उलझ गया है उन्नाव में दलित लड़कियों की मौत का मामला, ऐसे होगा खुलासा

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 उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में दलित समाज से ताल्लुक रखने वाली दो लड़कियों की संदिग्ध हालत में मौत से हड़कंप मच गया है। यह घटना जिले के असोहा थाना के बबुरहा गांव की है। परिवार वालों के मुताबिक तीन लड़कियां एक साथ चारा लाने गई थीं, लेकिन थोड़ी देर बाद लड़की के चाचा के पास फोन आया कि लड़कियां खेतों में बेहोश पड़ी हैं। तुरंत उन्हें अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने दो की मौत की पृष्टि की जबकि एक अन्य लड़की की हालत नाजुक बनी हुई है।

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 घटना के बाद न तो परिवार वालों को न ही अन्य लोगों को ही यह समझ में आ रहा है कि मामला क्या है, और लड़कियों के साथ ऐसा क्या हुआ। शुरुआती तौर पर इसे जहर खाने का मामला बताया जा रहा है, लेकिन लड़कियां ऐसा क्यों करेंगी, इसका जवाब किसी के पास नहीं है। क्योंकि कोई संदिग्ध बात अब तक सामने नहीं आई है। वहीं एक अन्य युवती का कानपुर के रीजेंसी अस्पताल में इलाज चल रहा है। सबकी नजर उसी पर है क्योंकि होश में आने के बाद वही लड़की पूरी घटना का राज खोल सकती है। पुलिस अधिकारियों ने छह टीमों का गठन कर मामले की जांच शुरू कर दी है, जबकि घरवाले सीबीआई जांच की मांग कर रहे हैं। आज पोस्टमार्टम होना है, जिसके बाद कुछ सच्चाई सामने आने की उम्मीद जताई जा रही है। गौरतलब है कि तीनों लड़कियां आपस में चचेरी बहने हैं। भीम आर्मी प्रमख और आजाद समाज पार्टी के नेता चंद्रशेखर आजाद ने नाजुक हालत में पड़ी युवती का दिल्ली एम्स में इलाज करने की मांग की है। तो वहीं इस मामले में अन्य दलों ने भी बयानबाजी शूरू कर दी है और योगी आदित्यनाथ पर निशाना साधा है।

वहीं दूसरी ओर इस मामले में पुलिस की भूमिका को लेकर सभी एक्टिविस्ट और राजनीतिक कार्यकर्ता सवाल उठा रहे हैं।दरअसल पुलिस ने पीड़ित परिवार को नजरबंद कर रखा है। पुलिस पीड़ित परिवार को किसी से भी नहीं मिलने दे रही है, यहां तक की मीडिया को भी पीड़ित परिवार से नहीं मिलने दिया जा रहा है, न ही एक अन्य जीवित बची युवती का ही कोई हेल्थ बुलेटिन जारी किया जा रहा है, जिससे लोगों में गुस्सा है। दिल्ली सरकार में सामाजिक न्याय मंत्री राजेंद्र पाल गौतम ने ऐलान किया है कि उन्नाव पीड़िता को बचाना हम सबकी जिम्मेदारी है। उन्नाव की बेटी को यूपी सरकार एयर एंबुलेंस से दिल्ली भेजें, दिल्ली सरकार उसके इलाज की पूरी जिम्मेदारी लेती है।

तो वहीं भीम आर्मी प्रमुख चंद्रेशेखर आजाद ने कहा है कि सरकार अगर इस मामले को गंभीरता से नहीं लेती तो वो उन्नाव कूच करेंगे।

दुनिया भर में बढ़ा चंद्रशेखर रावण का कद, टाइम मैग्जीन की लिस्ट में हुए शामिल

 दलित-वंचित समाज के लिए आवाज उठाने और संघर्ष करने वाले चंद्रशेखर आजाद रावण के काम को अंतर्राष्ट्रीय पहचान मिली है। दुनिया भर में प्रतिष्ठित “टाइम मैगजीन” ने चंद्रशेखर रावण को भविष्य में दुनिया के 100 सबसे ताकतवर लोगों में शुमार किया है। 17 फरवरी को टाइम मैगजीन की वेबसाइट पर “टाइम नेक्स्ट 100” की एक लिस्ट जारी की गई, जिसमें चंद्रशेखर की तस्वीर के साथ उनके बारे में लिखा गया है। टाइम मैग्जीन ने भीम आर्मी प्रमुख और आजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद के बारे में जो लिखा है, हम यहां उसका अनुवाद दे रहे हैं। टाइम ने लिखा है-

 “34 साल के चंद्रशेखर आजाद भारत के भारत के सबसे दबे-कुचले जाति समूह के सदस्य हैं, जिसे दलित कहते हैं। उनके नेतृत्व में भीम आर्मी दलित बच्चों को गरीबी से उबार कर आत्मनिर्भर बनाने के लिए स्कूल चलाती है। भीम आर्मी अपने हक की आवाज बुलंद करने के लिए एक और खास रणनीति अपनाती है। वह है जातिवादी दमन के शिकार लोगों को बचाने के लिए दनदानाती हुई मोटरबाइक की रैली लेकर पीड़ित के गाँव में घुस जाना और भेदभाव के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन करना।

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सितंबर 2020 में, जब उत्तर प्रदेश में पुलिस ने एक 19 वर्षीय दलित महिला के साथ चार सवर्णों द्वारा सामूहिक बलात्कार की जांच में देरी की, तब आजाद और भीम आर्मी ने न्याय के लिए एक जोरदार अभियान छेड़ दिया। इसके बाद हुए विरोध प्रदर्शनों और सार्वजनिक मांग के कारण आखिरकार आरोपी बलात्कारियों की गिरफ्तारी हुई। (हालांकि वे आरोपों से इनकार करते हैं।)

 आजाद ने हाल ही में कॉर्पोरेट कृषि सुधारों का विरोध कर रहे भारतीय किसानों सहित भारत में चल रहे कई अन्य प्रगतिशील आंदोलनों को भी समर्थन दिया है। उन्हें उम्मीद है कि वे भीम आर्मी की पहुंच और अपनी बढ़ती लोकप्रियता को बैलेट बॉक्स के जरिए राजनीतिक जीत में बदल सकेंगे। इसी सोच के साथ उन्होंने मार्च 2020 में एक राजनीतिक पार्टी की नींव रखी। इस पार्टी की पहली परीक्षा उत्तर प्रदेश में अगले साल 2022 में होने वाली है, जहां हिंदू राष्ट्रवादी तबका राजनीतिक रूप से प्रभावी है। भीम आर्मी के जोशीले रुख के बावजूद, आजाद ने सोशल मीडिया के बेहतरीन उपयोग के जरिए जनता में अपनी पहुँच का करिश्मा दिखाया है। यहां तक कि आजाद की रौबदार मूंछें – कुछ प्रभावशाली जातियों द्वारा एक सामाजिक हैसियत के प्रतीक के रूप में देखी जाती हैं, जो कि प्रतिरोध का ही एक तरीका है।

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 हिंदुस्तान टाइम्स में काम करने वाले एक दलित पत्रकार ध्रुबो ज्योति कहते हैं कि यह धारणा बन गयी है कि दलितों को दबकर जीना चाहिए, लेकिन आजाद और भीम आर्मी ने इस धारणा को खुली चुनौती दी है। इस प्रकार आजाद और भीम आर्मी ने भारत में जातिगत प्रतिरोध की लड़ाई को जाहिर तौर पर मनोवैज्ञानिक रूप से बदल दिया है।” – बिली पेरिग


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दिलीप मंडल की गिरफ्तारी को लेकर सवर्णों ने शुरु की मुहिम, जानिए क्या है मामला

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 देश के वरिष्ठ पत्रकार और बहुजन चिंतक प्रो. दिलीप मंडल के खिलाफ मनुवादियों ने ट्विटर पर मुहिम छेड़ दी है। ट्विटर पर मौजूद तमाम लोगों ने वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल की गिरफ्तारी की मांग को लेकर मुहिम शुरु कर दी है। आलम यह है कि 16 फरवरी को भारत में हैशटैग #Arrestdilipmandal Political Trending में ट्रेंड कर रहा था। और 66 हजार से ज्यादा लोगों ने दिलीप मंडल की गिरफ्तारी की मांग कर दी थी। यहां तक की गौरव गोयल ने दिलीप मंडल के खिलाफ साइबर क्राइम में क्रिमिनल कंप्लेंट कर दिया है।

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दरअसल मामला शुरू हुआ 16 फरवरी को। इस साल यह दिन हिन्दू कैलेंडर के मुताबिक बसंत पंचमी का दिन था। हिन्दू धर्म के मानने वाले बसंत पंचमी को सरस्वती पूजा के रूप में मनाते हैं और हिन्दू सरस्वती को शिक्षा की देवी मानते हैं। दरअसल दिलीप मंडल ने इसी दिन एक ट्विट किया जो पूरे विवाद की जड़ बना हुआ है। दिलीप मंडल ने ट्विटर पर लिखा-

सरस्वती को मैं शिक्षा की देवी नहीं मानता। उन्होंने न कोई स्कूल खोला, न कोई किताब लिखी। ये दोनों काम माता सावित्रीबाई फुले ने किए। फिर भी मैं सरस्वती के साथ हूँ। ब्रह्मा ने उनका जो यौन उत्पीड़न किया, वह जघन्य है। – संदर्भ Phule J. , Slavery(1991), Govt of Maharashtra Publication

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बस इसके बाद से ही एक धर्म विशेष के लोगों की धार्मिक भावनाएं आहत हो गईं। उनकी आपत्ति इस बात को लेकर थी कि दिलीप मंडल ने ब्राह्मा और सरस्वती के संबंधों को लेकर जो कहा है, वह उनकी धार्मिक भावनाएं आहत करता है। इसके बाद कई लोगों ने दिलीप मंडल की गिरफ्तारी की मुहिम चलाते हुए हैशटैग #Arrestdilipmandal की मुहिम शुरू कर दी। दिलीप मंडल के विरोधी यहीं नहीं रुकें बल्कि उन्होंने उनके खिलाफ साइबर क्राइम के तहत कंप्लेंट भी दर्ज करा दिया।

तो वहीं दूसरी ओर दिलीप मंडल के समर्थन में भी तमाम लोग सामने आ गए और उन्होंने हैशटैग #SupportProfDilipMandal के जरिए इसका जवाब देना शुरू कर दिया। दिलीप मंडल ने भी प्रधानमंत्री नरेंन्द्र मोदी का एक पुराना ट्विट शेयर किया और विरोधियों को जवाब देते हुए लिखा-

प्रधानमंत्री जी ने कहा है महात्मा फुले जी के रास्ते पर चलने के लिये। अब फुले जी की किताब में ब्रह्मा के बारे में जो लिखा है, वह तो सबको बताना ही पड़ेगा। ऐसा तो होगा नहीं कि वोट के लिए बहुजनों के महापुरुषों की पूजा कर लें और उनकी किताब न पढ़ें। पैकेज डील है। वोट के साथ किताब।

अपने ऊपर साइबर क्रिमिनल केस करने वाले को करारा जवाब देते हुए दिलीप मंडल ने उसे अज्ञानी मू्र्ख कह दिया। साथ ही उन्होंने लिखा कि- क्या तुम जानते हो कि महात्मा फुले को कोट करना कोई अपराध नहीं है। उनकी प्रतिमा देश के संसद में है जिसका अनावरण 2013 में वाजपेयी ने किया था और देश के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी उन्हें महानतम समाज सुधारक करते हैं। दिलीप मंडल यहीं नहीं रुकें, उन्होंने उसे चिढ़ाते हुए आगे लिखा कि आपकी नाजुक भावनाओं को आहत करने के लिए, मैं फिर से उनका उद्धरण साझा कर रहा हूं।

विरोधियों को चिढ़ाते हुए दिलीप मंडल ने एक और ट्विट किया और लिखा-

#Arrestdilipmandal ये हैशटैग बंद कीजिए। वरना मैं कबीर, संत रविदास महाराज, ज्योतिबा फुले, बाबा साहब, पेरियार, ललई यादव, जगदेव प्रसाद का लिखा हुआ सब उनकी किताबों से उठाकर पोस्ट कर दूँगा। फिर समेटते रहना। इनमें से ज़्यादातर किताबें सरकारों ने छापी हैं।

 दरअसल बहुजन समाज के बुद्धिजीवि अक्सर ज्योतिबा फुले और बाबासाहब आंबेडकर द्वारा लिखी गई बातों को कोट करते रहते हैं। इसमें तमाम बातें ऐसी भी हैं जो खुद हिन्दु धर्म ग्रंथों में लिखी हुई है। खुद हिन्दू धर्म में लिखी बातें को भी जब बहुजन समाज के लोग साझा करते हैं तो अपने धर्मग्रंथों और उसके लेखकों के खिलाफ आवाज उठाने की बजाय लोग बहुजनों पर ही भड़ास निकालने लगते हैं।

यूपी विधानसभा सत्र कल से शुरू, बहनजी ने अपने विधायकों को दिया यह निर्देश

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 किसानों के आंदोलन के मुद्दे पर बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष सुश्री मायावती लगातार मुखर हैं। वो लगातार अपने बयानों के जरिए सरकार से किसानों की मांग मान लेने और कृषि बिल रद्द किये जाने की मांग कर रही हैं। इसी बीच उत्तर प्रदेश में कल 18 फरवरी से शुरू होने वाले विधानसभा सत्र को लेकर बहनजी ने अपनी पार्टी के विधायकों के लिए फरमान जारी किया है।

बसपा अध्यक्ष ने अपने एक बयान में बसपा के विधायकों को निर्देश दिया है कि विधायक यूपी विधानसभा के कल से शुरू हो रहे सत्र में किसानों व जनहित के अहम मुद्दों को उठाएं। साथ ही अपराध नियंत्रण व कानून-व्यवस्था के मामले में सरकार की घोर लापरवाही व द्वेषपूर्ण कार्रवाई के प्रति सरकार को जनता के प्रति जवाबदेह बनाने के लिए दबाव डाला जाए। अपने बयान में बसपा प्रमुख ने यूपी में विधानसभा व पंचायत चुनाव से पहले नेताओं, वकीलों व व्यापारियों आदि की हत्याओं को लेकर भी चिन्ता जताई है।

सिविल सेवा इंटरव्यू में अब छुपाई जाएगी जाति से जुड़ी पहचान!

