मलखान सिंह की कविताएं पाखंडवाद को ध्वस्त करके सामाजिक बदलाव की मांग करती हैं

“मलखान सिंह की कविताएं पाखंडवाद को ध्वस्त करके सामाजिक बदलाव की मांग करती हैं”मलखान सिंह हिन्दी दलित साहित्य (कविता) में समावेशी तेवर के रचनाकार थे. उनकी कविता विद्रोही स्वर में होते हुए भी समाज को समरसता का संदेश देती है. सामाजिक चेतना का स्वर उनकी कविताओं में बहुत बारीकी से दर्ज़ हुई है. वे इतिहास के गलियारों से गुजरते हुए उन सभी भौतिक वस्तुओं की तरफ जाते हैं जहां पर तथा कथित हिन्दी के कवि जाने से डरते हैं. उनकी कविताएं सामाजिक यथार्थ का विवरण इस तरह पेश करती हैं जैसे इतिहास की कोई किताब हो, और किताब हो क्यों न ? उन्होंने सामाजिक गैरबराबरी जो देखा/झेला है. उनकी कविता की बस्ती में निम्न वर्गों की जीवन गाथा दर्ज़ है. शोषण-दमन का लेखा-जोखा बहुत ही स्पष्ट रूप में आया है. उनका कवि कर्म उनके इर्द-गिर्द घटती हुई घटनाओं का आख्यान है, जिसमें इतिहास है, वर्तमान है और भविष्य भी. उन्होंने अपनी कविता का जनतंत्र जिस तरह से बुना है वह देखते ही बनता है. गाँव के दक्षिण से लेकर बाकी तीनों दिशाओं का विवरण ऐसे पेश करते हैं कि समाज शास्त्री बौनें दिखने लगते हैं. मलखान सिंह की काव्य दृष्टि अत्यंत पीड़ादायी परिस्थितियों को देखकर बनी है. वे अपनी कविताओं में जाति के प्रश्न को लेकर बार-बार टकराते हैं. प्रश्न भी करते हैं कि, क्या इस देश हमारी पहचान केवल हमारी जाति से ही तय होगी? वह यह भी कहते हैं, क्या हम इंसान नहीं हैं? हमारे साथ इन्सानों जैसा व्यवहार क्यों नहीं किया जाता? ‘मैं आदमी नहीं हूँ (2)’ कविता का एक अंश देखिये-

मैं आदमी नहीं हूँ स्साब
जानवर हूँ
दोपाया जानवर
जिसे बात-बात पर
मनुपुत्र- माँ चो- बहन चो-
कमीन कौम कहता है.”

कवि ने इस प्रश्नवाचकता से ‘तथा कथित’ मानव समाज से प्रश्न करता है. खुद को जानवर कहकर मानव समाज पर चोट करता है. इस प्रसंग को लेकर डॉ. अम्बेडकर बरबस याद आते हैं जहाँ उन्होंने सामाजिक असमानता को लेकर प्रथम गोलमेज सम्मलेन में इसकी उपस्थिति दर्ज कराते हुए उप-समिति संख्या 3 (अल्पसंख्यक) की दूसरी बैठक 31 दिसम्बर 1930 को सदन के समक्ष सामाजिक-राजनीतिक जीवन पर बोलते हुए कहा कि, “महोदय! सर्वप्रथम मैं आपका ध्यान इस तथ्य की ओर दिलाना चाहता हूँ कि, भारत में अनेक अल्पसंख्यक वर्ग हैं, जिनकी अपनी राजनीतिक पहचान होनी चाहिए, किन ये सभी अल्पसंख्यक वर्ग एक जैसे नहीं हैं, इनमें अनेक असमानताएं हैं, एक दूसरे से भिन्नताएं हैं. प्रत्येक अल्पसंख्यक वर्ग कि सामाजिक है सियत अलग-अलग है. उदाहारण के लिए भारत का सबसे छोटा अल्पसंख्यक वर्ग है, पारसी समुदाय. इस समुदाय की सामाजिक है सियत बहुसंख्यकों की सामाजिक है सियत से कम नहीं है. दूसरी ओर दलित वर्ग है. देश के सबसे बड़े अल्पसंख्यक समुदाय, अर्थात मुस्लिम समुदाय के बाद दूसरे नम्बर पर आने वाला अल्पसंख्यक वर्ग! इस समुदाय की सामाजिक है सियत एक अदना आदमी की हैसियत से भी गई गुजरी है.”2 दरअसल, अंबेडकर के इस कथन को मलखान सिंह के काव्य दृष्टि में देखी जा सकती है. जिसमें वह निम्न वर्गों की वकालत करते हुए नजर आते हैं. असल में कवि का जो मूल कर्तव्य होता है वह मलखान सिंह की काव्य दृष्टि में निहित है. कवि का धर्म ही यही होना चाहिए कि सामाजिक यथार्थ को ही काव्य का विषय बनाया जाए. अपने समय के सवालों से मुठभेड़ करे. जनता के पक्ष में खड़ा हो. सामाजिक सौहार्द बनाए रखे. उसकी कविता में समाज को आगे ले जाने लिए ‘विजन’ हो, जिससे विकृत व्यवस्था में बदलाव लाया जा सके. तभी वह कवि अपने समय से आगे निकल कर बड़ा कवि बनता है. इस तरह का ‘विजन’ मलखान सिंह की कविताओं की ख़ासियत है.

