स्वामी प्रसाद मौर्या ने भाजपा को हिला दिया है

 उत्तर प्रदेश में चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आते जा रहे हैं, सत्ता की लड़ाई तेज होती जा रही है। और इस राजनैतिक लड़ाई में भाजपा की हवा टाईट होती जा रही है। 11 जनवरी को मंत्री पद और भाजपा से इस्तीफा देकर स्वामी प्रसाद मौर्या ने एक ऐसा धमाका कर दिया है, जिसकी गूंज एक दिन बाद तक सुनाई दे रही है।

मौर्या अपने साथ चार अन्य विधायकों को भी सपा में ले गए हैं, जिसमें दो मंत्री हैं। तो वहीं उनके इस दावे के बाद कि कतार में कई और भी विधायक हैं, भाजपा घबराई हुई है। भाजपा इतनी घबराई है कि एक ओर उसके नेता सिद्धार्थ सिंह कह रहे हैं कि पार्टी को कोई फर्क नहीं पड़ता तो दूसरी ओर अंदरखाने भाजपा मौर्य से वापसी की मिन्नते कर रही है। क्योंकि मौर्य जिस केईरी कुशवाहा समाज से ताल्लुक रखते हैं, प्रदेश में उसका वोट 5 प्रतिशत है। तो दारा सिंह चौहान भी अपने समाज में पैठ रखते हैं। दरअसल स्वामी प्रसाद मौर्य के इस झटके से यूपी की सियासत बदलने लगी है और भाजपा जिस ओबीसी के बूते पिछले पांच साल से उत्तर प्रदेश में और तकरीबन आठ साल से केंद्र में राज कर रही है, उसका यह किला दरकने लगा है। एक के बाद एक जैसे-जैसे भाजपा से ओबीसी नेता बाहर आते जा रहे हैं, उससे भाजपा अपनी पुरानी छवि ब्राह्मण-बनिया पार्टी के रूप में एक बार फिर से स्थापित होती जा रही है।

भाजपा इससे इतना घबरा गई है कि वह पार्टी में बचे ओबीसी नेताओं को हर कीमत पर साधने में जुटी है। और जब मामला सीएम योगी और यूपी के नेताओं से नहीं संभल रहा है तो खुद भाजपा के नंबर दो नेता अमित शाह सामने आ गए हैं। और जिन ओबीसी नेताओं के भाजपा छोड़ने की अटकलें हैं, उनको दिल्ली बुलाकर समझाने या ऐसा कहें कि मैनेज करने की कोशिश की जा रही है। हालांकि भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को तब झटका लगा जब दारा सिंह चौहान ने केंद्रीय मंत्रीमंडल से इस्तीफा दे दिया।

भाजपा की घबराहट की एक बड़ी वजह यह भी है कि भाजपा छोड़ने वाले तमाम ओबीसी नेता समाजवादी पार्टी में जा रहे हैं जिससे एक ओर जहां भाजपा का जनाधार खिसकता जा रहा है तो सपा का जनाधार बढ़ता जा रहा है। 10 फरवरी को चुनाव के पहले चरण की वोटिंग से पहले उत्तर प्रदेश की राजनीति में अभी काफी हचलच बाकी है।

पंजाबः CM की रेस में चरणजीत सिंह चन्नी सबसे आगे

 पंजाब में 14 फरवरी को विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में सभी राजनीतिक पार्टियां जीतने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा रही हैं। तो वहीं पंजाब के मतदाताओं ने भी तय कर लिया है कि वो पंजाब का ताज किसको देने वाले हैं। इस बीच एबीपी न्यूज़ ने पांचों चुनावी राज्यों को लेकर सर्वे किया है। एबीपी न्यूज के इस सीवोटर सर्वे में पंजाब में चरणजीत सिंह चन्नी सबको पछाड़ कर लोगों की पहली पसंद बने हुए हैं। सर्वे के मुताबिक मुख्यमंत्री पद को लेकर चरणजीत चन्नी के सामने न तो सिद्धू, न ही अमरिंदर सिंह और न ही कोई दूसरा टक्कर में है।

सर्वे के मुताबिक पंजाब में पूर्व सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह को सिर्फ 6 फीसदी लोग सीएम के तौर पर पसंद कर रहे हैं। पूर्व उप मुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल को 15 फीसदी पसंद करते है तो वहीं आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल को 17 फीसदी और नवजोत सिंह सिद्दू को 6 फीसदी लोग सीएम के रूप में देखना चाहते हैं। भगवंत मान इन सबसे आगे हैं और उन्हें 23 फीसदी जनता सीएम के तौर देखना चाहती है। लेकिन जब बात आई चरणजीत सिंह चन्नी की तो सी-वोटर सर्वे में उन्हें सबसे ज्यादा 29 फीसदी लोग सीएम के तौर पर दुबारा पंजाब में देखना चाहते हैं।

 पंजाब में साल 2017 में हुए विधान सभा चुनाव में कांग्रेस ने कुल 117 सीटों में से 77 सीटें जीतकर अपनी सरकार बनाई थी। इसके बाद 20 सीटें जीतकर आम आदमी पार्टी दूसरे नंबर पर रही थी। अकाली दल ने विधानसभा की 15 सीटें जीती थी। जबकि बीजेपी महज 3 सीटें पर ही सीमट गई थी। तो अन्य के खाते में 2 सीटें आई थी।

2022 चुनाव की बात करें तो एबीपी के इस सी-वोटर सर्वे के मुताबिक पंजाब के कई हिस्सों में कांग्रेस पार्टी आज भी अपनी पैठ बनाए हुए है। तो सीएम के रूप में चरणजीत सिंह चन्नी लोगों की पसंद है। ऐसे में संभावना जताई जा रही है कि सीएम चन्नी दोबारा सीएम की कुर्सी पर बैठ सकते हैं।

यूपी-पंजाब में गली-गली चुनावी चर्चा शुरू

 चुनाव की घोषणा होने के साथ ही अब यूपी और पंजाब में गली-गली में चुनावी चर्चा शुरू हो गई है। हर ओर यही कयास चल रहे हैं कि 2022 में प्रदेश में किसकी सरकार बनेगी। पांच राज्यों में चुनाव होने हैं, लेकिन सभी की निगाहे यूपी और पंजाब पर है।

चुनाव आयोग ने उत्तर प्रदेश और पंजाब समेत पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान कर दिया है। चुनाव आयोग की घोषणा के मुताबिक चुनाव कुल 7 चरणों में होने हैं। इन सभी राज्यों के चुनावों के रिजल्ट 10 मार्च को आएंगे। हालांकि इस बीच सबकी नजर उत्तर प्रदेश पर हैं जहां सभी 7 चरणों मे चुनाव है। पहले चरण का चुनाव 10 फरवरी को होगा, जबकि आखिरी 7वें चरण का चुनाव 7 मार्च को होगा। नतीजे 10 मार्च को आने हैं।

*पहले चरण में उत्तर प्रदेश के 11 जिलों के 58 विधान सभा सीटों पर चुनाव होंगे… दूसरे चरण में उत्तर प्रदेश के 9 जिलों के 55 विधान सभा सीटों पर चुनाव होंगे, तीसरे चरण में 16 जिलों के 59 सीटों पर, चौथे फेज में 9 जिलों के 60, पांचवे फेज में 11 जिलों के 60 सीटों पर चुनाव होने हैं, तो वहीं छठें चरण के 10 जिलों और सातवें चरण के 9 जिलों में क्रमश: 57 और 54 विधान सभा सीटों पर चुनाव होने हैं।

पहला चरण (10 फरवरी)- शामली, मुजफ्फरनगर, बागपत, मेरठ, गाजियाबाद, हापुड़, नोएडा, बुलंदशहर, अलीगढ़, मथुरा और आगरा।

दूसरा चरण (14 फरवरी)– सहारनपुर, बिजनौर, अमरोहा, मुरादाबाद, रामपुर, संभल, बदायूं, बरेली, शाहजहांपुर है।

तीसरा चरण (20 फरवरी)- कासगंज, हाथरस, एटा, फिरोजाबाद, मैनपुरी, फर्रूखाबाद, कन्नौज, इटावा, औरैया, कानपुर देहात, कानपुर नगर, जालौन, हमीरपुर, महोबा, झांसी, ललितपुर है यहां चुनाव 20 फरवरी को होंगे।