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 जाति और आरक्षण की बहस के बीच सरकार की तरफ से एक नया प्रस्ताव आया है। सरकार चाहती है कि प्रशासनिक सेवा के इंटरव्यू में जाति और वर्ण से जुड़े उपनाम, धार्मिक प्रतीकों आदि का कोई उल्लेख नहीं होना चाहिए। यह खबर सामाजिक न्याय मंत्रालय की ओर से आ रही है। सामाजिक न्याय मंत्रालय की तरफ से आ रही इस रिपोर्ट में निजी क्षेत्र में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण की भी मांग की गई है। कहा जा रहा है कि ‘समाज के उन्नत वर्गों के बराबर नौकरी की सुरक्षा’ देने के लिए इस तरह की व्यवस्था की योजना बन सकती है। रिपोर्ट के जरिए केंद्र सरकार द्वारा सिफारिश की गई है कि सिविल सेवा और अन्य केंद्रीय या राज्य स्तरीय परीक्षाओं में साक्षात्कार में उम्मीदवारों के जाति उपनाम या विवरण प्रकट नहीं किए जाने चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि इससे साक्षात्कार के दौरान बहुजनों के खिलाफ भेदभाव की संभावना बढ़ जाती है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर सिविल सेवाओं और अन्य सेवाओं में खुली प्रतियोगिताओं के माध्यम से चयन की प्रक्रिया में व्यक्तित्व परीक्षण/साक्षात्कार के चरण में भेदभाव की संभावना अधिक होती है। गौरतलब है कि दलित इंडियन चैंबर ऑफ कामर्स (डिक्की) द्वारा बीते सात दशकों में दलित बहुजन समाज के सशक्तिकरण की प्रक्रिया में आ रही समस्याओं पर एक अध्ययन किया गया है। इस अध्ययन पर आधारित इस रिपोर्ट में उक्त अनुशंसाएं की गयी हैं।

अंग्रेजी में खबर पढ़ने के लिए इस लिंक पर जाएं

पिछले दरवाजे से ‘खास’ लोगों की भर्ती यानी लैटरल इंट्री के खिलाफ बहुजनों का आंदोलन शुरू

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 संघ लोक सेवा आयोग ने एक बार फिर से बीते 5 फरवरी को ज्वाइंट सेक्रेटरी और डायरेक्टर के पदों पर लेटरल एंट्री के लिए आवेदन आमंत्रित किया है। यूपीएससी ने विभिन्न सरकारी विभागों में 3 ज्वॉइंट सेक्रेटरी और 27 डायरेक्टर लेवल के कुल 30 पदों के लिए आवेदन मांगे हैं। इस भर्ती से प्राइवेट सेक्टर के 30 और विशेषज्ञों को सीधे नियुक्त किया जाएगा। आयोग द्वारा निकाली गई इस भर्ती का मामला 9 फरवरी को संसद में उठा। समाजवादी पार्टी के राज्यसभा सांसद राम गोपाल यादव ने इस मुद्दे को संसद में उठाया और कहा कि ऐसा करने से सिविल सेवा प्रतिभागियों और आईएएस अधिकारियों में खासी नाराजगी है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि ऐसी नियुक्तियों में आरक्षण व्यवस्था का भी बिल्कुल ध्यान नहीं रखा गया है।

 इसी के विरोध में अब बहुजन समाज के बुद्धिजीवि और नेताओं ने खुलकर सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। 16 फरवरी को इसी के विरोध में जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन होना है। तो संविधान बचाओ संघर्ष समिति ने 7 मार्च को भारत बंद का आवाहन किया है। अखिलेश यादव से लेकर उदित राज और आम आदमी पार्टी के मंत्री राजेन्द्र पाल गौतम तक सबने लैटरल एंट्री को लेकर कड़ी प्रतिक्रिया जताई है। राजेन्द्र पाल गौतम ने तो आंदोलन का ऐलान कर दिया है। हम आंदोलन के मुद्दे पर बाद में आएंगे, पहले हम आपको बताते हैं कि क्या है लैटरल एंट्री और इसकी आड़ में देश के आम युवाओं के साथ किस तरह एक बड़ा धोखा किया जा रहा है जो सिविल सेवा में चयनित होने के लिए सालों साल जी-तोड़ मेहनत करते हैं।

क्या है लैटरल एंट्री संघ लोक सेवा आयोग जिन ज्वाइंट सेक्रेटरी और डायरेक्टरके पदों पर लेटरल एंट्री के लि आवेदन आमंत्रित किए हैं, आम तौर पर इन पदों पर सिविल सेवा अधिकारियों को नियुक्त किया जाता है। लेकिन अब लेटरल एंट्री की आड़ में इन पदों पर प्राइवेट सेक्टर के अनुभवी और विशेषज्ञ पेशेवरों को नियुक्त किया जा सकेगा। इन पदों पर नियुक्ति के लिए कोई लिखित परीक्षा नहीं होगी और उम्मीदवारों का चयन सिर्फ इंटरव्यू के आधार पर किया जाएगा। बस भर्ती के लिए आवेदक के पास मास्टर डिग्री होनी चाहिए। यूपीएससी ये भर्ती तीन साल के कॉन्ट्रेक्ट पर निकालती है, लेकिन प्रदर्शन के आधार पर इसे 5 साल तक बढ़ाया जा सकता है। पहली बार साल 2018 में ‘सीधी भर्ती व्यवस्था के जरिए संयुक्त सचिव रैंक के पदों के लिए आवेदन आमंत्रित किए गए थे। इसमें कुल 6,077 लोगों ने आवेदन किए थे। इसके तहत पहली बार निजी क्षेत्रों के नौ विशेषज्ञों को केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों में संयुक्त सचिव के पदों पर तैनाती के लिए चुना गया था।

क्या है आरक्षण को खतरा सीधे निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों को चुने जाने के कारण दलित, आदिवासी और पिछड़े वर्ग को भारी नुकसान हो रहा है, क्योंकि इस तरह की नियुक्तियों में आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है। इस कारण आरक्षित वर्ग के युवाओं को ऐसी नियुक्तियों में आरक्षण का कोई लाभ नहीं मिल पाएगा। न ही मुसलमान युवाओं को ही कोई मौका मिलेग। लेटरल एंट्री के तहत पहली बार जिन नौ लोगों को संयुक्ति सचिव के पदों पर नियुक्त किया गया, उनके नामों को गौर से देखिए। यह एक बानगी भर है। UPSC द्वारा चुने गए नौ विशेषज्ञों में अंबर दुबे (नागरिक उड्डयन), अरुण गोयल (वाणिज्य), राजीव सक्सेना (आर्थिक मामले), सुजीत कुमार बाजपेयी (पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन), सौरभ मिश्रा (वित्तीय सेवाएँ), दिनेश दयानंद जगदाले (नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा), सुमन प्रसाद सिंह (सड़क परिवहन और राजमार्ग), भूषण कुमार (शिपिंग) और काकोली घोष (कृषि, सहयोग और किसान कल्याण) शामिल हैं। यानी साफ है कि इन सीधी भर्तियों में दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों के लिए सारे रास्ते पूरी तरह बंद हैं जो उन्हीं की भर्ती होगी, जिन्हें सरकार चाहेगी।

हालांकि अब इसके खिलाफ माहौल बनने लगा है और तमाम आम और खास लोग लैटरल एंट्री के नाम खिलाफ मुखर होकर बोल रहे हैं। इस मुद्दो को सोशल मीडिया पर लंबे वक्त से उठा रहे वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल ने हाल ही में इस बारे में ट्विट किया है। उन्होंने लिखा है- लैटरल एंट्री तमाम जाति-धर्म के उन स्टूडेंट्स और युवाओं के हितों के ख़िलाफ़ है, जो Competition Exams की तैयारी में रात-रात भर जगते हैं। लैटरल एंट्री नौकरशाही का कोलिजियम सिस्टम है।

तो आईएएस सूर्यप्रताप सिंह (@suryapsingh_IAS) ने लिखा है-

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी इसके खिलाफ आवाज उठाई है। उन्होंने अपने ट्विट में लिखा-

तो वहीं वंचित तबके की आवाज को मजबूती से उठाने वाले राजेंद्र पाल गौतम जो कि दिल्ली सरकार में सोशल जस्टिस मिनिस्टर भी हैं, लैटरल इंट्री के खिलाफ आंदोलन का ऐलान कर दिया है।

 कुल मिलाकर देखें तो दिलीप मंडल की इस आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता कि लैटरल एंट्री की व्यस्था सही मायने में नौकरशाही का कोलेजियम सिस्टम बनाने की कोशिश है। 2-4 लाइन और बोलेंगे।

दलित युवा ने दादी को श्रद्धांजलि के जरिए एक पीढ़ी को किया याद, अंग्रेजी अखबार ने छापा

 पारिवारिक शोक की अवस्था में हम एक हो जाते हैं और अपने सामूहिक स्व से बंध जाते हैं। हमारा मन हमारी उन सबसे खूबसूरत बातों के बारे मे सोचने लगता है जिसे हम परिवार कहते हैं। परिवार एक सबसे मूल्यवान संस्था है जहां आदर और सम्मान का दिखावा नहीं किया जाता। यह एक ऐसी जगह है जहां हम अपने दिल से सहज ही करुणा और स्नेह बांटते हैं।

मेरी दादी, चंद्रभागाबाई ने अपने पूरे परिवार को रिश्तों के एक खूबसूरत धागे से बांध रखा था। इस साल की शुरुआत मे 4 जनवरी को रात 9 बजकर पंद्रह मिनट पर नांदेड के सिविल लाइन अस्पताल में उन्होंने आखिरी सांस ली। इस तरह मेरे लिए यह नया साल एक सदमे के साथ शुरू हुआ। 2020 अब तक का सबसे कठिन साल रहा है, उसे विदा करते हुए मैं 2021 की तरफ कुछ आशावादी नज़रिये के साथ देखना चाहता था। हालांकि यह आशावाद ज्यादा देर नहीं टिक सका। मेरी दादी, चंद्रभागाबाई ने अपने पूरे परिवार को रिश्तों के एक खूबसूरत धागे से बांध रखा था। इस साल की शुरुआत मे 4 जनवरी को रात 9 बजकर पंद्रह मिनट पर नांदेड के सिविल लाइन अस्पताल में उन्होंने आखिरी सांस ली। मेरी दादी अस्थमा की मरीज थीं, बीते पच्चीस साल से वे इस बीमारी से लड़ रही थीं। उन्हे सांस लेने मे दिक्कत आ रही थीं और उनका दम फूल रहा था। जिस दिन उन्होंने हमें अलविदा कहा उस दिन उन्होंने बहुत तकलीफ झेली। वे वेंटीलेटर पर थीं और उनका ब्लड प्रेशर लगातार ऊपर-नीचे हो रहा था।

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उस रात उनकी देखभाल करने की बारी मेरे भाई और चाचा की थी, उन्होंने उस रात मुझे आइसीयू में भर्ती मेरी दादी की फ़ोटो भेजी। फ़ोटो में साफ नजर आ रहा था कि वे सरकारी अस्पताल के पलंग पर एक फटे हुए गद्देपर लेटी हुई थीं, उस पलंग पर चादर भी नहीं थी। यह तस्वीर देखकर मैं अंदर तक टूट गया और एक गहरी उदासी ने मुझे घेर लिया। लाख कोशिश करने के बाद भी मैं अपनी दादी को इस हालत मे नहीं देख पा रहा था। मेरी बीमार दादी ने अस्पताल जाने के पहले मेरी माँ को रोते हुए गले लगाया था और रोते हुए ही मेरी माँ को नसीहत दी थी कि वो अपने बच्चों की यानि कि उनके पोते-पोतियों की ठीक से देखभाल करें। मेरे पिताजी छह साल पहले ही हमें छोड़कर चले गए थे; मेरी दादी अपने सबसे बड़े बेटे को बाबा कहकर बुलाती थीं और अपनी आँखों के सामने उन्हें मरता हुआ देखकर वे सदमे में डूब गयीं थीं। आज हम सब बड़े हो चुके हैं और आत्मनिर्भर हो गए हैं, लेकिन माँ का ममतामयी दिल आज भी पहले की तरह हमें उतना ही प्यार करता है।

