान की धज्जियां विखेरते हुए महज दो दिनों में लोकसभा एवं राज्यसभा में पास कराकर सवर्णों को आरक्षण दिलाने के बाद, जिस तरह सुप्रीम कोर्ट ने 22 जनवरी ,2019 को समग्र विश्विद्यालय को आरक्षण की इकाई मानने की जगह विभाग को इकाई मानने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्णय पर मुहर लगाई है, उससे हजारों साल से शक्ति के स्रोतों से वंचित विश्व की विपुलतम आबादी हतप्रभ है. हतप्रभ हो भी क्यों नहीं, क्योंकि विभागवार आरक्षण लागू होने के बाद हजारों साल से शिक्षालयों से बहिष्कृत दलित, आदिवासी और पिछड़ों का उच्च शिक्षण संस्थानों में शिक्षक बनना एक सपना बन जायेगा. विपरीत इसके भारत के उच्च शिक्षा केंद्रों के शिक्षक पदों पर सवर्णों का एकाधिकार और पुष्ट हो जायेगा. कारण ,13 पॉइंट रोस्टर प्रणाली में किसी खास विषय के लिए निकलने वाले प्रथम तीन पद सामान्य के लिए और चौथा पद ओबीसी के लिए होगा. इसके बाद का पांचवां और छठा पद भी सामान्य वर्ग के लिए रहेगा तथा सातवां पद अनुसूचित जाति एवं 14 वां पद अनुसूचित जनजाति के कोटे में जायेगा.

चूंकि एक विषय की सामान्यतया दो या तीन रिक्तियां ही निकली हैं, इस हिसाब से आरक्षित वर्गों(एसटी/एससी और ओबीसी) के लिए कॉलेज/विश्वविद्यालयों में शिक्षक बनना सचमुच एक सपना बन जायेगा.बहरहाल सिर्फ भारत के जन्मजात वंचित ही नहीं, दुनिया भर के विवेकवान लोग इस बात से हतप्रभ हैं कि जिस देश में भीषणतम असमानता से राष्ट्र की एकता और अखंडता पहले से ही खतरे के सम्मुखीन है, उस देश में सवर्ण आरक्षण के बमुश्किल दो सप्ताह बाद ही उच्च शिक्षा में सवर्णों के एकाधिकार को और मजबूत करने जैसा फैसला कैसे ले लिए गया! ऐसा फैसला लेते हुए क्यों यह भय नहीं हुआ कि इससे देश में विस्फोटक हालात पैदा हो सकते हैं.दरअसल ऐसा नहीं है कि इस देश का शासक वर्ग इन खतरों से अनजान है, किन्तु वह विस्फोटक स्थिति से भलीभांति अवगत होने के बावजूद ऐसे खतरे इसलिए उठा रहे है क्योंकि उसे पता है कि अपने वर्ग-शत्रुओं को नेस्तनाबूद करने लायक, उसे इससे बेहतर अवसर मिल ही नहीं सकते. इसलिए वह अपने स्व-वर्गीय हित में अँधा होकर ऐसे-ऐसे फैसले ले रहा है, जिसकी अन्यत्र कल्पना ही नहीं की जा सकती. इसे समझने के लिए एक बार फिर महान समाज विज्ञानी कार्ल मार्क्स के नजरिये से मानव जाति के इतिहास का,जिसकी हम अनदेखी करने के अभ्यस्त रहे हैं, सिंहावलोकन कर लेना पड़ेगा.

मार्क्स ने कहा है ‘अब तक का विद्यमान समाजों का लिखित इतिहास वर्ग-संघर्ष का इतिहास है. एक वर्ग वह है जिसके पास उत्पादन के साधनों पर स्वामित्व है और दूसरा वह है, जो शारीरिक श्रम पर निर्भर है. पहला वर्ग सदैव ही दूसरे का शोषण करता रहा है. मार्क्स के अनुसार समाज के शोषक और शोषित : ये दो वर्ग सदा ही आपस में संघर्षरत रहे और इनमें कभी भी समझौता नहीं हो सकता. मार्क्स के वर्ग-संघर्ष के इतिहास की यह व्याख्या मानव जाति के सम्पूर्ण इतिहास की निर्भूल व अकाट्य सचाई है, जिसकी भारत में बुरी तरह अनदेखी होती रही है, जोकि हमारी ऐतिहासिक भूल रही. ऐसा इसलिए कि विश्व इतिहास में वर्ग-संघर्ष का सर्वाधिक बलिष्ठ चरित्र हिन्दू धर्म का प्राणाधार उस वर्ण-व्यवस्था में क्रियाशील रहा है, जो मूलतः शक्ति के स्रोतों अर्थात उत्पादन के साधनों के बंटवारे की व्यवस्था रही है एवं जिसके द्वारा ही भारत समाज सदियों से परिचालित होता रहा है. जी हाँ, वर्ण-व्यवस्था मूलतः संपदा-संसाधनों, मार्क्स की भाषा में कहा जाय तो उत्पादन के साधनों के बटवारे की व्यवस्था रही. चूँकि वर्ण-व्यवस्था में विविध वर्णों(सामाजिक समूहों) के पेशे/कर्म तय रहे तथा इन पेशे/कर्मों की विचलनशीलता धर्मशास्त्रों द्वारा पूरी तरह निषिद्ध रही, इसलिए वर्ण-व्यवस्था एक आरक्षण व्यवस्था का रूप ले ली,जिसे हिन्दू आरक्षण कहा जा सकता है. वर्ण-व्यवस्था के प्रवर्तकों द्वारा हिन्दू आरक्षण में शक्ति के समस्त स्रोत सुपरिकल्पित रूप से तीन अल्पजन विशेषाधिकारयुक्त तबकों के मध्य आरक्षित कर दिए गए. इस आरक्षण में बहुजनों के हिस्से में संपदा-संसाधन नहीं, मात्र तीन उच्च वर्णों की सेवा आई, वह भी पारिश्रमिक-रहित. वर्ण-व्यवस्था के इस आरक्षणवादी चरित्र के कारण दो वर्गों का निर्माण हुआ: एक विशेषाधिकारयुक्त व सुविधासंपन्न अल्पजन और दूसरा वंचित बहुजन.ऐसे में दावे के साथ कहा जा सकता है कि सदियों से भारत में वर्ग संघर्ष आरक्षण में क्रियाशील रहा है. हजारों साल से भारत के विशेषाधिकारयुक्त जन्मजात सुविधाभोगी और वंचित बहुजन समाज : दो वर्गों के मध्य आरक्षण पर जो अनवरत संघर्ष जारी रहा, उसमें 7 अगस्त, 1990 को मंडल की रिपोर्ट प्रकाशित होने के बाद एक नया मोड़ आ गया. इसके बाद शुरू हुआ आरक्षण पर संघर्ष का एक नया दौर.

वर्ग संघर्ष का नया दौर शुरू होते ही आधुनिक भारतीय राजनीति में चाणक्य के नाम से मशहूर नरसिंह राव ने 24 जुलाई ,1991 को गृहित किया ट्रिकल डाउन थ्योरी पर केन्द्रित नवउदारवादी अर्थनीति. राव का मानना था, इससे विकास झरने की भांति ऊपर से नीचे आयेगा, जो शासको की कुत्सित नीति के चलते मुमकिन ही नहीं हो पाया. बहरहाल नवउदारवादी अर्थनीति को अपनाने के पीछे राव के दो हिडेन अजेंडा थे: पहला, आरक्षण को कागजों की शोभा बनाना और दूसरा परम्परागत विशेषाधिकारयुक्त सुविधाभोगी वर्ग के आर्थिक और शैक्षिणक वर्चस्व को और मजबूत करना . चूंकि कांग्रेस और भाजपा दोनों ही सवर्णवादी पार्टियां हैं और दोनों का ही वर्गीय हित एक है, इसलिए अपने वर्गीय हित में दोनों ही दलों के प्रधानमंत्रियों ने राव के बनाये ट्रैक का अनुसरण करने में होड़ लगाया, जिसमे सबको पीछे छोड़ गए वह मोदी, जिन्होंने महज दो दिनों में सवर्ण अरक्षण बिल पास कराने का चमत्कार घटित कर दिया. राव की नीतियों के कारण आज की तारीख में हिन्दू आरक्षण के सुविधाभोगी वर्ग का अर्थ-सत्ता, राज-सत्ता और धर्म-सत्ता की भांति ज्ञान-सत्ता पर 90 प्रतिशत से ज्यादा कब्ज़ा हो चुका है. बहरहाल मॉडर्न चाणक्य ने वर्ग शत्रु के सफाए के लिए निजीकरण ,उदारीकरण, भूमंडलीकारण, विनिवेशीकरण का जो जाल बिछाया, उससे शिक्षा का क्षेत्र भी अछूता न रहा. उन्होंने सुपरिकल्पित रुप से निजीकरण को जो बढ़ावा दिया उससे देखते ही देखते कार्पोरेट घरानों और सवर्ण नेताओं को महंगे-महंगे स्कूल/कॉलेजों की श्रृंखला खड़ा करने का अवसर मिल गया. इनमें शिक्षा अत्यंत महंगी होने के कारण बहुजन यहाँ स्वतः बहिष्कृत होते गए. गुणवत्ती-शिक्षा पर सवर्णों का एकाधिकार कायम करने के लिए एक ओर जहां राव ने निजी स्कूल/कॉलेजों को बढ़ावा दिया, वहीं जिन सरकारी स्कूलों में बहुजनों को शिक्षा सुलभ होती थी, उन्हें बदहाल बनाने की परिकल्पना की .इसके तहत उन्होंने 15 अगस्त,1995 को सरकारी प्राइमरी स्कूलों में मुफ्त भोजन मुहैया कराने का जो निर्णय लिया, वह बहुत मारक साबित हुआ.बहरहाल गुणवत्ती शिक्षा पर सुविधाभोगी वर्ग का एकाधिकार कायम कराने का जो रास्ता राव ने तैयार किया, उसमें उनके बाद के प्रधानमंत्रियों ने कोई छेड़छाड़ नहीं की: यदि कुछ किया तो यही किया कि जिस गुणवत्ती शिक्षा से आज के प्रतिस्पर्धी युग में अवसरों का सद्व्यवहार किया जा सकता है, उससे बहुजन और दूर छिटकते गए. अब जहां तक शिक्षा का सवाल है, अन्यान्य क्षेत्रों की भांति इस क्षेत्र में भी सवर्णों का वर्चस्व स्थापित करने में प्रधानमंत्री मोदी अपने पूर्ववर्तियों को बौना दिए.

ऐसा इसलिए कि मोदी जिस संघ से प्रशिक्षित होकर सर्वोच्च पद पर पहुंचे हैं, उस संघ और उसके राजनीतिक संगठन को हिन्दू धर्म और उन धर्मशास्त्रों में अपार आस्था रही जो, चीख-चीख कर कहते हैं कि शुद्रातिशूद्रों का जन्म सिर्फ तीन उच्च वर्णीय तबकों(सवर्णों) की निःशुल्क-सेवा के लिए हुआ है. शक्ति के स्रोतों (आर्थिक-राजनैतिक-धार्मिक-शैक्षिक) का भोग इनके लिए अधर्म है. अतः कभी जिन हिन्दू धर्म-शास्त्रों को मानवता-विरोधी मानते हुए डॉ. आंबेडकर ने डायनामाईट से उड़ाने का निदेश दिया था, उन धर्मशास्त्रों में अपार आस्था के कारण संघी मोदी के लिए आरक्षण का लाभ उठाने साक्षात् शत्रु थे. अतः आंबेडकरी रिजर्वेशन के सौजन्य से जिन जातियों के लोग आईएएस, आईपीएस,डॉक्टर,इंजीनियर, प्रोफ़ेसर बनकर हिन्दू धर्मशास्त्र-ईश्वर को भ्रान्त बना रहे थे, उन शत्रुओं को नेस्तनाबूद करने के लिए आंबेडकरी आरक्षण को व्यर्थ करने में अपने पूर्ववर्तियों की तुलना में अतिरिक्त तत्परता दिखलाया, जिससे शिक्षा जगत का आरक्षण भी नहीं सलामत रह पाया. मोदी-राज में ही उच्च शिक्षा में सवर्णों का वर्चस्व दृढतर करने के लिए संस्कृत, ज्योतिष, पौरोहित्य, योग इत्यादि जैसी प्रगतिविरोधी विद्यायों को थोपने का सबलतम प्रयास हुआ. इन्ही के राज में शैक्षणिक परिसरों में भेदभाव को इतना शिखर पर पहुँचाया गया कि बहुजन समाज के भूरि –भूरि रोहित वेमुला आत्म-हत्या करने से लेकर यूनिवर्सिटीयों से भागने के लिए विवश हुए. इन्ही के राज में वंचित वर्गों के विद्यार्थियों को राजीव गांधी फेलोशिप से महरूम करने का कुत्सित प्रयास किया गया. अपने वर्ग शत्रुओं को उच्च शिक्षा से दूर धकेलने के लिए मोदी ने पांच दर्जन से अधिक शीर्ष विश्वविद्यालयों को स्वायतत्ता प्रदान किया.