चौथै चरण (23 फरवरी)- पीलीभीत, लखीमपुर खीरी, सीतापुर, हरदोई, उन्नाव, लखनऊ, रायबरेली, फतेहपुर, बांदा जिला शामिल है।

पांचवा चरण (27 फरवरी)- बहराइच, श्रावस्ती, बाराबंकी, गोण्डा, अयोध्या, अमेठी, सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, कौशाम्बी, चित्रकूट, प्रयागराज

छठा चरण (3 मार्च)- बलरामपुर, सिद्धार्थनगर, महराजगंज, बस्ती, संतकबीर नगर, गोरखपुर, कुशीनगर, अम्बेडकरनगर, देवरिया, बलिया जिले शामिल है।

सातवां चरण (7 मार्च)- जौनपुर, आजमगढ़, मऊ, वाराणसी, गाजीपुर, संत रविदासनगर, मिर्जापुर, चंदौली, सोनभद्र हैं।

पंजाब में 14 फरवरी को एक ही चरण में सभी सीटों पर चुनाव होंगे।

 सरदार चन्नी के इस दांव से पीएम मोदी चित्त

 पंजाब में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सुरक्षा में चूक के मामले में सियासत चरम पर है। चुनावी समर में बीजेपी और कांग्रेस इस मामले में भिड़े हुए हैं। इस बीच सूबे के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने इस मामले में बयान देकर और ट्वीट कर इस पूरे विवाद को खूब हवा दे दी है। और प्रधानमंत्री मोदी को जमकर घेरा है।

दरअसल पंजाब में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सुरक्षा में चूक के मामले में पंजाब के सीएम चरणजीत सिंह चन्नी को सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया गया है। ऐसे में सीएम चन्नी ने इस मामले में अपनी सफाई दी है। लेकिन साथ ही मुख्यमंत्री चन्नी ने अपने एक ट्वीट में सरदार पटेल को कोट करते हुए इस मामले में पीएम मोदी का नाम लिए बिना उनपर जो तंज कसा है, उससे भाजपा तिलमिला गई है। सीएम चन्नी ने सरदार पटेल को कोट करते हुए ट्विट किया, जिसे कर्त्तव्य से ज़्यादा जान की फ़िक्र हो, उसे भारत जैसे देश में बड़ी जिम्मेदारी नहीं लेनी चाहिए।’

इससे पहले सीएम चन्नी ने गुरुवार को पंजाब के टांडा में रैली के दौरान भी इस मामले में पीएम को घेरते नजर आएं। चन्नी ने भाजपा और पीएम मोदी पर पलटवार करते हुए कहा- पूरे देश में झूठ फैलाया जा रहा है कि पीएम की सुरक्षा में चूक हुई थी। क्या किसी ने पत्थर मार दिया। कोई खरोंच आई। कोई गोली लगी याकिसी ने खिलाफ में नारे लगाए… जो पूरे देश में ये फैलाया जा रहा है कि प्रधानमंत्री की जान को खतरा हो गया।”

पीएम मोदी की सुरक्षा का मामला जोर पकड़ने के बाद सीएम चन्नी का प्रदर्शनकारियों के साथ व्यवहार की भी खूब चर्चा हो रही है। एक सभा में जाने के दौरान प्रदर्शनकारियों ने सीएम के काफिले को रोक लिया। इसके बाद मुख्यमंत्री ने अपने ड्राइवर से गाड़ी धीमी करने को कहा और उतरकर रास्ता रोकने वालों को उनकी समस्याएं सुलझाने का आश्वासन दिया। इस दौरान आजतक के रिपोर्टर मुख्यमंत्री के साथ थे।

इसपर सीएम चरणजीत सिंह चन्नी ने आज तक से कहा, ”ये प्रदर्शनकारी मुझे रोकने आए थे, क्या मैं इन्हें मार दूं?” उन्होंने कहा, दस लोग मेरी कार रोकने आए। पुलिस ने काफिले को घेर लिया। जबकि पीएम मोदी की कार को तो रोका भी नहीं गया। उनका काफिला प्रदर्शनकारियों से एक किलोमीटर दूर था। पंजाब के मुख्यमंत्री ने कहा, प्रदर्शन करना एक लोकतांत्रिक अधिकार है। प्रदर्शनकारी चाहते हैं कि पंजाब विधानसभा चुनाव के मद्देनजर आचार संहिता लागू होने से पहले उनकी मांगों को पूरा किया जाए। यही कारण है कि वे इस सड़क पर प्रदर्शन कर रहे हैं।

यानी पंजाब के फिरोजपुर में प्रधानमंत्री मोदी की जान को खतरा बताकर जिस तरह भाजपा… कांग्रेस और सीएम चन्नी को घेरने की कोशिश कर रही है, सीएम चन्नी के हालिया बयान से साफ है कि वो दबने वाले नहीं हैं। यहां तक की सीएम चन्नी ने जिस तरह पीएम मोदी को एक्सपोज किया है, उससे मोदी और भाजपा खुद बैकफुट पर आ गए हैं।

जयंती विशेषः भदन्त आनन्द कौसल्यायन, जिन्होंने बाबासाहेब से पूछा था- आपको कौन से बुद्ध पसंद हैं

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“जब मैं मर जाउंगा तो मेरी कब्र पर लिख देना कि डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर का यह चीवरधारी सेनानी बाबासाहेब के सपनों का भारत बनाने की जंग में लड़ते-लड़ते शहीद हो गया।” यह कथन भदन्त आनंद कौसल्यायन का है।
आधुनिक भारत को बौद्ध साहित्य विशेषकर पालि साहित्य से परिचित करवाने वाले विद्वानों में रत्नत्रय भदन्त आनन्द कौसल्यायन, भिक्खु जगदीस कस्सप और राहुल सांकृत्यायन का बहुमूल्य योगदान है। उन्हीं रत्नत्रय में 5 जनवरी, 1905 को भदन्त आनन्द कौसल्यायन का जन्म अविभाजित पंजाब के अम्बाला जिले के ‘सोहना’ नामक गाँव में हुआ था। बाल्यकाल में परिवार के लोग इन्हें ‘हरिनाम दास’ नाम से पुकारते थे, बाद में श्रीलंका में उपसंपदा हो जाने पर उन्हें भदन्त आनन्द कौसल्यायन नाम मिला।
स्वतंत्र वैचारिकी से पुष्पित बाल मन सामाजिक बन्धनों और विभिन्न कुरीतियों को स्वीकार करने की अपेक्षा उन्हें दूर करने के लिए आगे बढ़ना चाहता था और यही वजह थी कि 21 वर्ष की उम्र में गृहत्याग करते हुए वे जनसामान्य के उद्धार के लिए घर से निकल गए। भदन्त आनन्द कौसल्यायन बौद्ध साहित्य के मर्मज्ञ थे। उन्होंने आधुनिक भारतीयों को हिंदी भाषा के माध्यम से पालि साहित्य से परिचित कराने के लिए पालि व्याकरण, पिटक साहित्य, अनुपिटक साहित्य इत्यादि का हिंदी अनुवाद किया तथा स्वतन्त्र ग्रन्थों का लेखन व सम्पादन भी किया। बोधिसत्व बाबासाहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर के “बुद्ध एन्ड हिज धम्मा” का हिंदी अनुवाद भी किया। थेरवाद परम्परा को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने भिक्खु धर्म का आजीवन पालन किया तथा प्रेरणा स्रोत रहें।
एक बड़ा ही सुंदर परिदृश्य इतिहास में से निकलकर आपसे रूबरू होना चाहता है। एक बार बाबासाहेब डॉ. अंबेडकर से भदन्त आनन्द कौसल्यायन ने पूछा, “बाबासाहेब आपको तथागत भगवान बुद्ध की कौनसी मुद्रा पसंद है?” “मुझे चलते हुए बुद्ध पसंद हैं।” बाबासाहेब ने यह कहा। “लेकिन बाबासाहेब भगवान बुद्ध की ऐसी तो कोई मुद्रा है ही नहीं। भगवान बुद्ध की तो दस मुद्राएं ही हैं। (1. धम्मचक्क मुद्रा, 2. ध्यान मुद्रा, 3. भूमिस्पर्श मुद्रा, 4. वरद मुद्रा, 5.करण मुद्रा, 6). वज्र मुद्रा, 7. वितर्क मुद्रा, 8. अभय मुद्रा, 9. उत्तरबोधि मुद्रा और 10. अंजलि मुद्रा)” भदन्त आनन्द कौसल्यायन ने आश्चर्य व्यक्त किया।
तब बाबासाहेब ने विनयपिटक के महावग्ग के धम्मचक्कपबत्तनसुत्त को उद्धृत करते हुए भदन्त आनंद कौसल्यायन को कहा कि भगवान बुद्ध का प्रथम उपदेश है, “चरथ भिक्खवे चारिकं बहुजन हिताय बहुजन सुखाय लोकानुकंपाय अत्थाय हिताय सुखाय देव मनुस्सानं। देसेथ भिक्खवे धम्मं आदिकल्याण मज्झे कल्याणं परियोसान कल्याणं सात्थं सव्यंजनं केवल परिपुन्नं परिसुद्धं ब्रह्मचरियं पकासेथ।” अर्थात भिक्खुओं, बहुजन सुख के लिये, बहुजन हित के लिये, लोगों को सुख पहुँचाने के लिये निरन्तर भ्रमण करते रहो। आदि में, मध्य में और अन्त में सभी अवस्थाओं के लिये कल्याणमय धम्म का भाव और आचरण प्रकाशित करते रहो।
बाबासाहेब अम्बेडकर ने उनसे कहा कि जिन करुणा सागर सम्यक सम्बुद्ध ने मनुष्यों के कल्याण के लिए बिना रुके, बिना थके निरंतर पैदल चलते हुए दुःख मुक्ति की देशनाएँ दी हों, तो मुझे ऐसे ही कारुणिक चलते हुए भगवान बुद्ध पसन्द हैं। यही कारण है कि वर्तमान भारत में सम्यक सम्बुद्ध की दस मुद्राओं के साथ – साथ चलते हुए बुद्ध की मुद्रा भी लोकप्रिय है। बाबासाहेब अम्बेडकर के प्रति अपना स्नेह अभिव्यक्त करते हुए अपने एक वक्तव्य में भदन्त आनन्द कौसल्यायन ने कहा था कि दुनिया में सबसे सुखी जीवन बौद्ध भिक्खु का होता है। जब मैं मर जाउंगा तो मेरी कब्र पर लिख देना कि डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर का यह चीवरधारी सेनानी बाबासाहेब के सपनों का भारत बनाने की जंग में लड़ते – लड़ते शहीद हो गया।
22 जून 1988 को भदन्त आनन्द कौसल्यायन जी का नागपुर में परिनिर्वाण हुआ। महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा ने उनके योगदान को रेखांकित करते हुए अपने बौद्ध अध्ययन विभाग का नाम उनके नाम पर रखा  है।