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हफ्ते भर पहले मेरी बहन ने मुझे खबर दी थी कि आई (दादी) की तबीयत बहुत खराब है। मैंने तुरंत ही वीडियो कॉल करके बात की। मेरी दादी का चेहरा सूजा हुआ था इसके बावजूद वे कैमरे की तरफ देख पा रहीं थीं और मेरी चचेरी बहन की मदद से बातचीत कर पा रही थीं। कुछ साल पहले ही आई को सुनाई देना बंद हो गया था। उनके कान बहुत कमजोर हो गए थे और हमें सलाह दी गयी थी कि अब सुनने की मशीन वगैरह लगाकर इन कमजोर कानों पर जोर डालना ठीक नहीं है। चंद्रभागाबाई के बच्चे उन्हें आई कहते थे, बाद मे उनके पोते-पोतियाँ भी उन्हे आई कहने लगे। दादी के कान अपने तीन लड़कों के मुंह से निकलने वाले सुरीले “आई” शब्द को सुनने के आदि हो चुके थे। बाद में नौ पोते-पोतियों ने इसमें सुर मिलाकर इसे और सुरीला बना दिया। आई ने एक भरपूर जीवन जीया। उन्होंने अपने बच्चों और पोते-पोतियों को अपनी आँखों के सामने आदमकद होते हुए और फलता-फूलता देखा। उनकी ऊंचाई करीब चार फीट थी। हम जब भी उन्हें गले लगाते थे, तब हमें नीचे झुकना होता था ताकि वे विशाल बाज़ की तरह अपनी बाहें फैलाकर हमें अपनी आग़ोश में ले सकें। इस तरह जब हम उनकी आग़ोश में होते थे, हम बहुत महफ़ूज महसूस करते थे। उनकी झुर्रीदार चमड़ी बहती हुई नदी के पत्थरों की तरह चिकनी हो गई थी।

उनसे गले मिलने पर वे आपको कम से कम एक मिनट तक अपनी आग़ोश में ले लेतीं थीं और फिर आपको ढेर सारे चुंबन झेलने होते थे। वे हमें उसी तरह चूमती थीं जिस तरह कि वे हमें हमारे दुधमुँहेपन में चूमा करती थीं। मैं अक्सर सोचता रहा हूँ कि आज जब उनके सभी पोते-पोतियाँ इतने बड़े हो गए हैं, तब हमें देखकर उन्हे कैसा लगता होगा? मुझे आज एक सम्मानजनक स्थिति में देखकर वे मुझे ‘साहेब’ कहकर बुलाती हैं, इसके पहले वे मुझे बाला कहकर पुकारतीं थीं। वे मुझे ‘तुम्हीं’ या हिन्दी के ‘आप’ जैसे सम्मानजनक सम्बोधनों से भी पुकारती थीं। यह बदलाव उनके जीवन में स्वाभाविक रूप से आया था। ठीक वैसे ही जैसे कि कोई व्यक्ति किसी उच्च शिक्षित या उच्च अधिकारी व्यक्ति के सामने स्वाभाविक रूप से झुकता है, या उसके मातहत काम करता है। चंद्रभागाबाई, यानि कि मेरी आई की कहानी आज की बुजुर्ग दलित पीढ़ी के जीवन को दर्शाती है।

मेरे परिवार को चंद्रभागाबाई के जन्म के साल तक के बारे में भी सही जानकारी नहीं है, ऐसे में तारीख और महीने की तो बात ही क्या की जाए। अगर उनके बच्चों की उम्र से हिसाब लगाया जाए तो सबसे सही अंदाज़ा यह है कि वे सन 1940 में पैदा हुई होंगी। वे एक खेतिहर मजदूर ‘हनुमंते’ के परिवार मे पैदा हुईं थीं। उन्हें बहुत बचपन से ही जात-पात से जुड़े नियम-कायदे सिखा दिए गए थे। अपने बचपन की यादें ताज़ा करते हुए दादी हमें सुनाती थीं “हमें सिखाया गया था कि ऊंची जाति के लोगों के खाने या पीने के पानी के बर्तन नहीं छूने हैं”, “हमें कभी भी सम्मान से पीने का पानी नहीं दिया गया, हमें हमेशा काफी ऊंचाई से पानी पिलाया जाता था”। मेरी दादी ने अपने बचपन में एक मराठा किसान की जमीन पर मजदूरी की। फसल कटाई के दिनों में उनका परिवार दिन भर में 25 पैसा कमाता था। मेरी दादी ने ज़िंदगी भर कभी स्कूल का मुंह तक नहीं देखा।

चंद्रभागाबाई अपने दो भाइयों से बड़ी थीं और अपनी बहन से छोटी थीं, और जैसा कि बड़ी बहनों के साथ हमेशा होता आया है, मेरी दादी का बचपन भी अपने दो छोटे भाइयों की देखभाल में गुज़रा। नांदेड की उस्मान शाही मिल मे काम करने वाले अपने कामरेड पति के साथ एक अलग-थलग बसी दलित झुग्गी बस्ती में उन्होंने आधा शहरी और आधा देहाती जीवन जीया। मेरे दादा-दादी बिना दरवाजे के एक कामचलाऊ से कमरे में रहते थे जिसकी दीवारें प्लास्टिक की ताड़पत्री से बनीं थीं और दरवाजा सूखी टहनियों से। चंद्रभागाबाई के तीन लड़के हुए, जिन्हें पालने के लिए उन्होंने तरह तरह के छोटे-मोटे काम किये। उन्होंने खेतों में और जूता फेक्टरी में काम किया और दलित छात्रों के हॉस्टल में खाना बनाने का काम भी किया। एक दमघोंटू कमरे में पूरे हॉस्टल के बच्चों के लिए दिन में तीन बार खाना बनाने का काम उनकी सेहत पर बहुत भारी पड़ा। लेकिन उन्हें इन हालात से जूझना ही था, अपने बच्चों के लिए उन्होंने यह सब झेला। गरीबी उन्हें विरासत मे मिली थी लेकिन इसके बावजूद वे एक साफ-सुथरी सूती-साड़ी पहनतीं थीं और इस मामले में कभी कोई समझौता नहीं किया। वे बहुत खूबसूरत थीं। फिर भी उन्हें अन्य भारतीय लड़कियों की तरह शादी के बाद जहरीली पितृ सत्ता का शिकार बनना पड़ा।

एक समय वह भी था जबकि चंद्रभागाबाई की कहानी या उनके लिए उनके पोते द्वारा लिखी गयी श्रद्धांजलि, और वो भी इंग्लिश में, कभी किसी अंतर्राष्ट्रीय अखबार में नहीं छप सकती थी। लेकिन आज यह संभव है और यह दलित समुदाय के लिए एक चमत्कार जैसा है, और हकीकत में यह एक दुर्लभ घटना है। वे महान जीवट वाले लोगों के उस समुदाय में जन्मीं थीं जिसे सबसे निचला और अछूत माना जाता था। जिंदगी और समय ने इन्हें जो कुछ भी दिया था, उससे भी आगे बढ़कर उन्होंने एक बड़ा सपना देखा था। हम दलितों के लिए हमारे पूर्वज ही हमारे देवता हैं और उन्हीं के जीवन को हम आगे बढ़ाते हैं। मेरी दादी अपनी रूह के जरिए हमें रास्ता दिखाने के लिए, अपने कामों से हमारे मन में विश्वास जगाने के लिए, हमें सहिष्णुता, ईमानदारी और प्रेम सिखाने के लिए हमारे पूर्वजों के देवसमूह में शामिल हो गयीं। मैं यह श्रद्धांजलि उन सभी दादियों-दादाओं के लिए लिख रहा हूँ जिनके महान वात्सल्य और धैर्य ने अपने पोते-पोतियों को इस लायक बनाया कि वे विरासत में मिले नैतिक मूल्यों से आगे बढ़कर कुछ और हासिल करने के लिए संघर्ष कर सकें।

जिन लोगों ने इन दिनों में अपने किसी प्रियजन को खो दिया है, मैं उनके दुख में शामिल हूँ। हमने जो खोया है वह एक अपूरणीय क्षति है, लेकिन हमें अपने बिछड़ गए परिजनों के साथ बिताए गए खूबसूरत पलों के बारे में सोचना चाहिए। आखिर में सिर्फ यादें ही रह जातीं हैं। इन खूबसूरत पलों की याद्दाश्त ही हमें आगे बढ़ने की ताकत देती है। मुझे लगता है कि ऐसे दुख को साझा करने के लिए समाज में एक सार्वजनिक मंच होना चाहिए। समाज में सामूहिक रूप से शोक मनाने की एक आदत बननी चाहिए। जिंदगी की एक बुनियादी सच्चाई, जिसे आज तक कोई नहीं बदल पाया– हमें उसका सम्मान करना सीखना चाहिए, और वो सच्चाई है– मृत्यु। मृत्यु को एक अंतिम सत्य मानकर और उसे स्वीकार करके हम जीवन की सारभूत शांति को हासिल कर सकते हैं। हमें मृत्यु को गले लगाना सीखना चाहिए यही हमें बुद्ध के बोधि-प्रकाश की ओर ले जाता है। मेरी दादी एक अछूत की तरह जन्मीं थीं लेकिन एक बौद्ध बनकर उन्होंने दुनिया को अलविदा कहा।

अगर हमारे आंतरिक जीवन में संतोष है, तभी समता की अनुभूति हमारे दुखी मन को शांत कर सकती है। पारिवारिक शोक की अवस्था में हम एक हो जाते हैं और अपने सामूहिक स्व से बंध जाते हैं। हमारा मन हमारी उन सबसे खूबसूरत बातों के बारे मे सोचने लगता है जिसे हम परिवार कहते हैं। परिवार एक सबसे मूल्यवान संस्था है जहां आदर और सम्मान का दिखावा नहीं किया जाता। यह एक ऐसी जगह है जहां हम अपने दिल से सहज ही करुणा और स्नेह बांटते हैं। यह एक ऐसी अनुभूति है जिसे हमें आपस मे बांटना चाहिए ताकि हम एक बेहतर इंसान बन सकें।


सूरज येंगड़े का यह आर्टिकल इंडियन एक्सप्रेस के नियमित कॉलम ‘Dalitality’ में प्रकाशित हुआ है। हिन्दी अनुवाद- संजय श्रमण

यहां देखिए 200 बहुजन साहित्य की लिस्ट, तुरंत कर सकते हैं बुकिंग

 बहुजन समाज के तमाम नायकों के संघर्ष और बलिदान के कारण दलित, आदिवासी और पिछड़े वर्ग में नई चेतना जागी है। बीते तकरीबन दो दशकों में इस वंचित समाज में नई राजनैतिक और धार्मिक चेतना जगी है तो इसमें दलित-बहुजन साहित्य और दलित-बहुजन साहित्यकारों की बहुत बड़ी भूमिका है। ‘दलित दस्तक’ की हमेशा से यह कोशिश रही है कि वह तमाम माध्यमों के जरिए दलित/आदिवासी/पिछड़े समाज या यूं कहें कि बहुजन मूलनिवासी समाज तक तमाम ऐसी सूचनाएं पहुंचाने का काम करें जिससे बहुजन मूलनिवासी समाज में राजनैतिक, धार्मिक और सांस्कृतिक चेतना का संचार हो। इसी कड़ी में दलित दस्तक के संपादक अशोक दास द्वारा साल 2020 में बहुजन साहित्य को एक जगह मुहैया कराने के लिए बहुजन बुक्स (www.Bahujanbooks.com) नाम की एक वेबसाइट शुरू की गई थी। यहां पर ही आपको तमाम अलग-अलग प्रकाशकों-लेखकों द्वारा प्रकाशित और लिखित पुस्तकें मिल जाएंगी।

दरअसल बहुजन समाज के लिए जरूरी किताबों के बारे में तमाम पाठकों को पता नहीं होता। किताबों के नाम पता होते हैं तो लेखक या प्रकाशक का नाम पता नहीं होता, जिसकी वजह से उन्हें पुस्तकें ढूंढ़ने में असुविधा होती है और वह चाह कर भी बहुजन आंदोलन की पुस्तकें नहीं पढ़ पाते हैं। देश के छोटे शहरों और गांवों में रहने वाले अम्बेडकरी-फुले विचारधारा को मानने वाले साथियों को तो और भी दिक्कतें आती हैं। इसलिए हम आपको यहां किताबों के नाम दे रहे हैं। आपको जो पुस्तक चाहिए, उसके नाम पर क्लिक कर सीधे किताब की बुकिंग कर सकते हैं। बिल्कुल कम खर्चे में किताब आपके घर तक स्पीड पोस्ट डाक के जरिए 10 दिनों के भीतर पहुंचाई जाएगी। इस लिस्ट में बाबासाहब डॉ. आंबेडकर द्वारा लिखी हिन्दी और अंग्रेजी की तमाम पुस्तकें भी हैं। साथ ही तमाम चर्चित दलित, पिछड़े समाज के बुद्धिजीवियों द्वारा लिखित किताबों को भी शामिल किया गया है। आपका कोई सुझाव हो या आप कोई ऐसी पुस्तक मंगवाना चाहते हैं जो इस लिस्ट में नहीं है, या आप हमसे किताबों की कोई सूची साझा करना चाहें तो आपका स्वागत है। आप हमें ई-मेल कर सकते हैं-  Email- bahujanbook@gmail.com