अब उसी कड़ी में मोदी राज में विभागवार आरक्षण का निर्णय लेकर भारत के वर्ग संघर्ष के इतिहास में बहुजनों पर आजाद भारत का सबसे बड़ा प्रहार कर दिया गया है. इस प्रहार से बहुजन छात्र और गुरुजन उद्भ्रांत होकर इसे व्यर्थ करने के लिए किसी भी सीमा तक जाने का मन बनाते दिख रहे हैं. वे कक्षाओं का बहिष्कार कर रहे हैं, वे जगह – जगह सभा-सेमीनार आयोजित कर इसका प्रतिवाद कर रहे हैं. 13 पॉइंट रोस्टर के खात्मे व आरक्षण की पूर्व स्थिति बहाल करने के लिए जिला मुख्यालयों से लेकर प्रदेश और देश की राजधानीं में व्यापक पैमाने पर धरना प्रदर्शन की बड़ी तयारी में जुट गए हैं. उनकी तैयारी को को देखते हुए 2016 का सर्द मौसम याद आ रहा है,जब हैदराबाद विश्वविद्यालय के प्रतिभाशाली छात्र रोहित वेमुला की संस्थानिक हत्या के विरोध में उठी तरंगे विश्व विद्यालयों के कैम्पस और महानगरों को पार कर देश के छोटे-छोटे कस्बों तक फ़ैल गयी थीं. विभागवार आरक्षण के खिलाफ बहुजन छात्र और गुरुजनों में इतना तीव्र आक्रोश है, कि उनके दबाव में आकर सामाजिक न्यायवादी विभिन्न दलों के नेता भी उनके साथ कंधे-कंधा मिलाकर सडकों पर उतरने के लिए बाध्य हो गए हैं.

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अयोध्या पर भाजपा का हस्तक्षेप चुनावी हथकंडा- मायावती

नई दिल्ली। अयोध्या विवाद को लेकर केंद्र सरकार के हालिया कदम पर बसपा प्रमुख मायावती ने केंद्र सरकार को कठघरे में खड़ा किया है. एक बयान जारी कर बसपा प्रमुख मायावती ने कहा है कि अयोध्या में अधिगृहित भूमि का भाग रामजन्म भूमि न्यास को लौटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करने की कार्रवाई जबर्दस्ती सरकारी हस्तक्षेप है. उन्होंने कहा कि ऐसा कर भाजपा लोकसभा आम चुनाव से पूर्व चुनाव को प्रभावित करना चाहती है, जो कि एक संकीर्ण सोच व विवादित कदम है. बसपा प्रमुख ने केंद्र के इस फैसले के खिलाफ देश की आम जनता से सावधान रहने की अपील की.

बसपा प्रमुख ने कहा कि माननीय सुप्रीम कोर्ट की मल्कियत वाली अयोध्या की 1991 में अधिगृहित भूमि में यथा-स्थिति को जबर्दस्ती बिगाड़ने का बीजेपी सरकार का प्रयास अनुचित व भड़काऊ भी है. यह बीजेपी का नया चुनावी हथकण्डा है. केन्द्र में बीजेपी की वर्तमान सरकार जातिवादी, साम्प्रदायिक व धार्मिक उन्माद, तनाव व हिंसा आदि के साथ-साथ संकीर्ण राष्ट्रवाद की नकारात्मक व घातक नीति व कार्यकलापों के आधार पर संविधान मंशा-विरोधी तरीके से सरकार चला रही है, जो अति-निन्दनीय है.

यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री ने अपने बयान में आगे कहा है कि वैसे भी उत्तर प्रदेश में बी.एस.पी. व सपा के गठबंधन के बाद बीजेपी को लग गया है कि वह केन्द्र की सत्ता में अब दोबारा वापस आने वाली नहीं है. इससे भी बौखलायी केन्द्र व उत्तर प्रदेश में बीजेपी की सरकार अब वह सभी अनुचित हथकण्डे अपना रही है जिसकी उम्मीद संविधान के आधार पर चलने वाली किसी भी सरकार से देश की आम जनता कतई नहीं करती है.

13 प्वाइंट रोस्टर के खिलाफ क्या सरकार अध्यादेश लाएगी?

20 अप्रैल 2018 को दिल्ली विश्वविद्यालय में आयोजित ‘सामाजिक न्याय युवा सम्मलेन’ में देश भर के दर्जनों विश्वविद्यालयों से छात्र प्रतिनिधियों और जनप्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया था. एक लोकतांत्रिक राज्य की कल्याणकारी अवधारणा में यह शामिल है कि वह अपने सभी नागरिकों को उच्च शिक्षा के सामान अवसर उपलब्ध कराये. जबकि आज़ादी के सात दशकों बाद भी उच्च शिक्षा की स्थिति बदहाल होती जा रही है. सरकार अपनी भूमिका को धीरे धीरे समाप्त करके सब कुछ निजी हाथों में सौंपने पर आमादा है. इसका सबसे गहरा असर देश के बहुसंख्यक वंचित-शोषित तबके पर पड़ेगा. साल 2018 के मार्च महीने में सरकार की दो घोषणाओं ने उच्च शिक्षा की बर्बादी पर मुहर लगा दी. इसमें पहला आरक्षण विरोधी विभागवार रोस्टर और दूसरा कई विश्वविद्यालयों को स्वायतता किये जाने का फैसला. सरकार के इन निर्णयों के खिलाफ़ देश भर में व्यापक पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. सर्व-सम्मति से यह अधोलिखित मांगपत्र तैयार किया गया है:-

– 5 मार्च 2018 को UGC द्वारा जारी आरक्षण विरोधी विभागवार रोस्टर को तत्काल प्रभाव से वापस लिया जाए;

– देश के सभी विश्वविद्यालयों में स्वीकृत सभी रिक्त पदों पर संवैधानिक आरक्षण प्रक्रिया के तहत तत्काल स्थाई नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू की जाए.

– देश के सभी विश्वविद्यालयों में आरक्षित पदों के ‘शार्टफ़ॉल’ और ‘बैकलॉग’ पदों को विज्ञापित करके उन पर तत्काल स्थाई नियुक्ति की जाय.

– एम.फिल. व पीएच.डी. के प्रवेश में लिखित परीक्षा और साक्षात्कार के अंकों का प्रतिशत क्रमशः 70:30 किया जाए और संवैधानिक आरक्षण प्रक्रिया के पालन के साथ निष्पक्ष प्रवेश प्रक्रिया का पालन सुनिश्चित किया जाए.

– सार्वजनिक वित्त-पोषित विश्वविद्यालयों पर ग्रेडेड स्वायतता जैसी निजीकरण की नीतियों को तत्काल वापस लिया जाये, तथा

– शिक्षा का बजट कुल बजट का छठवाँ हिस्सा किया जाये. उक्त मांगों से संबंधित सरकारी निकायों को चेतावनी दी गई कि यदि 15 दिन के भीतर इन सभी मसलों पर कोई ठोस कार्यवाही नहीं की गयी, तो सभी छात्र और शिक्षक एक देशव्यापी आन्दोलन खड़ा करके अपनी मांगें मनवाने के लिए बाध्य होंगे. इसके अलावा सम्मेलन में देश के प्रमुख विश्वविद्यालयों के छात्रसंघ अध्यक्ष, विधायक जिग्नेश मेवानी, विधायक पंकज पुष्कर, सांसद धर्मेंद्र यादव, पूर्व सांसद अली अनवर और मंडल मसीहा कहे जाने वाले शरद यादव ने 2019 में दलित, पिछड़े, अल्पसंख्यक और महिला विरोधी मोदी सरकार को उखाड़ फेंकने का आह्वान भी किया. यह भी दलित, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के लिए विश्वविद्यालयों की नियुक्ति में आरक्षण समाप्त किये जाने पर आखिर शरद यादव, जिग्नेश मेवानी और अली अनवर ने दिल्ली विश्वविद्यालय में अपना विरोध दर्ज करते हुए, नए रोस्टर व्यवस्था को तत्काल वापस लेने की मांग की.

ज्ञात हो कि शुक्रवार, 20 अप्रैल, 2018 को दिल्ली विश्वविद्यालय के आर्ट्स फैकल्टी के गेट नं 4 पर हो रहे “सामाजिक न्याय का युवा सम्मेलन” में दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ अध्यक्ष सहित जेएनयू, जामिया, एएमयू, इलाहबाद सहित 12 विश्वविद्यालय के छात्र संघ अध्यक्ष या अन्य पदाधिकारी / प्रतिनिधि शामिल हुए थे. उल्लेखनीय है कि 13 प्वाइंट रोस्टर पर लागू करने के साथ ही देश के तमाम विश्वविद्यालयों में फैकल्टी नियुक्ति में OBC, SC, ST आरक्षण को समाप्त कर दिया गया है.

यहाँ यह जानने की जरूरत है कि रोस्टर आखिर है क्या. रोस्टर पद की स्थिति (Position) बताने वाला सूत्र-क्रम है. यह रोस्टर अमूमन कम/क्रीम उच्च पदों की स्थिति (Position) को बताता है. उदाहरणार्थ यदि किसी विश्वविद्यालय/ विभाग में 2 पद ज्ञापित हुए तो इसमें Unreserved (Genaral), OBC, SC, ST किसका यह पद है, यह निर्धारण ‘रोस्टर’ से होता है. 13 प्वाइंट रोस्टर इसका विरोध करता है. 200 पद तक रोस्टर क्रमवार चलता है, इसके तहत आरक्षण प्रावधान के अनुपात में पद तय होते हैं; जैसे- Unreserved (Genaral)-49.5% OBC-27%, SC-15%, ST-7.5 % इसी अनुपात में पद भी तय होते हैं.

200 प्वाईंट्स में पद कैसे तय होता है इसमें सबसे पहले विश्वविद्यालय को यूनिट माना जाता है. उस विश्वविद्यालय के सभी विषयों को A से Z तक अल्फ़ा बेटिकट सभी पदों को एक साथ 200 तक जोड़ लिया जाता है. उसके बाद इन 200 पदों को रोस्टर के हिसाब से आवंटित किया जाता है; जैसे- 1. Unreserved (General); 2. UR ; 3. UR ; 4. OBC; 5. UR; 6. UR; 7. SC; 8. OBC; 9. UR; 10. UR ; 11. UR ;12. OBC; 13. UR; 14. ST; 15. UR; 16. UR; 17. UR; 18. OBC; 19. UR; 20. UR; 21. SC; 22. OBC; 23 UR; 24. UR; 25. UR; 26. OBC; 27. UR; 28. ST… इस प्रकार यह क्रम 200 पद तक चलता है. 200 प्वाईट के बाद पुनः 1 नंबर से पद क्रम शुरू होता है. इसमें विश्वविद्यालय को यूनिट माना जाता है. विश्वविद्यालय के सभी विषयों को एक साथ जोड़ लिया जाता है. किंतु 13 पोइंट रोस्टर इस व्यवस्था को सिरे से नकारता है.

13 प्वाइंट रोस्टर में क्या है? इस 13 प्वाइंट रोस्टर में विश्वविद्यालय के बजाय ‘विभाग’ को यूनिट माना जाता है. 14 पद के बाद पुनः 1 से पद को गिना जाने का प्रावधान है. इसके अनुसार …1. Unreserved (General); 2. UR; 3. UR; 4. OBC; 5. UR 6. UR ; 7. SC ; 8. OBC; 9. UR; 10. UR; 11. UR ;12. OBC; 13. UR ;14. ST…अब 14 के बाद 1 नम्बर से पुनः शुरू हो जायेगा.

इस तरह 13 प्वाईंट रोस्टर के खतरों को जानना जरूरी है. पहला, दरअसल विभाग को यूनिट मानने पर कभी भी एक साथ 14 पद नहीं आएंगे. ST/SC के लिए एक पद भी नहीं मिल पायेगा. आप सोचिये कि JNU, DU, AMU, BHU, HCU में कितने ऐसे विभाग हैं जिसमें मात्र एक या दो या अन्तिम तीन प्रोफेसर ही विभाग को संचालित करते हैं. वहाँ कभी भी ST/SC/OBC की न्युक्ति हो ही नहीं सकेगी. दूसरा, विभाग बहुत चालाकी से 1 या 2 या 3 पद निकालेगा. इस स्थिति में SC, ST, OBC को मिलने वाले आरक्षण की हत्या हो जाएगी. तीसरी बात, विभाग को यूनिट मानने के बाद कितने साल बाद ST का नम्बर आएगा, फिर SC का नंबर आएगा, फिर OBC का नंबर आएगा, इसका अन्दाज ही नहीं लगाया जा सकता. ज्ञात हो कि 200 प्वाइंट रोस्टर से पहले 13 प्वाईंट रोस्टर था. इसी कारण OBC, SC, ST प्रोफेसर खोजने से भी नहीं मिलते हैं. सिद्धार्थ विश्वविद्यालय, उत्तर प्रदेश में 2015 में यही 13 प्वाईंट रोस्टर लागू किया गया था जिस कारण 84 असिस्टेंट प्रोफेसर पद में ST-SC का एक भी पद नहीं आया था, OBC का एक मात्र पद आया था.