अपनी नाकामी छुपाने के लिए दलित सीएम के पीछे पड़े मोदी

 प्रधानमंत्री पंजाब के फिरोजपुर में चुनावी रैली नहीं कर सकें। मोदी को मौसम, किसानों के विरोध और खाली कुर्सियों के कारण वापस लौटना पड़ा। लेकिन आपदा को अवसर बनाने में माहिर भाजपा ने इस पूरे मामले को भाजपा बनाम कांग्रेस बना दिया। और जो चुनावी रैली में न कर सके उसे सड़क पर कर दिखाया। जब भाजपा ने हुंकार भरी तो गोदी मीडिया ने भी अपनी ओर से कोई कसर नहीं छोड़ा और सरकार के साथ दलित समाज के सीएम चरणजीत सिंह चन्नी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया।

इस बीच बठिंडा एयरपोर्ट पर प्रधानमंत्री मोदी ने पंजाब के अधिकारियों से यह कहकर मामले को राजनीतिक रंग दे दिया कि ‘अपने सीएम को शुक्रिया कहना की मैं वापस जिंदा लौट आया’। मोदी के इस इशारे के बाद केंद्र सरकार के तमाम मंत्रियों, सांसदों ने पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के खिलाफ मोर्चो खोल दिया। यहां तक की कांग्रेस के नेता भी सीएम चन्नी के पीछे पर गए। और तमाम नेताओं और मंत्रियों ने सीएम चन्नी के इस्तीफे की मांग कर दी है।

स्मृति इरानी ने बड़बोले पन में यहां तक कह दिया कि कांग्रेस मोदी से नफरत करती है। जबकि कैप्टन अमरिंदर सिंह और भाजपा ने सीएम का इस्तीफा मांग डाला। चारो ओर से घिरे पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने पीएम मोदी की सुरक्षा चूक की खबरों का खंडन किया है। सीएम चन्नी का कहना है कि उन्होंने खुद सारे इंतजाम देखे थे। पीएम को हेलीकॉप्टर से आना था, लेकिन अंतिम समय में उनका रूट बदल दिया गया और वे सड़क से आएं। हालांकि कांग्रेस और सरकार के बीच इस मुद्दे को लेकर जुबानी जंग जारी है। गृह मंत्रालय ने इसे बड़ी चूक मांगते हुए पंजाब सरकार से विस्तृत रिपोर्ट मांगी है। जबकि कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने सीएम चन्नी का बचाव करते हुए साफ किया है कि- पीएम की सुरक्षा में 10 हजार जवान तैनात थे। पीएम को हेलीकॉप्टनर से आना था, लेकिन ऐन वक्त पर उन्होंने सड़क मार्ग को चुना, जिसकी जानकारी सरकार को नहीं थी।

दरअसल पीएम मोदी को पंजाब के फिरोजपुर में रैली में जाना था। लेकिन खराब मौसम की वजह से पीएम को हेलीकॉप्टर की जगह सड़क मार्ग से जाना पड़ा, इस दौरान फ्लाईओवर पर पहले से प्रदर्शन कर रहे प्रदर्शनकारियों के कारण पीएम को 15 से 20 मिनट तक फ्लाईओवर पर रुकना पड़ा। इसी को लेकर भाजपा ने हंगामा खड़ा कर दिया है। कहा जा रहा है कि रैली न कर पाने और किसानों के विरोध की खबर को दबाने के लिए भाजपा ने पूरे मामले को दूसरा रंग दे दिया है।

बिहार में SC-ST एक्ट का बुरा हाल, नहीं मिल रहा न्याय

बिहार में दलितों के खिलाफ लगातार बढ़ रहे अत्याचार के मामले बेहद चिंताजनक हैं। लेकिन उससे बड़ी चिंता की बात यह है कि ऐसे मामलों में एससी-एसटी एक्ट होने के बावजूद उनको न्याय नहीं मिल पा रहा है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बीते 23 दिसंबर को एससी-एसटी अधिनियम मामलों की समीक्षा बैठक की थी। इस बैठक में एससी-एसटी के ऊपर अत्याचार के मामलों और न्याय मिलने को लेकर जो आंकड़े सामने आए हैं, वो चौंकाने वाले हैं।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, इस समीक्षा बैठक से पता चला है कि वर्तमान में राज्य में एससी-एसटी अधिनियम से जुड़े कुल मामलों की संख्या 1,06,893 है। इनमें से तकरीबन आधे 44,986 मामलों में न्याय नहीं मिला है। बीते 10 सालों यानी जनवरी 2011 से नवंबर 2021 के बीच दर्ज 44,150 मामलों में से सिर्फ 872 मामलों में ही फैसला सुनाया गया है।

 बिहार पुलिस के आंकड़ों के मुताबिक एससी-एसटी अधिनियम के तहत सबसे अधिक 7,574 मामले 2020 में दर्ज किए गए। इससे पहले 2018 में यह संख्या 7,125 और 2017 में 6,826 थी।

नहीं मिल पा रहा है न्याय

रिपोर्ट के मुताबिक उत्पीड़न की घटनाओं में न्याय नहीं मिल पाने की वजह मामलों की संख्या ज्यादा होने का हवाला दिया जा रहा है। इसकी एक वजह यह भी है कि मामलों का निपटारा होने पर पीड़ितों को मुआवजा देना पड़ेगा, जिसकी वजह से भी न्याय मिलना दुभर होता जा रहा है। दरअसल हत्या के मामले में पीड़ित परिवारों को 8.5 लाख रुपये का मुआवजा मिलने का प्रावधान है।

 ऐसे मुआवजे के मामले में 8,108 मामलों में अब तक सिर्फ 2,876 मामलों का ही निपटारा किया गया है और 5,232 मामले लंबित हैं। इसका कारण फंड का नहीं होना बताया जा रहा है।