  1. 50 बहुजन नायक
  2.  जनता  (डॉ. आंबेडकर द्वारा प्रकाशित पत्र का संपादकीय)
  3. बोधिसत्व बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर की धम्मदीक्षा का अविस्मरणीय इतिहास
  4. मैं ओबीसी बोल रहा हूँ
  5. पालि साहित्य का इतिहास
  6. मुक्ति कौन पथे
  7. करिश्माई कांशीराम
  8. मुर्दहिया (तुलसी राम की आत्मकथा का पहला खंड)
  9. मणिकर्णिका (तुलसी राम की आत्मकथा का दूसरा खंड)
  10. दलित एजेंडा 2050
  11. शब्बीरपुरः जलते घर- सुलगते सवाल
  12. चमचा युग
  13. धोबी समाज का संक्षिप्त इतिहास
  14. राष्ट्र की जरूरतः राम मंदिर या सामाजिक अन्यायमुक्त भारत निर्माण
  15. प्रेमचंदः दलित संदर्भ की कहानियां
  16. जूठन- पार्ट 1 ( आत्मकथा- ओमप्रकाश वाल्मीकि)
  17. जूठन (दूसरा खंड) (आत्मकथा- ओमप्रकाश वाल्मीकि)
  18. तथागत बुद्धः जीवन और देशनाएं
  19. बहुजन समाज पार्टी एवं संरचनात्मक परिवर्तन (लेखकः डॉ. प्रो. विवेक कुमार)
  20. बुद्ध या कार्ल मार्क्स (लेखक- बाबासाहब आंबेडकर)
  21. रामा एंड कृष्णा (लेखक- बाबासाहब आंबेडकर)
  22. कुम्हार जाति का संक्षिप्त इतिहास
  23. शहीद भगत सिंह, जीवन और संदेश
  24. रानाडे, गांधी और जिन्ना (लेखक- बाबासाहब आंबेडकर)
  25. भारत में जातियां (लेखक- बाबासाहब आंबेडकर)
  26. महानायक मदारी पासी
  27. गुलामगिरी (लेखक- ज्योतिबा फुले)
  28. बहुजन कैलेंडर (बहुजन आंदोलन से जुड़ी तारीखों का इतिहास)
  29. सामाजिक क्रांति की योद्धाः सावित्री बाई फुले (जीवन- चरित्र)
  30. सर्वश्रेष्ठ दलित कहानियां
  31. डॉ. आंबेडकर और वाल्मीकि समाज
  32. मैं एक कारसेवक था
  33. चमार जाति का गौरवशाली इतिहास
  34. एक था डॉक्टर एक था संत (लेखक- अरुंधति राय)
  35. भगवान बुद्ध धम्म-सार व धम्म-चर्या (लेखक-आनंद श्रीकृष्ण)
  36. संत रविदासः एक समाज सुधारक, चिंतक और दार्शनिक
  37. आधी आबादी का दर्द
  38. राष्ट्रनिर्माता बाबासाहेब अम्बेडकर
  39. दलितों बिजनेस की ओर बढ़ो
  40. अछूत कौन और कैसे
  41. जातिभेद का उच्छेद (लेखक- बाबासाहब आंबेडकर)
  42. एजुकेशन डायवर्सिटी
  43. जोहड़ी
  44. धर्मग्रंथों का पुर्नपाठ
  45. पासी समाज का दर्पण
  46. डॉ. बाबा साहब अंबेडकर जीवन चरित (लेखकः धनंजय कीर)
  47. हरिजन से दलित
  48. वाल्मीकि जातिः उद्भव, विकास और वर्तमान समस्याएं
  49. भारशिव नाग एवं उनके वंशज
  50. बहिष्कृत भारत में प्रकाशित डॉ. अम्बेडकर के संपादकीय
  51. बहनजी
  52. गोंड
  53. देशभक्त बिरसा
  54. भीमा कोरेगांव की शौर्यगाथा
  55. बहिष्कृत भारत (लेखक- बाबासाहब आंबेडकर)
  56. नदियां बहती रहेंगी (कविता संग्रह)
  57. सलाम (लेखकः ओमप्रकाश वाल्मीकि)
  58. दुसाध जातिः उद्भव और विकास
  59. क्रांति और प्रतिक्रांति
  60. अछूत (आत्मकथा, दया पंवार)
  61. सम्राट अशोक
  62. छप्पर (लेखकः जयप्रकाश कर्दम)
  63. सफाई देवता (लेखकः ओमप्रकाश वाल्मीकि)
  64. घुसपैठिये (लेखकः ओमप्रकाश वाल्मीकि)
  65. अपने-अपने पिंजरे– खंड 1 (आत्मकथा- मोहनदास नैमिशराय)
  66. अपने-अपने पिंजरे– खंड 2 (आत्मकथा- मोहनदास नैमिशराय)
  67. छूआछूत
  68. दलित कौड़ी से करोड़पति
  69. दलितों को अनपढ़ रखने की साजिश
  70. सावित्रीबाई फुले की कविताएं (लेखकः सावित्रीबाई फुले)
  71. पूना पैक्ट
  72. राज्य और अल्पसंख्यक
  73. मूकनायक
  74. संत कबीरः विचार एवं दर्शन
  75. दलित ब्राह्मण
  76. सपनों के पंख
  77. भगवान बुद्ध और उनका धम्म (लेखक- बाबासाहब आंबेडकर)
  78. भारत में छोटी जोतें, समस्या और समाधान (लेखक- बाबासाहब आंबेडकर)
  79. डॉ. अम्बेडकर के पत्र (लेखक- बाबासाहब आंबेडकर)
  80. रुपये की समस्या (लेखक- बाबासाहब आंबेडकर)
  81. शूद्रों की खोज (लेखक- बाबासाहब आंबेडकर)
  82. BUDDHA OR KARL MARX (लेखक- बाबासाहब आंबेडकर)
  83. CASTES IN INDIA (लेखक- बाबासाहब आंबेडकर)
  84. What the Buddha Taught (लेखक- बाबासाहब आंबेडकर)
  85. ANNIHILATION OF CASTE (लेखक- बाबासाहब आंबेडकर)
  86. STATE AND MINORITIES (लेखक- बाबासाहब आंबेडकर)
  87. PAKISTAN OR The PARTITION OF INDIA (लेखक- बाबासाहब आंबेडकर)
  88. BUDDHA AND HIS DHAMMA (लेखक- बाबासाहब आंबेडकर)
  89. Dr. Babasaheb Ambedkar Life and Mission [Eng] (लेखक- बाबासाहब आंबेडकर)
  90. Dalit Assertion and Bahujan Samaj Party (लेखक- बाबासाहब आंबेडकर)
  91. RANADE, GANDHI AND JINNAH (लेखक- बाबासाहब आंबेडकर)
  92. Mr. Gandhi and Emancitation of the Untouchables (लेखक- बाबासाहब आंबेडकर)
  93. Riddle of Rama and Krishna (लेखक- बाबासाहब आंबेडकर)
  94. The Problem of the Rupee (लेखक- बाबासाहब आंबेडकर)
  95. The Untouchables (लेखक- बाबासाहब आंबेडकर)
  96. Problem of Rupees (लेखक- बाबासाहब आंबेडकर)
  97. स्वतंत्रता संग्राम में अछूत जातियों का योगदान
  98. डॉ. आम्बेडकर के प्रेरक भाषण
  99. डॉ. अम्बेडकर जीवन दर्शन
  100. गैर दलितों के भी उद्धारक बाबासाहेब डॉ. आम्बेडकर
  101. डॉ. बी. आर. आम्बेडकर द्वारा राज्यसभा में दिए गए भाषण
  102. बाबासाहेब डॉ. आम्बेडकर और महाप्राण जोगेन्द्र नाथ मंडल
  103. बाबासाहेब द्वारा लड़े गए मुकदमें
  104. दक्खिन टोला
  105. बहुजन
  106. स्वामी अछूतानन्द ‘हरिहर’ और हिन्दी नवजागरण
  107. दलित वीरांगनाएँ एवं मुक्ति की चाह
  108. केशर कस्तूरी (लेखकः शिवमूर्ति)
  109. त्रिशूल (लेखकः शिवमूर्ति)
  110. दलित चेतना की कहानियाँ
  111. गोलपिठा (लेखकः नामदेव ढसाल)
  112. स्वामी अछूतानन्द ‘हरिहर’ संचयिता
  113. बाल्मीकि – वाणी
  114. गवरमेंट ब्राह्मण
  115. आदिवासी शौर्य एवं विद्रोह 
  116. मेरा बचपन मेरे कन्धों पर (आत्मकथा- श्योराज सिंह बेचैन)
  117. वीरांगना झलकारी बाई (लेखकः मोहनदास नैमिशराय)
  118. सफाई कामगार समुदाय
  119. दलित साहित्य अनुभव, संघर्ष एंव यथार्थ (लेखकः ओमप्रकाश वाल्मीकि)
  120. अब और नहीं… (लेखकः ओमप्रकाश वाल्मीकि)
  121. दलित साहित्य का सौन्दर्यशास्त्र
  122. बस्स! बहुत हो चुका (लेखकः ओमप्रकाश वाल्मीकि)
  123. निर्माण-पुरुष डॉ. अम्बेडकर की संविधान यात्रा
  124. बिरसा मुंडा और उनका आंदोलन
  125. भारत का संविधान
  126. मुद्राराक्षस संकलित कहानियां
  127. दलितों-पिछड़ों की मुक्ति के सवाल
  128. गाडगे बाबा और उनका मिशन
  129. पिछड़ा वर्ग और डॉ. आंबेडकर
  130. आजादी का आंदोलन और भारतीय मुसलमान
  131. जोतिबा फूले
  132. सवर्ण और विभागवार आरक्षण
  133. अबुआ राज की चुनौतियाँ
  134. सर्वव्यापी आरक्षण की जरूरत
  135. हकमार वर्ग
  136. धन के न्यायपूर्ण बंटवारे के लिए डाईवर्सिटी ही क्यों
  137. सावित्रीबाई फूले के भाषण
  138. नामकरण संस्कार व 15 हजार नाम
  139. बिपस्सना
  140. जहं जहं चरन परे गौतम के
  141. उत्कोच (लेखकः जयप्रकाश कर्दम)
  142. कांशीराम बहुजनो के नायक
  143. दलित नजर में मीडिया
  144. दलित पत्रकारिता और विमर्श
  145. अक्करमाशी
  146. चिंतन के जनसरोकार
  147. भारतीय दलित साहित्य परिप्रेक्ष्य
  148. भोर के अंधेरे में
  149. चमार की चाय (प्रो. श्योराज सिंह बेचैन)
  150. डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर और अछूतों का आंदोलन
  151. भारत का संविधान (हिन्दी)
  152. भारत का संविधान (हिन्दी-अंग्रेजी)
  153. गोदान
  154. गाडगे बाबा जीवन दर्शन
  155. लोहिया के विचार
  156. मदर इंडिया (कैथरीन मायो)
  157. महिषासुरः मिथक और परंपराएं
  158. संत रविदास (जीवन और दर्शन)
  159. कबीर ग्रंथावली
  160. भारत का संविधान
  161. बहुजनों बिजनेस की ओर बढ़ो
  162. कबीरः साखी और सबद
  163. जाति का विनाश (संदर्भ टिप्पणियों सहित)
  164. बिरसा मुंडा और उनका आंदोलन
  165. बिहार की चुनावी राजनीति
  166. बहुजन साहित्य की प्रस्तावना
  167. समकालीन भारत में दलित
  168. DALIT PANTHERS
  169. दलित पैंथर (हिन्दी)
  170. जाति के प्रश्न पर कबीर
  171. महिषासुरः एक जननायक
  172. पेरियारः दर्शन-चिंतन और सच्ची रामायण
  173. मैं भंगी हूं
  174. धर्म बनाम अंधविश्वास
  175. दलित और मानवाधिकार
  176. मेरिट, मंडल और आरक्षण
  177. चमार रेजिमेंट और अनुसूचित जातियों की सेना में भागीदारी
  178. धर्म और विश्वदृष्टि
  179. कांग्रेस और गाँधी ने अछूतों के लिए क्या किया
  180. बौद्ध सभ्यता की खोज
  181. खुसरो भंगी
  182. नंदों और सेनों की उत्पत्ति और इतिहास
  183. महार लोक
  184. इतिहास का मुआयना
  185. सम्राट हिरण्यकश्यप
  186. सिन्धु घाटी सभ्यता के सृजनकर्ता शूद्र और वणिक
  187. भर/ राजभर साम्राज्य
  188. महाबली बाबा चौहरमल
  189. पंचाल राजवंश का प्राचीन इतिहास
  190. कोसलराज पसेनदि (मांग-मातंग जाति के आदि पुरुष)
  191. छत्रपति शाहूजी महाराज संघर्ष और इतिहास
  192. महाराजा बलि और उनका वंश
 

2025 तक 10 करोड़ लोगों को बौद्ध धर्म से जोड़ेंगे- राजेन्द्र पाल गौतम

 1983 में दसवीं पास करने के बाद राजेन्द्र पाल गौतम आंबेडकरी आंदोलन से जुड़ गए। शुरुआत गरीब बच्चों को पढ़ाने से हुई। 1987 में समता सैनिक दल से जुड़ें, जहां राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष, राष्ट्रीय प्रवक्ता और फिर राष्ट्रीय प्रधान महासचिव बनाए गए। दिल्ली में बाबासाहब के परिनिर्वाण स्थल 26 अलीपुर रोड की कोठी को मुक्त कराने और उसे स्मारक घोषित करवानेके संघर्ष में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सामाजिक जीवन में उन्होंने हजारों आंदोलनों में हिस्सा लिया।अन्ना आंदोलन के बाद वह आम आदमी पार्टी में शामिल हो गए और राजनीतिक जीवन की शुरुआत की। 19 मई 2017 को वह केजरीवाल सरकार में मंत्री बनें और तब से वह लगातार राजनीतिक तौर पर सक्रिय हैं। राजेन्द्र पाल गौतम इन दिनों चर्चा में हैं। एक वजह राजनीतिक है, दूसरी सामाजिक। राजनीतिक वजह यह है कि वह उत्तर प्रदेश में जिला पंचायत चुनाव के पर्यवेक्षक बनाए गए। जबकि सामाजिक वजह यह है कि उन्होंने“मिशन जय भीम” नाम से एक सामाजिक संगठन बनाया है, जिसके तहत उन्होंने साल 2025 के अशोक विजय दशमी तक 10 करोड़ लोगों को बौद्ध धम्म से जोड़ने का लक्ष्य रखा है। ‘दलित दस्तक’ के संपादक अशोक दास ने राजेन्द्र पाल गौतम से बात की।

