सम-विषम योजना बढ़ते प्रदूषण का हल नहीं

राजधानी दिल्ली में वायु प्रदूषण से निपटने के लिए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने एक बार फिर सम-विषम योजना शुरू करने की बात कह कर दिल्ली जनता की परेशानियां बढ़ाने का निश्चय किया है. सम-विषम योजना 2016 में दो बार लागू की गई थी. लेकिन उस वक्त भी नतीजों को लेकर ही परस्पर विरोधी रिपोर्टें और खबरें आती रहीं. पंजाब और हरियाणा में पराली जलाए जाने एवं स्मॉग फॉग यानी धुआं युक्त कोहरा के कारण राजधानी में प्रदूषण के उच्चतम स्तर पर पहुंच के लिये सम-विषम योजना लागू करना कैसे युक्तिसंगत हो सकता है? सम-विषम योजना पर अड़े रहने का आप सरकार का फैसला वायु प्रदूषण के खिलाफ किसी वैज्ञानिक एवं तार्किक उपाय के बजाय उसकी अक्षमता, अपरिपक्वता एवं हठधर्मिता का द्योतक हैं.

दिल्ली में 4 से 15 नवंबर के बीच सम-विषम योजना लागू होगी, इस अवधि में प्रदूषण के चिंताजनक स्तर तक बढ़ने के मद्देनजर आप सरकार की ओर से कई घोषणाएं की गयी हैं. दिल्ली सरकार ने प्रदूषण रोकने के लिए सात बिंदुओं के आधार पर कार्ययोजना बनाई है. इसमें दीपावली पर पटाखे न जलाने की अपील, कूड़ा और पेड़ों की पत्तियां जलाने पर रोक, धूल से बचाव, पेड़ लगाने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करने जैसे कदम भी शामिल हैं. लेकिन हकीकत यह है कि इनमें से एक भी उपाय अब तक कारगर साबित नहीं हुआ है. सड़क पर अगर वाहन कम चलें तो निश्चित रूप से एक सीमा तक वायु प्रदूषण को कम करने में मदद मिल सकती है, क्योंकि दिल्ली के वायु प्रदूषण से होने वाले प्रदूषण की भागीदारी चालीस फीसद है. यह कम नहीं है. ऐसे में अगर दिल्ली सरकार समय रहते एहतियात के तौर पर कदम उठा रही है तो यह उसकी जागरूकता को दर्शाता है. जाहिर है, दिल्ली की जिम्मेदारी संभाल रही सरकार का यह सबसे बड़ा फर्ज भी है कि वह प्रदूषण पर काबू करके इस शहर को रहने लायक बनाए. लेकिन सम-विषम योजना से दिल्ली की जनता को होने वाली परेशानियां पर ध्यान देना भी उसकी प्राथमिकता होनी चाहिए.

समस्या जब बहुत चिन्तनीय बन जाती है तो उसे बड़ी गंभीरता से नया मोड़ देना होता है. पर यदि उस मोड़ पर पुराने अनुभवों के जीए गये सत्यों की मुहर नहीं होती तो सच्चे सिक्के भी झुठला दिये जाते हैं. इसका दूसरा पक्ष कहता है कि राजनीतिक वाह-वाही की गहरी पकड़ में यदि आम जनता की सुविधाओं को बन्दी बना दिया जाये तो ऐसी योजना की प्रासंगिकता पर प्रश्न खड़े होने स्वाभाविक है. यह कदम कानून का पालन करने वाले नागरिकों का अपमान भी होगा जो प्रदूषण के लिए अपने वाहनों की नियमित जांच कराते हैं क्योंकि उन्हें आने-जाने और अपने बच्चों को स्कूल छोड़ने में समस्या होगी, अपने कार्यालयों एवं व्यवसाय-स्थलों, मरीजों को अस्पताल पहुंचाने एवं अन्य आपातकालीन स्थितियों में गंतव्य तक पहुंचने में दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा. इसीलिये सम-विषम योजना की घोषणा के साथ ही इसे लेकर सवाल भी उठने लगे हैं. सवाल सिर्फ योजना पर नहीं, बल्कि इसे लागू करने के पीछे दिल्ली सरकार की गंभीरता को लेकर ज्यादा है. केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नीतिन गडकरी ने यह कह दिया है कि प्रदूषण से निपटने के लिए सम-विषम योजना की कोई जरूरत नहीं है. केंद्र सरकार ने कई ऐसे कदम उठाए हैं जो प्रदूषण कम करने में सहायक होंगे. ऐसे में बड़ा सवाल फिर यही खड़ा होता है कि जहरीली हवा में हांफती दिल्ली को आखिर प्रदूषण से मुक्ति दिलाने का उपाय क्या है?

दिल्ली का प्रदूषण विश्वव्यापी चिंता का विषय बन चला है. कई अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ यहां तक कह चुके हैं कि दिल्ली रहने लायक शहर नहीं रह गया है. दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण से जुड़ी कुछ मूलभूत समस्याएँ मसलन आवास, यातायात, पानी, बिजली इत्यादि भी उत्पन्न हुई. नगर में वाणिज्य, उद्योग, गैर-कानूनी बस्तियों, अनियोजित आवास आदि का प्रबंध मुश्किल हो गया. विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली का प्रदूषण के मामले में विश्व में चैथा स्थान है. दिल्ली में 30 प्रतिशत वायु प्रदूषण औद्योगिक इकाइयों के कारण है, जबकि 70 प्रतिशत वाहनों के कारण है. खुले स्थान और हरे क्षेत्र की कमी के कारण यहाँ की हवा साँस और फेफड़े से संबंधित बीमारियों को बढ़ाती है. प्रदूषण का स्तर दिल्ली में अधिक होने के कारण इससे होने वाले मौतें और बीमारियां स्वास्थ्य पर गंभीर संकट को दर्शाती है. इस समस्या से छुटकारा पाना सरल नहीं है. हमें दिल्ली को अप्रदूषित करना है तो एक-एक व्यक्ति को उसके लिए सजग होना होगा, सरकार को भी ईमानदार प्रयत्न करने होंगे.

पिछले पांच सालों के दौरान दिल्ली में वाहनों की तादाद में सत्तानवें फीसद बढ़ोतरी हो गई. इनमें अकेले डीजल से चलने वाली गाड़ियों की तादाद तीस प्रतिशत बढ़ी. कभी सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद डीजल से चलने वाली नई गाड़ियों का पंजीकरण रोक दिया गया था, लेकिन सवाल है कि पहले से जितने वाहन हैं और फिर नई खरीदी जाने वाली गाड़ियां आबोहवा में क्या कोई असर नहीं डालेंगी? इस गंभीर समस्या के निदान के लिये दिल्ली सरकार को अराजनैतिक तरीके से जागरूक रहने की जरूरत है. दिल्ली में प्रदूषण और इससे पैदा मुश्किलों से निपटने के उपायों पर लगातार बातें होती रही हैं और विभिन्न संगठन अनेक सुझाव दे चुके हैं. लेकिन उन्हें लेकर दिल्ली सरकार की कोई ठोस पहल अभी तक सामने नहीं आई है. हर बार पानी सिर से ऊपर चले जाने के बाद कोई तात्कालिक घोषणा होती है और फिर कुछ समय बाद सब पहले जैसा चलने लगता है.

हर साल दिल्ली में नवंबर-दिसंबर में प्रदूषण की मात्रा बेहद खतरनाक स्थिति तक पहुंच जाती है. इसके दो बड़े कारण है. एक पंजाब और हरियाणा के खेतों में पराली जलाए जाने से निकलने वाला धुआं दिल्ली की ओर आना और दूसरा कारण दिल्ली में वाहनों से निकलने वाला धुआं. राजधानी दिल्ली में अब भी लाखों ऐसे वाहन हैं जिनकी पंद्रह साल की अवधि समाप्त हो चुकी है, लेकिन सड़क पर बेधड़क दौड़ रहे हैं. पिछले चार साल में दिल्ली सरकार के परिवहन विभाग ने ऐसे वाहन मालिकों के खिलाफ शायद ही कोई कार्रवाई की होगी. जहां तक दिपावली पर पटाखे फोड़ने का सवाल है, सुप्रीम कोर्ट पहले ही पाबंदी लगा चुका है. लेकिन लोगों पर इसका कोई असर नहीं दिखा. दिल्ली के ज्यादातर इलाकों में कूड़ा जलता देखा जा सकता है. राजधानी में कूड़े के जो पहाड़ खड़े हैं, उनको हटवाने के लिए पिछले चार साल में क्या कोई बड़ा फैसला हुआ?

सवाल यह भी है कि क्या कुछ तात्कालिक कदम उठा कर दिल्ली में प्रदूषण की समस्या से पार पाया जा सकता है? लेकिन यहां मुख्य प्रश्न बढ़ते प्रदूषण के मूल कारणों की पहचान और उनकी रोकथाम संबंधी नीतियों पर अमल से जुड़े हैं. दिल्ली में वाहन के प्रदूषण की ही समस्या नहीं है, हर साल ठंड के मौसम में जब हवा में घुले प्रदूषक तत्वों की वजह से जन-जीवन पर गहरा असर पड़ने लगता है, स्मॉग फॉग यानी धुआं युक्त कोहरा जानलेवा बनने लगता है, तब सरकारी हलचल शुरू होती है. विडंबना यह है कि जब तक कोई समस्या बेलगाम नहीं हो जाती, तब तक समाज से लेकर सरकारों तक को इस पर गौर करना जरूरी नहीं लगता.

सम-विषम योजना 2016 में दो बार लागू की गई थी. जिस पर दिल्ली सरकार का दावा था कि सम-विषम लागू करने से प्रदूषण दस से बारह फीसद की कमी आई थी. जबकि कुछ अध्ययनों में यह सामने आया कि इससे हवा में मौजूद घातक कण पीएम 2.5 और कार्बन की मात्रा बढ़ गई थी. योजना लागू करनी है तो सख्ती से की जानी चाहिए, सिर्फ वाहवाही बटोरने के लिए नहीं. हमें हमेशा ऊपर से नियमों को लादने के बजाय जनता को जागरूक करने पर जोर देना चाहिए. और उनकी भागीदारी बढ़ाने की कोशिश करनी चाहिए. तभी नीतियां असर दिखाएंगी और तभी आम-जनता का शासन के प्रति विश्वास कायम रहेगा, तभी समस्या का हल होगा. प्रेषकः

ललित गर्ग

झारखंड में बांस से हो रहा है विकास

हरा सोना के नाम से मशहूर बांस खेती सदैव फायदे का सौदा साबित हुई है. यह वह फसल है जो बंजर जमीन को भी उपजाऊ बना देती है. 18 सितंबर को विश्व बांस दिवस मनाया जाता है. इसे पृथ्वी पर सबसे टिकाउ मेटेरियल माना जाता है. वैज्ञानिकों का मानना है कि अन्य वनस्पितियों की तुलना में बांस में ऑक्सीजन की मात्रा 35 प्रतिशत अधिक है. बांस के माध्यम से टिकाउ विकास एवं हरित भारत की परिकल्पना को भी साकार किया जा रहा है. यह संसार का एकमात्र पौधा है जो किसी भी वातावरण में तेजी से उन्नति करता है. अपने इसी गुण के कारण इसे उन्नति का प्रतीक और समृद्धि देने वाला पौधा माना जाता है. फेंगशुई में बांस के पौधे को दिव्य पौधा कहा जाता है. भारतीय समाज में भी बांस को शुभ माना गया है.