क्या कहते हैं नियम

 इन आंकड़ों के सामने आने के बाद बिहार में दलितों और आदिवासियों की दयनीय स्थिति की तस्वीर सामने आ जाती है। तो बिहार की सत्ता पर लंबे समय से बैठे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का भी दलितों को न्याय दिलाने के बारे में रवैया सवालों के घेरे में है। क्योंकि नियम के अनुसार एससी-एसटी की स्थिति पर हर छह महीने में समीक्षा बैठक होनी चाहिए जो आमतौर पर नहीं हुई। 4 सितंबर 2020 को समीक्षा बैठक के बाद मुख्यमंत्री की भी नजर इसपर पंद्रह महीने बाद गई और 23 दिसंबर 2021 को एससी-एसटी अधिनियम मामलों की समीक्षा बैठक हुई। इससे साफ है कि बिहार की सरकार, प्रशासन और आय़ोग दलितों और आदिवासियों के खिलाफ अत्याचार रोकने और उनको न्याय दिलाने के लिए गंभीर नहीं है।

पंजाब में पीएम मोदी की भारी बेइज्जती, किसानों ने नहीं होने दी रैली

 कृषि कानूनों पर मोदी से लेकर भारत सरकार को हराने और अपनी मांग मंगवाने के बाद किसानों ने एक बार फिर भाजपा और पीएम मोदी को झटका दे दिया है। 5 जनवरी को पंजाब के फिरोजपुर दौरे पर गए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को किसानों ने रैली नहीं करने दी और पीएम को अपना कार्यक्रम रद्द कर वापस लौटना पड़ा। हालांकि अपनी इज्जत बचाने के लिए केंद्र सरकार इसके पीछे सुरक्षा कारणों का हवाला दे रही है, लेकिन स्थानीय रिपोर्ट के मुताबिक खाली कुर्सियों और किसानों के विरोध के कारण पीएम को अपना दौरा रद्द करना पड़ा। पीएम मोदी अपनी इस रैली से पंजाब चुनाव की शुरुआत करने वाले थे। इस दौरान वह फिरोजपुर में वह 42750 करोड़ रुपये की विकास योजनाओं की घोषणा करने वाले थे। इसके लिए प्रधानमंत्री मोदी सुबह बठिंडा पहुंचे थे। उन्हें वहां से हेलिकॉप्टर से हुसैनीवाला में राष्ट्रीय शहीद स्मारक जाना था। आसमान साफ नहीं था तो पीएम मोदी का सड़क मार्ग से जाना तय हुआ। लेकिन किसानों के प्रदर्शन के चलते पीएम मोदी को वापस लौटना पड़ा। हालांकि अब इस पूरे मामले को गृह मंत्रालय और भाजपा सुरक्षा की चूक मानकर पंजाब सरकार पर सारा ठिकरा फोड़ रही है।
लेकिन सच यह है कि किसान संगठनों ने पहले ही रैली का विरोध करने का ऐलान कर रखा था। किसान एमएसपी गारंटी कानून बनाने और प्रदूषण एक्ट में से किसानों को निकालने की मांग कर रहे थे। पीएम मोदी की इस रैली का विरोध सड़क से लेकर सोशल मीडिया पर तक देखने को मिला। सोशल मीडिया के पेज ट्रैक्टर टू ट्विटर पर बच्चे से लेकर नौजवान और बुजुर्ग भी मोदी की रैली का विरोध करते दिखे। देखते-देखते ट्विटर पर गो बैक मोदी टॉप ट्रेंड करने लगा। यहां लोगों का इस बात को लेकर गुस्सा था कि कृषि कानून के खिलाफ संघर्ष के दौरान 700 किसानों की शहादत होने के बाद प्रधानमंत्री ने कानून वापस लिया। अब भी किसानों की कई मांगें नहीं मानी गई हैं। ऐसे में प्रधानमंत्री का पंजाब में स्वागत का सवाल ही नहीं है।
यानी कि जिस तरह पीएम मोदी और भाजपा यह मान रहे थे कि कृषि कानूनों की वापसी के बाद किसानों का गुस्सा शांत हो जाएगा, वैसा होता नहीं दिख रहा है। पीएम मोदी का विरोध कर पंजाब के किसानों ने साफ कर दिया है कि वह फिलहाल भाजपा और पीएम मोदी को पंजाब में घुसने देने के मूड में नहीं हैं।

क्या है सोशल मीडिया पर हंगामा मचाने वाला बुल्ली बाई ऐप

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 हैदराबाद शहर की पुलिस की साइबर अपराध शाखा ने सोमवार को बुल्ली बाई विवाद के संबंध में एक मामला दर्ज किया। बुल्ली बाई ऐप के खिलाफ ऐफआइआर तब दर्ज हुआ जब शहर की दो महिलाओं की तस्वीरों को एक ऐप के माध्यम से ‘नीलामी’ के लिए रखा गया, जिसमें कथित तौर पर उन्हें अपमानित करने के प्रयास में मुस्लिम महिलाओं को निशाना बनाया गया। वहीं कहा जा रहा है कि बुल्ली बाई ऐप ने करीब 100 मुस्लिम महिलाओं की नीलामी की तस्वीरें अपलोड की है, जिसे लेकर Bulli Bai मामले पर बवाल मचा हुआ है।

हालांकि ये पहली बार नहीं है जब नीलामी के लिए किसी महिला की तस्वीरें अपलोड की जा रही हैं इससे पहले भी Sulli Deals नाम से एक ऐप आया था, जिसमें Bulli Bai की ही तरह महिलाओं की नीलामी की जा रही थी।

अब जानते है कि जिस बुल्ली बाई ऐप पर इतना हंगामा हो रहा है वो आखिर है क्या?

जुलाई 2021 में ‘Sulli Deals’ नाम का एक ऐप सामने आया था, जिसमें कई मुस्लिम महिलाओं की तस्वीरें लगाकर उनकी कथित नीलामी की जा रही थी। उस दौरान कई महिलाओं ने ‘Sulli Deals’ के खिलाफ आवाज उठाई थी। वहीं करीब 6 महीने बाद ‘Bulli Bai’ नाम का एक ऐप फिर से सामने आया है, जिसमें और अधिक महिलाओं की ‘नीलामी’ की जा रही है।।।

कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि Sulli Deals और Bulli Bai को एक ही डेवलपर ने बनाया है। Sulli Deals और Bulli Bai ऐप को Github पर बनाया गया है। इस ऐप के खिलाफ मामला तब दर्ज किया जब पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, छात्रों और प्रसिद्ध हस्तियों सहित कई महिलाओं ने Bulli Bai के खिलाफ शिकायत की और इसके डेवलपर के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की। जिसके बाद मुंबई और दिल्ली पुलिस की साइबर सेल ने मामले की जांच की और पाया कि सैकड़ों मुस्लिम महिलाओं को ऐप पर ‘नीलामी’ के लिए डाला गया था।

सोशल मीडिया में Bulli Bai की बात जैसे ही सामने आई तो सरकार हरकत में आई और तुरंत Bulli Bai ऐप पर बैन लगाया गया। फिलहाल इस मामले में अब तब तीन लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है। इसमें मास्टरमाइंड के तौर पर 18 साल की लड़की श्वेता सिंह और 19 साल के विशाल झा की गिरफ्तारी हुई है, जबकि 20 साल के मयंक रावत को भी गिरफ्तार किया गया है।

Bulli Bai App पर मुस्लिम महिलाओं की निलामी मामले में दो गिरफ्तार

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 सोशल मीडिया में ‘बुली बाई’ एप पर मुस्लिम महिलाओं की निलामी पर देश भर में हंगामा मचा है। इस बीच बड़ी खबर यह है कि इस मामले में बुली बाई एप से जुड़े दो आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया है। इसमें बेंगलुरू से 21 साल के विशाल कुमार झा का नाम सामने आया है जबकि उत्तराखंड से एक महिला को गिरफ्तार किया गया है।