 आप अपनी पार्टी (आम आदमी पार्टी) की ओर से उत्तर प्रदेश में जिला पंचायत चुनाव के पर्यवेक्षक बनाए गए हैं, क्या वहां दलित वोटों को आम आदमी पार्टी की ओर लाने की जिम्मेदारी आपको दी गई है? – पहले हमलोग भी भावनात्मक रूप से बसपा के साथ जुड़े रहे हैं। बहुजन समाज पार्टी को मजबूत करने में हमने भी अपने जीवन का महत्वपूर्ण समय लगाया। बहनजी ने उत्तर प्रदेश में जो काम किया, बहुजन समाज के हर व्यक्ति की तरह मैं भी उसकी प्रशंसा करता हूं। उन्होंने जो स्मारक बनाएं वो हमें भावुक कर देते हैं। वह ऐतिहासिक हैं। लेकिन मैं नहीं जानता कि अब बहनजी की क्या मजबूरी है कि वो सामाजिक मुद्दों पर पहले की तरह प्रखर नहीं हैं। मैं उनका सम्मान करता हूं इसलिए मैं उनके खिलाफ कुछ नहीं बोलूंगा। समाज उनको अब भी प्यार करता है लेकिन सच्चाई यह भी है कि समाज को उनके हक के लिए लड़ने वाला नेता भी चाहिए। हमें अपनी लड़ाई तो लड़नी है। मैं अपनी पार्टी का जिम्मेदार सिपाही हूं और पार्टी को बढ़ाने के लिए देश भर में जाना है। केवल दलित चेहरे की बात नहीं है और बात वोट बैंक की भी नहीं है। जनता किसी का भी वोट बैंक नहीं होती, जो उनके लिए काम करता है, जनता उससे जुड़ती है।

राजेन्द्र पाल गौतम, एक परिचय  विधायक, सीमापुरी विधानसभा / दिल्ली में जन्में, पले-बढ़े / पेशे से वकील  साल 2014 में आम आदमी पार्टी में शामिल हुए, 2015 में विधायक बने और19 मई 2017 कोमंत्री बनें  वर्तमान में 5 मंत्रालयों का प्रभार- महिला एवं बाल विकास, समाज कल्याण, एससी-एसटी ओबीसी वेलफेयर, गुरुद्वारा चुनाव प्रबंधन, सहकारिता विभाग  आम आदमी पार्टी में नेशनल एक्जिक्युटिव काउंसिल के मेंबर

 यूपी का दलित समाज बसपा की बजाय आम आदमी पार्टी का समर्थन क्यों करे? – देश के अंदर अभी दो तरह के मॉडल हैं। एक मॉडल गुजरात का मॉडल है, जिसमें विपक्ष को खत्म किया जाता है, बोलने वालों के खिलाफ रासुका लगाकर जेल में डाला जाता है और सरकारी एजेंसियों के छापे डलवाए जाते हैं और विपक्ष की आवाज को खत्म किया जाता है। इस गुजरात मॉडल में पूंजीवादियों के हवाले देश की जमीने की जा रही है। यह गुजरात मॉडल देश को बर्बाद कर रहा है। वहीं दूसरी ओर आम आदमी पार्टी का दिल्ली का मॉडल है, जिसमें गरीब लोगों को ध्यान में रखते हुए योजना बनती है। जैसे “जय भीम मुख्यमंत्री प्रतिभा विकास योजना” बनी जिसका फायदा सभी वर्ग के 15 हजार छात्रों को मिला। जो भय का वातावरण पूरे देश में है, और जिस तरह जाति और धर्म की राजनीति है, उसको खत्म कर के काम की राजनीति में आना होगा।

 आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल पर आरोप है कि वो अगस्त 2008 में जेएनयू में यूथ फॉर इक्वैलिटी फोरम के कार्यक्रम में शामिल हुए थे, जो आरक्षण के खिलाफ रही है। – आरक्षण के बिना कुछ भी होना संभव नहीं है। आरक्षण न होता तो न मैं एमएलए बनता और न मंत्री। आज हम यहां हैं तो बाबासाहब का समाज के लिए किया गए बलिदान और आरक्षण की वजह से हैं। रही बात अरविंद केजरीवाल जी की तो रोहित वेमुला की शहादत के बाद जंतर-मंतर पर हुए आंदोलन के दौरान भी उनसे यह सवाल पूछा गया था, उस वक्त उन्होंने साफ कहा था कि हम आरक्षण के समर्थक हैं और जो भी ऐसा कहता है दुष्प्रचार करता है। उन्होंने साफ कहा था कि आरक्षण के बिना इस समाज का विकास संभव नहीं है। हां, उन्होंने एक बात यह जरूर जोड़ी थी कि आरक्षण का दायरा बढ़ाया जाए। जो लोग अब तक गांव के बाहर नहीं निकले हैं, जिन्हें अब तक आरक्षण का हक नहीं मिला है, उन्हें भी इसका लाभ मिलना चाहिए।

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 खबर है कि आपने सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से बीते दिनों मुलाकात की थी, क्या यूपी के आगामी विधानसभा चुनावों में आपलोग सपा से गठबंधन करने जा रहे हैं? – हम लोग उत्तर प्रदेश में अपने संगठन का मजबूती से निर्माण कर रहे हैं। इस जिला पंचायत चुनाव को हम अवसर की तरह देख रहे हैं। इस चुनाव के माध्यम से हम बूथ लेवल पर अपने कार्यकर्ताओं को तैयार कर रहे हैं और अपनी पॉलिसी को गांव-गांव तक पहुंचा रहे हैं। हमारा लक्ष्य 2022 में उत्तर प्रदेश में सरकार बनाना है। इस दमनकारी सरकार के खिलाफ अगर हमें किसी से बात भी करनी पड़ी तो संभवतः हमारा केंद्रीय नेतृत्व उस पर जरूर फैसला लेगा।

 आपके पास दिल्ली सरकार में सोशल वेलफेयर से जुड़े तमाम विभाग हैं, आपकी सरकार के वो पांच काम कौन हैं, जिससे हाशिये के समाज का भला हुआ है? – पहला, जय भीम मुख्यमंत्री प्रतिभा विकास योजना है। इसमें गरीब से गरीब बच्चों को जो सिविल सर्विस, डॉक्टर, इंजीनियर जैसे क्षेत्र में जाना चाहते हैं, उन्हें कोचिंग के माध्यम से इसमें मदद की जा रही है।दूसरा,सीवर की सफाई में लगे लोगों के लिए हमने सीवर सफाई के मशीन मुहैया कराएं और इसका मालिक उन्हीं लोगों को बनाया, जो यह काम करते थे। तीसरा, विदेशों में उच्च शिक्षा के लिए जाने वाले हमारे विद्यार्थियों को आर्थिक मदद करने के लिए एक योजना बनाई गई है। चौथा, बाबासाहब डॉ. आंबेडकर के बहुआयामी चरित्र पर तीन चैप्टर लिखवा कर छठवीं, सातवीं और आठवीं कक्षा के विद्यार्थियों के पाठ्यक्रम में शामिल किया। पांचवां, विकलांगों, विधवा महिलाओं और आंगनबाड़ी महिलाओं को मिलने वाली राशि को दोगुना किया गया। ये तो पांच मुख्य काम हैं, इसके अलावे भी हम तमाम अन्य योजनाओं के माध्यम से एससी-एसटी समाज और गरीबों को ज्यादा से ज्यादा लाभ मुहैया कराने की दिशा में काम कर रहे हैं।

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 आप दिल्ली सरकार में मंत्री हैं, सोशल वेलफेयर के तमाम विभाग आपके पास हैं, वहां से आप वंचित समाज की अधिकार पूर्वक मदद भी कर सकते हैं, ऐसे में आपको “मिशन जय भीम” नाम से सामाजिक संगठन बनाने की जरूरत क्यों महसूस हुई? – दरअसल मेरे दिमाग में एक योजना यह थी कि हमारे समाज के जो रिटायर्ड अधिकारी हैं, जो नौकरी में रहते हुए सरकार के लिए योजनाएं बनाते हैं लेकिन रिटायर होने के बाद समाज को उनका फायदा नहीं मिल पाता। पहले से जोसंगठन हैं और वहां जो पदाधिकारी जमे हैं, उसमें से ज्यादातर किसी का सुझाव नहीं लेना चाहते हैं। ऐसे में मैंने सोचा कि क्यों न सरकारी पदाधिकारियों को एक साथ लेते हुए हमारे समाज के महापुरुषों के विचार को आगे बढ़ाया जाए। जो अधिकारी सरकार के लिए योजनाएं बना सकते हैंवो समाज की भलाई के लिए भी योजनाएं बना सकते हैं। इस संगठन से देश भर से लोग जुड़ रहे हैं और कंट्रीब्यूशन भी दे रहे हैं। मैं इस संगठन में एक मेंटर, एक सलाहकार की हैसियत से जुड़ा हूं। हमने दिल्ली के अंदर एक जमीन ले ली है। यहां हम स्थायी कैडर सेंटर स्थापित करेंगे, जहां हम अपने समाज के महापुरुषों के जीवन-संघर्ष के बारे में पढ़ाएंगे। हम एक महीने, दो महीने का कोर्स डिजाइन करेंगे। डाक्यूमेंट्री फिल्म और किताबों के माध्यम से हमारे बहुजन समाज के युवाओं को उनका इतिहास बताएंगे। साथ ही साथ युवाओं को आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर बनाने का काम करेंगे। जब अन्य समाज के लोग अपने कॉलेज बना सकते हैं, आर्थिक नीतियां बना सकते हैं तो हम क्यों नहीं बना सकते।हमारा एक लक्ष्य यह भी है कि हम 2025 तक दस करोड़ लोगों को बौद्ध धम्म से जोड़ेंगे।

 आपका आदर्श पुरुष कौन हैं? – सबसे पहले बाबासाहब हैं और फिर मान्यवर कांशीराम जी हैं। हमारे जो भी विचार बने हैं, वो उन्हीं को देख-सुनकर समझा है। एक बात मैंने हमारी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल जी से भी सीखा कि अगर किसी लक्ष्य को लेकर चला जाए तो उसे हासिल किया जा सकता है। बाबासाहब और मान्यवर कांशीराम जी का जो आंदोलन था, जो कारवां था, वो आगे बढ़ना चाहिए, रुकना नहीं चाहिए। उसे चाहे जो चलाए। राजनीति में तो कुर्सियां टेंपरेरी (अस्थाई) है, यह आती-जाती रहती हैं। कोई आज मंत्री और सांसद है, कल नहीं रहेगा। लेकिन जो बाबासाहब और मान्यवर कांशीराम जी का मिशन-मूवमेंट है, वो समाज के लिए बहुत जरूरी है। अगर मूवमेंट छोड़ कर केवल कुर्सी के पीछे लग जाएं, केवल मंत्री बनकर खुश हो जाएं और समाज को कुछ न दें तो हमारे होने और एक मरे हुए व्यक्ति में कोई ज्यादा फर्क नहीं है। अगर अनुसूचित जाति-जनजाति का हर नेता यह सोच ले कि वो समाज के लिए है, न कि किसी पार्टी के लिए है तो फिर समाज का भला होने से कोई नहीं रोक सकता, क्योंकि आरक्षित सीटों पर टिकट तो इसी समाज को मिलेगा।

दलित महिला पत्रकार को मिला अंतर्राष्ट्रीय सम्मान

भारत की दलित महिलाओं द्वारा संचालित एक डिजिटल न्यूज़ नेटवर्क को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बड़ी कामयाबी और पहचान मिली है। इस न्यूज नेटवर्क का नाम है ‘खबर लहरिया’, जिसे उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के एक छोटे से गांव से ताल्लुक रखने वाली कविता देवी ने महिलाओं की एक टीम के साथ मिलकर शुरू किया था। खबर लहरिया स्थानीय भाषाओं में निकलने वाला आठ पन्नों का साप्ताहिक अखबार है, जो उत्तर प्रदेश और बिहार के 600 गाँवों में 80,000 पाठकों के बीच पहुंचता है। साथ ही वीडियो डाक्यूमेंट्री और वेबसाइट पर खबरें भी प्रकाशित होती हैं। इसी खबर लहरिया के हिस्से में एक विशेष सम्मान आया है।

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 इस न्यूज़ नेटवर्क की शुरुआत, संघर्ष और सफलता की कहानी सुनाने वाली एक डॉक्यूमेंटरी “राइटिंग विद फायर” को अमेरिका के सन-डांस फिल्म फेस्टिवल 2021 में आडियंस और स्पेशल ज्यूरी अवार्ड से सम्मानित किया गया है। दलित दस्तक ने बीते छह फरवरी को इस नेटवर्क के बारे में एक खबर भी लगाई गई थी। निश्चित तौर पर यह पूरे वंचित समाज और खासकर वंचितों में भी वंचित महिलाओं के लिए एक शानदार खबर है।

एक तरफ जहां भारत में किसानों, मजदूरों और दलितों कि अभिव्यक्ति की आजादी का गला घोंटा जा रहा है वहीं दलितों की आवाज को अंतर्राष्ट्रीय पहचान मिलना एक बड़ी खबर है। बीते हफ्ते अमेरिका के साल्ट लेक सिटी में आयोजित सनडांस फिल्म फेस्टिवल में ‘वर्ल्ड सिनेमा डॉक्युमेंट्री कॉम्पिटिशन’ सेगमेंट में ‘राइटिंग विद फायर’ की स्क्रीनिंग की गई। इस सेगमेंट में दुनिया भर में उभरती प्रतिभाओं द्वारा बनाई गयी 10 नॉन-फिक्शन फीचर फिल्में शामिल की गयी थी। उन सभी को पछाड़ते हुए खबर लहरिया की डाक्यूमेंट्री अवार्ड जीतने में सफल रही।