भारत के जिन राज्यों में बांस का सबसे अधिक उत्पादन होता है उनमें झारखंड भी प्रमुख है. आदिवासी बहुल यह राज्य वनों से घिरा हुआ है. इंडिया स्टेट फॉरेस्ट रिपोर्ट के अनुसार झारखंड में 23,478 वर्ग किमी में वन फैला हुआ है. झारखंड सरकार की योजना है कि बांस के उत्पाद से आदिवासियों की जीवन शैली में बड़ा बदलाव लाया जा सकता है. इसके लिए राज्य सरकार कई योजनाओं पर काम कर रही है. एक तरफ जहां बांस का उत्पादन बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है वहीं दूसरी ओर कारीगरों को हुनरमंद बनाकर स्वरोजगार के लिये प्रेरित किया जायेगा. तीन साल में बांस के पेड़ बढ़ते हैं, उसका विकास तेजी से होता है.

आज झारखंड में पैदा होने वाले बांस की मांग पूरे विश्व में बढ़ी है. इसी मांग को देखते हुए झारखंड सरकार की ओर से पहली बार बांस कारीगर मेला 2019 का दो दिवसीय आयोजन उपराजधानी दुमका में किया जा रहा है. झारखंड में 4470 स्कावयर किलोमीटर क्षेत्र में बांस का उत्पादन होता हैं, यहां 2520 मिलीयन टन बांस का उत्पादन होता है. पूरे देश का आधा बांस झारखंड में पाया जाता है, यहां के बंबुसा टुलडा, बंबुसा नूतनस और बंबुसा बालकोआ की मांग विश्व भर में है. बंबूक्राफ्ट राज्य का प्रमुख उधोग बन चुका है,लगभग 500 प्रकार के उत्पाद बांस के बन रहे हैं, जो अन्य प्रदेशों में भेजे जा रहे हैं, जिस्से 50 लाख की आय प्रतिवर्ष सरकार को हो रही है. उद्योग विभाग के सचिव के रवि कुमार बताते हैं कि झारखंड सरकार वर्ष 2022 तक ग्रामीण क्षेत्रों में रह रहे लोगों को गरीबी से मुक्त कर उनकी आय दोगुनी करने जा रही है. उन्होंने बताया कि वन आधारित उत्पादों के माध्यम से लोगों को रोजगार मुहैया कराने की दिशा में प्रयास किये जा रहे है. राष्ट्रीय बांस मिशन और झारखंड राज्य बांस मिशन के प्रयास से बांस के उत्पादन, लघु एवं कुटीर उघम एवं हस्तशिल्प को बढ़ावा देने का काम किया जा रहा है. किसानों के जीवन स्तर में हरित भारत, सतत एवं टिकाउ विकास की संकल्पना के माध्यम से बांस आधारित उधोग से रोजगार की दिशा में प्रयास सरकार की ओर से किये जा रहे है.

राज्य में मोहली परिवारों की संख्या लाखों में है जो परंपरागत रूप से बांस के उत्पादन टोकरी, सूप, डलिया सहित कई सामग्री वर्षों से परंपरागत रूप से बना रहे हैं और अपनी आजिविका चला रहे है. मोहली परिवारों को बंबूकाॅफ्ट की ओर से प्रशिक्षण दिया जा रहा है. बांस कारीगर मेला 2019 में देशभर से दस हजार कारीगर जुटेंगें, जिन्हें प्रशिक्षण के साथ टिकाउ विकास के बारे में बताया जायेगा. देशभर के निवेशकों को बांस आधारित उधोग के बारे में बांस कारीगर मेला में बताया जायेगा. कारीगर मेला में आईकिया, टाईफेड, फैब इंडिया, ईसाफ सहित कई संगठन असम, त्रिपुरा, दिल्ली, मेघालय सहित कई राज्यों से जुटेंगें. झारखंड में कारीगर मेला का आयोजन मुख्यमंत्री लघु एवं कुटीर उघम विकास बोर्ड, उधोग विभाग, झारखंड राज्य बंबू मिशन, झारक्राफॅट और जेएसएलपीएस मिलकर कर रहा है. झारखंड में इससे पहले मोमेंटम झारखंड का भी आयोजन किया जा चुका है.

राज्य के प्रत्येक जिला में बांस बहुतायत मात्रा में पाया जाता है, जिससे रोजगार की संभावना बढ़ी है. राज्य में बांस के क्षेत्र में संभावना है, कृषि से लेकर उर्जा के वैक्ल्पिक स्त्रोत की संभावना बनी है. बांस आधारित सामानों के उत्पादन के विपणन की समस्या नहीं है, मल्टीनेशनल कंपनी सामग्री खरीदने को तैयार है. बांस से बने उत्पादों जैसे सोफा सेट, टेबल, बैग और दैनिक उपयोग की कलात्मक सामग्रियों की मांगें हाल के दिनों में काफी बढ़ी हैं, जिससे इनका विश्व व्यापार भी बढ़ा है.

गैर सरकारी संस्था ईसाफ के अजित सेन बताते हैं कि राज्य के सभी जिलों में बांस का उत्पादन होता आ रहा है, संताल परगना में सर्वाधिक बांस का उत्पादन होता है. इसके अतिरिक्त गोड्डा, साहिबगंज, पाकुड, दुमका, जामताड़ा, जमशेदपुर, हजारीबाग, खुटी, गुमला, रांची रामगढ़ जिला में बहुतायत मात्रा में बांस उपलब्ध है. वे बताते हैं कि मुख्यमंत्री लघु एवं कुटीर उघम विकास बोर्ड द्वारा कारीगरों के कल्सटर बनाकर उन्हें प्रोत्साहित किया जा रहा है. एक कल्स्टर में लगभग दो सौ कारीगर होते हैं, राज्य में लगभ हजार कल्सटर बन चुके हैं. कारीगरों के लिये प्रोडयूसर ग्रुप भी बना है, कारीगरों को दक्ष करने के उद्देश्य से उन्हें प्रशिक्षण भी दिया जाता है. खास बात यह है कि झारखंड में बांस से बने उत्पादों की मांग यूरोप और मिडिल ईस्ट में होने लगी है.

बांस उत्पादों की बढ़ती मांग को देखते हुए कारीगरों को आधुनिक तरीके सिखाये जा रहे हैं ताकि उन्हें अधिक से अधिक रोजगार मिल सके. बांस के कारीगर संतोष मोहली, काशीनाथ मोहली, जोसेफ मोहली, बबिता कुमारी, मार्शिला हेम्ब्रम बताती हैं कि वे प्रति माह दस हजार रूपये इस रोजगार से कमा लेती हैं. झारखंड में गरीबों के आय बढ़ाने की दिशा में सरकार प्रयासरत है, कारीगरों को प्रशिक्षित कर कई नये प्रकार के उत्पाद बनने लगे हैं. सहायक उधोग निदेशक सुधीर कुमार सिंह बताते हैं कि बांस कारीगर मेला 2019 के आयोजन के बाद इस क्षेत्र में राज्य का नाम और बढ़ेगा. उन्होंने बताया कि इस मेला में बिजनेस डेलिगेशन की टीम भी आ रही हैं, जिससे कारीगरों को लाभ मिलेगा. नेशनल बंबू मिशन बांस की खेती के लिये पीपी मोड और मनरेगा अंर्तगत बांस के प्लांटस लगायेगा.

झारखंड के आदिवासी अब रोजगार के लिये बंगाल पलायन नहीं करेंगें, बांस से उन्हें घर में ही रोजगार उपलब्ध हो सकेगा. बंबू कुटीर उद्योग के माध्यम से उनकी जीवन में बदलाव आने की संभावना है. झारखंड वन प्रदेश है जहां प्रकृति ने उन्हें बहुत कुछ दिया हैं. बांस से रोजगार की अपार संभावना बनती जा रही है.

शैलेन्द्र सिन्हा

मलखान सिंह की कविताएं पाखंडवाद को ध्वस्त करके सामाजिक बदलाव की मांग करती हैं

“मलखान सिंह की कविताएं पाखंडवाद को ध्वस्त करके सामाजिक बदलाव की मांग करती हैं”मलखान सिंह हिन्दी दलित साहित्य (कविता) में समावेशी तेवर के रचनाकार थे. उनकी कविता विद्रोही स्वर में होते हुए भी समाज को समरसता का संदेश देती है. सामाजिक चेतना का स्वर उनकी कविताओं में बहुत बारीकी से दर्ज़ हुई है. वे इतिहास के गलियारों से गुजरते हुए उन सभी भौतिक वस्तुओं की तरफ जाते हैं जहां पर तथा कथित हिन्दी के कवि जाने से डरते हैं. उनकी कविताएं सामाजिक यथार्थ का विवरण इस तरह पेश करती हैं जैसे इतिहास की कोई किताब हो, और किताब हो क्यों न ? उन्होंने सामाजिक गैरबराबरी जो देखा/झेला है. उनकी कविता की बस्ती में निम्न वर्गों की जीवन गाथा दर्ज़ है. शोषण-दमन का लेखा-जोखा बहुत ही स्पष्ट रूप में आया है. उनका कवि कर्म उनके इर्द-गिर्द घटती हुई घटनाओं का आख्यान है, जिसमें इतिहास है, वर्तमान है और भविष्य भी. उन्होंने अपनी कविता का जनतंत्र जिस तरह से बुना है वह देखते ही बनता है. गाँव के दक्षिण से लेकर बाकी तीनों दिशाओं का विवरण ऐसे पेश करते हैं कि समाज शास्त्री बौनें दिखने लगते हैं. मलखान सिंह की काव्य दृष्टि अत्यंत पीड़ादायी परिस्थितियों को देखकर बनी है. वे अपनी कविताओं में जाति के प्रश्न को लेकर बार-बार टकराते हैं. प्रश्न भी करते हैं कि, क्या इस देश हमारी पहचान केवल हमारी जाति से ही तय होगी? वह यह भी कहते हैं, क्या हम इंसान नहीं हैं? हमारे साथ इन्सानों जैसा व्यवहार क्यों नहीं किया जाता? ‘मैं आदमी नहीं हूँ (2)’ कविता का एक अंश देखिये-

मैं आदमी नहीं हूँ स्साब जानवर हूँ दोपाया जानवर जिसे बात-बात पर मनुपुत्र- माँ चो- बहन चो- कमीन कौम कहता है.”