फिर सम्मेलन पर आते हैं. सम्मेलन में मांग की गई कि 200 पॉइंट रोस्टर को पुनः बहाल किया जाये. इसके लिए सरकार अध्यादेश लाये. यदि ऐसा हो पाता है तो दिल्ली विश्वविद्यालय के विभिन्न कॉलेजों में कार्यरत तमाम एडहॉक शिक्षकों की नौकरी बचेगी, जुलाई में उन्हें पुनः नियुक्ति पत्र प्राप्त होगी और स्थाई नियुक्ति की गुंजाईश बनी रहेगी, अन्यथा वे नौकरी से बाहर हो जायेंगे. 13 पोइंट रोस्टर के प्रावधान को समाप्त करने के दो ही तरीके हैं. पहला, जैसा की मांग की जा रही है सरकार इस पर अध्यादेश ला सकती है. और कानून बनाकर 13 प्वाइंट रोस्टर सिस्टम को रद्द कर सकती है. और दूसरा, सरकार सुप्रीम कोर्ट की बड़ी बेंच में जा सकती है. यहाँ सवाल उठता है क्या 13 प्वाइंट रोस्टर को वापस करने के मामले में केन्द्र सरकार अध्यादेश लाएगी?

(लेखक एक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं.)

31 जनवरी, 11 बजे, मंडी हाउस दिल्ली से होगा रोस्टर के खिलाफ बहुजनों का इंकलाब

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नई दिल्ली। 13 प्वाइंट रोस्टर को लेकर 31 जनवरी, गुरुवार को पूरा बहुजन समाज सड़क पर आने को तैयार है. विश्वविद्यालयों में एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग के शोधार्थियों को नौकरी में आने से रोकने और इस वर्ग के शिक्षकों के प्रोमोशन से रोकने की साजिश के खिलाफ पूरे बहुजन समाज ने मोर्चा खोल दिया है. बहुजन समाज के तमाम संगठन एक साथ मिलकर रोस्टर का विरोध करेंगे. यह विरोध प्रदर्शन मंडी हाउस से सुबह 11 बजे शुरू होगा, जहां से संसद मार्ग तक मार्च किया जाएगा. इस विरोध प्रदर्शन को तमाम नेताओं का भी समर्थन मिला है.

इस बीच देश के प्रतिष्ठित जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के सभी शिक्षक 31 जनवरी को छुट्टी लेकर 13 प्वाइंट रोस्टर के खिलाफ होने वाले आंदोलन में शामिल होंगे. जेएनयू के शिक्षक संघ के बैनर तले संसद मार्च में शामिल होंगे. जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय, नई दिल्ली में ‘जॉइंट फोरम फॉर एकेडेमिक एंड सोशल जस्टिस’ के तहत अनुसूचित जाति, जन जाति, एवं अन्य पिछड़ा वर्ग के प्राध्यापकों एवं विद्यार्थियों की एक महत्वपूर्ण बैठक हुई, जिसमे बड़ी संख्या में प्राध्यापकों एवं विद्यार्थियों ने भाग लिया.

सभी प्राध्यापकों ने यह निर्णय लिया कि वे जेएनयू शिक्षक संघ के बैनर तले आगामी 31 जनवरी को मंडी हॉउस से संसद तक होने वाले आक्रोश मार्च में शामिल होंगे. सभी विधार्थियों ने यह निर्णय लिया की वे जेएनयू स्टूडेंट यूनियन एवं अन्य छात्र संगठनों के बैनर तले इस मार्च में भाग लेंगे. सभी प्राध्यापकों ने इस बात पर चिंता व्यक्त कि की विभागवार रोस्टर लागु होने से भारतीय संविधान द्वारा प्रदत आरक्षण पूरी तरह खत्म हो जायेगा और सभी आरक्षित वर्गों हेतु उच्च शिक्षण संस्थानों के दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो जाएंगे. उन्होंने लोक सभा एवं राज्य सभा के सभी सांसदों एवं सम्बन्धित मंत्रियों एवं संसदीय समिति के सदस्यों से मिलकर सरकार से इस सम्बन्ध में यथाशीघ्र बिल लाकर एवं उसे संसद में पास करवाने का अनुरोध करेंगे.

बैठक के बाद प्राध्यापको के अनुरोध पर प्रोफेसर अतुल सूद, अध्यक्ष जेएनयू शिक्षक संघ ने विश्वविद्यालय के पुरे शिक्षक समुदाय के साथ इस संसद मार्च में शामिल होने का आश्वासन दिया. सभी प्राध्यापकों ने यह भी निर्णय लिया की वे 31 जनवरी को सामूहिक रूप से आकस्मिक अवकाश (सी.एल.) लेंगे और इस मार्च में शामिल होंगे. विदित हो की यूजीसी द्वारा देश के सभी शैक्षणिक संस्थानों के शैक्षणिक पदों में आरक्षण हेतु विभागवार रोस्टर लागू करने के आदेश के खिलाफ पुरे देश के सैकड़ों संगठन ‘जॉइंट फोरम फॉर एकेडमिक एंड सोशल जस्टिस के बैनर तले आगामी 31 जनवरी को दिल्ली में आक्रोश मार्च कर रहे है. यह मार्च 11 बजे दिन में मंडी हॉउस से शुरू होकर संसद मार्ग तक जायेगा.

13 प्वाइंट रोस्टर के खिलाफ प्रदर्शन करते बनारस हिन्दू विवि के विद्यार्थी
13 प्वाइंट रोस्टर के खिलाफ प्रदर्शन करते बनारस हिन्दू विवि के विद्यार्थी
गौरतलब है कि देश भर में 13 प्वाइंट रोस्टर सिस्टम के खिलाफ आंदोलन हो रहा है. दिल्ली के अलावा बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, इलाहाबाद युनिवर्सिटी, गोरखपुर युनिवर्सिटी सहित देश भर में बहुजन समाज के शिक्षक और शोधार्थी सड़कों पर हैं.

13 प्वाइंट रोस्टर और सवर्ण आरक्षण पर बहुजनों का बड़ा सेमिनार

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 नई दिल्ली। सामाजिक न्याय को लेकर आयोजित नेशनल कन्वेंसन राजधानी दिल्ली के कंस्टीट्यूशन क्लब में मंगलवार 29 जनवरी को हुआ. इस आयोजन में 10 प्रतिशत असंवैधानिक आरक्षण और विश्वविद्यालयों में लागू 13 प्वाइंट रोस्टर पर चर्चा की गई. चर्चा में मुख्य रूप से बिहार में प्रतिपक्ष के नेता तेजस्वी यादव वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश, जस्टिस विश्वरैया, दिल्ली सरकार में सामाजिक न्याय मंत्री राजेंद्र पाल गौतम, बामसेफ अध्यक्ष वामन मेश्राम, गुजरात से विधायक जिग्नेश मेवाणी, हिन्दू कॉलेज, दिल्ली विवि के एसोसिएट प्रोफेसर रतन लाल, पूर्व राज्यसभा सांसद अनवर अली और वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल, अनिल जयहिंद और सूरज मंडल ने अपने विचार रखे. इस दौरान सभी वक्ताओं ने केंद्र सरकार की नीतियों पर जमकर हमला बोला.

तेजस्वी यादव

तेजस्वी यादव ने केंद्र सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि सत्ता में मनुवादी सोच वाले गोवलकर और गोडसे की संतान बैठे हैं. ऐसे में देश को बचाने के लिए सबको साथ आना होगा. बाबासाहेब ने दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों को आरक्षण दिलवाया, जिसकी बदौलत हम यहां तक पहुंचे हैं. हमें बाबासाहेब के सपनों को पूरा करना होगा. उन्होंने कहा कि देश की जनता को सांसदों से सवाल पूछना चाहिए कि उन्होंने 10 प्रतिशत आरक्षण का विरोध क्यों नहीं किया. उन्होंने बहुजन समाज का आवाह्न करते हुए कहा कि हमें जगदेव बाबू के विचारों पर चलना होगा. उन्होंने कहा था कि 100 में 90 शोषित है, नब्बे भाग हमारा है.

अपने पिता का जिक्र करते हुए तेजस्वी यादव ने कहा कि हमारे पिता शेर हैं और हमें उन पर गर्व है. हमने कभी समझौता नहीं किया है. चुनाव में चाहे एक सीट आए, हम विचारों से समझौता नहीं करेंगे. तेजस्वी ने समान विचार वाले सभी लोगों को साथ लेकर आने की बात कही. वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश

वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश ने कहा कि अपने 35 सालों के पत्रकारिता में मैंने आवाम को इतना समझदार नहीं देखा. पहले आवाम समझदार नहीं होती थी, नेता उन्हें समझाता था, अब आवाम समझदार है और वह अपने नेता को समझाती है. उन्होंने कहा कि आज का बहुजन सचेत है. वरिष्ठ पत्रकार ने 10 फीसदी असंवैधानिक आरक्षण पर राष्ट्रीय जनता दल के रुख की तारीफ करते हुए कहा कि राजद इकलौती ऐसी पार्टी है, जिसने इसके खिलाफ आवाज उठाई. उन्होंने बाबासाहेब के द्वारा आर्थिक आधार पर आरक्षण की मांग के संदर्भ में दिए गए तर्क में बताया. उन्होंने उन वाम विचार वाले पत्रकारों को भी निशाने पर लिया जो या तो इस मुद्दे पर चुप हैं या इसका समर्थन कर रहे हैं.

राजेंद्र पाल गौतम

राजेंद्र पाल गौतम ने कहा कि आम आदमी पार्टी इस मुद्दे पर पूरी तरह से साथ है और हम लोकसभा से लेकर राज्यसभा तक में 13 प्वाइंट रोस्टर के मुद्दे को उठाएंगे. उन्होंने बहुजन समाज का आवाह्न करते हुए कहा कि हम आज डरेंगे तो कैसे लड़ेंगे. गौतम ने कहा कि अगर हम नहीं लड़ें तो आने वाली पीढ़ियां हमें कोसेंगी, ये न्याय की लड़ाई है. उन्होंने कहा कि बहुजन समाज के लोगों को सभी दलित सांसदों के घर को घेरना होगा और उनसे सवाल पूछना होगा.

डॉ. रतन लाल

दिल्ली विवि के हिन्दू कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर और एक्टिविस्ट रतन लाल ने दलित नेताओं की जमकर खबर ली. उन्होंने रामविलास पासवान और रामदास अठावले को घेरा. उन्होंने कहा कि यह कांफ्रेंस नहीं बल्कि महासंग्राम का ऐलान है. रतन लाल ने कहा कि मोदी सरकार ने 13 प्वाइंट रोस्टर लाकर 50 हजार दलित, ओबीसी और आदिवासी समाज के भावी प्रोफेसरों की हत्या कर दी है. उन्होंने वहां मौजूद जनता का आवाह्न करते हुए कहा कि रोस्टर पर भारत भर में चक्का जाम हो जाना चाहिए.

जस्टिस इश्वरैया ने कहा कि आज संविधान का रेप हो रहा है. सबको मिलकर इस सरकार को सबक सिखाना है. उन्होंने कहा कि यह स्थिति नहीं रूकी तो देश में सिविल वार हो जाएगा.

वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल ने कहा कि ये प्रतिक्रांति का दौर है. 10 फीसदी आरक्षण पर उन्होंने हमला बोलते हुए इसकी संवैधानिकता पर सवाल उठाया. उन्होंने कहा कि सवर्ण समाज का भिखारी भी आशिर्वाद देता है. अब संविधान बचाने का सवाल है, अगर एकलव्य का अंगूठा बचाना है तो रोस्टर का विरोध करना ही होगा. अगर रोस्टर लागू हो गया तो युनिवर्सिटी गुरूकुल बन जाएगा.

जिग्नेश मेवाणी ने कहा कि नागपुर में बैठे द्रोणाचार्यों के इशारे पर दिल्ली में बैठे दुर्योधन और दुस्सासन 10 फीसदी आरक्षण और 13 प्वाइंट रोस्टर जैसे कानून लागू कर रहे हैं. तो वहीं पूर्व राज्यसभा सांसद अनवर अली ने कहा कि सरकार के इस कदम से रीढ़ की हड्डी चोटिल हुई है.

राज्यसभा सांसद और राजद नेता मनोज झा ने कहा कि जब मैं 10 फीसदी आरक्षण के खिलाफ बोल रहा था तो सवर्ण समाज के लोगों ने ही मेरी आलोचना की. लेकिन मैं कहना चाहता हूं कि तब मैं न किसी के पक्ष में बोल रहा था और न ही किसी के विपक्ष में, मैं सिर्फ संविधान के पक्ष में बोल रहा था. हम इस मुद्दे पर हुजुम के खिलाफ गए क्योंकि हमें बाबासाहेब के संविधान की रक्षा करनी थी. उन्होंने कहा कि मुल्क संसद की ताकत से नहीं बल्कि सड़क की ताकत से चलेगा.

इस दौरान वामन मेश्राम ने भी अपने संगठन बामसेफ के इस पूरे आंदोलन में साथ होने का ऐलान किया. उन्होंने ईवीएम के खिलाफ चलाए जाने वाले अपने अभियान की भी जानकारी दी. कंस्टीट्यूशन क्लब में हुए इस सेमिनार में पूरा हॉल खचाखच भरा हुआ था.