खबर लहरिया पर आधारित “राइटिंग विद फायर” की कहानी इस न्यूज़ नेटवर्क की शुरुआत और इसके जमीनी संघर्ष पर आधारित है। इस डॉक्यूमेंटरी में मीरा, सुनीता और श्यामकली जैसी दलित महिला किरदारों को प्रमुखता से उभारा गया है। हम अपने दर्शकों को बता दें कि पूरी तरह दलित महिलाओं द्वारा संचालित खबर लहरिया नेटवर्क उत्तर प्रदेश मध्यप्रदेश की सीमा पर बुंदेलखंड क्षेत्र में स्थानीय बुन्देली और अवधि भाषा में अपना काम कर रहा है। इस नेटवर्क द्वारा मुख्य रूप से जाति आधारित हिंसा व भेदभाव सहित महिला अधिकार के मुद्दों को उठाया जाता है।

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 उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के सुरसा ब्लॉक के एक छोटे से गाँव ‘कुंजनपुरवा’ में जन्मी कविता देवी ने इसकी शुरुआत की थी। फिलहाल कविता तकरीबन तीस दलित महिला रिपोर्टर्स की मदद से यह नेटवर्क चला रही हैं। जानकारी के मुताबिक कविता देवी ‘एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया’ की एकमात्र दलित सदस्य भी हैं। कविता का जीवन अपने आप में एक मिसाल है। कविता की शादी मात्र बारह साल की उम्र में कर दी गयी थी। उन्होंने खुद अपनी मेहनत से पढ़ाई की और एक समाजसेवी संस्था के साथ महिला शिक्षा पर काम करती रहीं। कविता ने अपने इलाके में ‘महिला डाकिया’ नाम के बुन्देली न्यूजलेटर के लिए काम करते हुए पत्रकारिता सीखी। बाद में दिल्ली की समाज सेवी संस्था ‘निरंतर’ की मदद से उन्होंने ‘खबर लहरिया’ की शुरुआत की। लोगों ने उनका विरोध किया, लेकिन कविता नहीं रूकीं।

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खबर लहरिया डिजिटल न्यूज़ नेटवर्क है जो कथित मुख्यधारा की मीडिया द्वारा उपेक्षित खबरों की खबर लेता है। कविता से बार-बार पूछा जाता है कि आपके नेटवर्क में सिर्फ महिलायें क्यों हैं? इसपर कविता का जवाब होता है कि… पत्रकारिता सहित दुनिया के सभी कामों में पुरुषों का दबदबा है, हम इस स्थिति को बदलना चाहते हैं। और अब जब खबर लहरिया और उसकी डाक्यूमेंट्री को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिल गई है, साफ है कि कविता और उनकी टीम अपनी जिद्द को पूरा करने में कामयाब रही है।

मल्लिकार्जुन खड़गे बने राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष

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 कांग्रेस पार्टी ने अपने वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे को राज्यसभा में अपना नेता चुना है। नेता प्रतिपक्ष श्री गुलाम नवी आजाद का कार्यकाल पूरा होने और राज्यसभा से विदाई के बाद कांग्रेस ने मल्लिकार्जुन खड़गे को अपना नेता चुना है। खड़गे दक्षिण भारत से ताल्लुक रखते हैं और कांग्रेस के दिग्गज नेता हैं। खड़गे एक शानदार वक्ता हैं और लोकसभा में भी कांग्रेस पार्टी का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं।

कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं की तुलना में श्री खड़गे का इस पद हेतु चुनाव भविष्य की राजनीति का संकेत माना जा रहा है। कयास लगाए जा रहे हैं कि आगामी एक साल के भीतर बंगाल सहित दक्षिण के अन्य राज्यों में चुनाव हैं। ऐसे में दलित नेता का नेता प्रतिपक्ष बनना कांग्रेस के लिए लाभकारी हो सकता है। यह भी माना जा रहा है कि किसान आंदोलन के बाद बदली हुई परिस्थितियों में अब किसानों मजदूरों और दलितों-बहुजनों के अधिकार का मुद्दा 2024 के लोकसभा चुनाव में ताकत के साथ उठने वाला है। इस प्रकार दलित समाज से आने वाले एक नेता का राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष हेतु चुना जाने से बहुत सारे राजनीतिक संकेत मिल रहे हैं।

 गौरतलब है कि कांग्रेस ने सन् 2014 में खड़गे को लोकसभा में अपना नेता चुना था तब देश की राजनीति में एक नई बहस छिड़ गयी थी। कांग्रेस के ही शशि थरूर व दिग्विजय सिंह जैसे लोगों ने खड़गे कि बजाय राहुल गांधी को इस पद पर लाने की वकालत की थी। लेकिन बाद में सोनिया गांधी एवं राहुल गांधी ने इस पद हेतु अनिच्छा जाहिर की तब से माना जा रहा था कि कमलनाथ या विरप्पा मोइली इस पद के लिए चुने जाएंगे। लेकिन श्री खड़गे के चुनाव ने उस समय भी सबको चौंका दिया था।

हरियाणा में दलित बस्ती में आगजनी, दलितों ने दी आंदोलन की धमकी

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 हरियाणा के करनाल जिले के पूसगढ़ गाँव से दलित उत्पीड़न की एक भयानक खबर आ रही है। सवर्ण हिन्दू अतिवादियों के एक समूह द्वारा दलित बस्ती पर आक्रमण और आगजनी का मामला सामने आया है। इस हमले में दलितों के दर्जन भर घरों सहित दलितों की कई मोटरसाइकिलों में आग लगा दी गयी है। इस मामले में पुलिस ने कार्यवाही करते हुए लगभग 200 हिन्दू अतिवादियों को गिरफ्तार किया है।

स्थानीय दलितों ने मीडिया को बताया कि 11 फरवरी की रात वाल्मीकि समाज की इस बस्ती में जातिवादी गुंडों ने हमला किया है। असल में यह मामला नशीली दवाओं के कारोबार से जुड़ा हुआ है। बस्ती के वाल्मीकि समाज के लोगों के मुताबिक ऊंची जाति के हिन्दू यहाँ के वाल्मीकि बच्चों पर दबाव डालकर उनसे शराब और ड्रग्स का कारोबार करवाना चाहते हैं। दलित बच्चों ने इस काम में शामिल होने से इनकार कर दिया। इस बात पर 11 फरवरी को जातिवादी गुंडों और दलितों में हाथापाई हुई थी। सवर्ण हिंदुओं ने दलितों को बुरी तरह पीटा और जब दलित पक्ष स्थानीय अस्पताल में इलाज करवा रहा था तभी रात में उनकी बस्ती में आक्रमण करके आग लगा दी गयी। इसी के साथ वाल्मीकि समुदाय के लोगों पर डर के कारण बस्ती छोड़कर जाने का दबाव बन रहा है। इस दबाव की प्रतिक्रिया में कुछ दलित युवकों ने आत्मदाह करने की धमकी दी है। हालांकि डेप्यूटी पुलिस कमिश्नर एवं एसपी के द्वारा आश्वासन दिए जाने पर दलितों ने बस्ती छोड़ने का विचार त्याग दिया है और खबर लिखे जाने तक शांति बनी हुई थी।

इस घटना से पूरे राज्य और देश भर में दलित समुदाय में आक्रोश की लहर फैल गयी है। स्थानीय दलित कार्यकर्ताओं और नेताओं ने पुलिस प्रशासन से कहा है कि मामले में जल्द से जल्द न्याय किया जाए अन्यथा वे एक बड़ा दलित आंदोलन शुरू करेंगे।

सुरक्षित सीटों को लेकर बड़ी खबर, अब ये नहीं लड़ पाएंगे रिजर्व सीटों से चुनाव

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 भारत में धर्मांतरण की स्वतंत्रता और आरक्षित चुनावी सीटों के मुद्दे पर केन्द्रीय कानून मंत्री ने ग्यारह फरवरी को राज्यसभा में एक महत्वपूर्ण बात कही है। श्री रविशंकर प्रसाद के अनुसार जो दलित इस्लाम या ईसाई धर्म में प्रवेश करेंगे वे अब एससी के लिए सुरक्षित सीटों से लोकसभा या विधान सभा का चुनाव नहीं लड़ सकेंगे। हालांकि यहां बौद्ध धर्म में जाने वालों के लिए राहत की खबर है। कानून मंत्री ने कहा कि जो दलित हिन्दू, सिख या बौद्ध धर्म अपनाएंगे उन्हें इस तरह के कोटा का लाभ मिलेगा।

इस मुद्दे को स्पष्ट करते हुए श्री प्रसाद ने कहा कि संविधान के पैरा तीन में अनुसूचित जाति के लोगों के लिए नियम बहुत साफ हैं। इन नियमों के अनुसार जो व्यक्ति हिन्दू, सिख या बौद्ध धर्म के अलावा किसी अन्य धर्म से आता है उसे अनुसूचित जाति का सदस्य नहीं माना जा सकता। हालांकि केन्द्रीय कानून मंत्री ने यह भी स्पष्ट किया कि इस आशय से ‘जनप्रतिनिधित्व अधिनियम’ में कोई संशोधन लाने का सरकार का कोई विचार नहीं है।

कानून मंत्री के इस बयान से साफ है कि ‘जनप्रतिनिधित्व अधिनियम’ में कोई संशोधन किए बिना ही संविधान के पैरा तीन की एक खास तरह से व्याख्या के जरिए एक बड़ा बदलाव हो सकता है। राज्य सभा में कानून मंत्री का यह स्पष्टीकरण धर्मांतरित दलितों को नए धर्म के चुनाव के नजरिए से दो खेमों में बांटता है। एक खेमे में वे दलित हैं जो हिन्दू, सिख और बौद्ध धर्म अपनाना चाहते हैं। वहीं दूसरे खेमे में वे दलित हैं जो इस्लाम और इसाइयत अपनाना चाहते हैं। इस्लाम और इसाइयत अपनाने वाले दलितों को चुनाव लड़ने से रोकने वाली इस व्याख्या से निश्चित ही दलित समुदाय में फूट पड़ेगी जिसके बड़े राजनीतिक और सामाजिक परिणाम हो सकते हैं।

जाति आधारित जनगणना के आँकड़ों को फिर से दबाने की साजिश

भारत के ओबीसी एवं एससी, एसटी के लिए एक बड़ी खबर राज्य-सभा से आई है। दस फरवरी को राज्यसभा की कार्यवाही के दौरान केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने सन 2011 की सामाजिक-आर्थिक एवं जाति आधारित जनगणना के कच्चे आँकड़े सामाजिक न्याय मंत्रालय को सौंपे हैं। ऐसा इन आंकड़ों के बेहतर वर्गीकरण एवं श्रेणीकरण के लिए किया गया है ताकि इन आंकड़ों को ठीक से समझा जा सके। इस दौरान दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से जाति की जनगणना के आंकड़ों जारी नहीं करने की बात भी कही गयी है।

गौरतलब है कि सामाजिक, आर्थिक एवं जाति आधारित जनगणना का यह काम तत्कालीन ‘ग्रामीण विकास मंत्रालय’ एवं ‘आवास और शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्रालय’ द्वारा किया गया था। यह गणना ग्रामीण एवं शहरी दोनों इलाकों में की गयी थी। इस बड़ी कार्यवाही का उद्देश्य था कि भारत के करोड़ों ओबीसी, अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लोगों की सामाजिक आर्थिक एवं जाति आधारित समस्याओं को उनके जनसंख्यात्मक आंकड़ों के आईने में समझा जाए। नित्यानंद राय ने राज्यसभा में बताया कि जनगणना के इन आंकड़ों में से ‘जाति’ के आंकड़ों को छोड़कर अन्य आंकड़ों को अंतिम रूप में लाकर उक्त दो मंत्रालयों द्वारा जारी कर दिया गया है। राज्यसभा की कार्यवाही के दौरान राय ने लिखित रूप में यह जानकारी दी।

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भारत के करोड़ों बहुजनों के लिए यह एक बड़ी खबर है। भारत के इतिहास में पहली बार अंग्रेजों द्वारा सन 1871-72 में जाति आधारित जनगणना की गयी थी। इस जनगणना में चौंकाने वाले आँकड़े सामने आए थे। यह रिपोर्ट उस समय लंदन में ब्रिटिश सरकार के दोनों सदनों में पेश की गयी थी। उस समय ब्रिटिश सरकार ने भारत के अधिकांश प्रांतों के लिए ब्राह्मणों, क्षत्रियों, राजपूतों और कई अन्य जातियों की जनसंख्या की गिनती की थी।

तत्कालीन बंबई प्रांत में जनगणना राज्यों में 658,479 ब्राह्मण, 144,293 क्षत्रिय और राजपूत, 936,000 वैश्य और 10,856,000 शूद्र थे। ब्रिटिश सरकार द्वारा जारी मेमोरेंडम को इस टेबल के अनुसार समझा जाए तो समझ  में आता है कि तत्कालीन समाज में शूद्र 86 प्रतिशत, ब्राह्मण पाँच प्रतिशत, क्षत्रिय एक प्रतिशत और वैश्य सात प्रतिशत थे।

वर्ण कुल जनसंख्या कुल प्रतिशत
ब्राह्मण 6,58,479 5%
क्षत्रिय 1,44,293 1%
वैश्य 9,36,000 7%
शूद्र 1,08,56,000 86%
कुल जनसंख्या 1,25,94,772  

यहाँ यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि उस समय के भारत में ओबीसी अनुसूचित जाति और जनजाति जैसे शब्द नहीं थे। उस समय हिन्दू वर्ण व्यवस्था के हिसाब से चार वर्णों में रखकर जनगणना की गयी थी। इसलिए इस जनगणना में जिन्हे शूद्र कहा गया है उन्हे हम आज के संदर्भ में ओबीसी अनुसूचित जाति और जनजाति के लोग मान सकते हैं।