मलखान सिंह ने अपनी कविता का फ़लक व्यापक करते हुए उदारवादियों की जमकर आलोचना की है. नेताओं की भतर्सना की है. लोकतंत्र पर प्रश्न किया है. शिक्षा, स्वास्थ्य और देश की विभिन्न चीजों पर उनका ही कब्ज़ा है, जो आज के समय का जवलंत मुद्दा बना हुआ है. कवि इस विषय को लेकर बहुत पहले ही चिंचित हो गया था, इसलिए वहअपने और निम्न समुदाय के होने/रहने पर विचार करते हैं और कहते हैं कि धरती का कोई कोना हमारे लिए नहीं है? उदाहरण के तौर पर ‘कैसा उदारवाद यह’ कविता का एक अंश देखिये-

“आज !
देश की शिक्षा
देश की चिकित्सा
देश के बाज़ार
आकाश-पाताल
धरती की कोख तक
बस उन्हीं की सत्ता है”3

मलखान सिंह सवाल करते हैं कि लोकतंत्र में जहाँ सब की भागीदारी सुनिश्चित होनी चाहिए, उसी लोकतंत्र में अभी भी एकमात्र सच्चाई जाति ही क्यों है? क्यों दलितों को उनकी जाति से ही पहचाना जाता है? जाति को देखकर क्यों उनके प्रति दुर्व्यवहार किया जाता है? कवि इस भेदभाव को बहुत बारीकी से पकड़ता है. अपनी अस्मिता को संकट ग्रस्त होते हुए देखता है. दूसरे शब्दों में कहा जाए तो अपने ही देश में उसको तथा कथित समाज के लोगों द्वारा उसके पहचान को ‘इगनोर’ किया जा रहा है. जिस लोकतंत्र में व्यक्ति की महत्ता को केंद्र में रखा जाना चाहिए वहाँ पर इस तरह का दुर्व्यवहार करना किस सभ्यता का द्योतक है? फ्रांस की क्रांति में असमानता की भेद को मिटाने के लिए ही क्रांति हुई थी और समता, स्वतंत्रता और बंधुत्व का नारा लगाया गाया. इन्हीं तीन मुख्य विंदुओं को हमारे यहाँ संविधान के केंद्र में रखा गाया है, जिससे आधुनिक भारत में सबको समता, सम्मान और पहचान मिल सके. सबको अपना अधिकार मिल सके. कवि चिंतित है वह इसलिए कि उसे समानता और स्वतंत्रता के सारे उपकरण खोखले लगते हैं. इसका आशय यह नहीं कि वह देश और देश के संविधान में विश्वास नहीं रखना चाहता बल्कि यहाँ कि आवाम जो अपने बुद्धि विलाप के चलते निम्न वर्गों के साथ जिस तरह का रुख अपनाती है उसको लेकर चिंतित है. इसलिए वह कहता है कि मेरी पहचान केवल जाति से होती है, मेरी प्रतिभा से नहीं, मेरे नाम से नहीं. एक उदाहरण ‘फटी बंडी’ कविता से देखिये –

“मैं अनामी हूँ
अपने इस देश में
जहाँ-जहाँ भी रहता हूँ
आदमी मुझे नाम से नहीं
जाति से पहचानता है और
जाति से सलूक करता है.”4

बावजूद इसके इन तमाम प्रश्नों से टकराते हुए कवि आगे बढ़ता है और ‘सुनो ब्राह्मण’ कविता में कहता है कि,

“हमारी दासता का सफ़र
तुम्हारे जन्म से शुरू होता है
और इसका अंत भी
तुम्हारे अंत के साथ होगा.”5

इस कविता में कवि अपने विचार को धारदार तौर प्रयोग करता है. वह यह जनता है कि प्रतिरोध से ही समाज में समाजिकता/बदलाव लायी जा सकती है, क्योंकि समाज का एक धड़ा ऐसा है जो सुनता नहीं. बावजूद इसके कवि इन विसंगतियों से अपने को निराश/हताश नहीं पाताबल्कि भविष्य के लिए आत्मज्ञान और संबल प्रदान करता है. आत्मविश्वास को बढ़ाता है. कवि अपनी कविताओं में बिना किसी समुदाय को अलग किए हुए सबकी समानता की बात करता है. देश और देश के बाहर के लोगों को भी अपना मानता है. एक कविता ‘छत की तलाश’ का उदाहरण देखिये-