‘तूफाँ की ज़द में’ (ग़ज़ल संग्रह) : एक दृष्टि

युवा लेखक, कवि व कहानीकार शिवनाथ शीलबोधि का कहना है कि ग़ज़ल के अर्थ को यदि एक शब्द में रूढ़ करना हो तो मैं ये कहूंगा कि गजल दिल और दिमाग में मचलती वो विचारधारा है जो अव्यक्त से व्यक्त होने को बेताब होती है। ग़ज़ल में अभिव्यक्ति झरने सी गिरती होती है। ग़ज़ल का प्रवाह मैदान में दौड़ती नदी-सा नहीं होता। इसलिए ग़ज़लकार बेशक शांत स्वभाव के दिखते हों, भले ही मौन लगते हों लेकिन होते बड़े ही तीखे और मुखर। ‘तूफां की ज़द में’ के रचनाकार तेजपाल सिंह ‘तेज’ इससे रत्तीभर भी अलग नहीं हैं। शोषण, विषमता और दलन के हर संस्कार को निचोडा हैं उन्होंने ‘तूफां की ज़द में’  संग्रहित अपनी ग़ज़लों में। बानगी देखें…..
फिक्र के मारे फिक्र  छुपाने लगते हैं,
बे – फिक्री की दवा बताने लगते हैं।
घुटमन चलने पर तो नन्हें-मुन्ने भी,
दादी – माँ से हाथ छुड़ाने लगते हैं।
मिलती नहीं तवज्जो जिनको अपनों से,
कि वो गैरों से हाथ मिलाने लगते हैं।
बात बिगड़ने पर अपने भी अपनों को,
जब चाहें तब आँख दिखाने लगते हैं।
*******
परिवर्तन की आड़ में जैसे घोड़ी चढ़ी शराब,
नई संभ्यता के आँगन में जमकर उड़ी शराब।
लेकर खाली प्याला-प्याली थोड़ा सा नमकीन,
बचपन को बोतल में भरकर औंधी पड़ी शराब।
******
कोई शोषण को किस तरह से देखता है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि वह किस तरह के दुखों से पीडि़त है। होता यह भी है कि कभी कभी आदमी खुद ही अपना शोषक हो जाता है, ऐसा तब होता है जब जीवन की आपा-थापी में वह खुद की उपेक्षा करता चलता है।…
खुद अपने से हार गया मैं,
हर लम्हा लाचार गया मैं।
लेकर खाली जेब न जाने,
क्या करने बाजार गया मैं।
खुद ही मैंने बाजी हारी,
वो समझे कि हार गया मैं।
******
दुनिया से जो जुड़ा-जुड़ा है,
खुद से पर वो जुदा-जुदा है।
कल तक दुनिया पर हावी था,
आज वो खुद से  डरा-डरा है।
जीने की आपा – धापी में,
खुद ही यम का रूप धरा है।
सामाजिक जीवन में शोषण की अनंत परिस्थितियों का स्वीकार कवि इसलिए व्यक्त करता है ताकि वह और समाज शोषण मुक्त रह सके, लेकिन होता इसके बिल्कुल विपरीत है। परम्परा और रिवाज के नाम जैसी सामाजिक व्यवस्था में हमें ढलना होता है, वह खुद बड़े और कष्टकारी शोषण को हम पर लाद देती है। कोई हिन्दू है तो कोई मुसलमान, यह केवल नजरिया है, वास्तविक सच्चाई नहीं है क्योंकि वास्तविक सच्चाई तो यह है कि हम केवल इंसान हैं। अलग-अलग धर्म अलग-अलग तरह का चश्मा भर है। इसलिए ‘तेज’ कहते हैं …
अभी तो कुछ और तमाशे होंगे,
बस्ती – बस्ती में धमाके होंगे।
कहाँ सोचा था ये, कि उनके,
इतने भी नापाक इरादे होंगे।
सच को धरती पे लाने  के लिए,
ज़ाया कुछ और जमाने होंगे।
धर्म और राजनीति के स्वार्थ आपस में षड्यंत्रकारी रूप से जुड़े होते हैं, अक्सर तो बहुत ही सुदृढ़ व्यवस्था दोनों के बीच में होती है। इसको ध्वस्त करना मुश्किल होता है। जनता आमतौर पर इसे नियति मान कर मौन हो जाती है। लेकिन जागरूक आदमी इस गुपचुप चोरी के खिलाफ एक शोर उठाने की कोशिश करता है। बेशक यह निरर्थक जान पड़े, लेकिन इस प्रकार की इंसानी कार्यवाहियों ने हमेशा सामाजिक परिवर्तन को पैदा किया है –
” गली-गली नेता घने, गली-गली हड़ताल, संसद जैसे बन गई, तुगलक की घुड़साल।
राजा बहरा हो गया जनता हो गई मौन,
‘तेज’ निरर्थक भीड़ में बजा रहा खड़ताल।
अकेले इंसान के दुख भी अक्सर अकेले नहीं होते हैं। क्योंकि एक जैसे दुखों को जब अधिसंख्य लोग भोग रहे होते हैं, तब यह स्व-शोषण की मार होती है। इसका रूप चाहे भूख हो या बेरोजगारी या औरत की घर में आए दिन की चैचै-पैंपैं। अक्सर ऐसे दुख और शोषण की मार को हम अकेले ही झेल रहे होते हैं। इसलिए ‘तेज’ के तेवर में आया है कि मुझमें अकेले लडने की जिद्द तो है लेकिन यह लड़ाई तो समूहबद्ध होकर ही लड़ी जा सकती है इसलिए वे कहते हैं –
आज नहीं तो कल, मैं चश्मेतर में रहूँगा,
न सोचिए कि मैं सदा बिस्तर में रहूँगा।
एकला चलने की कसक खूब है लेकिन,
है मन मिरा कि अबकी मैं लश्कर में रहूँगा।
कुल मिलाकर कहना चाहूंगा कि दुख और शोषण के बहरूपी चेहरे से साक्षात्कार करना चाहते हैं तो तेजपाल सिंह ‘तेज’ के इस ग़ज़ल संग्रह ‘तूफां की ज़द’ के अलावा उनके बाकी के गजल संग्रहों को भी पढ़ डालिए। ‘तूफां की ज़द में’ तेजपाल सिंह ‘तेज’ का पांचवा सचित्र ग़ज़ल-संग्रह है। कुमार हरित और मोर्मिता बिश्वास के रेखांकन इसे और भी प्रभावी बनाया है।

संविधान से ऊपर हिन्दुराष्ट्र? किसके लिए

लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने राष्ट्रीय आंदोलन के समय कहा था “स्वराज्य मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है”इसको हम ले के रहंगे.तब हिंदुस्तान की तकदीर अंग्रेजों के हाथ मे थी.अंग्रेज ही भारत के भाग्य विधाता थे.भारतीयों के पास था तो उनका अतीत का खोया हुवा गौरव और,छिन्न भिन्न भारत.एक चीज जो भारतवासियों को एकसूत्र में बांध रही थी ओ थी अंग्रेजो के जुल्म,शोषण और दमनकारी नीति तथा इससे उपजे राष्ट्रवाद की भावना.अंग्रेजो के विरुद्ध संघर्ष एक कठिन चुनौती थी ही साथ ही भारत आंतरिक चुनौतियों से भी जूझ रहा था.कई कुरीतियां,कुप्रथाएं व्याप्त थी जिससे भारतीय समाज जकड़ा हुवा था .जाति प्रथा से भी निपटना बड़ी चुनौती थी.अंग्रेजी राज्य भले ही भारतीयों के लिए कष्टकारी,दुखदायी रहा हो ,मगर उनके राज में भारत से कई कुप्रथाओं का अंत भी हुआ.लेकिन कुछ समस्याऐं भारत मे गुलामी के दौर से लेकर आज़ादी के 71 साल और भारतीय गणतन्त्र के 69 साल तक भी जस की तस बनी हैं.

आज देश का प्रजातन्त्र सिर्फ प्रचारतंत्र तक ही सिमटता नजर आ रहा है.विकसित राष्ट्र,वैज्ञानिक राष्ट्र,शिक्षित राष्ट्र,स्वस्थ राष्ट्र बौद्धिक और संवैधानिक राष्ट्र से ऊपर आजकल भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने की कवायद हो रही है.एक ओर भारत विश्व गुरु बनने का सपना देख रहा है कभी सोने की चिड़िया थी,ज्ञान का गुरु था,विश्व गुरु था और आज हिन्दू राष्ट्र तक ही क्यों सिमटना चाहता है?अगर सनातन धर्म को पुनः स्थापित करना है तो भारत ही क्यों?विश्व को हिन्दू राष्ट्र बनाने की कवायद क्यो नहीं?जिस तरह हिन्दू सनातन से बहुत बाद में पनपे बौद्ध धर्म ने लंका से लेकर चीन तक अपने बौद्ध धर्म को पहुचाया.अपार समस्याएं से जूझ रहे देश मे धर्म और जाति का अफीम पिलाने का कार्य हो रहा है जो वर्तमान ज्वलन्त समस्याओं पर आँखों मे पट्टी बांध सके.आज इस लेख में हिन्दू राष्ट् बनाम स्वराज्य पर कुछ तुलनात्मक विश्लेषण किया गया है जिसमे गांधी जी,डॉ0 आंबेडकर और प0 जवाहर लाल नेहरू जी के विचार संकलित किये गए गए है साथ ही ये समझने का प्रयास किया गया है कि आखिर क्यों चाहती है आरएसएस हिन्दू राष्ट्र? क्या संविधान से ऊपर है हिन्दू राष्ट्र क्या बीजेपी इस ओर बढ़ रही है?बेसक गांधी जी टेक्नोलॉजी,यन्त्रों और मशीनिकरण के पक्षधर नहीं थे-वे कुटीर उद्योग और परंपरागत चरखे ,कुटीर उधोग धंधों पर ही कायम रहना चाहते थे.जाति उन्मूलन और दलितों के लिए पृथक निर्वाचन के लिए उन्होंने डॉ0 आंबेडकर के विरुद्ध ही जाने का निर्णय लिया,फिर भी गांधी का स्वराज्य वर्तमान आरएसएस के हिन्दुत्व के एजेंडे से कई मामलों में भिन्न था.

गांधी का स्वराज्य और आरएसएस का हिन्दू राष्ट्र-गांधी के स्वराज्य का अर्थ है जैसा उन्होंने मेरे सपनों का भारत मे लिखा है”स्वराज का अर्थ है सरकारी नियंत्रण से मुक्त होने के लिए लगातार प्रयत्न करना फिर वह नियंत्रण विदेशी सरकार का हो या स्वदेशी सरकार का.यदि स्वराज्य हो जाने पर लोग अपने जीवन की हर छोटी बात के नियमन के लिए सरकार का मुँह ताकना शुरू कर दें तो वह स्वराज्य -सरकार किसी काम की नहीं होगी”

दूसरी तरफ आरएसएस के हिन्दू राष्ट्र में संविधान की कोमलता और पंथ निरपेक्षता के लिए कोई स्थान नहीं दिखता.आरएसएस के मुख पत्र द ऑर्गनाइजेशन ने 17 जुलाई 1947 को नेशनल फ्लैग के नाम से संपादकीय में लिखा था कि भगवा ध्वज को भारत का राष्ट्रीय ध्वज माना जाए.22 जुलाई 1947 को जब तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज स्वीकार किया गया तो “द ऑर्गनाइजेशन “ने ही इसका विरोध किया था .इससे कुछ हद तक ये साफ हो जाता है कि अपने शुरुवात के दौर से आरएसएस भारतीय संविधान उसके प्रतीकों को स्वीकार नहीं करता है.जबकि तिरंगे की रक्षा के लिए इस देश के लाखों लोगों ने अपनी कुर्बानिया दी हैं और आज भी दे रहे हैं.स्वराज का मतलब है संविधानिक राष्ट्र और हिंदुत्व का मतलब है धार्मिक राजतन्त्र जिसकी बागडोर सिर्फ उच्च वर्ग के हाथ में हो और दलित,वंचित,पिछड़े मात्र सेवक बनकर रह जाये जैसा कि वैदिक भारत में था.हिन्दू राष्ट्र में हिन्दू होकर भी दलित अभी भी अछूत है आरएसएस ने सायद ही कभी जाति विनाश का आव्हवान किया हो बेसक राजनीतिक लाभ के लिए दलितों के घर खाना खाने का नाटक किया जाता है वरना सच्चे अर्थों में देखा जाए तो सन 2025 में आरएसएस के 100 वर्ष पूर्ण हो जायँगे दलित प्रेम होता तो आज सिर्फ दलित खिचड़ी खिलाने तक सीमित नहीं होते सवर्णों और अवणों के मकान और दुकान साथ साथ होते जाति कमजोर और सामाजिक संबन्ध मजबूत होते.