हालांकि आजादी के बाद कई समाजशास्त्री एक अर्थशास्त्री मानते हैं कि अब ब्राह्मणों और क्षत्रियों की संख्या पहले की तुलना में कहीं ज्यादा घटी है। भारत के गरीब समाज में ओबीसी, एससी और एसटी में स्वाभाविक रूप से जनसंख्या वृद्धि की दर ब्राह्मणों, क्षत्रियों और वैश्यों से अधिक रही है। इसीलिए यह माना जाता है कि अब ब्राह्मणों की कुल जनसंख्या पूरे भारत की आबादी में तीन प्रतिशत से अधिक नहीं है। लेकिन भारत का दुर्भाग्य है कि इन तीन प्रतिशत ब्राह्मणों सहित शेष लगभग बारह प्रतिशत सवर्णों का शासन प्रशासन सहित उद्योग धंधों, व्यापार, निजी नौकरियों, मीडिया, आदि में के पास देश के सत्तर से नब्बे प्रतिशत तक अवसरों पर कब्जा बना हुआ है।

मान्यवर कांशीराम एवं बामसेफ़ के संस्थापकों में से एक श्री डी के खापरडे सहित कई दलित विचारक मानते आए हैं कि भारत मे बहुजनों अर्थात ओबीसी, एससी, एसटी और धार्मिक अल्पसंख्यकों की कुल जनसंख्या 85 प्रतिशत से भी अधिक है। वहीं सवर्ण हिंदुओं की कुल जनसंख्या 15 प्रतिशत से भी कम है। इसीलिए बहुजन राजनीतिक कार्यकर्ता एवं विचारक हमेशा से 85 प्रतिशत बनाम 15 प्रतिशत के आँकड़े की चर्चा करते रहते हैं। ये कार्यकर्ता और विचारक मानते हैं कि भारत में बहुसंख्यकसमाज को उनकी संख्या के अनुपात में अधिकार न मिल सकें इसी उद्देश्य से जाति आधारित जनगणना के आंकड़ों दबाया जाता है। सन 2011 की ‘सामाजिक आर्थिक एवं जातिगत जनगणना’ के आंकड़ों में से ‘जाति जनगणना’ के आंकड़ों को छुपा लेना इसी पुरानी तरकीब का नया उदाहरण है।

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आज बहुजन समाज को जरूरत है कि दुनिया के सभी मंचों से भारत के 85 प्रतिशत शोषित दमित बहुजनों के हक की आवाज उठाई जाए। अंग्रेजों के द्वारा की गयी जनगणना के बाद से बहुत लंबे समय तक इस तरह की जाति और वर्ण की जनगणना के आँकड़े नहीं आए हैं। इसी कारण भारत में न तो सामाजिक आर्थिक विकास की योजनाओं का बहुजनों के पक्ष में निर्माण हो पाता है और न ही बहुजन समाज की चुनावी राजनीति मजबूत हो पाती है। अगर बहुजन समाज से जुड़े जनसंख्या के आँकड़े सामने आते हैं तो निश्चित ही यह न केवल भारत के 85 प्रतिशत बहुजनों के हित में होगा बल्कि यह भारत देश के और भारत के लोकतंत्र के हित में भी होगा।

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सीधी सी बात है कि अगर किसी देश की 85 से 90 प्रतिशत जनसंख्या सशक्त और मजबूत होती है तो उस देश का सशक्तिकरण अपने आप हो जाता है। इसीलिए बहुजन कार्यकर्ता और विचारक बार-बार कहते हैं कि 85 से 90 प्रतिशत बहुजन जनता का कल्याण और सशक्तिकरण ही असली देशभक्ति और राष्ट्रवाद है। इसलिए हमें सच्चा देशभक्त और राष्ट्रवादी बनकर जाति और वर्ण आधारित जनगणना को समाने लाकर उसी के आधार पर सामाजिक विकास और राजनीतिक रणनीति बनाने के लिए काम करना चाहिए।

तेलंगाना मुख्यमंत्री द्वारा दलितों के लिए एक हजार करोड़ रुपये की घोषणा

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 तेलंगाना के मुख्यमंत्री श्री के चंद्रशेखर राव ने दलितों के हित में एक बड़ी घोषणा की है। दस फरवरी को मुख्यमंत्री राव ने ‘मुख्यमंत्री दलित सशक्तीकरण एवं उत्थान’ योजना घोषित करते हुए दलितों के लिए एक हजार करोड़ रुपये खर्च करने का ऐलान किया है। तेलंगाना जैसे छोटे राज्य के लिए ‘दलित सशक्तिकरण एवं विकास’ की इस योजना को दक्षिण भारत की सामाजिक-आर्थिक एवं चुनावी राजनीति में एक मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है। हाल ही में तेलंगाना में हुए नगर निगम चुनावों में विभिन्न पार्टियों ने जैसी आक्रामकता दिखाई थी उसके मद्देनजर श्री राव के इस फैसले को चुनावी नजरिए से भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। तेलंगाना के नालगोण्डा जिले के हालिया गाँव में एक सार्वजनिक सभा को संबोधित करने के दौरान उन्होंने राज्य के बजट में वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिए इस बड़ी राशि की घोषणा की। इस दौरान उन्होंने कहा कि “यह एक विडंबना है कि दलित समुदाय आजादी के सात दशक से अधिक समय बाद भी सभी क्षेत्रों में पिछड़ते जा रहे हैं। कोई भी देश या समाज तभी तरक्की करता है जब सभी वर्ग तरक्की करते हैं। विकास समावेशी होना चाहिए। तेलंगाना में दलितों को सशक्त बनाने के लिए मैंने आगामी बजट में नई योजना शुरू करने का फैसला किया है। इस योजना का नाम मुख्यमंत्री के नाम पर रखा जाएगा। मैं व्यक्तिगत रूप से इसके क्रियान्वयन की निगरानी करूंगा और यह सुनिश्चित करूंगा कि इस योजना का लाभ राज्य भर में दलित समाज के हर व्यक्ति तक पहुंचे। हम इस योजना के लिए 1,000 करोड़ रुपये मंजूर करेंगे।” (फाइल फोटो, फोटो क्रेडिट- गूगल)

कोरेगांव मामले में वाशिंगटन पोस्ट का बड़ा खुलासा, आरोपित बुद्धिजीवियों के लैपटॉप में हुई थी टेम्परिंग

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 कोरेगांव मामले को लेकर वाशिंगटन पोस्ट ने एक बड़ा खुलासा किया है। वाशिंगटन पोस्ट की खबर के मुताबिक रोना विल्सन और भीमा कोरेगांव मामले में आरोपी 15 अन्य मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों के खिलाफ मिले सबूत उनके लैपटॉप पर मैलवेयर सॉफ्टवेयर के जरिए प्लांट किये गए थे। यहां हम अपने दर्शकों को बता दें कि Malware एक ऐसा सॉफ़्टवेयर है जिसे विशेष रूप से किसी भी कंप्यूटर से डाटा चुराने या उसे नुकसान पहुंचाने के लिए डिज़ाइन किया गया है। तो इसी सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल कर पहले कथित आरोपियों के कंप्यूटर में तमाम आपत्तिजनक बातें डाली गई, और फिर उन्हें गिरफ्तार किया गया। यह तथ्य वाशिंगटन पोस्ट में प्रकाशित एक खबर के जरिए सामने आई है। इस रिपोर्ट को लिखा है निहा मसीह और जोआना स्लैटर ने, जो आज 10 फरवरी को वाशिंगटन पोस्ट में प्रकाशित हुई है।

 आर्सेनल कंसल्टिंग जो कि एक अमेरिकी डिजिटल फोरेंसिक फर्म है कि फोरेंसिक रिपोर्ट ने इसका खुलासा किया है कि किसी अज्ञात हैकर ने रोमा विल्सन की गिरफ्तारी से पहले विल्सन के लैपटॉप में मैलवेयर सॉफ्टवेयर के जरिए आपत्तिनजक पत्र डाले थे। पुणे पुलिस ने इन्हीं पत्रों को विल्सन के खिलाफ अपने शुरुआती साक्ष्य के रूप में इस्तेमाल किया था। विल्सन के लैपटॉप से प्राप्त पत्रों में से एक माओवादी आतंकवादी को संबोधित किया गया था जिसमें उनसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या करने का अनुरोध किया गया था। इस पत्र में, विल्सन ने कथित तौर पर बंदूकें और अन्य गोला बारूद की आपूर्ति पर भी चर्चा की थी। लेकिन आर्सेनल कंसल्टिंग रिपोर्ट में साफ तौर पर कहा गया है कि ये पत्र विल्सन के कंप्यूटर में प्लांट किये गए थे और हैकर ने एक मैलवेयर की मदद से विल्सन के डिवाइस पर भी नियंत्रण और जासूसी की थी। हालांकि ये हैकर कौन था, आर्सेनल कंसल्टिंग अब तक इसकी पहचान नहीं कर पाई है। आर्सेनल ने दावा किया कि “यह सबसे गंभीर मामलों में से एक है जिसमें सबूतों से छेड़छाड़ शामिल है।”

जून 2016 में रोना विल्सन को एक व्यक्ति से कुछ ईमेल मिले, जिससे उनका परिचय एक साथी कार्यकर्ता के रूप में हुआ था। उस व्यक्ति ने कथित तौर पर उसे नागरिक स्वतंत्रता समूह के एक बयान को डाउनलोड करने के लिए एक लिंक पर क्लिक करने का आग्रह किया था। लेकिन क्लिक करने के बाद लिंक ने नेटवायर को तैनात किया, जिसने हैकर को विल्सन के डिवाइस का एक्सेस दिया। रिपोर्ट के मुताबिक हैकर ने मालवेयर का इस्तेमाल एक छिपे हुए फोल्डर को बनाने में किया था, जहां 10 गुप्त पत्र जमा किए गए थे। फोरेंसिक फर्म आर्सेनल के अनुसार अक्षरों को माइक्रोसॉफ्ट वर्ड के एक काफी एडवांस वर्जन का उपयोग करके तैयार किया गया था जो कि विल्सन के लैपटॉप पर भी मौजूद नहीं था।

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आर्सेनल की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि विल्सन हैकर्स के इकलौते शिकार नहीं थे। एमनेस्टी इंटरनेशनल ने 2020 में खुलासा किया था कि भीमा कोरेगांव मामले में आरोपी कार्यकर्ताओं की मदद करने की कोशिश करने वाले नौ लोगों को भी ऐसे ही लिंक वाले ईमेल के जरिये निशाना बनाया गया था जो नेटवायर तैनात करते थे।

दिलचस्प बात यह है कि एमनेस्टी और आर्सेनल दोनों की रिपोर्टों में, एक ही डोमेन नाम और आईपी पते सामने आए हैं। इन पत्रों के आधार पर आरोपियों को गिरफ्तार किया गया और उन पर “राष्ट्र के खिलाफ युद्ध छेड़ने” और माओवादियों से सांठ-गांठ और उनकी विचारधारा फैलाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। इसके अलावा, भीमाकोरेगांव विजय दिवस के 200वें वर्षगाठ के दौरान हुई हिंसा में एक व्यक्ति की मृत्यु के बाद समाज में जातिगत टकराव और घृणा पैदा करने के भी आरोप लगाए गए थे।

यह घटना उस समय हुई जब लोग कोरेगाँव की लड़ाई की 200 वीं वर्षगांठ मनाने के लिए कोरेगाँव क्षेत्र में एकत्रित हुए थे। दलित समाज इसे “दमनकारी” उच्च जाति के शासकों पर जीत के दिन के रूप में मनाते हैं। पुलिस ने आरोप लगाया कि गौतम नवलखा, सुधा भारद्वाज और वरवारा राव सहित कार्यकर्ताओं ने 31 दिसंबर, 2017 को एल्गर परिषद की बैठक को पैसे से मदद की, जिसमें भड़काऊ भाषण दिए गए, जिसके कारण हिंसा हुई। इसके बाद जनवरी 2020 में मामला राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को सौंपा गया था।

यहां Click कर बहुजन साहित्य आर्डर करें पुलिस ने सुरेंद्र गाडलिंग, सुधीर धावले, महेश राउत, रोमा विल्सन और सोमा सेन को भी आरोपी बनाया था। बाद में इसी मामले में गौतम नवलखा और आनंद तेलतुंबड़े का नाम भी आया था और उन्हें भी जेल जाना पड़ा था। लेकिन जिस तरह से फारेंसिक रिपोर्ट में साफ हो गया है कि तमाम आपत्तिजनक बातें प्लांटेड थी। अब सवाल उठता है कि आखिर जिन लोगों को आरोपी बनाया गया, उसके खिलाफ साजिश रचने वाले कौन थे, और क्या अब सरकार और पुलिस साजिशकर्ताओं को बेनकाब करेगी।

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उच्च शिक्षा में हो रही है बहुजनों के साथ साजिश, सामने आया चौंकाने वाला आंकड़ा

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 राज्यसभा की कार्यवाही के दौरान 4 फरवरी को एक ऐसा तथ्य सामने आया है, जिससे भारत के करोड़ों ओबीसी, दलितों और आदिवासियों की शिक्षा के बारे में एक बड़ा खुलासा हुआ है। केन्द्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल ने 4 फरवरी को राज्यसभा में उच्च शिक्षा को लेकर ऐसा तथ्य सामने रखा जो न सिर्फ चौंकाने वाला है, बल्कि बहुजन समाज को सचेत भी करता है। केंद्रीय मंत्री द्वारा रखे आंकड़े बताते हैं कि देश में उच्च स्तर के विज्ञान शिक्षण संस्थानों के पीएचडी कार्यक्रमों में भारत के बहुजन छात्रों की उपस्थिति बहुत कमजोर हुई है। आँकड़े के मुताबिक इन संस्थाओं में पीएचडी स्तर के कार्यक्रमों में जिस अनुपात में ओबीसी, एससी और एसटी के छात्रों की संख्या होनी चाहिए उतने छात्र वहाँ प्रवेश नहीं ले पा रहे हैं।