दरअसल इस ऐप पर सैकड़ों मुस्लिम महिलाओं को ‘नीलामी’ के लिए डाला गया था। जिसे लेकर सोशल मीडिया पर हंगामा मचा हुआ है। हैदराबाद पुलिस की साइबर अपराध शाखा ने सोमवार को बुल्ली बाई विवाद के संबंध में एक मामला दर्ज किया था। इस मामले की जांच दिल्ली और मुंबई की साइबर सेल ने भी की थी। जिसके बाद आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया है। दरअसल काफी दिनों से ‘बुली बाई’ एप को लेकर सोशल मीडिया पर बवाल मचा हुआ है। इस ऐप के जरिए करीब 100 मुस्लिम महिलाओं की नीलामी की तस्वीरें अपलोड की गई थी, जिसे लेकर कई पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, छात्रों, प्रसिद्ध हस्तियों सहित कई महिलाओं ने Bulli Bai के खिलाफ शिकायत की थी। इस मामले में सरकार ने जांच का आदेश दिया था जिसके बाद इस एप को ब्लॉक कर दिया गया था और अब इस मामले में दो आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया है।

 पुलिस का कहना है कि मुख्य आरोपी महिला ‘बुली बाई’ एप से जुड़े कुल तीन अकाउंट हैंडल कर रही थी। एक अन्य आरोपी विशाल कुमार ने खालसा वर्चस्ववादी के नाम से खाता खोला था। 31 दिसंबर को, उसने अन्य खातों के नाम बदल दिए और सिख नाम से मिलता-जुलता नाम रख दिया, ताकि इसके खाताधारकों की असली पहचान छुपाई जा सके। नए साल के पहले दिन में जिस तरह सोशल मीडिया पर मुस्लिम महिलाओं को लेकर बुल्ली बाय डील नामक ऐप पर आपत्तिजनक बातें और तस्वीरों को पोस्ट किया गया है, उस पर दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग ने भी संज्ञान लिया था।

अब इस मामले में आरोपी के रूप में विशाल का नाम सामने आने के बाद हंगामा मचा है। विशाल की पहचान ब्राह्मण समाज की बताई जा रही है, इसको लेकर अंबेडकरवादी और मुस्लिम समाज हमलावर हैं। इसको हिन्दुवादी संगठनों की साजिश भी बताई जा रही है।

कोरोना की तेजी के बीच दिल्ली में वीकेंड कर्फ्यू का ऐलान

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कोरोना के लगातार बढ़ते मामले को देखते हुए और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के इसकी गिरफ्त में आने के बाद दिल्ली सरकार ने अहम फैसला किया है। मंगलवार को दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कोविड के नए गाइडलाएंस का एलान किया है। इसके मुताबिक अब दिल्ली में वीकेंड कर्फ्यू लगेगा। दरअसल दिल्ली में कोरोना के मामले पिछले 7 दिनों में काफी ज्यादा बढ़े हैं और इसके साथ ही 3 जनवरी को 4099 मामले सिर्फ दिल्ली में पाए गए हैं। इसको देखते हुए उप मुख्यमंत्री ने कोरोना के खिलाफ सख्ती बढ़ाने का ऐलान किया है।

उप मुख्यमंत्री ने कोविड को लेकर गाइडलाइंस जारी किए है। कोरोना के खिलाफ जो गाइडलांस जारी किए गए हैं उसके मुताबिक- • दिल्ली में वीकेंड कर्फ्यू लगेगा, यानी शनिवार और रविवार को कुछ जरूरी सेवाएं छोड़कर दिल्ली बंद रहेगी। इसका पहला दिन 7 जनवरी को होगा। • इसके अलावा कुछ जरूरी सेवाओं को छोड़ कर सभी सरकारी दफ्तर बंद रहेंगे। • सभी सरकरी दफ्तरों में वर्क फ्रॉम की बात कह दी गई है। • निजी दफ्तर 50% क्षमता के साथ खुलेंगे। • मैट्रो 100% क्षमता से चलेंगे लेकिन सभी को मास्क पहनने की अनिवार्यता रखी गई है। • सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने का निर्देश दिया गया है।

इसके अलावा उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा है कि सभी लोग जरूरत पड़ने पर ही घर से बाहर निकलें। आपको बता दें 3 जनवरी 2022 को कोरोना संक्रमण का ये आंकड़ा पिछले एक हफ्ते में 6.46% की दर के साथ 4099 हो गया था और 4 जनवरी को कोविड संक्रमितों की संख्या 5500 हो गई है। इससे देखा जा सकता है कि कितनी तेजी से कोरोना लोगों को अपनी चपेट में ले रहा है, हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि इस बार ये संक्रमण ज्यादा घातक नहीं है, लेकिन इसके बावजूद सतर्कता बरतने की बात कही जा रही है।

यूपी में भाजपा का भयंकर जातिवाद, डीएम-एसपी के पदों पर राजपूतों और ब्राह्मणों का कब्जा

 जरा बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी के शासनकाल को याद करिए। बसपा शासनकाल में जैसे ही बड़े पदों पर दलितों की पोस्टिंग हो जाती है या फिर सपा शासनकाल में जैसे ही बड़े पदों पर यादव आ जाते थे, इन सरकारों पर जातिवादी होने का ठप्पा लगा दिया जाता था। इस काम में जातिवादी मीडिया और भाजपा के लोग सबसे आगे रहते हैं। लेकिन भाजपा सरकार में अधिकारियों की तैनाती का जो आंकड़ा सामने आया है, वह भाजपा के भीतर के जातिवाद की कहानी कहता है।

अभी यूपी में भाजपा की सरकार है और प्रदेश में अधिकारियों की तैनाती का 30 दिसंबर 2021 तक का जो आंकड़ा सामने आया है, वो इस बात की ओर इशारा करती है कि बीजेपी शासित उत्तर प्रदेश के 75 जिलों में अधिकारियों की तैनाती उनकी जाति के हिसाब से हुई है। और इसमें ऊंची जाति के लोग भरे पड़े हैं। हम ये आंकड़े आपके सामने इसलिए रख रहे हैं क्योंकि यही बीजेपी सरकार जब अपोजिशन में थी तो उत्तर प्रदेश में बड़े पदों पर ओबीसी या एससी/ एसटी की तैनाती पर सवाल उठा रही थी और उसे सपा/बसपा का जातिवाद बता रही थी।

 जो डेटा हमारे पास है उसके मुताबिक यूपी के 75 जिलों में से 30 जिलाधिकारी यानी DM सामान्य वर्ग के हैं, इनमें सीएम योगी की जाति यानी राजपूत जाति के 20 डीएम हैं। तो करीब 11% ब्राह्मण जाति के डीएम हैं। अनुसूचित जाति की बात करें तो सिर्फ 4 DM दलित समाज से आते हैं।

अब उत्तर प्रदेश के जिलों में SSP/SP की तैनाती पर नजर डालेंगे तो वहां पर भी यही देखने को मिलता है… प्रदेश के 18 जिलों की कमान ठाकुर जाति के हाथ में है, जबकि इतने ही यानी 18 जिलों में ब्राह्मण जाति के SSP तैनात हैं। सिर्फ 5 जिलों के पुलिस कप्तान SC-ST समाज से  हैं।

OBC जाति की बात करें तो उनकी स्थिति थोड़ी बेहतर है। सूबे में ओबीसी समाज के 14 DM तैनात हैं। जबकि प्रदेश के 12 जिलों में ओबीसी पुलिस कप्तान हैं। हालांकि इसमें दिलचस्प यह भी है कि योगी सरकार ने यादव अधिकारियों पर भरोसा नहीं जताया है। और सिर्फ 1-1 जिले में DM और पुलिस कप्तान यादव रखे गए हैं।

 तो वहीं एक भी जिले की कमान मुस्लिम अधिकारियों को नहीं सौंपी गई है। हालांकि 1 सिख और 1 क्रिश्चियन को जिले की कमान डीएम के तौर पर सौंपी गई हैं।

 हालांकि तमाम सरकारें अपनी जाति के अधिकारियों की भर्ती करती रही है, लेकिन सवाल यह है कि सपा और बसपा के शासनकाल में ऐसी नियुक्तियों को जातिवाद कहने वाली भाजपा और उसके नेताओं को अपना जातिवाद क्यों नहीं दिख रहा? क्योंकि जिस तरह से इस सरकार में सवर्ण अधिकारियों को और खासकर सीएम योगी की जाति के अधिकारियों को विशेष तव्वजो दी जा रही है, वह जातिवाद नहीं तो और क्या है?