कवि ने इस प्रश्नवाचकता से ‘तथा कथित’ मानव समाज से प्रश्न करता है. खुद को जानवर कहकर मानव समाज पर चोट करता है. इस प्रसंग को लेकर डॉ. अम्बेडकर बरबस याद आते हैं जहाँ उन्होंने सामाजिक असमानता को लेकर प्रथम गोलमेज सम्मलेन में इसकी उपस्थिति दर्ज कराते हुए उप-समिति संख्या 3 (अल्पसंख्यक) की दूसरी बैठक 31 दिसम्बर 1930 को सदन के समक्ष सामाजिक-राजनीतिक जीवन पर बोलते हुए कहा कि, “महोदय! सर्वप्रथम मैं आपका ध्यान इस तथ्य की ओर दिलाना चाहता हूँ कि, भारत में अनेक अल्पसंख्यक वर्ग हैं, जिनकी अपनी राजनीतिक पहचान होनी चाहिए, किन ये सभी अल्पसंख्यक वर्ग एक जैसे नहीं हैं, इनमें अनेक असमानताएं हैं, एक दूसरे से भिन्नताएं हैं. प्रत्येक अल्पसंख्यक वर्ग कि सामाजिक है सियत अलग-अलग है. उदाहारण के लिए भारत का सबसे छोटा अल्पसंख्यक वर्ग है, पारसी समुदाय. इस समुदाय की सामाजिक है सियत बहुसंख्यकों की सामाजिक है सियत से कम नहीं है. दूसरी ओर दलित वर्ग है. देश के सबसे बड़े अल्पसंख्यक समुदाय, अर्थात मुस्लिम समुदाय के बाद दूसरे नम्बर पर आने वाला अल्पसंख्यक वर्ग! इस समुदाय की सामाजिक है सियत एक अदना आदमी की हैसियत से भी गई गुजरी है.”2 दरअसल, अंबेडकर के इस कथन को मलखान सिंह के काव्य दृष्टि में देखी जा सकती है. जिसमें वह निम्न वर्गों की वकालत करते हुए नजर आते हैं. असल में कवि का जो मूल कर्तव्य होता है वह मलखान सिंह की काव्य दृष्टि में निहित है. कवि का धर्म ही यही होना चाहिए कि सामाजिक यथार्थ को ही काव्य का विषय बनाया जाए. अपने समय के सवालों से मुठभेड़ करे. जनता के पक्ष में खड़ा हो. सामाजिक सौहार्द बनाए रखे. उसकी कविता में समाज को आगे ले जाने लिए ‘विजन’ हो, जिससे विकृत व्यवस्था में बदलाव लाया जा सके. तभी वह कवि अपने समय से आगे निकल कर बड़ा कवि बनता है. इस तरह का ‘विजन’ मलखान सिंह की कविताओं की ख़ासियत है.

मलखान सिंह ने अपनी कविता का फ़लक व्यापक करते हुए उदारवादियों की जमकर आलोचना की है. नेताओं की भतर्सना की है. लोकतंत्र पर प्रश्न किया है. शिक्षा, स्वास्थ्य और देश की विभिन्न चीजों पर उनका ही कब्ज़ा है, जो आज के समय का जवलंत मुद्दा बना हुआ है. कवि इस विषय को लेकर बहुत पहले ही चिंचित हो गया था, इसलिए वहअपने और निम्न समुदाय के होने/रहने पर विचार करते हैं और कहते हैं कि धरती का कोई कोना हमारे लिए नहीं है? उदाहरण के तौर पर ‘कैसा उदारवाद यह’ कविता का एक अंश देखिये-

“आज ! देश की शिक्षा देश की चिकित्सा देश के बाज़ार आकाश-पाताल धरती की कोख तक बस उन्हीं की सत्ता है”3

मलखान सिंह सवाल करते हैं कि लोकतंत्र में जहाँ सब की भागीदारी सुनिश्चित होनी चाहिए, उसी लोकतंत्र में अभी भी एकमात्र सच्चाई जाति ही क्यों है? क्यों दलितों को उनकी जाति से ही पहचाना जाता है? जाति को देखकर क्यों उनके प्रति दुर्व्यवहार किया जाता है? कवि इस भेदभाव को बहुत बारीकी से पकड़ता है. अपनी अस्मिता को संकट ग्रस्त होते हुए देखता है. दूसरे शब्दों में कहा जाए तो अपने ही देश में उसको तथा कथित समाज के लोगों द्वारा उसके पहचान को ‘इगनोर’ किया जा रहा है. जिस लोकतंत्र में व्यक्ति की महत्ता को केंद्र में रखा जाना चाहिए वहाँ पर इस तरह का दुर्व्यवहार करना किस सभ्यता का द्योतक है? फ्रांस की क्रांति में असमानता की भेद को मिटाने के लिए ही क्रांति हुई थी और समता, स्वतंत्रता और बंधुत्व का नारा लगाया गाया. इन्हीं तीन मुख्य विंदुओं को हमारे यहाँ संविधान के केंद्र में रखा गाया है, जिससे आधुनिक भारत में सबको समता, सम्मान और पहचान मिल सके. सबको अपना अधिकार मिल सके. कवि चिंतित है वह इसलिए कि उसे समानता और स्वतंत्रता के सारे उपकरण खोखले लगते हैं. इसका आशय यह नहीं कि वह देश और देश के संविधान में विश्वास नहीं रखना चाहता बल्कि यहाँ कि आवाम जो अपने बुद्धि विलाप के चलते निम्न वर्गों के साथ जिस तरह का रुख अपनाती है उसको लेकर चिंतित है. इसलिए वह कहता है कि मेरी पहचान केवल जाति से होती है, मेरी प्रतिभा से नहीं, मेरे नाम से नहीं. एक उदाहरण ‘फटी बंडी’ कविता से देखिये –

“मैं अनामी हूँ अपने इस देश में जहाँ-जहाँ भी रहता हूँ आदमी मुझे नाम से नहीं जाति से पहचानता है और जाति से सलूक करता है.”4

बावजूद इसके इन तमाम प्रश्नों से टकराते हुए कवि आगे बढ़ता है और ‘सुनो ब्राह्मण’ कविता में कहता है कि,

“हमारी दासता का सफ़र तुम्हारे जन्म से शुरू होता है और इसका अंत भी तुम्हारे अंत के साथ होगा.”5

इस कविता में कवि अपने विचार को धारदार तौर प्रयोग करता है. वह यह जनता है कि प्रतिरोध से ही समाज में समाजिकता/बदलाव लायी जा सकती है, क्योंकि समाज का एक धड़ा ऐसा है जो सुनता नहीं. बावजूद इसके कवि इन विसंगतियों से अपने को निराश/हताश नहीं पाताबल्कि भविष्य के लिए आत्मज्ञान और संबल प्रदान करता है. आत्मविश्वास को बढ़ाता है. कवि अपनी कविताओं में बिना किसी समुदाय को अलग किए हुए सबकी समानता की बात करता है. देश और देश के बाहर के लोगों को भी अपना मानता है. एक कविता ‘छत की तलाश’ का उदाहरण देखिये-

“मकां ऐसा बनाऊँगा जहाँ हर होठ पर बंधुत्व का संगीत होगा मेहनतकश हाथ में- सब तंत्र होगा बाजुओं में दिग्विजय का जोश होगा. विश्व का आँगन हमारा घर बनेगा. हर अपरिचित पाँव भी अपना लगेगा.”6

कवि यहीं नहीं रुकता वह अंधविश्वास पर गहरा चोट करता है और पंड्डे-पुरोहितों के द्वारा फैलाये गए भ्रम पर सवाल खड़ा करता है. वह ईश्वर के होने पर सवाल करता है. उसके द्वारा बनाए गए सिद्धांतों पर सवाल करता है. जिस ईश्वर का सहारा लेकर पुरोहितों ने समाज में असमानता का बीज बोया है उसकी खबर लेते हुए उनके मुँह का रंग बदल देता है और यह भी कहता है कि तुम्हारी पाखंडी सत्ता के सामने हम झुकने वाले नहीं. बल्कि उसका सामना करने वाले लोग हैं. यह चेतना या स्वाभिमान दलित समाज के ऐतिहासिक गौरव का स्मरण करवाता है. हमें इतिहास में अपने होने/लड़ने की याद दिलाता है. स्वाभिमान से जीने की चेतना का भान कराता है, एकदम कबीर के भाँति. यह कहने में तनिक भी गुरजे नहीं है कि मलखान सिंह कातेवर धर्म के विरुद्ध नहीं है. पाखंड के विरुद्ध नहीं है. वे अपनी बेबाक तेवर से वह धरती को नरक बनाने वालों की कुटिलता को उगाजर करते हैं. उनके दुराचारों की व्याख्या करते हैं, जो दलित समाज को चेतनाहीन बना देना चाहते थे, जिससे उनकी खोखली सत्ता को ढहाया न जा सके. एक उदाहरण ‘ज्वालामुखी के मुहाने’ कविता से देखिये-

“हमें अन्धा हमें बहरा हमें गूंगा बना गटर में धकेल दिया ताकि चुनौती न दे सकें तुम्हारी पाखंडी सत्ता को.”7

लेकिन इस पाखंडी समाज को यह कहाँ ज्ञान है कि ज्वालामुखी अर्थात दलित समाज को कोई पाट सकता है? क्या कोई इस समाज क रोक सकता है? इसी कविता कि अगली कड़ी में देखिये कि कवि ने किस तरह ब्राह्मणों की खबर ली है.