 भारत के सर्वोच्च विज्ञान शिक्षण संस्थान, बेंगलुरु के ‘भारतीय विज्ञान संस्थान’ (आईआईएससी) का उदाहरण देखिए। इस संस्थान में वर्ष 2016 से 2020 के बीच पीएचडी कार्यक्रमों में दाखिला लेने वाले उम्मीदवारों में से केवल 21 प्रतिशत उम्मीदवार एसटी वर्ग से, 9 प्रतिशत एससी से और 8% ओबीसी वर्ग से थे। इसका अर्थ हुआ कि इस संस्थान में पिछड़ों की स्थिति दलितों से भी खराब है। इस संस्थान में इंटीग्रेटेड पीएचडी कार्यक्रमों में कुल प्रवेश प्राप्त छात्रों में 9 प्रतिशत अनुसूचित जाति, 12 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति और 5 प्रतिशत ओबीसी वर्ग से थे।

दूसरी तरफ देश के 17 आईआईआईटी (भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थानों) में कुल पीएचडी उम्मीदवारों में से बमुश्किल 1.7%एसटी, 9% अनुसूचित जाति और 27.4%ओबीसी श्रेणियों से थे। इसी तरह भारत के 31 राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान यानी (NIT) और सात भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थान (IIRS) में वर्ष 2017 से 2020 के बीच आरक्षित श्रेणी के पीएचडी उम्मीदवारों की संख्या भी बहुत कम है। सन् 2015 से 2019 के बीच आईआईटी-मुंबई में पीएचडी के सभी उम्मीदवारों में से केवल 1.6% एसटी, 7.5% एससी और 19.2% ओबीसी श्रेणी से थे।

चार फरवरी को केंद्रीय शिक्षा मंत्री पोखरियाल ने जो आँकड़े बताए उनमें इन संस्थानों में पीएचडी कार्यक्रमों से ड्रॉपआउट छात्रों के आंकड़े भी शामिल थे। इन सभी संस्थानों में से सात IISER का रिकार्ड विशेष रूप से खराब पाया गया। इसका कारण यह है कि इन संस्थाओं में से अनुसूचित जनजाति श्रेणी के 13.3% छात्रों को बीच में ही अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी।

यह तब है, जबकि कानूनी रूप से भारत में पिछड़े वर्ग के लिए 27%, अनुसूचित जाति वर्ग के लिए 15% और जनजाति वर्ग के लिए 7.5% आरक्षण का प्रावधान है। राज्यसभा में शिक्षा मंत्रालय की तरफ से जो आंकड़ा दिया गया उससे साफ पता चलता है कि इन संस्थानों में छात्रों की जितनी संख्या होनी चाहिए, असल में छात्रों की संख्या उससे बहुत कम है। इसका यह भी अर्थ है कि बहुजनों के हक में बने आरक्षण के कानून को कानूनी रूप से कागजों में खत्म किए बिना ही जमीन पर इसे पूरी तरह खत्म कर देने की साजिश रची जा रही है।

नवंबर 2020 में हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट में इस मुद्दे पर आंकड़ों सहित खबर प्रकाशित की गई थी। अखबार की उस रिपोर्ट के अनुसार एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग के उम्मीदवारों द्वारा पर्याप्त संख्या में आवेदन किए जाने के बावजूद आईआईटी-मुंबई में पीएचडी कार्यक्रमों में आरक्षित वर्ग के छात्रों की संख्या बहुत कम बनी हुई है। यानी साफ है कि इन छात्रों का चयन के दौरान और चयन के बाद पढ़ाई के दौरान इनकी संख्या अचानक से घट रही है।

राज्यसभा में इस चौंकाने वाले खुलासे के बाद भारतीय छात्र महासंघ (एसएफआई) की केंद्रीय कार्यकारी समिति ने एक महत्वपूर्ण बयान जारी किया है। बयान में साफ तौर पर कहा गया है कि देश के प्रमुख तकनीकी संस्थानों में आरक्षण के विधान द्वारा बनाए गए मानदंडों के लगातार उल्लंघन के कारण इन संस्थानों में वंचित बहुजनों का प्रतिनिधित्व लगातार काम होता गया है। इसका साफ मतलब यह है कि इन संस्थानों में शिक्षण-प्रशिक्षण का समावेशी माहौल नहीं बन पा रहा है। इसी के चलते छात्रों को बड़ी संख्या में अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ रही है।

निश्चित तौर पर वंचित समाज के बच्चों द्वारा बीच में ही पढ़ाई छोड़ने की एक बड़ी वजह यह भी है और जिस तरह हाशिये के समाज को एक बड़ी साजिश के तरह हर क्षेत्र में आगे बढ़ने को रोका जा रहा है, उसके खिलाफ देश के बहुजनों को आवाज उठाने की जरूरत है।

  • रिपोर्ट- संजय श्रमण

दलित क्रिश्चियंस के साथ भेदभाव, उठी ‘दलित बिशप’ की मांग

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 तमिलनाडु के कुंभकोणम में दलित क्रिश्चियन्स के खिलाफ चर्च के भीतर लंबे समय से चल रहे भेदभाव का मामला सामने आया है। कुंभकोणम के दलित क्रिश्चियन्स ने अपने डायोसीस क्षेत्र में एक दलित बिशप बनाए जाने की मांग की है। इलाके के आठ दलित क्रिश्चियन समूहों ने छह फरवरी को एक पैदल मार्च निकाला और बिशप सहित डायोसियस के अन्य अधिकारियों को अपनी मांग एवं ज्ञापन सौंपा। गौरतलब है कि कुंभकोणम के वर्तमान बिशप ‘एन्टोनीसामी’ शीघ्र ही रिटायर होने जा रहे हैं। इस बात को ध्यान में रखते हुए स्थानीय दलित क्रिश्चियन्स चाहते हैं कि अगला बिशप किसी दलित क्रिश्चियन को बनाया जाए। ये लोग ऐसा इसलिए चाहते हैं कि उन्होंने स्थानीय चर्च में एवं चर्च से जुड़ी गतिविधियों में दलित क्रिश्चियन्स के खिलाफ भेदभाव अनुभव किया है। स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता एवं दलित क्रिश्चियन कुदंथाई अरासन ने बताया कि हम लोगों के साथ सामान्य समाज में ही नहीं बल्कि क्रिश्चियन समाज में भी कई दशकों से भेदभाव हो रहा है। और इस तरह का भेदभाव केवल तमिलनाडु में ही नहीं होता है बल्कि देश के अन्य राज्यों में भी हो रहा है। अरासन ने यह भी बताया कि कुंभकोणम डायोसीस 1 सितम्बर 1899 को स्थापित किया गया था, तब से लेकर आज तक बीते 121 सालों में आज तक किसी दलित क्रिश्चियन को बिशप नहीं बनाया गया। कुंभकोणम ही नहीं बल्कि पूरे तमिलनाडु में किसी भी डायोसीसएक भी दलित बिशप नहीं है। इस बात से स्थानीय दलित लोगों में आक्रोश है। यहाँ यह समझना जरुरी है कि भारत में दलितों के खिलाफ भेदभाव एवं अत्याचार भारत में सभी धर्मों में होता है। बाबा साहब डॉ आंबेडकर ने जोर देते हुए कहा था कि ब्राह्मण धर्म की जाति व्यवस्था एक बीमारी है। यह बीमारी भारत में आये अन्य धर्मों में भी फ़ैल गयी है। भारत में ईसाईयों और मुसलमानों में भी अपने धार्मिक समुदायों के दलितों के खिलाफ भेदभाव किया जाता है। यह भारत के सामाजिक स्थायित्व और लोकतंत्र के लिए एक खतरनाक बात है।

Photo Credit- ucanews.com

निजीकरण के विरोध में बैंककर्मी, चार दिन के लिए करेंगे हड़ताल

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 केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा बजट में दो और सरकारी बैंकों के निजीकरण के ऐलान के बाद बैंक कर्मचारी आंदोलन के मूड में हैं। सरकार द्वारा घोषित निजीकरण के विरोध में बैंक कर्मचारी सामने आ गए हैं। निजीकरण के विरोध में सरकारी बैंकों के कर्मचारियों ने दो दिनों की हड़ताल करने का ऐलान कर दिया है। इसकी वजह से मार्च में बैंक लगातार चार दिन तक बंद रह सकते।

सरकारी बैंकों (PSBs) के कर्मचारियो के संगठनों ने 15 और 16 मार्च को दो दिनों की हड़ताल का ऐलान किया है।  इसके पहले 13 मार्च को महीने का दूसरा शनिवार और 14 मार्च को रविवार होने की वजह से बैंक वैसे ही बंद रहेंगे। इस हड़ताल का ऐलान नौ बैंक यूनियन के केंद्रीय संगठन यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियन्स ने किया है। निजीकरण को लेकर सरकारी बैंकों के कर्मचारियों में डर बन गया है। इसकी वजह यह है कि इस निजीकरण का शिकार बड़े से लेकर छोटा तक कोई भी बैंक हो सकता है। गौरतलब है कि इसस पहले सरकार आईडीबीआई बैंक का साल 2019 में निजीकरण कर चुकी है और पिछले चार साल में 14 सरकारी बैंकों का विलय भी किया गया है।

सिरपुर बौद्ध महोत्सव का कार्यक्रम घोषित, छत्तीसगढ़ की धरती बनेगी बुद्धमय

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 छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध अंतरराष्ट्रीय बौद्ध स्थल सिरपुर में अंतरराष्ट्रीय सिरपुर बौद्ध महोत्सव एवं शोध संगोष्ठी का आयोजन आगामी 12-14 मार्च को होने जा रहा है। यह आयोजन ‘पुरखा के सुरता’ (पूर्वजों को याद करना) के तहत आयोजित किया जा रहा है। महोत्सव का मुख्य उद्देश्य छत्तीसगढ़ को बुद्ध के मार्ग पर ले जाना है। यह महोत्सव छत्तीसगढ़ की प्राचीन बौद्ध में संस्कृति एवं उसकी भव्यता को स्थापित करने की दिशा में महत्वपूर्ण प्रयास माना जा रहा है। सिरपुर महोत्सव में धम्म, कला-स्थापित, शिक्षा, संस्कृति, साहित्य, समाज एवं इतिहास पर केंद्रित एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक सामाजिक कार्यक्रम आयोजित किये जाएंगे।

प्रदेश की राजधानी बिलासपुर में शांतिनगर स्थित केंद्रीय कार्यालय में अंतरराष्ट्रीय सिरपुर बौद्ध महोत्सव एवं शोध संगोष्ठी के आयोजक समिति के पदाधिकारियों की बैठक हुई। सिरपुर महोत्सव छत्तीसगढ़ के ऐतिहासिक बौद्ध विरासत को सहेजने के लिए सांस्कृतिक व बौद्धिक चेतना जगाने बौद्ध भिक्षुयों के सानिध्य में आयोजन किया जा रहा है। आयोजन समिति के प्रवक्ता डॉ नरेश कुमार साहू ने बताया कि सिरपुर महोत्सव छत्तीसगढ़ सहित भारत देश के लिए बौद्धिक विचार, विरासत एवं संस्कृति अनुठा संगम होगा। महोत्सव को भव्यता प्रदान करते हुए सफल बनाने के लिए सिरपुर के आसपास के गांव, कस्बो से लेकर प्रदेश-देश व विदेशों तक बौद्ध विरासत की ऐतिहासिक धरोहरों को सहेजने के लिए प्रचार-प्रसार किया जाना है।

तीन दिवसीय महोत्सव में छत्तीसगढ़ी कलाकारों द्वारा रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति होगी। समारोह में देश व दुनिया के प्रख्यात विद्ववानों, भाषाविद, पुरातत्वविद, इतिहासकार, पत्रकारों, शोधकर्ताओं, लेखकों, यूनिवर्सिटी के प्रोफेसरों, साहित्यकारों व बुद्धजीवियों का प्रबोधन सत्र भी आयोजित किए जाएंगे। बौद्ध विरासत पर आधारित नाटक का मंचन, लघु फिल्मों का प्रदर्शन, महापुरुषों की जीवनी पर पोस्टर प्रदर्शनी और पुस्तको का स्टॉल भी लगाया जाएगा। महोत्सव में कला, संस्कृति, शिक्षा, साहित्यिक और सामाजिक सहित अन्य क्षेत्रों में आजीवन प्रेरणादायक योगदान देने वाले शख्शियतों को पुरस्कृत करते हुए अवार्ड दिया जाएगा। बौद्ध विरासत और संस्कृति पर आधारित प्रतियोगिता निबंध, गीत, कविता, रंगोली, रेत आर्ट, चित्रकला, पेंटिंग व प्रश्नोत्तरी स्पर्धा आयोजित कर विजेताओं को महोत्सव के समापन अवसर पर पुरस्कार प्रदान किया जाएगा।

बैठक में आयोजन समिति छत्तीसगढ़ हेरिटेज एन्ड कल्चरल फाउंडेशन, सिरपुर महोत्सव एवं सोशल वेलफेयर फाउंडेशन के पदाधिकारियों में रघुनंदन साहू, रामकृष्ण जांगड़े, शगुन लाल वर्मा, डॉ आरके सुखदेवे, डॉ नरेश कुमार साहू, डॉ जितेंद्र सोनकर, शिव टंडन, अनिल कोरी, अंजू मेश्राम, कल्याण साहू, डॉ रामचंद्र साहू, कृष्णा पैकरा, हेमंत जोशी, अग्निश देव, रवि साहू, स्नेहलता हुमने, बीनिका दुर्गम, भावेश पटेल, निखिल हगवने व अन्य सामाजिक कार्यकर्ता भी उपस्थित रहे।