यूपी चुनाव को लेकर चुनाव आयोग की प्रेस कांफ्रेंस, आयोग ने की ये महत्वपूर्ण घोषणाएँ

 उत्तर प्रदेश चुनाव की समीक्षा को लेकर निर्वाचन आयोग की टीम तीन दिन के दौरे पर थी। इस दौरान तमाम राजनीतिक दलों से मिलने और उनकी प्रतिक्रिया लेने के बाद आयोग के अधिकारियों ने आज 30 दिसंबर को प्रेस कांफ्रेंस की। इस दौरान आयोग ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों को लेकर तमाम चीजें साफ की। मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील चंद्रा ने कई जरूरी ऐलान करते हुए साफ किया कि तमाम राजनीतिक दल समय पर चुनाव चाहते हैं। हालांकि आयोग ने अभी चुनाव की तारीखों का ऐलान नहीं किया।

 मुख्य चुनाव आयुक्त का कहना था कि आखिरी मतदाता सूची 5 जनवरी को आएगी। यानी कि माना जा सकता है कि उसके बाद चुनाव की तारीखों का ऐलान किया जाएगा। इस दौरान आय़ोग ने कई अन्य महत्वपूर्ण घोषणाएँ भी की। आयोग ने एक बड़ा ऐलान करते हुए विशेष लोगों को घर से ही वोटिंग की सुविधा देने का ऐलान किया। आयोग के मुताबिक आगामी यूपी के चुनाव में दिव्यांग और 80 साल से ज्यादा उम्र वालों को घर से ही मतदान की सुविधा मिलेगी। साथ ही इस बार कोरोना को देखते हुए भीड़ को नियंत्रित करने के लिए 11 हजार पोलिंग बूथ ज्यादा बनाए जाएंगे।

 मतदान के समय को लेकर भी आय़ोग ने बदलाव की बात कही है। अब सुबह 8 बजे से लेकर शाम को 6 बजे तक वोटिंग होगी। पहले यह शाम को पांच बजे तक ही होता था। आपको बता दें कि यूपी में 15 करोड़ मतदाता है। इनके लिए प्रदेश में कुल 11 हजार से अधिक बूथ बनाये जाएंगे। जिसमें कुल 11 लाख 74 हजार मतदान स्थल होंगे। आयोग ने वोटर कार्ड न होने की वजह से वोटिंग में होने वाली दिक्कतों पर राहत की घोषणा भी की है। आयोग का कहना था कि जिनके पास निर्वाचन कार्ड नहीं होंगे वो किसी भी आधिकारिक दास्तवेज के साथ वोट कर सकेंगे।

जानिए ओमिक्रॉन को लेकर क्या है ताजा अपडेट

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 नए साल की दस्तक हो चली है, लेकिन उससे पहले कोरोना वायरस के नए वैरिएंट ओमिक्रॉन ने आकर लोगों के उत्साह पर पानी फेर दिया है। कई देशों में डेल्टा की जगह ओमिक्रॉन वैरिएंट पूरी तरह हावी हो चुका है और ये देश महामारी की चौथी लहर झेल रहे हैं। वहीं भारत में अब तक कोरोना की दूसरी लहर देखी गई है। भारत में ओमिक्रॉन के बढ़ते मामले और कोविड मामलो में आई उछाल से तीसरी लहर के आने की आशंका तेज हो गई है।

 दरअसल भारत में 30 दिसंबर तक ओमिक्रॉन के 961 मामले सामने आ चुके हैं। इसी के साथ 29 दिसंबर को कोविड के मामलों में 44% की तेजी दर्ज की गई है। ऐसे में एक्सपर्ट्स का कहना है कि कोरोना के तेजी से बढ़े ये मामले ओमिक्रॉन की वजह से हैं और अनुमान है कि 2022 की शुरुआत में कोरोना के मामलो में उछाल आ सकता है। एक्सपर्ट्स और वैज्ञानिकों का अनुमान है कि भारत में बढ़े Covid-19 के मामलों की वजह से तीसरी लहर आने की संभावना है, लेकिन इसके साथ ही एक्सपर्ट्स ने एक राहत की खबर भी सुनाई है।

एक्सपर्ट्स ने कहा है कि जहां एक तरफ तीसरी लहर के आने की आशंका है वहीं एक बात ये भी है कि इसका प्रभाव पहली और दूसरी लहर की तरह गंभीर नहीं होगा। जानकारों के मुताबिक, ये लहर बहुत कम समय तक रहेगी। अब आपके ज़हन में एक सवाल आ रहा होगा की तीसरी लहर के आने की बात पुख्ता तरीके से क्यों कही जा रही है। तो हम आपको बता दें कि कोविड मामले पर लगातार रिसर्च करने वाले 4 अहम संस्थानों के एक्सपर्ट्स ने कोविड पर अपनी प्रतिक्रिया दी है। आइए जानते हैं कि उन संस्थानों ने क्या कहा-

> कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने एक ट्रैकर बनाया है जिसके मुताबिक दिसंबर के अंतिम सप्ताह से नए संक्रमण के मामले बढ़ने लगेंगे।

> आईआईटी-कानपुर की एक स्टडी में बताया गया है कि भारत में महामारी की तीसरी लहर 3 फरवरी, 2022 तक पीक पर आ सकती है। इस भविष्यवाणी के अनुसार मामलों में वृद्धि, 15 दिसंबर तक शुरू होनी थी।

> नेशनल कोविड-19 सुपरमॉडल कमेटी ने अनुमान लगाया है कि कोरोना की तीसरी लहर 2022 की शुरुआत में पीक पर पहुंचने की उम्मीद है। कमेटी के सदस्यों ने कहा कि जैसे ही ओमिक्रॉन डेल्टा की जगह लेना शुरू कर देगा, वैसे ही हर दिन इसके मामले बढ़ने लगेंगे।

> ओमिक्रॉन वैरिएंट की पहचान करने वाले दक्षिण अफ्रीकी डॉक्टर एंजेलिक कोएत्जी ने कहा है कि ओमिक्रॉन की वजह से भारत में कोविड के मामलों में वृद्धि होगी, लेकिन इसका संक्रमण हल्का होगा। कोएत्जी ने कहा कि इसकी पॉजिटिविटी रेट ज्यादा होगी लेकिन उम्मीद है कि इसके अधिकांश मामले उतने ही हल्के होंगे जितने हम यहां दक्षिण अफ्रीका में देख रहे हैं।

इन सभी एक्सपर्ट्स की कोविड पर जो राय है इससे ये लगता है की कोविड की दूसरी लहर आ सकती है लेकिन इसके साथ ही अच्छी खबर ये बताई जा रही है की इससे नुकसान की संभावना कम है।
  • रिपोर्ट- आस्था गुप्ता

योगी के दिये टैबलेट को OXL पर बेच रहे हैं यूपी के छात्र, वजह जानकर हो जाएंगे हैरान

 भाजपा के घोषणा पत्र में यूपी के छात्रों को एक करोड़ टेबलेट और स्मार्टफोन बांटने की बात कही गई थी। चुनाव नजदीक देख मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती 25 दिसंबर को 60 हजार छात्रों को टैबलेट और स्मार्ट फोन बांटा। लेकिन टैबलेट की पहली खेप मिलते ही छात्र इसे OLX पर बेचने लगे हैं। और छात्र इसकी जो वजह बता रहे हैं, उसे जानकर आप भी हैरान रह जाएंगे।

 छात्रों का कहना है कि उन्हें सरकार द्वारा दिये गए टैबलेट इस्तेमाल करने से डर लगता है क्योंकि इससे उन्हें अपनी प्राइवेसी की चिंता सता रही है। छात्र न तो इस टैबेलेट पर अपना व्हाट्सएप खोल रहे हैं और न हीं फेसबुक। उन्हें डर है कि ऐसा करते ही उनका सारा डेटा सरकार के पास चला जाएगा। और आज के युवाओं के लिए बिना व्हाट्सएप और फेसबुक के किसी फोन या टैब की कल्पना करना ही बेकार है।

 डर सिर्फ इतना ही नहीं है, बल्कि एक मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक एक छात्र ने बताया कि टैब के वॉलपेपर पर योगी सरकार की बड़ी तस्वीर होती है और अगर कोई उसे बदलने की कोशिश करता है तो पूरा फोन की ब्लॉक हो जाता है।