“मदान्ध ब र ह म न धरती को नरक बनाने से पहले यह तो सोच ही लिया होता कि ज्वालामुखी के मुहाने कोई पाट सकता है जो तुम पाट पाते !”8

इस तरह देखा जाए तो यह बात कही जा सकती है कि मलखान सिंह की कविताओं में जो चेतना शील दृष्टि है, वह दृष्टि शोषित-पीड़ित समुदाय का प्रतिनिधित्व करती है. जनता की सच्चाई जनता के सामने प्रस्तुत करती है. जैसे संत कबीरदास और संत रविदास ने प्रस्तुत की है. मलखान सिंह के यहाँ विचारों को लेकर कोई अंतर्विरोध नहीं है. परंपरा का अनुसरण उनकी कविता का मुख्य विंदु है. उनके यहाँ कबीर, रविदास, ज्योतिबा फुले और अंबेडकर के विचार प्रथम स्थान पाते हैं. वे पूरे साफगोई के माध्यम से भाषा में सहजता बरतते हुए जनता की भाषा में अपनी कविता कहते हैं. बोझिलता उनके यहाँ दूर-दूर तक नहीं है. सामान्य मनुष्य अपनी पीड़ा को उनकी कविताओं में देख सकता है. अत्याचारी और पाखंडी उनकी कविताओं से सीख ले सकता है, जिससे समाज में समन्वय और बन्धुत्व कायम रखा जा सके. मलखान सिंह की कविता इसी कि तसदीक करती है. संदर्भ सूची- 1. मलखान सिंह, सुनो ब्राह्मण, रश्मि प्रकाशन, लखनऊ, पृ. सं. 65,2018. 2. बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर, सम्पूर्ण वांग्मय, खंड-5, पृ. सं. 43. 3. मलखान सिंह,ज्वालामुखी के मुहाने,रश्मि प्रकाशन,लखनऊ,पृ. सं. 7, 2019. 4. मलखान सिंह,सुनो ब्राह्मण,रश्मि प्रकाशन,लखनऊ,पृ. सं. 75, 2018. 5. वही,पृ. सं. 100, 2018. 6. वही,पृ. सं. 84, 2018. 7. मलखान सिंह,ज्वालामुखी के मुहाने,रश्मि प्रकाशन,लखनऊ,पृ. सं. 40, 2019. 8. वही,पृ. सं. 40, 2019.

सुमित कुमार चौधरी शोधार्थी- जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय

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दलित दस्तक मैग्जीन का जुलाई 2019 अंक ऑन लाइन पढ़िए

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[flipbook pdf=”https://www.dalitdastak.com/wp-content/uploads/2019/09/July_2019.pdf” height=”1000″ singlepage=”true”] दलित दस्तक मासिक पत्रिका ने अपने सात साल पूरे कर लिए हैं. जून 2012 से यह पत्रिका निरंतर प्रकाशित हो रही है. मई 2019 अंक प्रकाशित होने के साथ ही पत्रिका ने अपने सात साल पूरे कर लिए हैं. हम आपके लिए आठवें साल का दूसरा अंक लेकर आए हैं. अब दलित दस्तक मैग्जीन के किसी एक अंक को भी ऑनलाइन भुगतान कर पढ़ा जा सकता है.

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शॉट पूरा करने के बाद मैं दिल खोलकर रोया – पा. रंजीत

निर्देशक पा. रंजीत के कार्यालय का स्‍वागत कक्ष एक पुस्‍तकालय सरीखा दिखता है. यह दीवारों पर लगे फिल्‍मी पोस्‍टरों से प्राय: शेखी बघारने वाले कोडम्‍बक्‍कम जैसे तमिल निर्देशकों के कार्यालयी स्‍थलों की चिल्‍लपों से बहुत दूर है. यहाँ पुस्‍तकों की अलमारियों में अंबेडकर, पेरियार और मार्क्‍स एक-दूसरे के साथ समय गुजारते हैं. कोने में एक कैरमबोर्ड है जिसका इस्‍तेमाल उनके सहायक निर्देशक मन बहलाव और गंभीर चिंतन-मनन के लिए करते हैं. उस स्‍थान पर एक भी मूवी पोस्‍टर नहीं है. न ही स्‍वयं उन्‍हीं के चित्र वहाँ हैं. रंजीत कंधे उचकाते हैं कि ‘ठीक ही तो है, यह सब (फिल्‍में) मेरे विषय में कभी था ही नहीं’ वे न सिर्फ तमिल सिनेमा की महत्‍वपूर्ण आवाज़ के रूप में उभरे हैं अपितु जातिवाद के विरुद्ध एक स्‍वर के रूप में भी उभरे हैं.

पिछले कुछ सप्‍ताह रंजीत के लिए व्‍यस्‍तता भरे रहे हैं- ग्‍यारहवीं सदी के तमिल शासक राजा राजा चोलन के ऊपर उनकी टिप्‍पणियों ने कुछ लोगों को नाराज कर दिया. हमारे मिलने से सिर्फ एक दिन पहले ही उन्‍हें सशर्त अग्रिम जमानत मिली थी. जैसे ही हम बातचीत के लिए बैठते हैं, वे कहते हैं कि ‘पुढु अनुभवम्’ (नया अनुभव है). श्रीनिवास रामानुजम् द्वारा ‘दि हिंदू’ के लिए उनके साथ की गई इस बातचीत का हिंदी अनुवाद इस प्रकार है-

आपने अभी राजा राजा चोलन का विषय क्‍यों उठाया ?

– मैं उस स्‍थल (थंजावुर) के कारण उनके बारे बोला था और इसलिए भी बोला था क्‍योंकि हर एक दावा करता है कि राजा उनकी जाति का था. मेरा मुख्‍य मुद्दा यह है कि उनके शासन के दौरान कामगार वर्ग के पास स्‍वयं की जमीन क्‍यों नहीं थीॽ मैंने जो कहा, वह मेरे द्वारा पढ़े गये के.के. पिल्‍लई, के.ए. नीलकंडा शास्‍त्री, पी.ओ. वेलसामी और नोवोरु करशिमा के लेखन पर आधारित है.

राजा राजा चोलन ने भव्‍य मंदिर बनवाये और उनकी दीवारों की नक्‍काशियों में नाइयों और धोबियों के नाम भी शामिल करवाये.

मंदिरों की वास्‍तुकला से मैं हतप्रभ हूँ. मुझे राजा के उस आयाम को लेकर कोई समस्‍या नहीं है. लेकिन यह उन्‍हीं का शासन है कि जाति ने अपना बदसूरत सिर उठाया. अलग-अलग जातियों के लिए अलग-अलग कब्रिस्‍तान भी होते थे. हो सकता है कि यह पहले से प्रचलन में रहा हो किंतु उनके शासन के दौरान यह एक मजबूत प्रथा बन गई. बहुत सी पुस्‍तकें इस ओर संकेत करती हैं.

निर्देशक पा. रंजीत

एक फिल्‍म निर्माता के लिए अपनी फिल्‍मों और फिल्‍मों के बाहर राजनैतिक होना क्‍यों महत्‍वपूर्ण हैॽ

जो मैंने जीवन से सीखा है, मुझे उसे लिपिबद्ध करना होता है. अपने कामकाज में और अन्‍यत्र जो मैं झेलता था, उसके बारे में मुझे बात करनी होती है. अपने बड़े होने के वर्षों से जाति के मुद्दे ने सर्वत्र मेरा पीछा किया है, चाहे यह पीछा किया जाना जश्‍न में रहा हो या निराशा में रहा हो, इसलिए जब मैं निर्देशक बन गया तो मुझे इसके बारे में बात करनी ही थी. ऐसा कोई रास्‍ता नहीं है कि मैं सिर्फ अपनी रचनात्‍मक प्‍यास बुझाने के लिए फिल्‍म बना सकूँ.

उदाहरण हेतु एक पेड़ लीजिए, या एक कुँआ लीजिए या एक खेल मैदान. मेरे गाँव के अधिकांश लोग इन्‍हें सौंदर्य की वस्‍तु या आनंद के स्‍थल के रूप में देखते थे किंतु मैं नहीं देखता था. कारण कि समाज मुझे बताता रहा था कि यह मेरा नहीं था. कोई कहता कि मैं एक दलित होने के कारण पेड़ पर नहीं चढ़ सकता था या कुएं का इस्‍तेमाल नहीं कर सकता था. मैंने सोचना जारी रखा कि कुछ चीजें जिनका इस्‍तेमाल हर एक के लिए बहुत आम होता है, वे मेरे लिए सुलभ क्‍यों नहीं होती थींॽ इसलिए आज जब मैं एक पेड़ या कुएं को फिल्‍माता हूँ तो मैं इसे सिर्फ कलात्‍मक नज़र से नहीं देख सकता; यह मेरे लिए एक भिन्‍न कहानी पेश करता है. मैं उस कहानी को सुनाने के लिए ही फिल्‍म निर्माता बनना चाहता हूँ.

आप निश्‍चय ही, उस कहानी को वैकल्पिक सिनेमा के माध्‍यम से सुना सकते हैं, किंतु वाणिज्यिक, बड़ी सितारा फिल्‍मों में ऐसा करते हुए चुनौतियाँ क्‍या हैंॽ

जब रजनी सर मेरे पास आये तो मैं जानता था कि ‘अट्टाकथि’ (2012) और ‘मद्रास’ (2014) जैसी मेरी यथार्थवादी फिल्‍में देखकर ही उन्‍होंने मेरा चयन किया था; अत: मैं इस बात को लेकर बिल्‍कुल आग्रही था कि काबली (2016) और काला (2018) उसी शैली में हों जिस शैली में मैं बहुत सहज था. वाणिज्यिक सिनेमा बहुसंख्‍यकों से बात करता है और यही कारण है कि मैं यहाँ रहूँगा. लेकिन लोग खरी चीज की सराहना करते हैं. और अपनी फिल्‍मों के साथ मैं निश्‍चय ही कह सकता हूँ कि मैंने अपने दर्शकों के साथ संवाद कायम कर लिया है. यह मुझे आगे बढ़ाना जारी रखेगा.

क्‍या कोई अविस्‍मरणीय घटना है जिसने आपको राजनैतिक होने की ओर प्रेरित कियाॽ

– यह मेरी जीवन शैली का हिस्‍सा था. पड़ोसी का बच्‍चा मुझे स्‍कूल में एक ग्‍लास पानी इसी तरह से सौंपता था. या दुकानदार मेरे हाथ में खुल्‍ला न रखकर उसे काउंटर पर छोड़ देता था. ऐसी बहुत सारी घटनाएँ हैं. जो सवाल मुझे उद्वेलित किये रहता था, वह था कि हम (दलित), समाज के साथ एकीकृत क्‍यों नहीं थेॽ ऐसा संभव है कि यह सवाल दूसरों के लिए तुच्‍छ रहा हो, किंतु यह गहराई तक मुझे व्‍यथित करता था.