आरक्षण की समीक्षा की बात नहीं होती बल्कि आरक्षण ही खत्म हो जाता.गांधी के स्वराज्य में ऊँचे और नीचे वर्गों का भेद नहीं होगा और जिसमें विविध सम्प्रदायों में पूरा मेल जोल होगा.इसमे स्त्रियोँ को वही अधिकार होंगे जो पुरुषों को होंगे .हिन्दू राष्ट्र में बिल्कुल इसके विपरीत है. संविधान में समानता का अधिकार मूल अधिकार है लेकिन हिंदुत्व की जड़े इतनी गहरी हैं कि संविधान को लागू हुए 26 जनवरी 2019 को 69 साल हो जायँगे ,अस्पृश्यता,भेदभाव,जातिपन अभी भी यथावत बरकरार है.धार्मिक संस्थानों पर आज भी दलित और महिलाएं प्रवेश नहीं कर सकती .सबरीमाला मन्दिर ताजा उदाहरण है .जबकि गांधी जी मेरे सपनों के भारत मे कहते है-”मेरे-हमारे :सपनों के स्वराज्य में जाति(रेस) या धर्म के भेदों का कोई स्थान नहीं हो सकता”इसी तरह प0 जवाहर लाल नेहरू डिस्कवरी ऑफ इंडिया में लिखते है- “जाँत-पात की व्यवस्था-उसे हम जिस रूप में जानते हैं -दकियानूसी चीज है.अगर हिन्दू धर्म और हिंदुस्तान को कायम रहना है और तरक्की करना है ,तो इसे जाना ही होगा”.मगर यहाँ तो इंसानो की जाति छोड़ो हनुमान को भी दलितों की बिरादरी में शामिल कर दिया जाता है क्या ये हिन्दूपन के जातिपन को दरसाने के लिए पर्याप्त नहीं है?मेरे सपनों का भारत पृष्ट- 13 में गांधी लिखते है-”कुछ लोग ऐसा कहते हैं कि भारतीय स्वराज्य तो ज्यादा संख्या वाले समाज का यानी हिंदुओं का ही राज्य होगा,इस मान्यता से बड़ी कोई दूसरी गलती नहीं हो सकती .अगर यह सही सिद्ध हो तो अपने लिए में ऐसा कह सकता हूँ कि मैं उसे स्वराज्य मानने से इनकार कर दुंगा और अपनी सारी शक्ति लगाकर उसका विरोध करूँगा ,मेरे लिए हिन्द स्वराज का अर्थ सब लोगों का राज्य ,न्याय का राज्य है”.गांधी जी के उपरोक्त कथन से सिद्ध हो जाता है कि ओ आरएसएस की विचारधारा और भविष्य में उसके हिन्दुराष्ट्र के इरादों को भांप चुके थे .राजनीतिक लाभ के लिए आज देश को धर्म,जाति,मन्दिर,मस्जिद,अकबर,बाबर,जिन्ना,खिलजी,हनुमान,गाय, दलित,मुसलमान,के नाम पर पृथक करने का जोर शोर से अभियान चल रहा है ,गणतन्त्र की आड़ में भीड़तंत्र हिंसक होती जा रही है “राजनीति और चुनाव की रोजमर्रा की बातें ऐसी हैं ,जिनमे हम जरा-जरा से मामलों पर उत्तेजित हो जाते हैं.लेकिन अगर हम हिंदुस्तान के भविष्य की इमारत तैयार करना चाहते हैं ,जो मजबूत और खूबसूरत हो,तो हमें गहरी नींव खोदनी पड़ेगी”

(प0 नेहरू -डिस्कवरी ऑफ इंडिया)

मगर अफसोस आज नीव गहरी खोदी जा रही है तो जातिपन की.अंधविश्वास की,नफरत की,हिन्दू-मुस्लिम की,सवर्ण-अवर्ण की,गरीबी-अमीरी की,ऊँच-नीच की तथा भ्र्ष्टाचार की .जो स्वराज्य की कल्पना से कहीं दूर है.

संवैधानिक भारत से ऊपर क्यों चाहती है आरएसएस हिन्दू राष्ट्र?

बार-बार अपने भाषणों में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत कहते है सन 2025 तक भारत हिन्दू राष्ट्र बन जायेगा.कुछ इसी तर्ज पर नरेंद्र मोदी भी कहते है सन 2025 तक भारत विश्व गुरु बन जायेगा.क्या हिन्दू राष्ट्र बनना ही जरूरी है विश्व गुरु बनने के लिए?2025 में आरएसएस को 100 वर्ष हो रहे है तब तक वह अपने एजेंडे को देश पर थोपने की कोशिश कर रही है.और एक बात ये भी लगती है कि संविधान के निर्माता डॉ0 आंबेडकर ने मनुस्मृति जलाई थी जो हिन्दू धर्म की संहिता मानी जाती है और कहीं न कहीं आरएसएस इसी के इर्द गिर्द चलती है.इसी का बदला लेने के लिए आरएसएस डॉ0 आंबेडकर द्वारा लिखित संविधान को सायद पसन्द न करती हो .एक बास्त और गांधी और आंबेडकर के बीच तल्ख राजनीतिक कड़वाहट होते हुए भी ,विपरीत ध्रुव होते हुए भी अंबेडकर और गांधी के विचार हिन्दू राष्ट्र और हिंदुत्व समान दिखते हैं.हिन्दू राष्ट्र को ख़तरनाक बताते हुए डॉ0 आंबेडकर थॉट्स ऑन पाकिस्तान में लिखते हैं-”यदि हिन्दू राज की स्थापना सच मे हो जाती है तो निसन्देह यह इस देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य होगा.चाहे हिन्दू कुछ भी कहें,हिन्दू धर्म स्वतन्त्रता ,समानता और मैत्री के लिए एक खतरा है .यह लोकतंत्र के लिए असंगत है.किसी भी कीमत पर हिन्दू राज को स्थापित होने से रोका जाना चाहिए”तब की परिस्थिति और आज की परिस्थिति में बहुत कुछ बदलाव आ चुका है संविधान में भी 124 संशोधन हो चुके हैं और आगे भी होते रहंगे.विचारधारा कोई भी हो देश हित और समाज की उन्नति के लिए हितकर होनी चाहिए.धर्म और राजनीति अलग अलग संस्थाये हैं जिनका आपसी घोलमेल न तो धर्म के मन्तव्य को पूर्ण करती हैं ,न ही राजनीति की.राजनीति का अपराधीकरण तो लोकतंत्र के लिए खतरा है ही ,साथ ही राजनीति का धर्मीकरण भी धर्मनिर्पेक्ष राज्य की मूल भावना तथा संविधान की प्रस्तावना के अनुकूल नहीं है.समाज मैत्री भी चाहता है सिर्फ मंत्री ही नहीं.

आई0 पी0 ह्यूमन

Read it alos-बसपा को लेकर बहजनी की घोषणा का बहुजनों ने किया स्वागत

‘कास्ट लेस कलेक्टिव’ म्यूजिक बैंड की कहानी

 पिछली जनवरी को अपनी पहली प्रस्तुआति के बाद से ही ‘दि कास्टसलेस कलेक्टिव’ (टीसीसी) चेन्नै में सर्वाधिक चर्चा पाने वाले म्यूीजिक बैंड के रूप में उभरा है। इसने न सिर्फ अपने प्रतिबंध रहित संगीत के माध्यम से प्रभावित किया अपितु एक अनन्वेषित कलात्मजक राजनीतिक पथ का भी प्रदर्शन किया। इसके संगीत की जड़े चेन्नैत के दलित समुदाय के शोरगुल में है, विशेषत: जो दलित समुदाय उत्तर चेन्नै में रहता है, उसमें है। अंत्येष्टि संगीत से उद्भूत संगीत की गण विधा को गाते हुए ये लोग असंख्यो सौंदर्यशास्त्रीरय, सामाजिक और राजनीतिक सवाल कला जगत के समक्ष रखते हैं। इस कला विधा के साथ यह अभिशाप लगा हुआ है कि यह सामाजिक रूप से कब्रिस्ताभन की सुर-लहरी के साथ जुड़ी हुई है। इस बैंड के सदस्या हैं: तेन्माे (नेतृत्व कारी और संगीत प्रोड्यूसर), गायक – मुथु, बाला चंदर, इसइवनि, अरिवु और चेल्लाैमुथु, धरनी (ढोलक), सारथ (सत्ति), गौथम (कट्टा मोलम), नंदन (पराइ और ताविल), मानु (ड्रम) और साहिर (गिटार)। टी.एम. कृष्णाआ ने दि हिन्दू के लिए इनका एक साक्षात्कासर लिया था जो इसके 20 जनवरी वाले रविवारीय अंक में छपा था। इसी का हिन्दी अनुवाद

टीसीसी अस्तित्व में कैसे आया ॽ तेन्मा: मैं बहुत ही ज्यादा रूढ़ और लांक्षित उत्तरी चेन्नै से आता हूँ। जब मैं 20 साल का था, तब से मैंने पेरियार को पढ़ना शुरु किया लेकिन जब मैं ज्यादा बड़ा हुआ तभी जाकर स्वयं को अभिव्यक्त करना मैंने शुरु किया। मैंने मद्रास इंडी कलेक्टिव शुरु किया था और संगीतकारों को एक साथ लाने की कोशिश कर रहा था। उसी समय पा. रंजीथ की अगुवाई वाले संगठन नीलम का फोन यह पता करने के लिए मुझे आया कि क्या मैं गण गायकों के एक समूह के साथ काम करने को इच्छक हूँ। ठीक अगले दिन ही रंजीथ और मैं मिले और एक घंटे से ज्यायदा हमने बात की। बातचीत राजनीतिक थी, संगीत के बारे में बहुत ही कम थी। एक सप्ताह के अंदर या ऐसे ही कुछ समय में हमने आवाज़ की जाँच हेतु आवेदन निकाल दिया और लगभग 150 उम्मीमदवार आये। उनकी संगीतात्मसक दक्षता के साथ-साथ जो चीज सामान्यदत: महत्व5पूर्ण थी, वह बातचीत ही थी क्योंमकि हम स्पष्टत: एक सामाजिक-संगीतात्मक-राजनीतिक यात्रा की शुरुआत करने जा रहे थे। हम 19 साल के थे जब हमने एक साथ काम करना आरंभ किया। लेकिन एक बैंड कोई परियोजना नहीं होती है, यह एक परिवार होता है जो हमें गले लगाता है और बिना किसी डर के तीक्ष्णता के साथ तर्क करता है। इसने (बैंड निर्माण ने) कुछ समय लिया लेकिन एक दिन हर चीज साफ हो गई, संकोच दूर हो गया और हमने महसूस किया कि हम एक बैंड बन गये हैं–एक इकाई, एक परिवार।

‘दि कास्टकलेस कलेक्टिव’नाम क्यों ॽ तेन्मा : यह नाम 19वीं सदी के जाति विरोधी आंदोलनकारी और लेखक सी. इयोथी थास द्वारा प्रयुक्त ‘जाथि इल्लाइधा तमिझारगल’ से लिया गया है। भारतीय समाज की मूलभूत समस्या जाति है जो स्वयं को वर्ग जैसी दूसरी संरचनाओं के पीछे छिपाती है। हम जाति व्यवस्था के उन्मूलन की बात कर रहे हैं और यह बैंड इसी विचार को बल प्रदान करता है।

अरिवु : हम जाति के आधार पर और जाति के अंदर लोगों के सुविधाजनक स्तार को चुनौती देते हैं और एक विचार-विमर्श का प्रवर्तन करते हैं। जातीय विशेषाधिकार रखने वाले लोग जाति के बारे में कभी नहीं बोलेंगे क्योंकि उन्होंने उस दर्द को कभी महसूस ही नहीं किया है। जाति चीजों तक पैठ बनाने वाला कार्ड होती है। सिर्फ अस्वीकारता की स्थिति में सवाल उठते हैं। हम उस दौर से आगे बढ़ चुके हैं जब हम अपने अधिकार छोड़ते हुए कुछ नहीं करते थे। हम अब कह रहे हैं कि जाति का उन्मूतलन होना चाहिए।

अगर मैं जोड़ पाऊँ तो इस नाम का दूसरा पक्ष भी है। जाति विहीन स्थिति की अभिव्यक्ति आमतौर पर उस जाति के लोगों द्वारा भी की जाती है जिन्होंने कभी जातीय उत्पीड़न का अनुभव नहीं किया है। किंतु अब जाति विहीनता का दावा करके आप इस पद के अर्थ पुन: गढ़ रहे हैं और जातिविहीन होने की अवधारणा के ऊपर अपना नियंत्रण स्थापित कर रहे हैं। क्या गण और दलितों का संगीत समाज में निंदित हैॽ और क्या टीसीसी ने लोगों का नज़रिया बदला है ॽ

गौथम: जब मैं अंत्येष्टि पर बजाने जाया करता था तो मैं अपना मोलम किसी चाय की दुकान के सामने भी नहीं रख सकता था। वे मांग करते थे कि मैं अपना वाद्य यंत्र हटा लूँ। मैं इस चीज को कभी नहीं समझा हूँ। जब हम अंत्येष्टि पर बजाते हैं तो लोग खुशी से नाचते हैं किंतु हमारी कला को अछूत के रूप में देखते हैं।