“मकां ऐसा बनाऊँगा
जहाँ हर होठ पर
बंधुत्व का संगीत होगा
मेहनतकश हाथ में-
सब तंत्र होगा
बाजुओं में
दिग्विजय का जोश होगा.
विश्व का आँगन
हमारा घर बनेगा.
हर अपरिचित पाँव भी
अपना लगेगा.”6

कवि यहीं नहीं रुकता वह अंधविश्वास पर गहरा चोट करता है और पंड्डे-पुरोहितों के द्वारा फैलाये गए भ्रम पर सवाल खड़ा करता है. वह ईश्वर के होने पर सवाल करता है. उसके द्वारा बनाए गए सिद्धांतों पर सवाल करता है. जिस ईश्वर का सहारा लेकर पुरोहितों ने समाज में असमानता का बीज बोया है उसकी खबर लेते हुए उनके मुँह का रंग बदल देता है और यह भी कहता है कि तुम्हारी पाखंडी सत्ता के सामने हम झुकने वाले नहीं. बल्कि उसका सामना करने वाले लोग हैं. यह चेतना या स्वाभिमान दलित समाज के ऐतिहासिक गौरव का स्मरण करवाता है. हमें इतिहास में अपने होने/लड़ने की याद दिलाता है. स्वाभिमान से जीने की चेतना का भान कराता है, एकदम कबीर के भाँति. यह कहने में तनिक भी गुरजे नहीं है कि मलखान सिंह कातेवर धर्म के विरुद्ध नहीं है. पाखंड के विरुद्ध नहीं है. वे अपनी बेबाक तेवर से वह धरती को नरक बनाने वालों की कुटिलता को उगाजर करते हैं. उनके दुराचारों की व्याख्या करते हैं, जो दलित समाज को चेतनाहीन बना देना चाहते थे, जिससे उनकी खोखली सत्ता को ढहाया न जा सके. एक उदाहरण ‘ज्वालामुखी के मुहाने’ कविता से देखिये-

“हमें अन्धा
हमें बहरा
हमें गूंगा बना
गटर में धकेल दिया
ताकि चुनौती न दे सकें
तुम्हारी पाखंडी सत्ता को.”7

लेकिन इस पाखंडी समाज को यह कहाँ ज्ञान है कि ज्वालामुखी अर्थात दलित समाज को कोई पाट सकता है? क्या कोई इस समाज क रोक सकता है? इसी कविता कि अगली कड़ी में देखिये कि कवि ने किस तरह ब्राह्मणों की खबर ली है.

“मदान्ध ब र ह म न
धरती को नरक बनाने से पहले
यह तो सोच ही लिया होता
कि ज्वालामुखी के मुहाने
कोई पाट सकता है
जो तुम पाट पाते !”8

इस तरह देखा जाए तो यह बात कही जा सकती है कि मलखान सिंह की कविताओं में जो चेतना शील दृष्टि है, वह दृष्टि शोषित-पीड़ित समुदाय का प्रतिनिधित्व करती है. जनता की सच्चाई जनता के सामने प्रस्तुत करती है. जैसे संत कबीरदास और संत रविदास ने प्रस्तुत की है. मलखान सिंह के यहाँ विचारों को लेकर कोई अंतर्विरोध नहीं है. परंपरा का अनुसरण उनकी कविता का मुख्य विंदु है. उनके यहाँ कबीर, रविदास, ज्योतिबा फुले और अंबेडकर के विचार प्रथम स्थान पाते हैं. वे पूरे साफगोई के माध्यम से भाषा में सहजता बरतते हुए जनता की भाषा में अपनी कविता कहते हैं. बोझिलता उनके यहाँ दूर-दूर तक नहीं है. सामान्य मनुष्य अपनी पीड़ा को उनकी कविताओं में देख सकता है. अत्याचारी और पाखंडी उनकी कविताओं से सीख ले सकता है, जिससे समाज में समन्वय और बन्धुत्व कायम रखा जा सके. मलखान सिंह की कविता इसी कि तसदीक करती है.
संदर्भ सूची-
1. मलखान सिंह, सुनो ब्राह्मण, रश्मि प्रकाशन, लखनऊ, पृ. सं. 65,2018.
2. बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर, सम्पूर्ण वांग्मय, खंड-5, पृ. सं. 43.
3. मलखान सिंह,ज्वालामुखी के मुहाने,रश्मि प्रकाशन,लखनऊ,पृ. सं. 7, 2019.
4. मलखान सिंह,सुनो ब्राह्मण,रश्मि प्रकाशन,लखनऊ,पृ. सं. 75, 2018.
5. वही,पृ. सं. 100, 2018.
6. वही,पृ. सं. 84, 2018.
7. मलखान सिंह,ज्वालामुखी के मुहाने,रश्मि प्रकाशन,लखनऊ,पृ. सं. 40, 2019.
8. वही,पृ. सं. 40, 2019.

सुमित कुमार चौधरी
शोधार्थी- जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय

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