आप अक्‍सर अपने बचपन की चीजों के विषय में बोलते हैं. क्‍या 2019 में चीजें बहुत ही ज्‍यादा अलग नहीं हैंॽ

– कैसे भिन्न हैॽ हमने अभी एक प्रधानाध्‍यापिका के विषय में सुना है जो बच्‍चों से शौचालय साफ करने को बोलती थी. एक निर्णय के बारे में सुना है जिसने इलवरासन की मृत्‍यु को आत्‍महत्‍या बताया. हम कैसे कह सकते हैं कि चीजें बदल गई हैं. हम तो आरक्षण को ही नहीं पचा सकते, लेकिन हम कहते हैं कि ‘‘यह नई दुनिया है. आओ जाति को भूल जायें और बराबर हो जायें.’’ लोगों से शताब्दियों के दमन को भूल जाने के लिए कहना भी एक हिंसा है. हमें इस पर बहस करने की और क्षतिपूर्ति करने की जरूरत है. अगर हम ऐसा नहीं करते हैं तो हम नहीं कह सकते कि चीजें बदल गई हैं.

उत्‍तरी मद्रास, मलेशिया, धारावी … आपकी फिल्‍में उन स्‍थानों पर आधरित होती हैं जहाँ दमित वर्गों के लोग होते हैं. घटना स्‍थल कैसे महत्‍वपूर्ण होता हैॽ

सब कुछ पृष्‍ठभमि ही होती है. अगर आप किसी गाँव में जाते हैं तो वहाँ के पोस्‍टरों, झंडों और मूर्तियों को देखें… वे वहाँ रहने वाले लोगों की कहानी कहते हैं. जब मैं किसी चरित्र को फिल्‍माता हूँ तो मैं विस्‍तार से (उसकी) पृष्‍ठभमि पर शोध करता हूँ क्‍योंकि मेरा मानना है कि यह अत्‍यधिक योगदान करती है. एक आकाशीय शॉट के बारे में विचार करें जहाँ आप एक गाँव देखते हैं जिसमें मुख्‍य इलाके से कुछ दूरी पर रहने वाले पचास परिवारों की एक बस्‍ती है. यह शॉट एकल दृश्‍य में ही सारी कहानी कह देता है.

आपके संवाद जबर्दस्‍त होते हैं, चाहे ‘गाँधी ड्रेस- अंबेडकर कोट’ वाला चुटकुला हो या ‘नीलम एंगल उरिमाइ’ हो. क्‍या आपको कभी यह डर लगता है कि वक्‍तव्‍य देने की बजाय ये पंचलाइन बनकर रह जायेंगे.

– मैं याद करता हूँ कि ‘गाँधी-अंबेडकर’ वाली पंक्ति लिखते हुए और रजनी सर के सामने नोट पैड रखते हुए मैं परेशान था कि वे क्‍या कहेंगे. वे चीख पड़े- ‘सुपर सर’, किंतु कुछ ऐसी चीज की तो मैं बिल्कुल भी उम्‍मीद नहीं कर रहा था. शॉट पूरा करने के बाद मैं शौचालय में गया और दिल खोलकर रोया. यह बहुत ही भावुक बात थी; मुझे लगा कि मैंने एक ताकतवर आवाज़ के साथ मुखर वक्‍तव्‍य दे दिया था.

आपकी फिल्‍मों में महिलाएँ बहुत मजबूत होती हैं. क्‍या हम शीघ्र ही महिला केंद्रित फिल्‍म की उम्‍मीद कर सकते हैंॽ

– जिन महिलाओं के इर्द-गिर्द मैं बड़ा हुआ, वे कामगार वर्ग की थीं. सिनेमा में जो मैंने देखा, वह कुछ ऐसा था जिसका अपने वास्‍तविक जीवन में मैंने कभी सामना नहीं किया था- दब्‍बूपन के साथ अपने पतियों के बगल में खड़ी महिलाएँ. मैंने अपने माता-पिता, मेरी जगह की महिलाओं और इस प्रकार के चरित्रों को कभी भी तमिल सिनेमा में फिल्‍मांकित नहीं देखा. यही कारण है कि मैं महिलाओं के लिए मजबूत चरित्र लिखता हूँ. मुझे दृढ़ता से लगता है कि अगर वे ज्‍यादा सशक्‍त हो जाती हैं तो वे समाज को सुधार सकती हैं. कारण कि ये वे ही हैं, जो बच्‍चों को बड़ा करती हैं, उन्‍हें बताती हैं कि किसके साथ घुलना-मिलना है और कैसे घुलना-मिलना है. मेरे पास पूरी तरह से महिला केंद्रित कुछ योजनाएँ हैं. पूर्णत: स्‍त्री के दृष्टिकोण से कही गई एक प्रेम कहानी है. मैं किसी दिन एक सुपर हीरो की कहानी फिल्‍माने की भी उम्‍मीद करता हूँ … वंडर वीमैन की तर्ज़ पर.

काला के क्‍लाइमेक्‍स में रंग के संदर्भ में महत्‍वपूर्ण उपपाठ था. आपके नाटकों में से एक का शीर्षक है मंजल. आप रंग के माध्‍यम से अवधारणाओं को समझाने का प्रयास करते हैं. क्‍या यह सफल होता हैॽ

– मेरा मानना है कि मैं सफल रहा हूँ. भारत के संदर्भ में रंग बहुत महत्‍वपूर्ण हैं. झंडे को लीजिए- कुछ लोग सोचते हैं कि केसरिया, हरा और सफेद क्रमश: हिंदुओं, मुसलमानों और ईसाइयों का प्रतिनिधित्‍व करते हैं. अंबेडकर समानता के व्‍यंजक एक रंग के रूप में नीले रंग की बात करते हैं. मैं इस सब को ‘काला’ के क्‍लाइमेक्‍स में रखना चाहता था. यह मूलत: एक लड़ाई वाला सिक्‍वेंस था, लेकिन मैं कुछ दार्शनिक सा सूचित करना चाहता था. वह यह कि अगर लोग इन तीन रंगों के नीचे एक साथ आ जाते हैं तो वे वर्चस्‍व के विरुद्ध संघर्ष कर सकते हैं और मेरा मानना है कि नीला चक्र इसी एकता को प्रतिबिंबित करता है.

पा. रंजीत, एक परिचय

  • चेन्नई में अवाडि के निकट एक गाँव में जन्‍म
  • चेन्‍नै के राजकीय ललित कला महाविद्यालय से स्‍नातक
  • 2012 में रोमांटिक कॉमेडी अट्टाकथि से निर्देशकीय आगाज
  • पहली गैर तमिल परियोजना- स्‍वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा पर आधारित जीवनी परक फिल्‍म पर काम जारी.
  • गंभीर रूप से प्रशंसित पेरियारम पेरुमाल (2018) का निर्माण
  • फिल्म फेयर अवार्ड फॉर बेस्ट डायरेक्टर (तमिल) के लिए नामित
  • नीलम कल्‍चर सेंटर नामक स्‍वयंसेवी संगठन के साथ काम करते हैं

इस इंटरव्यू को डॉ. प्रमोद मीणा, सहआचार्य, हिंदी विभाग, मानविकी और भाषा संकाय, महात्‍मा गाँधी केंद्रीय विश्‍वविद्यालय, जिला स्‍कूल परिसर, मोतिहारी, पूर्वी चंपारण, बिहार ने अनुवाद किया है.

दिल्‍ली को आज 10 साल बाद मिलने जा रही ये सुविधा, महिलाओं को होगा विशेष फायदा

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नई दिल्ली। क्लस्टर स्कीम में आने वाली एक हजार स्टैंडर्ड फ्लोर बसों की पहली खेप के तहत मंगलवार को 25 नई बसों को मंगलवार से दिल्ली के सड़कों पर उतारा जाएगा. मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल राजघाट डिपो से हरी झंडी दिखाकर इन्हें रवाना करेंगे. इन बसों में हाइड्रोलिक लिफ्ट, पैनिक बटन, सीसीटीवी कैमरे व जीपीएस जैसी सुविधाएं हैं. परिवहन मंत्री कैलाश गहलोत ने कहा कि दिल्ली में करीब दस साल के बाद नई बसें आई हैं. स्टैंडर्ड फ्लोर बसों की पहली खेप द्वारका सेक्टर 22 डिपो के लिए होगी.

खास हैं ये बसें

37 सीटों वाली इन बसों में 14 पैनिक बटन और 3 कैमरे लगे हैं. नारंगी रंग की इन बसों को क्लस्टर स्कीम के तहत चलाया जाएगा. अभी जो बसें चल रही हैं, उनमें 41 सीटें हैं. परिवहन विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि सभी बसों में दिव्यांगों को व्हील चेयर सहित चढ़ाने के लिए हाइड्रोलिक लिफ्ट लगाई गई है, इस वजह से 4 सीटें कम की गई हैं.

इसके अलावा बस में दोनों तरफ 7-7 पैनिक बटन हैं. इसके साथ ही तीन कैमरे लगाए गए हैं. 2 कैमरे बस के अंदर लगाए गए हैं और एक कैमरा बस की पीछे की तरह लगा है ताकि चालक को बस के पीछे आती गाड़ियों के बारे में पता चल सके. इससे सड़क हादसों को रोकने में मदद मिलेगी. इससे कंट्रोल रूम में स्क्रीन पर पता चल जाएगा कि कौन सी नंबर की बस है और कहां पर है.

दिल्ली सरकार की योजना 4 हजार बसें लाने की है, जिनमें एक हजार बसें हाइड्रोलिक लिफ्ट वाली हैं. इसके अलावा डीटीसी की एक हजार बसें आएंगी. एक हजार लो फ्लोर एसी सीएनजी बसें और एक हजार लो-फ्लोर एसी इलेक्ट्रिक बसें आनी हैं.

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आरक्षण को ले भागवत के बयान पर सियासत: मनोज झा ने दी चेतावनी- आग से मत खेलें

पटना। राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत के आरक्षण  पर चर्चा को लेकर दिए बयान पर बिहार में सियासत तेज हो गई है. इस मुद्दे पर राष्‍ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में भारतीय जनता पार्टी के सहयोगी जनता दल यूनाइटेड  ने विपक्षी महागठबंधन के साथ सुर मिलाया है. राष्‍ट्रीय जनता दल सांसद मनोज झा ने भागवत को आग से नहीं खेलने की चेतावनी दी है.

विदित हो कि आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने रविवार को कहा था कि आरक्षण के पक्ष व विपक्ष के लोगों के बीच सद्भावपूर्ण माहौल में बातचीत होनी चाहिए. आरक्षण पर चर्चा हर बार तीखी हो जाती है. हालांकि, इसपर समाज के विभिन्न वर्गों में सामंजस्य की जस्‍रत है.

मोहन भागवत के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए आरजेडी सांसद मनोज झा ने कहा कि यह आग से खेलने की कोशिश है. ऐसा हुआ तो लोग सड़कों पर उतरेंगे और सौहार्दपूर्ण माहौल की चर्चा ही खत्म हो जाएगी. केवल बहुमत के आधार पर सभी बातों को नकारा नहीं जा सकता है. आरक्षण की मंजिल अभी दूर है. उन्‍होंने कहा कि संसदीय बहुमत और नैतिकता में काफी फर्क है. देश का संविधान नैतिकता व बहुमत की नोंक पर है.