सारथ: मंदिरों में, यह राजा-वाद्य है जिसे देवी की पूजा के लिए इस्तेमाल किया जाता है और जब वह गुस्से में होती है तो इसी से उसे शांत किया जाता है। लेकिन लोग तब भी नकारात्मक धारणा रखते हैं। मैं एक बार स्टूडियो रिकार्डिंग के लिए गया था। मैंने सत्ति (वाद्य यंत्र) को भू तल पर रख दिया। शीघ्र ही लोग इकट्ठे हो गये और उन्होंने मुझे इसे दूर ले जाने को बोला और अभद्रता से पूछताछ की कि क्या मैं उनके घरों में मृत्यु चाहता हूँ। जब मेरा एक गीत प्रसिद्ध हो गया और मैं उसी स्टूडियो में वापिस गया तो मुझे पहचान लिया गया और मेरे कार्य की प्रशंसा की गई। मैंने उनसे पूछा कि संगीत का लुफ्त उठाना किंतु वाद्य यंत्रों को गाली देना कैसे सही हैॽ वे बोले कि ‘किंतु आप इसका इस्तेमाल अंत्येष्टियों में करते हैं।’ मैंने उन्हें बताया कि यह वही वाद्य यंत्र है जिसने उस कला की, संगीत की सर्जना की है, जिसे वे सिल्वर स्क्रीन पर इतना ज्यादा प्यार करते हैं।

अरिवु: किसी के द्वारा कर्नाटक संगीत का गायक होने का दावा करने और गण गायक होने के दावा करने के बीच में बहुत भारी अंतर है। इनकी प्रतिद्वंद्विता स्वयं में ही एक कहानी कहती है। लेकिन आज हल्का सा बदलाव आया है और इसका श्रेय जाता है गण पझानि जैसे गायकों को और आज के संदर्भ में टीसीसी को भी इसका श्रेय जाता है। 90 के दौर की गण गायकों की पीढ़ी ने ऐसे गीत लिखकर स्वयं का कद घटाया था जो गाली-गलौज वाले थे और अपनी प्रकृति में कामुकता वाले थे।

बालचंदर: पहले, गायक फर्श पर बैठ जाते थे। तब वे एक चट्टान की जैसे खड़े होते और गाते थे। लेकिन मैंने गाते हुए नाचना शुरु किया, मैंने अपनी देह को गतिशील बनाया, देह की भौतिक जड़ता को तोड़ा। मेरी मान्यता है कि भाव देह से बाहर आने चाहिए। पैरों से शुरुआत करते हुए इन्हें हमें पूर्णत: गिरफ्त में ले लेना चाहिए। संगीत तभी है जब आपकी देह गाती है। बिना किसी संदेह के मैं कह सकता हूँ कि टीसीसी ने गण को सम्मान दिलवाया है। गण विधा एक दमित जाति की तरह है क्योंकि यह उन्हीं लोगों से आती है। और इसीलिए जब हमने बड़े मंच पर प्रदर्शन किया तो यह मेरे लिए एक विजय थी।

मुथु (गायक): मैं हमारे प्रथम प्रदर्शन के दिन रोया था। मैं सिर्फ मौत पर गाया करता था और जीवन के दूसरे छोटे अवसरों पर गाया करता था। लेकिन अब हमारे पास एक बड़ा मंच था जहाँ हजारों लोग हमें देखने वाले होते थे। यह बहुत ही जबर्दस्त था।

कोई (टीसीसी में) कैसे यह सुनिश्चित करता है कि टीसीसी ने वृहत्तर समाज के समक्ष जो यह चुनौती रखी है, वह कलेक्टिव की पहचान के अंदर ही उलझकर न रह जाए, और कोई कैसे यह सुनिश्चित करता है कि यह एक स्वतंत्र सामाजिक और सौंदर्यात्मक आंदोलन बनेॽ

अरिवु: किंतु यह होना तो तय है। हम एक विरोधी संस्कृति निर्मित कर रहे हैं और जो अगड़ी पंक्ति में हैं, वो लोकप्रसिद्धि प्राप्त करेंगे ही। सार्वभौमिक सम्मान और पहचान के अगले चरण में इसे ले जाना होगा।

तेन्मा: कर्नाटक संगीत घराने की जो एकमात्र चीज मुझे पसंद है, वह यही है। आपने इतने अच्छे ढंग से संगीत को संस्थाबद्ध किया है कि यह इस विधा में वैयक्तिक कलाकारों को आगे ले जाता है और वास्तविकता से कहीं बड़ी छवि उनकी हो जाती है। लेकिन वह इसलिए है कि हमारे पास सामाजिक पूँजी है और इसे लेकर विशेषाधिकार है।

तेन्माव: अब जैसे कि हम अपने स्वयं के पारिस्थितिकीय तंत्र के साथ काम कर रहे हैं, इसे समझ रहे हैं, और हिसाब लगा रहे हैं कि इस अंतराल में कौन रहता है। गण के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि यह उत्तरी चेन्नैै में अटका हुआ है। जब टीसीसी बैंड के उत्तंरी चेन्नै से संबंध न रखने वाले मानु, नन्दयन और अरिवु जैसे सदस्य इस कला रूप के साथ जुड़ते हैं तो धारणा बदलती है, दृष्टिकोण परिवर्तित होता है।

इसइवनि, आप इस बैंड में एकमात्र महिला हैं, ठीक ना ॽ इसइवनि (गायिका): हाँ, और इस बैंड का हिस्साॽ होने पर मुझे गर्व है। हमारे विचारों में पूर्णत: मतैक्य आ गया है। मेरा परिवार आरंभ में झिझका था, किंतु इस टीम के साथ मिलने के बाद उन्हें लगा कि यह एक महत्वपूर्ण अवसर है। आज मुझे देखने के बाद बहुत सारी लड़कियाँ गण गा रही हैं, और बैंड को अपने में ज्यादा महिलाओं को लेना चाहिए।

तेन्माझ: हमने महिला संगीतकारों के लिए एक खुला बुलावा रखा हुआ है। हम पितृसत्ता को लेकर बहुत सचेत हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि यह टीसीसी के अंदर प्रकट न हो। किंतु टीसीसी का हिस्साख बनने के लिए बहुत ज्यादा महिलाएँ / लड़कियाँ आगे नहीं आ रही हैं। हम बहुत ही धारदार बैंड हैं, हम अपनी राजनीति नहीं छिपाते और वही चीज इसे संभवत: कठिन बना देती है। हमारा संगीत अपरिष्कृ त आदिम वृत्ति के बारे में होता है।

क्या यह संकीर्णतावादी मानसिकता है जो महिलाओं को रोक रही हैॽ और क्या (टीसीसी से जुड़ने के) आकांक्षी सदस्यों के लिए अत्यधिक राजनीतिक होना जरूरी होता हैॽ

अरिवु: अगर वे पितृसत्ता और जाति व्यवस्था का सामान्यीकरण नहीं कर रहे हैं, तो यही पर्याप्त है … किसी स्त्री की देह जाति का ही संस्थानीकरण होती है। इसीलिए जब कोई महिला जाति के विरोध में गाती है तो उसे स्वीकारना समाज बहुत कठिन पाता है। इस बैंड में एक स्त्री की उपस्थिति से लोग नाराज हैं। मर्द वर्चस्वशील होने, नियंत्रनकारी होने और अपनी पितृसत्ता और जातिवाद के समर्थन में महिलाओं का इस्तेमाल करने का इतना ज्यादा आदी है कि वह उसकी मजबूत आवाज़ नहीं सुन सकता। वह यह नहीं स्वीकार कर सकता कि उसे नीचे उतरने की जरूरत है और उसका नीचे उतरना जो समानता लाता है, उसे वह नहीं चाहता है।

कामुकता के विषय मेंॽ तेन्मा: हम अपने गीतों में कामुकता के प्रवाह के बारे में बात करते हैं। यौनिकता बहुत आम है। हम आज़ादी और मुक्ति के विषय में बोलते हैं और उन्हींं के अंतर्गत वैयक्तिक चाहतें आती हैं।

क्या तमिल सिनेमा ने गण को आइटम नम्बर तक घटाकर इसे दोयम दर्जे का बना दिया है ॽ बालचंदर: गण किसी बात को व्यक्त‍ करने का सबसे आसान रास्ता है क्योंकि यह रूपकों का इस्तेमाल नहीं करता है, यह प्रत्यक्ष अभिव्यक्ति वाली कला है और इसीलिए इसका विदोहन भी किया गया है। सिनेमा इसके साथ अभद्रता के साथ पेश आया है। और दोषी हर एक है – गीतकार, संगीत निर्देशक, फिल्म निर्देशक और पार्श्व गायक। सिनेमा उद्योग के भीतरी जातीय वर्चस्व ने भी एक भूमिका अदा की है। यहाँ तक कि गण में उत्तरी चेन्नै की बोली की बारीकियों को भी फिल्म व जगत ने छीन लिया है।

(अनुवादक:– डॉ. प्रमोद मीणा, सहआचार्य, हिन्दी विभाग, मानविकी और भाषा संकाय, महात्मा गाँधी केंद्रीय विश्वयविद्यालय, मोतिहारी,  दूरभाष – 7320920958 )

जानिए क्या है 13 प्वाइंट रोस्टर, जिसके खिलाफ सड़क पर हैं बहुजन

नई दिल्ली। 13 प्वाइंट रोस्टर के खिलाफ देश भर के बहुजन सड़क पर हैं. इसको लेकर तमाम विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों के शिक्षक और शोधार्थियों ने आंदोलन छेड़ रखा है. साथ ही 31 जनवरी को इसको लेकर बड़े आंदोलन की तैयारी हो रही है. दरअसल महविद्यालय एवं विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर बनने की चाहत रखने वाले SC,ST एवं OBC अभ्यर्थियों के लिए बुरी खबर है. आरक्षण रोस्टर को लेकर दायर याचिका सुप्रीम कोर्ट द्वारा खारिज होने के बाद आरक्षित वर्ग के लिए कोटे से महाविद्यालय-विश्वविद्यालयों में प्राध्यापक बनने के दरवाजे लगभग बंद हो गए हैं.

एसोसिएट प्रोफेसर एवं प्रोफेसर के पद पर पहले से ही आरक्षण का प्रावधान नहीं है. अब नये फैसले से असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर नियुक्तियां भी प्रभावित होंगी. सरकार ने 13-बिन्दु वाले आरक्षण रोस्टर (13 प्वाइंट रोस्टर) के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले (अप्रैल, 2017) को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. 22 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के SLP को खारिज कर दिया, जिसमें 13 के बदले 200 बिन्दु आरक्षण रोस्टर प्रणाली को लागू करने की मांग की गई थी. सुप्रीमकोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को ही सही ठहराया. नये फैसले के अनुसार महाविद्यालय-विश्वविद्यालयों के सहायक प्राध्यापक पद पर नियुक्ति हेतु विषयवार/विभागवार आरक्षण रोस्टर तैयार किया जाएगा. यह 13 प्वाइंट रोस्टर प्रणाली पर आधारित होगा. इसमें प्रथम तीन पद सामान्य के लिए और चौथा पद OBC के लिए आरक्षित रहेगा. पांचवां-छठा पद भी सामान्य रहेगा. सातवां पद SC और 14वां पद ST के कोटे में जाएगा. अर्थात एक विषय में 04 रिक्तियां होंगी तो एक OBC को मिलेगा, 07 रिक्तियां होने पर एक पद SC को तथा 14 रिक्तियां होने पर एक पद ST के खाते में जाएगा.

केन्द्रीय विश्वविद्यालय के विज्ञापनों में अक्सर एक विषय में एक या दो पदों की ही रिक्ति निकलती है. इस प्रकार आरक्षित वर्ग को केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में अब मौका नहीं मिल पाएगा. राज्य विश्वविद्यालयों की भी कमोबेश यही स्थिति है. ऐसा बहुत कम होता है कि राज्य के विश्वविद्यालयों द्वारा एक विषय में सहायक प्रोफेसर पद के लिए सात या चौदह पद एक बार में विज्ञापित किए जाते हों. ऐसी स्थिति में कोटे से सहायक प्राध्यापक बनने के दरवाजे लगभग बंद हो गए हैं.

रिपोर्टरामकृष्ण यादव 

कंगना रनौत की फिल्म ‘मणिकर्णिका’ को बड़ा झटका

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मुंबई। बॉलीवुड एक्ट्रेस कंगना रनौत को बड़ा झटका लगा है. उनकी फिल्म ‘मणिकर्णिका’ पायरेसी के चपेट में आ गई है और ऑनलाइन लीक हो गई. ऐसा होने से बड़ा बिजनेस करने का सपना देख रही फिल्म मणिकर्णिका को झटका लगा है. पायरेसी की समस्या से पूरा देश जूझ रहा है. ऐसे में बॉलीवुड और हॉलीवुड की कई फिल्मों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा है. छोटे बजट से लेकर बड़े बजट तक की फिल्में रिलीज होने के साथ ही ऑनलाइन लीक हो जा रही हैं.