 छात्र यह भी कह रहे हैं कि टैब के ऊपर बारकोड के जरिए मैपिंग की गई है, जिसमें छात्रों का पूरा डेटा उस बारकोड में डाला गया है। जिसकी वजह से वह फोन किसी और के द्वारा नहीं चलाया जा सकता। ऐसे में इस फोन को निजी इस्तेमाल नहीं किया जा सकता और छात्र इसके जरिये सिर्फ पढ़ाई का काम ही कर पाएंगे।

इन्हीं मुश्किलों को देखते हुए अब OLX पर छात्र अपने टैब और स्मार्ट फोन को बेचने लगे हैं, जिससे सरकार की इस योजना की किरकिरी हो गई है। आपको बता दें कि समाजवादी पार्टी की सरकार में भी मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने लैपटॉप बांटा था, तब भी छात्रों द्वारा लैपटॉप को बेचने की खबर आई थी।

उच्च शिक्षण संस्थानों में बहुजनों की आत्महत्या पर आया चौंकाने वाला आंकड़ा

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 देश के उच्च शिक्षा संस्थानों में पिछले सात सालों के दौरान 122 छात्र-छात्राओं ने आत्महत्या कर ली है। ये आंकड़ा केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने बीते संसद सत्र के दौरान बताया। हैरानी की बात यह है कि आत्महत्या करने वाले विद्यार्थियों में ज्यादातर दलित, आदिवासी, पिछड़े और मुस्लिम समाज के युवा हैं। ज्यादा मौतें आईआईटी, आईआईएम और मेडिकल संस्थानों के छात्र-छात्राओं ने किया है।

 मौतों के आंकड़े की बात करें तो देश में बीते सात सालों 2014 से 2021 के बीच दलित समाज के 24 विद्यार्थियों ने खुदकुशी की, जबकि आदिवासी वर्ग से 3 छात्रों ने मौत को गले लगा लिया। तो वहीं ओबीसी से 41 और धार्मिक अल्पसंख्यक वर्ग के 3 विद्यार्थियों ने आत्महत्या कर ली। इस खबर में एक अन्य चौंकाने वाली बात यह है कि बीते सात साल में सबसे ज्यादा 34 आत्महत्याएं आईआईटी संस्थानों के छात्र-छात्राओं ने किया है। इसमें पांच स्टूडेंट आदिवासी समाज से जबकि 13 स्टूडेंट ओबीसी वर्ग से थे।

सरकारी आंकड़े से यह भी सामने आया है कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों में आत्महत्या करने वाले विद्यार्थियों की संख्या 37 रही। इसके अलावा, आईआईएम जैसे प्रतिष्ठित संस्थान में पांच विद्यार्थियों ने अपनी जान दे दी। हालांकि सामाजिक संगठन इस आंकड़े को पूरा सच नहीं मान रहे हैं और उनका दावा है कि मौत के आंकड़े ज्यादा होते हैं, क्योंकि छोटे शहरों के शिक्षण संस्थानों के मामले सामने नहीं आ पाते।

 शिक्षण संस्थानों में आत्महत्या को लेकर सबसे बड़ा बवाल साल 2016 में हुआ था, जब 17 जनवरी 2016 को हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के पीएचडी के छात्र रोहित वेमुला ने विश्वविद्यालय प्रशासन पर तमाम आरोप लगाते हुए आत्महत्या कर लिया था। तो साल 2019 में मेडिकल की छात्रा पायल तड़वी ने सवर्ण समाज की अपनी सहकर्मियों पर भेदभाव का आरोप लगाते हुए आत्महत्या कर ली थी। रोहित वेमुला और पायल तडवी दोनों दलित समाज से थे। माना जा रहा था कि इन दोनों की आत्महत्या के बाद उठे तूफान से स्थिति सुधरेगी, लेकिन सरकार द्वारा जारी आंकड़े बताते हैं कि दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों के लिए देश के उच्च शिक्षण संस्थान कब्रगाह बनते जा रहे हैं।

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस और प्रियंका गांधी का बड़ा दांव

उत्तर प्रदेश में चुनाव का दौर चल रहा है ऐसे में सभी राजनीतिक पर्टियों ने वोट बटोरने के लिए अपना राजनीतिक एजेंडा सेट कर लिया है। वहीं कांग्रेस की महासचिव और उत्तर प्रदेश प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा भी पीछे नहीं है। उत्तर प्रदेश की सियासत में सबसे पीछे चल रही कांग्रेस को संभालने का जिम्मा लेने वाली प्रियंका गांधी ने वोट की खातिर महिलाओं और युवा लड़कियों को निशाने पर लिया है।

  “लड़की हुं लड़ सकती हूं” के नारे के साथ प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश के चुनावी समर में उतर गई हैं। लड़कियों को अपने पाले में करने के लिए प्रियंका गांधी ने 28 दिसंबर को लखनऊ के इकाना स्टेडियम में एक मैराथन रेस आयोजित किया।इसमें बड़ी संख्या में लड़कियां शामिल हुईं। प्रियंका गांधी इस मैराथन में जीतने वाली लड़कियों को इनाम के तौर पर स्कूटी, टैबलेट और स्मार्ट वॉच बांट रही हैं। उनकी इस पहल से साफ लग रहा है कि उन्होंने चुनाव जीतने के लिए अपने राजनीतिक एजेंडे के लिए महिलाओं को चुना है।

क्योंकि भाजपा के निशाने पर जहाँ हिंदू वोट हैं, बसपा का की नजर दलितों-पिछड़ों के साथ ब्राह्मण वोटरों पर है तो यादवों और मुस्लिम समाज पर सपा अपना दावा ठोक रही है। ऐसे में बिखरती हुई कांग्रेस के लिए भी ये जरूरी था कि वो एक ताकतवर एजेंडे के साथ अपना अस्तित्व बनाए रखे। ऐसे में जिस तरह से इस मैराथन के लिए स्टेडियम पर लड़कियों की भीड़ देखी गई उससे लगता है कि कांग्रेस अपने एजेंडे पर आगे बढ़ने में सफल होती दिख रही है। और प्रियंका का ये स्लोगन “लड़की हूं लड़ सकती हूं” उनकी पार्टी को वापस लड़ाई में लाता दिख रहा है।

क्योंकि जहां बात महिलाओं की आती है वहां हर जाति या धर्म की महिलाएं चाहे वो हिंदू या मुस्लिन, सवर्ण हों या दलित सभी शामिल होती हैं। वहीं उत्तर प्रदेश में महिलाओं की संख्या की बात करें तो 2011 के सेंसस के मुताबिक 1000  पुरुषों पर 908 महिलाएं हैं और इलैक्शन कमिशन के मुताबिक इनमें से 59.43 प्रतिशत पुरुषों के मुकाबले 63.26 प्रतिशत महिलाओं ने 2017 विधान सभा चुनाव में वोट किया था। यानी एक बहुत ही बड़े तबके पर कांग्रस का फोकस है। जो तख्ता पलट करने के लिए काफी है। अब देखना ये है कि कांग्रेस को अपने इस नए एजेंडे से 2022 में हो रहे यूपी के विधान सभा चुनाव में कितना फायदा होगा।

मध्य प्रदेश में कोर्ट के आदेश से ओबीसी आरक्षण को झटका

देश के हर राज्य में आरक्षण के अलग-अलग मानक है। हर राज्य में आरक्षण की व्यवस्था अलग-अलग है। देश का कथित सवर्ण समुदाया हमेशा ही इसके विरोध में नजर आती है और इसे लेकर विवाद अक्सर सुर्खियों में बनी रहती हैं। इस बार भी यही हुआ है। लेकिन इस बार ये आरक्षण को लेकर टकराव सरकार और कोर्ट के बीच हुआ है और जहां कोर्ट की बात आ जाती है वहां आखरी फैसला कोर्ट का ही माना जाता है। मामला मध्यप्रदेश का है, जहां अदालत ने ओबीसी समाज को झटका दे दिया है। मध्यप्रदेश की सरकार ने राज्य में ओबीसी आरक्षण 27 फीसदी लागू करने का फैसला किया था हालांकि सरकार की इस कोशिशों को झटका लगा है। दरअसल ओबीसी आरक्षण मामले में सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट की वेकेशन बेंच ने सरकार द्वारा 27 फीसदी आरक्षण को 14 फीसदी तक ही रखने का आदेश दिया है। साथ ही ये भी कहा है कि ये नियम सभी सरकारी विभागों में लागु होना चाहिए। हालांकि हाईकोर्ट ने स्टे को बरकरार रखा है। अब हाईकोर्ट की रेगुलर बेंच इस पर सुनवाई करेगी। मामले की सुनवाई जस्टिस अतुल श्रीधरन और जस्टिस विवेक अग्रवाल की अवकाशकालीन खंडपीठ ने की।