मनोज झा ने कहा कि आरक्षण पर चर्चा में दिक्कत है, क्‍योंकि देश में सौहार्दपूर्ण माहौल है ही नहीं. पिछड़ों और आदिवासियों को अभी तक उनका हक ही नहीं मिला है. आंशिक तौर पर जो मिला है, उसकी भी समीक्षा की बात की जा रही हैं. .इन इरादों और इशारों पर आपत्ति है.

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9वीं क्लास में देखा IAS बनने का सपना, ग्रेजुएशन पूरा होते ही पहली बार में क्रैक किया UPSC

सिविल सर्विस की परीक्षा में प्रतिष्ठा ममगाईं ने पहली बार में ही सफलता हासिल कर ली थी. प्रतिष्ठा हाई स्कूल और ग्रैजुएशन के दिनों से इस परीक्षा की तैयारी में जुट गईं थी. हालांकि उम्र कम होने की वजह से उन्हें परीक्षा में बैठने से पहले एक साल तक इंतजार करना पड़ा. प्रतिष्ठा कक्षा नवीं में थी जब उन्होंने तय कर लिया था कि उन्हें आईएएस बनना है.

दिल्ली की रहने वाली प्रतिष्ठा ममगाईं ने साल 2017 के सिविल सर्विस की परीक्षा में 50वीं रैंक हासिल की है. उन्हें ये सफलता ग्रैजुएशन पास करने के एक साल बाद ही प्राप्त हो गई थी. उनके मुताबिक कई छात्र हाई स्कूल या कॉलेज के दिनों से ही आईएएस बनाने का सपना देखते हैं, ऐसे में छात्रों को इस परीक्षा के लिए खुद को तैयार करना चाहिए. उन्होंने इस वीडियो के जरिए खास टिप्स शेयर किए हैं जिसके तहत कॉलेज में रहकर इस परीक्षा के लिए तैयारी कर सकते हैं.

इन बातों पर रखे खास ध्यान

  • सिलेबस के अनुसार पढ़े
  • बुकलिस्ट तैयार करें
  • परीक्षा की आवश्यकता को समझे
  • न्यूजपेपर पढ़ने की आदत डाले
  • आंसर राइटिंग की प्रक्रिया को समझे
  • अपनी योग्यिता को चेक करें

प्रतिष्ठा ममगाईं के मुताबिक यूपीएससी हर साल सिलेबस जारी करता है. ऐसे में अपनी तैयारी सिलेबस को देखते हुए करें. उसके बाद कैंडिडेट्स को एक बुक लिस्ट तैयार कर लेना चाहिए. जिसके तहत हर एक टॉपिक के लिए कौन सी बुक पढ़े. जैसे अगर इंटरनेट से पढ़ाई कर रहे हैं तो उसके लिए भी सोर्स मजबूत होना चाहिए है. ऐसे में अलग बुकलिस्ट तैयार कर लेने से चीजें आपको आसानी से मिलती जाएंगी.

कई बार यूपीएससी की परीक्षा को निकालने के लिए इसकी आवश्यकता को उम्मीदवार समझे. जैसे इस परीक्षा को निकालने के लिए अलग अलग पैटर्न होता है, जिसमें प्रीलिम्स, मेन्स और इंटरव्यू सब शामिल होते हैं. ऐसे में तीनों की आवश्यकता के हिसाब से पढ़ें. सबसे महत्वपूर्ण बात कि न्यूजपेपर जरूर पढ़े. प्रतिष्ठा ममगाईं के मुताबिक भले ही आप तैयारी करें या न करें, लेकिन आपको न्यूजपेपर जरूर पढ़ना चाहिए. न्यूजपेपर देखना और न्यूजपेपर पढ़ना ये एक अच्छी आदत है. जो कि आपको बेहतर नागरिक बनाता है. अगर आपके अंकर ये आदत नहीं है तो बनाए.

इस परीक्षा में लोग किसी भी तरह तैयारी कर नहीं निकाल सकते हैं, बल्कि इसकी स्ट्रटजी को समझना होगा. तभी इसे क्रैक किया जा सकता है कि कई बार लोगों के आंसर राइटिंग के फॉर्मेट सही नहीं होते हैं. आपको अपने आंसर को पेश करने का तरीका आना चाहिए. आखिर में अपको अपनी योग्यिता की समझ होनी चाहिए. जैसे आप किस साल में इस परीक्षा को देने के लिए योग्य है. उसके हिसाब से तैयारी करें.

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रघुराम राजन ने मंदी पर मोदी सरकार को किया सतर्क

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भारतीय रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कहा है कि अर्थव्यवस्था में जारी मंदी बहुत चिंताजनक है और सरकार को ऊर्जा क्षेत्र और ग़ैर बैंकिंग वित्तीय क्षेत्रों की समस्याओं को तुरंत हल करना होगा.

उन्होंने कहा कि निजी क्षेत्र में निवेश को बढ़ाने के लिए नए सुधारों की शुरुआत करनी होगी.

समाचार एजेंसी पीटीआई को दिए इंटरव्यू में रघुराम राजन ने कहा कि भारत में जिस तरह जीडीपी की गणना की गई है उस पर फिर से विचार करने की ज़रूरत है.

उन्होंने मोदी सरकार के पूर्व आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम के उस बयान का भी ज़िक्र किया जिसमें उन्होंने जीडीपी को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किए जाने की बात कही थी और अपना अनुमान पेश किया था.

साल 2018-19 में विकास दर 6.8 प्रतिशत हो गई थी जो 2014-15 के बाद सबसे कम है. कई निजी विशेषज्ञों और सेंट्रल बैंक का अनुमान है कि इस साल भी विकास दर 7 प्रतिशत के सरकारी अनुमान से कम रहने वाली है.

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भारतीय ऑटो सेक्टर में मंदी की आहट, दो दशकों में सबसे बड़ी गिरावट दर्ज

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सिआम वाहन बनाने वाली कंपनियों की संस्था है. उसकी रिपोर्ट के मुताबिक भारत में इस साल जुलाई महीने में वाहनों की बिक्री में पिछले साल की तुलना में 18.71% की गिरावट दर्ज की गई है. साथ ही सवारी वाहनों की बिक्री में पिछले साल की तुलना में जुलाई में 30.98% की गिरावट दर्ज की गई है. ये गिरावट दो और अधिक पहिया वाले सभी तरह के वाहनों में देखी गई है. इस साल जुलाई महीने में 18,25,148 गाड़ियां बिकीं जबकि पिछली साल यह संख्या 22,45,223 थी. भारत के लिहाज से देखें तो गिरावट आर्थिक मंदी की ओर इशारा कर रही है क्योंकि ऑटो सेक्टर भारत के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का लगभग आधा हिस्सा है.

नरेंद्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में सरकार के सामने अर्थव्यवस्था की मंदी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है. सिआम के डायरेक्टर जनरल विष्णु माथुर के मुताबिक आंकड़े बताते हैं कि इस इंडस्ट्री को सरकार से तुरंत एक राहत पैकेज की जरूरत है. अगर सरकार ने कुछ कदम नहीं उठाए तो मुश्किलें और बढ़ सकती हैं.

माथुर कहते हैं, “पिछली बार ऐसा संकट दिसंबर, 2000 में देखा गया था. पिछले 2-3 महीने में कम से कम 15 हजार अस्थायी कर्मचारियों की नौकरियां गई हैं. अब लाखों नौकरियां जाने की कगार पर हैं. हाल में करीब 300 डीलरों ने अपने शोरूम बंद कर दिए हैं और कई बंद करने की कगार पर हैं. इस सबके होने से नौकरियों पर संकट पैदा होगा.”

वाहनों की गिरती बिक्री के बीच वाहन निर्माता कंपनियों ने अपने वाहनों को बेचने के लिए बड़े डिस्काउंट देना शुरू किया है. ऐसे में जानकारों के मुताबिक यह वाहन खरीदने के लिए खरीददारों के पास सबसे उपयुक्त समय है. ये डिस्काउंट इतना है कि वाहनों की बिक्री बढ़ाने के लिए अगर सरकार जीएसटी में भी कटौती करती है तो भी कीमतों में ज्यादा अंतर नहीं आएगा क्योंकि कीमतें बहुत नीचे पहुंच चुकी हैं. जीएसटी में कटौती करने पर अपना मुनाफा बचाने के लिए कंपनियां डिस्काउंट कम करेंगी.

इस कमी के पीछे एक बड़ा कारण अगले साल से बीएस-6 वाहन मानकों का लागू होना भी है. 31 मार्च 2020 के बाद बीएस-4 वाहनों की बिक्री पर रोक लग जाएगी. इसका मतलब अगर तब तक ये वाहन नहीं बिके तो ये सब कबाड़ हो जाएंगे. यही वजह है कि मारुति, ह्युंडई और होंडा जैसी बड़ी कार निर्माता कंपनियां अपनी कारों पर 50 हजार रुपये से ज्यादा की छूट दे रही हैं. एक कार पर डीलर कमीशन करीब तीन से छह प्रतिशत होता है. लेकिन इस गिरावट की वजह से डीलरों ने भी अपना कमीशन छोड़ नेट कीमत पर वाहनों को बेचना शुरू किया है.

आर्थिक मंदी की खबरों के बीच कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने ट्विटर पर सरकार पर निशाना साधा. उन्होंने कई अखबारों में छपी खबरों को अपने ट्वीट में दिखाया और सरकार से जवाब मांगा. अखबारों की इन रिपोर्टों में नोटबंदी से 1 करोड़ 10 लाख लोगों की नौकरी जाना, ऑटो सेक्टर में गिरावट से नौकरियां जाना, पढ़े-लिखे लोगों में बेरोजगारी बढ़ने जैसी खबरें हैं.

इससे पहले एनएसएसओ के आंकड़े के मुताबिक 1993-94 के बाद पहली बार कामकाजी पुरुषों की संख्या में गिरावट दर्ज की गई है. आंकड़े बताते हैं कि भारत में फिलहाल 28.6 करोड़ कामकाजी पुरुष हैं. 1993-94 में यह संख्या 21.9 करोड़ थी. 2011-12 में यह संख्या बढ़कर 30.4 करोड़ पहुंच गई. लेकिन अब यह संख्या घटकर 28.6 करोड़ रह गई है. इस आंकड़े का मतलब यही है कि भारत में पिछले कुछ सालों में नौकरियों में कमी आई है.