पहले जानकारी मिल रही थी कि नवाजुद्दीन सिद्दीकी की ठाकरे लीक हुई है लेकिन अब सामने आ रहा है कि कंगना रनौत की फिल्म मणिकर्णिका भी लीक हो चुकी है. इस फिल्म को तमिलरॉकर्स द्वारा लीक किया गया है. तमिलरॉकर्स ने पिछले दिनों अपनी गतिविधियों से बॉलीवुड को खौफजदा कर दिया है. ठाकरे और मणिकर्णिका से पहले द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर (The Accidental Prime Minister) भी लीक हुई थी.

मायावती का व्हाट्एप नंबर गलत, बसपा ने बताई सच्चाई

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नई दिल्ली। सोशल मीडिया से दूरी बनाकर रखने वाली बहुजन समाज पार्टी अब इसी के चक्रव्यूह से परेशान है. पिछले दिनों सोशल मीडिया बसपा के प्रत्याशियों की फर्जी सूची जारी होने का मामला अभी शांत भी नहीं हुआ था कि अब बसपा सुप्रीमों मायावती के झूठे व्हाट्सएप नंबर का बवाल सामने आ गया है. तो वहीं इसके साथ ही बीएसपी युवा मोर्चा के गठन की खबर सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है.

इस मामले को लेकर बीएसपी के प्रदेश अध्यक्ष आरएस कुशवाहा ने कहा कि पार्टी सुप्रीमो मायावती के नाम से जो वॉट्सऐप नंबर प्रचारित किया जा रहा है, वह उनका नहीं है. वहीं युवा मोर्चा के गठन संबंधी खबर का खंडन करते हुए उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी में अलग से युवा मोर्चा, छात्र मोर्चा या महिला मोर्चा जैसा कोई संगठन नहीं है. उन्होंने कहा कि ‘गठबंधन के बाद से विरोधी तरह-तरह की साजिश कर रहे हैं. बसपा के सामने से आए तमाम पत्र विरोधियों के षड्यंत्र का हिस्सा हैं.’

इससे पहले भी बीएसपी प्रदेश अध्यक्ष का एक फर्जी पत्र सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था. इस पत्र में उनकी ओर से पार्टी के लोकसभा प्रत्याशियों की लिस्ट जारी कर दी गई थी. इस पर उन्होंने लखनऊ के गौतम पल्ली थाने में रिपोर्ट भी दर्ज कराई थी.कुशवाहा ने अपनी पार्टी के लोगों को इस तरह की भ्रामक खबरों से सावधान रहने की अपील की है.

धर्म संसद में मोदी सरकार के खिलाफ आलोचना प्रस्ताव पास

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धर्म संसद में इक्ठ्ठा साधु संत समाज के लोग

प्रयागराज। राम मंदिर को लेकर संत समाज का मोदी सरकार पर दबाव बढ़ता जा रहा है. अयोध्या में राम मंदिर निर्माण, गौरक्षा, गंगा सफाई समेत तमाम मुद्दों को लेकर द्वारकापीठ के शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती द्वारा बुलाई गई तीन दिवसीय धर्म संसद में राम मंदिर का मुद्दा खुलकर सामने आया. तीन दिवसीय धर्म संसद के पहले ही दिन सोमवार को केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ राम मंदिर निर्माण के लिए उचित कदम न उठाने के लिए आलोचना प्रस्ताव लाया गया, जिसे संसद ने सर्वसम्मति से पास कर दिया.

साध्वी पूर्णांबा के प्रस्ताव के मुताबिक पिछले वर्ष वाराणसी में हुई परम धर्म में मोदी सरकार को राम मंदिर निर्माण के उचित कदम उठाने के निर्देश दिए गए थे. लेकिन सरकार द्वारा इस संबंध में कोई कार्यवाही न किए जाने के चलते आलोचना प्रस्ताव लाया गया. तीन दिनों तक चलने वाली इस धर्म संसद में सभी राजनीतिक दलों को शामिल होने का न्योता दिया गया है. धर्म संसद में राम मंदिर का मुद्दा प्रमुख होगा. संसद के आखिरी दिन 30 जनवरी को राम मंदिर मसले पर पूरे दिन चर्चा चलेगी. इस धर्म संसद के माध्यम से मोदी सरकार से राम मंदिर निर्माण के लिए संसद के जरिए कानून बनाने की बात शामिल है.

धर्म संसद में अध्यक्षता कर रहे शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती के प्रतिनिधि स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद के मुताबिक धर्म संसद के लिए सभी दलों को न्योता दिया गया है ताकि राम मंदिर निर्माण को लेकर उनकी राय जनता के सामने आए. स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि धर्म संसद के जरिए यह प्रस्ताव तय किया जाएगा कि जब तक राम मंदिर निर्माण की शुरुआत की तारीख नहीं पता चलती तब तक साधु संन्यासी इस धर्म संसद से नहीं हटेंगे.

प्रयागराज में अर्धकुंभ के लिए आए साधु संन्यासी पहले ही मोदी सरकार से नाराजगी जता चुके हैं और अब ऐसे में राम मंदिर निर्माण को लेकर साधुओं का सब्र भी टूट रहा है. ऐसे में राम मंदिर के मुद्दे पर दो-दो धर्म संसद से प्रयागराज में कुंभ का माहौल गरमाने के आसार हैं. यूपी के राजनीतिक हालात से परेशान मोदी सरकार के लिए यह परेशानी का सबब बन सकता है.

IRCTC घोटाले में लालू यादव को मिली जमानत

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नई दिल्ली। दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने आईआरसीटीसी टेंडर घोटाले के केस में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव, उनकी पत्नी राबड़ी देवी और बेटे तेजस्वी यादव समेत अन्य आरोपियों को जमानत दे दी है. इनके खिलाफ सीबीआई और ईडी ने आईआरसीटीसी से जुड़े मामलों में मुकदमे दर्ज कराए थे, जिनमें उनके ऊपर मनी लॉन्ड्रिंग का आरोप था.

आरजेडी प्रमुख और उनके परिवार के सदस्यों के अलावा पूर्व केन्द्रीय मंत्री प्रेमचंद गुप्ता और उनकी पत्नी सरला गुप्ता, IRCTC के तत्कालीन प्रबंध निदेशक बी के अग्रवाल और तत्कालीन निदेशक राकेश सक्सेना भी इस मामले में आरोपी हैं, उन्हें भी नियमित जमानत दे दी गई है.

बता दें कि लालू प्रसाद यादव के खिलाफ आरोप थे कि उन्होंने रेल मंत्री रहते हुए आईआरसीटीसी के दो होटलों को कथित तौर पर एक प्राइवेट फर्म को दे दिया था. इसमें वित्तिय गड़बड़ी के आरोप लगाए गए थे. होटल के सब-लीज के बदले पटना के एक प्रमुख स्थान की 358 डिसमिल जमीन फरवरी 2005 में मेसर्स डिलाइट मार्केटिंग कंपनी प्राइवेट लिमिटेड (आरजेडी सांसद पी.सी. गुप्ता के परिवार के स्वामित्व वाली) को दी गई थी. जमीन उस वक्त के सर्किल दरों से काफी कम दर पर कंपनी को दी गई थी. इसी मामले में ईडी और सीबीआई ने लालू फैमिली पर शिकंजा कसा था.

ईडी ने इस मामले में अब तक 44 करोड़ रुपये से ज्यादा की संपत्ति कुर्क की है. सीबीआई ने भी कुछ समय पहले इस मामले में एक आरोपपत्र दायर किया था. ईडी ने आरोप लगाया था कि लालू प्रसाद यादव समेत IRCTC के अधिकारियों ने अपने पद का दुरुपयोग किया. रेल मंत्री रहने के दौरान लालू यादव ने नियमों को ताक पर रखकर पुरी और रांची के दो आईआरसीटीसी के होटलों को पीसी गुप्ता की कंपनी को दे दिया.

स्रोतः आज तक

SP, BSP या BJP, किसके लिए बड़ी चुनौती हैं प्रियंका गांधी

नई दिल्ली। 2019 से पहले कांग्रेस पार्टी ने प्रियंका गांधी को मैदान में उतार कर बड़ा दांव खेला है. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपना मास्टर स्ट्रोक खेलते हुए अपनी बड़ी बहन प्रियंका गांधी को न सिर्फ कांग्रेस का महासचिव बनाया है बल्कि उन्हें पूर्वांचल का प्रभारी भी बनाया गया है. सपा-बसपा गठबंधन होने के बाद पहले ही यूपी को लेकर परेशान चल रही भाजपा को प्रियंका के आने से एक और बड़ा झटका लगा है. प्रियंका गांधी को पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाकर राहुल गांधी ने एक साथ प्रधानमंत्री मोदी और यूपी के मुख्यमंत्री योगी को घेरने का दांव चल दिया है. क्योंकि योगी का सबसे ज्यादा प्रभाव पूर्वांचल में ही है तो पीएम मोदी भी पूर्वांचल के ही महत्वपूर्ण जिले वाराणसी से सांसद हैं.

माना जा रहा है कि प्रियंका गांधी के जरिए कांग्रेस पार्टी अपने परंपरागत सवर्ण वोटरों को फिर से कांग्रेस से जोड़ने की कवायद तेज करेगी. तो कांग्रेस के निशाने पर मुस्लिम मतदाता भी होंगे. प्रियंका गांधी के अपनी मां की सीट रायबरेली से चुनाव मैदान में उतरने की भी चर्चा है. प्रियंका के अलावा ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी महासचिव बनाया गया है और उन्हें पश्चिमी उत्तर प्रदेश की ज़िम्मेदारी दी गई है. और राहुल गांधी ने साफ संकेत दे दिया है कि ये दोनों नेता लंबे समय तक यूपी में ही रहेंगे.

तो सवाल यह उठता है कि प्रियंका गांधी के आने से सपा-बसपा गठबंधन को नुकसान होगा या फिर यह सिर्फ भाजपा के लिए चिंता की बात है? इसके लिए हमें यूपी के जातीय समीकरण को समझना होगा.

बसपा और सपा गठबंधन में रालोद को भी जोड़ लिया जाए तो 2014 में मोदी सुनामी के बावजूद इन्हें 43 फीसदी वोट मिला था, जो भाजपा के 42.63 फीसदी वोट से ज्यादा था. सपा और बसपा के कोर वोटरों की बात करें तो ये लंबे समय से अपनी पार्टी और नेता के प्रति वफादार हैं और उनका किसी और खेमे में जाने का कोई सवाल नहीं है.

पूर्वी उत्तर प्रदेश जहां प्रियंका गांधी सक्रिय रहेंगी, उसमें बहराइच, आजमगढ़, गोंडा, श्रावस्ती, वाराणसी, डुमरियागंज और बलरामपुर सहित 12 और सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम वोट निर्णायक है. हाल के सर्वे बताते हैं कि प्रदेश में मुस्लिम मतदाताओं का रुझान सपा-बसपा गठबंधन की तरफ है. प्रियंका गांधी के अचानक आने से वो कांग्रेस के खेमे में चले जाएंगे इसकी आशंका भी कम ही है. लेकिन सवर्ण मतदाताओं और खासकर ब्राह्मण मतदाता को कांग्रेस अपने पाले में खिंच सकती है. इसकी जायज वहज भी है. दरअसल योगी राज को यूपी में ठाकुरराज के रूप में देखा जा रहा है. योगी सरकार में तमाम महत्वपूर्ण पदों पर ठाकुर काबिज हैं और ब्राह्मणों को तवज्जो नहीं दी जा रही है. ऐसे में प्रियंका गांधी के आने के बाद अकेलापन महसूस कर रहा ब्राह्मण समाज कांग्रेस के खेमें में जा सकता है.

दरअसल उत्तर प्रदेश की राजनीति में ब्राह्मण को डिसाइडिंग शिफ्टिंग वोट कहा जाता है. कारण ये है कि ब्राह्मण मतदाता को लेकर यहां कोई भी दल आज तक खुशफहमी नहीं पाल सका है कि ये वोट बैंक उसका है, लेकिन एक सच यह भी है कि ब्राह्मण समाज का वोट सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. संख्या के लिहाज से उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण वोटर करीब-करीब 14 फीसदी हैं, जो कि कम नहीं है. वहीं उत्तर प्रदेश के मध्य और पूर्वांचल के करीब 29 जिलों में इनकी भूमिका अहम होती है. प्रियंका गांधी इसी क्षेत्र की प्रभारी बनाई गई है.

2009 चुनाव की बात करें तो ब्राह्मण समाज ने कांग्रेस का समर्थन किया था, जिसके बाद कांग्रेस ने लंबे समय के बाद यूपी में लोकसभा चुनाव में जोरदार प्रदर्शन किया था. कांग्रेस पार्टी एक बार फिर प्रदेश में कम से कम 2009 की तरह ही चुनावी जीत दर्ज करना चाहती है. तब सूबे में 18.2 फीसदी वोट शेयर के साथ कांग्रेस ने 21 सीटें हासिल की थीं. और इसके लिए कांग्रेस और प्रियंका गांधी के निशाने पर ब्राह्मण मतदाता होंगे. ऐसे में साफ है कि प्रियंका गांधी के आने से भाजपा की राह मुश्किल हो गई है और खतरा बढ़ गया है.

