कोरोना की इस वैश्विक महामारी के बीच संक्रमण, मौत और अभाव सहित अव्यवस्था की सबसे बुरी मार भारत का वंचित तबका झेल रहा है। यह समाज ना केवल आर्थिक रूप से कमजोर होता है, बल्कि वे सामाजिक एवं शासन प्रशासन से मिलने वाली सहायता भी हासिल नहीं कर पाते हैं। ऐसे में बीमारियां एवं प्राकृतिक आपदाओं का सबसे ज्यादा असर भारत के दलितों एवं आदिवासियों पर ही होता है। ऐसे लोगों की मदद के लिए अमेरिका के बोस्टन से प्रयास शुरू किए गए हैं और यह प्रयास शुरू किया है, अमेरिका बोस्टन में बसी कुमारी अर्जुन और उनके साथियों ने।
कुमारी अर्जुन और हेल्थ वर्कर साथी टेलीफोन, इंटरनेट और टेलीमेडिसिन के जरिए भारत के दलित एवं आदिवासी परिवारों में कोरोना से संक्रमित हो रहे मरीजों की मदद कर रहे हैं। लगभग 10 साल पहले अर्जुन ने भारत के आदिवासियों के लिए टेलीहेल्थ प्रोग्राम बनाया था। इसका उद्देश्य दूरदराज में बसे हुए आदिवासियों को इंटरनेट और मोबाइल फोन के जरिए चिकित्सकीय परामर्श उपलब्ध कराना था। उनका कहना है कि एक साल पहले जब कोविड-19 की बीमारी शुरू हुई उन्हें अपने इस प्रयास की सार्थकता नए स्तर पर दिखाई दी। उन्होंने अनुभव किया कि आदिवासियों एवं दलितों को भारत में वैसे भी देखना या छूना पसंद नहीं किया जाता है, ऐसे में कोरोना की बीमारी होने के बाद उनके खिलाफ सबसे गंदा भेदभाव शुरू होगा। इसीलिए उन्होंने अपने मूल कार्यक्रम को कोरोना की बीमारी के लक्षणों के निदान एवं जरूरी दवाइयों की सलाहकारी की तरफ मोड़ दिया।
अर्जुन का कहना है कि ‘यह एक मानवीय आवश्यकता है, अक्सर दलितों आदिवासियों के कोरोना से पीड़ित मरीजों को कह दिया जाता है कि तुम्हें कोरोना हो गया है अब तो तुम मरने वाले हो, ऐसी स्थिति में न केवल मरीज बल्कि उसका पूरा परिवार असहाय हो जाता है।’ ऐसी स्थिति में आ चुके परिवार फेसबुक और व्हाट्सएप ग्रुप के जरिए अर्जुन द्वारा शुरू की गयी ‘टेली हेल्थ फैसिलिटी’ से संपर्क करके आवश्यक जानकारी हासिल करते हैं। इस कार्यक्रम में भारत के कई राज्यों एवं इलाकों के स्थानीय कार्यकर्ता जुड़े हुए हैं जो स्थानीय भाषा का इंग्लिश में अनुवाद करते हैं, और अर्जुन के काम को आसान बनाते हैं। यहां गौर करने वाली बात यह भी है कि कुमारी अर्जुन स्वयं दलित परिवार से आती है।

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