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भीम आर्मी ने बनाया अपना स्टूडेंट विंग, लड़ेंगे छात्र संघ चुनाव

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उत्तर प्रदेश की दलित राजनीति में नया आगाज हुआ है. भीम आर्मी ने अपना स्टूडेंट विंग बनाया है. लखनऊ में भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद उर्फ रावण ने यह ऐलान करते हुए कहा कि भीम आर्मी के स्टूडेंट विंग का नाम भीम आर्मी स्टूडेंट फेडरेशन (बीएएसएफ) होगा. यह संगठन कई विश्वविद्यालयों में छात्र संघ का चुनाव भी लड़ेगा.

भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर ने सोमवार को संवाददाताओं से कहा कि छात्रसंघ के जरिये एससी/एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यक युवाओं में उनके अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूकता पैदा करना है. उन्होंने कहा, “युवा देश का भविष्य हैं और हमें उन्हें सशक्त बनाने की जरूरत है.”

चंद्रशेखर ने कहा कि इन वर्गों के छात्रों से ज्यादा फीस वसूलने के लिए कहा जा रहा है. इसके अलावा उन्हें परिसर में भी प्रताड़ना झेलनी पड़ती है. उन्होंने कहा, “बीएएसएफ युवाओं को अनुसरण करने के बजाय नेता बनने के लिए तैयार करेगा. साथ ही यह राष्ट्र के प्रति उनके कर्तव्यों को भी बताएगा.”

चंद्रशेखर ने कहा कि लखनऊ के बाद बीएएसएफ को पुणे, महाराष्ट्र सहित अन्य सभी राज्यों में लांच किया जाएगा.

एक सवाल का जवाब देते हुए भीम आर्मी के नेता ने कहा कि पहले दलित छात्रों के लिए 630 करोड़ रुपये की राशि निर्धारित की गई थी जो अब घटकर 283 करोड़ रुपये हो गई है. उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में 2022 के विधानसभा चुनाव में युवा हालात को बदलने की भूमिका के तौर पर उभरेंगे.

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चांद की कक्षा में पहुंचा Chandrayaan-2, वैज्ञानिकों ने 90% स्पीड घटाकर पाई सफलता

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) आज यानी मंगलवार को Chandrayaan-2 को चांद की पहली कक्षा में सफलतापूर्वक प्रवेश करा दिया है. इसरो वैज्ञानिकों ने सुबह 8.30 से 9.30 बजे के बीच चंद्रयान-2 को चांद की कक्षा LBN#1 में प्रवेश कराया. अब चंद्रयान-2, 118 किमी की एपोजी (चांद से कम दूरी) और 18078 किमी की पेरीजी (चांद से ज्यादा दूरी) वाली अंडाकार कक्षा में अगले 24 घंटे तक चक्कर लगाएगा. इस दौरान चंद्रयान की गति को 10.98 किमी प्रति सेकंड से घटाकर करीब 1.98 किमी प्रति सेकंड किया गया.

चंद्रयान-2 की गति में 90 फीसदी की कमी इसलिए की गई है ताकि वह चांद की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के प्रभाव में आकर चांद से न टकरा जाए. 20 अगस्त यानी मंगलवार को चांद की कक्षा में चंद्रयान-2 का प्रवेश कराना इसरो वैज्ञानिकों के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण था. लेकिन, हमारे वैज्ञानिकों ने इसे बेहद कुशलता और सटीकता के साथ पूरा किया. 7 सितंबर को चंद्रयान-2 चांद के दक्षिणी ध्रुव पर लैंड करेगा. चंद्रयान-2 को 22 जुलाई को श्रीहरिकोटा प्रक्षेपण केंद्र से रॉकेट बाहुबली के जरिए प्र‍क्षेपित किया गया था. इससे पहले 14 अगस्त को चंद्रयान-2 को ट्रांस लूनर ऑर्बिट में डाला गया था. उम्मीद जताई जा रही है कि 7 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चंद्रयान-2 की चांद के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडिंग को लाइव देखेंगे.

1 सितंबर तक चार बार चांद के चारों तरफ चंद्रयान-2 बदलेगा अपनी कक्षा

LBN#2- 21 अगस्त की दोपहर 12.30-1.30 बजे के बीच चंद्रयान-2 को 121×4303 किमी की कक्षा में डाला जाएगा. LBN#3- 28 अगस्त की सुबह 5.30-6.30 बजे के बीच चंद्रयान-2 को 178×1411 किमी की कक्षा में डाला जाएगा. LBN#4- 30 अगस्त की शाम 6.00-7.00 बजे के बीच चंद्रयान-2 को 126×164 किमी की कक्षा में डाला जाएगा. LBN#5- 01 सितंबर की शाम 6.00-7.00 बजे के बीच चंद्रयान-2 को 114×128 किमी की कक्षा में डाला जाएगा.

2 सितंबर को यान से अलग हो जाएगा विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर

चांद के चारों तरफ चार बार कक्षाएं बदलने के बाद चंद्रयान-2 से विक्रम लैंडर बाहर निकल जाएगा. विक्रम लैंडर के साथ प्रज्ञान रोवर भी ऑर्बिटर से अलग होकर चांद की तरफ बढ़ना शुरू करेगा. विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर चांद के चारों तरफ दो चक्कर लगाने के बाद 7 सितंबर को चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरेंगे.

इसरो चेयरमैन बोले- अब कम करनी होगी चंद्रयान की गति

इसरो के चेयरमैन डॉ. के. सिवन ने बताया कि चंद्रयान-2 चांद की कक्षा में जाते समय कड़ी परीक्षा से गुजरेगा. चांद की गुरुत्वाकर्षण शक्ति 65000 किमी तक रहता है. ऐसे में चंद्रयान-2 की गति को कम करना पड़ेगा. नहीं तो, चांद की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के प्रभाव में आकर वह उससे टकरा भी सकता है. गति कम करने के लिए चंद्रयान-2 के ऑनबोर्ड प्रोपल्‍शन सिस्‍टम को थोड़ी देर के लिए चालू किया जाएगा. इस दौरान एक छोटी सी चूक भी यान को अनियंत्रित कर सकती है. यह सिर्फ चंद्रयान-2 के लिए ही नहीं बल्कि वैज्ञानिकों के लिए भी परीक्षा की घड़ी होगी.

चांद से न टकराए चंद्रयान-2 इसलिए गति की जाएगी कम

चांद की गुरुत्वाकर्षण शक्ति का प्रभाव 65,000 किलोमीटर तक है. यानी चांद से इस दूरी तक आने वाले किसी भी वस्तु को चांद अपनी ओर खींच सकता है. मंगलवार को यानी 20 अगस्‍त को चंद्रयान-2, चांद से 65,000 किमी की दूरी करीब 150 किलोमीटर दूर होगा तब इसरो चंद्रयान-2 की गति को कम करना शुरू करेगा. इससे वह चांद की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के से संघर्ष करते हुए चांद की कक्षा में प्रवेश करेगा.

हो सकता है कि ऑर्बिटर 2 साल तक काम करे

चंद्रयान-2 लैंडर ‘विक्रम’ और रोवर ‘प्रज्ञान’ तो चांद की सतह पर उतरकर प्रयोग करेंगे. लेकिन, ऑर्बिटर सालभर चांद का चक्कर लगाते हुए रिसर्च करेगा. इसरो वैज्ञानिकों के अनुसार चांद की कक्षा में सारे बदलाव करने के बाद ऑर्बिटर में इतना ईंधन बच जाएगा कि वह दो साल तक काम कर सकता है. लेकिन यह सब 7 सितंबर के बाद तय होगा.

साभार- आजतक Read it also-नहीं रहें ‘ब्राह्मणों’ को चुनौती देने वाले दलित कवि मलखान सिंह

श्रीनगर में ढील मिलते ही जमकर हिंसा, पैलेट गन से जख्‍मी हुए 2 दर्जन

जम्‍मू। 14वें दिन श्रीनगर में अघोषित कफर्यू पाबंदियों में दी गई ढील में जमकर हिंसा हुई. करीब 12 स्‍थानों पर हुई हिंसा में 2 दर्जन के करीब प्रदर्शनकारी उस समय जख्‍मी हो गए, जब सुरक्षाबलों ने उन पर पैलेट गन से गोलियां दागीं.

कश्मीर के श्रीनगर में 1 दिन पहले हिंसा की घटनाओं के बाद रविवार को कुछ इलाकों में पाबंदियां कड़ी कर दी गईं. इस बीच अधिकारियों ने बताया कि सऊदी अरब से हज तीर्थयात्रियों का पहला बैच कश्मीर लौट आया है तथा रविवार को 14वें दिन घाटी के कई हिस्सों में पाबंदियां जारी हैं.

अधिकारियों ने बताया कि उन इलाकों में फिर से पाबंदियां लगा दी गई हैं, जहां शनिवार को हालात बिगड़ गए. शहर में कई स्थानों और घाटी में अन्य जगहों पर पाबंदियों में ढील दी गई थी जिसके बाद परेशानी पैदा हो गई थी.

अधिकारियों ने बताया कि करीब 12 स्थानों पर प्रदर्शन हुए जिसमें 2 दर्जन से अधिक प्रदर्शनकारी जख्मी हो गए. करीब 300 तीर्थयात्रियों के साथ आ रहे विमान सुबह श्रीनगर हवाई अड्डे पहुंचे तथा तीर्थयात्रियों की सुचारु आवाजाही के लिए व्यापक बंदोबस्त किए गए हैं.

अधिकारियों ने बताया कि हाजियों का स्वागत करने के लिए हवाई अड्डे पर परिवार के केवल 1 सदस्य को ही अनुमति दी गई है. हाजियों और उनके रिश्तेदारों की आवाजाही के लिए सभी जिला प्रशासनों के समन्वय के साथ राज्य सड़क परिवहन प्राधिकरण (एसआरटीसी) की बसों को तैनात किया गया है तथा सुरक्षाबलों को तीर्थयात्रियों और उनके रिश्तेदारों को उन इलाकों से गुजरने देने की अनुमति देने के निर्देश दिए गए हैं, जहां पाबंदियां लागू हैं.

DGP का दौरा : जम्मू-कश्मीर के DGP दिलबाग सिंह ने आज राजौरी, उधमपुर और जम्मू का दौरा किया ताकि सुरक्षा परिदृश्य और कानून व्यवस्था की स्थिति की समीक्षा की जा सके. बाद में उन्होंने जम्मू में एक उच्च स्तरीय बैठक की अध्यक्षता की और पुलिस अधिकारियों और कर्मियों के साथ बातचीत की.