मायावती ने फिर खोला EVM के खिलाफ मोर्चा

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नई दिल्ली। बहुजन समाज पार्टी की मुखिया सुश्री मायावती ने एक बार फिर ईवीएम के खिलाफ हल्ला बोला है. बसपा प्रमुख ने 2019 में निष्पक्ष एवं स्वतंत्र चुनाव सुनिश्चित कराने के लिए ईवीएम की बजाय मतपत्रों से चुनाव कराने की मांग की है. पार्टी के केंद्रीय कार्यालय की ओर से जारी बयान में यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री की ओर से कहा गया है कि, “लंदन में साइबर विशेषज्ञ द्वारा प्रेस कांफ्रेन्स करके यह दावा करना कि 2014 के लोकसभा चुनाव के साथ उत्तर प्रदेश, गुजरात आदि राज्यों के पिछले विधानसभा चुनावों में EVM के जरिये जबर्दस्त धांधली की गई थी, EVM के जरिए धांधली पर जारी विवाद को और भी ज्यादा गहरा, षडयंत्रकारी व गंभीर बनाता है. देश के लोकतंत्र के व्यापक हित में ई.वी.एम. विवाद पर तत्काल समुचित ध्यान देने की सख्त जरूरत है ताकि भारी जन-आशंका का समय पर सही व संतोषजनक समाधान हो सके.”

आगामी चुनाव बैलेट पेपर से कराए जाने की मांग करते हुए बसपा प्रमुख ने कहा है कि, “निष्पक्ष व स्वतंत्र चुनाव सुनिश्चित करने के लिये मतपत्रों के मतों के सत्यापन की बेहतर व्यवस्था संभव है जबकि EVM के सत्यापन की ऐसी कोई पुख्ता व्यवस्था नहीं है. इसलिये EVM संबंधी ताजा विवाद का संज्ञान लेते हुए आगामी लोकसभा आमचुनाव मतपत्रों से ही कराया जाए.”

दरअसल लंदन में चल रहे हैथकॉन में एक साइबर एक्सपर्ट द्वारा दावा किया गया है कि भारतीय ईवीएम को हैक किया जा सकता है. इंडियन जर्नलिस्ट एसोसिएशन एवं विदेश प्रेस एसोसिएशन इन लन्दन द्वारा संयुक्त तौर पर लन्दन में आयोजित प्रेस कान्फ्रेन्स में जारी नये तथ्यों के उजागर होने से मीडिया में ईवीएम मुद्दे को फिर से हवा मिल गई है. इस संबंध में मामले का उचित संज्ञान लेने की माँग करते हुये सुश्री मायावती ने कहा है कि, “बेहतर यही होगा कि ई.वी.एम. पर हर तरफ छाये विवाद व उसके प्रति विपक्षी पार्टियों तथा जनता की गंभीर आशंकाओं का जब तक सही व संतोषजनक समाधान नहीं हो जाता है, तब तक देश में चुनाव खासकर 2019 का लोकसभा का आमचुनाव मतपत्रों से ही कराया जाये.” उन्होंने कहा कि ई.वी.एम. विवाद के संबंध में ताजा रहस्योद्घाटन काफी सनसनीखेज है तथा गहरे षड़यंत्र आदि का पर्दाफाश करते हुये बीजेपी को सीधे व साफ तौर पर कठघरे में खड़ा करता है. बताते चलें कि उत्तर प्रदेश में 2017 में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद भी मायावती ने ईवीएम का मुद्दा जोर शोर से उठाया था और ईवीएम बैन करने की मांग की थी. बसपा ने कई महीनों तक यूपी के सभी जिला मुख्यालयों में धरना-प्रदर्शन भी किया था. लोकसभा चुनाव के पहले एक बार फिर बसपा प्रमुख ने ईवीएम मुद्दा उठा कर मामले को हवा दे दी है.

साधना सिंह के बयान पर सियासी पारा हाई: मायावती के सम्मान में सपा मैदान में

लखनऊ। बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती के खिलाफ भाजपा विधायक साधना सिंह की आपत्तिजनक टिप्पणी से सियासी माहौल गर्मा गया है. गठबंधन धर्म का निर्वहन करते हुए समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने जिलों में प्रदर्शन किए. अनेक स्थानों पर पुतले फूंके गए. वहीं, बसपा की ओर से पलटवार करते हुए पार्टी के महासचिव सतीश चंद्र मिश्र ने इसे भाजपा की बौखलाहट बताया. उधर, राष्ट्रीय महिला आयोग ने स्वत: संज्ञान लेते हुए साधना सिंह को नोटिस देने का फैसला किया है.

मायावती के अपमान पर अखिलेश का ट्वीट वार

मायावती के विरुद्ध टिप्पणी पर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने ट्वीट कर इसे भाजपा का दिवालियापन बताते हुए देश की महिलाओं का अपमान करार दिया. उन्होंने कहा कि भाजपा विधायक ने जिस तरह अपशब्द बोला, वह घोर निंदनीय है. यह एक तरह से देश की महिलाओं का अपमान है.

भड़के बसपा नेता ने BJP को घेरा

वहीं, बसपा महासचिव सतीश चंद्र मिश्र ने भी ट्वीट कर भाजपा पर निशाना साधा. उन्होंने कहा कि महिला विधायक के कहे गए शब्द भाजपा के स्तर को प्रदर्शित करते हैं. सपा-बसपा गठबंधन से भाजपा नेता मानसिक संतुलन खो बैठे हैं. उन्हें आगरा या बरेली के मानसिक चिकित्सालय में भर्ती कराना चाहिए.

कांग्रेस ने भी भाजपा को निशाने पर लिया

कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष राजबब्बर ने भी बयान की भ‌र्त्सना करते हुए कहा कि व्यक्तिगत आरोपों का सार्वजनिक जीवन में कोई स्थान नहीं होता. विशेषकर महिलाओं के प्रति मर्यादा का विशेष ध्यान रखना चाहिए. भाजपा विधायक द्वारा की गई अनुचित टिप्पणी भारतीय संस्कृति को तार-तार करने वाली है. अहम बात यह है कि भाजपा नेतृत्व इस अभद्र आचरण पर मौन है. राष्ट्रीय लोकदल के मुख्य प्रवक्ता अनिल दुबे ने आरोप लगाया कि चुनाव से पूर्व सार्वजनिक स्थलों व भाषणों में मर्यादाहीन आचरण व बयानबाजी दुर्भाग्यपूर्ण है. ऐसे नेताओं के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए ताकि इससे सबक मिले.

भाजपा के सहयोगी भी बयान से नाराज

विधायक के बयान पर विपक्ष ही नहीं सहयोगी दलों के नेता भी नाराज हैं. केंद्रीय मंत्री व रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (ए) प्रमुख रामदास अठावले ने भी भाजपा विधायक पर निशाना साधा. उन्होंने कहा कि अमर्यादित बयान से कोई सहमत नहीं हो सकता. वह (मायावती) दलित समुदाय की मजबूत महिला हैं और अच्छी प्रशासक भी. हमारी पार्टी के नेता ने इस तरह का बयान दिया होता तो जरूर एक्शन लेते. वहीं सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर ने भी बयान को निदंनीय बताते हुए मर्यादाएं बनाए रखने की बात कही है.

श्रोत- दैनिक जागरण  Read it also-आर्थिक आरक्षण के खिलाफ विपिन भारतीय ने डाली जनहित याचिका

बीजेपी को हराने के लिए करीना कपूर भोपाल से लड़ेंगी लोकसभा चुनाव?

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मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में मिली जीत को कांग्रेस लोकसभा चुनाव में भी भुनाना चाहती है. इसलिए पार्टी ने अभी से उसकी तैयारी भी शुरू कर दी है. इसी कड़ी में कांग्रेस के कुछ पार्षदों ने भोपाल लोकसभा सीट जीत का फॉर्मूला निकाला है. इन्होंने मांग की है कि भोपाल संसदीय सीट से किसी नेता को नहीं बल्कि बॉलीवुड अभिनेत्री करीना कपूर खान को टिकट दी जाए.

दरअसल, कांग्रेस पार्षदों का कहना है कि भोपाल संसदीय सीट पर कई साल से बीजेपी का एक छत्र राज चल रहा है और भोपाल बीजेपी का मजबूत किला बनता जा रहा है जिसे ढहाने के लिए करीना कपूर खान मुफीद उम्मीदवार रहेंगी. कांग्रेस पार्षद गुडडू चौहान और अनीस खान का मानना है कि युवाओं में करीना कपूर की अच्छी फैन फॉलोइंग है और करीना युवाओं का वोट हासिल कर पाएंगी.

वहीं, अनीस का कहना है कि करीना क्योंकि पटौदी खानदान की बहू हैं इसलिए कांग्रेस को पुराने भोपाल में भी इसका फायदा मिलेगा. इसके अलावा महिला होने के नाते करीना महिलाओं के भी अच्छे खासे वोट लेने में कामयाब हो सकती हैं.

आपको बता दें कि करीना के पति सैफ अली खान का भोपाल से पुशतैनी संबंध है. पटौदी परिवार बरसों से भोपाल में रह रहा है और सैफ, करीना, शर्मिला टैगोर और सोहा अली खान कई बार भोपाल आ भी चुके हैं. ऐसे में कांग्रेसी पार्षद पटौदी परिवार की लोकप्रियता को लोकसभा चुनाव में भुनाने की बात कर रहे हैं.

हालांकि, नवाब पटौदी भोपाल से चुनाव लड़ चुके हैं जिसमे उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा था. पार्षदों ने कहा है कि इस मांग को लेकर वो जल्द ही मुख्यमंत्री कमलनाथ से भी मुलाकात करेंगे.

कांग्रेस पार्षदों की मांग पर बीजेपी ने तंज कसा है और कहा है कि कांग्रेस के पास अब नेता नहीं बचे इसलिए अभिनेता के सहारे चुनाव लड़ना चाह रहे हैं. भोपाल से बीजेपी सांसद आलोक संजर ने कहा कि ‘कांग्रेस के पास स्थानीय नेता नहीं बचे इसलिए मुम्बई से उम्मीदवार इंपोर्ट करने की जरूरत पड़ रही है. मुझे पूरा भरोसा है इस बार भी भोपाल की जनता बीजेपी को ही चुनेगी.’

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PNB घोटाले के आरोपी मेहुल चोकसी ने छोड़ी भारत की नागरिकता, देश लाना होगा मुश्‍किल

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पंजाब नेशनल बैंक में हुए 12 हजार 700 करोड़ रुपये के कथित लोन फ्रॉड मामले के आरोपी हीरा कारोबारी मेहुल चोकसी को भारत लाना अब और मुश्‍किल हो सकता है. दरअसल मेहुल चोकसी ने भारतीय नागरिकता छोड़ते हुए अपना भारतीय पासपोर्ट एंटीगुआ हाईकमीशन में जमा कर दिया है.

पंजाब नेशनल बैंक घोटाले के मुख्‍य आरोपी मेहुल चोकसी ने पासपोर्ट नंबर जेड 3396732 कैंसिल्ड बुक्स के साथ जमा कराया गया है. मेहुल चोकसी को भारतीय नागरिकता छोड़ने के लिए 177 अमेरिकी डॉलर का ड्राफ्ट जमा करना पड़ा है.

इस संबंध में विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव अमित नारंग ने गृह मंत्रालय को जानकारी दे दी है. मेहुल चोकसी ने भारतीय नागरिका छोड़ने के लिए जो फॉर्म भरा है, उसमें अपना नया पता जौली हार्बर सेंटर मार्कस एंटीगुआ लिखा है.

चोकसी ने भारतीय उच्चायोग से कहा कि उसने नियमों के तहत एंटीगुआ की नागरिकता लेते हुए भारत की नागरिकता छोड़ दी है. चोकसी ने साल 2017 में ही एंटीगुआ की नागरिकता ली थी. मुंबई पुलिस की हरी झंडी के बाद चोकसी को नागरिकता मिली थी.

पीएनबी घोटोले के बाद हीरा व्‍यापारी मेहुल चोकसी और उसका भाई नीरव मोदी देश छोड़कर फरार हो गए थे. मामले की जांच कर रही ईडी और सीबीआई की टीम ने अब-तक साढ़े चार हजार करोड़ रुपये की चल-अचल संपत्‍ति को जब्‍त कर लिया है. चोकसी और मोदी के खिलाफ आर्थिक भगोड़ा अधिनियम के तहत भी कार्रवाई की जा रही है.

क्या है मामला

आपको बता दें कि नीरव मोदी, उनके मामा मेहुल चौकसी और उनसे जुड़ी कंपनियों पर पीएनबी से 12,717 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी का आरोप है. कंपनी की वेबसाइट के अनुसार, उसका कारोबार अमेरिका, यूरोप, पश्चिम एशिया और भारत सहित कई देशों में फैला है. उसने अपनी मौजूदा स्थिति के लिए नकदी और सप्लाइ चेन में दिक्कतों को जिम्मेदार बताया है. अदालत में दाखिल दस्तावेजों के अनुसार कंपनी ने 10 करोड़ डालर की आस्तियों व कर्ज का जिक्र किया है.

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