बता दें कि प्रदेश सरकार ने मेडिकल सीटों में ओबीसी वर्ग को 27 फीसदी आरक्षण देने का आदेश जारी किया था। जिसके खिलाफ पन्ना के एक छात्र ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की, जिस पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने मेडिकल सीटों में भी 27 फीसदी के बजाय 14 फीसदी आरक्षण लागू करने का आदेश दिया था। याचिकाकर्ता की ओर से वकील आदित्य संघी हाईकोर्ट में उपस्थित हुए। वहीं सरकार की तरफ से अतिरिक्त महाधिवक्ता आर के वर्मा कोर्ट में मौजूद रहे। आरक्षण से संबंधित सभी मामलों की सुनवाई नियमित पीठ द्वारा पहले के आदेश के अनुसार की जानी है। इससे पहले हाईकोर्ट ने नवंबर में आरक्षण मामले पर सुनवाई करते हुए मेडिकल सीटों में भी ओबीसी आरक्षण 14 फीसदी ही लागू करने का आदेश दिया था। एक बार फिर से अदालत का आदेश आने पर ओबीसी समाज को बड़ा झटका लगा है।

  • रिपोर्ट- आस्था

बहुजन बुलेटिन- 24 दिसंबर 2021

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  1. राजस्थान में बढ़ रहा है दलितों के साथ अत्याचार, दलित दूल्हें को घोड़ी पर बिंदोली निकालने की मिली सजा, सर्वणों ने दूल्हे के साथ की जमकर मारपीट, माहौल बिगड़ता देख पुलिस की गई तैनात। ये मामला उदयपुर के सालेरा खुर्द गांव का है जहां 27 नवंबर को अपनी शादी से पहले दूल्हे ने बिंदोली निकाली थी जिसका विरोध करते हुए गाँव के कुछ सवर्णों ने आगबूबला हो कर उसे पिटा और पथराव किया। जिसके बाद दूल्हे के घर के बाहर महीने भर से 24 घंटे पुलिस तैनात रखी गई है।
  2. उत्तराखंड के स्कूल में दलित महिला द्वारा बनाए गये खाने को मना करने वाले बच्चों के अभिवावकों की कड़ी आपत्ति जताने के बाद, दलित भोजनमाता को पद से हटा दिया गया है। वहीँ बढ़ते मामले को देखते हुए सीएम पुष्कर धामी ने जाँच के आदेश देते हुए कहा है कि मामले में दोषी पाए गये लोगों के खिलाफ सख्त कारवाई की जाएगी।
  3. बिहार में दलित समाज के लोगों ने प्रतिरोध मार्च निकाल कर गजेंद्र झा और दलित विरोधी मानसिकता रखने वाले लोगों पर कानूनी कार्रवाई की मांग की है। इस दौरान गजेन्द्र झा का पुतला भी फूंका गया और लोगों ने गजेंद्र झा मुर्दाबाद के नारे लगाकर उनकी गिरफ्तारी की मांग की।
  4. मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने बीजेपी की शिवराज सिंह चौहान सरकार पर निशाना साधा है। कमलनाथ ने कहा है कि खुद को आदिवासी वर्ग का हितैषी बताने वाली बीजेपी जरा बताए कि अगर वो आदिवासियों की इतनी ही हितैषी है तो अनुपूरक बजट में उसने आदिवासी वर्ग के लिए सिर्फ 400 रुपये क्यों रखे हैं।
  5. झारखंड सरकार आदिवासी जमीन के अवैध हस्तांतरण का पता लगाने के लिए बड़ा कदम उठाने जा रही है।खबर है कि भू राजस्व विभाग ने 89 साल का पूरा ब्योरा माँगा है इसके लिए सभी आयुक्तों व उपायुक्तों को पत्र लिखा गया है।
  6. बसपा सुप्रीमो मायावती ने बंद कमरे में पार्टी नेताओं के साथ मिल कर बनाई यूपी चुनाव जीतने की रणनीति, लोगों को गाँव-गाँव और शहर-शहर में उनके घरों तक जाकर विपक्ष के खिलाफ सावधान करने करने की होगी प्लानिंग।

बच्चों के मन में जातिवाद का जहर भर रहें हैं अभिभावक, चंपावत की घटना बनी उदहारण

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नई दिल्ली- कहते हैं कि बच्चे कच्ची मिट्टी के उस घड़े की तरह होते हैं जिसे जिस सांचे में ढाला जाए वो उसी का आकार ले लेते हैं इसलिए बच्चों को आदर्श सांचे में ढालने की जिम्मेदारी परिवार के ऊपर होती है, लेकिन क्या हो जब यही परिवार बच्चों के दिमाग में जातीयता का जहर भरने लगे और उन्हें ऊंची और नीची जाति में भेद करना सीखा दें। ऐसा ही कुछ उत्तराखंड के स्कूल में पढ़ रहे बच्चों में देखने को मिला है। उत्तराखंड के चंपावत जिले के सुखीढांग के एक स्कूल में करीब 230 छात्र–छत्राएं पढ़ाई करते हैं। इस कॉलेज में कक्षा 6 से 8वीं तक के 66 बच्चों को मिड–डे मील के तहत खाना दिया जाता है। मिड दे मील का खाना तैयार करने की जिम्मदारी भोजनमाता की होती है जिसके लिए एक दलित महिला सुनीता देवी को स्कूल में नियुक्त किया गया। लेकिन बीते कुछ दिनों से मिड दे मील को खाने वाले बच्चों की संख्या घट कर आधी से कम हो गई, जिसका कारण है इन मासूम बच्चों के दिमाग में भरा जातिवाद का जहर। जो किसी और ने नहीं बल्कि उनके ही अभिभावकों ने ही भरा है। मिड डे मील बनानी वाली भोजनमाता के हाथों पहले दिन तो बच्चे खाना खा लेते हैं लेकिन अगले ही दिन, मिड डे मील खाने वाले 66 बच्चों में से 40 सवर्ण बच्चे दलित भोजनमाता के हाथ का बना हुआ खाना बच्चे खाने से मना कर देते हैं और फिर इन बच्चों के माता-पिता स्कूल आकर दलित महिला को भोजनमाता बनाए जाने को लेकर हंगामा करते हैं। इन सवर्ण बच्चों के अभिवावकों का कहना है कि उनके बच्चे दलित महिला द्वारा बने गया खाना नहीं खायेंगे। उनका कहना था कि जब स्कूल में मिड दे मिल खाने वाले बच्चों में सवर्ण बच्चों की संख्या ज्यादा है तो प्रशासन ने एक दलित महिला को भोजनमाता के पद पर क्यों रखा?
इस मामले के तूल पकड़ने और बच्चों के अभिभावकों की कड़ी आपत्ति जताने के बाद भोजनमाता के पद पर रखी गई दलित महिला सुनीता देवी को ये कह कर हटा दिया गया कि नियुक्ति में मानदंडों का पालन नहीं किया गया था। भोजनमाता के पद पर नियुक्त सुनीता देवी इस घटना के बाद बेहद डरी हुई हैं, उन्हें बच्चों के माता-पिता द्वारा अपमानित किया गया कि वो अब स्कूल जाना ही नहीं चाहती। उत्तराखंड में जातिगत भेदभाव की जड़े बेहद गहरी हैं। पिछले दिनों एक दलित को महज इस बात के लिए पीट कर मार डाला गया था क्योंकि उनसे सवर्णों के बीच बैठ कर खाना खाने की जुर्रत की थी। इससे पहले भी हॉकी खिलाड़ी वंदना कटारिया के परिवार को जाति सूचक गालियां देने का मामला सामने आया था। हम बात सिर्फ उत्तराखंड की ही नहीं कर रहे बल्कि देश के बाक़ी राज्यों में भी दलितों के साथ इस तरह की सैंकड़ों घटनाएं सामने आती रहती हैं। ये घटनाएं साबित करती हैं कि भले ही समय बदल गया हो लेकिन जातिवाद का ज़हर आज भी समाज में जिंदा है।