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बहुजन छात्र संघ के द्वारा काशी विद्यापीठ के कुलपति को ज्ञापन

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महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी के बहुजन छात्र संघ के छात्र नेता अरविंद कुमार(एम फिल- राजनीतिशास्त्र)के द्वारा विश्वविद्यालय के कुलपति महोदय को छात्रों कि मांग का ज्ञापन दिया गया. मुख्य मांगे इस प्रकार है –

1.वातानुकूलित लाइब्रेरी का निर्माण. 2.साईबर डिजिटल लाइब्रेरी की स्थापना. 3.लाइब्रेरी में पाठ्यक्रम के अनुसार नई किताबो की व्यवस्था किया जाना. 4.लाइब्रेरी द्वारा छात्रों को कम से कम एक बार में चार किताब दिया जाने का प्रावधान. 5.विश्वविद्यालय के सभी छात्रों को सभी प्रकार के निशुल्क उपचार की व्यवस्था हेतु स्वास्थ्य डायरी की व्यवस्था किया. 6.विश्वविद्यालय के सभी छात्रों का एक्सिडेंट विमा की व्यवस्था किया जाना. 7.विश्वविद्यालय के चिकित्सा परिसर को आस पास के किसी अस्पताल से सम्बन्ध किया जाए जिससे छात्रों को बेहतर चिकित्सा व्यवस्था हो सके.

इन मांगों पर उचित कार्यवाही न किए जाने पर छात्रों ने आन्दोलन की प्रक्रिया में जाएंगे। इस बाबत छात्रों ने तैयारी शुरू कर दी है.

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उन्नाव गैंगरेप पीड़िता ने रिश्तेदार को बताया, ‘सामने से आकर ट्रक ने हमारी कार को रौंदा’

उन्नाव गैंगरेप पीड़िता के साथ हुए सड़क हादसे में अब एक नई और अहम जानकारी सामने आई है. नई दिल्ली स्थित एम्स में इलाज के दौरान खुद रेप पीड़िता ने अपने एक रिश्तेदार को बताया कि बिल्कुल सामने से आकर ट्रक ने उनकी कार को रौंदा था. पीड़िता ने उन्हें यह भी बताया कि कार चला रहे उनके वकील ने रिवर्स गियर लेकर ट्रक के रास्ते में न आने की पूरी कोशिश की लेकिन ट्रक चालक ने इसके बावजूद उनकी कार को रौंद डाला. बता दें कि वकील की भी हालत गंभीर है और उनका भी एम्स में इलाज चल रहा है.

हादसे के बाद से ही पीड़िता के परिवार के साथ मजबूती से खड़े इस रिश्तेदार ने हमारे सहयोगी टाइम्स ऑफ इंडिया से फोन पर बातचीत में यह जानकारी दी. यह वही रिश्तेदार हैं, जिनकी मां भी हादसे की शिकार हुई थीं. उन्होंने बताया, ‘मैंने उससे (रेप पीड़िता) पूछा कि उस दिन क्या हुआ था? उसने बताया, ‘मैंने ट्रक को सामने से आते देखा. ट्रक को इस तरह से आते हुए देखकर हम डर गए. हमने अलार्म भी बजाया था, जब हमें महसूस हुआ कि ट्रक को जिस तरह से चलाया जा रहा था उसमें कुछ असामान्य है.’

CBI को अभी नहीं दी गई है यह जानकारी

रिश्तेदार के मुताबिक, पीड़िता ने बताया कि कार चला रहे वकील ने रिवर्स गियर में कार डालकर ट्रक के रास्ते से बचने की कोशिश की लेकिन वह सफल नहीं हो सके, क्योंकि ट्रक बिल्कुल उन्हीं की तरफ मुड़ गया और फिर यह हादसा हो गया. रेप पीड़िता की स्थिति हालांकि अभी नाजुक बनी हुई है लेकिन बीच में कुछ देर जब वह होश में रहीं, उन्होंने अपने रिश्तेदार से इस घटना के बारे में जिक्र किया. हालांकि मामले की जांच कर रही सीबीआई को इस ब्योरे के बारे में अभी तक जानकारी नहीं दी गई है.

‘CBI अधिकारियों से मिलने से किया इनकार’

रिश्तेदार ने कहा, ‘उसने मुझे अकेले में यह बात बताई. रेप कांड के बाद उन्नाव छोड़ने और इस हादसे तक लगातार मैं उसके साथ रहा हूं. ऐसे में शायद उसका भरोसा मुझ पर अधिक है. उसने सीबीआई अधिकारियों को भी मिलने से इनकार कर दिया, जो एम्स आए थे.’

सीबीआई पर से भी उठा पीड़िता का विश्वास’

रिश्तेदार के मुताबिक पीड़िता का अब सीबीआई से भी विश्वास उठ गया है. रिश्तेदार ने कहा, वह मुझसे कहती है कि यूपी सरकार से विश्वास खत्म होने के बाद अब उसका सीबीआई पर से भी भरोसा उठ गया है. ऐसा इसलिए भी है कि उसने सीबीआई को कई बार अपने जान के खतरे को लेकर आगाह किया लेकिन कोई भी ठोस कदम नहीं उठाया गया.

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PoK पर राजनाथ सिंह के बयान से फिर तिलमिलाया पाकिस्तान

केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के पीओके वाले बयान से एक बार फिर पाकिस्तान तिलमिला गया है. पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने रविवार को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की उस टिप्पणी पर भड़ास निकाली और निंदा की जिसमें उन्होंने कहा है कि इस्लामाबाद से बातचीत केवल पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) के मुद्दे पर होगी.

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने आज हरियाणा में एक रैली को संबोधित करते हुए कहा कि पाकिस्तान से तब तक कोई बातचीत नहीं होगी जब तक कि वह आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करता और आतंकी गतिविधियों को बढ़ावा देना बंद नहीं करता. राजनाथ सिंह ने कहा, ”यदि बात (पाकिस्तान से) होती है तो केवल पीओके पर होगी, न कि किसी अन्य मुद्दे पर.

पाकिस्तान के विदेश मंत्री कुरैशी ने इस पर कहा कि कश्मीर विवाद पर पाकिस्तान की स्थिति नहीं बदली है. उन्होंने कहा, ”हमने आज भारत के रक्षा मंत्री द्वारा की गईं टिप्पणियां देखी हैं. ये क्षेत्र और इससे परे शांति एवं सुरक्षा को खतरे में डालने वाली अवैध और एकतरफा कार्रवाइयों के बाद भारत की दशा को दिखाती हैं.

पाकिस्तान के विदेश मंत्री की यह टिप्पणी भारत द्वारा जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म किए जाने के बाद दोनों देशों के मध्य तनाव के बीच आई है. कुरैशी ने कहा, ”संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद सहित विश्व समुदाय ने कश्मीर की स्थिति का संज्ञान लिया है.

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तेलंगाना में टीडीपी को बड़ा झटका, 60 बड़े नेताओं ने थामा बीजेपी का दामन

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हैदराबाद। तेलंगाना में तेलुगु देशम पार्टी को बड़ा झटका लगा है. राज्य के 60 बड़े नेताओं ने पार्टी से नाता तोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया. इन बड़े नेताओं के साथ हजारों कार्यकर्ताओं ने बीजेपी के कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा की मौजूदगी में बीजेपी का दामन थाम लिया.

इस अवसर पर जून माह में टीडीपी छोड़कर बीजेपी में आए लंका दिनकरन ने कहा, “जहां तक तेलंगाना बीजेपी का संबंध है तो यह बहुत ही अच्छा संकेत है. यह तेलंगाना के लिए भी सकारात्मक संकेत है.” दिनकरन ने कहा, “तीन तलाक और अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के बाद कई नए कार्यकर्ता पार्टी से जुड़े हैं.”

इस मौके पर नड्डा ने कहा, “सितंबर में 8 लाख बूथ पर चुनाव होंगे. अक्टूबर में मंडल चुनाव कराए जाएंगे और नवंबर में जिला स्तर के चुनाव होंगे. 15 दिसंबर तक सभी राज्यों में चुनाव पूरे करा लिए जाएंगे. 31 दिसंबर से पहले बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव संपन्न होगा.”

अरुण जेटली की हालत बेहद नाजुक

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बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली की हालत बेहद नाजुक बनी हुई है. पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी उनका हालचाल जानने के लिए एम्स पहुंचे. प्राप्त जानकारी के मुताबिक, आडवाणी वहां आधे घंटे से ज्यादा तक रुके और परिवार को सांत्वना दी. एम्स में भर्ती जेटली को वेंटिलेटर से हटा कर एक्स्ट्राकॉरपोरेल मेम्ब्रेन ऑक्सीजनेशन (ईसीएमओ) और इंट्रा-ऑर्टिक बलून पंप (आईएबीपी) सपोर्ट पर रखा गया है. यहां उनका डायलिसिस भी किया जा रहा है.

जेटली का हालचाल लेने के लिए पक्ष और विपक्ष के नेताओं का एम्स तांता लगा हुआ है. इससे पहले केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी सोमवार सुबह एम्स पहुंचे हैं. वहीं सूत्रों के मुताबिक, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनका हाल जानने के लिए आज एम्स जा सकते हैं.

इससे पहले रविवार देर रात केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह उन्हें देखने के लिए एम्स पहुंचे. इससे पहले रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और बीजेपी सांसद गौतम गंभीर उन्हें देखने के लिए एम्स पहुंचे थे.

सूत्रों के मुताबिक अरुण जेटली एक्सट्राकॉर्पोरियल मेम्ब्रेन ऑक्सीजनेशन (ECMO) पर हैं, जिसका उपयोग सांस लेने या दिल की समस्याओं के इलाज के लिए किया जाता है. उन्होंने पहले कहा था कि डॉक्टरों की एक मल्टी डिसिप्लिनरी टीम उनकी निगरानी कर रही है. रविवार को जेटली के हालचाल जानने के लिए स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन और अश्विनी कुमार चौबे, भाजपा सांसद राज्यवर्धन सिंह राठौर और गौतम गंभीर, और आरएसएस सरसंघचालक मोहन भागवत पहुंचे थे.

अरुण जेटली को एम्स में डॉक्टरों ने उनकी बिगड़ती हालत को देखते हुए वेंटिलेटर से हटाकर ईसीएमओ (ECMO) यानी एक्सट्राकॉर्पोरियल मेंब्रेन ऑक्सीजिनेशन (Extracorporeal membrane oxygenation) पर शिफ्ट किया है. ईसीएमओ पर मरीज को तभी रखा जाता है, जब दिल और फेफड़े ठीक से काम नहीं करते और वेंटीलेटर का भी फायदा नहीं हो रहा होता है. तब इसकी मदद से मरीज के शरीर में ऑक्सीजन पहुंचाई जाती है.

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